Saturday, January 18, 2020

लिखना मेरी आदत




'पहले आदत थी ...कुछ न कुछ ..कहीं भी ..जो मन में आया लिख दिया ...पर अब यह आदत खून में घुस चुकी है ...अब ऐसा लगता है ...बिना लिखे नहीं रह सकता ...:( हर 'लिखनेवाले' की एक अपनी शैली होती है ...मेरी भी कुछ होगी ..जो शायद मुझे नहीं पता ...लेकिन एक ही शैली में लिखने का यह डर होता है ..कहीं आपको पढने वाले आपसे 'उब' न जाएँ ..खैर ..यह प्रकृती का नियम है ..जो करीब आता है ..उससे एक उब हो ही जाती है ...पर अगर आप सही में मेरे चाहने वाले हैं ..फिर थोडा वक़्त दीजिये ..जो ढंग कहियेगा ..उसी ढंग से लिख दूंगा ...'गुंथे हुए आटा' की तरह प्रवृती है ...जो रूप देना चाहेंगे ..उसी में ढल जाऊंगा .."इलेक्ट्रोनिक युग का आदमी हूँ ...बिना खुद का प्रचार किये हुए भी ..एक वर्चुअल स्टारडम भी महसूस किया हूँ "
याद है... बचपन में ...'माँ / दादी / रसोईया' रोटी बना रहे होते थे ...और वहीँ पास में हम 'गुंथे हुए आटे' से 'चिड़िया'...फिर 'माँ / दादी' से जिद करना ...इसे भी आग में पका दो ..:))
एक जिद तो कीजिए ...मेरी परिधी को ध्यान में रखते हुए ..:)) फुर्सत रहा तो अवश्य उस विषय पर लिखूंगा ...जहां तक मेरी समझ ...जहां तक मेरी पहुंच ...जहां तक मेरी परिधि ...:))
जहां तक किताब छापने की बात है ...उससे क्या हो जाएगा ? अगर लोगों को पसंद नहीं आई तो ...मुफ्त में बांटना होगा ....सोशल मीडिया मुफ्त का प्लैटफॉर्म है तो लोग यहां कुछ भी पढ़ लेते है ...खरीद कर कौन पढ़ेगा ?? :( ' रिजेक्शन ' पसंद नहीं ...आत्मा को चोट पहुंचती है ...फिर क्यों उस लाईन में खड़ा रहना ... 😐
फिलहाल मुझे वो आटे वाली चिड़िया याद आ रही है ...टुकुर टुकुर देखती वो चिड़िया ....कह रही ...मुझे भी आग में पका दोगे ? नहीं पकाया तो रात भर में जम जाओगी ....गुस्सा आया तो चिड़िया की जगह कुछ और बना दूंगा ...हो क्या तुम ? बस एक आटे कि लोई ... 😐
चला मै दरवाजे पर लट्टू नचाने ....पुरुष जो हूं ...पल में आटे कि लोई वाली चिड़िया तो अगले पल माथे में लट्टू नचाने का भूत ...:))
~ रंजन / दालान / 18.01.20
#daalaandiary - Day 18 / 2020
{ शुरुआत के कुछ वाक्य २०१४ के एक पोस्ट से }

@RR

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