Tuesday, January 12, 2016

शक्ति

#Shakti 
यूँ तो शक्ति के हज़ारों / लाखों रूप होते हैं । शक्तिविहीन इस धरती पर कुछ भी नहीं । फिर भी सामाजिक पटल पर मुख्यतः तीन प्रकार की शक्ति नज़र आती है - जिसे पाने के लिए हर इंसान व्याकुल है - बाहुबल / काली , अर्थबल / लक्ष्मी और शास्त्रबल / सरस्वती । समाज इन्ही तीनो में उलझा हुआ है और सबसे ज़्यादा ताक़त महालक्ष्मी में ही नज़र आता है । 
इस उम्र तक पहुँचने के बाद मैंने यही पाया है - जिस शक्ति को जब आना होगा या जाना होगा - इंसान के वश में नहीं है । किसके ऊपर किस शक्ति का वरदान होगा - कहना मुश्किल है । सर होकर आयी और पैर से निकल कर चली गयी । एक से बढ़ कर एक राजनेता को देखा - शक्ति आयी तो कल तक यूँ ही विचरण करने वाला इंसान अचानक से समाज में अपने शक्ति के लिए जाना जाने लगा । शक्ति गयी तो कोई भी पूछने वाला नहीं । लक्ष्मी को चंचल माना गया - कारण की उनकी चमक तुरंत नज़र आती है और उनका जाना भी तुरंत नज़र आता है । सबसे देर से सरस्वती आती है और देर तक रहती हैं । शक्ति का एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में भी जाना होता है । काली - नेम , फ़ेम की बदौलत दूसरे पीढ़ी में भी रुकी रहती हैं । लक्ष्मी किसी ठोस आकार में । सरस्वती जिन के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी । किसी भी तरह का ज्ञान आप सरस्वती के अंतर्गत रख सख़ते हैं - किसी को ठगने से लेकर , मानव स्वभाव का ज्ञान । 
आराधना , मेहनत , साधना से भी शक्ति आती है । पर जो शक्ति ईश्वर देकर भेजता है - वह तो ग़ज़ब का आकर्षण पैदा करता है । उदाहरण के लिए - शक्ति का एक रूप - 'ख़ूबसूरती' , जो नेचुरल ख़ूबसूरत है - जिसका हृदय ख़ूबसूरत है - वह बेमिसाल है । उसके आगे सब मेकअप फ़ेल है । वैसे ही शक्ति के अन्य रूप । 
लेकिन मेरी मूल बात है - शक्ति का आना । जब उनको किसी भी रूप में आना होता है - कोई नहीं रोक सकता - कोई नहीं छीन सकता । कोई समाज कुछ नहीं कर सकता । शक्ति आएगी ही आएगी । प्रथम वह इंसान उस शक्ति का भोग करता है - फिर वह भय में चला जाता है - यह भय उसको उस शक्ति को संग्रह की ओर बेबस करता है । उसी संग्रह के दौरान ख़ुद की शक्ति को देख इंसान अंधा हो जाता है ...और वहीं से उस शक्ति का क्षय शुरू हो जाता है । 
अब बात आती है - शक्ति की चकाचौंध से कैसे ख़ुद को अंधा होने बचाया जाए । मुझे लगता है - शक्ति को आशीर्वाद समझ उसका भोग किया जाए तो शक्ति अपनी आयु से ज़्यादा देर टिक सक़ती हैं । पर इंसान तो इंसान ही है - शक्ति का भोग करते करते कब घमंड हावी होकर उसे अंधा बना देता है - उसे पता भी नहीं चलता ।

Tuesday, January 5, 2016

बिहार में आईटी सिटी की डिमांड


अगर मै बिहार का मुख्यमंत्री होता ...पटना शहर के दक्षिण में दस - पंद्रह किलोमीटर दूर ..करीब 'एक हज़ार एकड़' ज़मीन का अधिग्रहण कर के - उसमे 'आईटी पार्क' खोलता ! एक हज़ार एकड़ ज़मीन में करीब पांच सौ एकड़ ज़मीन आवासीय और अन्य सुविधाओं के लिए होता और बाकी के पांच सौ एकड़ शुद्ध बहुमंज़िल आईटी पार्क ! ज़मीन अधिग्रहण के बाद उस ज़मीन को प्राईवेट आईटी कंपनी को सौ साल के लिए लिज़ पर दे देता ! उस आईटी पार्क में सभी सुविधाएं विश्वस्तरीय होता - इस आशा के साथ यह आईटी पार्क करीब दस हज़ार से पचीस हज़ार नौजवानों को नौकरी मिलता - जिसमे करीब पचास प्रतिशत दुसरे राज्य से होते - पटना शहर से आईटी पार्क के बीच - फॉर लेन एक्सप्रेसवे होता ! 
जो दुसरे राज्य से आईटी वर्कर आते - वो ना सिर्फ नौकरी करते - अपने साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति भी लाते - जो धीरे धीरे पटना शहर में घुलता - इस आशा के साथ इस आईटी पार्क में नौकरी करने वाले अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा पटना शहर में खर्च करते ! एक कॉस्मोपॉलिटन वातावरण तैयार होता - जब शहर में / राज्य में - एक क्रीमी लेयर ही गायब है - ख़ाक डेवेलोपमेंट होगा :(( 
वर्तमान मुख्यमंत्री जी ...यह कोई बड़ी बात नहीं थी ...जब आप सन 2005 में आये थे - बहुत कुछ कर सकते थे - पर आपका विजन 'बख्तियारपुर / नालंदा / हरनौत' से आगे नहीं बढ़ पाया ! दुःख है ...आप बिहार के नौजवानों को पलायन से नहीं रोक पाए ..जिस तरह से आप बिहटा के किसानो को भूमिहीन कर के केंद्र सरकार की मदद से वहां करीब हज़ार एकड़ में आईआईटी / एनआईटी खुलवाये - यही काम आप दक्षिण पटना में भी कर सकते थे ! आप 'ग्रेटर पटना' की बात कह - बिलकुल सो गए :(( 
1985 के बाद पटना शहर के लिए कोई मास्टर प्लान नहीं आया - कंकडबाग के बाद किसी नए मोहल्ले का निर्माण नहीं हुआ ! 
हम गरीब बिहारी कहीं भी अपनी शिक्षा दीक्षा के बदौलत अपना पेट भर लेंगे - पर हम सब की संकीर्ण राजनीति ..आज हमारे भविष्य को ही खा गयी :(( 
( अगर आप बिहार से हैं / अगर आप पटना से हैं / अगर आप गैर बिहारी - गैर पटना वाले हैं और हमसे हमदर्दी रखते हैं - कृपया इसे शेयर कीजिए ..ताकी 'बड़े पत्रकार' जो मुख्यमंत्री के कान के बगल में फुसफुसाते हैं ..उन तक यह आवाज़ पहुंचे ...और अपना पॉइंट स्कोर के लिए ही सही ...यह बात कम से कम मुख्यमंत्री तक पहुंचे ..)


@RR

Monday, January 4, 2016

एक बढ़िया इंसान ...!!!

बात वर्षों पुरानी है - मै प्लस टू में था - पढ़ाई लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता था - 'हीरोबाजी' में ही समय कटता था - कभी कोई 'गोयें गोयें करते हुए अपनी इंड सुजुकी से दोस्त ...तो कोई महिंद्रा वाली जीप से ...होयें ...होयें ..करता हुआ ..दोस्त ...मोहल्ला परेशान टाईप  ! मौसी पापा की जूनियर होती थीं - और हम लोग लगभग साथ ही रहते थे - मौसी का हमेशा कहना - असली 'हीरो' अपनो के साथ एकदम 'सीधा' रहता है और बाहरी दुनिया को 'हडका' के रखता है ...हा हा हा ! खैर ..एक दिन पापा और मौसी मेरा क्लास ले लिए - पापा वहीँ बालकोनी में बैठे थे - दांत पिसते हुए बोले - 'नहीं  पढ़ना है ...मत पढो..." - हम एकदम से खुशी से उछल के आसाम बेंत वाली कुर्सी पर चुकुमुकु बैठ गए और हम जबाब दिए  - 'यह बात पहले न बोलना था' - पापा और जोर से अपना दांत पिसने लगे - फिर बोले -' नहीं पढना है ...मत पढो ...लेकिन एक बढ़िया इंसान बनो ..मेरे लिए वही काफी होगा' ...हम तब हंस दिए थे ...ये बढ़िया इंसान बनना कौन सा बड़ा काम है ! 
आज वर्षों बाद ...यही लग रहा है ...पापा कितना मुश्किल टास्क थमा दिए थे ...आसान नहीं है ..हम इतने छोटे दायरे से आते हैं ...न जाने कहाँ उलझ के रह जाते हैं ...जब ईमानदार बनना होता है ...अपना दिल सामने कर देते हैं...और जब बेईमान होना होता है ...अपना दिमाग चलाने लगते हैं ...ऐसा सबके साथ होता होगा ! खुद के सच को दिमाग कभी स्वीकार नहीं कर पाता है ...वो सबसे शक्तीशाली है ...! 
खैर ...पापा का टास्क कितना पूरा हुआ ...यह आनेवाला समय और मेरा समाज बताएगा पर ...अभी भी लोग सबक सिखाने को तैयार हैं ....अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है ...:)))
४.१.२०१५ #OldPost

Saturday, January 2, 2016

मोहे पनघट ....:))

नैनो से जादू किया - जियरा मोह लिया ...:)) शकील बदायूँ का लिखा ,नौशाद का संगीत , लता मंगेशकर की आवाज़ , मधुबाला की अदाकारी  और लच्छु महाराज का नृत्य निर्देशन । एक गीत में और क्या चाहिए । अपने आप में भारतीय हिंदी सिनेमा का एक सम्पूर्ण गीत और नृत्य । 
पढ़ रहा था - सम्पादक ने इस गीत को काट दिया था । बड़ी बहस हुई - जोधाबाई हिंदू थी सो इस गीत का औचित्य बनता है । बात नृत्य की आयी तो लच्छु महाराज ने मात्र पाँच दिनो के अंदर इस नृत्य को सजाया । मधुबाला ख़ुद एक बढ़िया नर्तकी नहीं थीं सो लम्बे दृश्यों के लिए एक पुरुष नर्तकी को मधुबाला के रूप में रखा गया । 
ख़ैर इस ख़ास दृश्य को कई बार के मेहनत के बाद मैंने स्क्रीन शॉट लिया - जहाँ मधुबाला अपने होंठों को दाँतो से दबाती हैं । यह अदा मधुबाला के बाद सिर्फ़ ऐश्वर्या ने बख़ूबी निभाया है । और भी एक्टर किए होंगे पर यह अदा भारतीय हिंदी सिनेमा में सिर्फ़ इन्ही दो पर जँचा । 
लच्छु महाराज ने पाकीज़ा में भी नृत्य निर्देशन दिया है । 
एक सवाल मेरे मन में बार बार आता है - नारी मन के अनुसार लिखे गीत , नारी के लिए तैयार किए गए  नृत्य , नारी पर ज़ँचने वाले परिधान और यहाँ तक बढ़िया रसोईया - सब के सब पुरुष ही क्यों होते हैं ।  
ख़ैर ...हम तो सिर्फ़ गीत और नृत्य का आनंद लेते हैं लेकिन इनको महान बनाने के पीछे और भी महान आत्माएँ होती है ...सबको सलाम । 
2.1.2016

Friday, January 1, 2016

गुलज़ार और कुछ यूँ ही ...:))

#KuchhYunHi
मूछें ...फिर से उग आयी हैं ...घनी और चौड़ी मूछें ...देर तक ...बाएं हाथ में वो छोटा वाला सीसा ...और दाहिने हाथ में एक छोटी कैंची ...मूछों को दोनों तरफ से छांटना ...बालकोनी में खड़े खड़े ...कब सुबह गुजर जाती है...पता ही नहीं चलता ...वहीँ बालकोनी के रेलिंग पर रखे चाय के कप को बार बार कहता हूँ ...थोडा रुको ..मूछ को दाहीने और बाएं से थोडा बैलेंस कर लूँ ...फिर तुम्हे अपने लबों से सटाऊं ...और वो गरम चाय ...तुरंत मुह बिचका ..ठण्ड हो जाती है ....
सफ़ेद कुरता और पायजामा के ऊपर वो क्रीम कलर का शाल ...कुछ कुछ 'गुलज़ार' सा दिखने लगा हूँ ...ये गुलज़ार भी अजीब हैं ...उनको पढना ...खुद को महसूस करना होता है ...उनको सुनना ..खुद को महसूस  करना होता है ...अब तो उनको देखना भी ...खुद को महसूस करना जैसा होने लगा है...ये उम्र भी कहाँ कहाँ ले जायेगी ...न जाने किस किस गली में घुमाएगी ...
मूछें ..फिर से उग आयी हैं ...घनी और चौड़ी मूछें ...थोड़ी सफ़ेद ...थोड़ी काली ...
1.1.2015 / इंदिरापुरम .