अब से कुछ घंटो में यह साल भी चला जायेगा ! विदाई ! इससे ज्यादा कष्ट किसी और शब्द में नहीं है ! मालूम नहीं लोग कैसे नए साल का स्वागत करते हैं !
नया नया टी वी आया था ! टी वी के सामने बैठ - रजाई के अंदर से टुकुर - टुकुर टी वी देख रात तक जागना ! फिर थोडा शर्माते हुए - घर के लोगों को 'हैप्पी न्यु ईयर' बोलना और सो जाना ताकि सुबह उठ कर - "मुर्गा" खरीदने जाना है ! बस यही था - नया साल ! मोबाईल नहीं होता था ! बहुत हुआ तो घर वाले सरकारी फोन से किसी खास दोस्त को ! कभी कभी वो भी नहीं !
बहुत दोस्त लोग पटना के 'बौटनिकल गार्डन' में - तो कोई गंगा किनारे - दियारा में ! तो ढेर एडभांश भाई लोग 'फिएट कार' से राजगीर ! हम कभी नहीं - कही नहीं !
बंगलौर में नौकरी किया तो एम जी रोड पर् ! तब देखा की 'रात में नए साल ' में प्रवेश करते समय - कैसे चिल्लाया जाता है ! हम कभी नहीं चिल्लाये - कोई साथ में था भी नहीं - जिसके साथ चिल्लाया जाए ;)
बाबा - बाबु जी को कभी 'शराब' के साथ नहीं देखा ! चाचा के जेनेरेशन में लोग 'ड्रिंक' करने लगे ! मेरे संगी साथी - "हार्ड - सोफ्ट " ! और नया जेनेरेशन .......कॉलेज में था तो ऐसा आईटम लोग का कमी नहीं था ...घर से ड्राफ्ट आया नहीं की ...शुरू हो गया ' 31 दिसंबर' का पार्टी का प्लान ! घसीट के सब ले जाता था ! नहीं जाने पर् - ऐसा लगता जैसे हम इस दुनिया के प्राणी नहीं हैं ! अपना पैसा से 'खिला पिया ' दिया फिर एक सप्ताह बाद - हिसाब ! जो "पीता" नहीं - उससका हिसाब अलग से ! अजीब हाल था :(
थोक में ग्रीटिंग्स कार्ड खरीदाता - साथ में स्केच भी ! खूब मन लगा के - दोस्त - सगे सम्बन्धी का एड्रेस लिखता - लिफाफा में ! फिर हर दिन डाकिया का इंतज़ार - सभी कार्ड्स को इकठ्ठा कर बेड के नीचे तोसक के निचे रखना ! फुर्सत में - उनको बार बार देखना ! 'किसी खास का कार्ड हो तो बिन कहे शब्दों को बार बार पढ़ने की कोशिश करना' :))
जब से नॉएडा - इंदिरापुरम आया हूँ - हर बड़ा दिन कि छुट्टी में परिवार 'पटना' चला जाता है :( कुछ अकेले ही यह दिन बितता है :( सबसे पहले पत्नी का ही फोन आता है ! पूछती है - क्या खाए ? मालूम नहीं इनको मेरे खाने का ही ज्यादा चिंता रहता है ! :) फिर उनसे पूछता हूँ - 'माँ - बाबु जी - बच्चे सो गए , क्या ? ' कहती है - हाँ ! सुबह में - माँ और बाबु जी का फोन ! माँ आज भी मुझे 'आप' कह कर ही बुलाती हैं :) बाबु जी - भोजपुरी में 'तू' हम भी उनको भोजपुरी में उनको 'तू' ही बोलते हैं और हिन्दी में 'आप' :) बहस हिन्दी में होती है - "आप" के साथ !
अब साल कैसा बिता - यही सोच रहा था ! जहाँ काम करता हूँ - वहाँ 'अरियर' के साथ 6th पेय कमीशन लागू हुआ ! प्रोमोशन भी मिला ! सहायक प्राध्यापक से 'सह- प्राध्यापक' हो गया हूँ - इस शर्त के साथ की - अगले कुछ सालों में 'पीएचडी' कर लूँगा - वर्ना नौकरी खतरे में है .... :( और मेरे पास 'पीएचडी' का कोई प्लान अभी नज़र नहीं आ रहा है :( सन 2005 में मुझे डबल प्रोमोशन मिला था - मेरे महाविद्यापीठ के पचास साल में पहला उदहारण ! सब , किसी अदृश्य शक्ती का कमाल है - हम जो आज से बीस साल पहले जैसे थे - आज भी वैसे ही हैं :(
पुत्र का जनेऊ किया ! हम छपरा जिला के हैं - यहाँ एक रिवाज है - घर में किसी लडके - लडकी की शादी के साथ ही घर के छोटे बच्चे का जनेऊ होता है ! बाबु जी के शादी में चाचा का जनेऊ हुआ था ! चाचा की शादी में मेरा और चचेरी बहन की शादी थी तो मेरे पुत्र का ! बहुत खुश और रोमांचित था ! सम्बन्धी को छोड़ किसी और को इनवाईट नहीं किया था - फेसबुक से सिर्फ दो जाने - कृष्ण सर और प्रभाकर जी ! पुत्र जब स्कूल गया तो उसे 'जनेऊ' के बारे में बोलने में थोड़ी शर्म आई तो अपने मुंडन का दूसरा बहाना बना दिया ! यह एक अलग जेनेरेशन है - मुझे खुशी है ! ( संभवतः आप लोग मेरी बात समझ रहे होंगे )
यह साल 'फेसबुक' के भी नाम गया ! कई नयी दोस्ती हुई और सम्बन्ध बने ! धर्म और जाति के बंधन से बिलकुल अलग ! कुछ लोग अजीबोगरीब ढंग से मुझसे पेश आये - भगवान उनको सुबुध्धि दे ! कई पुराने संबंधों में सुधार आया ! स्कूल और कॉलेज के कई बिछड़े दोस्त मिले ! सीनियर भी ! फेसबुक पर् जो बिहार ग्रुप हैं - वहाँ से मुझे 'फेसबुक यूथ आइकन ऑफ बिहार' मिला - अच्छा लगा ! :)) और क्या कहूँ ? :)) अतुल काफी जोशीला है - मुझे लगता है - आज के बिहार में जैसे 'जयप्रकाश आंदोलन' के लोग राजनीति में हैं - वैसे ही 'अगले दस य बीस साल में इस फेसबुक / याहूग्रुप से निकले लोग - बिहार कि सता पर् काबीज होंगे ! संभवतः तब भी यह ग्रुप मेरे साथ होगा ;)
थोक में ग्रीटिंग्स कार्ड खरीदाता - साथ में स्केच भी ! खूब मन लगा के - दोस्त - सगे सम्बन्धी का एड्रेस लिखता - लिफाफा में ! फिर हर दिन डाकिया का इंतज़ार - सभी कार्ड्स को इकठ्ठा कर बेड के नीचे तोसक के निचे रखना ! फुर्सत में - उनको बार बार देखना ! 'किसी खास का कार्ड हो तो बिन कहे शब्दों को बार बार पढ़ने की कोशिश करना' :))
जब से नॉएडा - इंदिरापुरम आया हूँ - हर बड़ा दिन कि छुट्टी में परिवार 'पटना' चला जाता है :( कुछ अकेले ही यह दिन बितता है :( सबसे पहले पत्नी का ही फोन आता है ! पूछती है - क्या खाए ? मालूम नहीं इनको मेरे खाने का ही ज्यादा चिंता रहता है ! :) फिर उनसे पूछता हूँ - 'माँ - बाबु जी - बच्चे सो गए , क्या ? ' कहती है - हाँ ! सुबह में - माँ और बाबु जी का फोन ! माँ आज भी मुझे 'आप' कह कर ही बुलाती हैं :) बाबु जी - भोजपुरी में 'तू' हम भी उनको भोजपुरी में उनको 'तू' ही बोलते हैं और हिन्दी में 'आप' :) बहस हिन्दी में होती है - "आप" के साथ !
अब साल कैसा बिता - यही सोच रहा था ! जहाँ काम करता हूँ - वहाँ 'अरियर' के साथ 6th पेय कमीशन लागू हुआ ! प्रोमोशन भी मिला ! सहायक प्राध्यापक से 'सह- प्राध्यापक' हो गया हूँ - इस शर्त के साथ की - अगले कुछ सालों में 'पीएचडी' कर लूँगा - वर्ना नौकरी खतरे में है .... :( और मेरे पास 'पीएचडी' का कोई प्लान अभी नज़र नहीं आ रहा है :( सन 2005 में मुझे डबल प्रोमोशन मिला था - मेरे महाविद्यापीठ के पचास साल में पहला उदहारण ! सब , किसी अदृश्य शक्ती का कमाल है - हम जो आज से बीस साल पहले जैसे थे - आज भी वैसे ही हैं :(
पुत्र का जनेऊ किया ! हम छपरा जिला के हैं - यहाँ एक रिवाज है - घर में किसी लडके - लडकी की शादी के साथ ही घर के छोटे बच्चे का जनेऊ होता है ! बाबु जी के शादी में चाचा का जनेऊ हुआ था ! चाचा की शादी में मेरा और चचेरी बहन की शादी थी तो मेरे पुत्र का ! बहुत खुश और रोमांचित था ! सम्बन्धी को छोड़ किसी और को इनवाईट नहीं किया था - फेसबुक से सिर्फ दो जाने - कृष्ण सर और प्रभाकर जी ! पुत्र जब स्कूल गया तो उसे 'जनेऊ' के बारे में बोलने में थोड़ी शर्म आई तो अपने मुंडन का दूसरा बहाना बना दिया ! यह एक अलग जेनेरेशन है - मुझे खुशी है ! ( संभवतः आप लोग मेरी बात समझ रहे होंगे )
यह साल 'फेसबुक' के भी नाम गया ! कई नयी दोस्ती हुई और सम्बन्ध बने ! धर्म और जाति के बंधन से बिलकुल अलग ! कुछ लोग अजीबोगरीब ढंग से मुझसे पेश आये - भगवान उनको सुबुध्धि दे ! कई पुराने संबंधों में सुधार आया ! स्कूल और कॉलेज के कई बिछड़े दोस्त मिले ! सीनियर भी ! फेसबुक पर् जो बिहार ग्रुप हैं - वहाँ से मुझे 'फेसबुक यूथ आइकन ऑफ बिहार' मिला - अच्छा लगा ! :)) और क्या कहूँ ? :)) अतुल काफी जोशीला है - मुझे लगता है - आज के बिहार में जैसे 'जयप्रकाश आंदोलन' के लोग राजनीति में हैं - वैसे ही 'अगले दस य बीस साल में इस फेसबुक / याहूग्रुप से निकले लोग - बिहार कि सता पर् काबीज होंगे ! संभवतः तब भी यह ग्रुप मेरे साथ होगा ;)
एक नयी गाड़ी खरीदने का प्लान था - जो नहीं हो सका ! शायद होली तक ! हम लोग बैंक में पैसा रखने वाले प्राणी नहीं हैं ! दो - तीन लाख में ही "अउल - बउल" होने लगते हैं :( पति - पत्नी दोनों खर्चीले हैं :) पन्द्रह साल इंतज़ार किया और एक 'बोस' का स्पीकर खरीदा ! संगीत अच्छा लगता है ! हिम्मत नहीं हो रही थी - पत्नी ने बोला ले लीजिए - कल का कल को देखा जायेगा !
इस साल बाबु जी बहुत बीमार रहे ! हमेशा यही चिंता लगी रहती है ! कई बार बोला - मारिये गोली - बिहार सरकार की नौकरी को - मालूम नहीं क्या सोचते हैं ? :(
अब अगला साल क्या करना है ?
आज तक प्लानिंग नहीं तो अब क्या करूँ ?? :(
जे होगा से देखा जायेगा !!!
आज से हर पोस्ट के साथ एक गीत होगा - लीजिए आज का मेरा पसंदीदा गीत सुनिए :))