रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
Saturday, December 29, 2007
तारे जमीन पर और भी हैं
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
Thursday, December 27, 2007
बेनजीर की अंतिम बिदाई
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhLFTYXTqnLM0gGjs3GrUs-q78YM0CHh8K0DHff_T79M4MjK1PIaBq7RQfoLy1wueewUKCPcGd9zYmAiEdwmP1ukSh0PkVD-bcog5ZKNaDz1dZAIhyphenhyphencN297zb38kV4-eLLEwUP-CczWeM8/s320/Benazir.bmp)
हमे आज भी याद है १९९० का दौर जब उनका दुपट्टा और मुस्कान भारत मे भी काफी मशहूर हुआ था ! हम सभी उनको एक खानदानी और सभ्य महिला के रुप मे जानते थे ! उनके पिता भी काफी कड़क मिजाज थे और पाकिस्तान की राजनीती के शिकार हुए !
किसी भी राष्ट्र की तरक्की वहाँ की राजनीती स्थिरता मे है - यह बात अब पाकिस्तानी राजनेताओं को समझ लेनी चाहिऐ वरना २१ वी सदी की चाल मे वह कहीं अफगानिस्तान न बन जाएँ !रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
लालू और मोदी
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
Monday, December 24, 2007
ई साल भी जा रहा है !
Thursday, December 20, 2007
दिनकर की सांस्कृतिक दृष्टि
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjp3ueIfNfIFciwBLrkrHMMV-AXRP9Ya62GfWqgbuGQFBiBgiPqvrJ6ISIbDh1ZuWGxHpj5MXzBGZ-2MYy4thEMOHRuww_w77e-r-f3etvEZhvC_KX_UKJh3PPy1THqWxgkfvYp80TS68M/s320/dinkar.jpg)
इस वर्ष रामधारी सिंह दिनकर की जन्म शताब्दी है। आधुनिक हिंदी कविता में उनका विशिष्ट स्थान है। कुछ लोग उन्हे छायावादी काव्य का प्रतिलोम मानते है, किंतु इसमें किसी को संदेह नहीं है कि दिनकर ने हिंदी काव्य जगत को उस पर छाए छायावादी कल्पनाजन्य कुहासे से बाहर निकाल कर प्रवाहमयी, ओजस्विनी कविता की धारा से आप्लावित किया। गद्य के क्षेत्र में उनका लगभग 700 पृष्ठों का 'संस्कृति के चार अध्याय' ग्रंथ अपने आप में एक विशिष्ट रचना है। यह ग्रंथ उनके गहन अध्ययन और उसमें से निर्मित दृष्टि को स्पष्ट करने वाली रचना है। दिनकर ने संपूर्ण भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक विकास को चार कालखंडों में विभाजित करके देखा। लेखक की मान्यता है कि भारतीय संस्कृति में चार बड़ी क्रांतियां हुईं। पहली क्रांति आर्यो के भारत में आने और उनके आर्येतर जातियों से संपर्क में आने से हुई। आर्य और आर्येतर जातियों से मिलकर जिस समाज की रचना हुई वही आर्यों अथवा हिंदुओं का बुनियादी समाज बना और आर्य तथा आर्येतर संस्कृतियों के मिलन से जो संस्कृति उत्पन्न हुई वही इस देश की बुनियादी संस्कृति बनी। आर्य कहीं बाहर से इस देश में आए अथवा वे मूलरूप से यहीं के वासी थे, इस संबंध में लंबे समय से बहस होती आ रही है। इतिहासकारों का एक वर्ग मानता है कि आर्य मध्य एशिया, या उत्तरी धु्रव से भारत में आए। कुछ इतिहासकार मानते है कि आर्य इसी भूमि के निवासी थे। मैंने अनेक वर्ष पूर्व डा. संपूर्णानंद की लिखी एक पुस्तक पढ़ी थी-'आर्यो का आदि देश'। उनकी मान्यता थी कि आर्य मूल रूप से सप्त सिंधु प्रदेश के निवासी थे। सात नदियों का यह प्रदेश उत्तर में सिंधु नदी, बीच में पंजाब की पांच नदियों और उसके नीचे सरस्वती नदी से बनता है। इस दृष्टि से इस देश में एक बहुत संवेदनशील वर्ग भी है। आर्यो के बाहर से आने की थीसिस को वे पश्चिमी इतिहासकारों और उनसे प्रभावित कुछ भारतीय इतिहासकारों का षड्यंत्र मानते है।
दिनकर की मान्यता थी कि आर्य मध्य एशिया से आए थे। दिनकर ने आर्य और आर्येतर संस्कृतियों के मिलन की अपने ग्रंथ में व्यापक चर्चा की है। उनका कहना है कि सभ्यता यदि संस्कृति का आदिभौतिक पक्ष है तो भारत में इस पक्ष का अधिक विकास आर्यो ने किया है। इसी प्रकार भारतीय साहित्य के भीतर भावुकता की तरंग अधिकतर आर्य-स्वभाव के भावुक होने के कारण बढ़ी, किंतु भारतीय संस्कृति की कई कोमल विशिष्टताएं, जैसे अहिंसा, सहिष्णुता और वैराग्य-भावना द्रविड़ स्वभाव के प्रभाव से विकसित हुई हैं। वैदिक युग के आर्य मोक्ष के लिए चिंतित नहीं थे, न वे संसार को असार मानकर उससे भागना चाहते थे। उनकी प्रार्थना की ऋचाएं ऐसी है, जिनसे पस्त से-पस्त आदमियों के भीतर भी उमंग की लहर जाग सकती है। वर्ण-व्यवस्था के संबंध में उन्होंने लिखा है कि वर्ण का निर्धारण पहले व्यवसाय, स्वभाव, संस्कृति के आधार पर ही था। पीछे जातिवाद के प्रकट होने पर वर्ण का आधार भी जातिगत हो गया।
दिनकर के अनुसार दूसरी क्रांति तब हुई जब महावीर और गौतम बुद्ध ने स्थापित वैदिक धर्म या संस्कृति के विरुद्ध विद्रोह किया। बुद्ध के समय और उनके ठीक पूर्व इस देश में वैरागियों और संन्यासियों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। उन दिनों के समाज में प्राय: दो प्रकार के लोग थे। एक तो वे जो यज्ञ मात्र को ही इष्ट मानकर वैदिक धर्म का पालन करते थे, किंतु जो लोग इस धर्म से संतुष्ट नहीं होते थे वे संन्यासी हो जाते थे और हठयोग की क्रिया से देह-दंडन करने में सुख मानते थे। यज्ञों में दी जाने वाली पशु बलि की अधिकता से उत्पन्न विक्षोभ को जैन और बौद्ध धर्मो के रूप में वैदिक धर्म के विरुद्ध विद्रोह कहा जाता है। दोनों ही धर्म वेद की प्रामाणिकता को अस्वीकार करते है। दोनों का ही विश्वास है कि सृष्टि की रचना करने वाला कोई देवता नहीं है। आमतौर पर यह माना जाता है कि जैन और बौद्ध मत वेदों की मान्यता को स्वीकार नहीं करते थे, इसलिए वे नास्तिक थे, किंतु दिनकर ने इस मान्यता का खंडन किया है।
भारत में इस्लाम के आगमन, हिंदुओं से उसके संबंध, उसकी टकराहट और विग्रह का इतिहास एक हजार वर्ष से अधिक पुराना है। यह संपूर्ण प्रसंग भ्रांतियों और संवादहीन अवधारणाओं से भरा हुआ है। 'संस्कृति के चार अध्याय' में इस तीसरे अध्याय पर बड़े विस्तृत और अध्ययनपूर्ण ढंग से विचार किया गया है। दिनकर ने यह प्रश्न उठाया है कि कौन सी वह राह है जिस पर चलकर हिंदू मुसलमान के और मुसलमान हिंदू के अधिक समीप आ सकता है। दिनकर का कहना है कि गजनवी और गोरी के साथ जो इस्लाम भारत पहुंचा वह वही इस्लाम नहीं था जिसका आख्यान हजरत मुहम्मद और उनके शुरू के चार खलीफों ने किया था। लगभग दो सौ पृष्ठों में लेखक ने इस्लाम के आगमन, पृष्ठभूमि, इस देश की संस्कृति पर पड़े उसके प्रभाव समीक्षा की है।
इस ग्रंथ का बहुत महत्वपूर्ण चौथा अध्याय भारतीय संस्कृति और यूरोप के संबंध पर आधारित है। सबसे पहले पुर्तगाली भारत आए। फिर डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज इस देश में व्यापार करने आए और उपनिवेश स्थापित करने लगे। धीरे-धीरे सारे देश पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। पश्चिमी संसार के संपर्क में आने के पश्चात भारत में किस प्रकार शिक्षा का विस्तार हुआ, इस पर भी इस अध्याय में चर्चा है। अंग्रेजों के साथ बने संपर्क ने इस देश की जनता में किस प्रकार आत्म-चेतना उत्पन्न की, किस प्रकार विभिन्न समुदायों में पुनर्जागृति की भावना उत्पन्न हुई, इसका विश्लेषण भी इस अध्याय में है। भारत की संस्कृति का मुख्य गुण उसका सामाजिक स्वरूप है। इसे समझने में दिनकर की यह कृति हमारी बहुत सहायता करती है। दिनकर की अनेक मान्यताओं से मतभेद हो सकता है, किंतु यह निश्चित है कि इस देश की सामाजिक संस्कृति को समझने के लिए यह बहुत सार्थक प्रयास था। [डा. महीप सिंह, लेखक जाने-माने साहित्यकार हैं]
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
Tuesday, December 11, 2007
बहुत ठंडा है !!!
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
Monday, November 19, 2007
ढोल बाजे !!!!
रंजनऋतुराज सिंह , नॉएडा
Saturday, November 17, 2007
हे ! छठी मैया !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-B_CBOwRQnsUToekWdM2i0HrB-Aw-HxxjM56dC3QJk0z_9uifRy77vngHEukM_RGwZYdpIV0m28MryZBYT_rTXaqbD-O8TCjcUNbAYvU8VYs6Z_FqQePNZHMqSOXBUerevrFF9z_KJdk/s320/Chhath_Puja_Seattletimes.jpg)
ऊपर वाले फोटो को सिएटल टाईम्स ने अमरीका मे प्रकाशित किया है ! यह हमारी श्रद्धा , बिस्वास , शुद्धता को बयां करता है ! खबरिया चैनल वालों ने भी कल कुछ खास प्रोग्राम भी दिखाया ! दोपहर मे जी न्यूज़ वालों का स्पेसल प्रोग्राम आ रहा था ! देखते देखते ही आंखों से आंसू आने लगे ! सहारा समय भी दिखाया !
Friday, November 16, 2007
आस्था व भक्ति का केन्द्र नोनार का सूर्य मंदिर
ranJan rituraJ sinh , NOIDA
Thursday, November 15, 2007
ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे है देवचंदा का सूर्य मंदिर
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
Wednesday, November 14, 2007
Tuesday, November 13, 2007
महापर्व और घर की याद :- मुखिया के दिल से
कैफी आज़मी साहब के चंद लाईन याद आ रहे हैं -
चंद सीमाओं में, चंद रेखाओं में ,
जिंदगी कैद है , सीता की तरह ,
पता नही ,राम कब लौटेंगे ?
काश ! कोई रावण ही आ जाता ॥
पटना का छठ पूजा बहुत धूम धाम से मनाया जाता है ! इस पूजा कि एक सब से बड़ी खासियत है कि - यह समता भाव का पूजा है ! क्या अमीर , क्या गरीब , क्या राजा और क्या रंक ? क्या घूसखोर और क्या इमानदार , सभी के सभी एक साथ डूबते और उगते सूरज को "अरग" देते हैं ! शाम वाले अरग के दिन आपको पटना का पुरा गाँधी मैदान भरा हुआ नज़र आएगा ! मैंने देखा है - बड़ा से बड़ा आदमी भी माथा पर "डाला" उठाए हुए चल रहा है ! ऐसा जैसे सूरज देवता के सामने सभी बराबर है ! सुबह वाला अरग के समय पर पटना के गांधी सेतु से घात का नजारा देखते ही बनता है !
Monday, November 12, 2007
Tuesday, November 6, 2007
"चक-दे-बिहार" कब होगा ?
मेरे को कौन बोलेगा - तेरे बिहारी ही खबरिया चैनल पर दिखा रहे हैं ?
Wednesday, October 31, 2007
बिहार :- एक ओल्ड एज होम
मेरे "ब्लोग" पढ़ने वाले अधिकतर पूर्वांचल के लोग हैं , जिनको आज कल "बिहारी" कहा जाता है ! सच सच बताएं - आप मे से कितने लोग अपने माँ-पिता जी के साथ रहते हैं ! अगर आपके माँ - पिता जी साथ मे नही रहते हैं तो फिर वह कहाँ रहते हैं ?
आपको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ :-
नितीश कुमार भी सात साल हम जैसे लोगों के लिये कोई जगह नहीं बना सके हैं !
~ रंजन ऋतुराज
Tuesday, October 23, 2007
दालान पढे , क्या ?
Monday, October 22, 2007
आज सोमवार है !
रंजनऋतुराज सिंह , नॉएडा
Thursday, October 18, 2007
दुर्गा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEij6vDlPP91Lp-pFUj6O_aHUBPhSEheU7CmCLffXA7-UGQfaPbvV22kVVBDS1Cxgorj9Gzr2yzk7kWR3rgsPUCSLUquUYPvKU1PzOVXwcU2MAoUB2J0Dx9v1CuHdUjMb8ToA-mUQtrgEPQ/s320/durga2.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRaXACIw_t8tYsWykgMPMoW7ug34CzEyv_2kdnsXrC_gnxE6M57EbDONMCYlcOtzGFKd2WVQAqebWuCg0djyndFeO5kGwptpaIIs3LcqD-Iy2HG3IkRzZpA8bwMDa-Qc75-H-bcOO6-0I/s320/durga1.gif)
नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है। माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। नवरात्रि के सभी नौ दिन इन सभी रूपों में बंटे हुए हैं जो इस प्रकार हैं -
शैलपुत्री -
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम। वषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशिंस्वनीम॥
मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
मां दुर्गा की नौ शिक्तयों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वद्धि होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपाासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भिक्त प्राप्त करता है।
चंद्रघण्टा
पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
मां दुर्गा की तीसरी शिक्त का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि -विधान के अनुसार, मां चंद्रघण्टा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
कूष्माण्डा
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे॥
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरत्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा -उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
स्कन्दमाता
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशिस्वनी॥
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का शस्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य किरयाएं एवं चित्र वित्तयों का लोप हो जाता है।
कात्यायनी
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
कालरात्रि
एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी॥
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और
श्वेते वषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शिक्त अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
मां दुर्गा की नौवीं शिक्त को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Tuesday, October 9, 2007
"चुनाव" नजदीक है !
पहले प्रचार जोर दार ढंग से होता था ! कई लोग ऐसे होते थे जो गाड़ी किसी और उम्मीदवार का , पैसा किसी और उम्मीदवार का और वोट किसी और को ! दुनिया मे सभी जगह जात पात है , चुनाव के दौरान दुसरा जात का वोट पाने के लिए उम्मीदवार बेचैन होते हैं ! अगर आप अपने "जात" के उम्मीदवार के खिलाफ दुसरे जात वाले उम्मीदवार के लिए थोडा भी काम कर रहे हैं तो आपको "दामाद " वाला ट्रीटमेंट मिलेगा ! अधिकतर चुनाव मे , चुनाव के ठीक एक दिन पहले वाली रात मे "निर्णय" होता है ! कहीँ कहीँ एक तरफा मुकाबला होता है - वहाँ मजा नही आता है ! किसी चुनाव मे आप किसी उम्मीदवार के लिए काम कीजिये और देखिए आपको "भारत-पाकिस्तान" वाला क्रिकेट मैच से ज्यादा मजा आएगा !
कई उम्मीदवार समर्थन रहने के वावजूद चुनाव हार जाते हैं - क्योंकि उनमे "चुनाव - प्रबंधन " नही होता है ! कई ऐसे होते हैं - जो पैसा के बल पर चुनाव जीत जाते हैं ! कई पैसा खर्चा कर के भी जीत नही पाते हैं ! कुछ लोग खानदानी चुनाव लड़ने वाले होते हैं - हर चुनाव मे बाप -दादा का २-४ बीघा जमीन बेचने मे हिचकिचाते नही ! मुझे लगता है - आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थान को "चुनाव-प्रबंधन" पर कुछ १-२ साल का डिप्लोमा शुरू करना चाहिऐ !
किसी बडे पार्टी का टिकट जुगार कर लेना भी लगभग चुनाव जितना जैसा होता है ! बहुत दिन तक हमको यह नही पता था कि "टिकट" का होता है ! टिकट कैसा होता है ? एक बार लालू जीं को धोती मे पार्टी का टिकट बाँध कर रखते हुये देखा ! फिर वोही हमको बताये कि - यह पार्टी का स्य्म्बोल होता है - जिसके हाथ मे यह चला गया वोही पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार होता है ! कई जगह पैसा वाले टिकट का दाम बढ़ा देते हैं ! और यहाँ पार्टी पेशोपेश मे पड़ जाती है ! कई जगह टिकट कि नीलामी होती है !
नॉमिनेशन वाले दिन भी थोडा हंगामा जरूरी होता है ! २-४ ठो गाड़ी घोडा , किराया पर "जिंदाबाद - मुर्दाबाद" कराने वाले लोग इत्यादी कि जरूरत होती है ! यहीं आपके खिलाफ या पक्ष मे पहला "हवा" तैयार होता है ! अब यह "हवा" आपके साथ कितना दिन तक रहता है - यह आपका नसीब !
कई बार पढे लिखे विद्वान् लोग चुनाव हार जाते हैं ! "जनता" को विद्वान् से ज्यादा उनके दर्द और तकलीफ को जानने वाला ज्यादा "मत" पता है - भले ही वोह बाद मे बेईमान हो जाये !
"मत गिनती" वाले दिन भी बहुत टेंशन रहता है - पहले कई राउंड होते थे ! "दशहरा - दीपावली " जैसा २ दिन तक कोउन्तिंग होता था ! कभी कोई ४००० से आगे चल रहा है तो कभी कोई ५००० से पीछे ! हमलोग टी वी से बिल्कुल चिपके होते थे ! खैर अब तो सब कुछ - २ -४ घंटो मे ही खतम हो जाता है !
खैर , अगर मरने से पहले एक चुनाव नही लड़े तो क्या किये ? हमारे एक कहावत है - अगर किसी से दुश्मनी है तो उसको एक पुराना चार-पहिया खरीदवा दीजिये और अगर दुश्मनी गहरी है तो "चुनाव" लड्वा दीजिये !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Friday, October 5, 2007
बाहुबलीयों की वक़ालत
आप सभी लोग पढे लिखे हैं - राजनीति का अपराधीकरण कैसे हुआ ? या अपराधियों का राजनीति मे प्रवेश कैसे हुआ ? सुरजभन या अशोक सम्राट जैसे लोगों को कौन पनपाता है ? ईन गिदर को शेर कौन बनाता है ? सिर्फ बंदूक की बदौलत कोई बाहुबली नही बन सकता ! यह मेरा दावा है !
बिहार मे १९८० से १९९० के दशक मे कई बाहुबली पैदा हुये ! बीर मोहबिया , बीरेंद्र सिंह , काली पाण्डेय , सूरज देव सिंह इत्यादी ! लेकिन इनमे दम नही था ! क्योंकि इनकी संख्या कम थी ! राज्य स्तर पर इनकी पहचान नही थी !
१९९० का चुनाव - कई बाहुबली पैदा लिए ! कॉंग्रेस के खिलाफ , लोगों ने इनको चुनकर भेजा ! यह जनता का पैगाम था - राजनीति कराने वालों के लिए ! लेकिन - यह लालू जीं से संभल नही पाए ! सही नेतृत्व के आभाव मे यह सभी कहीँ ना कहीँ जनता की मज़बूरी बन गए ! समाज पहले भी विभाजित था , समाज आज भी विभाजित है और समाज कल भी विभाजित रहेगा ! हाँ , हो सकता है कल विभाजित समाज का पैमाना कुछ अलग हो !
सन २००० का चुनाव और नितीश जीं का मुख्य मंत्री बनाना , १४ निर्दालिये बाहुबली विधायकों का समर्थन लेना वोह भी सूरजभान के नेतृत्व मे ! क्या यह फैसला - बाहुबलियों के मन को बढाना नही था ! क्या इस फैसले ने जनता के गलत फैसले को मजबूत नही किया ? क्या संदेश गया जनता के बीच की सरकार सिर्फ इनकी ही सुन सकती है ! लल्लू के दरबार मे सहबुद्दीन जैसे लोगों को राजा की उपाधि देना । जड़ विहीन लोगों के दवाब मे विश्वा प्रख्यात चिकित्सक सी पी ठाकुर को मंत्रिमंडल से बहार कर देना और पटना एअरपोर्ट पर सी पी ठाकुर का २१ ये के ४७ से आव्गानी करना और सरकार का चुप चाप तमाशा देखना , क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढाना नही है ! क्या हम पूछ सकते हैं श्री नितीश कुमार जीं से की रेल मंत्री होने के नाते सूरजभान को आर्थीक रुप से वोह कितना मजबूत बनाए की आज यह आदमी बिहार का सबसे धनिक लोगों मे से एक है ! जब सूरजभान से मन मुताओ हुआ तो अनंत सिंह को चांदी के सिक्कों से तुलना या फिर अनंत सिंह के दरवाजे पर हर दुसरे दिन जाना ! क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढ़ाने के लिए काफी नही था ? सन २००० के चुनाव मे क्या सोच कर ४० सीट दिये - आनंद मोहन को ! जब वंदना प्रेयसी अनंत सिंह की नकेल कस रही थी तो फिर क्या सोच कर आप उनका ट्रांफर कर दिए ? गुल खाए और गुलगुले से परहेज !
आप राज नेताओं ने इन बाहुबलियों का मन इतना उंचा उठा दिया की सही ढंग से राजनीति कराने वाले ग़ायब हो चुके हैं ! हर गली मुहल्ला मे अपराधी का बोल बाला था ! कानून का भय तो बिल्कुल ही नही है !
खिलाड़ी तो यह राजनेता हैं ! जनता और कुत्ते की मौत मरने वाले अपराधी तो बस गोटी भर ही हैं ! पढे लिखे गरीब बिहारीओं का यह दुर्भाग्य है की "नौकरी" पा कर पेट भर लेना ही उनका एक मात्र लक्ष्य है ! फिर भटके हुये समाज को बाहुबली के अलावा क्या उपाय है ?
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Friday, September 28, 2007
बुद्धिमान और विद्वान्
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Tuesday, September 25, 2007
डिप्रेशन
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Monday, September 24, 2007
पाकिट मे पत्थर और आसमान मे छेद
Tuesday, September 11, 2007
मन नही लगता है - भाग एक
वहीँ पटना मे रहेंगे ! कुछ लोन ले के एक स्कार्पियो गाड़ी ख़रीद लेंगे ! हरा रंग का ! झकास लगेगा ! गाड़ी मे उजाला परदा लगा लेंगे ! सीट पर सफ़ेद तौलिया , फर वाला बिछा देंगे ! २- ४ ठो चेला चपाटी बना लेंगे ! सप्ताह दू सप्ताह पर गांव से घूम आवेंगे !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Saturday, September 8, 2007
बिदाई : श्री मदन मोहन Jha
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhf_WlniEc0WGsKC3L1BJKe3vaLvA8Li-beo6ZYmQPeL37gS5DMpu2bc-ZqPjv0KeNZViaO6Wj0UlFKsoUMSsHsnpqxsVEzCwB2VQtEKzN_knpzGcJqvG5C7oJh0vVGCzzM8jdWGJlVzdk/s320/M_M_jha.jpg)
मूलत: भागलपुर जिले के भागलपुरा गांव निवासी डा.मदन मोहन झा के निधन के वक्त उनकी धर्मपत्नी श्रीमती निशा झा मौजूद थीं। उनके करीबी रिश्तेदार बीएन झा ने बताया कि रिश्ते में उनके ममेरे बहनोई डा. झा के माता-पिता श्रीमती भवानी देवी और शकुन लाल झा जीवित हैं। उन्होंने बताया कि रात साढ़े तीन बजे अचानक उन्हें बेचैनी महसूस हुई। तत्काल एम्बुलेंस बुलाई गई और पीएमसीएच के इन्दिरा गांधी हृदय रोग संस्थान ले जाया गया,जहां चिकित्सकों ने रात के करीब साढ़े चार बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया।
अपने कैरियर का आगाज पटना विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में करने वाले डा.मदन मोहन झा ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि अर्जित की थी। शिक्षा पर उनकी ख्यातिनाम पुस्तक आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेस से प्रकाशित हुई। प्राथमिक शिक्षा और विकलांग शिक्षण पद्धति के राष्ट्रीय विशेषज्ञ माने गए डा.झा भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1976 में आए। डा. झा ने धनबाद और सहरसा समेत कई जिलों के जिलाधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किया। वे भारत सरकार में संयुक्त सचिव भी रहे। बिहार सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर योगदान दे चुके डा. झा 2011 में सेवानिवृत्त होने वाले थे पर नियति को कौन जानता है..!
Wednesday, September 5, 2007
श्री राजू नारायणस्वामी , केरल
- केरल राज्य माध्यमिक परीक्षा मे प्रथम
- +२ परीक्षा मे प्रथम
- IIT-JEE मे प्रथम दस
- IIT-मद्रास मे कंप्यूटर इंजीनियरिंग मे प्रथम
- "मस्सचुसेत्त्स" विश्वविद्यालय से आमंत्रण
- और सिविल परीक्षा , १९९१ मे प्रथम
- केरल कैडर के आईएस अधिकारी
- केरल साहित्य अकादमी से पुरस्कृत
इमानदार छवी के इस अधिकारी के कई बातें मशहूर हैं ! कहते हैं इन्होने ने अपने ससुर को ही कटघरे मे खड़ा कर दिया जब इनके ससुर अपने आईएस दामाद के नाम को भंजाने कि कोशिश कि ! अभी हाल मे ही केरल के एक मंत्री को अपना इस्तीफा देना पड़ा - क्योंकि राजू नारायणस्वामी उनके पीछे पडे थे !
ज्यादा डिटेल मे जानना है तो पढिये :-
http://www.indianexpress.com/story/214374.html
http://think-free.blogspot.com/2005/11/raju-narayanaswamy-ias.html
http://en.wikipedia.org/wiki/Raju_Narayana_Swamy
कुल मिला कर आपको यही लगेगा कि क्या "बिहार-UP " और क्या "केरल" सभी जगह के लोग एक जैसे हैं और सभी जगह SYSTEM मे कुछ ईमानदार अधिकारी है जिनके कारण यह SYSTEM चल रह है ! कुछ ऎसी ही कहानी बिहार के एक IPS अधिकारी कि रही है जिन्होंने अपने ससुर के घर ही vigilence का छापा पड़वा दिया था और मूड खराब हुआ तो राज नेताओं के गरम बिस्तर कि लाश को निकलवा लिया !
समाज को बिना किसी भेद भाव , जात -पात के द्वेष इस तरह के ईमानदार अधिकारीयों को हीरो बनाना चाहिऐ ताकी वोह राज नेताओं को नंगा कर सके !
लेकिन ऐसे अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपने होम कैडर मे ही हीरो बन पाते हैं ! अभी हाल मे ही गुजरात के एक बेहद ईमानदार आईएस अधिकारी जो बिहार के रहने वाले हैं , उन्होने इस्तीफा दे दिया और मुकेश अम्बानी कि team मे सबसे ज्यादा तनखाह पाने वाले अधिकारी बन गए ! दुर्भाग्यवश , मोदी अभी तक उनका इस्तीफा स्वीकार नही किये हैं !
कुछ भी कहिये एक ईमानदार आईएस या IPS के सामने सभी पेशा फीका है !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Sunday, September 2, 2007
असली हीरो !
Saturday, September 1, 2007
संसद और सांसद
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Thursday, August 30, 2007
कुछ खास पत्रकार !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
आज के पत्रकार : कुछ सवाल
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Thursday, August 23, 2007
गुनाहों का देवता !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNIq1ub7uwv0cwhm_CLuD6s88IRYwOp0g_c2xehYQDb1YtbxZIrcmGQEENDKHR1MjaOz0NGp7btkIy3F7g-Hl3RyJZXAoikUu-WawPt8MKPsJUganyIkzJTBr1ymUEfTyNCm91W8FiuGI/s320/Sanju_Baba.bmp)
Wednesday, August 22, 2007
चौंकिए मत ! यह "पटना" है !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQKoeelPl7QRXgq2s1W9U7ICVvF2Ma_TTZOdMgtCnQ3VSMj_Alql0r7wk-xAHwoxFFf7hvrnFAuWgeZMghyfP5hjoO5lwd6nCY4PRgBRBRSI5cuaN17s4X3i2hyphenhyphensR5ltlR8xR8V_s7KNI/s320/biscomaun_aerial1.jpg)
Tuesday, August 21, 2007
कडी मेहनत और सुकून : श्री अजीत चौहान
अजीत जीं मे असीम उर्जा है ! साथ ही साथ धारातल पर रह कर खुद अपने पैरों पर खडे एक सच्चे बिहारी हैं ! हाल मे ही इनके team द्वारा गौरवशाली बिहार नमक किताब छापी गयी थी ! अजीत जीं के दोस्त और मेरे हमउम्र श्री चंदन जीं का काफी योगदान था इस किताब को प्रकाशित कराने मे ! इन सबों मे प्रथम और एक मजबूत कडी हैं - अजीत जीं !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Sunday, August 19, 2007
वाह रे हिंदुस्तान - लेफ्ट - लेफ्ट -लेफ्ट !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Saturday, August 18, 2007
हिम्मत, नेक इरादे और साहस कि अंतिम बिदाई
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVcw6SAtsT_Q-C5GUt8SitHDmFQJ6DdYEWb7pq1zm-bURykEdhb-HrDxykl-OZW4iWOaC3ZJRDid9nlyF21vZdXjBcEmkDbCsaOK2WhcCMCcTKpwMFBWizr5hzZraOLny2ZMH7uvsLuA4/s320/Dashrath_Manjhi.jpg)
पत्नी के प्रेम में 22 वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद गया जिले में गहलौर पहाड़ को काटकर गिराने वाले दशरथ मांझी (78) का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार की शाम निधन हो गया। लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल बाबा मांझी एम्स में भर्ती थे। उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होगी। ऐसा निर्देश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिया है। मूलरूप से गया जिले के अतरी के रहने वाले दशरथ मांझी गांव में ही रहकर खेती करते थे। करीब 47 वर्ष पूर्व एक दिन उनकी पत्नी खेत में उनके लिए खाना लेकर आ रही थी कि गांव के निकट गहलौर पहाड़ पर उनका पैर फिसल गया और कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गई। पत्नी की मौत के लिए पहाड़ को जिम्मेवार मानते हुए उन्होंने पहाड़ को गिराने की ठान ली। करीब 22 साल तक वह छेनी हथौड़ी लेकर इस काम में जुटे रहे और आखिरकार 1982 में सफल हुए। वह गया से पैदल चलकर दिल्ली आए। इस अद्भुत कार्य के लिए 1999 में उनका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हुआ था। पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक वह लंबे समय से बीमार थे। कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी स्वस्थ न होने पर उन्हें दिल्ली लाया गया। वह विगत 24 जुलाई से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे, जहां शुक्रवार शाम उनका निधन हो गया। उनके इलाज का खर्च राज्य सरकार वहन कर रही थी। पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से उनका शव गया लाया जा रहा है। मांझी की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होगी। उन्होंने पहाड़ को काटकर जिस सड़क का निर्माण किया था अब उसे सरकार बनाएगी। कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिल चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वे कर्मठता की जीवंत मिसाल थे। गहलौर पहाड़ी को काटकर जिस सड़क का निर्माण उन्होंने किया उस पथ का नाम दशरथ मांझी पथ कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने गांव में एक अस्पताल भी शुरू किया था। उक्त अस्पताल का नाम भी अब दशरथ मांझी अस्पताल होगा। भू-राजस्व मंत्री रामनाथ ठाकुर ने भी दशरथ मांझी के निधन पर शोक जताया है।
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
Friday, August 17, 2007
करियेगा खेला ?
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhtbm-8kbzyTdOB5ZNxBVgGFYV2wLAl_mQ68kCHGsoBWxcJp1qd6jv7q_PisZn7McORiaZkQ50qc9jsEK6_S6xSIhzKFar6CqLkm9msdmtxN2IKBzzhcgue5AhlZJ2uDqIAomoFyXGNwSk/s320/Pawan_Cartoon.jpg)
Thursday, August 16, 2007
श्रद्घांजलि : श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा
Tuesday, August 14, 2007
धन्नो का देश प्रेम !
यहाँ पति और पत्नी के बीच तकरार चल रह है ! पत्नी अपने पति से "सोना के अंगूठी " का आग्रह कर रही है और पति उसको प्रेम्वार्तालाप मे ही कुछ और ला कर देने कि बात कह रहा है !
लीजिये :-
पत्नी : अरे , ये हो पिया , हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
पति : अरे , ना हो ! धन्नो , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !
पत्नी : अरे , ना हो पिया , हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
पति : अरे , ना हो धन्नो , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !
लाली रे चुनरिया , पहिन के चलबू तू डगरिया !
लागी स्वर्ग से उतरल हो कठपुतली !
से , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !
( अब थक हार के पत्नी कुछ और बोलती है , जरा ध्यान से सुनिये )
पत्नी : 'ननदी' के अंगूरी के सोना , कईलक हमारा मन पर 'टोना' !
पिया , सोना ना मंगाइब त घर मे कलह पडी !
हो , पिया ! हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
( पत्नी के इस तर्क के सामने अब पति थक हार जाता है और जो बोलता है , उसे देखिए )
पति : अरे धन्नो , सोनवा विदेश जाई , जा के "मिग -जेट " लाई !
तब तहरा " सिन्दूर के रक्षा " होई !
से , धन्नो , तोहके मंगाइब 'पटना' के चुनरी !
( पति कि बात सुन के पत्नी भव भिह्वाल हो जाती है , सोना विदेश जाएगा , तब तो हमारे देश मे "मिग-जेट" आएगा और "सिन्दूर कि रक्षा" होगी ! अब सुनिये , कितनी सरलता से पत्नी बोलती है )
पत्नी : अरे , हाँ हो पिया , हमके मंगा द पटना के चुनरी !!!
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दोस्तों ! काल्ह १५ अगस्त है ! १९६२ , १९६५ , १९७१ और कारगिल मे कई माँ ने अपने सपूत खोये होंगे , कई बहन के भाई कि कलाई राखी के बिना ही चिता पर सजी होगी ! कितने बच्चे अपने पिता को खोये होंगे !कई औरतों के सुहाग सुने हुये होंगे !
प्रदीप जीं कि कविता याद आ रही है :-
ए मेरे वतन के लोगों
जरा , आंख मे भर लो पानी
शहीद हुये हैं , उनकी
जरा याद करो कुर्बानी
जय हिंद ! जय हिंद ! जय हिंद !
रंजन ऋतुराज सिंह ,नौएडा