tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post4425325879509870661..comments2024-02-11T10:28:58.396+05:30Comments on दालान: मेरा गांव - मेरा देस - ( सिनेमा - सिलेमा ) भाग सातRanjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-83452847410767263642010-07-14T00:06:51.855+05:302010-07-14T00:06:51.855+05:30गजब का फ्लो है आपके लेखन में...एकदम स्वाभाविक....अ...गजब का फ्लो है आपके लेखन में...एकदम स्वाभाविक....अच्छा लगाMANOJ SRIVASTAVAhttps://www.blogger.com/profile/00287185177228033519noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-83950753994210379812010-06-09T20:24:22.777+05:302010-06-09T20:24:22.777+05:30apka lekh bahut achha laga..apka lekh bahut achha laga..Rajhttps://www.blogger.com/profile/14052624916581357035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-35743200625431027532010-06-06T12:25:42.804+05:302010-06-06T12:25:42.804+05:30हॉस्टल वालो के लिए सिनेमा एक संजीवनी बूटी है ........हॉस्टल वालो के लिए सिनेमा एक संजीवनी बूटी है ......ख़ुशी का रिचार्ज कूपन .अमूमन रात के शो से पहले किसी होटल का खाना ....हमारे यहाँ अंग्रेजी फिल्मो को देखने का क्रेज था .हिंदी फिल्मे अमूमन गर्ल फ्रेंडो के साथ देखी जाती थीडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-85827743079862719062010-06-06T11:53:59.741+05:302010-06-06T11:53:59.741+05:30उस दौर की बाते हीं कुछ खाश होता था, वो भी उस दौर म...उस दौर की बाते हीं कुछ खाश होता था, वो भी उस दौर मे जिस दौर मे बहुत सारे प्रतिबन्ध होते थे, आप ने तोए सब के दुखती राग पैर हाथ रख दिए है सर जी सब अपने पुराबे दिन मे चलेजायेंगेAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/17290105197611135636noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-11932018717137163882010-06-06T11:37:20.872+05:302010-06-06T11:37:20.872+05:30bahut badiya laga pad k, school time pe hum log b ...bahut badiya laga pad k, school time pe hum log b ek din mei 3 3 show maar dete the ashok, regent mei.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/06346400058318899954noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-16366958345357571712010-06-06T09:04:43.723+05:302010-06-06T09:04:43.723+05:30हम भी कॉलेज बंक कर के बहुते फिलिम देखे है सर पटना ...हम भी कॉलेज बंक कर के बहुते फिलिम देखे है सर पटना में !!!! आपने तो याद ताज़ा कर दीया उन दिनों का !!!!!!C-MANTRAhttps://www.blogger.com/profile/16472352013833187069noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-20110127652535588762010-06-06T07:58:28.702+05:302010-06-06T07:58:28.702+05:30बहुत बढ़िया संस्मरण श्री रंजन जी. उम्मीद है इसका अ...बहुत बढ़िया संस्मरण श्री रंजन जी. उम्मीद है इसका अगला अंक में कुछ और मिलेगा.Sarveshhttps://www.blogger.com/profile/15736299921472395047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-25317552579792740402010-06-06T02:56:19.883+05:302010-06-06T02:56:19.883+05:30सही यात्रा कराई..मुज्जफरपुर से नोयडा तक की..चलचित्...सही यात्रा कराई..मुज्जफरपुर से नोयडा तक की..चलचित्र की तरह चलता रहा संस्मरण. बढ़िया!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-55150558409774396602010-06-06T02:52:15.249+05:302010-06-06T02:52:15.249+05:30आपने सिलेमा के बहाने वक्त की उस धड़कती नब्ज पर हाथ ...आपने सिलेमा के बहाने वक्त की उस धड़कती नब्ज पर हाथ रख दिया है जो अपनी बदलती रफ़्तार मे पिछले ३०-३५ सालों का इतिहास समेटे हुए है...बहुत खूब!अपूर्वhttps://www.blogger.com/profile/11519174512849236570noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-8752485693785426942010-06-06T01:34:51.960+05:302010-06-06T01:34:51.960+05:30बढ़िया लगा, रंजन भाई....
मौज में पढ़ गए... पता ही नह...बढ़िया लगा, रंजन भाई....<br />मौज में पढ़ गए... पता ही नहीं चला की कोइ ब्लॉग पोस्ट पढ़ रहे हैं.. लगा बतिया रहे हैं.....<br />भाषा में जो ठेठ बिहारीपन है वो नोस्टल्जिया देता है.... एक बात हम भी शेयर करते हैं... जब हाई-स्कूल के टाइम में बिहारशरीफ में रहा करते थे तब एक शौक चढ़ा था सिनेमा की सेंचुरी बनाने का. शर्त लग गयी थी दोस्तों में.....<br />शर्त जीतने के चक्कर में अंतिम दिनों में एक दिन में ४-४ शो भी देखे गए.. परदे पर क्या चल रहा होता था पता नहीं... नींद आ जाती थी.... दो शतक पूरे हुए थे तीन साल में... अब सोचता हूँ तो पागलपन लगता है.. सोचता हूँ इतनी मेहनत पढाई में कर लेता तो आज कहीं और होता... पर फिर सोचता हूँ जिन मित्रों ने उस समय पढाई की उन्होंने ही कौन से तीर चला लिए ;) हाहाहा....<br /><br />बड़े भैया आज भी अगर ये बातें पढ़ लें तो खाल खींच लें.... थैंक गाड.. गाँव में अभी इन्टरनेट नहीं पहुंचा.... :)Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.com