गांव याद आ गया ! बचपन में कुछ दिनों के लिए गांव के स्कूल में पढ़ा था ! 'मंगला' नाम था उसका ! मेरे परिवार के लिए माल मवेशी को खिलाने- पिलाने वाले 'फिरंगी' का बेटा ! 'फिरंगी' बहुत गोरे थे इस लिए उनका नाम 'फिरंगी' रखा गया होगा ! हर सुबह दस बजे 'मंगला' अपने घर से मेरे घर आता और हम लोग स्कूल जाते ! और भी कई विद्यार्थी थे ! शादी-शुदा शिक्षिका को हम लोग 'देवी जी ' कहते थे और कुंवारी शिक्षक को 'बहिन जी ' ! 'तिवारी जी माट साहब' , 'सिंह जी माट साहब ' और ना जाने कितने लोग ! कुछ पास के गाँव के रहने वाले तो कोई काफी दूर के रहने वाले ! 'सिंह साहब ' हम लोगों के दालान में ही रहते थे ! शनिवार को वो अपने गाँव चले जाते - साइकील से !
मालूम नहीं कब मै शहर चला आया ! पर , हर छुट्टी में गांव आना - जाना लगा रहा ! कुछ दिनों बाद - गाँव गया तो 'मंगला' को देखा ! वो मेरे घर में बगल वाले मेरे बगीचे में काम कर रहा था ! मै आँगन से उसे देख दौड पड़ा ! उसके हाथ में 'खुरपी' और 'टोकरी' थी ! मैंने बोला - चल , खेलने ! उसका सर नीचा था - खुरपी चलाते चलाते हुए बोला - नहीं , काम करना है ! मैंने - धीरे से बोला - स्कूल जाते हो ?
वोह चुप था !
धीरे - धीरे 'मंगला' के हाथों में खुरपी की जगह 'कुदाल ' ने ले ली ! २ साल पहले गाँव गया तो 'मंगला ' मिला - उसको बोला - चल , दिल्ली - नौकरी दिलवा दूँगा - किसी आफिस में ! वो हँसने लगा - बोला - हम अनपढ़ को कौन नौकरी देगा ! मन दुखी हो गया ! सोचा , अगर 'मंगला' थोडा भी पढ़ा होता तो मेरे साथ दिल्ली में ही रहता - जिंदगी थोड़ी और बेहतर होती !
( यह वर्णन सच्ची है ! भावना में बहने के कारण - पूरी तरह विस्तार से बहुत कुछ नहीं लिख पाया )
आज सुना कल पहली अप्रैल से भारत सरकार ६ से १४ साल के बच्चों के लिए 'शिक्षा' को मौलिक अधिकार बना रही है ! बहुत खुशी हुई ! काबिल कपिल सिब्बल 'शिक्षा' में बहुत परिवर्तन कर रहे हैं - इसका असर क्या होगा ? मुझे नहीं पता ! पर उनकी सोच में इमानदारी है - जिसकी क़द्र होनी चाहिए !
शायद , यह एक बहुत बड़ा कारण है की - मै बिहार में पदस्थापित पुलिस अधिकारी 'श्री अभय आनंद' का एक बहुत ही बड़ा समर्थक हूँ !
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !