Sunday, January 19, 2020

प्रेम और युद्ध

#LoveAndWar
दिनकर लिखते हैं - " समस्या युद्ध की हो अथवा प्रेम की, कठिनाइयाँ सर्वत्र समान हैं। " - दोनों में बहुत साहस चाहिए होता है ! हवा में तलवार भांजना 'युद्ध' नहीं होता और ना ही कविता लिख सन्देश भेजना प्रेम होता है ! युद्ध और प्रेम दोनों की भावनात्मक इंटेंसिटी एक ही है ! युद्ध में किसी की जान ले लेने की शक्ती होनी चाहिए और प्रेम में खुद को विलीन करने की शक्ती ! दोनों का मजा तभी है - जब सामनेवाला भी उसी कला और साहस से मैदान में है ! कई बार बगैर कौशल भी - साहस से कई युद्ध या प्रेम जीता जाता है - कई बार सारे कौशल ...साहस की कमी के कारण वहीँ ढेर हो जाते हैं ...जहाँ से वो पनपे होते हैं ! और एक हल्की चूक - युद्ध में जान ले सकती है और प्रेम में नज़र से गिरा सकती है ! 
इतिहास गवाह है - ऐसे शूरवीरों से भरा पडा है - जिसने प्रेम में खुद को समर्पित किया और वही इंसान युद्ध में किसी को मार गिराया - यह ईश्वरीय देन है - भोग का महत्व भी वही समझ सकता है - जिसने कभी कुछ त्याग किया हो ! 
कहते हैं - राजा दशरथ किसी युद्ध से विजेता होकर - जब कैकेयी के कमरे में घुसे तो उनके पैर कांपने लगे - यह वही कर सकता है - जिसे युद्ध और प्रेम दोनों की समझ हो ! दोनों में पौरुषता और वीरता दोनों की अनन्त शक्ती होनी चाहिए ! पृथ्वीराज चौहान वीर थे - प्रेम भी उसी कौशल और साहस से किया - जिस कौशल और साहस से युद्ध ! मैंने इतिहास नहीं पढ़ा है - पर कई पौरुष इर्द गिर्द भी नज़र आये - जिनसे आप सीखते हैं ! हर पुरुष की तमन्ना होती है - वो खुद को पूर्णता के तरफ ले जाए - और  यह सफ़र आसान नहीं होता ! 
युद्ध और प्रेम ...दोनों के अपने नियम होते हैं - और दोनों में जो हार जाता है - उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है ! रोमांस / इश्क प्रेम नहीं है ...महज एक कल्पना है ! फीलिंग्स नीड्स एक्शन - जब भावनाएं एक्शन डिमांड करती हैं - तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है - तब पता चलता है - ख्यालों को मन में पालना और उन्हें हकीकत में उतारना - कितना मुश्किल कार्य है ! 
युद्ध के सामान ही प्रेम आपसे एक एक कर के सब कुछ माँगता चला जाता है - देनेवाला किसी भी हाल में लेनेवाले से उंचा और ऊपर होता है - युद्ध में हारने वाला आपसे माफी मांगता है - प्रेम में बहाने बनाता है - युद्ध में आप माफ़ कर सकते हैं - पर प्रेम में कभी माफी नहीं मिलती - युद्ध भी कभी कभी प्रेम में बदल जाता है और सबसे बड़ी मुश्किल तब होती जब आप जिससे प्रेम करे - उसी से युद्ध करना पड़े ! और उसी इंटेंसिटी से करें - जिस इंटेंसिटी से प्रेम किया था - फिर तो ....वह दुबारा भगोड़ा हो सकता है ...:)) 
#DaalaanClassic
@RR

Saturday, January 18, 2020

कहानी जूता और पॉलिश की


कहानी जूता और पॉलिश की :
इस जूते की एक कहानी है । जब ये नया था , फरवरी 2014 में नोएडा के एक विश्व विख्यात शादी को अटेंड करने के बाद , इंदिरापुरम आवास के एक लंबे पर्दे के पीछे खिड़की पर रख भूल गया । बाद में लगा कि जूता चोरी हो गया । उस वक़्त उस तथाकथित चोरी पर कुछ लिख भी दिया । खैर चार साल बाद , इंदिरापुरम आवास को किराया पर चढ़ाते वक़्त , सामान खाली करते वक़्त , यह जूता वापस नजर आया । चार साल तक यह उसी जगह चुप चाप बैठा रहा । फिर पटना आ गया । फिर इसका गोंद इसका सोल छोड़ दिया तो मैंने लोकल सोल लगवा पहनना शुरू किया । पिछले साल एक दिन भी नहीं पहना । इस साल फिर से शुरू । पिछले 18 साल से एक ही ब्रांड और एक ही डिजाईन ।
" हम पुरुषों के लिए जूता और टोपी का बहुत महत्व होता है - अनजान महफिलों में हमारी पहचान यही दोनों तय करती है " । ऑफिस के पास दो मोची जी लोग बैठते हैं । आज वहां पॉलिश करवाने गया तो उन्होंने कहा कि - " अब वो सुगंधित चेरी पॉलिश नहीं आता , ब्रांड वही रह गया लेकिन कंपनी बदल गई , शायद इसलिए अब चेरी में वो खुशबू नहीं आती " । मै थोड़ा उदास हुआ । फिर उन्होंने कहा कि - कभी लिक्विड पॉलिश नहीं प्रयोग करें , चमड़ा बर्बाद कर देता है ...इत्यादि छोटे छोटे ज्ञान । मै स्टूल पर बैठ , उनसे गप्प लड़ाते रहा ।
अभी मूड हुआ तो चेरी पॉलिश कंपनी का इतिहास पढ़ा । सन 1906 में डेन और चार्ल्स ने इस पॉलिश की शुरुआत लंदन में की । फिर अपनी मार्केटिंग स्किल की बदौलत इसे चेरी को घर घर पहुंचाया । सन 1911 में इस कंपनी ने लंदन के क्रिस्टल पैलेस को एक दिन के लिए किराया पर लिया और आम जनता के लिए खोला , इस शर्त के साथ की जो इस पोलिश के टीन के साथ आएगा , उसी को प्रवेश मिलेगी :))
फिर कंपनी बनी , रेकिट और कोलमैन ने खरीदा , फिर बहुत कुछ हुआ और अंत में सन 1994 में एक दूसरी कंपनी इस ब्रांड की मालकिन बनी । शायद तभी से वो ख़ास चेरी पॉलिश वाली सुगंध गायब हुई ।
पर , मुझे ढेर सारे जूते और उन्हें सुबह सुबह पॉलिश करना बेहद पसंद , बेहद :)) छुट्टियों के दिन खासकर - हल्ला गाड़ी की चिंता किए बगैर ;)
कभी फुर्सत मिले तो अपने पसंदीदा ब्रांड के बारे में गूगल पर पढ़िए । मजा आएगा ।
ब्रांड बहुत बड़ी चीज होती है - और एक बार बन जाए तो उसे सहजने में दम निकल जाता है , है कि नहीं ? हा हा हा ।
~ रंजन / दालान / 16.01.20
#DaalaanDiary - Day 16 / 2020
@RR

हर ज़िन्दगी एक कहानी है ....

हर ज़िंदगी एक कहानी है ! पर कोई कहानी पूर्ण नहीं है ! हर कहानी के कुछ पन्ने गायब हैं ! हर एक इंसान को हक़ है, वो अपने ज़िंदगी के उन पन्नों को फिर से नहीं पढ़े या पढाए, उनको हमेशा के लिए गायब कर देना ही - कहानी को सुन्दर बनाता है ! "अतीत के काले पन्नों में जीना वर्तमान को ज़हरीला बना देता है - और जब वर्तमान ही ज़हरीला है फिर भविष्य कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता "
काले पन्ने कभी भी ना खुद के लिए प्रेरणादायक होते हैं और ना ही दूसरों के लिए ! भगवान् भी अवतार बन के आये तो उन्हें भी इस पृथ्वी पर 'अप - डाउन ' देखना पडा ! उनके कष्ट को हमारे सामने पेश तो किया गया पर काले पन्नों को कहानीकार बखूबी गायब कर दिए !
कोई इंसान खुद कितना भी बड़ा क्यों न हो - वो अपने जीवन के एक 'ब्लैक होल' से जरुर गुजरता है - अब वह 'ब्लैक होल' कितना बड़ा / लंबा है - यह बहुत कुछ नसीब / दुर्बल मन / और अन्य कारकों पर निर्भर करता है !
हर इंसान खुद को सुखी देखना चाहे या न चाहे - पर खुद को शांती में देखना चाहता है - कई बार ये अशांती कृतिम / आर्टिफिसियल भी होती है - थोड़े से मजबूत मन से इस कृतिम अशांती को दूर किया जा सकता है - पर कई बार 'लत / आदत' हमें घेरे रहती हैं - आपके जीवन में शांती हो, यह सिर्फ आपके लिए ही जरुरी नहीं है - इस पृथ्वी पर कोई अकेला नहीं होता - यह एक जबरदस्त भ्रम है की हम अकेले होते हैं - हर वक़्त आपके साथ कोई और भी होता है - एक उदहारण देता हूँ - ऋषी / मुनी जंगल में जाते थे - बचपन की कई कहानीओं में वैसे ऋषी / मुनी के साथ कोई जानवर भी होता था - जिसके भावना / आहार / सुरक्षा की क़द्र वो करते थे - ऐसा ही कुछ इस संसार में भी होता है - आप कभी भी / किसी भी अवस्था में 'अकेले' नहीं हैं - इस धरती का कोई न कोई प्राणी आपपर भावनात्मक / आर्थीक / शारीरिक रूप से निर्भर है - या आप किसी के ऊपर निर्भर हैं !
तो बात चल रही थी जीवन के काले पन्नों की ...ईश्वर ने हमें एक बड़ी ही खुबसूरत तोहफा दिया है - "भूलने की शक्ती" - हम अपने जीवन के काले पन्नों को सिर्फ फाड़ना ही नहीं चाहते बल्की उन्हें इस कदर फेंक देना चाहते हैं - जैसे वो कभी हमारे हिस्से ही नहीं रहे - उस काले पन्ने में 'कोई इंसान / कोई काल - समय / कोई जगह' - कुछ भी शामिल हो सकता है ! पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है - Out of sight -out of mind - और जब तक यह नहीं होगा - आप काले पन्नों में ही उलझे रह जायेंगे - और आगे की कहानी भी बगैर स्याही ..न जाने क्या क्या लिखेगी :)
हिम्मत कीजिए - कृतिम अशांती और काले पन्नों से बाहर निकलिए ,खुद के लिए !
18.01.15

@RR

लिखना मेरी आदत




'पहले आदत थी ...कुछ न कुछ ..कहीं भी ..जो मन में आया लिख दिया ...पर अब यह आदत खून में घुस चुकी है ...अब ऐसा लगता है ...बिना लिखे नहीं रह सकता ...:( हर 'लिखनेवाले' की एक अपनी शैली होती है ...मेरी भी कुछ होगी ..जो शायद मुझे नहीं पता ...लेकिन एक ही शैली में लिखने का यह डर होता है ..कहीं आपको पढने वाले आपसे 'उब' न जाएँ ..खैर ..यह प्रकृती का नियम है ..जो करीब आता है ..उससे एक उब हो ही जाती है ...पर अगर आप सही में मेरे चाहने वाले हैं ..फिर थोडा वक़्त दीजिये ..जो ढंग कहियेगा ..उसी ढंग से लिख दूंगा ...'गुंथे हुए आटा' की तरह प्रवृती है ...जो रूप देना चाहेंगे ..उसी में ढल जाऊंगा .."इलेक्ट्रोनिक युग का आदमी हूँ ...बिना खुद का प्रचार किये हुए भी ..एक वर्चुअल स्टारडम भी महसूस किया हूँ "
याद है... बचपन में ...'माँ / दादी / रसोईया' रोटी बना रहे होते थे ...और वहीँ पास में हम 'गुंथे हुए आटे' से 'चिड़िया'...फिर 'माँ / दादी' से जिद करना ...इसे भी आग में पका दो ..:))
एक जिद तो कीजिए ...मेरी परिधी को ध्यान में रखते हुए ..:)) फुर्सत रहा तो अवश्य उस विषय पर लिखूंगा ...जहां तक मेरी समझ ...जहां तक मेरी पहुंच ...जहां तक मेरी परिधि ...:))
जहां तक किताब छापने की बात है ...उससे क्या हो जाएगा ? अगर लोगों को पसंद नहीं आई तो ...मुफ्त में बांटना होगा ....सोशल मीडिया मुफ्त का प्लैटफॉर्म है तो लोग यहां कुछ भी पढ़ लेते है ...खरीद कर कौन पढ़ेगा ?? :( ' रिजेक्शन ' पसंद नहीं ...आत्मा को चोट पहुंचती है ...फिर क्यों उस लाईन में खड़ा रहना ... 😐
फिलहाल मुझे वो आटे वाली चिड़िया याद आ रही है ...टुकुर टुकुर देखती वो चिड़िया ....कह रही ...मुझे भी आग में पका दोगे ? नहीं पकाया तो रात भर में जम जाओगी ....गुस्सा आया तो चिड़िया की जगह कुछ और बना दूंगा ...हो क्या तुम ? बस एक आटे कि लोई ... 😐
चला मै दरवाजे पर लट्टू नचाने ....पुरुष जो हूं ...पल में आटे कि लोई वाली चिड़िया तो अगले पल माथे में लट्टू नचाने का भूत ...:))
~ रंजन / दालान / 18.01.20
#daalaandiary - Day 18 / 2020
{ शुरुआत के कुछ वाक्य २०१४ के एक पोस्ट से }

@RR