tag:blogger.com,1999:blog-32861265867682988512024-02-26T02:43:19.195+05:30दालानरंजन ऋतुराज के दिल से ...कुछ ..कुछ ...यूँ ही ....:))Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.comBlogger437125tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-48036725558917850252020-01-19T08:57:00.001+05:302020-01-19T08:57:15.818+05:30प्रेम और युद्ध <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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#LoveAndWar</div>
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दिनकर लिखते हैं - " समस्या युद्ध की हो अथवा प्रेम की, कठिनाइयाँ सर्वत्र समान हैं। " - दोनों में बहुत साहस चाहिए होता है ! हवा में तलवार भांजना 'युद्ध' नहीं होता और ना ही कविता लिख सन्देश भेजना प्रेम होता है ! युद्ध और प्रेम दोनों की भावनात्मक इंटेंसिटी एक ही है ! युद्ध में किसी की जान ले लेने की शक्ती होनी चाहिए और प्रेम में खुद को विलीन करने की शक्ती ! दोनों का मजा तभी है - जब सामनेवाला भी उसी कला और साहस से मैदान में है ! कई बार बगैर कौशल भी - साहस से कई युद्ध या प्रेम जीता जाता है - कई बार सारे कौशल ...साहस की कमी के कारण वहीँ ढेर हो जाते हैं ...जहाँ से वो पनपे होते हैं ! और एक हल्की चूक - युद्ध में जान ले सकती है और प्रेम में नज़र से गिरा सकती है ! </div>
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इतिहास गवाह है - ऐसे शूरवीरों से भरा पडा है - जिसने प्रेम में खुद को समर्पित किया और वही इंसान युद्ध में किसी को मार गिराया - यह ईश्वरीय देन है - भोग का महत्व भी वही समझ सकता है - जिसने कभी कुछ त्याग किया हो ! </div>
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कहते हैं - राजा दशरथ किसी युद्ध से विजेता होकर - जब कैकेयी के कमरे में घुसे तो उनके पैर कांपने लगे - यह वही कर सकता है - जिसे युद्ध और प्रेम दोनों की समझ हो ! दोनों में पौरुषता और वीरता दोनों की अनन्त शक्ती होनी चाहिए ! पृथ्वीराज चौहान वीर थे - प्रेम भी उसी कौशल और साहस से किया - जिस कौशल और साहस से युद्ध ! मैंने इतिहास नहीं पढ़ा है - पर कई पौरुष इर्द गिर्द भी नज़र आये - जिनसे आप सीखते हैं ! हर पुरुष की तमन्ना होती है - वो खुद को पूर्णता के तरफ ले जाए - और यह सफ़र आसान नहीं होता ! </div>
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युद्ध और प्रेम ...दोनों के अपने नियम होते हैं - और दोनों में जो हार जाता है - उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है ! रोमांस / इश्क प्रेम नहीं है ...महज एक कल्पना है ! फीलिंग्स नीड्स एक्शन - जब भावनाएं एक्शन डिमांड करती हैं - तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है - तब पता चलता है - ख्यालों को मन में पालना और उन्हें हकीकत में उतारना - कितना मुश्किल कार्य है ! </div>
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युद्ध के सामान ही प्रेम आपसे एक एक कर के सब कुछ माँगता चला जाता है - देनेवाला किसी भी हाल में लेनेवाले से उंचा और ऊपर होता है - युद्ध में हारने वाला आपसे माफी मांगता है - प्रेम में बहाने बनाता है - युद्ध में आप माफ़ कर सकते हैं - पर प्रेम में कभी माफी नहीं मिलती - युद्ध भी कभी कभी प्रेम में बदल जाता है और सबसे बड़ी मुश्किल तब होती जब आप जिससे प्रेम करे - उसी से युद्ध करना पड़े ! और उसी इंटेंसिटी से करें - जिस इंटेंसिटी से प्रेम किया था - फिर तो ....वह दुबारा भगोड़ा हो सकता है ...:)) </div>
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#DaalaanClassic</div>
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@RR</div>
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-79651905338857045742020-01-18T21:38:00.000+05:302020-01-18T21:38:13.249+05:30कहानी जूता और पॉलिश की <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDeZhX79FhylmnoDX-zlbI1UgE8K2MTWzobwmUETCAtQOlYbMThMPc0253A-BMTDEDQlE3Nl9xW-OkYfRv_2_yPROPRF-efgmeAGio5xi9l6-ervtd8FycMhTiWXI7XLspZ6O0t1xE8-A/s1600/FB_IMG_1579363462719.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1440" data-original-width="1072" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDeZhX79FhylmnoDX-zlbI1UgE8K2MTWzobwmUETCAtQOlYbMThMPc0253A-BMTDEDQlE3Nl9xW-OkYfRv_2_yPROPRF-efgmeAGio5xi9l6-ervtd8FycMhTiWXI7XLspZ6O0t1xE8-A/s320/FB_IMG_1579363462719.jpg" width="238" /></a></div>
कहानी जूता और पॉलिश की :<br />
इस जूते की एक कहानी है । जब ये नया था , फरवरी 2014 में नोएडा के एक विश्व विख्यात शादी को अटेंड करने के बाद , इंदिरापुरम आवास के एक लंबे पर्दे के पीछे खिड़की पर रख भूल गया । बाद में लगा कि जूता चोरी हो गया । उस वक़्त उस तथाकथित चोरी पर कुछ लिख भी दिया । खैर चार साल बाद , इंदिरापुरम आवास को किराया पर चढ़ाते वक़्त , सामान खाली करते वक़्त , यह जूता वापस नजर आया । चार साल तक यह उसी जगह चुप चाप बैठा रहा । फिर पटना आ गया । फिर इसका गोंद इसका सोल छोड़ दिया तो मैंने लोकल सोल लगवा पहनना शुरू किया । पिछले साल एक दिन भी नहीं पहना । इस साल फिर से शुरू । पिछले 18 साल से एक ही ब्रांड और एक ही डिजाईन ।<br />
" हम पुरुषों के लिए जूता और टोपी का बहुत महत्व होता है - अनजान महफिलों में हमारी पहचान यही दोनों तय करती है " । ऑफिस के पास दो मोची जी लोग बैठते हैं । आज वहां पॉलिश करवाने गया तो उन्होंने कहा कि - " अब वो सुगंधित चेरी पॉलिश नहीं आता , ब्रांड वही रह गया लेकिन कंपनी बदल गई , शायद इसलिए अब चेरी में वो खुशबू नहीं आती " । मै थोड़ा उदास हुआ । फिर उन्होंने कहा कि - कभी लिक्विड पॉलिश नहीं प्रयोग करें , चमड़ा बर्बाद कर देता है ...इत्यादि छोटे छोटे ज्ञान । मै स्टूल पर बैठ , उनसे गप्प लड़ाते रहा ।<br />
अभी मूड हुआ तो चेरी पॉलिश कंपनी का इतिहास पढ़ा । सन 1906 में डेन और चार्ल्स ने इस पॉलिश की शुरुआत लंदन में की । फिर अपनी मार्केटिंग स्किल की बदौलत इसे चेरी को घर घर पहुंचाया । सन 1911 में इस कंपनी ने लंदन के क्रिस्टल पैलेस को एक दिन के लिए किराया पर लिया और आम जनता के लिए खोला , इस शर्त के साथ की जो इस पोलिश के टीन के साथ आएगा , उसी को प्रवेश मिलेगी :))<br />
फिर कंपनी बनी , रेकिट और कोलमैन ने खरीदा , फिर बहुत कुछ हुआ और अंत में सन 1994 में एक दूसरी कंपनी इस ब्रांड की मालकिन बनी । शायद तभी से वो ख़ास चेरी पॉलिश वाली सुगंध गायब हुई ।<br />
पर , मुझे ढेर सारे जूते और उन्हें सुबह सुबह पॉलिश करना बेहद पसंद , बेहद :)) छुट्टियों के दिन खासकर - हल्ला गाड़ी की चिंता किए बगैर ;)<br />
कभी फुर्सत मिले तो अपने पसंदीदा ब्रांड के बारे में गूगल पर पढ़िए । मजा आएगा ।<br />
ब्रांड बहुत बड़ी चीज होती है - और एक बार बन जाए तो उसे सहजने में दम निकल जाता है , है कि नहीं ? हा हा हा ।<br />
~ रंजन / दालान / 16.01.20<br />
#DaalaanDiary - Day 16 / 2020<br />
@RR</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-50616059824263880382020-01-18T21:33:00.001+05:302020-01-18T21:33:59.633+05:30हर ज़िन्दगी एक कहानी है ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही - कहानी को सुन्दर बनाता है ! "अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है - और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता "<br />
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर 'अप - डाउन ' देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !<br />
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो - वो अपने जीवन के एक 'ब्लैक होल' से जरुर गुजरता है - अब वह 'ब्लैक होल' कितना बड़ा / लंबा है - यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !<br />
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे - पर खुद को शांती में देखना चाहता है - कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है - थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है - पर कई बार 'लत / आदत' हमें घेरे रहती हैं - आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है - इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता - यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं - हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है - एक उदहारण देता हूँ - ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे - बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था - जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे - ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है - आप कभी भी / किसी भी अवस्था में 'अकेले' नहीं हैं - इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है - या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !<br />
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की ...ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है - "भूलने की शक्ती" - हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं - जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे - उस काले पन्ने में 'कोई इंसान / कोई काल - समय / कोई जगह' - कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है - Out of sight -out of mind - और जब तक यह नहीं होगा - आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे - और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी :)<br />
हिम्मत कीजिए - कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !<br />
18.01.15<br />
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@RR</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-37348646857221022132020-01-18T21:31:00.001+05:302020-01-18T21:31:21.817+05:30लिखना मेरी आदत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkdv0XjkmwhbiTNqXA_2-T_rJhUsZ0gPx5qaff0jWpXeXE-CvZobjg28UxBe4AM1YVAZsQnJol-ihOQDINvzmGMfpEOQl7VY97BWaXSVUi5MKtsL90_C6Xpg76C6e9haSwcguSxmkfRqU/s1600/IMG_20200118_200515_881.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="280" data-original-width="430" height="208" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhkdv0XjkmwhbiTNqXA_2-T_rJhUsZ0gPx5qaff0jWpXeXE-CvZobjg28UxBe4AM1YVAZsQnJol-ihOQDINvzmGMfpEOQl7VY97BWaXSVUi5MKtsL90_C6Xpg76C6e9haSwcguSxmkfRqU/s320/IMG_20200118_200515_881.jpg" width="320" /></a></div>
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'पहले आदत थी ...कुछ न कुछ ..कहीं भी ..जो मन में आया लिख दिया ...पर अब यह आदत खून में घुस चुकी है ...अब ऐसा लगता है ...बिना लिखे नहीं रह सकता ...:( हर 'लिखनेवाले' की एक अपनी शैली होती है ...मेरी भी कुछ होगी ..जो शायद मुझे नहीं पता ...लेकिन एक ही शैली में लिखने का यह डर होता है ..कहीं आपको पढने वाले आपसे 'उब' न जाएँ ..खैर ..यह प्रकृती का नियम है ..जो करीब आता है ..उससे एक उब हो ही जाती है ...पर अगर आप सही में मेरे चाहने वाले हैं ..फिर थोडा वक़्त दीजिये ..जो ढंग कहियेगा ..उसी ढंग से लिख दूंगा ...'गुंथे हुए आटा' की तरह प्रवृती है ...जो रूप देना चाहेंगे ..उसी में ढल जाऊंगा .."इलेक्ट्रोनिक युग का आदमी हूँ ...बिना खुद का प्रचार किये हुए भी ..एक वर्चुअल स्टारडम भी महसूस किया हूँ "<br />
याद है... बचपन में ...'माँ / दादी / रसोईया' रोटी बना रहे होते थे ...और वहीँ पास में हम 'गुंथे हुए आटे' से 'चिड़िया'...फिर 'माँ / दादी' से जिद करना ...इसे भी आग में पका दो ..:))<br />
एक जिद तो कीजिए ...मेरी परिधी को ध्यान में रखते हुए ..:)) फुर्सत रहा तो अवश्य उस विषय पर लिखूंगा ...जहां तक मेरी समझ ...जहां तक मेरी पहुंच ...जहां तक मेरी परिधि ...:))<br />
जहां तक किताब छापने की बात है ...उससे क्या हो जाएगा ? अगर लोगों को पसंद नहीं आई तो ...मुफ्त में बांटना होगा ....सोशल मीडिया मुफ्त का प्लैटफॉर्म है तो लोग यहां कुछ भी पढ़ लेते है ...खरीद कर कौन पढ़ेगा ?? :( ' रिजेक्शन ' पसंद नहीं ...आत्मा को चोट पहुंचती है ...फिर क्यों उस लाईन में खड़ा रहना ... 😐<br />
फिलहाल मुझे वो आटे वाली चिड़िया याद आ रही है ...टुकुर टुकुर देखती वो चिड़िया ....कह रही ...मुझे भी आग में पका दोगे ? नहीं पकाया तो रात भर में जम जाओगी ....गुस्सा आया तो चिड़िया की जगह कुछ और बना दूंगा ...हो क्या तुम ? बस एक आटे कि लोई ... 😐<br />
चला मै दरवाजे पर लट्टू नचाने ....पुरुष जो हूं ...पल में आटे कि लोई वाली चिड़िया तो अगले पल माथे में लट्टू नचाने का भूत ...:))<br />
~ रंजन / दालान / 18.01.20<br />
#daalaandiary - Day 18 / 2020<br />
{ शुरुआत के कुछ वाक्य २०१४ के एक पोस्ट से }<br />
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@RR</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-71353765743249514982019-12-26T22:51:00.000+05:302019-12-26T23:57:04.062+05:30श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा / Smt Tarkeshwari Sinha <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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#TarkeshwariSinha #MustRead<br />
स्व तारकेश्वरी सिन्हा जी देश की आज़ादी के वक़्त 'लंदन स्कूल ओफ इकोनोमिक्स' में थी । महज़ 26 साल में सांसद बनी और बाद में नेहरु मंत्रिमंडल में उप वित्त मंत्री भी । पटना पूर्वी / बाढ़ से चार बार सांसद भी रही ।<br />
उनका यह लेख मैंने वर्षों पहले पढ़ा था । बेहतरीन वक़्ता थी और विचारक / लेखक भी । फ़ुर्सत हो तो यह लेख पढ़िए ।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWKatWIWmQlAnr7FmPhM3mTAxdGZQmpfob4xu79ZF4dkzi9SFf3DHg7u6HES0pbCSMZWoZw_epK6B3zpsicsDxP7xNMUgPaZ2tczzj88WsT1hsh8CyzcBwolVeLZ1pRyKzbkc4bPU_W-Q/s1600/FB_IMG_1577380426852.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="161" data-original-width="170" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWKatWIWmQlAnr7FmPhM3mTAxdGZQmpfob4xu79ZF4dkzi9SFf3DHg7u6HES0pbCSMZWoZw_epK6B3zpsicsDxP7xNMUgPaZ2tczzj88WsT1hsh8CyzcBwolVeLZ1pRyKzbkc4bPU_W-Q/s1600/FB_IMG_1577380426852.jpg" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisI5YtCzfmVXVQEXsveNGGIgEfO8cHfK9rkIzOtYUtplz3jT1bxxXISYxRIDy2TihtWoKwF1oNcYjxAztJfZRTWcpEgBicnTkyPPSI0MknxBLiu0uVQmtw3SQIDF7tHBBAVr_FGTjtRos/s1600/FB_IMG_1577380236053.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="951" data-original-width="570" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEisI5YtCzfmVXVQEXsveNGGIgEfO8cHfK9rkIzOtYUtplz3jT1bxxXISYxRIDy2TihtWoKwF1oNcYjxAztJfZRTWcpEgBicnTkyPPSI0MknxBLiu0uVQmtw3SQIDF7tHBBAVr_FGTjtRos/s320/FB_IMG_1577380236053.jpg" width="191" /></a></div>
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इस आपाधापी के जीवन में जब कोई पूछ बैठता है कि संसद में नहीं रहने के बाद आप क्या कर रही हैं, तो जी चाहता है उत्तर दूँ कि 'झख' मार रही हूँ। तारकेश्वरी सिन्हा का जीवन अकसर लोग संसद के घेरे में ही देखते रहे हैं। जैसे, मैं कोई कबूतर हूँ जो संसद में ही घर बनाकर 'गुटर गूँ' करती रही हूँ। पर कबूतर का भी तो अपना जीवन होता है और संसद की मुँडेरों पर घोसला बना कर वह प्यार करता है, बच्चों को जन्म देता है, दाना–चारा लाकर बच्चों का पेट भरता है, उड़ना सिखाता है, और फिर एक दिन उन्हें उड़ाकर स्वयं भी घोसले को छोड़ देता है और भविष्य में नया घोसला बनाने का उपक्रम भी शुरू कर देता है।<br />
<br />
फिर मैं क्यों संसद की सदस्य बनकर उड़ान भरने का हक नहीं रखती। संसद की सदस्य तो मैं थी, पर घर–परिवार को छोड़ा तो नहीं था, माँ बनकर माँ की जिम्मेदारी को भी निभाया था। पर यह प्रश्न तो कोई पूछता ही नहीं। जो मेरी जिंदगी में वर्षों तक छाये रहे, वो भी यही कहते हैं, "तारकेश्वरीजी, अब आप क्या कर रही हैं?" मैं यह तो कहने की जुर्रत कर नहीं कर सकती कि यह प्रश्न आप लोगों ने महात्मा गांधी से नहीं पूछा, जयप्रकाश नारायण से नहीं पूछा, अरूणा आसफ अली से नहीं पूछा कि संसद के तो आप लोग कभी सदस्य रहे नहीं, तो जीवन कैसे बिताया? फिर मुझ पर ही क्यों, आप लोग, अपने सितुए की धार तेज करते रहते हैं, जैसे मैं सिर्फ कद्दू का टुकड़ा हूँ।<br />
<br />
वैसे राजनीतिज्ञ की जिंदगी अपने और गैरों का फर्क निरंतर मिटाने की कोशिश करती रहती है। पर क्या अंतर सिर्फ संसद के दायरे में उलझा रहता है? या फिर राजनीतिक जीवन की आपाधापी में, 'संसद के बाहर' उसका आधार सामाजिक परिवेश में, आर्थिक परिवेश में बहुत बड़ा होकर अपनी ही गहराइयों की तरफ खसकाता है और महसूस कराता रहता है ––<br />
सफर है, रास्ता है, फासला है<br />
कदम मंजिल, कदम ही रहनुमा है<br />
और निरंतर इन्हीं क्षणों में जीना, हमारी जिंदगी का अनूठा क्षण होता है। पर जब कोई पूछ बैठता है कि वह कौन–सा क्षण है, तो ऐसा लगता है जैसे, मैं समुद्र के किनारे बसे एक शहर के मकान की बालकनी में खड़ी हूँ और अपने सामने देख रही हूँ अनगिनत लहरों के थपेड़ों को, जो बीच से उमड़कर किनारे पर आते हैं और हलके से टकराकर न जाने कहाँ खो जाते हैं। न जाने कितनी बार उनकी गिनती की है, पर हिसाब नहीं रख पायी हूँ अब तक।<br />
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हाँ, देखा है कुछ हरे–मुरझाये पत्ते, कुछ कागज के टुकड़े, कुछ लकड़ियों के टूटे–फूटे हिस्से, कुछ बिखरे फूल और उन्हीं के बीच, जिंदगी का अहसास देती और इधर–उधर दौड़ती–सरसराती मछलियाँ। अगर मैं कहूँ कि मेरे जीवन के अनूठे अनुभवों का यही सिलसिला है –– तो क्या किसी को आश्चर्य होगा? उसी तरह की तो मेरी जिंदगी की झलकियाँ हैं –– जिनका संसदीय जीवन से कोई रिश्ता नहीं, पर मुझसे बहुत गहरा है।<br />
<br />
अहसास मछलियों का<br />
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संसद के भवन में रहते–रहते, एक दिन महसूस हुआ कि मेरी जिंदगी भी समुद्र के तट की तरह है –– जहाँ मैं खुद एक बालकनी पर खड़ी हूँ। समुद्र की लहरों को रोज गिनती हूँ पर पकड़ नहीं पाती। और घर में रहनेवाले मेरे बच्चे उन मछलियों की तरह हो गये हैं जैसे, समुद्र में दौड़ती–सरसराती मछलियाँ। जिस दिन पहली बार यह महसूस हुआ, वही शायद मेरे जीवन का सबसे अनूठा संस्मरण है।<br />
<br />
मेरे बड़े लड़के का इम्तहान था। उसने एक दिन मेरे कमरे में आकर कहा, "अम्मा! आप जरा मुझे नागरिक शास्त्र पढ़ा दें। मैं उसी दिन दिल्ली से बाहर जानेवाली थी। मैंने कहा कि तीन–चार दिन में लौटकर आती हूँ तो तुम्हें पढ़ा दूँगी। मैं जिस दिन सुबह लौटकर आयी, वह ऊपर के कमरे से दौड़ता हुआ किताब लेकर नीचे आया, तब तक कुछ लोग आ गये और मैं उनमें उलझ गयी। ऐसा उस दिन तीन बार हुआ। फिर वह मुझसे पढ़ने कभी नहीं आया। उस दिन से वह बहुत कुछ बदल गया। जब भी घर आता, सीधे ऊपर चला जाता अपने कमरे में, वैसे भी ज्यादातर वह बाहर ही रहता। एक बार मोटर साइकिल से गिरने से उसे बहुत सख्त चोट आयी थी। उस दिन भी उसने मुझसे कुछ नहीं कहा और सीधे ऊपर चला गया। जब मुझे मालूम हुआ कि उसे गहरी चोट लगी है, तो मैं भागकर ऊपर गयी। मुझे देखकर, लगा जैसे उसकी आँखें एकाएक अपरिचित–सी हो गयीं हैं।<br />
<br />
उस दिन मैं बहुत ही डर गयी थी। इसलिए कि माँ, बेटे से बहुत दूर चली गयी थी। उस घटना को बरसों बीत गये हैं। अब वह लड़का काम करने लगा है दिल्ली से बाहर। दूरी में –– मैंने उसे शायद, फिर पा लिया है। उसकी चिठ्ठियों में वही प्यार और अपनापन झलकता है। पर अभी हाल में ही मैं उसकी पुरानी फाइलों को साफ कर रही थी। उसमें उसकी लिखी एक डायरी मिली। डायरी में लिखा था – 'जब तक जीवित रहूँगा, अपनी माँ को कभी माफ नहीं कर सकूँगा। मेरी माँ संसद और राजनीति के समुद्र में खो गयी है। मैं अपने घर में भी बहुत अकेला महसूस करता हूँ, आखिर क्यों? माँ के पास सबके लिए समय है, संवेदना है, तड़प है –– पर इतनी फुरसत कहाँ कि मेरे और उनके दरम्यान उठती दीवार को वह तोड़ सकें। मैं भी बहुत चुप होता जा रहा हूँ। पर फिर भी अपने बारे में एक कविता लिख रहा हूँ।<br />
<br />
अकेलेपन से ओतप्रोत उसकी वह कविता मेरे जीवन में, सबसे अनोखा अहसास बन गयी है और इसलिए जब–तब मुझे महसूस होता है कि मैं बालकनी में खड़ी हूँ, समुद्र के किनारे और गिन रही हूँ जिंदगी की लहरों में खोये हुए अहसासों को, मुरझाए हुए रिश्तों को और साथ ही कभी–कभी तैरती हुई मछलियों को, जिन्हें पकड़ पाना तो संभव नहीं, पर महसूस करना संभव है, इस अहसास के साथ, जैसे वो कह रही हों ––<br />
तुम हो जहाँ, बेशक वहाँ ऊँचाई है<br />
मगर इस सागर की कोख में<br />
गहरी खाई है ....<br />
~ तारकेश्वरी सिन्हा<br />
<br />
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@ Ranjan Rituraj </div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-7683307213651628912019-04-05T19:08:00.001+05:302019-04-05T19:08:56.858+05:30चिट्टी मिट्टी नरेन्द्र झा फाऊंडेशन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><a class="_58cn" data-ft="{"type":104,"tn":"*N"}" href="https://www.facebook.com/hashtag/chittimittinarendrajhafoundation?source=feed_text&epa=HASHTAG" style="background-color: white; color: #365899; cursor: pointer; text-decoration-line: none;"><span class="_5afx" style="direction: ltr; unicode-bidi: isolate;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl _5afz" style="unicode-bidi: isolate;">#</span><span class="_58cm">ChittiMittiNarendraJhaFoundation</span></span></a><span style="background-color: white; color: #1d2129;"> </span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
जीवन इस काया के पहले भी है और जीवन इस काया के बाद भी है ! पिछले साल 2018 के 14 मार्च की सुबह प्रसिद्द अभिनेता नरेन्द्र झा अपनी काया छोड़ दिए ! अब उनकी इस नयी काया को गढ़ रही हैं उनकी पत्नी , परिवार और मित्र ! </div>
<div style="text-align: justify;">
उसी क्रम में <b>'चिट्टी मिट्टी नरेन्द्र झा फाऊंडेशन'</b> का जन्म होने जा रहा है ! इस रविवार 7 अप्रैल को रांची के हरमू मैदान में आयोजित झारखण्ड मिथिला मंच के कार्यक्रम में छः सम्मान होंगे ! </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
* भद्रकाली नाट्य परिषद् , कोइलख , मधुबनी </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
* श्रीमती गौरी मिश्रा , सुप्रसिद्ध समाज सेविका और दरभंगा के विख्यात डॉ भवनाथ मिश्र की पत्नी ! </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
* श्री सुरेन्द्र यादव , प्रसिद्द मैथिलि गीतकार , संगीतकार और गायक </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
* श्री अभिनव आनंद , महज १७ साल में ही कई किताबों से प्रसिद्द कथाकार </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
* श्री मुकुंद नायक , झारखण्ड में आदिवासी कल्याण में एक सुप्रसिद्ध नाम </div>
<div style="text-align: justify;">
* झारखण्ड मिथिला मंच , रांची </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
इन सभी को <b>'मिथिला रत्न नरेद्र नारायण झा सम्मान'</b> से सुशोभित किया जाएगा जिसके अंतर्गत रु 25,०००/- , शाल , सम्मान पत्र और एक मोमेंटो ! </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
नरेन्द्र नारायण झा मिथिला के कोइलख ग्राम , मधुबनी के रहने वाले थे ! पटना विश्वविद्यालय , जेएनयू के बाद उन्होंने रंगमंच के तरफ अपना रुख रखा जो उनके अंतिम दिनों तक कायम रहा ! बेहतरीन मॉडल , फिर करीब २० से ऊपर टेलीविजन सीरियल और इतने ही बड़े छोटे सिनेमा ! वो खुद एक बेहतरीन गायक और कई वाद्ययंत्रो पर माहिर थे ! अध्यात्मिक थे - एकांत के क्षणों में मंदिर के चबूतरे पर बैठना उन्हें पसंद था ! एक अदभुत बात थी - मीडिया के ही सबसे बड़े रूप सिनेमा से जुड़े थे लेकिन अन्य रूपों से दुरी रखते थे ! मुझसे पहली ही मुलाकात में - मैंने यही बोला था - काश मेरे पास पैसा होता और मै आपको लेकर 'द ग्रेट गेट्सबाई' सिनेमा का हिंदी रूपांतर बनाता और फिर हमदोनो जोर जोर से हंसने लगे थे ! ग्रीक गॉड की विशाल छवि लेकर पैदा हुए थे और उसी छवि के साथ अपनी काया भी छोड़े ! जेएनयू में उनके सहपाठी टाईम्स ऑफ़ इंडिया में श्रधांजलि देते हुए लिखा था की - नरेन्द्र जी का आवरण ऐसा था की आप बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकते थे ! </div>
<div style="text-align: justify;">
मैंने जो कुछ भी उनके बारे में जाना , वो उनकी पत्नी पंकजा के माध्यम से ही जाना और कुछ उनसे कुछ उनसे हुई मेरी मुलाकतों में ! इस फाऊंडेशन की सूत्रधार और कर्ता उनकी बहादुर पत्नी पंकजा है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
पंकजा का परिचय जरुरी है - सर्वप्रथम वो दालान ब्लॉग की फैन नंबर एक है !पंकजा की एक बात मुझे अक्सर याद आती है ! नरेन्द्र जी और पंकजा मुंबई से दूर एक मकान बना रहे थे - सिविल डिजाईन में चौखट की उंचाई थोड़ी कम थी - पंकजा ने पलभर में निर्णय लेकर उस अर्धनिर्मित मकान को फिर से बनवाया क्योंकि नरेंद्र झा की लम्बाई ज्यादा थी , पंकजा का प्रेम नरेन्द्र जी के लिए गीत और कविता में नहीं बल्कि एक्शन में था और शायद यही प्रेम की सच्ची अनुभूति होती है ! पंकजा साहसी है , भयमुक्त है ! मेरे पिता जी इन्हें बहादुर कहते है ! दिल्ली विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट होते हुए भी वर्षों बाद मुझे पता चला की वो एक गोल्ड मेडलिस्ट है तब जब हमदोनो के परिवार पिछले चालीस साल से ज्यादा से एक दुसरे को जानते हैं ! पंकजा असीम ऊर्जा की वाहक है - नरेन्द्र जी की अनुपस्थिति में पिछले एक सवा साल से जिस भावनात्मक उतार चढ़ाव से वो गुजर रही हैं - वहां से खुद को सकरात्मक रखना आसान ही नहीं असंभव था और फिर इस फाऊंडेशन का जन्म ! कहते हैं - पंकजा से विवाह करने के लिए नरेन्द्र करीब छः साल इंतज़ार ही नहीं किये बल्कि पंकजा की गरिमा को बरक़रार रखने के लिए पंकजा के माता पिता से एक अनुरोध के साथ पंकजा का हाथ माँगा!यह अंदाज़ मैंने खुद दो बार देखा - जब पटना आगमन पर पंकजा की उपस्थिति में नरेन्द्र जी के हाव भाव , बातों और आँखों में पंकजा के लिए असीम आदर देखा ! तब जब हैदर , रईस , मोहनजोदारो , काबिल इत्यादि फिल्मों के साथ नरेन्द्र जी काफी बड़े नाम हो चुके थे ! हैदर में पूरी फिल्म ही उनके इर्द गिर्द मन में गुजंती है तो रईस में उनकी भूमिका को युवा वर्ग इन्स्टाग्राम पर चंद सेकेण्ड में कई हज़ार लाईक आये - ये कौन तो ये कौन ! लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था ! </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
पंकजा भारतीय राजस्व सेवा की बेहतरीन अधिकारी रह चुकी है ! वो कर्मठ है ! पंद्रह साल पहले जब वो मुंबई इंटरनेश्नल एअरपोर्ट पर पदस्थापित थी और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने उन्हें अपने पहले पन्ने पर 'किरण बेदी' की संज्ञा दी और पंकजा कभी इसकी चर्चा भी नहीं करती है ! बतौर फिल्म सेंसर बोर्ड सीइओ पंकजा ने कई ऐसे निर्णय लिए जो ना सिर्फ वजनदार थे बल्कि उनके द्वारा लिए गए निर्णय इतिहास भी बनाए और उनके शुरूआती दौर में ही दिल्ली के टाईम्स ऑफ़ इण्डिया ने उनपर एक लेख छापा - तब मैंने जाना की पंकजा अब सेंसर बोर्ड की सीइओ बन चुकी है - और तब से लेकर आज तक पंकजा दालान की फैन नंबर एक है , 9 साल से लगातार ! पंकजा की सबसे बड़ी खासियत है - कमिटमेंट ! प्राण जाए पर वचन ना जाये ! कमिटमेंट वाला उनका यह व्यक्तित्व जबरदस्त है ! जो उन्हें जानते है वो मेरी बातों से अवश्य ही सहमत होंगे :) </blockquote>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
इसी वर्ष फ़रवरी 2019 को पंकजा ने स्वेच्छा से वीआरएस लिया तब जब वो बिहार झारखंड की कम्निश्नर ( जीएसटी ) थी ! यह निर्णय भी अपने आप में बहुत साहसी था - और उस संध्या उनके सामने बैठा था - उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं था और उस वक़्त भी उनका मन इस फाऊंडेशन के जन्म को लेकर चिंतित था ! </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
<b>पंकजा कर्मवीर है लेकिन उनके व्यक्तित्व को 360 डिग्री के साथ जानने के बाद - मुझे हमेशा यही लगता है - उनका साहस , उनकी ऊर्जा किसी कर्म से नहीं प्राप्त की जा सकती - यह दैवीय संयोग और आशीर्वाद है ! </b></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन आप कितने भी मजबूत क्यों न हो , ज़िन्दगी इम्तहान जरुर लेती है और इन्ही इम्तहानों में पता चलता है की आप सचमुच में कितने मजबूत है ! मै खुद , परिवार और दालान के पाठकों के तरफ से यही कामना करूंगा की पंकजा मजबूत बनी रहें और यह फाऊंडेशन अपने शिखर के तरफ बढे :)) </div>
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</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
<a href="https://www.facebook.com/NarendraJhaFoundation/">फेसबुक पर चिट्टी मिट्टी नरेन्द्र झा फाऊंडेशन का लिंक :</a></div>
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</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
शुभकामनाओं के साथ - </div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"><div style="text-align: justify;">
~ दालान </div>
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<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">@RR</span></div>
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-22134103262965735862019-03-05T21:07:00.001+05:302019-05-13T10:59:03.476+05:30स्त्री - पुरुष / स्पर्श <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
स्त्री और पुरुष जब एक दुसरे से नजदीक आते हैं ! स्पर्श की अनुभूति या स्पर्श का होना ही प्रेम का परिचायक है ! स्त्री 'मन के स्पर्श' को प्रेम कहती है और पुरुष 'तन के स्पर्श' को प्रेम की मंजिल समझता है ! यह स्पर्श कैसा होगा - यह उन्दोनो के प्रेम की इन्तेंसिटी पर निर्भर करेगा ! लेकिन ऐसा नहीं की पुरुष सिर्फ तन के स्पर्श को ही प्रेम समझते हैं या स्त्री सिर्फ मन के स्पर्श को ! दोनों को दोनों तरह का स्पर्श चाहिए लेकिन प्रमुखता अलग अलग है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
एक उदाहरण देना चाहूंगा ! हमारे दौर में भी क्रश होता था ! स्कूल कॉलेज इत्यादि में ! यहाँ लड़की लडके की किसी अदा पर रिझती थी - शायद वही मन का स्पर्श होता है ! वहीँ लडके क्लास नोट्स आदान प्रदान के वक़्त उंगलिओं के स्पर्श को ही प्रेम की मंजिल समझ लेते थे से लेकर शादी की बात तक ! जैसा की मैंने ऊपर लिखा है - प्रेम के विस्तार तक - स्पर्श की अनुभूति या कल्पना ! </div>
<div style="text-align: justify;">
स्त्री के मन को समझना कठिन है ! यह तरल है ! बहाव में तेज़ी है ! इस मन का कैसे और कब स्पर्श होगा - कहना मुश्किल है ! उम्र के हिसाब से इसका अंदाज़ लगाने की कोशिश की गयी है - एक पैटर्न को देखते हुए ! फिर भी एक पुरुष के लिए यह समझना कठिन है ! यौवन के शुरुआत में गली मोहल्ला के लोफर का बाईक चलाना से लेकर यौवन के अंत में किसी पुरुष की कुलीनता ! लेकिन यह एक महज एक स्टडी है - सच्चाई नहीं ! </div>
<div style="text-align: justify;">
हमारे इलाके में - एक स्त्री को अपने जेठ से किसी भी तरह की दैहिक छुअन की मनाही है ! वो जब अपने जेठ के पैर छूकर प्रणाम की जगह - उनके पैरों के पास जमीन को छुएगी ! यह सामाजिक परम्परा इंसान की मन को देख कर बनाया गया होगा ! यह मान कर चला गया होगा की स्त्री अपने से ज्यादा उमरदराज जेठ से प्रभावित हो चुकी होगी और जेठ अपने से कम उम्र की भाभी / भाभो के तरफ आकर्षित हो चुका होगा ! अब यह बात यहीं ख़त्म हो जाये सो इसके लिए किसी भी तरह स्पर्श की सख्त मनाही है ! स्त्री स्वभाव से अपने से ज्यादा उम्र के पुरुष के प्रति आकर्षित हो चुकी होती है ! वो उन्हें विशाल मान कर चलती है - तब जब उनकी उपस्थिति मृदुल और सुरक्षात्मक हो ! पुरुष अपने से कम उम्र की स्त्री के प्रति आकर्षित हो चुके होते है , तब जब उनकी उपस्थिति एक झरोखों में हो ! स्त्री को अपना जेठ भले वो घास काटने वाला क्यों न हो - विशाल लगेगा ही लगेगा ! तब जब कोई अन्य अहंकार की टकराव न हुई हो ! शायद यही वजह रही होगी की हमारे यहाँ शादी में एक रस्म - आशीर्वादी / मझ्क्का ! जहाँ वर अपनी वधु के सर पर के आंचल को पीछे की तरफ खींचेगा और जेठ उस आँचल को आगे की तरफ लाएगा ! यह उस मनोभाव को दर्शाता है की - पुरुष समय के साथ नजदीक आने पर अपनी स्त्री / पत्नी के इज्जत के साथ खिलवाड़ कर सकता है और तब उस जेठ का दायित्व होगा की वह अपनी भाभी / भाभो के इज्जत को बरक़रार रखे ! यह पूरा खेल - विशालता का है ! और स्त्री विशालता ही तलाशती है तभी किसी भी तरह के स्पर्श की सख्त मनाही है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
स्त्री के मन को कुछ भी स्पर्श कर सकता है , कुछ भी ! झूट या सही - मुझे पता चला की देश की एक मशहूर परिवार की लड़की एक अत्यंत साधारण लडके के तरफ इसलिए आकर्षित हुई की वो लड़का डांस फ्लोर पर बहुत बढ़िया डांस करता था ! हा हा हा ! यह घटना हम जैसे तीसरे इंसान के लिए एक घोर आश्चर्य की बात थी ! मै तो इस सुचना के बाद कई दिनों तक सोचता रहा की कोई इतने बड़े खानदान की लड़की किसी पुरुष के डांस से कैसे प्रभावित होकर अपना जीवन सौंप सकती है ! लेकिन ऐसे कई उदहारण है ! किसी पुरुष की कौन सी बात किस स्त्री के मन को स्पर्श कर जाए - कहना मुश्किल है ! फिल्म पाकीज़ा में मीना कुमारी की खुबसूरत पैरों की तारीफ करना ही उनके मन को स्पर्श कहा जा सकता है ! उस तारीफ में कितनी इंटेंसिटी रही होगी की पूरी फिल्म ही उस घटना के इर्द गिर्द घुमती है ! ऐसी घटनाएं हम पुरुषों को हतप्रभ कर देती हैं लेकिन किसी अन्य महिला को नहीं ! शायद वजह होगी की एक महिला दुसरे महिला का मन समझ सकती है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
ठीक उसी तरह मेरे अत्यंत प्रिय कलाकार शाईनी आहूजा के ऊपर नौकरानी ने आरोप लगाए तो मेरी पत्नी को आश्चर्य हुआ - मुझे नहीं ! हा हा हा ! पुरुष का मन शारीरिक स्पर्श के लिए कब जाग जाए - कहना कठिन है ! सिवाय खुद के भाई बहन के - कहीं भी ! उसी तरह स्त्री का मन कब और कौन स्पर्श कर जाए कहना कठिन है ! </div>
<blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
एक यात्रा के दौरान मै एक बकरी पालन के बिजनसमैन से वार्तालाप किया और उन्होंने कहा की जब तक बकरी इजाजत नहीं दे - बकरे दैहिक मिलन को पास नहीं जाते हैं ! यह प्रक्रिया / स्वभाव कई जानवरों में पायी जाती है ! इंसान को छोड़ ! शायद यहीं से सभी समाज में 'स्वयंवर' की प्रथा चालु हुई होगी ! प्रकृति यह इजाजत सिर्फ और सिर्फ स्त्री जाति को देती है की वो किसको अपने पास आने की इजाजत देगी और इंसानों का भी सभ्य समाज हमेशा से इसका आदर किया है ! असभ्य समाज पुरुष के अहंकार से चलता है और सभ्य समाज स्त्री के मन से ! और यहाँ बकरी जाति से सीखना होगा की - जो पसंद है उसे कैसे पास बुलाएं :) </blockquote>
<div style="text-align: justify;">
तो यह मान कर चलना चाहिए की पुरुष शारीरिक मिलन को बेचैन होते हैं और महिलायें मन के मिलन को ! लेकिन ऐसा भी नहीं है ! बस अनुपात का अंतर है ! <b>शायद स्त्री अपने शरीर के मिलन के साथ पुरुष के मन में जाना चाहती है और पुरुष मन के रास्ते स्त्री के तन तक </b>! यह भी एक कारण रहा होगा की समाज में पुरुष को अपने मन को खोलने की मनाही है और स्त्री को तन की ! स्त्री अपने मन को कभी भी और कहीं भी खोल सकती है ! पुरुष भी ! नजदीक आने पर स्त्री का मन खुलना ही खुलना है और पुरुष तो अपना शर्ट का दो बटन खोल पहले से ही बैठे होते हैं ! हा हा हा ! पुरुष भूल जाते हैं - मन को मन ही स्पर्श करता है ! और पुरुष सबसे अंत में अपनी आत्मा खोलते हैं और स्त्री सबसे अंत में अपना शरीर ! <b>जिस पुरुष ने संबंधों में अपनी आत्मा पहले ही खोल दी - वो स्त्री के सामने अपनी महता खो भी सकता है और कुछ ऐसा ही नियम स्त्री पर लागु होता है की वो सबसे अंत में अपना शरीर खोले !</b> लेकिन यह पुर्णतः सच भी नहीं है - यहाँ परिपक्वता का खेल है ! एक परिपक्व दिमाग सामने वाले के शरीर की इज्जत देगा और मन की भी ! लेकिन दोनों तरफ इस स्पर्श के पहले - पूरी तरह ठोक बजा लेते हैं ! यहीं व्यक्तित्व है ! खुलना तो है ही है - राजा हो रंक ! क्योंकि खुलना प्रकृति है ! और आप हम सभी प्रकृति के नियम से बंधे है ! भूख सबको लगती है - राजा हो या रंक ! यह समाज है जो हमें गलत सिखाता है की राजा नहीं रोयेगा या उसे सिर्फ रानी से प्रेम होगी इत्यादि इत्यादि ! यह गलत है ! सही यही है की प्रकृति या ईश्वर की नज़र में सब बराबर है ! भावनाओं का अनुपात इंसान इंसान पर अलग अलग निर्भर करेगा ! या ज़िन्दगी का अनुभव या प्राकृतिक परिपक्वता उन भावनाओं को बढ़ा देंगी या घटा देंगी ! </div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन वो सारे प्रेम अधूरे हैं - जहाँ अभी तक स्पर्श नहीं हुआ हो - या शायद वही प्रेम ज़िंदा हैं :)<br />
<span style="font-family: "georgia" , "times new roman" , serif;"><b>@RR / 5 March 2019 / Patna </b></span><br />
<span style="font-family: "georgia" , "times new roman" , serif;"><b><a href="https://daalaan.blogspot.com/2019/03/blog-post.html">पिछली कड़ी - स्त्री पुरुष / अर्धनारीश्वर को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें ! </a></b></span></div>
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-41566995138615081792019-03-04T22:16:00.003+05:302019-03-05T20:07:05.336+05:30स्त्री - पुरुष / अर्धनारीश्वर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
आज महाशिवरात्रि है ! स्त्री पुरुष के बीच के संबंधों को समझने का एक अध्यात्मिक कोण ! किसी भी चीज को समझने का अलग अलग कोण है ! अब आप अपने सुविधानुसार या किसी कारणवश किसी भी चीज को अपने कोण से देखते हैं और आपको प्रकृति भी आपको अपने कोण से देखने की छुट भी देती है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
सर्वप्रथम यह मान के चलना चाहिए की यह 'महाशिवरात्रि' नहीं बल्कि 'महाशिवशक्ति रात्री' है ! शिव और शक्ति दोनों के मिलन की रात्री है ! अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट ! एक ऐसी संरचना या अनुभूति जहाँ शिव और शक्ति दोनों की बराबर उपस्थिति है ! जैसे 'शिव लिंग की पूजा' - वो शिव लिंग नहीं बल्कि 'शिव और शक्ति' दोनों का लिंग है ! वो मिलन के मुद्रा में है - वह मिलन जो इस जगत का आधार है , वो मिलन जो इंसान के परम सुख का आधार है ! यही मिलन अर्धनारीश्वर है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
संभवतः समाज पुरुष प्रधान रहा होगा तो इस शिव और शक्ति के मिलन वाले दिन को महाशिवरात्री कह दिया गया या शिव शक्ति के लिंगों के मिलन को सिर्फ शिव लिंग कह दिया गया और यह परंपरा चलती आई ! हालांकि इस विषय पर मैंने कुछ साल पहले हलके इशारा में इसी शिव रात्री के दिन लिखा था - यह कह कर की यह 'शिव शक्ति रात्रि' है ! आज का संयोग देखिये - मैंने इसी नाम से एक ज्वेलरी का दूकान भी देखा !<br />
जब हम शिव के नाम के साथ शक्ति का भी प्रयोग करते हैं संभवतः हम शक्ति को भी उचित स्थान देते हैं , हालांकि धर्म के जानकार यह कह सकते हैं की शिव में शक्ति का मिलन है तो शिव नाम से ही शक्ति का भी ध्यान होता है ! यह तर्क भी उचित है लेकिन मै विशुद्ध शक्ति का उपासक हूँ तो मेरे व्यक्तिगत मत से शिव के साथ साथ शक्ति शब्द का भी प्रयोग होना चाहिए ! या फिर लोग करते आये हैं ! लेकिन हमारी कल्पना में शिव पूर्ण है - जहाँ शक्ति समाहित है !<br />
स्त्री और पुरुष के बीच तीन तरह के सम्बन्ध बनते है - कारण जो भी हो ! <b>शारीरिक , भावनात्मक और अध्यात्मिक !</b> उम्र के अलग अलग पड़ाव पर अलग अलग ढंग से बन सकते हैं ! माँ और पुत्र में यह अध्यात्मिक होता है - जन्म के साथ ही शायद हम पुरुष अपनी माँ के साथ एक अध्यात्मिक भाव बनाते हैं ! फिर उम्र के हिसाब से अन्य स्त्रीओं के साथ शारीरिक आकर्षण और साथ में भावनात्मक भी ! कभी भावनात्मक तो कभी शारीरिक आकर्षण - उस दौर के हिसाब के ! लेकिन माँ के साथ बचपन में अध्यात्मिक सम्बन्ध के बाद - यौवन की नज़र की पहली फुहार भावनात्मक होती है - वो कहीं से शारीरिक नहीं होती है ! मै बात यौवन की पहली फुहार की कर रहा हूँ ! फिर उम्र के साथ शारीरिक आकर्षण ! प्रकृति है ! आप प्रकृति से नहीं बच सकते ! जैसे आपके घर का कुत्ता विशुद्ध शाकाहारी ढंग से दूध रोटी खिला कर पाला पोशा गया हो लेकिन हड्डी देखते ही वो उसकी सुगंध के तरफ आकर्षित होगा ही होगा ! यह प्रकृति है ! बकरी को हड्डी नहीं लुभाएगा क्योंकि बकरी को प्रकृति ने शाकाहारी बना के भेजा है !<br />
लेकिन एक लोचा है - उम्र के एक ख़ास पडाव या दौर में क्षणिक ही सही लेकिन शारीरिक और भावनात्मक सम्बन्ध - दोनों साथ साथ होते है ! यह जोड़े जोड़े पर निर्भर कर सकता है - किसमे किस आकर्षण का अनुपात ज्यादा है ! कहीं शारीरिक ज्यादा तो कहीं भावनात्मक ज्यादा ! </div>
<div style="text-align: justify;">
लेकिन 'शिव शक्ति' का मिलन इन तीनो भावों को दर्शाता है ! तीसरा भाव 'अध्यात्मिक' बहुत कठिन है ! इसे बहुत वक़्त चाहिए ! बहुत ! कई संबंधों में यह भाव तब आता है - जब बाकी के दोनों भाव ख़त्म हो चुके हों ! आप आस पास के संबंधों को गौर से देखिये - कई पति पत्नी में यह अध्यात्मिक भाव आपको नज़र आएगा - जब पत्नी माँ के रूप में बन जाती है ! काफी उमरदराज जोड़ों में यह नज़र आएगा - जब उन्हें जीवन का अनुभव सच के करीब लाएगा ! लेकिन कम उम्र में - इन तीनो भावों के साथ कोई रिश्ता बनाना अत्यंत कठिन है ! सारे योग फेल हो जायेंगे क्योंकि मनुष्य की प्रकृति इसकी इजाजत नहीं देती ! दो भाव एक साथ आयेंगे तो तीसरा नदारत ! और सिर्फ एक भाव के साथ सम्बन्ध को टूटने का ख़तरा क्योंकि इन सारे रहस्यों को एक वातावरण भी कंट्रोल करता है - जिसे हम संसार कहते हैं और संसार आपके हिसाब से नहीं चलता !<br />
शायद यही वजह है हम तीसरे भाव के लिए ईश्वर की तरफ धकेल दिए जाते हैं ! क्योंकि एक साथ इन तीनो भाव के होने की इजाजत यह संसार नहीं देता ! शायद इसलिए मैंने अपने एक पुराने पोस्ट में ईश्वर , प्रकृति के साथ साथ संसार को भी एक बराबर की जगह दी है ! हालांकि मेरा झुकाव प्रकृति के तरफ होता है क्योंकि मै मानव स्वभाव को समझने की कोशिश करता हूँ !<br />
एक बात और क्लियर है की जो एक ख़ास उम्र के दौर में है और अद्यात्मिक है - वह अपनी आत्मा या अपने से ऊँची आत्मा के साथ संपर्क बनाना चाहता है या बन चुका है - उसके अंदर भी बाकी के भाव होंगे ! यहाँ समाज या तीसरा व्यक्ति गलत कैलकुलेट करता है और कई बार अध्यात्मिक लोग कई लांक्षण के शिकार होते हैं क्योंकि वो बाकी के दोनों भाव को रोक नहीं पाते ! यहाँ उम्र भी कारक है ! लेकिन समाज कहता है की जब आप अध्यात्मिक हो गए यानी अपने से ऊपर किसी आत्मा के संपर्क में आ गए फिर आपके दोनों बाकी भाव ख़त्म हो जाने चाहिए ! शायद यह योग से संभव है ! लेकिन योग की भी काल / समय के साथ एक सीमा है ! लेकिन यह योग बहुत हद तक मदद करता है लेकिन किसी भाव को रोकना - प्रकृति के नियम के खिलाफ है ! जैसे किसी नदी की दिशा को मोड़ना ! फिर वो बाढ़ लाएगी ! शायद यही वजह है की इंसान अध्यात्म में ईश्वर के किसी रूप से खुद को कनेक्ट करना चाहता है - इंसान का कोई भरोसा नहीं और इंसान के बीच सिर्फ और सिर्फ भावनात्मक या शारीरिक आकर्षण ही बन के रह पाता है ! भावनात्मक भाव के चरम बिंदु से अध्यात्म की शुरूआत होती है और शारीरिक भाव के चरम बिंदु से भावनात्मक ! शायद यही वजह है की कई बार सेक्स वर्कर अपने चरम बिंदु से बचते / बचती है क्योंकि यहाँ से उनको भावनात्मक भाव के आ जाने का भय होता है ! यह कतई जरुरी नहीं की भावनात्मक भाव के लिए स्पर्श जरुरी है लेकिन स्पर्श के माध्यम से आया भावनात्मक लगाव थोड़ा टिकाऊ होता है !<br />
स्त्रीयां यहाँ अलग ढंग से सोचती है - कहीं एक मशहूर लेखिका ने लिखा था - 'मन से देह का रास्ता जाता है या देह से मन का - कहना कठिन है' ! स्त्री के लिए उसके देह का रास्ता मन से होकर जाता है और पुरुष के लिए उसके मन का रास्ता देह से होकर जाता है !<br />
शायद यही वजह है की - कई दफा कोई स्त्री अपने पुरुष के अन्य दैहिक सम्बन्ध को तो स्वीकार कर लेती है लेकिन अपने पुरुष के भावनात्मक समबन्ध पर चिढ जाती है , वहीँ दूसरी और पुरुष अपने स्त्री के अन्य भावनात्मक सम्बन्ध को स्वीकार तो कर लेते हैं लेकिन शारीरिक कतई नहीं ! हालांकि भय दोनों तरफ होता है - कहीं यह सम्बन्ध भावनात्मक से शारीरिक न हो जाए या फिर शारीरिक से भावनात्मक न हो जाए ! लेकिन तीनो भावों की जरुरत स्त्री और पुरुष दोनों को होती है ! देर सबेर या कम ज्यादा ! </div>
<div style="text-align: justify;">
खैर , बात अर्धनारीश्वर से शुरू हुई थी ! जब शक्ति शिव में समाहित होती है - मूलतः वो प्रेरणा होती है ! कई साधारण से साधारण पुरुष भी किसी स्त्री के संपर्क मात्रा से अपने सांसारिक जीवन में कई सीढ़ी ऊपर चढ़ जाते हैं - पताका लहराते हैं ! अब यह उस पुरुष पर निर्भर करता है की वह कैसी प्रेरणा स्वीकार करता है ! यह उसकी अपनी वर्तमान परिस्थिति या ग्रहों की दिशा तय करेगी ! हर पुरुष एक शिव है और हर स्त्री एक शक्ति है ! कब किस शक्ति को किस शिव में समाहित होना है - यह ग्रहों के भाव तय करेंगे ! लेकिन शक्ति के समाहित होने के साथ कोई इंसान शिव न बने - यह असंभव है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट मूलतः 'शिव शक्ति' के मिलन के उस रूप को है ! अब आप इसे भावनात्मक भाव से देखिये या शारीरिक या अध्यात्मिक - यह सोच आपकी वर्तमान मनोवस्था की परिचायक होगी ! लेकिन इस सारे कथा कहानी या शास्त्र का स्रोत समाज या संसार रहा है जो प्रकृति के इन रहस्यों को स्वीकार तो करता है लेकिन अपने शर्तों या नियम के साथ और इन रहस्यों के साथ बंधे सामाजिक शर्त को हम भी रहस्य मान बैठते हैं या फिर इंसान इतना कमज़ोर होता है की समाज के शर्तों में बंधी इन रहस्यों को स्वीकारने का हिम्मत उसके अंदर नहीं ! कारण जो भी हो लेकिन किसी भी स्त्री पुरुष का मिलन किसी भी भाव के साथ ही 'अर्धनारीश्वर' का कांसेप्ट है ! अब वह भाव वह जोड़ा तय करेगा !<br />
याद रहे - सभी भावों की आयु कम है ! और इंसान की अपेक्षा अनंत है ! तभी प्रकृति और सामाज के साथ साथ ईश्वर भी है या यूँ कहिये ईश्वर ही हैं :)) </div>
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@रंजन ऋतुराज / 4 मार्च 2019 / महाशिवशक्ति रात्री :) </div>
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<br /></div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-17814937956860213522019-02-28T16:53:00.000+05:302019-02-28T16:53:22.661+05:30प्रेम और विशालता ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="background-color: white; color: #1d2129;">प्रेम और विशालता :</span><span style="background-color: white; color: #1d2129;"> </span>दिनकर लिखते हैं - "नर के भीतर एक और नर है जिससे मिलने को एक नारी आतुर रहती है - नारी के भीतर एक और नारी है - जिससे मिलने को एक नर बेचैन रहता है " ..<span class="_47e3 _5mfr" style="line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/t4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="true" class="_7oe" style="display: inline; width: 0px;">:)</span></span>)<br />और यहीं से शुरू होती है ...प्रेम और विशालता की कहानी ! ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है !<br />कोई भी नर किसी नारी के प्रेम से उब नहीं सकता - उसके अन्दर प्रेम की कमी होती है - वो कठोर होता है - उसे खुद को मृदुल बनाना होता है - वह डूबता चला जाता है <span class="text_exposed_show" style="display: inline;">- वह डूबता चला जाता है ! नारी हैरान रहती है - आखिर क्या है इस प्रेम में - वो समझा नहीं पाता है - उसे वो प्रेम का सागर भी कम लगता है ! </span>अब सवाल यह उठता है - प्रेम में डूबने के बाद भी - वह प्रेम उसे कम क्यों लगता है ? नारी अपने प्रेम के बदले नर की विशालता देखना चाहती है - क्योंकी प्रकृती ने उसे प्रेम तो दिया पर उस प्रेम को रखने के लिए एक विशालता नहीं दी ! नारी अपने प्रेम को उस विशाल नर को सौंपना चाहती है जो उसके प्रेम को अपने विशालता के अन्दर सुरक्षित रख सके ! और यहीं से शुरू होता है - द्वंद्ध !<br />तुम मुझे थोड़ा और प्रेम दो - तुम थोड़े और विशाल बनो ! अभी मै भींगा नहीं - अभी मै तुम्हारे विशालता में खोयी नहीं - वो अपना प्रेम देने लगती है और नर अपनी विशालता फैलाने लगता है - हाँ ...प्रेमकुंड और विशालता ..दोनों एक ही अनुपात में बढ़ते रहने चाहिए ! एक सूखे कुंड में एक विशाल खडा नर - अजीब लगेगा और एक लबालब भरे कुंड में - एक छोटा व्यक्तित्व भी अजीब लगेगा !<br />नारी उस हद तक विशालता खोजती है जहाँ वो हमेशा के लिए खो जाए - नर उस हद प्रेमकुंड की तलाश करता है - जहाँ एक बार डूबने के बाद - फिर से वापस धरातल पर लौटने की कोई गुंजाईश न हो !<br />इन सब के जड़ में है - माता पिता द्वारा दिया गया प्रेम - पिता के बाद कोई दूसरा पुरुष उस विशालता को लेकर आया नहीं और माँ के बराबर किसी अन्य नारी का प्रेम उतना गहरा दिखा नहीं - फिर भी तलाश जारी है - डूबने की ...फैलने की ...प्रेमकुंड की ...विशालता की !<br />अपने प्रेमकुंड को और गहरा करते करते नारी थक जाती है - अपनी विशालता को और फैलाते फैलाते नर टूट जाता है ...शायद इसीलिये दोनों अतृप्त रह जाते है ...अपनी गाथा ...अगले जन्म में निभाने को ...<br />ना तो आकर्षण प्रेम है और ना ही रोमांस प्रेम है ! प्रेम एक विशाल क्षितिज है - जहाँ उन्मुक्ता बगैर किसी भय के हो ....<br />~ कुछ यूँ ही ...<span class="_47e3 _5mfr" style="line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" class="img" height="16" role="presentation" src="https://static.xx.fbcdn.net/images/emoji.php/v9/t4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /></span><br />28 Feb 2015 .</span></div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;">@RR</span></div>
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-91871718701438081372017-07-09T11:15:00.000+05:302017-07-09T11:51:04.691+05:30प्रोजेक्ट मैनेजमेंट - भाग दो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
बात पंद्रह साल पुरानी है ! मै नॉएडा आ चूका था ! शिक्षक बन चूका था ! तब हमारे हेड होते थे - कर्नल गुरुराज ! देश के सबसे बेहतरीन रीजनल कॉलेज 'त्रिची' से पास ! छोटा कद और बेहद कड़क ! तब वो कॉलेज के वाईस प्रिंसिपल भी थे ! जिस दिन ज्वाइन करना था - उस पुरे दिन मै उनके कमरे के बाहर खड़ा रहा ! वो काफी व्यस्त थे ! तब हम सभी महज एक लेक्चरर थे और डिपार्टमेंट में एक ही असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थीं - श्रीमती कृष्णा अस्वा ! कृष्णा मुझसे उम्र में छोटी रही होंगी लेकिन पद में ऊपर थी ! सांवला रंग और खादी की साड़ी ! और मुझसे बेहद अदब से पेश आती थी !<br />
अगले सेमेस्टर विषय निर्धारण का वक़्त आया ! प्रोजेक्ट मैनेजमेंट दो जगह पढ़ाने को था ! आंबेडकर यूनिवर्सिटी आगरा का फाइनल ईयर बैच निकलने को था और यूपी टेक्नीकल यूनिवर्सिटी का प्रथम बैच थर्ड ईयर में था ! दोनों जगह प्रोजेक्ट मैनेजमेंट था ! इस विषय को कोई भी शिक्षक छूने को तैयार नहीं था ! विष का प्याला -<span style="text-align: left;">रंजन ऋतुराज आगे बढ़ गए ! श्रीमती कृष्णा अस्वा ने खखर कर पूछा भी - ' रंजन सर , आप इस विषय को पढ़ा लेंगे ..न ' ! हमने भी खखर कर जबाब दे दिया ! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
फाइनल ईयर और थर्ड ईयर को पढ़ाना था ! लाइब्रेरी चला गया ! तब लाइब्रेरी की आदत थी ! कुछ एक मोटी मोटी किताब लेकर आ गया ! विषय से परिचित था लेकिन पढ़ाने लायक कांफिडेंस नहीं था ! खैर ....एक दिन सुबह फाइनल ईयर के क्लास में घुस गया ! किताब लेकर क्लास लेने की आदत थी ! दो तीन मोटी मोटी विदेशी किताबें लेकर लेक्चर थियेटर में घुसा तो थोडा नर्वस था ! किताबों को पोडियम पर रख - खुद का परिचय दिया - मै फलना धिकना इत्यादि इत्यादि ! समय काटना था - फिर विद्यार्थी सब से उनका परिचय पूछा ! नए शिक्षक और फाइनल इयर के विद्यार्थी के बीच उम्र का फासला कम होता है ! </div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
कुछ एक बड़ी बड़ी कजरारी आँखें बड़े ही गौर से देखने लगी की यह नमूना कौन है ! तब कोई भी एक शिक्षक झुंझला जाता है ! अचानक से मैंने पूछा - " क्या आप सभी कभी जीवन में कोई प्रोजेक्ट देखे हैं या किसी प्रोजेक्ट के पार्ट रहे हैं ? " ! किसी ने कुछ जबाब नहीं दिया ! </div>
<div style="text-align: left;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
मैंने पूछा - क्या आपने कभी कोई शादी / विवाह देखी है ? सभी ने जबाब दिया - हाँ ! मै मुस्कुरा दिया ! बोला - घर परिवार में होने वाली शादी विवाह किसी भी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का बेहतरीन उदहारण होता है ! अगर आप इस उदहारण को समझ गए फिर आप कोई भी प्रोजेक्ट संभाल लेंगे ! छात्र थोड़े मुस्कुराए फिर मैंने इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को विवाह की तैयारी से जोड़ कर समझाया ! </div>
<div style="text-align: justify;">
उसी सेमेस्टर यूनिवर्सिटी एक्सपर्ट मीटिंग में हमारी असिस्टेंट प्रोफ़ेसर श्रीमती कृष्णा अस्वा लखनऊ गयीं ! वहां उन्होंने मेरे बारे में क्या कहा , मुझे नहीं पता लेकिन पहली ही दफा में मुझे यूनिवर्सिटी का क्योश्चन पेपर सेट करने को मिला ! मै बहुत खुश था ! </div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
मैंने तीन सेट तैयार किये और अपनी पूरी आत्मा उन तीनो सेट में रख दिया ! पूरी क्रियेटिविटी रख दिया ! लेकिन मुझे नहीं पता था की वही पेपर परीक्षा में आयेंगे ! तब फाइनल यूनिवर्सिटी परीक्षा का होम सेंटर होता था ! जिस दिन परीक्षा था - बेचैने थी - पत्र बंटने के बाद - मुझे पता चला की मेरा ही सेट आया है ! परीक्षा ख़त्म होने के बाद हाथ फोल्ड कर एक खम्भे से टीक गया और परीक्षा कक्ष से बाहर निकल रहे विद्यार्थिओं के चेहरे की मुस्कान मेरे घमंड को और ऊँचा कर रही थी ! क्योस्चन पेपर में एक सवाल मेरे अंदाज़ को व्यक्त कर रहा था , जिससे मेरे छात्र को पकड़ लिए की यह रंजन सर का ही पेपर है ! अगले दो साल और यूनिवर्सिटी ने मेरा ही पेपर परीक्षा में दिया ! किसी भी शिक्षक के लिए यह बहुत गौरव की बात है और ऐसे अवसर शिक्षक के व्यक्तित्व में गंभीरता लाते हैं ! फिर अगले दो तीन साल बाद - यूनिवर्सिटी ने मुझे इसी विषय का डीपटी और फिर हेड येग्जाम्नर भी बनाया ! </div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
यहाँ मेरा कोई भी व्यक्तिगत योगदान कुछ नहीं था लेकिन एक बढ़िया संस्थान में काम करने के कारण मुझे ये अवसर मिले ! इसी विषय में मै आगे रिसर्च करना चाहता था ! मरद जात कुकुर - शायद तब के सबसे सुन्दर शिक्षिका जो आईआईटी - दिल्ली में थी - उनके पास रिसर्च करने पहुँच गया ! उनके पास इस विषय के सभी डिग्री मौजूद थी ! हमउम्र भी थी सो रिसर्च की गुंजाईश कम ही थी ! एक दो मुलाक़ात में ही बात समझ में आ गयी की ना तो वो मेरी गुरु बन सकती हैं और ना ही मै उनका चेला ! वो अमेरिका चली गयीं - रिसर्च एक ख्वाब बन के रह गया ! हा महा हा...... </div>
<div style="text-align: justify;">
खैर , आज फिर से उसी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में वापस हूँ ! खुश हूँ ! देश के सबसे बेहतरीन ब्रांड "टाटा" के साथ दो साल के अनुबंध पर ! खूब पढता हूँ ! समझ रहा हूँ ! लेकिन अन्दर का एक शिक्षक वर्तमान है जो वक्त के साथ खुलेगा - और ज्ञान की कैसी सीमा ....:)) </div>
<div style="text-align: justify;">
गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएँ ......:))<br />
<br />
~ रंजन ऋतुराज / दालान / पटना<br />
<br />
<a href="https://daalaan.blogspot.in/2017/06/1.html">प्रोजेक्ट मैनेजमेंट - भाग एक </a></div>
</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-34894351467481939402017-07-08T20:58:00.003+05:302017-07-08T20:58:41.372+05:30"दालान" के दस वर्ष ....:)) <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2fzW4kf9LQS7V75n5kMmhwsGiukLl3iPLjkJLFKKj0CVKlEnssB6GJFX8DqU5FyezQnlzHOKDauazbkippETXtqXQupg7bCXqJtodDLmJdW0wq4jV_ldMbqodMLd1pYo5epBR_9aYXa0/s1600/Ten_Years_of_Daalaan.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="225" data-original-width="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2fzW4kf9LQS7V75n5kMmhwsGiukLl3iPLjkJLFKKj0CVKlEnssB6GJFX8DqU5FyezQnlzHOKDauazbkippETXtqXQupg7bCXqJtodDLmJdW0wq4jV_ldMbqodMLd1pYo5epBR_9aYXa0/s1600/Ten_Years_of_Daalaan.jpg" /></a></div>
<br />
:))</div>
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सोमवारी से सोमवारी ! सावन से सावन ! जुलाई से जुलाई - दस साल हो गए ...दालान के ! खुश हूँ ! समझ में ही नहीं आ रहा - ख़ुशी कैसे व्यक्त करूँ ! यह मेरा पुरजोर मानना है की कोई भी सजीव या निर्जीव चीज़ सिर्फ अपने बदौलत ऊपर तक नहीं पहुँच सकती - कई अन्य सजीव या निर्जीव उसे ऊंचाई पर पहुंचाते हैं ! अगर आप पढने वाले नहीं होते तो शायद यह दालान नहीं होता ! </div>
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सबसे महतवपूर्ण है - विश्वास ! इंसान का खुद पर विश्वास होना तो प्रथम चरण है लेकिन अगर कोई गैर आप पर विश्वास करे - यह एक परमसुख है ! और शायद यहीं आप सभी मित्र और पाठक आते हैं ! और आप सभी ने मुझे मेरी क्षमता से ज्यादा सब कुछ दिया है ! या यूँ कहिये दालान शुरू होने के बाद से मेरे जीवन में जो कुछ भी है वो सब का सब इसी दालान / लेखनी की वजह से है ! अकल्पनीय है मेरे लिए , जो कुछ एक लोग मुझे नजदीक से जानते हैं वो जरुर ही अभी मुस्कुरा रहे होंगे :))<br />
आज खुद को शब्द विहीन महसूस कर रहा हूँ - निःशब्द हूँ ! कोई शब्द नहीं है मेरे पास आप सभी के लिए ! हम क्या थे ? नॉएडा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में शिक्षक ! दालान नहीं होता तो मै उन्ही असंख्य शिक्षकों की तरह किसी गुमनाम ज़िन्दगी को बसर कर रहा होता ! गुमनामी से मुझे नफरत है तभी तो दालान अखबार , टीवी , रेडिओ सब जगह आया :))<br />
पिछले दस साल आँखों के आसमान से गुजर रहे है ! मेघ की तरह ! कब बरस जाए कहना मुश्किल है ......:))<br />
मै कोई कवी , लेखक या साहित्यकार नहीं था ! आज भी नहीं हूँ ! कहीं कोई ट्रेनिंग नहीं है ! मूलतः एक रचनात्मक इंसान हूँ ! घर - परिवार , संस्था में रचनात्मक प्रयोग की मनाही होती है तो लिखने को एक प्लेटफॉर्म मिल गया - मन की बात बहुत ईमानदारी से लिखा और आप सभी को पसंद आया !<br />
आज दालान पेज फेसबुक पर पिछले ढाई साल में 18,000+ पाठक जुड़े ! करीब दो लाख से ऊपर हिट्स दालान ब्लॉग स्पॉट को मिल चूका है पिछले सात साल में !<br />
कई यादें हैं - कई बातें हैं - खुलेंगे सब - हौले हौले - शब्दों के साथ ......बने रहिये इस सावन दालान ब्लॉग के साथ .....:)))<br />
...उन्ही यादों के मेघ के साथ विचरण कर रहा हूँ ....बड़े प्यार से अपने दालान को देख रहा हूँ ...:))<br />
शुक्रिया ....!!!<br />
~ रंजन ऋतुराज / दालान / पटना<br />
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-64446552010000690402017-06-10T13:49:00.000+05:302017-06-10T19:34:33.545+05:30प्रोजेक्ट मैनेजमेंट , पार्ट 1 <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
ठीक पंद्रह साल पहले की बात है ! इसी जून के महीने एक शाम प्रमोद महाजन दिल्ली एअरपोर्ट पर ए पी जे अब्दुल कलाम का हाथ पकडे बाहर की तरफ निकल रहे थे ! भावी राष्ट्रपति की घोषणा होने वाली थी ! मुर्ख मिडिया ने अब्दुल कलाम साहब पर सवालों के गोले दागने शुरू कर दिए - " आप तो गैर राजनीति और प्रायोगिक विज्ञानं से हैं ...कैसे देश को संभालेंगे इत्यादि इत्यादि " ! इंसान कोई भी हो - एक उम्र बाद जब उसके काबलियत पर कोई शक करे , इंसान का तिलमिलाना स्वाभाविक है ! अब्दुल कलाम साहब ने जबाब दिया था - ' आजीवन मै प्रोजेक्ट मैनेजर रहा हूँ और एक प्रोजेक्ट मैनेजर से बढ़िया नेतृत्व की क्षमता किसी के पास नहीं होती है , बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर मुझे न जाने कितने रिसोर्स को मैनेज करना पड़ता है " ! मालूम नहीं मुर्ख मिडिया को उनकी बात कितनी समझ में आई लेकिन मै मुस्कुरा रहा था :))<br />
खैर .....<br />
बात वर्षों पुरानी है ! मैंने पीजी में एडमिशन ले लिया था ! अभी तक तो कभी पढ़ाई लिखाई किया नहीं था ! सो सोचा कुछ पढ लिया जाए - अनपढ़ का बोझ कब तक लिए फिरें :) ! लाइब्रेरी जाने की आदत पड़ गयी ! मेरे साथ वाले भी लाइब्रेरी जाते थे लेकिन वो सिलेबस तक ही पढ़ते थे ! मै अपने स्वभाव से पीड़ित था ! सिलेबस छोड़ सब कुछ पढने की बिमारी बचपन से थी ! पढ़ गया - इंजीनियरिंग मैनेजमेंट , प्रोजेक्ट मैनेजमेंट इत्यादि इत्यादि ! </div>
<div style="text-align: justify;">
खैर ...एक किताब हाथ लगी जिसमे बताया गया की कैसे बड़े बड़े प्रोजेक्ट फेल हो जाते हैं ! प्रोजेक्ट की कई कहानी पढने के बाद - निष्कर्ष यही निकला की 'Requirement Analysis' को तवज्जो दिया ही नहीं गया ! अरबों खरबों के प्रोजेक्ट बंद हो गए ! हालांकि प्रोजेक्ट फेल होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन 'Requirement Analysis' उनमे से एक प्रमुख होता है !<br />
एक उदाहरण देता हूँ - नॉएडा आया तो मुझे किराया का मकान लेना था ! वहां के सेक्टर 62 के एक पीएसयु कम्पनी PDIL की नयी बनी सोसाइटी में दो कमरों का फ़्लैट लिया ! इस कंपनी के बारे में बताता चलूँ - यह रांची के इंजीनियरिंग डिजाईन कंपनी मेकॉन की तरह भारत सरकार की कंपनी है - जो बड़े बड़े प्रोजेक्ट की डिजाईन करती है - ख़ासकर रिफाईन और खाद कारखानों की ! मेरे साथ पढ़े कॉलेज के कुछ एक मित्र भी यहाँ काम कर रहे थे ! शत प्रतिशत इंजिनियर की कंपनी !चपरासी भी शायद इंजिनियर ही होगा ! लेकिन इसी कंपनी के इंजिनियर जब खुद के सोसाइटी डिजाईन किये तो वहां ' कार पार्किंग' की जगह ही नहीं दिए ! डिजाईन करते वक़्त फ़्लैट तो बेहतरीन बनाए लेकिन कुछ एक एकड़ में बसे इस सोसाइटी में उन्होंने कार पार्किंग की जगह नहीं बनायी ! जब नॉएडा से जमीन मिला तब भारत सरकार के इस कंपनी में तनखाह कम थी ! अधिकतर इंजिनियर स्कूटर झुका के स्टार्ट करने वाले मुद्रा में थे ! किसी ने कभी यह नहीं सोचा की कल को कार भी चढ़ सकते है ! बना दिया एक सोसाइटी - बिना कार पार्किंग की ! पांचवां / छठा वेतनमान आया, हज़ार कमाने वाले लाख में तनखाह उठाने लगे ! बाल बच्चे बड़े हुए ! कार खरीदी गयी और अब रोज कार पार्किंग को लेकर 'माई - बहिन' ! मेरी जगह पर उसने कार लगा दी तो उसकी जगह पर किसी और ने कार पार्क कर दी ! <b>सारा शहर कार पर घूम रहा है और इंजिनियर की बस्ती में कार पार्किंग की कोई जगह ही नहीं ! क्योंकि आपने सोचा - अभी मेरी तनखाह कम है और कार बड़े लोगों की सवारी है ! पलक झपकते हर घर तीन कार हो गयी ! अब आप अपना पूरा स्ट्रक्चर तोड़ भी नहीं सकते ! </b></div>
<div style="text-align: justify;">
अजीब है ..न ! पूर्ण रूपेण इंजिनियर की कंपनी , मकान आयु सौ साल और कार पार्किंग की जगह नहीं ! और शहर देश का बेहतरीन - नॉएडा !<br />
यहं पुर्णतः Requirement Engineering की फेल्युअर है !<br />
जब खुद का फ़्लैट इंदिरापुरम में खरीदना था - करीब छः महीने 28 बिल्डर के यहाँ घुमा ! मुझे अपनी जरूरतें पता थी ! मै बजट का इंतज़ार किया लेकिन अपनी जरूरतों से कोई समझौता नहीं ! सिविल इंजीनियरिंग / इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हर दो साल पर सॉफ्टवेयर की तरह बदलने की चीज नहीं है ! एक मकान की आयु सौ साल और एक सड़क पांच सौ - हज़ार साल जिंदा रहती है !<br />
कई दफा खुद क्लाइंट को अपनी जरूरतें समझ में नहीं आती है ! उस वक़्त कंसल्टेंट / एजेंसी को आगे बढ़ कर क्लाइंट को पढ़ाना / बताना पड़ता है ! कई दफा जरूरतें पैदा भी करनी पड़ती है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
इसी वर्ष ११ जून को बिहार सरकार पटना - सोनपुर एक ब्रिज देश को समर्पित करेगा ! इस ब्रिज में मोकामा - बेगुसराय 'राजेंद्र ब्रिज' की तरह रेल और सड़क यातायात दोनों है ! वर्तमान गंगा सेतु टूटने के कगार पर है या वहां चार पांच घंटे जाम लगा रहता है ! लेकिन इस नए ब्रिज की चौड़ाई महज 18 मीटर है ! मतलब आज के जमाने में भी सिर्फ दो लेन ही हैं ! एक उधर से आने को और एक इधर से जाने को ! और तब जब बिहार से बने दो रेल मंत्री का यह ख़ास प्रोजेक्ट था ! इतने संकरे ब्रिज को बनाने का जड़ मै नहीं लिख सकता - मुझे सामंतवाद ठहरा सोशल मिडिया पर गाली मिलेगी ! लेकिन यही स्थिति है "प्रोजेक्ट मैनेजमेंट" की ! मालूम नहीं - सरकार में बहाल बड़े बड़े अधिकारी और इंजिनियर - Requirement Ananlysis को लेकर इतने ढीले क्यों है ? सन 2002 में शिलन्यास हुए इस पूल को बन कर तैयार होने में 15 साल लग गए ! </div>
<div style="text-align: justify;">
1976 में नॉएडा का जन्म हुआ ! इस विशाल शहर में सेक्टर 11 के बगल में सेक्टर 22 है ! कोई बिहार से आया तो अपने सम्बन्धी का पता खोजने के चक्कर में भूखा मर जाएगा ! क्योंकि ब्लाक B के बगल में ब्लाक J है ! खोजते रहिये - रंजन ऋतुराज का पता ! ऑटो वाला बीच रास्ता सामान उतार वापस दिल्ली स्टेशन चल देगा !<br />
संभवतः ओल्ड बंगलौर विश्वसरैया जी का डिजाईन किया हुआ है ! मै मल्लेश्वरम मोहल्ले में रहा हूँ ! सड़क और मोहल्ला "क्रॉस और मेन" सड़क में बंटा हुआ है ! आपको कोई भी घर खोजने में भी दिक्कत नहीं होगी ! </div>
<div style="text-align: justify;">
यह सिविल इंजीयरिंग की उदहारण मैंने दी है ! दिक्कतें बाकी की सभी इंजीनियरिंग विभाग में है ! कोई भी इंजिनियर टीम - Requirement Analysis को लेकर सीरियस नहीं है ! फेसबुक इसी लिए सफल रहा की वो मानव स्वभाव के Requirement को समझा !<br />
अमरीका की पूरी सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री वहां की मिलिट्री की देन है ! मिलिट्री के पास बजट की कमी नहीं होती थी और वो नए प्रयोग करते थे ! सत्तर और अस्सी के दसक में कई ख़रब डॉलर के प्रोजेक्ट कमज़ोर Requirement Engineering की वजह से या तो बीच में लटक गए या फिर किसी काम के नहीं रहे ! अमरीका मिलिट्री के साथ वहां की सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री का पेट - जेनेरल इलेक्ट्रिक भरता था / है ! एक ही प्रोजेक्ट वो तीन अलग अलग कंपनी से करवाता था / है !<br />
इंजीनियरिंग के छोटे से छोटे प्रोजेक्ट की भी आयु तीन साल होती है और तीन साल में जरूरतें बदल जाती है ! तकनीक / रहन सहन में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है ! लोगों की मूल जरूरतों और बदलाव को समझिये ! </div>
<div style="text-align: justify;">
अंत में एक उदाहरण देता हूँ - नॉएडा और इंदिरापुरम जैसे बड़े शहर में सरकार की तरफ से एक भी लाइब्रेरी की व्यस्था नहीं है ! हजारों फ्लैट के बीच कर चार कदम पर एक शौपिंग मॉल है लेकिन एक भी लाइब्रेरी नहीं है !<br />
हम कैसा शहर / समाज बना रहे हैं , जहाँ सिर्फ और सिर्फ पढ़े लिखे लोग ही बस रहे हैं और एक लाइब्रेरी तक नहीं ! इससे शर्मनाक और क्या बात हो सकती है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
करीब दस साल पहले भारत सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री चिदंबरम साहब ने कहा था - कई छोटी मोटी शुरूआती गलतिओं की वजह से भारत जैसे देश में लग भाग दो लाख करोड़ के प्रोजेक्ट दिशाहीन हो जाते हैं !<br />
शुरूआती दौर की एक गलती अपने अंतिम फेज़ में पहुँचते वक़्त - कई गुना बढ़ चुकी होती है !<br />
हालांकि पिछले पंद्रह साल में भारत में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को लेकर सजगता बढ़ी है लेकिन वह सजगता प्रोजेक्ट कंट्रोल पर ज्यादा है ! अभी भी Requirement Analysis / Engineering ठन्डे बसते में ही है ! जिस रफ़्तार से टैक्स में बढ़ोतरी और कलेक्शन बढ़ रहा है , सेना के बाद सरकार के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा विभिन्न परियोजनायों / प्रोजेक्ट की तरफ ही जाएगा ! और जनता की गाढ़ी कमाई का यह पैसा भविष्य में जनता के हित को साधे , उसके लिए सरकार को अपने विभागों के इंजीनियरों के हाथ और कलेजा दोनों मजबूत करने होंगे !<br />
मुझे कोई संकोच नहीं हैं की - भारत में नए युग का प्रवेश द्वार 'वाजपेयी सरकार' रही - जहाँ उन्होंने भारत सरकार के दो प्रमुख विभागों का सचिव 'टेक्नीकल लोगों' को बनाया ! श्री मंगला राय , वैज्ञानिक को कृषि शिक्षा और अनुसंधान का सचिव बनाया एवं श्री आर भी शाही को उर्जा सचिव बनाया ! यह कदम बहुत साहसी था ! सीतामढ़ी बिहार के रहने वाले श्री आर भी शाही को आज भी भारत के नए युग में उर्जा विस्तार को उन्हें सूत्रधार कहा जाता है !<br />
आज ऑटोमोबाइल और आईटी क्षेत्र में सबसे ज्यादा Requirement Engineering पर बहस हो रही है , उनका स्वरुप भी ऐसा है की उन्हें दो तीन साल में बदल रही जरूरतों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट तो बीस / पचास / सौ साल के लिए होता है - वहां तो भविष्य की जरूरतों को ध्यान देना ही होगा !<br />
कल्पना कीजिए - सम्राट अशोक के बाद शेरशाह सूरी के जमाने का ग्रैंड ट्रंक रोड ...क्या जबरदस्त Requirement Engineering / Analysis रही होगी की आज भी यह सड़क हमारी जरूरतों को मुखातिब है !<br />
<br />
हावड़ा का ब्रिज देखा है , क्या ? 1943 में बन कर तैयार यह ब्रिज , हाल फिलहाल तक बगैर किसी सड़क जाम के कलकत्ता को हावड़ा से कनेक्ट किये हुए था ! मेरे पटना का गंगा सेतु तो बस बीस साल में ही दम तोड़ दिया !<br />
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कहाँ दिक्कत है ?<br />
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~ रंजन / पटना</div>
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-9855209717410685222017-02-13T19:30:00.000+05:302017-02-13T19:33:49.511+05:30रेडिओ की याद ... World Radio Day <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpFYlL1K4jaXVU1whnKKYkX5BSeCZPYSO-UYNRLB2SSax134vxehW12zQQy4kve-oudKEGK1qzBRvqr2wu31C5GHiuz0lrfCLW9VD25128pTSLohNYuEZESL40RMOpVbTMxUOOcqpMfyY/s1600/radio.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpFYlL1K4jaXVU1whnKKYkX5BSeCZPYSO-UYNRLB2SSax134vxehW12zQQy4kve-oudKEGK1qzBRvqr2wu31C5GHiuz0lrfCLW9VD25128pTSLohNYuEZESL40RMOpVbTMxUOOcqpMfyY/s1600/radio.jpg" /></a></div>
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">आज भी कान में गूंजता है - "ये आकाशवाणी है ..अब आप रामानन्द प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए" ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">आज वर्ल्ड रेडिओ डे है - रेडिओ से जुडी कई यादें हैं - यूँ कहिये जिस जेनेरेशन से हम आते हैं - वो रेडिओ से ही शुरू होता है ..फिर रेडिओ से स्मार्टफोन तक का हमारा सफ़र ..</span><span class="_47e3 _5mfr" style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"> </span></div>
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">बाबा पौने नौ वाला राष्ट्रीय समाचार जरुर से सुनते थे - फिर समाचार के वक़्त ही रात्री भोजन - बड़े वाले पीढ़ा पर बैठ कर - वहीँ बगल में हम भी उनके गोद में ..<span class="_47e3 _5mfr" style="line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span> लगता था ..ये लोग कौन हैं ..जो 'समाचार पढ़ते' हैं ...बस एक कल्पना में उनकी आकृती होती थी ...साढ़े सात का प्रादेशिक समाचार ...फिर दोपहर का धीमीगती का समाचार <span class="text_exposed_show" style="display: inline;">...हर घंटे समाचार ..<span class="_47e3 _5mfr" style="font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span> </span></span></div>
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"></span>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">रेडिओ विश्वास था - जब तक रेडिओ ने कुछ नहीं कहा - कैसे 'झप्पू भैया' का बात मान लें ...रेडिओ ने कह दिया ...जयप्रकाश नारायण नहीं रहे - स्कूल में छुट्टी ...रेडिओ अभी तक नहीं कहा ...छुट्टी नहीं हुई ...</span></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;">
<div style="text-align: justify;">
कॉलेज में पढता था तो रोज शाम बीबीसी - हिंदी सेवा जरुर सुनता था ! भारत से लेकर पुरे विश्व की खबर ! तब अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया , और अन्य देशों के हिंदी सेवा सभी के सभी के समय पता होते थे ! घर में एक ग्रामोफोन होता था , जिसमे रिकॉर्ड प्लेयर और रेडिओ साथ साथ ! फिर पानासोनिक का बड़ा वाला टू इन वन ! मीडियम वेव , शोर्ट वेव और मालूम नहीं क्या क्या !<br />
इलेक्ट्रोनिक्स और कम्युनिकेशन इंजिनियर होने के नाते एक बात बताता हूँ - सबसे मुश्किल काम होता है - एंटीना डिजाईन ! एंटीना दिखने में जितना सिंपल - उसका डिज़ाइन - उतना ही मुश्किल ! </div>
<div style="text-align: justify;">
शौक़ीन ट्रांजिस्टर रखते थे - क्रिकेट की कमेंट्री कान में लगा कर , शाल ओढ़ कर छत पर ऐसे सुन रहे होते थे जैसे वो भी स्टेडियम में बैठों हो ! इंजीनियरिंग में मेरे लिए सबसे मुश्किल था - ट्रांजिस्टर कैरेक्ट्रिक्स समझना :( आज भी दिमाग में नहीं घुसता है :( </div>
<div style="text-align: justify;">
कुछ चाचा / मामा टाईप आइटम होते थे ...कब किस स्टेशन से गीत आ रहा होगा ...एकदम से एक्सपर्ट ...रेडिओ हाथ में लिया और धडाक से वही स्टेशन ..हम बच्चे मुह बा के उनको देखते ...गजब के हाई फाई हैं ...फिर उन गीतों में फरमाईश ...क्या जमाना था ..लोग एक गीत सुनने के लिए ..पोस्टकार्ड पर पुरे गाँव / मोहल्ले का नाम लिख भेजते थे ...फलना पोस्टबैग नंबर ...दो नाम आज तक याद हैं - झुमरी तिलैया से सबसे ज्यादा चिठ्ठी आते थे और महाराष्ट्र के 'बाघमारे' परिवार पुरे खानदान का नाम लिख भेजते थे !<br />
हिंदी मीडियम दस बजिया स्कूल में पढता था , स्कूल जाने के पहले विविध भारती पर नए गाने जरुर सुनता था ! तब श्रीदेवी और जितेन्द्र के गीत आते थे - ' एक आँख मारू तो ...' ! फिर गिरफ्तार का गीत - धुप में न निकला करो ...रूप की रानी :)<br />
रेडिओ संग यादों की बहार लौट आई है ...देर रात विविध भारती पर किसी कहानी में पिरोये गीतों की माला ...सुनते सुनते सो जाना ..ऐसे जैसे वो कोई सच्ची कहानी हो :) </div>
<div style="text-align: justify;">
अब कार में रेडिओ सुनते हैं ! एफएम पर ! पहली दफा - तीन साल पहले - रेडिओ मिर्ची वालों ने बुलाया था - स्टूडियो में घुसते ही रोमांचित और भावुक हो गया ! चार घंटे - पुरे बिहार को अपनी पसंद के गीत सुनाया ! खूब मजा आया :) </div>
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<div style="text-align: justify;">
<blockquote class="tr_bq">
<b>रात के सन्नाटे में ....जब पूरा गाँव सो जाता था ...तब भी कहीं किसी के घर से देर रात तक रेडिओ से गीत बजता था ...किसी ने कहा ..'नयकी भाभी' हैं ..बिना गीत सुने नींद नहीं आती है ...'नयकी भाभी' को देखने उनके घर पहुँच गए ..पर्दा से उनको झाँक ...भाग खड़ा ...उन्होंने ने भी प्यार से बुलाया - बउआ जी ..आईये ...<span class="_47e3 _5mfr" style="font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span></b></blockquote>
</div>
</span><br />
फिर से एक रेडिओ खरीदने की तमन्ना जाग उठी है ...बुश या फिलिप्स की ...हॉलैंड वाली :) रेडिओ कल्पना शक्ति बढ़ाती थी ...रेडिओ पर अचानक से बजने वाले पसंदीदा गीत ...रूह को तसल्ली दे जाते हैं ...अचानक से ....:))<br />
<br />
@RR 2014 - 2017 </div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-74515650581502473042017-02-12T16:21:00.001+05:302017-02-12T19:03:49.814+05:30कमाल अमरोही की पाकीज़ा ....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;">सिनेमा - सिनेमा - "पाकीज़ा"</span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue", helvetica, arial, sans-serif;">अधिकतर दर्शक यही समझते हैं - इस सिनेमा में मीना कुमारी</span><span class="text_exposed_show" style="color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue", helvetica, arial, sans-serif;"> ही पाकीज़ा हैं - बल्की कहानी कुछ और है - बकौल कमाल अमरोही के पुत्र - </span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;"></span></div>
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;">
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;"></span>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;">सिनेमा के अंतिम दृश्यों में - जब राजकुमार मीना कुमारी को इज्जत के साथ विदा करने ले जाते हैं - उसी दृश्य में - एक छोटी सी टीनएजर लड़की पर कैमरा फोकस करता है - वो लड़की बारात को देख बहुत खुश होती है - उसे लगता है एक दिन उसके लिए भी बारात आयेगी और वो भी मीना कुमारी की तरह हंसी खुशी विदा लेगी - पर ऐसा नहीं है - वो लड़की उसी चुंगल में फंसने जा रही थी - जिस चुंगल मीना कुमारी आज़ाद होने वाली थी - "ट्रैप" ..! </span></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;">
<div style="text-align: justify;">
इस सिनेमा के एडिटर डी एन पाई ने लगभग इस दृश्य को उड़ा दिया था - जब कमाल अमरोही को पता चला - वो पाई साहब को समझाए - पाई साहब बोले - "यही लड़की पाकीज़ा है ..यह बात कौन समझेगा ? " कलाम अमरोही बोले - " अगर एक आदमी भी समझ गया - यही लड़की पाकीज़ा है - समझो मेरी मेहनत पुरी हुई - दिल को तसल्ली मिलेगी " ..<span class="_47e3 _5mfr" style="font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; width: 0px;">:)</span></span>) </div>
<div style="text-align: justify;">
लगभग एक साल बाद - कमाल अमरोही को एक दर्शक का ख़त आया - जिसमे उस मासूम लड़की के पाकीज़ा होने का ज़िक्र था ! कमाल आरोही ने पाई साहब को बुलाया और ख़त दिखाया ...<span class="_47e3 _5mfr" style="font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; width: 0px;">:)</span></span> फिर उस दर्शक को पुरे देश के सिनेमा हॉल के लिए एक फ्री पास जारी किया ...अब वो दर्शक पुरे भारत के किसी भी सिनेमा हॉल में कमाल अमरोही के ख़ास गेस्ट बन पाकीज़ा को जब चाहें और जितनी बार चाहें देख सकते थे ! <span class="_47e3 _5mfr" style="font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; width: 0px;">:)</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="_47e3 _5mfr" style="font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; width: 0px;"><br /></span></span></div>
</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjR8Lvw0ln73caKcvq2ijOKGEioH0LRvh5X079vZS_mKRUCBFN3Kuo4aZtalPDPnH0hTjJXOChD-2kiQCtt7znbeeHh5LOyEjwNqxnRQg1uhWIJo-0na2sH9yOl8Du65uGGPOtkzvjIP8k/s1600/Pakizah.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="173" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjR8Lvw0ln73caKcvq2ijOKGEioH0LRvh5X079vZS_mKRUCBFN3Kuo4aZtalPDPnH0hTjJXOChD-2kiQCtt7znbeeHh5LOyEjwNqxnRQg1uhWIJo-0na2sH9yOl8Du65uGGPOtkzvjIP8k/s320/Pakizah.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
जब दो साल पहले मैंने यह पोस्ट लिखा तो पाठकों की डिमांड उस पाकीज़ा को देखने की हुई - युटुब पर इस सिनेमा को चला कर उस दृश्य तक पहुँच मैंने स्क्रीन शॉट लिया ..फिर कमेन्ट में इस तस्वीर को डाला ! यही है - कमाल अमरोही की पाकीज़ा ....!</div>
<div style="text-align: justify;">
रेडिओ मिर्ची पटना के पूर्व अधिकारी उत्पल पाठक ने एक बढ़िया कमेन्ट किया था -</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<blockquote class="tr_bq" style="text-align: justify;">
<blockquote class="tr_bq">
<span style="background-color: #f6f7f9; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-family: inherit;">आभार है सर , हमेशा की तरह बढ़िया लिखा है आपने , दर असल उस दिन मैंने बस इस फिल्म में हुयी मेहनत का एक उल्लेख किया था जहाँ एक गीत के फिल्मांकन के लिये भोर होने तक का इंतज़ार कई रातों तक किया गया था क्यूंकि निर्देशक चाहते थे भोर में जो ट्रेन गुज़रती है उसकी</span></span><span style="background-color: #f6f7f9; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif;"><span style="font-family: inherit;"><span style="font-family: inherit;"> सीटी की वास्तविक आवाज़ गीत में रिकार्ड हो। अपने आप में अद्भुत अदाकारी और तालीम ओ तहज़ीब को बयान करती हुयी यह फिल्म कई मायनों में महत्वपूर्ण है। ऐसा भी कहा जाता है कि फिल्म के अधिकांश गीत मजरूह साहब को लिखने थे , इसी बीच उन्हें किसी मुशायरे का न्योता आ गया और उन्होंने वहां जाने की ताकीद की , लेकिन कमाल अमरोही साहब चाहते थे कि वो गेट पूरे करके जाएँ , लेकिन मजरूह साहब ने मुशायरे को प्राथमिकता दी और बाद में कैफ़ी साहब ने गीत लिखे। १९५८ में शुरू हुयी फिल्म को पूरा होकर रिलीज़ होने में १९७१ तक १७ साल का समय लगा जिसका बड़ा कारण मीना कुमारी और कमाल अमरोही के रिश्तों के कड़वाहट जो बाद में तलाक तक पहुँच गयी थी , लेकिन अपनी मृत्यु से ठीक पहले मीना जी फिल्म को करने के लिये राज़ी हो गयीं। फिल्म के एक गीत में नृत्य के कुछ भाव मीना उम्र और बीमारी के कारण पूरे कर पाने में असमर्थ हुयी तो पद्मा खन्ना को घूँघट पहना के उन दृश्यों को फिल्माया गया। </span></span></span></blockquote>
<span style="font-family: inherit;">फिल्म के रिलीज़ होने के बाद सामान्य नतीजे आ रहे थे लेकिन एक महीने बाद मीना जी इस फ़ानी दुनिया से विदा लेते हुये चल बसीं और ये उनकी आख़िरी फिल्म साबित हुयी , उनकी दुखद मृत्यु के बाद फिल्म की लोकप्रियता और बढ़ गयी।</span></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #1d2129; font-family: "helvetica neue", helvetica, arial, sans-serif; font-weight: bold;"><br /></span></div>
<b><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: "helvetica neue" , "helvetica" , "arial" , sans-serif; text-align: justify;">कोई भी क्रिएटीव इंसान अपनी क्रेएटिविटी में कुछ अलग सन्देश देना चाहता है - जिसे बहुत कम लोग समझ पाते हैं - क्योंकी हर कोई उस नज़र से ना पढता है और ना ही देखता है ...और उसको असल मेहताना उसी दिन पूरा मिलता है - जिस दिन कोई उसके सन्देश को सचमुच में समझता है ...</span><span class="_47e3 _5mfr" style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: inherit; line-height: 0; margin: 0px 1px; text-align: justify; vertical-align: middle;" title="smile emoticon"><span style="border-color: initial; border-image: initial; border-style: initial;"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v7/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /></span><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; width: 0px;">:)</span></span></b><br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
@RR</div>
</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-2123616380416528422017-02-12T14:53:00.001+05:302017-02-12T14:53:48.439+05:30गुलाब बस गुलाब होते हैं ...:))<div>यह गुलाब है । ऋतुराज वसंत के एक सुबह खिला हुआ गुलाब । गुलाब के साथ कोई विशेषण नहीं लगाते , गुलाब की तौहिनि होती है , बस इन्हें गुलाब कहते हैं । बड़ी मुश्किल से गुलाबी गुलाब दिखते है । इन्हें तोड़ना नहीं , मिट्टी से ख़ुशबू निकाल तुमतक पहुँचाते रहेंगे । </div><div>गुलाब मख़मली होते हैं । गुलाब सिल्क़ी होते हैं । गुलाब ख़ुशबूदार होते हैं । बोला न ...गुलाब के साथ कोई विशेषण नहीं लगाते ...गुलाब बस गुलाब होते हैं ...उनकी ख़ूबसूरती और सुगंध बस महसूस किए जाते हैं ...:)) गुलाब तो बस माली का होता है ...दूर से माली गुलाब को देखता है और गुलाब अपने माली हो ...वही माली जो चुपके से गुलाब के पेड़ के जड़ में खाद पानी दे जाता है - गुलाब खिलता रहे तो खर पतवार को हटा देता है ...और खिला गुलाब मुस्कुराता रहता है ...</div><div>यह गुलाब है । ऋतुराज वसंत के एक सुबह खिला हुआ गुलाब ...कहीं ऐसा गुलाब देखा है ? </div><div>अगर ऐसा गुलाब नहीं दिखा तो ख़ुद को आइना में देख लेना ...:)) तुम्हारी ख़ुशबू और तुम्हारे रंग वाला - गुलाबी गुलाब ...:)) </div><div>( राष्ट्रपति भवन के मुग़ल गार्डन से हिंदुस्तान टाइम्स के लिए खिंचा हुआ - एक गुलाबी गुलाब ) </div><div>~ फ़रवरी / 2016 </div><div><div class="separator" style="clear: both;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvWNOQeE-xW4gmvsamdi-m8xngEJgAsUWUDmeIyqr4fBteoXhrdkQmqeSXFRbcspvPyk58g8rNE_6MU9e88HkTb333NN_WtW-kjjZu0dH5KnbSBKYtbKUgWwdbZhxj3Q3n06mG8E5VuPU/s640/blogger-image-1245068863.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhvWNOQeE-xW4gmvsamdi-m8xngEJgAsUWUDmeIyqr4fBteoXhrdkQmqeSXFRbcspvPyk58g8rNE_6MU9e88HkTb333NN_WtW-kjjZu0dH5KnbSBKYtbKUgWwdbZhxj3Q3n06mG8E5VuPU/s640/blogger-image-1245068863.jpg"></a></div><br></div><div><br></div>Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-26804410708381354322017-02-09T11:03:00.000+05:302017-02-09T19:17:45.354+05:30एक छोटी सी कहानी - मेरी जुबानी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">बात वर्षों पुरानी है ! धीरे धीरे कर के ,बंगलौर से सारे दोस्त विदेश या देश के दुसरे प्रांत जाने लगे थे ! हम अमित के साथ मल्लेश्वरम सर्किल पर रहते थे ! अमित को कलकत्ता में नौकरी लग गयी थी ! एक दोपहर उसको विदा करने बंगलौर स्टेशन पर जाना हुआ ! भारी मन से उसको विदा कर के प्लेटफार्म से बाहर निकला ही की नज़र पडी एक जानी पहचानी सूरत पर ! वो थे एक , बचपन के जान पहचान पर उम्र में एक दो साल छोटे , रिश्ते में चाचा / दादा कर के कुछ लगते थे लेकिन मै उनको नाम से ही पुकारता था ! गले मिले ! छोटा कद , काफी गोरा रंग और नीली आँखें , बेहद मीठी जुबान ! वहीँ भोजपुरी में ही बात चित शुरू हो गयी ! तुम कहाँ तो तुम कहाँ ! तुम कब से इस शहर में तो तुम कब से इस शहर में ! वो वहीँ के एक बेहतरीन विश्वविद्यालय में पढ़ते थे जो शहर से कुछ दूरी पर था ! </span></span></div>
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">अगले ही शाम महाशय मेरे डेरा / रूम पर पधार गए ! सुबह के बासी बचे अखबारों के पन्नों में उलझा हुआ था ! गप्प हुआ ! थोड़ा और शाम हुआ ! वो मेरे आगंतुक थे सो मैंने उन्हें डिनर पर इनवाईट किया ! उनको डिनर के लिए हाँ करने में माइक्रो सेकेण्ड भी नहीं लगा ! मैं अपना नया चमचमाता बजाज चेतक निकाला और वो भी बड़े हक से पीछे बैठ गए ! उनदिनों , इन्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साईंस के जिमखाना का रेस्त्रां मेरा पसंदीदा डिनर स्थल था ! कलेजी फ्राई , मटन के साथ कुछ एक वहीँ के एमटेक के विद्यार्थी दोस्त होते थे ! महाशय भी मेरे दोस्तों से मिल खुश हुए ! मेरे साथ वो भी कलेजी फ्राई चांपे ! फिर वो बस पकड़ अपने विश्वविद्यालय के लिए निकल पड़े और मै अपने रूम / डेरा पर ! </span></span></div>
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">अब धीरे - धीरे उनकी फ्रीक्वेंसी बढ़ने लगी ! कभी किसी इतवार वो सुबह ही आ जाते ! इतना मधुर बोलते ! मेरी बडाई में कोई कोई कसर नहीं छोड़ते ! एक आध सप्ताह बाद - बड़े कॉन्फिडेंस से वो मेरा स्कूटर भी उधार मांग लेते - एक सुबह लेकर जाते तो देर शाम लौटाते </span><i class="_4-k1 img sp_KzR5XM7-sC1 sx_8ca36d" style="background-image: url("https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/ye/r/pDlbZpaIRLH.png"); background-position: 0px -7837px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; line-height: 19.32px; text-align: left; vertical-align: -3px; width: 16px;"><u style="display: inline !important; left: -999999px; position: absolute; text-align: justify;">frown emoticon</u></i></span></div>
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">पर बोलते इतना मीठा थे की मुझे लगता की वो मेरा स्कूटर लेकर मुझ पर कोई उपकार किये हैं ! मै अपने स्कूटर की चावी उनके हाथ में देते हुए बहुत खुश हो जाता था , कोई तो इस अनजान शहर में है जो मुझे इतना भाव देता है ! </span></span></span></div>
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">मेरी तनखाह सात तारिख को मिलती थी , एक सात तारीख वो शाम पदार्पण लिए ! थोड़े मायूस थे ! अचानक से वो मुस्कुराने लगे और सीधे बड़े हक से मुझसे पांच हज़ार मांग दिए ! संकोच / लिहाज से परिपूर्ण मेरा व्यक्तित्व ना नहीं कह सका और और अगले दिन मैंने उनको बैंक में बुला लिया ! मेरी ज्यादा दिन की नौकरी नहीं थी , घर परिवार में लोगों को मदद करते देखा था ! मुझे ऐसा महसूस हुआ - मै भी दो पैसा का आदमी हो गया हूँ - कोई मुझसे भी मदद मांग रहा है - इसी भावना से ओत प्रोत होकर मैंने उस जमाने में उनके हाथ में पांच हज़ार पकड़ा दिए ! वो उस दिन फिर से मेरा स्कूटर भी मांग लिए ! मै ना नहीं कह सका ! तीन दिन बाद स्कूटर लौटाए ! </span><i class="_4-k1 img sp_KzR5XM7-sC1 sx_8ca36d" style="background-image: url("https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/ye/r/pDlbZpaIRLH.png"); background-position: 0px -7837px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; line-height: 19.32px; text-align: left; vertical-align: -3px; width: 16px;"><u style="display: inline !important; left: -999999px; position: absolute; text-align: justify;">frown emoticon</u></i></span></div>
<blockquote class="tr_bq">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span style="background-color: white; text-align: justify;">उनदिनों अपने कॉलेज के दोस्तों के अलावा मै किसी और से ज्यादा और जल्दी नहीं खुलता था ! फिर भी एक रोज मैंने उनसे कहा - आप दिखने में किसी हीरो से कम नहीं , क्यों नहीं मोडलिंग करते हैं - साथ ही अपनी कुछ गीत / ग़ज़ल / नाटक की कहानी सुनायी ! जबाब आया - पिछले साल ही 'फेमिना' में मेरी फोटो छप चुकी है !</span><span style="background-color: white; text-align: justify;"> मै और खुश हुआ - जिस आदमी का फेमिना में फोटो छपी वो इंसान मेरे रूम पर इतनी आसानी से आ जा रहा है ! पैसा और स्कूटर को लेकर जो हलचल मेरे मन में हो रही थी - वो सब एक पल में ख़त्म हो गया ! लगा धन्य हो गया , ऐसे मित्र को पाकर :) </span></span></blockquote>
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">एक दो महीने बीते , मेरा पैसा वापस नहीं हुआ ! मन में हल्की बेचैनी लेकिन 'फेमिना' के मॉडल के नाम पर , मेरे मन के बुरे ख्याल ख़त्म हो जाते ! यही सोचता - इतना हाई प्रोफाईल नौजवान - कितना झुक कर मुझसे मिलता है , जरुर से व्यक्तित्व बहुत बड़ा होगा ! </span></span></div>
<blockquote class="tr_bq" style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">फिर वो अचानक से एक दिन बोल बैठे - तुम्हारा भी फोटो फेमिना में छपवा देंगे ! मै एकदम से हडबडा गया ! अचानक से कल्पना की दुनिया में खो गया ! मुझे पटना के अपने जमाने की 'मुचुअल क्रश' , सब के सब देहाती लगने लगी ! अब मेरी तस्वीर वेल्हम, मेयो और ऋषि वैली के गर्ल्स होस्टल के दीवार पर लगेगी - 'जो जीता वही सिकंदर' की आयशा जुल्का की जगह पूजा बेदी ख्वाबों में नज़र आने लगी ! ऐसे न जाने कितने ख्याल हर पल आने लगे ! अब मै सड़क पर तन के भी चले लगा ! ऐसे वैसों से निगाहें मिलाने का ख्याल - मैं मन ही मन ही एक कुटील मुस्कान देने लगा ! 'चल हट टाईप' एक्सप्रेशन मेरे चेहरे पर आ जाता ! सकरात्मक सोच में डूबा हुआ मै - नौकरी भी घटिया लगने लगी ! अब मै महज कुछ दिनों का मेहमान !</span></span></blockquote>
<span style="background-color: white; font-family: "courier new", courier, monospace; text-align: justify;">फोटो सेशन का दिन तय हुआ - एक रविवार सुबह ! उन्होंने कहा की पहले राऊंड में वो खुद मेरी तस्वीर खींचेंगे , दुसरे राऊंड में फेमिना का फोटोग्राफर खिंचेगा ! कैमरा का इंतेज़ाम भी वही करेंगे , बस रील का खर्च मुझे देना होगा ! मै एकदम से अक्षय कुमार के पोज में डेनिम जैकेट और टाई पहन बंगलौर विधानसभा और एमजी रोड पर - अनगिनत फोटो खिंचवाया , गजब गजब का पोज , ब्रिगेड रोड के मॉल में - कैप्सूल लिफ्ट में , कभी गर्दन टेढ़ा तो कभी गर्दन सीधा , कभी रेलिंग पकड़ के तो कभी किसी को घूरते हुए , कभी टाई तो कभी शर्ट का दो बटन खुला हुआ ! उसी झोंक में मैंने एक नया रे बैन भी ले लिया था , नौकरी के लिए निकलते वक़्त , माँ ने जो पैसे दिए थे वो रे बैन को भेंट चढ़ गया ! एक रेमंड का सूट का भी इंतजाम हुआ ! फोटो खिंचवाने के दिन सुबह चार बजे ही जाग गया था ! बूट पर - दे पॉलिश ...दे पॉलिश ...दे पॉलिश :) मेरी किस्मत जो खुलने वाली थी ! उस वक़्त उनको दिए हुए पांच हज़ार याद में आते तो मुझे खुद ग्लानी होती !</span><br />
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">सुबह के वक़्त एमजी रोड पर फोटो खिंचवाते हुए , मुझे ऐसा लग रहा था जैसे की अब बस अगला साल सोनाली बेंद्रे मुझे प्रोपोज कर देगी ! तब वो बहुत बढ़िया लगती थी ! थोड़ा अलग सा क्लास नज़र आता था ! काल्पनिक व्यक्ती को और क्या चाहिए ! मन ही मन सोचता - वो महाशय मुझसे पांच हज़ार ही क्यों मांगे, मुझे लगा ऐसे महाशय के लिए तो दस बीस हज़ार भी कम हैं जो मुझे दुनिया की उस कक्ष में स्थापित करने को तैयार था - जो मेरी कल्पना से परे था ! अब वो मेरे लिए किसी भगवान् से कम नहीं थे ! </span></span></div>
<blockquote class="tr_bq">
<span style="background-color: white; text-align: justify;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">अब वो रोज शाम आने लगे , हम भी थोड़े खुल गए ! हर शाम एक ठंडी बियर और चिकेन फ्राईड राईस और उनकी मीठी बोली ! हम हर वक़्त खुद को धन्य समझते जो इस अनजान शहर में , कोई तो मिला ! वरना दफ्तर में रोज मैनेजर की गाली ही मिलती ! रोज कल्पना करता - बड़ा मॉडल बन जाऊंगा तो एक दिन बड़ी गाडी से इसी दफ्तर में आऊँगा तो मेरा मेनेजर मुझे देख अपनी सीट खाली करेगा ! पटना जायेंगे तो घर में ही रहेंगे , कोई मोहल्ला - गली का चक्कर नहीं काटेंगे - जैसे ख्याल , ख्यालों की दुनिया ने मुझे अन्दर ही अन्दर वजनदार बना दिया था ! भगवान् की कृपा से नाक नक्श ठीक ही था , बस लम्बाई छः फीट वाली नहीं थी ! </span></span></blockquote>
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><i class="_4-k1 img sp_KzR5XM7-sC1 sx_4f1287" style="background-color: white; background-image: url("https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/ye/r/pDlbZpaIRLH.png"); background-position: 0px -8058px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; line-height: 19.32px; vertical-align: -3px; width: 16px;"><u style="left: -999999px; position: absolute; text-align: justify;">smile emoticon</u></i><span style="background-color: white; line-height: 19.32px;"></span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><br /></span></div>
<br />
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;"><span style="line-height: 19.32px;"><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">माँ के मार्फ़त पिता जी को भी खबर भेजवा दिया - अभी कुछ दिन मेरी शादी की बात चीत रुकवा दी जाए और कम से कम पटना / बिहार में तो कदापि नहीं ! ...कहाँ मेरा लीग / क्लास / स्टैण्डर्ड और कहाँ पटना के लोग ! पिछले दस ग्यारह साल से आँखों से सामने से गुज़री सारी लड़की लोग - एक नज़र में आ जाती , फिर मै कुटील मुस्कान देता , आईना में खुद को देखता और सोनाली बेंद्रे का गीत मेरे टू इन वन पर बजता - 'संभाला है मैंने - बहुत अपने दिल को - जुबाँ पर तेरा ही नाम आ रहा है ' :) अब बस मंजील एक ही नज़र आती ! </span></span></span></div>
<blockquote class="tr_bq" style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">अब मेरा कॉन्फिडेंस भी जाग गया था ! वीकएंड में , जिस एमजी रोड पर , माइक्रो और मिनी के तरफ देखने की चाहत ही धड़कन बढ़ा देती थी , अब मै किसी पब में घुस आँख में आँख डाल कर मुस्कुराता ! फेमिना मैगज़ीन खरीदाने लगा ! कबाड़ी के यहाँ से पुराने एडिशन भी , पर वो वाला एडिशन नहीं मिला जिसमे उस महाशय का फोटो छपा था ! कभी कुछ शंका आती तो लगता - ऐसा आदमी झूट थोड़े न बोलेगा , ऐसी सोच मेरे मन में ग्लानी ला देती ! जो इंसान मुझे इतना बड़ा अवसर दे रहा है उस इंसान के बारे में , मै इतना गलत कैसे सोच सकता हूँ :( </span></blockquote>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><br style="background-color: white;" /></span></div>
<div style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">रील साफ़ हुआ , कुछ फोटो ठीक आये , कुछ में कैमरा हील गया , कुछ में आधा काला और सामने से धुप !किसी में पीछे कोई तो किसी में मेरा कन्धा झुका तो किसी में गर्दन टेढ़ा ! </span></span><i class="_4-k1 img sp_KzR5XM7-sC1 sx_8ca36d" style="background-image: url("https://fbstatic-a.akamaihd.net/rsrc.php/v2/ye/r/pDlbZpaIRLH.png"); background-position: 0px -7837px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; font-family: "Courier New", Courier, monospace; height: 16px; line-height: 19.32px; text-align: left; vertical-align: -3px; width: 16px;"><u style="display: inline !important; left: -999999px; position: absolute; text-align: justify;">frown emoticon</u></i></div>
<blockquote class="tr_bq" style="background-color: white; text-align: justify;">
<span style="background-color: white; font-family: "courier new" , "courier" , monospace;">मन दुखी हुआ , बहुत दुखी ! संकोच से कुछ नहीं बोला और महाशय मेरा साफ़ किया हुआ रील लेकर निकल गए की फेमिना के लोकल फोटोग्राफर से बात करने ! </span><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">फिर वो लौट कर कभी मेरे पास नहीं आये 21 साल पहले ...पांच हज़ार का कुछ तो महत्व रहा होगा ...कई ख्याल आये ! बाद में पता चला ...उनका मै ही सिर्फ अकेला शिकार नहीं था ...और लोग भी अलग अलग ढंग से हुए ...आज वो पांच हज़ार चक्रवृधी ब्याज की तरह ..मालूम नहीं कितना होता ...:) </span></span><span style="font-family: "courier new" , "courier" , monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">हा हा हा हा ....उसी दौर की एक तस्वीर ...बंगलौर विधानसभा के सामने से ...हा हा हा हा </span></span></blockquote>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJPPAn8m3jOld1h5JweKhV3qwC2ZUtCpM574fW8spP4b0tDDlpgq40KGlvSmvXQBAIOk39r0SjK8eOBQA1PyCpTJWuk-ised8IXufJ5C2JoYwz5pqB1Ff0b7YGDTkhQhCqsPw6BjUuV9s/s1600/RR_Banglore.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJPPAn8m3jOld1h5JweKhV3qwC2ZUtCpM574fW8spP4b0tDDlpgq40KGlvSmvXQBAIOk39r0SjK8eOBQA1PyCpTJWuk-ised8IXufJ5C2JoYwz5pqB1Ff0b7YGDTkhQhCqsPw6BjUuV9s/s320/RR_Banglore.jpg" width="229" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">@RR</span></div>
</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-57327527925594200022017-02-09T10:35:00.001+05:302017-02-09T19:19:59.290+05:30धरा , प्रकृति और वसंत की आहट - एक संवाद<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
धरा - सखी , ये किसकी आहट है ? </div>
<div>
प्रकृति - ये वसंत की आहट लगती है ..</div>
<div>
धरा - कौन वसंत ? हेमंत का भाई ऋतुराज वसंत ? </div>
<div>
प्रकृती - हाँ , वही तुम्हारा ऋतुराज वसंत ...:)) </div>
<div>
धरा - और ये शिशिर ? </div>
<div>
प्रकृति - वो अब जाने वाला है ...</div>
<div>
धरा - सुनो , मैं कैसी दिख रही हूँ ...</div>
<div>
प्रकृति - बेहद ख़ूबसूरत ...</div>
<div>
धरा - सच बोल रही हो ...न..</div>
<div>
प्रकृति - मैंने कब झूठ बोला है ...</div>
<div>
धरा - ऋतुराज के साथ और कौन कौन है ...</div>
<div>
प्रकृति - कामदेव हैं ...</div>
<div>
धरा - ओह ...फिर मुझे सजना होगा ...</div>
<div>
प्रकृति - मैंने तुम्हारा शृंगार कर दिया है ...</div>
<div>
धरा - वो कब और कैसे ...</div>
<div>
प्रकृति - सरसों के लहलहाते खेतों से ..आम्र की मंजरिओं से ...</div>
<div>
धरा - सुनो , फागुन भी आएगा ..न ...</div>
<div>
प्रकृति - तुम बुलाओ और वो न आए ...:)) </div>
<div>
धरा - अबीर के संग आएगा ? </div>
<div>
प्रकृति - गुलाल के संग भी ...</div>
<div>
धरा - सुनो ..मेरा और शृंगार कर दो ...</div>
<div>
प्रकृति - सूरज की नज़र लग जाएगी ...</div>
<div>
धरा - सुनो ..ये ऋतुराज वसंत कब तक रुकेंगे ? </div>
<div>
प्रकृति - कहो तो ...पूरे वर्ष रोक लूँ ...</div>
<div>
धरा - नहीं ...नहीं...सच बताओ न ...</div>
<div>
प्रकृति - चैत कृष्ण पक्ष तक तो रुकेंगे ही ...</div>
<div>
धरा - कामदेव कहाँ हैं ? </div>
<div>
प्रकृति - तुम्हारे नृत्य का इंतज़ार कर रहे हैं ...</div>
<div>
धरा - थोड़ा रुको ...कब है नृत्य...</div>
<div>
प्रकृति - वसंत पंचमी को ...</div>
<div>
धरा - सरस्वती पूजन के बाद ? </div>
<div>
प्रकृति - हां ...</div>
<div>
धरा - सरस्वती कैसी हैं ? </div>
<div>
प्रकृति - इस बार बड़ी आँखों वाली ...</div>
<div>
धरा - और उनका वीणा ? </div>
<div>
प्रकृति - उनके वीणा के धुन पर ही तुम्हारा नृत्य होगा ...</div>
<div>
धरा - सुनो ...मेरा और शृंगार कर दो ...</div>
<div>
प्रकृति - कर तो दिया ...</div>
<div>
धरा - नहीं ...अभी घुँघरू नहीं मिले ...</div>
<div>
प्रकृति - वो अंतिम शृंगार होता है ...</div>
<div>
धरा - फिर अलता ही लगा दो ...</div>
<div>
प्रकृति - सारे शृंगार हो चुके हैं ...</div>
<div>
धरा - फिर नज़र क्यों नहीं आ रहा ...</div>
<div>
प्रकृति - जब ऋतुराज आते हैं ...धरा को कुछ नज़र नहीं आता ...</div>
<div>
धरा - कहीं मै ख्वाब में तो नहीं हूँ ...</div>
<div>
प्रकृती - नहीं सखी ...हकीकत ...वो देखो तुम्हारा सवेरा ...</div>
<div>
धरा - दूर से आता ...ये कैसा संगीत है ...</div>
<div>
प्रकृती - कामदेव के संग वसंत है ...ढोल - बताशे के संग दुनिया है ...</div>
<div>
धरा - मेरा बाजूबंद कहाँ है ...? </div>
<div>
प्रकृती - धरा को किस बाजूबंद की जरुरत ? </div>
<div>
धरा - नहीं ...मुझे सोलहों श्रृंगार करना है ..मेरी आरसी खोजो ..</div>
<div>
प्रकृती - मुझपर विश्वास रखो - मैंने सारा श्रृंगार कर दिया है ...</div>
<div>
धरा - नारी का मन ..कब श्रृंगार से भरा है ..</div>
<div>
प्रकृती - चाँद से पूछ लो ...:))</div>
<div>
धरा - सुनो ...ऋतुराज आयें तो तुम छुप जाना ...आँगन के पार चले जाना ...</div>
<div>
प्रकृती - जैसे कामदेव में ऋतुराज समाये - वैसे ही तुम में मै समायी हूँ ...</div>
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धरा - नहीं ...तुम संग मुझे शर्म आएगी ...</div>
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प्रकृती - मुझ बिन ..तुम कुछ भी नहीं ...</div>
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धरा - सखी ..जिद नहीं करते ...</div>
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प्रकृती - मै तुम्हारी आत्मा हूँ ...आत्मा बगैर कैसा मिलन ..</div>
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धरा - फिर भी तुम छुप जाना ...मेरे लिए ...ऋतुराज वसंत के आगमन पर ....:)) </div>
<div>
..................</div>
<div>
~ RR / 09.02.2016 </div>
</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-31564356321684619592017-02-05T11:07:00.000+05:302017-02-05T11:42:37.225+05:30माँ ~ कुछ यादें ...कुछ शब्द <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjU8rzFV9SESUpdgO6xwdaiYxjdtfe4hexI8lAKCSuvRKtT5E21XczgMsIW1SQ8oCYsiSYb9hkLilSbYOV_QmNe86tdIPTa3gl0mIgByxWduP5rFa5PEvtMT01FYYDujTxIjVHb4ShcBoM/s1600/Maa.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjU8rzFV9SESUpdgO6xwdaiYxjdtfe4hexI8lAKCSuvRKtT5E21XczgMsIW1SQ8oCYsiSYb9hkLilSbYOV_QmNe86tdIPTa3gl0mIgByxWduP5rFa5PEvtMT01FYYDujTxIjVHb4ShcBoM/s320/Maa.jpg" width="240" /></a></div>
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span>
<div style="text-align: center;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> माँ ( 8th May 1949 - 5th Feb 2013 ) </span></div>
<br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ , </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">आज शाम माँ अपनी यादों को छोड़ हमेशा के लिए उस दुनिया में चली गयीं - जहाँ उनके माता पिता और बड़े भाई रहते हैं ! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">पिछले बीस जनवरी को माँ का फोन आया था ...मेरी पत्नी को ...रंजू से कहना ...हम उससे ज्यादा उसके पापा को प्रेम करते हैं ...हम माँ से मन ही मन बोले ...माँ ..खून का रिश्ता प्रेम के रिश्ते से बड़ा होता है ...वो हंसने लगी ..अगले दिन भागा भागा उनके गोद में था ...जोर से पकड़ लिया ...माँ को रोते कभी नहीं देखा ...उस दिन वो रो दीं ...! आजीवन मुझे 'आप' ही कहती रहीं ....कई बार टोका भी ...माँ ..आप मुझे आप मत बुलाया कीजिए ...स्कूल से आता था ...शाम को ...चिउरा - घी - चीनी ...रात को चिउरा दूध ...मीठा से खूब प्रेम ...तीनो पहर मीठा चाहिए ...छोटा कद ..पिता जी किसी से भी कहते थे ...एकदम मिल्की व्हाईट ...रंजू के रंग का ....पटना पहुँचता था ...खुद से चाय ...कई बार बोला ..माँ आप कितना चाय पीती हैं ...मुझे भी यही आदत ...आठ साल पहले ...गर्भाशय का ओपरेशन ...होश आया ...जुबान पर ...रंजू ...पापा को चिढाया था ...माँ आपसे ज्यादा मुझसे प्रेम ....</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">शादी के पहले और शादी के बारह साल तक ..कभी प्याज़ लहसुन नहीं ....पापा अपनी गृहस्थी बसाए ...पहले ही दिन मछली ...माँ रोने लगीं ..कहने लगीं ...मछली की आँखें मुझे देख रही हैं ...करुना ...यह सब मैंने आपसे ही सिखा था ....</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ...आपसे और क्या सिखा ...बर्दास्त करना ...मन की बात जुबान तक नहीं लाना ...किसी भी समस्या के जड़ पर पहुँच ...सामने वाले को माफ़ कर देना ...माँ ..आप मुझे हिंदी नहीं पढ़ाई ...पर खून को कैसे रोक सकती थी ...बहुत मन था ...जो लिखता हूँ ...आप पढ़ती ...फिर अशुद्धी निकालती ....फिर मेरी सोच देख बोलतीं ...रंजू आप कब इतने बड़े हो गए ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">आपका तानपुरा ...शास्त्रीय संगीत ...कुछ भी तो नहीं सिखाईं ...खून ..आ गया ...बिना सीखे ..संगीत की समझ ....</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">मेरी शादी के दिन आप कितना रोयीं थी ....आप उस दिन बड़ी हुई थीं ...आज आपको खोकर मै बड़ा हो गया ...माँ ..जाने के पहले एक बार भी मन नहीं किया ...रंजू से बात कर लें ...हमदोनो कितना कम बात करते थे ...याद है ...आपके साथ कितना सिनेमा मैंने देखा है ...जुदाई / आरज़ू / दिल ही तो है..जया भादुड़ी ...अभिमान का रिकोर्ड ..रोज सुबह बजाना .. ...सिर्फ आप और हम ...पापा को आप पर कभी गुस्साते नहीं देखा ...बहुत हुआ तो ...रंजू के महतारी ..एने वोने सामान रख देवे ली ...पापा तो सब कुछ छोड़ दिए आपके लिए ...आप उनको अकेला क्यों छोड़ दीं ...बोलिए न ....इस प्रेम के रिश्ते में बेवफाई कहाँ से आ गई...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"> कई सवाल अभी बाकी है ...कल सुबह पूछूँगा ...</span><br />
<span style="font-family: arial, helvetica, sans-serif;"><br /></span>
<span style="font-family: arial, helvetica, sans-serif;">~ <b> 5 फ़रवरी , 2013 </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">हर किसी की एक 'माँ' होती है - मेरी भी माँ थीं ...पिछले साल आज के ही दिन वो मुझे छोड़ अपने माता - पिता - भाई के पास चली गयीं .....यादों के फव्वारे में जब सब कुछ भींग ही गया ...फिर इस कलम की क्या बिसात ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ ने जो खिलाया ..वही स्वाद बन गया ..जो सिखाया वही आंतरिक व्यक्तित्व बन गया ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">'माँ' विशुद्ध शाकाहारी थी - दूध बेहद पसंद - दूध चिउरा / दूध रोटी और थोड़ा छाली ..हो गया भोजन :) सुबह चाय - शाम चाय - दोपहर चाय - जगने के साथ चाय - सोने के पहले चाय ..चीनी और मिठाई बेहद पसंद ...बचपन में मेरे लिए चीनी वाला बिस्कुट आता था - दोनों माँ बेटा मिल कर एक बार में बड़ा पैकेट ख़त्म :) बिना 'मीठा' कैसा भोजन ...:)) </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">मात्र आठ - नौ साल की उम्र में वो अपने पिता को खो बैठीं - जो अपने क्षेत्र के एक उभरते कांग्रेस नेता थे - श्री बाबु के मुख्यमंत्री काल में - श्री बाबु के ही क्षेत्र में - उनके स्वजातीय ज़मींदार की हत्या अपने आप में बहुत बड़ी घटना थी - परिवार से लेकर इलाका तक दहल चूका था - मैंने 'माँ' के उस अधूरे रिश्ते को बस महसूस किया - कभी हिम्मत नहीं हुई - 'माँ' आपको तब कैसा लगा होगा ...यह बात आज तक मेरे अन्दर है - कभी कभी माँ हमको बड़े गौर से देखती थीं - फिर कहती थी - 'रंजू ..आपको देख 'चाचा' की हल्की याद आती है' ...वो अपने पिता जी को चाचा ही कहती थीं ...हम सर झुका कर उनके पास से निकल जाते थे ...प्रेम की पराकाष्ठा...स्त्री अपने पुत्र में ..पिता की छवी देखे ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ तो माँ ही हैं ...किस पहलू को याद करूँ या न करूँ ...एक सम्पूर्ण प्रेम ...फिर एक पुरुष आजीवन उसी प्रेम को तलाशता है ...जहाँ कहीं 'ममता की आंचल' की एक झलक मिल गयी ...वह वहीँ सुस्ताना चाहता है ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ ..आप हर पल जिंदा है ..मेरे अन्दर ...!!! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">मेरा खुद का भी पिछला एक साल बेहद कमज़ोर और उतार चढ़ाव का रहा है ...वो सारे लोग जो जाने अनजाने मेरी मदद को आगे आये..कमज़ोर क्षणों में भी मेरी उँगलियों को पकडे रहे ...उन सबों को ...मेरी 'माँ' की तरफ से धन्यवाद ...! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">और क्या लिखूं ....:))) </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><b><br /></b></span>
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><b>~ 5 फ़रवरी , 2014 </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ , </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">कहते हैं - माँ अपने बच्चे को कभी अकेला नहीं छोड़ती - कभी गर्भ में तो कभी गोद में - कभी आँचल में तो कभी एहसासों में - कभी आंसू में तो कभी मुस्कान में ! औलाद भी तो कभी अपने माँ से अलग नहीं होती - कभी आँचल के निचे तो कभी ख्यालों में - कभी जिद में तो कभी मन में ...! </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ...बचपन में मेरे कान में दर्द होता था ...सारी रात एक कपडे को तावा पर गरम कर के ...आप मेरे कानो को सेंकती रहती थी ..अब मेरे कानों में दर्द नहीं होता ...क्योंकी अब आप नहीं...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ...आज आपका सारा पसंदीदा गाना सुना ...आम्रपाली का वो गीत ...'जाओ रे ..जोगी तुम जाओ रे ...' ऐसा लगा आप बोल उठेंगी ...रंजू ...फिर से दुबारा बजाईये ..न ...कोई बोला नहीं ...मैंने भी फिर से दुबारा बजाया नहीं...पर उस गीत के साथ आपकी गुनगुनाहट मैंने सुनी ...वहीँ धुन ...वही राग ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ...सारा दिन आपके यादों से सराबोर रहा...पापा ठीक से हैं...अपने काम धाम में व्यस्त ...हाँ ...घर से निकलते वक़्त ...आपकी तस्वीर को देखना नहीं भूलते ...जैसे अब आप बस उस तस्वीर में ही सिमट के रह गयी हैं...आपके जाने के बाद ..आपके आलमीरा को मैंने नहीं खोला ...पापा को देखता हूँ...वही खोलते हैं ...शायद आपकी खुशबू तलाशते होंगे ...आपके पीछे में भी आपको 'रंजू के महतारी' ही कहते हैं ...उनके लिए आपका कोई नाम नहीं है...क्या...सिवाय चिठ्ठियों के...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ...कभी कभी लगता है ...आप कहाँ होंगी ...किस रूप में होंगी ...कैसी होंगी ...एक बार और ...फिर से ...आपको देखने का मन करता है...सच में ...बस एक बार और...</span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><b>~ 5 फ़रवरी , 2015</b> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ , </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ , आज आपको गए आज तीन साल हो गया । </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">आज सुबह आपका काला शाल नज़र आया । ओढ़ लिया - बहुत सकून मिला । माँ , तीन साल हो गए लेकिन अभी भी उस शाल से आपकी ख़ुशबू नहीं गयी । फिर वापस रख दिया - आपके तकिए के नीचे । माँ , जब मन बहुत बेचैन होता है - वहीं आपके पलंग के आपके जगह पर सो जाता हूँ - दिन में नहीं सोता फिर भी सो जाता हूँ । हर साल कश्मीरी आता है - हर साल पूछता है - आंटी नहीं हैं - हर साल बोलता हूँ - नहीं हैं । भूल जाता है - इस बार नहीं पूछा - चुपके से एक काला शाल मेरे हाथों में रख दिया । </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">शाम हो गयी गई है - चाय की याद आयी - मन किया आपके लिए भी एक कप बना दूँ - बिना चीनी वाली । </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">आपके जाने के बाद - आपका आलमिरा नहीं खोला - हिम्मत नहीं हुई । शायद लॉक ही है - पापा को भी उस आलमिरा को खोलते कभी नहीं देखा । आपका एक पोंड्स ड्रीमफ्लावर पाऊडर कई महीने वहीं टेबल पर रखा नज़र आया , फिर लगता है - किसी ने उसे आपके आलमिरा में रख दिया । </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">माँ , आपके जाने के बाद - ज़िंदगी पूरी तरह बदल गयी या जहाँ आप छोड़ कर गयीं - वहीं ठहर गयी - कुछ नहीं कह सकता । </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">अब आप बेवजह परेशान होने लगी ....रुकिए ...जया भादुड़ी का एक गीत अपने यूटूब पर सुनाता हूँ ...नदिया किनारे हेरा आई ...</span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><b>~ 5 फ़रवरी , 2016 </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<br /></div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-32466270908782374992016-11-21T17:10:00.004+05:302016-11-21T17:10:36.582+05:30गहने ...कुछ यूँ ही ...:))<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">पुरुष के गहने अलग होते हैं और स्त्रीओं के गहने अलग होते हैं । क्रोध , अहंकार / स्वाभिमान / अभिमान , युद्ध , ज़ुबान , छल इत्यादि पुरुष पर ही शोभा देते हैं । 'अभिमान' देखा है ? अमिताभ पर वह अभिमान शोभा देता है - जया ने उस अभिमान को कभी नहीं पहना - पूरे सिनेमा नहीं पहना । कभी किसी पुरुष को पूर्ण प्रेम करते नहीं देखा - कुछ न कुछ वो छल मिलाएगा ही ! वही छल एक स्त्री को आकर्षित करता है ! कल्पना कीजिए - कोई स्त्री छल सीख ले , फिर क्या होगा ? उसके पास प्रकृति ने एक ऐसी शक्ति दे रखी है - जिससे वो पुरे ब्रह्माण्ड के पुरुष को नियंत्रीत कर लेगी ! लेकिन पुरुष का छल उसे स्त्री का प्रेम लाता है वहीँ स्त्री का छल उसकी इज्जत खा जाती है ! मूलतः स्त्री 'फेक ओर्गेज्म' करती है - अपने पुरुष के अहंकार को शांत करने के लिए वहीँ पुरुष 'फेक रिलेशनशिप' रखते हैं - अपनी वासना के शिकार होने वाली स्त्री को करीब लाने के लिए ! पर कल्पना कीजिए - स्त्री फेक रिलेशनशिप बनाए और पुरुष फेक ओर्गेज्म रखे ...आप अन्दर तक हिल जायेंगे ! पर एक उम्र के बाद - पुरुष भी फेक ओर्गेज्म सीख जाते हैं और स्त्री भी फेक रिलेशनशिप सीख जाती है ! प्रकृति के विरूद्ध जा कर इंसान अपनी दिशा और दशा खुद तय करना चाहता है ! यह एक जिद है जिद के बाद एक स्वभाव और उसके बाद संस्कार ! लेकिन स्त्री पुरुष एक दुसरे के गहने पहनने लगे - बड़े ही गंदे दिखेंगे ! </span></div>
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; line-height: 19.32px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">प्रेम , ईर्ष्या , ग़ुरूर , माफ़ी इत्यादि स्त्रीओं के गहने हैं । कभी किसी पुरुष को ईर्ष्या करते देखा है ? अगर वो ईर्ष्यालु है तो उसे अन्य पुरुष अपनी जमात से निकाल देंगे । कभी किसी पुरुष को प्रेम करते देखा है ?</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;"> प्रेम करेगा तो वह ख़त्म हो जाएगा , वह किसी भी काम लायक नहीं रह जाएगा । वह अपने अहंकार को झुकाता है - स्त्री के क़दमों तक अपने अहंकार को ले जाता है - लेकिन मारता नहीं है - स्त्रीप्रेम में वह मूलतः अपने अहंकार को झुका कर अपने अहंकार की ही तृप्ति करता है । </span><span style="line-height: 19.32px;">स्त्री पर उसे अपने हुस्न का 'ग़ुरूर' शोभा देता है - अहंकार नहीं । अहंकार भद्द दिखता है - प्रकृति के ख़िलाफ़ दिखता है ।</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span><span style="line-height: 19.32px;">स्त्री ज़ुबान की पक्की हो गयी तो उसका बहाव रुक जाएगा । नदी की शोभा तभी है जब तक वह बहती रहे ।</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span><span style="line-height: 19.32px;">यह ज़रूरी नहीं कि आप सारे गहने पहन कर ही निकलें - लेकिन जो भी पहनिए - अपने हिसाब से पहनिए ...अपने उम्र , लिंग , सामाजिक स्तर ,कूल खानदान के हिसाब से पहनिए - सुन्दर दिखेंगे :)) </span></div>
</span><br />
@RR</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-36966678257107290602016-10-18T16:11:00.000+05:302016-10-18T16:11:35.995+05:30नवरात्र 2015<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">आज से नवरात्र शुरू हो गया ! देवी के न जाने कितने रूप - जितने शक्ती के श्रोत - उतने ही देवी के रूप ! एक नर किस किस रूप की आराधना करे - किस किस रूप पर खुद को सम्मोहित करे - किस किस रूप की पूजा करे ...:)) थक हार कर एक नर देवी के तीन रूप - लक्ष्मी , सरस्वती और काली के इर्द गिर्द खुद को सौंप देता है ! और इन तीनो रूप में एक बनी - दुर्गा के चरणों में - नवरात्र शुरू हो जाता है ...:)) </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">बगैर शक्ती तो इस संसार में एक पल भी रहना मुश्किल है ! शक्ती की क्या विवेचना की जाए</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">? शक्ती है तभी तो कलम चल रही है - शक्ती है तभी तो आँखें खुली है - शक्ती है तभी तो दुनिया झुकी है ..:)) शक्ती के जितने रूप उतनी चाहतें ! अब यह आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करेगा - आपको शक्ती का कौन सा रूप अपने अन्दर समाहित कर के खुद को पूर्ण करना है ! ज़िंदगी तो यही है न - खुद को पूर्णता के तरफ ले चलना ! खुद को खाली करना और हमेशा खुद को भरते रहना - पग पग / डेग डेग - हर पल एक कदम !<br />शक्ती अकेले नहीं आती - अपने साथ एक अहंकार को पीछे पीछे लाती है ! जब तक वह अहंकार पीछे पीछे घूमता है - शक्ती आपके अन्दर समाहित रहती है - जिस दिन वह अहंकार शक्ती के आगे खडा हो जाता है - दुर्गा उसी दिन आपके अन्दर से निकल जाती है ! शक्ती की शोभा तभी है जब अहंकार पीछे खडा हो ! अहंकार के बगैर भी शक्ती अपूर्ण है ! लेकिन पीछे खडा - शक्ती की सुरक्षा में ..:)) अहंकार को पीछे जीवित रखना और शक्ती के साथ इस जीवन को आनंदित रखना एक कला है या एक समझ है !<br />फिलहाल ...मै आनंदित हूँ ...जब जब फुर्सत मिलेगा ...कुछ लिखूंगा ...आपको भी फुर्सत मिले ...पढ़ते रहिएगा ...अपने अन्दर के शक्ती को जागृत किये हुए - इस नवरात्र ...:))<br />~ रंजन , 13 अक्टूबर - 2015</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">स्कूल के दिनों की एक बात याद आ रही है ! हम चार दोस्त एक बेंच पर बैठते थे - तीस साल पुरानी बात है ! मै , मृत्युंजय , दीपक अगरवाल , वर्मा और एक कक्कड़ ! कक्कड़ के पैरों में पोलियो की बीमारी थी ! वो बैसाखी के सहारे चलता था ! एकदम दिवार से सटे बैठता था ! पर उसकी भुजाओं में बहुत ताकत थी ! हाथ मिलाने वाले खेल में हम सभी उससे हार जाते थे ! चंद सेकेण्ड में परास्त कर देता था ..:)) काफी चौड़ा कन्धा भी था ! ईश्वर का खेल - जहाँ पैरों में कोई शक्ती नहीं वहीँ भुजाओं में असीम शक्ती ! </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">शायद बैसाखी के सहारे चलने से उसकी भुजाओं में ताकत आ गयी थी ! जो भी हो - पर मुझे उसका ताकतवर होना बढ़िया लगता था !<br />शायद यही कुछ हमारे साथ भी होता है ! जीवन के इस उम्र में - मैंने यही पाया है की - कई मोड़ पर / कई जगह मै खुद को शक्तीविहीन पाता हूँ - बिलकुल असहाय ! वहीँ कई दुसरे जगह असीम ऊर्जा और शक्ती के साथ रहता हूँ - जैसे इस ब्रह्माण्ड में मेरे जैसा कोई नहीं !<br />ये क्या है ? ऐसा क्यों है ? वही इंसान एक जगह काफी कमज़ोर और दूसरी जगह बेहद मजबूत ! अब दिक्कत तब होती है - जब जीवन लगातार उन्ही रास्तों पर आपको धकेल दे - जहाँ आप खुद को कमज़ोर पाते हैं ! धीरे - धीरे आप खुद को शक्तीविहीन पाने लगते हैं ! इन्सान भूल जाता है - उसका एक और पक्ष भी है - जहाँ उसके जैसा कोई नहीं !<br />तब शायद अन्दर से एक आवाज़ उठती है या कोई इंसान मिलता है - जो आपके दुसरे मजबूत पक्ष को बताता है ! अन्दर से आवाज़ उठना या किसी ऐसे मित्र का मिल जाना - नियती भी हो सकता है ! तब आप अपना रास्ता बदलते हैं और अपने शक्ती को पहचानते हैं और वहीँ से ऊर्जा से ओत प्रोत एक सूरज आपके जीवन में सवेरा लेकर आता है !<br />मैंने हमेशा कहा है - शब्दों में बहुत ताकत होती है ! पर यह भी अचरज है - जो इंसान एक के लिए सकरात्मक ऊर्जा से भरपूर शब्द बोलता है - वही इंसान किसी दुसरे के लिए नकरात्मक शब्द बोलता है ! पर जो भी हो - शब्द में असीम शक्ती है - नकरात्मक और सकरात्मक दोनों ! सीता और गीता / राम और श्याम सिनेमा तो देखे ही होंगे - गौर से देखिएगा - शब्दों के ताकत का प्रभाव व्यक्तित्व पर नज़र आएगा ...:))<br />यूँ ही कुछ लिख दिया ...फुर्सत में ...दो बार पढियेगा ..:))<br />~ रंजन , 14 अक्टूबर 2015 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">बचपन की बात है ! हमारे मुजफ्फरपुर घर / डेरा के ठीक बगल में कुम्हार 'रामानंद पंडित' का घर था ! वो बड़े बाबा के उम्र के थे और उनके लडके पापा - चाचा के उम्र के ! अक्सर उनके दरवाजे जाया करता था - उनको चाक चलाते देख बहुत बढ़िया लगता था ! </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">पूजा के कुछ महिना पहले उनके लडके पापा के पास आते थे - शायद मूर्ती बनाने के लिए पैसों के इंतजाम के वास्ते - क़र्ज़ के रूप में ! फिर वो मुजफ्फरपुर ज़िला स्कूल के ठीक बगल में बीस - पच्चीस मूर्ती बनाते ! स्कूल आते जाते या फिर शाम को उनके पास जाता था</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"> ! बांह मोड़ के उनके मूर्ती के पास खडा हो जाता ! लकड़ी के सपोर्ट से धान के पुआल से - फिर हर रोज थोडा चिकनी मिट्टी लगाते - हर एक रोज मूर्ती के स्वरुप में बदलाव आता था ! मुझे रामानंद पंडित के परिवार द्वारा बनाए हुए मूर्ती से एक अपनापन महसूस होता ! फिर एक दिन किसी ठेला पर मूर्ती को जाते हुए देखता और एक दो मूर्ती बच जाती - जो बच गयी उसका पूजन वह कुम्हार परिवार खुद से करता था ! वो पूरा दृश्य अभी मेरे आँखों के सामने से गुजर रहा है ...एक एक दिन का वह बदलाव !<br />जब तीन साल पहले २०१२ में दुर्गा पूजा को लेकर खुद की अभिरुची जबदस्त ढंग से जागी - तो गूगल पर ही पढ़ा - महालया की रात कुम्हार दुर्गा की मूर्ती के आँखों में 'रंग' भरते हैं - यह जानकारी मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं थी ! मैंने कल्पना किया - उस क्षण का जब एक कुम्हार अपने हफ़्तों की मेहनत की मूर्ती के आँखों में रंग भर के उसमे प्राण डालता होगा ! वो अमावास के मध्य रात्री का क्षण !<br />क्या कुम्हार को उस जीवित दुर्गा से प्रेम नहीं हो जाता होगा ? <span class="_47e3" style="font-family: inherit;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span> अन्तोगत्वा तो वह कुम्हार एक पुरुष ही होता है - खुद के ही बनाए उस भव्य रूप को को देख वह मोहित नहीं हो जाता होगा ! कभी सप्तमी के दिन किसी पंडाल में जाकर दुर्गा की आँखों में झांकियेगा ...:)) सब समझ में आ जायेगा ...प्रेम भाव के किस हद तक जाकर उस कुम्हार ने देवी की आँखों में सारी शक्ती डाल दी है ...:))<br />फिर इसी तीन साल के दौरान - अलग अलग बड़े बड़े पुजारी की रचनाओं को पढने का मौक़ा मिला ! कभी ललिता सहस्रनाम पढियेगा ! देवी के हर एक अंग की प्रसंशा की गयी है - जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका का करता है ! एक नारी अपने जितने गुणों के लिए जानी जायेगी - उन सभी गुणों का वर्णन है ..:))<br />ये क्या है ? कहीं यह एक सम्पूर्ण स्त्री की कामना तो नहीं ? कहीं यह वो स्त्री तो नहीं जो एक पुरुष की कल्पना में बसती है ? जो उसे प्रेम और सुरक्षा के घेरे में बाँध के रखती है ...<br />बहुत कुछ है - लिखने को ...बहत कुछ है समझने को ...:))</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">~ 15 Oct / 2015 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">प्लस टू में रहे होंगे ! रीडर्स डाईजेस्ट का शौक चढ़ा ! किसी एक अंक में 'स्टीफें हॉकिंग' के बारे में छपा था ! मै हैरान था - कोई इंसान जो बोल नहीं सकता है - जो चल नहीं सकता है वह 'फिजिक्स' में दुनिया का बेहतरीन गुरु है !</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">ये क्या है ? शक्ती का यह कैसा वरदान है ? गजब ! </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">मालूम नहीं शक्ती के कितने रूप हैं और यह किस कदर आती है - ईश्वरीय देन है या कर्मो से शक्ती का आगमन - शायद दोनों है ! इस संसार में दोनों को इज्जत है ! अगर कर्मरूपेण शक्ती और ईश्वरीय वरदान शक्ती दोनों का मिलन </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">एक जगह हो जाए फिर तो वह इंसान साक्षात 'शिव' है ..:))<br />पर शक्ती कहाँ विराजती है - जहाँ 'आनंद' है ! आप लाख पढ़ लिख ले - अगर आपको अपने किसी कर्म में आनंद महसूस नहीं हो रहा है - आप खुद को शक्तीविहीन पायेंगे ! सामाजिक प्लेटफार्म के बड़े से बड़े ओहदे पर पहुंह कर भी बगैर आनंद वाली शक्ती की कोई पूछ नहीं है ! प्रेम और रिश्ते में भी शक्ती होती है - मगर आप उसमे 'आनंद' नहीं महसूस कर रहे हैं फिर वो रिश्ता एक मृतक शरीर की तरह बदबू के साथ एक बोझ बन जाता है ! 'आनंद' शक्ती का प्राण होता है ! यह आनंद 'मन' से कंट्रोल होता है ! कई बार ऐसा देखा गया है - मन दुखी तो आनंद गायब और जैसे ही मन खुश वहां उसी जगह वापस से आनंद आया !<br />मन - आनंद - शक्ती ! यही सार है ! यह एक योग है ! यह एक साधना है ! स्टीफेन हॉकिंग एक दिन में स्टीफेन हॉकिंग नहीं बने होंगे - जीवन को एक साधना बना लिए होंगे - एक दिशा में लगातार बढ़ाते रहने से - अपने चंचल मन पर काबू पाते हुए - अपनी तमाम शारीरिक कमजोरी पर विजय पाते हुए - स्टीफेन हॉकिंग ...आज दुनिया में अनोखा नाम हैं ! पर बगैर देवी के आशीर्वाद के - शायद यह दिशा भी उनको नहीं मिली होगी ! या फिर उनके एकाग्र मन को देख 'देवी' उनके रास्ते को आसान बनाते चली होंगी !<br />अगर शक्ती का एहसास करना है - फिर आनंद को तलाशिये ! जैसे - मै लिखता हूँ - मुझे लिखते वक़्त आनंद महसूस होता है - और शायद आप में से कई यह मानेंगे की यही मेरी शक्ती है !<br />जैसा की मैंने पहले दिन लिखा था - शक्ती के ठीक पीछे 'अहंकार' खडा होता है ! शक्ती की मादकता इतनी तेज होती है - न जाने कम उस बेहोशी में 'अहंकार' सामने आ खडा होता है - फिर आप अहंकार को एन्जॉय करने लगते है - हमको यही लगता है की यही अहंकार मेरी शक्ती है - पर इस भ्रम में न जाने कब शक्ती चुपके से निकल जाती है !<br />कभी ध्यान से सोचियेगा ...बगैर शक्ती तो कोई इंसान इस धरती पर नहीं होता - कब और कैसे आपका अहंकार आपकी शक्ती को ख़त्म कर दिया - अपने जीवन के सफ़र को एक नज़र देखिएगा !<br />सफ़र जारी है - एक समझ हो जाने के बाद - खुद को नियंत्रीत करना ही - शक्ती को वश में रखना है ...शिव तो वही है ..न ..जो शक्ती को अपने अन्दर वश में रखे ...बाकी तो महिशाशुर हैं - जिनके विनाश के लिए दुर्गा का जन्म होता है ...<span class="_47e3" style="font-family: inherit;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">~ 16 Oct / 2015 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">ठीक दो साल पहले अपने पारिवारिक मित्र पंकजा से बात हो रही थी ! वो उस वक़्त तुरंत 'सेंसर बोर्ड' के चीफ / सीईओ से अपने तीन साल के कार्यकाल को समाप्त कर के फुर्सत में थीं ! उसी समय मैंने परोक्ष राजनीति में जाने का फैसला लिया था ! बात राजनीति से शुरू हुई और अचानक से मेरा एक प्रश्न - 'पावर ..क्या है ? ' ! पंकजा कुछ सेकेण्ड के लिए चुप हो गयीं फिर बोली - पावर यह नहीं है ..जो नज़र आ रहा है - फिर वो चुप हो गयी - फिरबोली- ये कुर्सी/ ओहदा / वर्दी पावर के प्रतीक हो सकते हैं लेकिन पा</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">वर नहीं , वर्दी , कुर्सी , ओहदा ख़त्म हो जाए फिर भी आपके ऊपर या आपके व्यक्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़े - वही असल पावर है - उनका इशारा साफ़ था - वो आंतरिक व्यक्तित्व की ओर इशारा कर रही थी !<br />एक महिला जो हमारी आपकी बैकग्राउंड से आती हैं - शादी के बाद परीक्षा दे कर 'आईपीएस' ( IPS ) के लिए चुनी जाए - सैकड़ों लोग चुने जाते हैं - फिर वहां से वो राजस्व सेवा ( IRS ) ज्वाइन करती हैं - फिर ऐसा संयोग बनता है वो सेंसर बोर्ड की सीईओ और वातावरण ऐसा की सारा बोर्ड उनके इर्द गिर्द ! मै उन्हें उस वक़्त - 'बॉलीवुड क्वीन' कहा करता था ! मुझे लगता है<br />- अपने कार्यकाल में वो सैकड़ों क्रिएटीव लोगों से मिली होंगी और उस दौरान वो खुद के स्तर पर वैसे लोगों के लिए अपने मन में एक इज्जत पैदा की होंगी - जहाँ से उन्हें यह महसूस हुआ होगा की - शक्ती कहाँ बसती है !<br />दस साल पुरानी जान पहचान है श्री अभय आनंद सर से ! साल में एक दिन हम उनसे मिलते हैं - काफी लम्बी और घंटो और वन टू वन बात होती है ! उनकी धर्मपत्नी डॉ नूतन भी बैठी होती है ! जब वो डीजीपी से हटे - मै उनसे मिलने गया ! वो होमगार्ड के डीजी थे ! उनसे भी मेरा वही सवाल - 'पावर ..क्या है ? ' ! वो भी चुप हो गए - पंकजा जैसा ही जबाब - 'पावर ..यह नहीं है ' ! मैंने उनसे पूछा - पावर ..किसके पास है ? वो बोले - जिसके पास है - या तो उसे पता नहीं है या वो खुद में उस पावर के साथ विलीन है ! <span class="_47e3" style="font-family: inherit;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span> खुद के आनंद में है !<br />फिर वो बोले - राजनेता के पास तो पावर होता ही नहीं है ! मैंने बोला - राजनेता को पावर का भ्रम होता है ! हम दोनों हंसने लगे ! पावर तो जनता के पास होती है !<br />अभी उनके घर गया - बातों बात अभय आनंद सर से बात वही - कौन शक्तीशाली ? दोनों पति पत्नी बैठे हुए थे ! मैंने कहा मैडम ज्यादा शक्तीशाली ! जबाब का कारण यही था - मै एक पैथोलोजिस्ट का बेटा - आजीवन पिता को सर्जन /.फिजिसियन / गायीनोकोलोजिस्त के इर्द गिर्द घुमते देखा ! मैंने तो डॉक्टर समाज को ही बड़ा माना ! पुलिस को क्यों नहीं ? मेरा जबाब सरल था - मेरे बाबा राजनीति में थे - जिले का पुलिस कप्तान उनको देख कुर्सी से उठ जाता था ! चाईल्ड साइकोलोजी ! मन में बस गया - सामाजिक वर्ण व्यवस्था में - राजनेता का कद बड़ा ! हा हा हा ...<br />आज पूरा विश्व अभय आनंद सर को सुपर थर्टी के जनक के रूप में जानता है - पुरे देश में घूम घूम कर पढ़ाते हैं - शायद वही असल पावर है <span class="_47e3" style="font-family: inherit;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span><br />बात वही है - आप किस कोण पर खडा है और चीज़ों को कैसे देख रहे हैं ! जो किसी और के लिए शक्तीशाली है -आपके लिए नहीं ...<br />यूँ ही कुछ - कुछ ...:))</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">~ 17 Oct / 2015 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">शक्ति की चाहत तो हर नर को होती है ! पर शक्ति के अनुरूप आपको 'शिव' बनना होगा ! शक्ति के आने का कोई फंडा नहीं है की सिर्फ शिव को ही शक्ति मिलेगी ! जो शिव का भेष-भूसा रखेगा - शक्ती उसके पास भी चली आयेगी ! जो उपासना करेगा - शक्ति वहां भी आ जायेगी ! </span><br style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">पर दिक्कत तब होती है जब शक्ति के अनुरूप 'शिव' का कद नहीं है ! शक्ति को अपने अन्दर समाहित तो कर लेंगे लेकिन शक्ति का दम घुटेगा ! जैसे ..मेरी भुजाओं में ताकत नहीं है और मुझे 'टीपू सुलतान' का भारी भरकम तलवार मिल जाए ! फिर क्या हो</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">गा ? वो तलवार कहीं से भी मेरी रक्षा नहीं कर पायेगा ! वो वरदान मेरे लिए श्राप बन जाएगा या फिर किसी के लिए भी !<br />अगर आपको इस संसार का अनुभव हो तो देखे होंगे - कई बार ऐसे लोग भी मिले होंगे - जिनके सर के ऊपर लक्ष्मी आयी और देखते देखते पैर से निकल गयी ! कहाँ दिक्कत रही होगी ? दिक्कत उस व्यक्तित्व के साथ है ! कई बार ऐसा भी होता है - शक्ति आयी कुछ देर रुकी और उनके रुकने के क्रम ही उस इंसान ने अपने व्यक्तित्व में विस्तार किया और शक्ति लम्बे समय के लिए रुकी रही !<br />ऐसे कई उदहारण आपको 'राजनीति' में मिल जायेंगे !<br />ये सारी बातें - शक्ति के किसी भी रूप पर लागू हो सकती है ! आप जिस रूप को शक्ति मानते हैं - वही इन बातों को लागू कर के देखिएगा !<br />जब शक्ति समाहित हो जाए फिर शक्ति प्रदर्शन कम से कम होना चाहिए ! शक्ति नज़र आनी चाहिए - संसार को दिखनी चाहिए लेकिन उसका प्रदर्शन नहीं होना चाहिए ! शक्ति अन्दर की दुनिया में शोभा देती है और शिव बाहर की दुनिया में होते हैं ! शक्ति प्रदर्शन में ही शक्ती 'चौखट' पार कर देती हैं - वहीँ से फिर सारी दिक्कत शुरू हो जाती है ! यहीं पर शक्ति के अनुरूप आपको शिव बनना होगा ! वरना भटकी हुई शक्ति ही आपके विनाश का कारण बन सकती है !<br />इसलिए शक्ति की पूजा कीजिए ! उनका आशीर्वाद लीजिये ! अपने अन्दर समाहित कीजिए ! जब तक वो साथ हैं - उनका आनंद लीजिये ! थोड़ा दुनिया को झमकायिये - थोडा दिखाईये पर खुलेआम प्रदर्शन से बचिए ! खुले मैदान में आपसे बढ़ कर भी कोई दूसरा शिव मिल सकता है ...:))</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">~ 18 Oct / 2015 </span></div>
<span style="background-color: white;"><div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">आज महासप्तमी है ! आज सुबह के पूजन के साथ देवी का पट खुल गया ! शाम के समय पंडाल में विहंगम दृश्य के साथ देवी के दर्शन होंगे ! अदभुत होगा वो नज़ारा ! अब देखना है - किस कुम्हार ने देवी के आँखों में सारी शक्ती प्रज्वल्लित की है ..किस पुजारी ने वातावरण को एकदम पवित्र बनाया है ..और कौन है वह नर जो देवी की आँखों से निकल रही शक्ती को पलभर में अपने अन्दर समाहित कर ले ..</span><span class="_47e3" style="line-height: 19.32px;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span><span style="line-height: 19.32px;"> सारा खेल तो उस शक्ती के संचार का ही है ! बाकी तो ताम झाम है ! </span></div>
</span></span><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">बात देवी के रूप और स्वरुप की हो रही </span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;">है ! जैसी भावना वैसा रूप नज़र आएगा ! नारी तो एक ही है - किसी के लिए माँ है , किसी के लिए बेटी है , किसी के लिए पत्नी / प्रेमिका है तो किसी के लिए कुछ भी नहीं - महज एक खिलौना है ! सारा कुछ तो देखने के नज़र पर है ! </span></div>
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">तीन साल पहले इसी दुर्गा पूजा और इसी जगह मैंने लिखा था - नारी के हर एक रूप की पूजा होती है - शायद तभी देवी के निर्माण के दौरान कुम्हार एक मुठ्ठी मिटटी शहर / गाँव के नृत्यांगना से भी मांगता है ! तब मैंने लिखा था - अद्भुत है - हमारी परंपरा ! शायद देवदास सिनेमा में इसको दिखाया भी गया है !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">अभी कुछ दिन पहले इसी विषय पर एक मित्र से बात हो रही थी - सम्पूर्ण नारी का ! उसने कहा - जब सम्पूर्ण नारी की बात करते हो - तब एक मुठ्ठी वो वाला तत्व भी होना चाहिए जो दुर्गा पूजा में नृत्यांगना के आँगन से आता है ! उस तत्व के बगैर एक सम्पूर्ण स्त्री की कल्पना कहाँ ! पर उसकी मात्रा महज एक मुठ्ठी ही होनी चाहिए , ना तो उसकी अनुपस्थिती होनी चाहिए और ना ही वो मात्र एक मुठ्ठी से ज्यादा होनी चाहिए - दोनों हाल में वो अपूर्ण है ! उसी दुर्गा के हाथों में शस्त्र भे होना चाहिए ! वही दुर्गा शेर पर सवार भी होनी चाहिए - उसी दुर्गा के हाथों महिशाशुर का वध भी होना चाहिए !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">और वही दुर्गा शक्ती बन के शिव में समाहित होनी चाहिए ....:))</span></div>
</span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">~ 19 Oct / 2015 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;">करीब 25-26 साल बाद , आज सुबह तड़के पटना घुमा </span><span class="_47e3" style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span><span style="color: #1d2129; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; text-align: start;"> मेरा भी मन था और अचानक से दो दिन पहले 'पापा' भी बोल दिए - तुम्हारी माँ थी तो हमलोग सुबह में सबको घुमाते थे - बात भावनात्मक हो गयी ! </span></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px; text-align: start;">पापा सुबह तीन बजे ही ..रंजू ..रंजू ..शुरू हो गए ! जीवन में आज तक पढ़ाई / परीक्षा के लिए सुबह नींद नहीं खुली लेकिन आज पापा के एक आवाज़ पर नींद खुल गयी ! हम अपना भी 'चेंगा - चेंगी' को जगाने का प्रयास किये - नहीं जागा ! मॉल संस्कृति में जन्म लिए हुए को 'मेला घुमने' में क्या मन लगेगा </span><span class="_47e3" style="line-height: 19.32px; text-align: start;" title="frown emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/fcb/1/16/1f641.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:(</span></span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"> </span></div>
<span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">सुबह साढ़े तीन बजे हम और पापा निकल गए ! डस्टर को फर्स्ट गेयर में डाल दिए..:)) हम दोनों बाप बेटा थोड़ा 'भकुआयील' थे ! सबसे पहले डाकबंगला - सुन्दर मूर्ती - गजब का भीड़ ! पापा का एक फोटो लिए ! फिर बेली रोड होते हुए - सगुना मोड़ / दानापुर तक ! रास्ता भर पापा से डांट सुनते हुए - गाडी चलाने नहीं आता है ..फलना ..ढेकना ! एक चक्कर बोरिंग रोड भी !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">लौटते वक़्त पापा 'अशोक राज पथ / मछुआटोली / कालीबाड़ी के लिए 'अड़' गए ! हमको ना हंसते बन रहा था और ना ही रोते ! गाडी को उस भीड़ में - पटना के उस तरह की संकरी गली और मोहल्लों में मोड़ दिया !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">सब जगह उनको घुमाए - बहुत बढ़िया लगा ..:))</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">अपना टीनएज दिन याद आ गया ! पापा की मारुती होती थी ! सारा खानदान लदा गया ! हॉर्न बज रहा है - मेरा जुता का फीता बंधा रहा है ..बंधा रहा है ..बंधा रहा है ! चेक बैगी ट्राउजर और पावर का कत्थई टी शर्ट ! हॉर्न बज रहा है ...मेरे जुता का फीता बंधा रहा है ...बंधा रहा है ! अचानक पापा का फरमान जारी हुआ - तुम यहीं रहो ...मेरा चेहरा ऊपर से मायूस ..और अन्दर खुशी का फव्वारा ..खुशी खुशी पुरे खानदान को उस मारुती में 'कोंचे' ! और उधर - गेट के पास ढेर सारा दोस्त मेरे इंतज़ार में - अपना अपना साईकिल पर </span><span class="_47e3" style="line-height: 19.32px;" title="tongue emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f9f/1/16/1f61b.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:P</span></span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">क्या मजा आता था ...निकलते निकलते कंघी से चार बार बाल झडाया - जैसे पटना के मछुआटोली में कोई सिनेमा का डाईरेक्टर मेरा इंतज़ार कर रहा हो </span><span class="_47e3" style="line-height: 19.32px;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span><span style="line-height: 19.32px;"> रास्ता से उस टोली में और अन्य दोस्तों को जोड़ते हुए - किसी एक दोस्त के यहाँ सभी साईकिल 'लगा' दिया गया ! सब यार एक साथ निकल पड़े ! </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">सुबह का नज़ारा - एक से एक फिएट वाली सब - पीछे के गेट का सीसा आधा खुला हुआ - गमकऊआ तेल लगा के - उस जमाने में कहाँ डीओ / फीओ होता था - भर मुह पोंड्स ड्रीमफ्लावर पाउडर लगा के - झक झक गोर नार दुर्गा जी लोग </span><span class="_47e3" style="line-height: 19.32px;" title="smile emoticon"><img alt="" aria-hidden="1" class="img" height="16" src="https://www.facebook.com/images/emoji.php/v5/f4c/1/16/1f642.png" style="border: 0px; vertical-align: -3px;" width="16" /><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; font-family: inherit; font-size: 0px; width: 0px;">:)</span></span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">एक से एक मूर्ती बनता था - नारियल का मूर्ती - अमूल स्प्रे का मूर्ती और उसका अनाऊंसमेंट - 'देखिये ..देखिये ..पहली बार 'नवदुर्गा पूजा समिति ' के तरफ से 'अमूल स्प्रे' का मूर्ती - नजदीक जा कर देखे तो पता चला - मूर्ती बना के ऊपर से अमूल स्प्रे छिट दिया है ..हा हा हा हा ! अपना टोली में - एक आध 'मुह्बक्का' टाईप लड़का का हाथ छुट गया - उ मुह्बक्का किसी का मुह ताक रहा है ..हा हा हा हा ! अब वो असल दुर्गा के फिराक में - कहीं किसी 'पूजा समिति' के वोलनटियर से दू - चार हाथ खा चुका होता था ! ऐसे मौके पर - हम दोस्त उसको पहचानने तक से इनकार कर देते थे ...हा हा हा हा !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">धांग देते थे - पूरा पटना को ! उफ्फ्फ्फ़ ...एक आध दोस्त 'इलीट' टाईप होता था ..जो 'शास्त्रीय संगीत' कम ..अगला दिन हांकने के लिए कॉलेजीयेट स्कूल के प्रोग्राम का हिस्सा होता था ! एक रात प्रोग्राम क्या देख लेता था - अगला दिन हमलोगों को किस्सा सूना सूना के कान पका देता था ! असल दर्द तब होता था - जब उसके किस्से में 'तीन साल सीनियर से तीन साल जूनियर' तक के असल दुर्गाओं के उस प्रोग्राम में उपस्थिती की चर्चा होती थी - कलेजा फट के हाथ में आ जाता ! हा हा हा हा हा ...</span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">वक़्त कहाँ रुकता है - अपने साथ बहुत चीज़ों को बदल देता है - तब मूर्ती देखने जाते थे - अब उस मूर्ती में जान देखने जाते हैं - अपनी आत्मा को उस मूर्ती में तलाशने जाते हैं ...:))</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">विजयादशमी की शुभकामनाएं ...:))</span></div>
</span></span><br />
~ 22 Oct / 2015<br />
<br />
@RR</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-68332672431247709262016-10-06T15:37:00.000+05:302016-10-06T16:23:11.258+05:30नवरात्र और मेरा अनुभव ...:)) <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
हम लोग मूलतः एक किसान परिवार से आते हैं ! गाँव - शहर दोनों जगह रहना हुआ है ! बाबा राजनीति में सक्रीय थे ! मेरे बचपन का बहुत बड़ा हिस्सा गाँव में बिता है ! बाबा हर दोपहर नहाने के बाद दुर्गापाठ करते थे और दुर्गा को अगरबत्ती दिखाते थे ! दुर्गा का प्रथम प्रभाव वहीँ से शुरू हुआ ! दुर्गा पूजा के दौरान - कलश स्थापना होती थी , ब्राह्मण देवता आते थे ! नौ दिन पाठ और नवमी को हवन ! बस ! थोडा बहुत दशहरा के दिन मेला शेला !<br />
मैं बारहवीं में था ! अचानक मुझे दुर्गा पाठ की सूझी ! मैंने अपने कमरे में नवरात्र के दौरान ही दुर्गा पाठ शुरू कर दिया ! सच बोलता हूँ - तीसरे दिन ऐसा लगा की जैसे मैंने अपने से बहुत ज्यादा भारी कोई तलवार उठा ली है जो मुझसे नहीं उठ रहा है ! और चौथे दिन आते आते मैंने पूजा बंद कर दी ! मेरी हिम्मत नहीं रही ! ऐसा लगा की मेरे अन्दर अब कोई शक्ति नहीं रही - कोई मेरी सारी शक्ति निचोड़ लिया है ! अफ़सोस हुआ - लेकिन मै आगे नहीं कर पाया !<br />
फिर आगे के सालों में नवरात्र मेरे लिए कोई मायने नहीं रखा ! गाँव की परंपरा अब शहर में भी आ गयी - गाँव से ब्राह्मण देवता पटना आते और कलश स्थापना होती ! कभी मै रहता तो कभी नहीं रहता !<br />
इसी बीच नॉएडा शिफ्ट हुआ ! और वहां की कालीवाडी मंदिर में जाने लगा ! कुछ ऐसा संयोग हुआ की जितने साल वहां गया - जिस वक़्त पहुंचा ठीक उसी वक़्त वहां आरती होते रहती थी ! उस धूप आरती के बीच साक्षात् दंडवत के बाद जब मै जमीन से उठता - मेरी नज़र उस दुर्गा प्रतिमा पर पड़ती थी - उस वक़्त मुझे उनकी ओर एक जबरदस्त खिंचाव होता ! <b>एक जबरदस्त आकर्षण ! ना तो माँ रूप में , ना बहन , ना बेटी और ना ही पत्नी के रूप में ! फिर बात ख़त्म और अगला साल पूजा आ जाता ! फिर से वही भावना ! </b><br />
बारहवीं में ही मुझे अपने पुरे जीवन का एक आभास हुआ की मेरा आने वाला पचास साल कैसा होगा - एकदम धुंधला आभास ! इस आभास से यह हुआ की - जीवन कई उतार चढ़ाव से गुजरा , परिवार बेचैन हुआ लेकिन मेरे अन्दर कोई बेचैनी नहीं हुई ! जीवन की बड़ी से बड़ी खाई को उस वक़्त के हिसाब से बड़े ही मैच्युरेटी से संभाला ! </div>
<div style="text-align: justify;">
<b>लेकिन २०१२ में कुछ ऐसा हुआ की मै अचानक से उस नवरात्र दुर्गा में तल्लीन हो गया ! ना तो कोई पूजा आती थी , ना ही कोई मंत्र और ना ही कोई तंत्र ! बहुत सोचा - सोचने के बाद यही समझ में आया की - सारा खेल मन का ही है - क्यों न मन को ही एकाग्र कर दो ! पुरे नौ दिन मन को एकाग्र कर दिया ! अब बात दूसरी आई - शक्ति के किस रूप की आराधना - वह पहले से निर्णय ले चूका था - वह था - रचनात्मक रूप ! </b>कहते हैं - देवी बलि मांगती है ! यह बात क्लियर थी ! बारहवीं में देख चूका था ! वह एक साक्षात अनुभव था ! तब मै कमज़ोर था , नाबालिग़ था ! इस बार जबरदस्त निश्चय था ! हुआ - मेरे इर्द गिर्द उसी नवरात्र कुछ हुआ - जिसका वर्णन मैंने उस वक़्त के सबसे करीबी मित्र को बताया ! उसे मै दाल भात का कौर लगता था तो शायद उसने मेरी बातों को मेरा झूठ समझ इनकार कर दिया !<br />
क्या खेल है - एकाग्रता का ...गजब ! नवमी आते आते खुद के चेहरे पर मोहित हो गया ! कोई पूजा पाठ नहीं किया - बस एक ख़ास जगह मन को एकाग्र कर दिया ! पूजा का प्लैटफॉर्म फेसबुक को बना दिया ! और क्रियेटिविटी इस कदर बढ़ी ...हालांकि उसके बीज पहले से मौजूद थे ...पर जैसे किसी ने उन बीजों को पानी खाद देकर पौधा बना दिया !<br />
अगले साल फ़रवरी में माँ का देहांत हुआ ! एक बहुत बड़ा निर्णय लिया - पटना वापस लौटने का ! लोगों ने अपने अपने समझ से इसकी व्याख्या की ! मुझे अन्दर से कोई फर्क नहीं पडा !<br />
इस साल भी दुर्गापूजा आया ! मै अपने इंदिरापुरम आवास पर - अकेले ! ना किसी से मिलना और और ना ही कोई अन्य काम ! फिर वही मन के एकाग्रता का खेल ! वही ढंग ! लेकिन इस बार दुर्गा के लिए इन्तेंसिटी बहुत बढ़ गयी ! और उसी नवरात्र मेरे मन में राजनीति में जाने का ख्याल आया - देवी की कृपा - कहीं कोई रुकावट नहीं हुई - हर एक स्टेप के बाद दरवाजा खुद ब खुद खुलने लगा ...नवरात्र ख़त्म होते ही पटना गया और विधिवत राजनीति ज्वाइन किया ! सब देवी की कृपा थी !<br />
एक बात - इन नौ दिनों मेरे इर्द गिर्द से लेकर अन्दर तक कुछ न कुछ ऐसा होता रहा जिसके चलते मन को और एकाग्र करने की तमन्ना जागी ! उन कारकों की चर्चा नहीं कर सकता - बस समझ लीजिये - जैसे आप पूजा पर बैठे हों और असुर शक्ति आपको दिक्कत पैदा कर रही हों ! फिर नौवें दिन - जो चमक और ओजस्व चेहरे पर और वाणी में आती है - इसका वर्णन तो वही कर सकता है - जिसने देखा या सुना और बहुत समझा ! लेकिन इसका असर मैंने दूसरों पर देखा ..:))<br />
एक गलती अगले साल हुई ! मै देवघर गया ! वह १०० किलोमीटर की यात्रा मेरे लिए अत्यंत कष्टदायक हुई ! कुछ ऐसा हुआ की पुरे रास्ता मै लगभग मानसिक रूप से व्यथित रहा ! शिव में कोई आकर्षण नज़र नहीं आया !<br />
राजनीति को त्यागने का निर्णय लिया - श्री नितीश कुमार के साथ चार घंटे की लम्बी अकेली में वार्ता और सुनहरा अवसर - मैंने बहुत ही शांत मन से त्यागा ! मै समझ चूका था - राजनीति बहुत बड़ी शक्ति है और मै इसके भार को वहन करने को तैयार नहीं हूँ ! कुछ ऐसा ही एहसास - बारहवीं में हुआ था ! तब मैंने अपनी आधी अधूरी तपस्या किसी और को देकर - उठ गया था !<br />
शक्ति के किसी भी रूप को उठाने के जब तक आप स्वयं में तैयार नहीं हों - नहीं उठायें वर्ना आप उस भार के निचे दब के ख़त्म हो जायेंगे ! यह बात शुरू से क्लियर थी !<br />
पिछले साल - पटना में ही था - कलश स्थापना और नवमी ! कुछ कुछ होता रहा !<br />
इस साल फ़रवरी में - एक मोड़ आया - पत्नी के लगातार जिद के बाद बनारस गया ! काशी विश्वनाथ के दर्शन हेतु ! पत्नी वहां काशी विश्वनाथ मंदिर गृह में - अन्दर ही अचानक से फूट फूट कर रोने लगी ! कभी इस कदर उनको रोते हुए नहीं देखा ! फिर उन्होंने रुद्राक्ष का माला ख़रीदा और पहना दिया ! होटल में मैंने पूछा - आप इस कदर क्यों रो रही थी ? उन्होंने कहा - ऐसा लगा जैसे मै अपने पिता से मिली ! शादी के ठीक पहले वो इसी काशी विश्वनाथ मंदिर में गयी थी - उस वक़्त वो मेरे दिए हुए कपड़ों में थी ! इस बार वो मेरे साथ थी ! १९ साल बाद ! इस बीच मेरे सास ससुर गुजर चुके थे !<br />
मार्च में मैंने शिव आराधना शुरू कर दी और शक्ति के प्रति जो जिस रूप में आशक्त था - वह आकर्षण भी कम होने लगा !<br />
मै चैत नवरात्र में पूजा नहीं करता लेकिन इस बार किसी ने कह दिया - कुछ लिखो ! मैंने लिखा ! जो समझ में आया ! तभी कुछ एह्साह हुआ ! उसी दौरान एक बहुत ही पुराना मित्र जो किसी कष्ट में था - उसने अपने कष्ट को बताया - हालाकि उसका कष्ट मुझे डेढ़ साल से पता था लेकिन नवरात्र - फिर से उसने चर्चा की और मेरे मुंह से निकला - जाओ सब ठीक हो जाएगा ! अगले ही दिन सकरात्मक जबाब आया ! तभी यह लगा - पांच बार लगातार पूजा के बाद अब उठने का समय आ गया है !<br />
आप किसी भी तरह की शक्ति की उपासना करते हैं ! तपस्या करते हैं ! एक दिन या नौ दिन या आजीवन ! लेकिन उस तप का फल - किसी और को देना होता है ! यह सच है ! उस तप का फल आप खुद खाने लगे उसी दिन से शक्ति क्षीण होने लगती है ! यहीं लालच को रोकना होता है ! और इंसान यहीं फंसता है ! हो सकता है - तप का फल किसी और के लिए रखा , और मिला किसी और को ! लेकिन जिसे जो तप देना होता है - आप दे चुके होते हैं ! आपको कुछ न कुछ बलि चढ़ाना होता है ! आप खुद के लिए कभी नहीं माँगते !<br />
इस बार नवरात्र के पहले मैंने एक महिला ज्योतिष से बात किया - खुल कर ! उसको सारी घटना बताई ! उसने कहा - दुर्गा को प्रेमिका के रूप में पूजते हो , पत्नी शिव को उन्हें पिता रूप में और क्योंकि पत्नी ने पूजा की तो तुम भी छः महिना से शिव को पिता रूप में जप ! यह गड़बड़ झाला है - फंस जाओगे ! माँ के रूप में पूजो ! अब यह कैसे संभव की जिसे आप कभी प्रेमिका रूप में पूजे - उसे फिर से माँ रूप में ? उस ज्योतिष ने कुछ जबाब नहीं दिया लेकिन मैं चुपके से शिव को प्रणाम कर - नवरात्र शुरू कर दिया ! गड़बड़ झाला तो चूका था ! प्रायश्चित का समय है .... :))<br />
लेकिन ये जप और तप वाली बात क्रिस्टल क्लियर हो गयी ! बिलकुल गंगोत्री की तरह साफ़ !<br />
अगर आप इसे व्यापक तौर पर सोचें तो - आपके किसी भी तरह के जप / तप का फल जब तक दूसरों को नहीं मिले - वह आराधना सफल नहीं होती ! वह विज्ञान हो , कला हो , राजनीति हो - कहीं भी !<br />
एक बात और समझ में आई - शक्ति आती है और शक्ति जाती है ! रूप बदलते रहती है ! उदाहरण के लिए - बचपन में आपकी मासूमियत ही आपकी शक्ति होती है , मासूमियत खोते हैं तब जवानी आती है और जब जवानी जाती है तब आप एक अलग शक्ति को समझते हैं ! यह क्रम है ! इसको समझना जरुरी है !<br />
जीवन में एक ख़ास समय आता है - जब आपकी तमन्ना होती है - बाहरी दुनिया से अन्दर की दुनिया में जाते हैं फिर आप अन्दर की दुनिया से बाहर की दुनिया में आते हैं - हर तरह के अनुभव के साथ ...:)) मूलतः जीवन का सबसे बड़ी पूंजी यह अनुभव ही है !<br />
लेकिन यह पूरा खेल - मन की एकाग्रता का ही है - जैसे आप एकाग्र होकर परीक्षा में बैठते हैं ....ख़ुशी तब होती है ...जितना सोचा उससे ज्यादा प्रश्न आपने हल किये ...तीन घंटा बिना सर उठाये ! असल तसल्ली वहीँ हैं ! रिजल्ट बहुत मायने नहीं रखता ...<br />
यह पांचवीं बार शारदीय नवरात्र है ...देवी के उस रूप को प्रणाम ...जिस रूप की आराधना मैंने की थी ! <br />
विशेष अगले किस्तों में ..:)) <br />
<br />
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@RR</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-32686718381092326262016-10-05T19:11:00.001+05:302016-10-05T19:11:41.398+05:30नवरात्र - 2012 <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;">देवताओं का भी अजीब हाल है </span><span class="_47e3" style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;" title="frown emoticon"><i aria-hidden="1" class="img sp_fM-mz8spZ1b sx_d55a98" style="background-image: url("/rsrc.php/v3/yl/r/NtxfCiWWu4q.png"); background-position: 0px -119px; background-repeat: no-repeat; background-size: auto; display: inline-block; height: 16px; vertical-align: -3px; width: 16px;"></i><span aria-hidden="1" class="_7oe" style="display: inline-block; width: 0px;">:(</span></span><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"> महिषासुर के एकाग्र ध्यान से प्रसन्न होकर उसको वरदान दे दिए ...फिर सभी देवताओं को हेडेक होने लगा ..मालूम नहीं ई महिषासुर इतनी शक्ती से क्या क्या न कर बैठे ...फिर 'देवी' की पुकार ...खुद क्यों नहीं आगे आये ...देवता हो ...इंसान की तरह वर्ताव क्यों ? इंसान और राक्षस में जब पहचान ही नहीं ...फिर देवता किस बात के ? जब तुम बुरे समय में ...तुम देवता होकर भी ...देवी के पास गए ...फिर हम जब तुमको बाईपास कर के ...देवी को पुकारें ...इतनी कष्ट क्यों ? हम भी तो देवता बन सकते हैं ...</span><br style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;" /><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;">~ इंसान</span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति की गोत्र को न अपना कर अपने पिता की गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं ! </span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथ</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;">ाओं में ...एक पिता भी होता था ...लाचार ..मूक ! मैंने बहुत पहले लिखा भी था ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..मौन ..मूक ..लाचार ! </span></div>
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">ऋषि खरे ने तीन चार दिन पहले दालान पर एक कमेन्ट किया - 'लक्ष्मी / सरस्वती / दुर्गा' तीनो के रूप को देखना चाहते हैं - एक पुत्री को सर्वगुण संपन्न बना दीजिये - सारे रूप वहीँ मिल जायेंगे !</span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">हिन्दू माइथोलोजी विचित्र है - कोई भी भक्ती से शक्ती पा सकता है - फिर क्या ? फिर महिषासुर ..रावण ..लड़िये ... लड़ाई ..जब तक की वो एक कहानी ना बन जाए ! समुद्र मंथन में जो मिला ...देवता और दानव दोनों आपस में बाँट लिए - इंसान रह गया बीच में ....उसके अन्दर दोनों समा गए ..फंस गया इंसान ! इंसान देवता बनने की चाह पैदा करे तो उसके अन्दर का दानव अपनी शक्ती दिखा देता है ...अवकात में रहो ..देवता मत बनो ! दानव बनता है ..तो देवता उसकी शक्ती छीन लेते हैं ...इसी लड़ाई में ...एक दिन इंसान दम तोड़ ...कुल मिलाकर ...सार यही है ...जब आपको शक्ती मिले ..उसको इज्ज़त देना सीखिए ...जुबां से नहीं ...मन से ..श्रद्धा से ..वर्ना जिस गति से शक्ती आयी ...उसी गति से वापस ..</span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">और ..शक्ती स्त्रीलिंग शब्द है ...!!!!</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">और....शक्ती शिव के इर्द गिर्द घुमती हैं ...अबोध ..जिसे शक्ती का एहसास भी नहीं .... :)))</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">है ..न ..विचित्र ...:))</span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">19 Oct 2012 </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति की गोत्र को न अपना कर अपने पिता की गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं ! </span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथ</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;">ाओं में ...एक पिता भी होता था ...लाचार ..मूक ! मैंने बहुत पहले लिखा भी था ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..मौन ..मूक ..लाचार ! </span></div>
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">ऋषि खरे ने तीन चार दिन पहले दालान पर एक कमेन्ट किया - 'लक्ष्मी / सरस्वती / दुर्गा' तीनो के रूप को देखना चाहते हैं - एक पुत्री को सर्वगुण संपन्न बना दीजिये - सारे रूप वहीँ मिल जायेंगे !</span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">20 Oct 2012 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">आज महासप्तमी ....देवी का पट खुलेगा या खुल गया होगा !</span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">विराट !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">मनोरम !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">श्रद्धा !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">विशाल !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">जैसे इस रूप का ही इंतज़ार था ! देखते ही ..खुशी से मन ...कोई भय नहीं ...आँखें ऐसी जहाँ आप क्षण मात्र भी ठहर नहीं सकते ! विशाल रूप ....जैसे सभी देव स्तुति में लग गए ...धुप की खुशबू से पूरा पंडाल भर गया होगा ...आरती के वक्त ...श्रद्धा से पुरे शरीर में सिहरन ! देवी को साष्टांग दंडवत !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">"शक्ती का पट तो खुल गया ...पर इनका ये विशाल रूप में स्वागत कौन करेगा ...किसकी हिम्मत जो इनके पास जाए ...इन्ही का कोई रूप जायेगा ...माताएं ..बहने ..बेटियाँ ..निकल गयी होंगी ...देवी के स्वागत में ..उस भव्य रूप के स्वागत में " - हम तो बस दूर से ..उस रूप में मंत्रमुग्ध ...</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">धन्य हो वो कुम्हार ...जिसने महालया के दिन ही देवी की आँखों में रंग भर दिया ...इस भव्यता ..इस रूप ..की खुशबू ..कहाँ से आई ..पूछिये उस कुम्हार से ..जिसने 'जहाँ' से मिटटी लायी ....</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">देवी को पुजिये ....किसी भी रूप में ....वो निर्मल है !</span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">21 Oct 2012 </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">आज महाष्टमी है ! महागौरी का दिन ! महामाया के रूप में ! गौर वर्ण ! शांत चित ! अबोध बालिका के रूप में ! कहते हैं नारी जब इस रूप में आ जाए फिर वो पूज्यनीय हो जाती हैं ! तभी आज के दिन 'कुमार कन्या' ( कुंवारी ) को पूजा जाता है ! इस रूप को / इस कुमार कन्या को नर सबसे ऊँचा मानता है ! </span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;">एक छोटा सा उदहारण देता हूँ - हिन्दू धर्म के अनुसार - आप अपने से ऊँचे / सर्वश्रेष्ठ को अपने दाहिने तरफ बैठाते हैं - सिंदूरदान के पहले.. 'कन्या' को दाहिने तरफ बैठाया जाता है - क्योंकी उसका स्थान वर से ऊ</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;">ँचा है ! सिंदूरदान के बाद ...दाहिने तरफ से बाएं ! </span></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">धर्म कोई डर नहीं है - यह जीवन जीने का एक फिलोसोफी है - सभी धर्म लगभग एक जैसा ही आचरण बताते है - हाँ , एक सुपर शक्ती तो जरुर है ...कहीं न कहीं ! मानव ...जिद पर अड़ा...तुम कौन हो ..कहाँ हो ..इसी खोज में वो कोई भी धर्म को श्रद्धा से अपनाकर ..उस सुपर शक्ती की तलाश करता है !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">बहुत कुछ है ...समझने को ...लिखने को ....और इस नवरात्र से बढ़िया अवसर क्या हो सकता है .. :)) महामाया की तलाश कीजिए ..कहीं मिल जाएँ तो मंत्रमुग्ध हो जाईये ...पूज्यनीय बना लीजिये ..अपने अन्दर के असुर को दबा के रखिये ..वर्ना ..महिषासुरवर्दिनी रूप में ...देवी को आने में ..ज्यादा समय नहीं लगेगा :))</span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">22 Oct 2012 </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">महानवमी !! सिद्धिदात्री !! </span></span></div>
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;">तीनो लोक देवी की अराधना में - क्या शिव , क्या ऋषि , क्या मानव ...सभी के सभी ! नौ दिन की भक्ती और देवी के सभी रूप की आराधना के बाद ...जैसे आज की शुभ घड़ी का इंतज़ार !</span><span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"> </span></div>
<span style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">संसार 'शक्ती' को ही पूजता आया है - हजारो साल से चली आ रही इस व्यवस्था को हम और आप यूँ ही नहीं तोड़ सकते - देव तभी तक देव हैं जब तक उनके पास शक्ती है - अगर शक्ती न हो - क्या आप और हम उनको पूजेंगे </span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;">? :)) </span></div>
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">आज शाम 'दुर्गा पंडाल' जाईयेगा - आज की रात आपको बाकी सभी रातों से अलग नज़र आएगा - जैसे देवी की महिमा / उनका रूप / उनका आशीर्वाद / उनकी शक्ती - सबसे अलग - यह कहने की बात नहीं है - खुद महसूस करने की बात है !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">देवी पूजन कोई नया नहीं है - हमारे घर घर में - कुलदेवी होती हैं - मिटटी से लेकर स्वर्ण रूप - जिस परिवार की जितनी शक्ती / भक्ती ! पर ..एक बात है ...कुलदेवी का कोई रूप नहीं होता ..जहाँ तक मैंने गौर किया है और वो सिर्फ परिवार तक ही सिमित होती हैं - और उस कुलदेवी से बढ़कर कोई और नहीं होता !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">प्रणाम !</span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; line-height: 19.32px; text-align: start;">23 Oct 2012 </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">आज देवी की विदाई है - यह शब्द अपने आप में अश्रु से भींगा है - परंपरा है - विदाई तो होनी ही है ! इसपर कुछ भी विशेष लिखने की हस्ती मेरी नहीं है !</span></div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">अब चलिए - 'रामायण' का रिविजन कर लिया जाए :-</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">१. प्रेम : रामायण में लिखा है - राम ने सीता के स्वयंवर में जनक के धनुष को तोड़ा - मामूली बात है - प्रेम में डूबा / अँधा / जागा प्रेमी चाँद तारे तक तोड़ लाता है - धनुष तोड़ना तो बहुत छोटा काम था ! दरअसल सच्चे प्रेम में इतनी शक्ती होती है की वो कुछ भी करवा दे !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><span style="line-height: 19.32px;">२. दुष्ट : रावण बहुत बड़ा ज्ञानी</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;"> - प्रकांड विद्वान - शिव भक्त - पर संस्कार लेस मात्र भी नहीं - अगर आप थोडा डीटेल में पढेंगे तो पाएंगे की सिर्फ सीता के साथ ही नहीं उनके पूर्व जन्म एवं अन्य नारीओं के साथ उसने ऐसा ही व्यवहार किया था - दरअसल अहंकार / घमंड व्यक्ती को अँधा बना देता है और सम्पूर्ण विश्व उसे 'भोग' नज़र आने लगता है - लेकिन लेकिन और लेकिन ..एक छल उसके मौत का कारन - सब ठीक ..पर सोचिये ..इतना बड़ा ज्ञानी ..एक छल के कारण ..हिन्दू धर्म में जन्मा कोई भी व्यक्ती - अपने जन्म से ही रावण को विलेन के रूप में देखता है - इससे बड़ी सजा किसी प्रचंड ज्ञानी के लिए क्या हो सकती है :( </span></span></div>
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">३. नारी ह्रदय : कोमल ह्रदय और जिद - जब देवर मना कर के गए - रेखा खिंच दिए - फिर 'एक्सपेरिमेंट' क्यों ? इसका लोजिक कोई नारी ही दे सकती है - हमारे आपके वश में नहीं है - बेहतर है - पुरुष धर्म अपनाईये - रावण कहीं मिले उसे मार डालिए ! सीता से मत पूछिये - तुने लक्ष्मण रेखा क्यों पार किया !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">४. सीता अग्नी परीक्षा : राम का दरबार - दोनों तरफ से तर्क वितर्क - प्रजा और सीता दोनों के वकील अपने अपने दलील - राम कुर्सी पर ! सीता को वो अग्नी परीक्षा से रोक भी सकते थे - पर 'करियर' का बात था - रिलेशनशिप गया तेल लेने - राजा का धर्म पहले - पति का बाद में ! आज भी यही होता है !</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">५. अश्वमेघ : कहते हैं - लव कुश ने अपने पिता राम के अश्वमेघ को रोक दिया ! बहुत सिंपल लॉजिक है - कोई भी पुत्र / पुत्री यह नहीं बर्दास्त करेगा की - बाप राजा बना रहे और माँ जंगल जंगल भटके - उस गुस्से में कोई भी साधारण पुत्र भी अश्वमेघ को रोक सकता है ! याद रखिये - जब आप घर में अपनी पत्नी पर गुस्सा कर रहे हैं - घर में चुप चाप बैठा पुत्र / पुत्री सारे बातों को सुन समझ ..आपके लिए एक जबरदस्त नफरत पैदा कर रहा है ..हो सकता है ..लोक लिहाज में ..वो आपसे बदला नहीं ले ...पर ...किसी दिन मौका मिला ..आपके अस्वमेघ को वो रोक देगा ..आपका ही खून ..आपको अवकात दिखा देगा :))</span><span style="line-height: 19.32px;"> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">हैप्पी दशहरा !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.32px;">24 Oct 2012 </span></div>
</span></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Courier New, Courier, monospace;">@RR</span></div>
</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-69406964854298302262016-09-26T22:25:00.001+05:302016-09-26T23:31:03.562+05:30सच का सामना - भाग सात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<div style="text-align: justify;">
सच का सामना - भाग सात </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
बात वर्षों पुरानी है । अपने विवाह के तुरंत बाद हनिमून पर नहीं गया था - सास ने वीटो लगा दिया , कहीं लड़का किसी पहाड़ से उनकी नाजूक बेटी को ठेल न दे 😐 </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
एक महीने बाद घूमने गए । एक शहर में एक बेहतरीन रेस्तराँ में डिनर कर रहे थे । पत्नी बेहतरीन सिल्क साड़ी में । हम भी चमक रहे थे । डिनर कर के जैसे ही रेस्तराँ से निकले - एक परिचित परिवार मिला । वहाँ एक परिचित चेहरा भी । हम ख़ुश होकर उनके टेबल के पास गए और सबसे अपनी पत्नी का परिचय करवाने लगे । </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
वहाँ भूतों न भविष्यति टाइप एक अत्यंत ही ख़ूबसूरत कम्प्यूटर इंजीनियरिंग टॉपर लड़की बैठी थी , जिनसे पूर्व में महज़ दो बार मेरी बात हुई थी , हेमामलिनी की ख़ूबसूरती और भाग्यश्री की आवाज़ । पिता डॉक्टर , बाबा डॉक्टर , चाचा डॉक्टर , फुआ डॉक्टर । अपने शहर में पूरी गली का सारा प्लॉट उसके परिवार के नाम । ख़ूबसूरत भी अत्यंत । बस कह दिया ...हेमामालिनी ...:)) </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
अब देखिए । वो लड़की अचानक से अपने टेबल से बाहर की तरफ़ रोते हुए निकली । हम कुछ समझते की मेरी पत्नी और ज़ोर से अपना हाथ मेरी कमर पर । इन दोनो महिलाओं की उस वक़्त की अभिव्यक्ति मुझे समझ में नहीं आयी । </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
हम भी रेस्तराँ से बाहर हो गए । लेकिन उसका रोते हुए बाहर जाना - मेरे मन को पोक कर दिया । पत्नी ने एक सवाल मुझसे नहीं पूछा । अगर ऐसा ही कुछ मेरी पत्नी के साथ होता तो - हम उनका जीना हराम कर देते , कौन था - कहाँ का था - कब से जानता है , इत्यादि इत्यादि ...लेकिन मेरी पत्नी ने एक सवाल नहीं पूछा । कुछ महीनो बाद , मैंने पत्नी से पूछा तुमने कोई सवाल या हंगामा क्यों नहीं किया और उस वक़्त बड़े ज़ोर से ढीठ की तरह मुझे क्यों पकड़ ली ? पत्नी मुस्कुरा दी और बोली - यह दो औरत के बीच का संवाद था । हम माथा ठोक लिए - बियाह हुआ नहीं कि सिनेमा 'अर्थ' चालू 😳 </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
समाज में इंटरनेट आया । मरद जात - कूकुर - सबसे पहले उस मोहतरमा का ईमेल खोजे और धड़ाम से एक ईमेल ठोक दिए । जबाब आने लगा । एक साल । बीच में हमको बेटा हुआ - नाम क्या रखा जाए , यह सलाह उनके तरफ़ से आया 😬😝 एकदम सात्विक दोस्ती । सिर्फ़ होटमेल पर । तब आर्ची कार्ड का ज़माना - न्यू ईयर पर , एक नहीं पूरा पाँच हज़ार का भेज दिए , अपनी पत्नी के हस्ताक्षर के साथ । </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
एक साल बाद - हमको बर्दाश्त नहीं हुआ - हम पूछ दिए - आप उस रेस्तराँ में रोते हुए क्यों बाहर गयी ? ऐसा कुछ था तो पहले ही बोलना था - आपका ही माँग टीक़ देते 😝 हालाँकि मैंने महज़ मज़ाक़ किया था । </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
ये क्या हुआ ...मेरी ये बात उनके तथाकथित सेल्फ़ स्टीम को चोट पहुँचा गयी । ईमेल बंद । </div>
</div>
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<div style="text-align: justify;">
इस सच्ची घटना का कोई विश्लेषण नहीं कर रहा । लेकिन पोक उधर से ही हुआ था । मरद जात के सामने कोई औरत रो दे - उसके बाद यही सब होता है 😐 </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
वो एक कम्प्यूटर इंजीनियर होते हुए भी किसी भी सोशल मीडिया पर नहीं हैं । लेकिन यह पूरा सच नहीं था - शायद एक ज़बरदस्त म्यूचूअल क़्रश रहा हो । आदततन मैंने कभी उनका पीछा नहीं किया था लेकिन उनके रोने वाली घटना के बाद - मैं उनके मुँह से सच सुनना चाहता था । जीत उनकी हुई - उनकी ज़ुबान बंद ही रही लेकिन जब कभी आमना सामना होता था उनकी आँखें बहुत कुछ कह जाती थी । शायद उन्होंने वो क़र्ज़ लौटा दिया - जब मेरी आँखें उनको संदेश देती और उनकी ज़ुबान मुस्कुरा देती , सबसे छुपा कर - सबसे बचा कर । </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
पर मेरा एक सवाल - आजीवन वाली दोस्ती तोड़ दी । मैं भी लाचार था - सवाल नहीं पूछता तो बेचैन रहता और पूछ दिया तो सम्बंध ख़त्म । </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
अँतोगत्वा ...हम ख़ुद के दिल के लिए जीते हैं - कई बग़ैर जवाबों वाले सवाल के साथ ...पर सवाल बेचैन करते हैं - और इंसान उन सवालों के जबाब में कई हदें पार कर बैठता है ! </div>
<div style="text-align: justify;">
हर रिश्ते का एक पडाव होता है या उसकी एक आयु होती है - जो उनमे से कोई एक तय करता है ! दिक्कत तब होती है - जब सामने वाला अपने उस हमसफ़र का हाथ पकड़ एक अन्धकार में चलता है और अचानक पता चलता है की - हाथ तो छुटा ही साथ में वो रिश्ता भी पल भर में मर गया ! पर वो रिश्ता अपनी आयु पूर्ण कर के मरा है , बस यह बात किसी एक को पता होती है ! </div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
और कई बार रिश्तों का गर्भपात भी हो जाता है ...जिसे हमारा संकोच , लिहाज , भय , अहंकार , चीटिंग - इनमे से कोई गर्भपात करवा देते हैं ...यूँ कहिये तो हर रिश्ते का गर्भपात ही होता है ...कोई भी रिश्ता पूर्ण नहीं है ...अगर नहीं हुआ तो ...वक़्त उस रिश्ते को अपंग बना देता है ...कई बार भावनात्मक डोरी कमज़ोर हुई तो ...मर्सी किलिंग ...<br />
कभी किसी रिश्ते का मर्सी किलिंग देखा है ...? धीरे धीरे मर रहे रिश्ते को अचानक से मार देना ...ताकि बाकी के लोग शान्ति से रह सकें ...आईसीयु में भर्ती रिश्ते का ...एक झटके में ...ओक्सीजन पाईप खिंच देना ...और चुपके से बाहर निकल जाना ....:)) ऐसा भी होता है ...और वो भी इंसान ही करता है ....कभी हम तो कभी सामने वाला ...</div>
</div>
<div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
सॉरी ...एक गरिमा के साथ लिखने की कोशिश की है ...पत्नी खुद के लिए नहीं बल्कि आपके लिए ज्यादा चिंचित हैं ...पत्नी का आपके लिए चिंता ...फिर से मुझे कन्फ्यूज कर दिया ...महिलायें सोचती कैसे हैं ...:)) </div>
</div>
</div>
Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-84252623174588099102016-09-13T21:53:00.002+05:302016-09-13T22:20:33.175+05:30सच का सामना - भाग पांच और छः <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
बात वर्षों पुरानी है ! मै पटना में अपने कंप्यूटर सेंटर में बैठा था ! एक सुबह एक सज्जन आये ! सफ़ेद कुरता और पायजामा में ! मुझसे उम्र में पांच - छः साल बड़े ! मैंने हेलो कह उन्हें अपने केबिन में बैठाया ! उन्होंने कहा - मै शिपिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया में हूँ ! छुट्टी में अपने ससुराल आया हूँ सोचा कंप्यूटर क्यों न सिख लिया जाए ! और भी बात हुई और बातों बातों में पता चला की उनका ससुराल मुझसे पूर्व परिचित है ! अगले दिन वो पति - पत्नी दोनों साथ आये ! बेहद स्मार्ट !<br />
गप्पी हूँ ! फुर्सत में उनके साथ देश दुनिया की खबर पर चर्चा होने लगी ! बातों बातों में पता चला की वो भी मुजफ्फरपुर के रहने वाले हैं ! फिर मैंने अचानक से बोला - कहीं आप वो तो नहीं ................! वो सर झुका के बोले - हाँ , मै उसी परिवार से हूँ ! मैंने पूछा - क्या हुआ था , सच जानना है ! वो बोले - अगले इतवार फुर्सत में सब बताऊँगा !<br />
" भैया इंजिनियर बना तो टाटा स्टील में नौकरी हुआ - शहर के सभी नामी लोग शादी के लिए आने लगे - जितने भी लोग आये - उसमे सबसे खुबसूरत मेरी भाभी थी - गोल्ड मेडलिस्ट और नामी डॉक्टर की बेटी ! भैया मुझसे भी हैंडसम था ! ऐसी जोड़ी कहीं नहीं देखी ! भईया का ससुराल भी शहर में ! तब मै नेतरहाट से टॉप करके - पटना के सायंस कॉलेज में था ! भैया , टाटा से आता जाता रहा ! भाभी कभी हमारे घर तो कभी अपने मायके तो कभी टाटा ! <b>और एक दोपहर भाभी ने हमारे मुजफ्फरपुर आवास पर अपनी जिंदगी समाप्त कर ली ! </b>दहेज़ कानून में भैया , माँ और पापा सभी जेल चले गए ! मै और छोटा भाई बच गए ! जग हंसाई अलग - बेहद खुश मिजाज भाभी का जाना अलग , पूरा परिवार जेल में ! भाभी के पिता जी और समाज हमारे परिवार के पीछे ! मै सायंस कॉलेज होस्टल में पढता रहा - उस हालात में भी आई आई टी और टी एस राजेंद्र दोनों जगह क्लियर किया ! लोगों ने कहा शिपिंग में जाओगे - जल्द पैसा मिलेगा - तभी परिवार को सहारा ! छोटे भाई का पढ़ाई डिस्टर्ब हो गया ! भईया हिम्मत नहीं हारा - जेल में रहकर भी वो गेट ( एम टेक प्रवेश परीक्षा ) में टॉप किया ! मै जल्द नौकरी में जाकर पैसा कमाने लगा ! इसी बीच पांच छ साल गुजर गए - सभी जेल में ! फिर किसी तरह कोर्ट कचहरी हुआ और अंत में पूरा परिवार बरी हुआ ! "<br />
अब सवाल उठता है - हुआ क्या था ? उनकी भाभी ने आत्महत्या क्यों की - वो भी शादी के दो वर्षों बाद ? मै दिवंगत आत्मा पर कोई आरोप नहीं लगा रहा - जो परिवार वर्षों जेल में रहा - उसने भी उनकी इज्जत को बरक़रार रखा !<br />
अक्सर खुबसूरत लड़किया - जवान होते ही - जिस किसी ने अप्रोच कर दिया - वो उसके साथ निभाती हैं - जबतक की परिवार वाले कहीं और शादी का न बोले ! लड़कियां प्रेम और शादी दोनों मामले में अलग ढंग से सोचती हैं - प्रेम एक लोफर सड़क छाप से भी हो सकता है पर शादी हमेशा सुरक्षित भविष्य को देख वो करती हैं ! कुछ ऐसा ही केस था ! संभवतः प्रेमी एक सड़क छाप था जिसके हाथ एक हीरा लग गया था ! हीरा हाथ से फिसल गया - वो बेचैन होकर लड़की की शादी के बाद तक उसका पीछा करता रहा ! अक्सर उसकी गली से गुजर जाता ! लड़की की नज़र पड़ी तो वो बेचैन ! और इसी बेचैनी में जब ग्लानी / गिल्ट हुई - घर अकेला - आत्महत्या का रूप ले लिया जिसमे एक परिवार झूलुस गया ! लड़का गीत गाता था - गली से गुजरते वक़्त वही तान छेड़ देता , जो लड़की माँ पसंदीदा ! उसने भी ख्वाब सजाये थे - बड़े घर की लड़की से बियाह और ऐशोआराम की ज़िन्दगी ! उसके सपने टूटे - उसने लड़की की लीला ही ख़त्म कर दी !<br />
पुरुष ऐसे धोखे को 'कुंठा' में परिवर्तित कर देते हैं ! पुरुषों की कुंठा को एक दूसरा पुरुष ही समझ सकता है ! पुरुषों की कुंठा को समझ पाना - यह महिलाओं का वश नहीं ! छल उसी कुंठा का बाहरी रूप होता है ! मजबूरी और धोखा में अंतर होता है ! लड़की को एक दिन समाज को भी मुंह दिखाना है - अगर आप सक्षम नहीं है - प्रेम तो यही कहता है - चुपके से अपने प्रेम की सलामती का दुआ करते हुए - बाहर निकल जाईये ! पर ऐसा होता नहीं है ! ऐसे सम्बन्ध विच्छेद कहीं से धोखा नहीं है - यह एक सामाजिक मजबूरी है ! क्या वही इंसान अपने पचास के उम्र में - अपनी बेटी का वैसा सम्बन्ध स्वीकार करेगा ? कतई नहीं !<br />
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<b>सच का सामना - भाग छः</b><br />
अभी तीन साल पहले एक डॉक्टर मित्र ने एक सच्ची कहानी बताई ! बिहार के एक मेडिकल कॉलेज में - एक लड़का और एक लड़की पढ़ते थे ! दोनों हसीन और जवान ! लड़की कुछ ज्यादा ही सुन्दर थी ! पिता भी नामी डॉक्टर ! पर दोनों की शादी नहीं हुई ! लड़की की शादी दक्षिण भारत में पदस्थापित एक सिविल सर्वेंट से हुई ! प्रेमी शहर छोड़ विदेश चला गया ! लड़की अपने पति के साथ अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त ! बच्चे हुए ! बच्चे बड़े हुए ! इंटरनेट आया ! उस महिला को इंटरनेट पर पूर्व प्रेमी मिला ! 'हेलो ...ढक्कन ..कैसे हो' ! मस्त हूँ ! बीवी बच्चों का फोटो दिखाओ ! मैंने अभी तक शादी नहीं की ! महिला यह सुन ग्लानी / गिल्ट में चली गयीं ! अब रात दिन प्रेमी से बात का मन ! महिला डॉक्टर ने ठान ली ! वो एक ट्रेनिंग के बहाने विदेश गयीं ! वहां दोनों मिले ! यहाँ भारत में पति अपने बच्चे को संभालते हुए - अब पत्नी लौटेगी तो अब लौटेगी ! पत्नी नहीं लौटी ! बारहवीं के बच्चों की माँ नहीं लौटी ! विदेश में दोनों पूर्व प्रेमी पति पत्नी की तरह रहने लगे ! अब वादा निभाना था - मंगलसूत्र पहनना था ! छ महिना - एक साल हो चुके थे ! महिला को वहीँ नौकरी भी मिल गयी थी ! एक दिन अचानक वो प्रेमी महोदय गायब हो गए ! कुछ दिनों बाद पता चला - वो भारत लौट कहीं और भतीजी उम्र की लड़की से विवाह कर लिए !<br />
और वो महिला डॉक्टर ? अपना मायके छोड़ दिया ! पति छुट गया ! बच्चे घृणा करने लगे ! पर वक़्त और फाइनेंसियल इंडीपेनड़ेंसी गजब की चीज़ होती है ! बड़े से बड़े जख्म को भर देती है ! मैं उस महिला का तस्वीर इंटरनेट पर देखा - चेहरे पर कोई ग्लानी नहीं थी - भले रातों को नींद नहीं आती होगी !<br />
अब सवाल उठता है - वह इंसान इतने दिनों तक शादी क्यों नहीं किया ? क्या वह अपनी प्रेमिका का इंतज़ार कर रहा था ? शायद नहीं ! उसके पुरुष अहंकार को चोट लगी थी ! वह उस अहंकार को पाल पोश कर बड़ा किया - वक़्त ने भी उसके अहंकार को मदद किया ! जिस दिन उसके पुरुष अहंकार को शान्ति मिली - वह निकल पडा !<br />
अजीब होता है - यह पुरुष अहंकार जो कुंठा में परिवर्तित हो जाता है ! बहुत करीब से देखने पर यह नज़र आता है ! बड़े से बड़े राजनेता और व्यापारी इसके रोगी होते हैं ! मैंने देखा है ! यही पुरुष अहंकार उन्हें चोटी तक ले जाता है ! पर यही कुंठा उनसे ऐसे घिनौने काम भी करवाता है !<br />
प्रेम हर हाल में अपने प्रेम की सलामती चाहता है ! प्रेम कभी बदला ले ही नहीं सकता ! प्रेम कभी बदनाम नहीं कर सकता क्योंकि प्रेम में इतना ताकत होता है की वह कैसा भी दर्द बर्दास्त कर लेता है ! प्रसव पीड़ा कैसे कोई बर्दास्त कर लेता है - वह एक माँ का प्रेम होता है ...:))<br />
प्रेम कीजिए ....लेकिन किसी के अहंकार और अहंकार से परिवर्तित कुंठा से बचिए ! ज़िन्दगी न मिलेगी दुबारा :))<br />
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Ranjanhttp://www.blogger.com/profile/03013961954702865267noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3286126586768298851.post-9937472874233200822016-09-11T17:49:00.003+05:302016-09-12T01:24:20.798+05:30दो दुनिया - भाग दो <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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ईश्वर / प्रकृति जब इंसान का सृजन करती है - उसे दो हाथ , दो पैर , दो आँख इत्यादि के साथ इस धरती पर भेजती है ! लाख में किसी एक इंसान को ईश्वर दिव्यांग / विकलांग बना कर भेजता है ! लेकिन सभी इंसान एक जैसे ही होते हैं ! उसी में कोई लम्बा , कोई मोटा तो कोई दुबला ! </div>
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यह तो है शारीरिक दुनिया जिसे हम बाहर की दुनिया कह सकते हैं ! ठीक इसी तरह हर एक इंसान की एक अन्दर की दुनिया होती है - जिसे हम मन या स्वभाव या उस इंसान की प्रकृति कह सकते हैं ! मैंने अपने इस उम्र तक यही पाया है की - स्वभाव के जितने गुण या अवगुण होते हैं - लगभग सभी गुण या अवगुण हर एक इंसान के अन्दर होता है ! हर एक इंसान के अन्दर प्रेम , छल , लालच , क्रोध , वासना , त्याग , भोग इत्यादि जितने भी गुण या अवगुण संसार में होते हैं - सभी के सभी एक इंसान के अन्दर होता है ! </div>
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लेकिन दिक्कत तब होती है जब इन गुणों या अवगुणों के मिश्रण का अनुपात ज़माना या स्थान के हिसाब से गड़बड़ा जाए ! उदहारण के लिए आपके कान जरुरत से ज्यादा बड़े हो जाएँ फिर आप भद्दे दिखेंगे और अगर कान नहीं हो तो भी आप अजीब दिखेंगे !<br />
वैसा ही कुछ अन्दर की दुनिया या स्वभाव के साथ भी होता है ! आपके अन्दर क्रोध न हो - कई बार सामने वाले को बढ़िया लगेगा लेकिन कई बार आपके साथ वाले या आप स्वयं मुश्किल में फंस जायेंगे ! आपको सीमा पर लडाई लड़नी है और आपके अन्दर क्रोध नहीं पनप रहा - आप लड़ाई हार जायेंगे !<br />
ठीक उसी तरह आपके अन्दर प्रेम नहीं है - या बहुत ज्यादा है - दोनों में मुश्किल है ! अगर नहीं है तो कोई करीब नहीं आएगा और अगर बहुत ज्यादा है तो वह छल का रूप ले लेगा क्योंकि ये सभी गुण या अवगुण बहुत एक्सक्लुसीव होते हैं - प्रेम हर किसी पर वर्षाने का चीज नहीं है ! क्रोध हर किसी को दिखाने का नहीं है - फिर आपके क्रोध का कोई महत्व ही नहीं देगा - आपका प्रेम किसी को सुख नहीं दे पायेगा !<br />
आप खाना हाथ से ही खायेंगे - पैर से खायेंगे तो अजीब लगेगा ! जिसे आपको देखना है उसे आप सुन कर कोई निर्णय नहीं ले सकते ! कहाँ कान का महत्व है और कहाँ आँख का - यह समझना होगा !<br />
<b>वासना को लेकर समाज हमेशा नकरात्मक रहा है लेकिन क्या हम वैसे लडके या लड़की से अपनी बेटी / बेटी की शादी कर सकते हैं जो बिलकुल वासनाविहीन हो ? कतई नहीं ! लेकिन यही वासना अनुपात से ज्यादा हो जाए फिर खुद को भी दिक्कत और समाज को भी दिक्कत !</b><br />
समाज कहीं से भी किसी गुण या अवगुण को नकारता नहीं है बल्कि उन्हें नियंत्रण में रख सही जगह और सही समय पर - सही अनुपात में दिखाने या उपयोग करने को कहता है !<br />
भय गुण है या अवगुण - कहना मुश्किल है ! भयमुक्त इंसान क्या क्या गलती कर बैठे - कहना मुश्किल है ! और भययुक्त इंसान के लिए एक कदम भी आगे बढ़ना मुश्किल है !<br />
पूरी ज़िन्दगी इसी को सीखना है - कब और कैसे और किस अनुपात में हम अपने गुण या अवगुण का फायदा ना सिर्फ खुद के लिए या बल्कि परिवार और समाज के लिए उठायें ! जैसे हमें बचपन से ही प्रकृति / परिवार / समाज हमारे अंगों के सही इस्तेमाल को बताता है लेकिन कोई परिवार या समाज हमें अपने स्वभाव के गुण या अवगुण के इस्तेमाल को नहीं बताता है - कई बार हमें खुद के ज़िन्दगी से मिले फायदे या ठोकर से सीखना पड़ता है - कई बार सीखते सिखते देर हो जाती है तो कई बार बहुत जल्द आँखें खुल जाती है !<br />
इस सामाजिक दुनिया में सबसे ज्यादा गाली 'अहंकार' को मिलती है क्योंकि इस अहंकार पर रिश्ते को बर्बाद करने का इलज़ाम लगता है ! लेकिन आप सभी लोग मुझे यह बताएं की - क्या बगैर अहंकार कोई जिंदा रह सकता है ? प्रेम का पहला शर्त ही है - अहंकार का पूर्ण समर्पण ! पर पूर्ण समर्पण के बाद इन्सान सामने वाले की नज़र में अपनी महत्व खो बैठता है - आकर्षण ख़त्म हो जाता है ! यह कैसी विडम्बना / पैराडॉक्स है की आपको रिश्ते में अहंकार नहीं चाहिए और जब कोई अपने अहंकार को ख़त्म कर दे तो आप उसकी महता खत्म कर दें - कुछ अजीब नहीं लगता ?<br />
शायद यहीं से शुरू होता है - छल ! छल बिलकुल प्रेम सा दिखता है , वही आनंद देता है लेकिन छल पर आधारीत रिश्ते में एक झूठे अहंकार को समर्पित किया जाता है , जैसे ही मकसद पूरा हुआ - झूठे और झुके अहंकार की जगह असल अहंकार अपने फन से फुंफकारना शुरू कर देता है ! फिर हम शिकायत करते हैं - धोखा मिला ! धोखा तो प्रथम दिन से ही है बस सामने वाले इंसान के समझ का फेर है ! इसलिए कई बार लोग रिश्ते की बलिदान चढ़ा देते हैं लेकिन अपने अहंकार को झुकने नहीं देते ! कई बार यह अहंकार आत्म सम्मान का शक्ल ले लेता है !<br />
क्या हम अपनी आत्मा के आईने के सामने अपने ह्रदय पर हाथ रख - यह कह सकते हैं की - हमने कभी किसी को धोखा नहीं दिया , हमारी वासना कभी नहीं जागी , हमारे अन्दर कोई लालच नहीं ! अगर हमारी आत्मा ऐसा कहती है तो इसका मतलब की हमरी अंतरात्मा मर चुकी है ! ऐसा हो ही नहीं सकता , क्योंकि ये सारे गुण या अवगुण ईश्वर ने हमें दिए हैं ! साथ में ईश्वर ने हमें अपनी समझ दी है - आप ज़िन्दगी में बगैर लालच किसी ट्रैप में नहीं फंस सकते - लालच अँधा बना देता है ! लेकिन क्या बगैर लालच हम किसी चीज को पा सकते हैं ? लालच भी जरुरी है ! पर सबका अनुपात ठीक होना चाहिए ! यह अनुपात आपका संघर्ष , अनुभव और समझ से ठीक होगा और जिस किसी इंसान के अन्दर यह अनुपात ठीक होगा - वही इंसान पूर्ण होगा ! अगर यह अनुपात गड़बड़ है - आप पूर्ण नहीं है ! एक गुण है - वफादारी ! अगर आप वफादारी से पूर्ण है तो भी यह गड़बड़ है - आप अपनी महता खो देंगे !<br />
जिस तरह हम अपने शरीर की साफ़ सफाई करते हैं - आँखें कमज़ोर हो जाने पर चश्मा पहनते हैं ठीक उसी तरह अपने अपने अन्दर की दुनिया और सारे गुण / अवगुण का आत्म अवलोकन करना होता है ! कई गुण / अवगुण की जरुरत समय के हिसाब से ख़त्म हो जाती है - उन्हें बेवजह भी नहीं पालना चाहिए - जैसे जिद बचपन में शोभा देता है और बुढापा में रुसवाई ...:))<br />
बहुत कुछ है लिखने को ...:))<br />
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क्रमशः </div>
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