मुजफ्फरपुर में रहते थे ! बात 1978 -1979 की रही होगी ! बड़ी दादी - हर शाम एक कहानी सुनाती थी ! उन्ही कहानी में से एक 'कहानी' जिसे आप सभी भी सुने होंगे - लिख रहा हूँ !
एक बारएक चिड़िया कहीं से दाल का एक दाना चुग कर ले जा रही थी ! रास्ते में सुस्ताने के लिये वो एक 'खूंटा' के ऊपर बैठ गयी ! तभी उसके चोंच से 'दाल का दाना' खूंटा के अंदर जा गिरा ! अब बेचारी 'चिड़िया' परेशान हो गयी ! बहुत दुखी :( सोचने लगी दाल का दाना कैसे वापस मिले ..इसी सोच में वो 'बढ़ई' के पास गयी ! बढई से बोली - ' बढ़ई - बढ़ई ..खूंटा चीर ..खूंटा में हमार दाल बा .का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं' ! बढ़ई कुछ देर सोचा फिर बोला - ए चिड़िया ..तुम्हारे एक दाना के लिये ..हम खूंटा नहीं चीरेंगे ..मुझे और भी काम है !
चिड़िया और दुखी हो गयी और वो 'राजा' के पास गयी और राजा से बोली - राजा राजा ..बढई के डंडा मार् ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ..खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का लेके परदेस जाईं ..! राजा हँसे लगा - बोला - ए चिड़िया ..तुम्हारे एक दाना के लिये हम 'बढ़ई' को क्यों मारे ..जाओ भागो यहाँ से ..मुझे और भी जरूरी काम है !
राजा से ना सुन ..चिड़िया और भी दुखी हो गयी ! कुछ हिम्मत रख वो 'सांप' के पास गयी और सांप से बोली - सांप सांप ..राजा डंस ..राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! सांप को भी अजीब लगा वो चिड़िया से बोला - तुम बेवकूफ हो , तुम्हारे एक दाना के लिए मै राजा को डंसने वाला नहीं हूँ ..जाओ ..भागो यहाँ से ..मुझे अभी सोना है !
अब चिड़िया को गुस्सा आया और वो 'लाठी' के पास गई ! लाठी से बोला - लाठी ..लाठी ..सांप मार ..सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! लाठी को भी अजीब लगा और उसने चिड़िया को भगा दिया !
लाठी से ना सुन ...अब चिड़िया 'आग' के पास गयी ! आग से विनती किया - आग आग ...लाठी जलाव ..लाठी ना सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! आग को बहुत गुस्सा आया ....और वो चिड़िया को भगा दिया और बोला ..मुर्ख चिड़िया ..मै तुम्हारे एक दाना के लिए ...लाठी को जला दूँ ...ऐसा कभी नहीं हो सकता ..भागो यहाँ से ...!
अब चिड़िया हताश हो गयी और अंत में वो अपनी सहेली 'नदी' के पास गयी ! नदी को वो अपनी बड़ी बहन जैसा मानती थी ...रोज नदी में डूबकी लगा नहाती थी ...नदी को बोली - ' नदी ..नदी ..आग बुझाओ ..आग ना लाठी जलाव ...लाठी ना सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! चिड़िया की व्यथा सुन ..नदी को तरस आ गया ..और वो सोची ...चलो ..बेचारी चिड़िया का मदद किया जाए ...और नदी निकल पडी ..आग बुझाने ..नदी को अपने तरफ आता देख ..आग डर गया ..और बोला ..अरे नदी ..मै अभी लाठी को जला कर आता हूँ ...आग को देख लाठी भी डर गया और वो बोला ..रुको ..मै अभी सांप को मारता हूँ ...लाठी देख ..सांप तेज़ी से राजा के तरफ भागा ..राजा को डंसने के लिए ....सांप को देख ..राजा ने बढ़ई को बुलवाया ...राजा के भय से ...बढ़ई तुरंत खूंटा को चीरने को तैयार हो गया ...बढ़ई को आता देख ...खूंटा बोला ..ए भाई ..हमको क्यों चिरोगे ...बस हमको उल्टा कर दो ...दाल का दाना खुद निकल जाएगा ...बढ़ई ने खूंटा को उल्टा किया और ..दाल का दाना बाहर निकल आया ..चिड़िया ..उसको अपने चोंच से पकड़ कर ...सबको धन्यवाद करके ...फुर्र्र से उड गयी ..:))
हम्मम्मम ....सो बच्चों और उनके माता - पिता ...दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है ...बस ...एक हिम्मत और प्रण चाहिए :))
कहानी कैसा लगा ....कम्मेंट देंगे ..या फेसबुक पर लाईक करें ...:))
अब चिड़िया को गुस्सा आया और वो 'लाठी' के पास गई ! लाठी से बोला - लाठी ..लाठी ..सांप मार ..सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! लाठी को भी अजीब लगा और उसने चिड़िया को भगा दिया !
लाठी से ना सुन ...अब चिड़िया 'आग' के पास गयी ! आग से विनती किया - आग आग ...लाठी जलाव ..लाठी ना सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! आग को बहुत गुस्सा आया ....और वो चिड़िया को भगा दिया और बोला ..मुर्ख चिड़िया ..मै तुम्हारे एक दाना के लिए ...लाठी को जला दूँ ...ऐसा कभी नहीं हो सकता ..भागो यहाँ से ...!
अब चिड़िया हताश हो गयी और अंत में वो अपनी सहेली 'नदी' के पास गयी ! नदी को वो अपनी बड़ी बहन जैसा मानती थी ...रोज नदी में डूबकी लगा नहाती थी ...नदी को बोली - ' नदी ..नदी ..आग बुझाओ ..आग ना लाठी जलाव ...लाठी ना सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! चिड़िया की व्यथा सुन ..नदी को तरस आ गया ..और वो सोची ...चलो ..बेचारी चिड़िया का मदद किया जाए ...और नदी निकल पडी ..आग बुझाने ..नदी को अपने तरफ आता देख ..आग डर गया ..और बोला ..अरे नदी ..मै अभी लाठी को जला कर आता हूँ ...आग को देख लाठी भी डर गया और वो बोला ..रुको ..मै अभी सांप को मारता हूँ ...लाठी देख ..सांप तेज़ी से राजा के तरफ भागा ..राजा को डंसने के लिए ....सांप को देख ..राजा ने बढ़ई को बुलवाया ...राजा के भय से ...बढ़ई तुरंत खूंटा को चीरने को तैयार हो गया ...बढ़ई को आता देख ...खूंटा बोला ..ए भाई ..हमको क्यों चिरोगे ...बस हमको उल्टा कर दो ...दाल का दाना खुद निकल जाएगा ...बढ़ई ने खूंटा को उल्टा किया और ..दाल का दाना बाहर निकल आया ..चिड़िया ..उसको अपने चोंच से पकड़ कर ...सबको धन्यवाद करके ...फुर्र्र से उड गयी ..:))
हम्मम्मम ....सो बच्चों और उनके माता - पिता ...दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है ...बस ...एक हिम्मत और प्रण चाहिए :))
कहानी कैसा लगा ....कम्मेंट देंगे ..या फेसबुक पर लाईक करें ...:))
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !
19 comments:
meri maan yah kahani gaa kar sunati thi. maine aapki kahani bhi gaa kar hi padhi hai.
हमरा के बुझाव उझाव जा जिन कोई हम लाठी जारब लोई :-)
बहुत ही inspiring story. "Never give up" का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है.
प्रेरक कथा।
बचपन में सुनी कहानी का एक बार फिर से आनंद मिला !!
:) accha laga!
sab darave aur balwan se hi darte hai prarthna koi nahi sunta. sunder katha.
Heard this story many times from my late grandfather...never forget a single word of it...One more story of Krishna and Sudama..ki...wo bhi shayad apne suni hogi..
मैने भी बचपन मे कहानी सुनी है.
प्रेरक रचना के लिए आभार।
Great!! Poora bachpan yaad aa gaya!! Thanks for sharing specially on the occasion of Mother's day!!
Great! It took me back to my child hood and also gave a sense of guilt/desperation for not being able to propagate this legacy to my next generation.
खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का लेके परदेस जाईं ..!....meri mata jee ye kahani aksar sunati thi....unka ye favorite line tha kabhi kabhi yu hi bhi gaate rahti thi.....bachpan yaad aaya
thanx sir!!!!:)bachpan yaad aa gaya....inspirig story..saying "Never give up"...thanx a lot :):)
Thanks Sir,
Ajj apne bacpan ki baathe yaar dila diwe
ये एक काफ़ी पुरानी दादी,नानी की कहानी है,इसका ताज़ापन बचपन में लौटा ले जाता,आपने 1955-56 की वो रात याद दिला दी जब हम सभी भाई एक साथ सर्दी की रात में ज़मीन पर पुआल के बिस्तर पर एक रज़ाई में माँ से ये कहानी सुनते थे।आपका धन्यवाद ।
bachpan yaad aa gya... behatarin sir
Bachpan ka yaad taaja ho gaya.bachpan me JB tk hum ye kahani dadi se sun Na le tb tk site nahi the
बहुत पहले बचपन में ये कहानी सुने थे, बहुत ही बढ़िया
मैंने भी यह कहानी अपनी दादी से सुनी थी ।आज वर्षों बाद पढ़कर अच्छा लगा।
Bahut hi preradayi kahani hai...
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