देवताओं का भी अजीब हाल है :( महिषासुर के एकाग्र ध्यान से प्रसन्न होकर उसको वरदान दे दिए ...फिर सभी देवताओं को हेडेक होने लगा ..मालूम नहीं ई महिषासुर इतनी शक्ती से क्या क्या न कर बैठे ...फिर 'देवी' की पुकार ...खुद क्यों नहीं आगे आये ...देवता हो ...इंसान की तरह वर्ताव क्यों ? इंसान और राक्षस में जब पहचान ही नहीं ...फिर देवता किस बात के ? जब तुम बुरे समय में ...तुम देवता होकर भी ...देवी के पास गए ...फिर हम जब तुमको बाईपास कर के ...देवी को पुकारें ...इतनी कष्ट क्यों ? हम भी तो देवता बन सकते हैं ...
~ इंसान
आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति की गोत्र को न अपना कर अपने पिता की गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं !
आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथाओं में ...एक पिता भी होता था ...लाचार ..मूक ! मैंने बहुत पहले लिखा भी था ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..मौन ..मूक ..लाचार !
ऋषि खरे ने तीन चार दिन पहले दालान पर एक कमेन्ट किया - 'लक्ष्मी / सरस्वती / दुर्गा' तीनो के रूप को देखना चाहते हैं - एक पुत्री को सर्वगुण संपन्न बना दीजिये - सारे रूप वहीँ मिल जायेंगे !
हिन्दू माइथोलोजी विचित्र है - कोई भी भक्ती से शक्ती पा सकता है - फिर क्या ? फिर महिषासुर ..रावण ..लड़िये ... लड़ाई ..जब तक की वो एक कहानी ना बन जाए ! समुद्र मंथन में जो मिला ...देवता और दानव दोनों आपस में बाँट लिए - इंसान रह गया बीच में ....उसके अन्दर दोनों समा गए ..फंस गया इंसान ! इंसान देवता बनने की चाह पैदा करे तो उसके अन्दर का दानव अपनी शक्ती दिखा देता है ...अवकात में रहो ..देवता मत बनो ! दानव बनता है ..तो देवता उसकी शक्ती छीन लेते हैं ...इसी लड़ाई में ...एक दिन इंसान दम तोड़ ...कुल मिलाकर ...सार यही है ...जब आपको शक्ती मिले ..उसको इज्ज़त देना सीखिए ...जुबां से नहीं ...मन से ..श्रद्धा से ..वर्ना जिस गति से शक्ती आयी ...उसी गति से वापस ..
और ..शक्ती स्त्रीलिंग शब्द है ...!!!!
और....शक्ती शिव के इर्द गिर्द घुमती हैं ...अबोध ..जिसे शक्ती का एहसास भी नहीं .... :)))
है ..न ..विचित्र ...:))
19 Oct 2012
आज नवरात्र के छठे दिन 'माँ कात्यायनी' की पूजा होती है ! कहते हैं - माँ अपने पिता के घर जन्म लेने के बाद ..पति की गोत्र को न अपना कर अपने पिता की गोत्र को अपनाया - संभवतः यह 'पिता पुत्री' के बीच के उस भावुक सम्बन्ध को दर्शाता है - जिसे सिर्फ एक पिता और पुत्री ही समझ सकते हैं !
आप हिन्दू धर्म की कथाओं को पढ़ें - तब भी एक समाज होता था - ऋषी - मुनि / राजा / देव / असुर ....कहीं न कहीं ..कई कथाओं में ...एक पिता भी होता था ...लाचार ..मूक ! मैंने बहुत पहले लिखा भी था ...जब 'सीता' की अग्नी परीक्षा हो रही होगी ...तब अगर जनक जिन्दा होंगे ..उनपर क्या गुज़री होगी ..मौन ..मूक ..लाचार !
ऋषि खरे ने तीन चार दिन पहले दालान पर एक कमेन्ट किया - 'लक्ष्मी / सरस्वती / दुर्गा' तीनो के रूप को देखना चाहते हैं - एक पुत्री को सर्वगुण संपन्न बना दीजिये - सारे रूप वहीँ मिल जायेंगे !
20 Oct 2012
आज महासप्तमी ....देवी का पट खुलेगा या खुल गया होगा !
विराट !
मनोरम !
श्रद्धा !
विशाल !
जैसे इस रूप का ही इंतज़ार था ! देखते ही ..खुशी से मन ...कोई भय नहीं ...आँखें ऐसी जहाँ आप क्षण मात्र भी ठहर नहीं सकते ! विशाल रूप ....जैसे सभी देव स्तुति में लग गए ...धुप की खुशबू से पूरा पंडाल भर गया होगा ...आरती के वक्त ...श्रद्धा से पुरे शरीर में सिहरन ! देवी को साष्टांग दंडवत !
"शक्ती का पट तो खुल गया ...पर इनका ये विशाल रूप में स्वागत कौन करेगा ...किसकी हिम्मत जो इनके पास जाए ...इन्ही का कोई रूप जायेगा ...माताएं ..बहने ..बेटियाँ ..निकल गयी होंगी ...देवी के स्वागत में ..उस भव्य रूप के स्वागत में " - हम तो बस दूर से ..उस रूप में मंत्रमुग्ध ...
धन्य हो वो कुम्हार ...जिसने महालया के दिन ही देवी की आँखों में रंग भर दिया ...इस भव्यता ..इस रूप ..की खुशबू ..कहाँ से आई ..पूछिये उस कुम्हार से ..जिसने 'जहाँ' से मिटटी लायी ....
देवी को पुजिये ....किसी भी रूप में ....वो निर्मल है !
21 Oct 2012
आज महाष्टमी है ! महागौरी का दिन ! महामाया के रूप में ! गौर वर्ण ! शांत चित ! अबोध बालिका के रूप में ! कहते हैं नारी जब इस रूप में आ जाए फिर वो पूज्यनीय हो जाती हैं ! तभी आज के दिन 'कुमार कन्या' ( कुंवारी ) को पूजा जाता है ! इस रूप को / इस कुमार कन्या को नर सबसे ऊँचा मानता है !
एक छोटा सा उदहारण देता हूँ - हिन्दू धर्म के अनुसार - आप अपने से ऊँचे / सर्वश्रेष्ठ को अपने दाहिने तरफ बैठाते हैं - सिंदूरदान के पहले.. 'कन्या' को दाहिने तरफ बैठाया जाता है - क्योंकी उसका स्थान वर से ऊँचा है ! सिंदूरदान के बाद ...दाहिने तरफ से बाएं !
धर्म कोई डर नहीं है - यह जीवन जीने का एक फिलोसोफी है - सभी धर्म लगभग एक जैसा ही आचरण बताते है - हाँ , एक सुपर शक्ती तो जरुर है ...कहीं न कहीं ! मानव ...जिद पर अड़ा...तुम कौन हो ..कहाँ हो ..इसी खोज में वो कोई भी धर्म को श्रद्धा से अपनाकर ..उस सुपर शक्ती की तलाश करता है !
बहुत कुछ है ...समझने को ...लिखने को ....और इस नवरात्र से बढ़िया अवसर क्या हो सकता है .. :)) महामाया की तलाश कीजिए ..कहीं मिल जाएँ तो मंत्रमुग्ध हो जाईये ...पूज्यनीय बना लीजिये ..अपने अन्दर के असुर को दबा के रखिये ..वर्ना ..महिषासुरवर्दिनी रूप में ...देवी को आने में ..ज्यादा समय नहीं लगेगा :))
22 Oct 2012
महानवमी !! सिद्धिदात्री !!
तीनो लोक देवी की अराधना में - क्या शिव , क्या ऋषि , क्या मानव ...सभी के सभी ! नौ दिन की भक्ती और देवी के सभी रूप की आराधना के बाद ...जैसे आज की शुभ घड़ी का इंतज़ार !
संसार 'शक्ती' को ही पूजता आया है - हजारो साल से चली आ रही इस व्यवस्था को हम और आप यूँ ही नहीं तोड़ सकते - देव तभी तक देव हैं जब तक उनके पास शक्ती है - अगर शक्ती न हो - क्या आप और हम उनको पूजेंगे ? :))
आज शाम 'दुर्गा पंडाल' जाईयेगा - आज की रात आपको बाकी सभी रातों से अलग नज़र आएगा - जैसे देवी की महिमा / उनका रूप / उनका आशीर्वाद / उनकी शक्ती - सबसे अलग - यह कहने की बात नहीं है - खुद महसूस करने की बात है !
देवी पूजन कोई नया नहीं है - हमारे घर घर में - कुलदेवी होती हैं - मिटटी से लेकर स्वर्ण रूप - जिस परिवार की जितनी शक्ती / भक्ती ! पर ..एक बात है ...कुलदेवी का कोई रूप नहीं होता ..जहाँ तक मैंने गौर किया है और वो सिर्फ परिवार तक ही सिमित होती हैं - और उस कुलदेवी से बढ़कर कोई और नहीं होता !
प्रणाम !
23 Oct 2012
आज देवी की विदाई है - यह शब्द अपने आप में अश्रु से भींगा है - परंपरा है - विदाई तो होनी ही है ! इसपर कुछ भी विशेष लिखने की हस्ती मेरी नहीं है !
अब चलिए - 'रामायण' का रिविजन कर लिया जाए :-
१. प्रेम : रामायण में लिखा है - राम ने सीता के स्वयंवर में जनक के धनुष को तोड़ा - मामूली बात है - प्रेम में डूबा / अँधा / जागा प्रेमी चाँद तारे तक तोड़ लाता है - धनुष तोड़ना तो बहुत छोटा काम था ! दरअसल सच्चे प्रेम में इतनी शक्ती होती है की वो कुछ भी करवा दे !
२. दुष्ट : रावण बहुत बड़ा ज्ञानी - प्रकांड विद्वान - शिव भक्त - पर संस्कार लेस मात्र भी नहीं - अगर आप थोडा डीटेल में पढेंगे तो पाएंगे की सिर्फ सीता के साथ ही नहीं उनके पूर्व जन्म एवं अन्य नारीओं के साथ उसने ऐसा ही व्यवहार किया था - दरअसल अहंकार / घमंड व्यक्ती को अँधा बना देता है और सम्पूर्ण विश्व उसे 'भोग' नज़र आने लगता है - लेकिन लेकिन और लेकिन ..एक छल उसके मौत का कारन - सब ठीक ..पर सोचिये ..इतना बड़ा ज्ञानी ..एक छल के कारण ..हिन्दू धर्म में जन्मा कोई भी व्यक्ती - अपने जन्म से ही रावण को विलेन के रूप में देखता है - इससे बड़ी सजा किसी प्रचंड ज्ञानी के लिए क्या हो सकती है :(
३. नारी ह्रदय : कोमल ह्रदय और जिद - जब देवर मना कर के गए - रेखा खिंच दिए - फिर 'एक्सपेरिमेंट' क्यों ? इसका लोजिक कोई नारी ही दे सकती है - हमारे आपके वश में नहीं है - बेहतर है - पुरुष धर्म अपनाईये - रावण कहीं मिले उसे मार डालिए ! सीता से मत पूछिये - तुने लक्ष्मण रेखा क्यों पार किया !
४. सीता अग्नी परीक्षा : राम का दरबार - दोनों तरफ से तर्क वितर्क - प्रजा और सीता दोनों के वकील अपने अपने दलील - राम कुर्सी पर ! सीता को वो अग्नी परीक्षा से रोक भी सकते थे - पर 'करियर' का बात था - रिलेशनशिप गया तेल लेने - राजा का धर्म पहले - पति का बाद में ! आज भी यही होता है !
५. अश्वमेघ : कहते हैं - लव कुश ने अपने पिता राम के अश्वमेघ को रोक दिया ! बहुत सिंपल लॉजिक है - कोई भी पुत्र / पुत्री यह नहीं बर्दास्त करेगा की - बाप राजा बना रहे और माँ जंगल जंगल भटके - उस गुस्से में कोई भी साधारण पुत्र भी अश्वमेघ को रोक सकता है ! याद रखिये - जब आप घर में अपनी पत्नी पर गुस्सा कर रहे हैं - घर में चुप चाप बैठा पुत्र / पुत्री सारे बातों को सुन समझ ..आपके लिए एक जबरदस्त नफरत पैदा कर रहा है ..हो सकता है ..लोक लिहाज में ..वो आपसे बदला नहीं ले ...पर ...किसी दिन मौका मिला ..आपके अस्वमेघ को वो रोक देगा ..आपका ही खून ..आपको अवकात दिखा देगा :))
हैप्पी दशहरा !
24 Oct 2012
@RR