बात चार साल पुरानी है ! मेरे 'हेड' जो भारत सरकार के वैज्ञानिक रह चुके थे अचानक से हमारे यहाँ से छोड़ कर चले गए ! जिम्मेदारी मेरे कंधो पर आ गयी ! मुश्किल घड़ी थी - तब जब आपके डिपार्टमेंट में करीब चालीस 'पढ़ी लिखी' महिलायें हो :( मैंने अपनी मुश्किल ऊपर तक पहुंचाई और मुझे 'एम टेक ( कंप्यूटर इंजिनीयरिंग)' का इंचार्ज बना दिया गया और डिपार्टमेंट के झमेले से छूटकारा मिल गया ! यह कोर्स विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए ही था ! खैर जुलाई का महीना था - कॉलेज में छुट्टी हो गयी और मै इस कोर्स के चलते छुट्टी पर नहीं जा सका ! यहाँ एक नियम था की सिर्फ - प्रोफ़ेसर रैंक के ही शिक्षक पढ़ा सकते हैं ! अब कंप्यूटर इंजिनीरिंग में प्रोफ़ेसर पास के आई आई टी में ही थे और उनके नखरे इतने की मुझे उनमे से किसी को बुलाने की हिम्मत नहीं हुई ! तभी अचानक एक वैज्ञानिक एवं भारत सरकार के एक शिक्षण संस्थान के प्रोफ़ेसर के बारे में पता चला ! मैंने उनके नाम के लिए - अपने वाईस चांसलर से परमिशन ले लिया ! उनकी उम्र करीब अस्सी को होने को आयी थी ! उनको लाने और ले जाने के लिए - मुझे संस्थान से गाड़ी मिली थी पर उनकी इज्जत के लिए मैंने सोचा की - मै खुद उनको लाऊंगा और ले जाऊँगा ! तब मै सहायक प्राध्यापक था !
मेरी एक आदत है - जब मै किसी भी व्यक्ति से मिलता हूँ - उनके बारे में 'गूगल' में थोडा खोज बिन कर लेता हूँ ! इस प्रोफ़ेसर साहब के बारे में भी थोड़ा सर्च किया - हालांकी उनका बहुत छोटा और एक पन्ने का रेज्यूमे मेरे पास था ! थोडा इन्फो हंगरी हूँ ! गूगल पर खोज किया !
उनको क्लास लेने के लिए - मेरे यहाँ करीब पन्द्रह दिन आना था ! उनको लाते - ले जाते फिर क्लास के बीच चाय पानी फिर उनका मेरे केबिन में बैठना - जान पहचान और अपनापन बढ़ता गया ! मै उनसे 'कंप्यूटर इंजीनियरिंग' के सवाल न के बराबर पर जीवन दर्शन पर उनकी सोच के बारे में पूछता !
जो कुछ उन्होंने खुद के बारे बताया - वो इस प्रकार था - उन्होंने अपनी पी एच डी सन 1957 में विक्रम साराभाई के गाईड में की - उनके वाइवा लेने के लिए अमरीका से प्रोफ़ेसर आये थे - संयुक्त राष्ट्र संघ के ! फिर वो अमरीका के सबसे मशहूर विश्वविद्यालय में शिक्षक बने - जिंदगी मजे में गुजर रही थी - कहते हैं - एक दिन अचानक उनके पास भारत से फोन आया - 'श्रीमती गाँधी अब आप से बात करेंगी ' - श्रीमती गाँधी - " देश को आप जैसे लोगों की जरुरत है - अगर आप भारत लौट आयें तो देशवासीओं के साथ साथ मुझे प्रसन्नता होगी " ! वो कहते हैं - कौन ऐसा देशभक्त होगा जो सीधे प्रधानमंत्री से बात कर देश नहीं लौटेगा - मै अगले महीने ही 'भारत लौट आया' ! श्रीमती गाँधी ने बहुत इज्ज़त दी और धीरे - धीरे मै भारत सरकार के सभी 'विज्ञानं और तकनिकी प्रयोगशाला' में अपना योगदान दिया ! एक प्रधानमंत्री के लंबे कार्यकाल में मै 'उनका तकनिकी सलाहकार' बना ! ( पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आज़ाद , राष्ट्रपति बनने के पहले इसी पोस्ट पर थे ) !
कई बार मुझे अजीब लगता ! इतना बड़ा आदमी ! सरकारी बस से अपने संस्थान में आता है ! अस्सी के उम्र में भी पढाता है और पढता है ! मेरी रुची उनके बारे में जानने को और बढ़ी - मै गूगल के तरफ मुखातिब हुआ ! वैज्ञानिक लोग या शिक्षक देश विदेश के जर्नल में अपना 'पेपर' लिखते हैं - इनको भी आदत थी ! रक्षा के बड़े बड़े कंपनी अपने प्रोडक्ट के बारे में रक्षा से सम्बंधित मैग्जीन में निकालते हैं या कुछ फ्री सैम्पल विभिन्न सरकारों को भेजते हैं ! सो , इन्होने एक प्रोडक्ट का ट्रायल रिपोर्ट विदेश की किसी मैग्जीन वाले को भेजा ! कुरियर कंपनी को संदेह हुआ ! उसने कुरियर खोला और कुछ तकनिकी चीज़ें मिली ! केस दर्ज हुआ ! रातों रात छापा पड़ा ! कहीं कुछ भी नहीं मिला ! "जासूसी उपन्यास और मसाला " के लिए पुलिस अधिकारी बुरी तरह पीछे पड गए ! ( बड़े अधिकारी ) !
इनको कोर्ट ने बा इज्ज़त बरी कर दिया - सी बी आई के किसी अधिकारी की अहंकार को ठेस पहुँची थी ! उसने फिर से केस खुलवाया ! ऊपर वाले कोर्ट में अपील हुआ - देश के साथ विश्वासघात का ! देशद्रोह का ! केस दस साल चला - इस बीच इस गरीब ब्राह्मण ने अपने बड़ी पुत्र को खोया ! पूरा परिवार डिप्रेशन में ! वो सब कुछ बेच अपनी कोई इज्ज़त और प्रतिष्ठा के लिए लड़ रहे थे ! अंत में सुप्रीम कोर्ट ने जबरदस्त फटकार "बड़े पुलिस अधिकारिओं" को लगाईं और इनको बा इज्ज़त बरी किया गया ! इस बीच बारह साल बीत चुके थे !
इनको एक संस्थान में प्रोफ़ेसर एमिरीटस नियुक्त किया गया ! कुछ साल वो यहाँ बिताए - इसी दौरान मेरी उनसे मुलाक़ात हुई !
मै इस कहानी को जिस दिन जाना - रात भर नहीं सो सका ! अगले दिन जब उनसे मिला तो मै उनके चरण स्पर्श किया और आँख में आंसू आ गए - वो पूछे - क्यों रो रहे हो - मैंने झूठ बोला - आपको देख 'दादा जी' की याद आ रही है - छुट्टी मिलता तो गाँव घूम आता ! वो हंसने लगे - कहे मुझे भी गाँव जाना है - मेरी माँ ने मुझसे वादा माँगा था - जीवन में कुछ पैसे बचा लिया तो - गाँव के प्राथमिक विद्यालय को डोनेट करूँगा ! मेरे पास कुछ रुपैये बचे हैं - दो साल से लगा हूँ - गाँव का प्राथमिक विद्यालय लगभग तैयार हो चूका है !
मै हतप्रभ था - पावर के घमंड में चूर अधिकारी इनके जीवन से इनके पुत्र को छीना - आप जीवन में उच्च शिखर पर हैं - प्रधानमंत्री से हर हफ्ता मिल रहे हैं - अचानक आपके हाथ हथकड़ी और फिर बारह साल की लड़ाई ! फिर भी प्राथमिक शिक्षा के लिए यह व्यक्ति अपना सब कुछ लगा रहा है और वो भी अस्सी वर्ष की आयु में - उसी जोश से ! वो बार बार कहते रहे - 'प्राथमिक शिक्षा और शिक्षक' का बहुत रोल है जीवन में ! इनको इज्ज़त देना सीखिए !
वो अपना मोबाईल नहीं रखते थे ..जब तक वो पढ़ाते रहे ..मै कोशिश करता रहा ..उनसे मिलूं ..और मिला भी ...उनकी पूरी कहानी नहीं छाप रहा हूँ ....पर ..बहुत दर्द छिपा था ...और हमेशा मुस्कुराते ...और मै .....
वो अपना मोबाईल नहीं रखते थे ..जब तक वो पढ़ाते रहे ..मै कोशिश करता रहा ..उनसे मिलूं ..और मिला भी ...उनकी पूरी कहानी नहीं छाप रहा हूँ ....पर ..बहुत दर्द छिपा था ...और हमेशा मुस्कुराते ...और मै .....
क्रमशः
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !