जब से बाबु जी ने अलग घर गृहस्थी बसाई - बाबा एक काम हमेशा करते रहे - वो था गाँव से 'किचेन हेल्पर' भेजना ! अलग अलग उम्र के ! मालूम नहीं पिछले ३० साल में कितने आये होंगे और कितने कितने दिन रहे होंगे !
शुरुआती दिनों की याद है ..एक था 'धर्मेन्द्र' ! वो चौथी कक्षा तक पढ़ा था ! मुझे याद है - उसे पढने का शौक था - वो मेरी 'नंदन' और 'पराग' लेकर पढता था ! उसका बड़ा भाई दिल्ली में रहता था सो वो जल्द ही दिल्ली चला गया था ! हाल में ही कुछ वर्षों पहले मुझसे मिलने आया था - अब उसकी खुद की फैक्ट्री हो गयी है :) ढेर सारे फल - मेवा - मिठाई लेकर आया था ! अपने फैक्ट्री के बने हजारों के 'बाथरूम आईटम' के सामान मुझे दे गया की मै उसे अपने फ़्लैट में लगा लूँ - पर मैंने वापस कर दिया ! पटना के मेरे घर में बाथरूम आइटम उसकी फैक्ट्री के ही लगे हैं !
कई आते गए - जाते गए ! उन दिनो 'डिम्पल' चूल्हा होता था ! फिर गैस आया ! ३० दिन में वो सभी गैस का चूल्हा जलाना सिखाते और ३१ वा दिन भाग जाते ! हंगामा हो जाता ! कोई साइकील से रेलवे स्टेशन जाता तो कोई बस स्टेशन - कहीं खो गया तो ? फिर अगले ही सप्ताह 'बाबा' किसी को भेज देते ! अंतहीन सिलसिला था ! "छपरा" जिला वालों से घर का काम करवा लेना बहुत मुश्किल था !
एक घटना याद है - बाबु जी बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे जमा किये थे - गोदरेज का अलमीरा खरीदने को - एक रात 'भूटिया' उन पैसों और माँ के गहने लेकर भाग गया ! वो एक अजीब सा 'झटका' था ! कई महीनो तक हम परेशान रहे ! खैर किसी तरह कुछ गहने वापस मिले लेकिन एक हीरे का कान वाला टॉप्स नहीं मिला !
सिलसिला यूँ ही चलता रहा ! फिर आयीं 'शांती दी' काफी उमरदराज और काफी कड़ीयल स्वाभाव की ! वो भी हमारे गाँव तरफ की ही थीं - पर काफी वर्षों से पटना में रहती थीं ! कुछ वर्षों तक रहीं फिर अधिक उम्र होने के कारण अपने बच्चों के पास चली गयीं - फिर उनकी कोई खोज खबर नहीं मिली !
फिर आये "काका" ! काका का पूरा 'टोला' हमारा 'आसामी' होता था ! इनके कई चाचा - बाबा हमारे बाबा के काफी विश्वासी होते थे ! काका के खुद के परिवार को हमारे तरफ से कुछ बीघे ज़मीन इस एवज में दिया गया था की वो 'दालान' में लालटेन जलाने का काम करते थे - इनका काम था - हर शाम "दालान" में ठीक वक्त पर "लालटेन" जला के टांग देना या शादी बियाह के मौके पर 'पेट्रोमैक्स" !
वक्त के साथ - ना तो वो "दालान" की वैभव रही और न ही हमलोगों में उतनी क्षमता की सब का पेट पाल सकें ! सो 'काका' कलकत्ता चले गए - जूट मिल में कमाने ! शायद वहाँ उनको 'टी बी' हो गया ! वापस लौट आये ! शादी हुई पर पत्नी कुछ महीने के बाद मायके गयी तो वापस नहीं आयी - अब वो 'गाँव' के बाज़ार में 'कचरी- बचरी-पकौड़ी' बेचने लगे ! खैर ..बाबा के कहने और अपनी जमीन को बचाने के लिए वो हमारे पास 'पटना' आ गए ! उनके कई भाई - भतीजा हमारे परिवार के साथ गांव में थे सभी उनको 'काका' ही कहते तो हम लोग भी कहने लगे ! धीरे धीरे 'पटना' में उनका मन लगने लगा ! बाबू जी शाम थके हारे लौटते तो वो चाय बना के बाबु जी का देह दबाते ! बात बीस साल पुरानी है ! घर दरवाजा सब साफ़ करना ! घर का सारा काम अपने माथे ले लेते और फिर एकदिन अचानक वो 'गाँव' के तरफ मुह मोड़ लेते ! फिर एक सप्ताह के बाद वापस ! जितना २-३ महीना में कमाते उतना वो 'गाँव' में "पी" पा के खतम ! "पीने " के बाद शुद्ध हिंदी में वार्तालाप :))
बहन की शादी और मेरे 'नॉएडा' आने के बाद 'माँ - बाबुजी' की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही थी ! एक और खासियत है - हमारे यहाँ मेहमान बहुत आते थे - वो ऐसा 'खाना' बनाते की कोई मेहमान ज्यादा दिन नहीं खा पाता :) नॉएडा आया तो - माँ हर ३-४ महीना पर उनको कुछ सामान के साथ भेज देती ! अब वो मेरे लिए 'हेडक' हो जाता ! काका को रिसीव करो - २-३ रुकेंगे तो उनकी विदाई करो फिर लौटने का खर्चा - पता चलता मुझसे कुछ और पैसा लेकर वो दिल्ल्ली से सीधे गाँव का रास्ता घर लेते :)
अत्यधीक खर्चीला ! सब्जी खरीदने के बाद पैसा वापस माँगने पर गुस्सा भी जाते हैं ! हाल में वो बहुत ही ज्यादा पीने लगे ! तंग आकार बाबु जी उनको मना दिया और बाबा को भी बोल दिया की अब किसी को भेजने की जरुरत नहीं है !
जुन में पटना गया तो 'काका' आये थे - फिर वही 'तमाशा' - पी के शुद्ध हिंदी ! घर में चचेरी बहन की शादी और पुत्र का जनेऊ और उधर 'काका' का शुद्ध हिंदी जारी :) खैर , मेरी पत्नी ने उनको थोडा बहुत समझाया और साथ में 'इंदिरापुरम' चलने को तैयार कर लिया ! सुबह सुबह ६ बजे ही नहा लेते हैं - पीते भी नहीं हैं - हाँ , दिन भर में ३०-४० गुटखा जरुर खा लेते हैं - मेरे लिए कभी कभी 'पान' भी ले आते हैं ! "चाय" इतना ज्यादा की ...पूछिए मत ! खाना ऐसा की ..मै बहुत स्लिम हो गया हूँ ;) हाँ , नॉन वेज वो बहुत पसंद से बनाते हैं ! रूठते भी बहुत हैं ! रूठने के बाद १-२ दिन खाना ही नहीं खाते हैं ! भारी फेरा हो जाता है :(
पत्नी कह रही थीं की जितना सरसों का तेल और घी एक साल में खर्च नहीं हुआ वो पिछले २ महीने में हो चूका है - खैर मुझे विश्वास नहीं हुआ ! खर्चीले हैं ..लेकिन विश्वासी :) घर में उनको कोई "तुम" कह के नहीं बुलाता है - सिवाय बाबा - बाबु जी के !
मालूम नहीं कितने दिन तक साथ रहेंगे - पर बच्चे और पत्नी खुश हैं :-|