Thursday, March 11, 2010

बिहार सरकार का विज्ञापन !

मै हर रात १० बजे ईटीवी –बिहार समाचार देखता हूँ फिर अगर मूड हुआ तो १०३० बजे रात ‘महुआ चैनल’ ! कल रात भी देखा – अचानक से ‘महुआ चैनल’ पर नीतीश कुमार नज़र आये वो भी ‘इकोनोमिक टाईम्स अवार्ड’ समारोह में ! पहले तो बढ़िया लगा ! फिर मै चौंका – अरे ये तो ‘विज्ञापन’ है ! सोचा १-२ मिनट तक चलेगा – पर वो १५ मिनट तक चला ! खुशी ज्यादा देर तक नहीं रही ! अब मुझे यह नहीं पता की यह ‘विज्ञापन’ किसने दिया – नीतीश के ‘फैन’ बढ़ रहे हैं – सो सोचा शायद कोई अमीर ‘फेसबुक’ वाला नीतीश कुमार के लिए यह प्रचार कर रहा होगा ! यही सोच मै सो गया ! पर , यह बात कुछ हजम नहीं कर पाया !



शायद , यह विज्ञापन ‘बिहार सरकार’ की तरफ से दिखाया जा रहा होगा ! अगर ऐसा है तो – यह बिलकुल ही गलत है ! बिहार एक गरीब प्रदेश है जहाँ की जनता अपना पेट काट कर ‘टैक्स’ जमा कराती है अगर जनता के खून –पसीना की कमाई को इस तरह ‘व्यक्ति-विशेष’ के इमेज सुधार के रूप में दिखाया जायेगा तो बहुत ही गलत होगा ! दिखाना ही था तो नीतिश कुमार की जगह ‘बिहार की चमकती सड़कें और उन सडकों पर साइकील से स्कूल जाती हमारी बहने और बेटिओं’ को दिखाते तो शायद यह एक बढ़िया सन्देश जाता !

इस तरह के कई करोड के ‘विज्ञापन’ ‘मीडिया’ की झोली में जा चुके हैं – शायद यही एक वजह है – इस साल ‘मीडिया’ ने सब से ज्यादा पुरस्कार ‘नीतीश कुमार ‘ को  दिए हैं ! यहीं से शुरू होता है – लोकतंत्र पर मिल जुल कर ‘कब्ज़ा’ करने की साजिश !




एन डी टी वी के वरिष्ठ पत्रकार ‘रवीश कुमार’ लिखते हैं - पटना में जिस भी पत्रकार से मिला,सबने यही कहा कि ख़िलाफ़ ख़बर लिखियेगा तो नीतीश जी विज्ञापन रोक देते हैं। अगर उनके साथ रहिये तो सरकारी विज्ञापनों का पेमेंट जल्दी मिल जाता है। सरकार विरोधी मामूली ख़बरों पर भी दिल्ली से अख़बारों के बड़े संपादकों और प्रबंधकों को सीएम के सामने पेश होना पड़ा है। पंद्रह साल के जंगल राज को खतम करने में पत्रकारों की संघर्षपूर्ण भूमिका रही थी। नीतीश को नहीं भूलना चाहिए। अभिव्यक्ति की आज़ादी का ही लाभ था कि उनकी सरकार बन पाई। समझना मुश्किल है कि जिस सीएम को जनता सम्मान करती है,लोग उसके काम की सराहना करते हैं, मीडिया भी गुणगान करती है, उसे एकाध खिलाफ सी लगने वाली खबरों से घबराहट कैसी? कोई अच्छा काम करे तो जयजयकार होनी भी चाहिए लेकिन आलोचना की जगह तब भी बनती है जब बिहार में कोई स्वर्णयुग आ जाएगा। पटना के पत्रकार कभी इतने कमज़ोर नहीं लगे।

एक दूसरे पत्रकार दबी जुबान कहते हैं – गुजरात में विकास है पर वहाँ दंगे हुए , बिहार में विकास हो रहा है लेकिन यहाँ जाति के नाम पर ‘प्रतिभा’ का क़त्ल किया जा रहा है ! सभी प्रमुख पदों पर एक य दो जाति के ही लोग बैठे हैं ! उसका इशारा साफ़ साफ़ था !

घमंड का ही अगला रूप ‘अहंकार’ होता है और भगवान का भोजन ‘मनुष्य’ का अहंकार है ! नीतीश कुमार भी एक मनुष्य ही हैं – भगवान नहीं !



रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

अच्छा लगा आपको पढ़कर... सरकारी विज्ञापन राज्य सरकारों की थाती रही है (मायावती अग्रणी हैं)... जब काम अच्छे हो रहे हैं तो महंगे विज्ञापन भी बर्दाश्त करना होगा... खासकर चुनाव के समय...
पत्रकार जनभावनाओं को लेकर चले... टेलीविजन मीडिया तो ज्यादातर बिकने की शर्त पर ही काम करते हैं... अभी बिहार में बहुत सी लडाइयां लड़नी बाकी है... प्रतिभा पलायन सबसे पहले रोकना होगा... उद्योग जगत को सही वातावरण देना होगा...

सही छवि बनाना और इसका निर्वाह करना भी हम सब का दायित्व है.

जनजागरण जरुरी है मगर सरकार की कुर्सियां हिलाने के लिए नहीं... असामाजिक और भ्रष्ट विधायक किसी भी कीमत पर न चुने जाएँ इसका ख्याल सभी जिले के नागरिकों को रखना होगा... चाहे वे किसी भी पार्टी या जाति से हों..

सुलभ
http://arariatoday.com/

ravishndtv said...

पटना में पोस्टर भी लगा था जिसमें नीतीश को चैनलों द्वारा विकास पुरुष का अवार्ड दिया जा रहा है। सही है गरीबों का पैसा बर्बाद किया जा रहा है। पुण्य प्रसून वाजपेयी ने भी लिखा है कि नीतीश ने सौ करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किये हैं। जनसत्ता में उनका लेख था। चेक कीजिएगा।

Fighter Jet said...

agar paisa barabd kar bhi agar nitish kumar bihar ko pragati ki rah par le ate hai to..mujhe koi aapati nahi
kam se kam lau ke raj se to accha hi hoga...

संजय शर्मा said...

"समरथ के नहीं दोष गोसाई"