Thursday, December 30, 2010

ये साल भी जा रहा है ....

अब से कुछ घंटो में यह साल भी चला जायेगा ! विदाई ! इससे ज्यादा कष्ट किसी और शब्द में नहीं है ! मालूम नहीं लोग कैसे नए साल का स्वागत करते हैं ! 

नया नया टी वी आया था ! टी वी के सामने बैठ - रजाई के अंदर से टुकुर - टुकुर टी वी देख रात तक जागना ! फिर थोडा शर्माते हुए - घर के लोगों को 'हैप्पी न्यु ईयर' बोलना और सो जाना ताकि सुबह उठ कर - "मुर्गा" खरीदने जाना है ! बस यही था - नया साल ! मोबाईल नहीं होता था ! बहुत हुआ तो घर वाले सरकारी फोन से किसी खास दोस्त को ! कभी कभी वो भी नहीं ! 

बहुत दोस्त लोग पटना के 'बौटनिकल गार्डन' में - तो कोई गंगा किनारे - दियारा में ! तो ढेर एडभांश भाई लोग 'फिएट कार' से राजगीर ! हम कभी नहीं - कही नहीं ! 

बंगलौर में नौकरी किया तो एम जी रोड पर् ! तब देखा की 'रात में नए साल ' में प्रवेश करते समय - कैसे चिल्लाया जाता है ! हम कभी नहीं चिल्लाये - कोई साथ में था भी नहीं - जिसके साथ चिल्लाया जाए ;) 

बाबा - बाबु जी को कभी 'शराब' के साथ नहीं देखा ! चाचा के जेनेरेशन में लोग 'ड्रिंक' करने लगे ! मेरे संगी साथी - "हार्ड - सोफ्ट " ! और नया जेनेरेशन .......कॉलेज में था तो ऐसा आईटम लोग का कमी नहीं था ...घर से ड्राफ्ट आया नहीं की ...शुरू हो गया ' 31 दिसंबर' का पार्टी का प्लान ! घसीट के सब ले जाता था ! नहीं जाने पर् - ऐसा लगता जैसे हम इस दुनिया के प्राणी नहीं हैं ! अपना पैसा से 'खिला पिया ' दिया फिर एक सप्ताह बाद - हिसाब ! जो "पीता" नहीं - उससका हिसाब अलग से ! अजीब हाल था :(

थोक में ग्रीटिंग्स कार्ड खरीदाता - साथ में स्केच भी ! खूब मन लगा के - दोस्त - सगे सम्बन्धी का एड्रेस लिखता - लिफाफा में ! फिर हर दिन डाकिया का इंतज़ार - सभी कार्ड्स को इकठ्ठा कर बेड के नीचे तोसक के निचे रखना ! फुर्सत में - उनको बार बार देखना ! 'किसी खास का कार्ड हो तो बिन कहे शब्दों को बार बार पढ़ने की कोशिश करना' :))

जब से नॉएडा - इंदिरापुरम आया हूँ - हर बड़ा दिन कि छुट्टी में परिवार 'पटना' चला जाता है :( कुछ अकेले ही यह दिन बितता है :( सबसे पहले पत्नी का ही फोन आता है ! पूछती है - क्या खाए ? मालूम नहीं इनको मेरे खाने का ही ज्यादा चिंता रहता है ! :) फिर उनसे पूछता हूँ - 'माँ - बाबु जी - बच्चे सो गए , क्या ? ' कहती है - हाँ ! सुबह में - माँ और बाबु जी का फोन ! माँ आज भी मुझे 'आप' कह कर ही बुलाती हैं :) बाबु जी - भोजपुरी में 'तू' हम भी उनको भोजपुरी में उनको 'तू' ही बोलते हैं और हिन्दी में 'आप' :) बहस हिन्दी में होती है - "आप" के साथ !

अब साल कैसा बिता - यही सोच रहा था ! जहाँ काम करता हूँ - वहाँ 'अरियर' के साथ 6th पेय कमीशन लागू हुआ ! प्रोमोशन भी मिला ! सहायक प्राध्यापक से 'सह- प्राध्यापक' हो गया हूँ - इस शर्त के साथ की - अगले कुछ सालों में 'पीएचडी' कर लूँगा - वर्ना नौकरी खतरे में है .... :( और मेरे पास 'पीएचडी' का कोई प्लान अभी नज़र नहीं आ रहा है :( सन 2005 में मुझे डबल प्रोमोशन मिला था - मेरे महाविद्यापीठ के पचास साल में पहला उदहारण ! सब , किसी अदृश्य शक्ती का कमाल है  - हम जो आज से बीस साल पहले जैसे थे - आज भी वैसे ही हैं :(

पुत्र का जनेऊ किया ! हम छपरा जिला के हैं - यहाँ एक रिवाज है - घर में किसी लडके - लडकी की शादी के साथ ही घर के छोटे बच्चे का जनेऊ होता है ! बाबु जी के शादी में चाचा का जनेऊ हुआ था ! चाचा की शादी में मेरा और चचेरी बहन की शादी थी तो मेरे पुत्र का ! बहुत खुश और रोमांचित था !  सम्बन्धी को छोड़ किसी और को   इनवाईट नहीं किया था - फेसबुक से सिर्फ दो जाने - कृष्ण सर और प्रभाकर जी ! पुत्र जब स्कूल गया तो उसे 'जनेऊ' के बारे में बोलने में थोड़ी शर्म आई तो अपने मुंडन का दूसरा बहाना बना दिया ! यह एक अलग जेनेरेशन है - मुझे खुशी है ! ( संभवतः आप लोग मेरी बात समझ रहे होंगे )

यह साल 'फेसबुक' के भी नाम गया ! कई नयी दोस्ती हुई और सम्बन्ध बने ! धर्म और जाति के बंधन से बिलकुल अलग ! कुछ लोग अजीबोगरीब ढंग से मुझसे पेश आये - भगवान उनको सुबुध्धि दे ! कई पुराने संबंधों में सुधार आया ! स्कूल और कॉलेज के कई बिछड़े दोस्त मिले ! सीनियर भी ! फेसबुक पर् जो बिहार ग्रुप हैं - वहाँ से मुझे 'फेसबुक यूथ आइकन ऑफ बिहार' मिला - अच्छा लगा ! :)) और क्या कहूँ ? :)) अतुल काफी जोशीला है - मुझे लगता है - आज के बिहार में जैसे 'जयप्रकाश आंदोलन' के लोग राजनीति में हैं - वैसे ही 'अगले दस य बीस साल में इस फेसबुक / याहूग्रुप से निकले लोग - बिहार कि सता पर् काबीज होंगे ! संभवतः तब भी यह ग्रुप मेरे साथ होगा ;) 

एक नयी गाड़ी खरीदने का प्लान था - जो नहीं हो सका ! शायद होली तक ! हम लोग बैंक में पैसा रखने वाले प्राणी नहीं हैं ! दो - तीन लाख में ही "अउल - बउल" होने लगते हैं :(  पति - पत्नी दोनों खर्चीले हैं :)  पन्द्रह साल इंतज़ार किया और एक 'बोस' का स्पीकर खरीदा ! संगीत अच्छा लगता है ! हिम्मत नहीं हो रही थी - पत्नी ने बोला ले लीजिए - कल का कल को देखा जायेगा ! 

इस साल बाबु जी बहुत बीमार रहे ! हमेशा यही चिंता लगी रहती है ! कई बार बोला - मारिये गोली - बिहार सरकार की नौकरी को - मालूम नहीं क्या सोचते हैं ? :( 

अब अगला साल क्या करना है ? 

आज तक प्लानिंग नहीं तो अब क्या करूँ ?? :( 

जे होगा से देखा जायेगा !!! 

आज से हर पोस्ट के साथ एक गीत होगा - लीजिए आज का मेरा पसंदीदा गीत सुनिए :))




रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, December 27, 2010

CNN - IBN अवार्ड समारोह !!

२२ दिसंबर को परिवार को 'पटना' जाना था ! सो मै लंच के बाद कॉलेज से लौट आया ! अभी लिफ्ट में ही था की फोन की घंटी बजी और उधर थे सी एन एन से आकाश - हिन्दी में ही :) बोले आज शाम आप सी एन एन आई बी एन 'अवार्ड समारोह' में आमंत्रित हैं - ताज पैलेस होटल में ! मै मंद मंद मुस्काया और 'प्रभाकर ' को रिंग किया - बोला ..थैंक्स भाई ...! 

फ़्लैट में घुसा तो पत्नी को बोला - तुम लोगों को ट्रेन में बिठा कर - मुझे 'अवार्ड समारोह' के लिये निकल जाऊंगा ! सो कोई बढ़िया सूट निकाल दो - प्रिंस - बंद गला - थ्री पीस - टू पीस - इंग्लिश :( खैर ..एक बढ़िया ग्रे कलर का सूट - सफ़ेद कमीज़ और एक नयी टाई सेलेक्ट हुई - फिर हुआ की स्टेशन पर् 'सूट' गन्दा हो जाएगा - सो कार में ही कोट लटका रहेगा ! 

स्टेशन पर् पहुंचा - वहाँ 'कृष्ण सर ' मिल गए - उनको भी बताया - 'सी एन एन - आई बी एन अवार्ड' समारोह जा रहा हूँ :) 

पुरानी आदत है - समय से पहले पहुँचने का :) आधा घंटा पहले पहुँच गया - लॉबी में खडा था - राजदीप से मुलाकात हुई - ब्लैक कलर के बंद गला में 'गजब के स्मार्ट दिख रहे थे ! स्वभाव से शर्मीला हूँ सो थोड़ी देर बाद आकाश को फोन किया और वो मुझे 'दरबार हौल में पहले से निर्धारित एक टेबल पर् बैठा दिए ! चुप चाप ! थोड़ी दूर पर् थे - 'कुमार  मंगलम बिरला - अपने दादा जी और दादी जी के साथ ' सभी से मिल जुल रहे थे ! धीरे - धीरे  सभी गेस्ट पहुँचाने लगे - वो सभी लोग थे - जिनको आज तक हम जैसे लोग सिर्फ 'अखबार और टी वी ' में ही दिखते थे ! प्रणव मुखर्जी , नितिन गडकरी , सुशील मोदी , ज्योतिराजे सिंधिया , रवि शंकर प्रसाद , विजय त्रिवेदी , सर मेघ्नंद देसाई , "सुधांशु मित्तल" और मालूम नहीं कितने लोग .....हम तो अपने टेबल पर् ऐसे बैठे थे - जैसे इन लोगों से रोज ही मुलाक़ात होती हो .....;) 

प्रोग्राम शुरू हुआ ..राघव जी कुछ बोले ...लिंक लगाया हूँ - आप लोग देख लीजियेगा ....फिर आये 'राजदीप सरदेसाई' ! मै उनको गौर से देख रहा था - आँखों में भोलापन् - चेहरे पर् गजब का आत्मविश्वास ! मै कई 'पत्रकारों' से मिला हूँ - और सबका यह मानना है की 'राजदीप' एक बेहद ही बढ़िया 'इंसान' है ! एक सच्चे नेतृत्व  का यह एक विशेष गुण होता है ! 

और फिर शुरू हुआ - अवार्ड समारोह - मै दो लोगों से बेहद प्रभावित हुआ - एक 'कुमार मंगलम बिरला' - सचमुच - जो वृक्ष फल से लदा होता है - वो उतना ही झुका होता है ! उनके दादा जी 'सी के बिरला और दादी जी' कितने खुश थे ! दूसरे थे - "पत्रकार - गोपीनाथ" जिन्होंने 'टू जी' स्कैम का पर्दाफाश किया - जब वो स्टेज पर् आये तो - पीछे खड़े कई पत्रकार सबसे ज्यादा देर तक - आँखों में खुशी के आंसू लिये 'ताली ' बजा रहे थे ! यह अवार्ड था उन पत्रकारों के लिये - जो 'सता की गलियारी' के चहलकदमी नहीं कर अपना काम ईमानदारी पूर्वक करते हैं - ! 

नितीश को इन्डियन ऑफ द इन्डियन का अवार्ड मिला - मेरे बगल में एक विदेशी और बेहद ख़ूबसूरत - शालीन  महिला बैठी थीं - जब नितीश को अवार्ड मिला तो - खुशी से आंसू आ गए - यह सम्मान - सभी बिहारी के लिये था ! हम तो कुर्सी से खडा हो गया - सबसे देर तक ताली बजाया - विदेशी महिला ने मुझसे पूछा - ये कौन हैं ? मैंने बोला - अगला 'प्रधानमंत्री' :)) मेरे दूसरी तरफ एक बिहारी भाई थे - हम उनके हाव भाव से पहचान लिये थे की - बिहारी हैं - अब भाई इतना बड़ा फंक्शन में - कौन किसको टोके ;) जब नितीश के नाम पर् हम दोनों खडा होकर  - ताली बजाये और एक दूसरे को देख 'मुस्कुराए' तब मैंने बोला - पहले बोलना था न् .."बिहारी" हूँ :)) 

प्रोग्राम खत्म हुआ - भर पेट भोजन हुआ ! "सुधांशु मित्तल" मुझसे कुछ बात करना चाह रहे थे - पर् मेरे पास वक्त नहीं था ! फोन पर् 'प्रभाकर' को बहुत बहुत धन्यवाद दिया - लौटते वक्त रास्ता भूल गया :( एक बिहारी ऑटो वाला मिला - "मोतिहारी" का - उसने रास्ता बताया - 

बढ़िया लगा ....बहुत दिन तक 'नितीश' के शब्द कानो में गूंजते  रहे .....राजदीप का भोलापन याद आता रहा ...कुमार मंगलम बिरला ......गोपीनाथ ....

 प्रोग्राम देखने के लिये - यहाँ क्लिक करें ! जरुर देखें !


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Thursday, December 16, 2010

"अवकात"

"तुम्हारी  अवकात क्या है ? तुम्हारे अवकात का आदमी मेरे घर मुंशी मैनेजर होता है ! तुम जैसे की अवकात जानता हूँ ! अवकात में रहो ! तुम मेरी अवकात क्या समझोगे ? रुको , अपनी अवकात दिखाता हूँ ! देखो इस नीच को - अपनी अवकात दिखा दिया  " 

मालुम नहीं ऐसे कई शब्द कानों में गूंजते हैं !हमें अपनी अवकात से ज्यादा दूसरों की अवकात की ज्यादा चिंता रहती है ! समाज में थोडा कुछ बोलिए नहीं की लोग अपनी अवकात भूल आपकी अवकात नापने लगेंगे ! 

कंकडबाग में किराया के मकान में रहते थे ! पड़ोस वाले के बेटे मेरी उम्र के थे - उनका अपना मकान था ! एक दिन बालकोनी से बोल दिया - "किरायेदार हो , अवकात में रहो " ! आठवीं में पढता था ! बोला नीचे आओ ! वो तीन और मै अकेला ! जम के लड़ाई हुई ! बाबु जी छत से चिल्लाते रहे - मै कहाँ सुनने वाला था ! "उसने बात अवकात की थी - चोट बहुत गहरी लगी थी " ! आज भी वो तीनो भाई मेरे नाम से कांपते हैं ! आज उस मकान से मात्र कुछ सौ मीटर की दूरी पर् हमारा मकान है ! बाबु जी , सभी भाई का - एक साथ ! एक बार रास्ते में मिला - बोला देख लो मेरा अवकात - हम उस खानदान से नहीं आते हैं - जहाँ एक भाई गाँव में खुरपी लेकर 'सोहनी' कर रहा है और दूसरा पटना में मकान पर् मकान बना रहा है ! मै जान बुझ कर उसे अपनी अवकात से ज्यादा बोला था ! बाद में मुझे खुद बहुत बुरा लगा पर् उसकी दी हुई चोट बहुत गहरी थी ! शायद यही एक कारण है की - मै किसी भी किरायेदार को बहुत ही इज्जत करता हूँ ! 

बहुत कम लोग ऐसे होते हैं - जो ताउम्र एक ही रफ़्तार  से आगे बढते हैं ! बाकी की जिंदगी में बहुत उतार और चढाव होता है ! जब किसी की जिंदगी उतर पर्  हो हमें 'अवकात' वाली शब्दों से बचना चाहिए ! कल किसी ने नहीं देखा है ! "गोली" से भी खतरनाक "बोली" होती है ! आदमी नहीं भूलता ! कब किस पर् भगवान मेहरबान हो जाए - कोई नहीं जानता :) 

एम्  टेक करने के बाद मै पटना के एक प्राईवेट कॉलेज में पढाने गया ! उस कॉलेज के चेयरमैन साहब जब तब मुझे मेरी अवकात दिखा देते :) मुझे समझ में नहीं आया ! बाद में पता चला की कॉलेज के संस्थापक और चेयरमैन साहब के पिता जी मेरे ससुर जी के साथ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढते थे - तब शायद मेरे ससुर जी की औकात ज्यादा रही होगी ! जिस दिन मुझे यह पता चला - मैंने उसी वक्त 'नौकरी' को छोड़ा और नॉएडा का ट्रेन पकड़ लिया ! फिर , गया उनसे मिलने :) बंद कमरे में - मै बोला और इस बार उनको सुनना पड़ा ! 

कंकडबाग में हमारे एक पारिवारीक मित्र और हमारे काफी शुभचिंतक बच्चों के एक डॉक्टर हैं ! मेरे और मेरे पिता जी के उम्र के बीच के हैं ! मै उनकी बहुत इज्जत करता हूँ और वो भी मेरी ! कुछ साल पहले - बिहार के बाहुबली लोग उनको थोडा तंग करने लगे ! वो कुछ बर्दाश्त किये ! फिर एक दिन एक बाहुबली को बोला - "डॉक्टर समझ मेरी अवकात मत नाप - जिंदगी के किसी भी परीक्षा में अपने क्लास में 'सेकण्ड' नहीं किया - जिस दिन तुम्हारे धंधे में उतर जाऊंगा - वहाँ फिर मै ही फर्स्ट करूँगा " ! अब बेचारा 'बाहुबली' जो मेरे भी मित्र थे   - एकदम से सहम गए :) मैंने उनको बोला - 'बाहुबली जी , किसी सज्जन पुरुष का अवकात मत नापिए - फेरा में पड़ जाईयेगा " ! 

अभय जी बी पी एस सी परीक्षा में अवल्ल आये - बिहार सरकार में डी एस पी बने ! बात 2006 की है -  उनकी माता जी बीमार थीं और तारा हॉस्पीटल में भरती थीं ! मुझे 'देवेश भैया' का फोन आया - अभय जी से मिल लो ! मै जब तारा हॉस्पीटल पहुंचा तो वहाँ की सेकुरीटी देख मेरा दीमाग खराब हो गया ! काले काले ड्रेस में कमांडो ! कई जिप्सी ! और अभय जी एक कमरे में अपनी माता जी के साथ अकेले बैठे ! पता चला की इतनी सेकुरीटी - बिहार के डी जी पी के पास भी नहीं है ! मामला मैंने अभय जी से खुद पूछा - बोले की 'सिवान का डी एस पी हूँ - 1989 में बहाल हुआ - आज तक फिल्ड पोस्टिंग नहीं हुई - शायद एक खास जाती के होने के कारण - खैर जेल में शहाबुद्दीन को जम के पीटा " ! वो भी एकदम सिनेमा स्टाईल में - जब पीटा तब उसके लोग भी आगे आये - उसने सबको मना कर दिया - और जब मेरे तरफ से लोग आगे आये तो मैंने मना कर दिया - और जी भर उसको पीटा ! 

जी , यही है अवकात ! 

दालान ब्लॉग लोकप्रिय हो रहा है :)) और भी लेखक इससे जुड सकते हैं ! मेरी "अवकात " मत नापियेगा ..मै एक शिक्षक हूँ ...आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता :))

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Wednesday, December 8, 2010

"बिहारी प्राईड - भाग चार "

दो साल पहले की बात है - अचानक से एक ई-मेल आता है - "रँजन जी , अपने गाँव में एक इंजीनियरींग कॉलेज खोलना चाहता हूँ , आप किस तरह से मुझ से जुड सकते हैं " ! ये मेल था - "चंद्रकांत जी " का ! करीब १८-१९ साल पहले की एक घटना याद आ गयी ! उस वक्त बाबु जी के साथ 'तारा हॉस्पीटल' में बैठा था - तब तक 'चंद्रकांत' आते हैं - अपने टेस्टीमोनीयल्स पर् "ऐयटेस्ट" करवाने ! बहुत ही हल्की परिचय हुई थी - उस वक्त ! उनका सेलेक्शन तत्कालीन बिहार के सबसे बढ़िया इंजीनीयरिंग कॉलेज में हुआ था - सिंदरी ! बेहद शर्मीला और ग्रामीण परिवेश की एक झलक ! वो हमारे गाँव के ठीक बगल वाले गाँव के रहने वाले थे ! बीच बीच में उनके बारे में पता चलता रहा ! सिंदरी के बाद वो आई आई टी - मुंबई गए और फिर शादी विवाह और जर्मनी ! खांटी 'इलेक्ट्रिकल इंजिनीयर' हैं ! एक कोशिश उन्होंने 'आई टी सेकटर' में भी की जहाँ वो सन २००१ के हादसे के शिकार हुए ! 

उनका ई-मेल आने के बाद मेरी उत्सुकता बढ़ी और मैंने उनको हरसंभव मदद का वचन दिया ! उनके प्लान काफी क्लेअर थे ! वो एक जिद पर् अड़े थे - जो कुछ भी करूँगा - अपने गाँव में ! उनके गाँव में लोग उत्सुक होने लगे ! धीरे - धीरे माहौल बनने लगा ! उनके पिता जी जो शिक्षक हैं - उन्होंने गाँव को भरोसे में लिया ! 'चंद्रकांत' का प्लान इंजीनियरिंग कॉलेज का था - उनके साथ उनके कई दोस्त भी थे - सभी के सभी सिंदरी वाले - किसी के पिता 'बड़े अफसर' नहीं थे - कोई  आरा का तो कोई मुंगेर का - सभी को 'चंद्रकांत' में असीम विश्वास ! उनकी टीम में मै ही एक अकेला अलग सा था ! बात होते होते - थोडा और करीब आये तो मैंने उन्हें 'स्कूल' खोलने का सलाह दिया क्योंकी इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना इतना आसान नहीं था वो भी पटना से १५० किलोमीटर दूर एक गाँव में ! मै बंगलौर भी गया - चंद्रकांत से मिलने ! १८-१९ साल बाद पहली मुलाक़ात थी - बदल चुके थे ! अपनी कहानी सुनाई - कहते गए - जर्मनी में था - अचानक बेहोश हो गया - हॉस्पीटल गया तो पता चला की 'मधुमेह' है वो भी बहुत सीरियस ! हॉस्पिटल में २ महीना भर्ती कर दिया ! पत्नी अकेली ! एक छोटी बेटी ! माँ-बाबु जी गाँव में ! किसी के पास पासपोर्ट नहीं ! माँ बाबु जी हर रोज रोते थे - कहाँ जाते - किससे कहते - कहाँ आते ? "चंद्रकांत" तुरंत भारत लौट आये और बंगलौर में एक ज़मीन लेकर एक कोठी बनवाई ! फिर भी यहाँ उनका मन नहीं लगता था - फिर अचानक उन्होंने एक डिसीजन लिया - अपनी सारी कमाई अपने गाँव में लगाने की ! गाँव का कई दौरा किया - लोगों का विश्वास जीता और फिर दोस्तों की एक टीम बनाई ! 

फिर वो नितीश के प्रिय 'राघवन' से टाईम लिये  ! मुझे भी बोला आप भी चलिए पटना - मै भी गया ! राघवन के साथ , अशोक सिन्हा जी और संदीप पुण्डरीक थे ! मेरी थोड़ी जिद थी - पटना के आस पास ही खोलने की ! हम सभी इस आशा में थे की सरकार 'चंद्रकांत' को जमीन बाज़ार रेट पर् दे देगी ! संदीप पुण्डरीक के पास जमीन भी थी ! और सूबह में जो मूल्य बताया गया  वो मूल्य बिलकुल 'चंद्रकांत' के फेवर में थे ! सुबह की मुलाकात के बाद - शाम को अशोक सिन्हा जी अपने पास बुलाये - वहाँ जब हम सभी पहुंचे तब तक 'संदीप' जमीन की कीमत चार गुना बढ़ा चुके थे ! हम सभी एकदम 'शौक' में आ गए ! मेरे साथ मेरे बहनोई जी भी थे ! मै 'अशोक सिन्हा' जी की बेबसी समझ रहा था ! और मेरे दीमाग में यही ख्याल आया की 'काश , मै नालंदा का होता ' ! :) खैर अगले दिन हम बिहटा इत्यादी भी घुमे ! शाम को चंद्रकांत अपने गाँव गए और वो अपनी टीम के साथ मीटिंग करने के बाद बोले - वो अपने गाँव में ही स्कूल खोलेंगे ! अब मेरे पास 'कंसल्टेंसी' देने को नहीं रहा ...और उनकी अपनी टीम बीजी हो गयी ! मै बस यहीं से बैठे - शुभकामनायें ही दे सकता था ! 

उन्होंने अपने गाँव में करीब २५ एकड जमीन लिया ! स्कूल बनाया ! और अब स्कूल तेजी से चल रहा है ! जो जमीन उन्होंने लिया - उसकी कीमत ही करीब पांच गुना हो चुकी है ! "चंद्रकांत" इंटरनेट पर् बैठ 'मुखिया जी ' की तरह 'बिहारी प्राईड' नहीं लिखते हैं ! वो पटना के किसी बड़े अफसर के बेटे नहीं हैं ! वो सेंट माइकेल और दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से नहीं पढ़े ! वो ..अपनी कहानी शान से सुनाते हैं - कहते हैं - एक वक्त ऐसा था की बाबु जी मुझे 'एयरफ़ोर्स' में बहाल होने को जोर दे रहे थे - आज वो देश दुनिया घूम अपनी जिंदगी की सारी कमाई अपने गाँव में लगा दिए ! वो अभी चालीस भी पार नहीं किये हैं ! कई 'पेटेंट' उनके नाम से है ! बेहद रईस के तरह  बंगलौर में रहते हैं ! उनके किस्से किसी अखबार में नहीं छपते हैं ! वो 'इलीट' नहीं हैं ! पर् एक जज्बात है - मिटटी के क़र्ज़ को लौटाने का ! यह काम आसान नहीं था ! 

ऐसे कई लोग आपके - हमारे इर्द गिर्द हैं - जिनके जज्बे को सलाम कर हम कई और को प्रेरित कर सकते हैं !! 

अगर आपके पास ऐसी कोई कहानी हो तो मुझे ई-मेल करें - mukhiya.jee@gmail.com 


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, December 5, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरे बिजनेस

अभी कुछ दिन पहले की एक बात है ! एक बिहारी मित्र के यहाँ दोपहर में बैठा हुआ था वो खुद बहुत ही बड़े व्यापारी हैं - तब तक दो सज्जन आये ! मेरे मित्र ने मुझसे भी उनका परिचय कराया ! मैंने बात ही बात में पूछ दिया - आप दोनों क्या करते हैं ? उनमे से एक ने बोला - अजी , मेरा 'बाल्टी' चलता है ! मै कुछ समझा नहीं - तो दुबारा पूछा - 'क्या ???' वो फिर बोले - ' अजी , मेरा 'बाल्टी' चलता है' ! इस बीच मेरे मित्र मंद मंद मुस्कुराने लगे - वो समझ गए - बात मेरी समझ में नहीं आई है ! मेरे मित्र ने मुझे समझाया की हर शनीवार दिल्ली / एनसीआर के सभी रेड लाईट पर् आपको पीतल का बाल्टी मिलेगा - लोग उसमे 'सरसों का तेल' और पैसा डालते हैं - सो , ये दोनों भाईसाहब का दिल्ली में हर शनीवार करीब 'दो तीन सौ' बाल्टी "लगता" है ! पुर टीम है ! वर्कर है ! टेम्पो है ! शनीवार सुबह टेम्पो पर्  तीन सौ 'बाल्टी' लदा जाता है - हर चौक चौराहा पर् उसको रख दिया जाता है -दिन भर लोग उसमे पैसा डालते हैं और कई सरसों का तेल भी 'शनी भगवन' को खुश करने के लिये !  शाम को उसको उठा लिया जाता है ! मै एकदम से भौच्चक रह गया ! फिर खुद को संभाला और पूछा - टर्नओवर कितना है ? दोनों ने बोला - करीब महीना में साठ हज़ार से एक लाख के बीच काट छांट कर बच जाता है ! 

कॉलेज के ज़माने का एक जिगरी दोस्त होता था - चन्दन ! हमसभी उसको 'पंडीत' कहते थे ! कहता था - 'देखो  , नेता - पैसा सड़क पर् गिरा पडा है - उठाने का कुब्बत और दिमाग चाहिए ! 

पिछला दस साल छोड़ दीजिए तो हम बिहारी या जिस समाज से हम आते हैं - वहाँ 'बिजनेस' का अलग मायने था ! कुछ बिजनेस जो मुझे याद हैं और पसंद भी - उनके बारे में कुछ लिखता हूँ ! 

१. दवा का दूकान :- आप मिडिल क्लास से हैं ! चश्मा वाले पढ़ाकू हैं ! कम्पीटिशन देते देते थक गए ! पहले मेडिकल का दिया , फिर बिहार सरकार का क्लास वन , फिर पीओ , फिर बैंक क्लर्क - कहीं कुछ नहीं हुआ ! थोड़ा ठीक ठाक परिवार के हैं ! एमएससी , एमए कर  के किसी प्राईवेट कॉलेज में बहाल हो गए - तनखाह नहीं मिल रहा ! शादी में भी दिक्कत ! तब तक आपके कोई 'फूफा-मामा' सलाह देंगे 'दवा के दूकान' का ! आपको बिहार के अधिकतर दवा के दुकानदार इसी पृष्ठभूमि से नज़र आयेंगे ! आज ही अपने एक छोटे फुफेरे भाई से पूछा - जो की गोपालगंज में दवा का व्यापार करता है - कितना का टर्नओवर हुआ - बोला , चिंकू भैया - अमकी एक करोड 'ठेक' जायेगा :) ! 
२. किताब का दुकान :- मेरा यह पसंदीदा व्यापार है ! पटना के अशोक राजपथ पर् आपको कई पुराने बंगाली दादा लोग मिल जायेंगे - बेहद मीठे बोलने वाले - मै बंगलौर के गंगा राम और सपना बुक शॉप  में घंटों बिताया हूँ ! किताबों से भी ज्यादा बढ़िया मुझे 'मैग्जीन' के दूकान लगते हैं ! नाला रोड के मैग्जीन कॉर्नर पर् मै एक पाँव पर् खड़े होकर कई शाम बिताएं हैं ! मालूम नहीं इस तरह के दुकान कितने फायदे के रह गए हैं - पर् ये कुछ बेहतरीन बिजनेस में से एक है ! पिछले तीस साल में इसके स्वरुप बदले हैं ! पर् जेंटलमैन का बिजनेस आप इसे कह सकते हैं ! 
३.ठेकेदारी : - समाज के जिस वर्ग से मै आता हूँ - वहाँ हर परिवार में आपको एक 'ठेकेदार' जरुर मिल जायेंगे !   एक से बढ़ कर एक 'ठेकेदार' ! एक शादी में गया - पूछा लड़का क्या करता है ? पता चला एक सिनेमा हॉल में 'साईकील स्टैंड' का "ठीका" है ! पिछले आठ साल से नॉएडा - इंदिरापुरम इलाके में हूँ - मुझे बहुत कम बार 'पार्किंग' देना पड़ा - क्योंकी यहाँ के सभी ठेकेदार 'बिहारी' ही हैं :)) आज़ादी के बाद देश निर्माण के समय दो काम हुआ - उत्तर बिहार में हर घर में लोग सड़क निर्माण के 'ठीकेदार' बन् गए - जो ठेकेदार नहीं बने वो 'शिक्षक' बन् गए ! लालू राज में सब ठेकेदार गायब हो गए - अब नितीश राज में 'शांती' का एक वजह यह भी है की - सभी के सभी छोटे बड़े गुंडे 'सड़क निर्माण' के ठेकेदार बन् अब 'स्कोर्पियो और पजेरो' से नीचे बात ही नहीं करते हैं ! 
४.कोचिंग :- याद है मुझे बंगलौर से बाबु जी को फोन किया था - बोला की 'अब ई नौकरी न होई' ;-) बाबूजी पूछे -त का करोगे - मेरा जबाब था - "कोचिंग" ;) लालू राज में बिहार के सभी शहरों में हर गली की बात छोडिए - हर घर में - एक कोचिंग सेंटर खुल गया था ! जिसको देखिये वही एक चौकी लगा के - दू चार विद्यार्थीओं को पढ़ा रहा है ! अरबपति कोचिंग वाले से लेकर तुरंत का मैट्रीक पास किया हुआ - कोचिंग मालिक तक ;) हर वेरायीटी का कोचिंग मालिक और पढाने वाला ! आई आई टी टॉपर से लेकर घींच घांच के मैट्रीक पास तक ! आज भी बिहार के कई कोचिंग वाले हैं जिनकी सलाना आय करीब पांच करोड से लेकर पन्द्रह करोड तक है ! अगर आप इन् कोचिंग मालिकों की तरफ उंगली उठा दिए तो 'पत्रकार' आपको पटना में जिन्दा जला देंगे :)) जी , मै सच कह रहा हूँ ! सम्राट कामदेव सिंह के जमाने में बिहार के पुलीस अधिकारीओं को एक तनखाह सरकार देती थी दूसरी तनखाह - सम्राट देता था ! ;-) 
५. नर्सिंग होम : अगर आप उत्तर बिहार से गंगा ब्रीज से पटना में घुस रहे हैं तो आपको हर दूसरे मकान में एक नर्सिंग होम मिल जायेगा ! :) खासकर कंकडबाग में ! एक कमरे का नर्सींग होम भी है ! तिलक से मिल रहे पैसे से एक कमरे वाले 'नर्सिंग' होम खुल रहे हैं ! हनुमान मंदिर से लेकर एनआरआई तक इस धंधे में अपना पैसा लगा रहे हैं ! 
पर् , नितीश आगमन पर् इस बिजनेस को बल मिला और पटना में कई पुराने नर्सिंग होम खुद को अपग्रेड किये ! इससे सबसे ज्यादा सहूलियत एनआरबी ( अप्रवासी बिहारी ) को मिला - जिनके माता पिता पटना में रह रहे हैं और बेहतर स्वास्थ्य सेवा उनको मिल सकती हैं ! पटना के डॉक्टरों में एक बीमारी होती थी - खुद को आगे बढ़ाते थे - अपने नर्सिंग होम को नहीं - लेकिन अब ऐसा नहीं है ! 

मै आपको पटना के प्राईवेट हॉस्पिटल के अंदर की एक तस्वीर दिखाता हूँ - जो सन १९८६ में खुला था ! पर् नितीश राज के दौरान यहाँ के प्रोमोटर ने इसको एक नया रूप दिया ! "तारा हॉस्पीटल " - बिस्कोमान के ठीक पीछे - मेरे पिता जी भी यहाँ कार्यरत हैं ! 





रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !