छठ / होली में जो अपने गाँव - घर नहीं गया - वो अब 'पूर्वी / बिहारी' नहीं रहा ! मुजफ्फरपुर / पटना में रहते थे तो हम लोग भी अपने गाँव जाते थे - बस से , फिर जीप से , फिर कार से ! जैसे जैसे सुख सुविधा बढ़ने लगा - गाँव जाना बंद हो गया ! अब पटना / नॉएडा / इंदिरापुरम में ही 'होली' मन जाता है ! चलिए ..होली की कुछ यादें ताजा करते है !
चलिए आज पटना की होली याद करते हैं ! होली के दस दिन पहले से माँ को मेरे कुर्ता - पायजामा का टेंशन हो जाता था क्योंकी पिछला साल वाला कुर्ता पायजामा छोटा हो चुका होता ! मेरा अलग जिद - कुछ भी जाए - 'सब्जीबाग' वाला पैंतीस रुपैया वाला कुर्ता तो हम किसी भी हाल में नहीं पहनेंगे ! बाबु जी का अलग थेओरी - साल में एक ही दिन पहनना है ! बाबु जी उधर अपने काम धाम पर् निकले - हम लोग रिक्शा से सवार - हथुआ मार्केट - पटना मार्केट ! घूम घाम के कुछ खरीदा गया ...सब बाज़ार में 'हैंगर में लटका के कुर्ता रखता था ..झक झक उजला कुर्ता ! पटना मार्केट के शुरुआत में ही एक दो छोकरा लोग खडा रहता - हाथ में पायजामा का डोरी लेकर ;) आठ आना में एक ;)
अब कुर्ता - पायजामा के बाद - मेरा टारगेट 'पिचकारी' पर् होता - गाँव में पीतल का बड़ा पिचकारी और शहर में प्लास्टिक :( 'सस्तऊआ प्लास्टिक का कुछ खरीदा गया - रंग के साथ - हम हरा रंग के लिये जिद करते - माँ कोई हल्का रंग - किसी तरह एक दो डिब्बा हरा रंग खरीद ही लेता था !
धीरे धीरे बड़ा होते गया ...पिता जी के सभी स्टाफ होली में अपने गाँव चले जाते सो होली के दिन 'मीट खरीदने' का जिम्मा मेरे माथे होता था ! एक दिन पहले जल्द सो जाना होता था ! भोरे भोरे मीट खरीदने 'बहादुरपुर गुमटी' ! जतरा भी अजीब ..स्कूटर स्टार्ट नहीं हो रहा ...टेंशन में साइकिल ही दौड़ा दिया ..हाँफते हुन्फाते हुए 'चिक' के पास पहुंचे तो देखे तो सौ लोग उसको घेरे हुए है ..देह में देह सटा के ..मेरा हार्ट बीट बढ़ गया ...होली के दिन 'खन्सी का मीट' नहीं खरीद पायेंगे ...जीना बेकार है वाला सेंटीमेंट हमको और घबरा देता था ...इधर उधर नज़र दौडाया ...डब्बू भईया नज़र आ गए ...एक कोना में सिगरेट धूकते हुए ...सुने थे ..डब्बू भईया का मीट वाला से बढ़िया जान पहचान है ...अब उनके पास हम सरक गए ...लाइए भईया ..एक कश हमको भी ..भारी हेडक है ..ई भीड़ देखिये ..लगता है हमको आज मीट नहीं मिलेगा ...डब्बू भईया टाईप आईटम बिहार के हर गली मोहल्ला में होता है ..हाफ पैंट पहने ..एक पोलो टी शर्ट ..आधा बाल गायब ...गला में ढेर सारा बध्धी ..हाथ में एक कड़ा ...स्कूटर पर् एक पैर रख के ..बड़े निश्चिन्त से बोले ...जब तक हम ज़िंदा है ..तुमको मीट का दिक्कत नहीं होगा ..उनका ई भारी डायलोग सुन ..दिल गदगद हो गया ...तब उधर से वो तेज आवाज़ दिए ....'सलीम भाई' ...डेढ़ किलो अलग से ..गर्दन / सीना और कलेजी ! तब तक डब्बू भईया दूसरा विल्स जला लिये ..अब वो फिलोसफर के मूड में आने लगे ..थैंक्स गोड..सलीम भाई उधर से चिल्लाया ...मीट तौला गया ! जितना डब्बू भईया बोले ...उतना पैसा हम दे दिए ...फिर वो बोले ..शाम को आना ...मोकामा वाली तुम्हारी भौजी बुलाई है ! डब्बू भईया उधर 'सचिवालय कॉलोनी' निकले ...हम इधर साइकिल पर् पेडल मारे ...अपने घर !
अब कुर्ता - पायजामा के बाद - मेरा टारगेट 'पिचकारी' पर् होता - गाँव में पीतल का बड़ा पिचकारी और शहर में प्लास्टिक :( 'सस्तऊआ प्लास्टिक का कुछ खरीदा गया - रंग के साथ - हम हरा रंग के लिये जिद करते - माँ कोई हल्का रंग - किसी तरह एक दो डिब्बा हरा रंग खरीद ही लेता था !
धीरे धीरे बड़ा होते गया ...पिता जी के सभी स्टाफ होली में अपने गाँव चले जाते सो होली के दिन 'मीट खरीदने' का जिम्मा मेरे माथे होता था ! एक दिन पहले जल्द सो जाना होता था ! भोरे भोरे मीट खरीदने 'बहादुरपुर गुमटी' ! जतरा भी अजीब ..स्कूटर स्टार्ट नहीं हो रहा ...टेंशन में साइकिल ही दौड़ा दिया ..हाँफते हुन्फाते हुए 'चिक' के पास पहुंचे तो देखे तो सौ लोग उसको घेरे हुए है ..देह में देह सटा के ..मेरा हार्ट बीट बढ़ गया ...होली के दिन 'खन्सी का मीट' नहीं खरीद पायेंगे ...जीना बेकार है वाला सेंटीमेंट हमको और घबरा देता था ...इधर उधर नज़र दौडाया ...डब्बू भईया नज़र आ गए ...एक कोना में सिगरेट धूकते हुए ...सुने थे ..डब्बू भईया का मीट वाला से बढ़िया जान पहचान है ...अब उनके पास हम सरक गए ...लाइए भईया ..एक कश हमको भी ..भारी हेडक है ..ई भीड़ देखिये ..लगता है हमको आज मीट नहीं मिलेगा ...डब्बू भईया टाईप आईटम बिहार के हर गली मोहल्ला में होता है ..हाफ पैंट पहने ..एक पोलो टी शर्ट ..आधा बाल गायब ...गला में ढेर सारा बध्धी ..हाथ में एक कड़ा ...स्कूटर पर् एक पैर रख के ..बड़े निश्चिन्त से बोले ...जब तक हम ज़िंदा है ..तुमको मीट का दिक्कत नहीं होगा ..उनका ई भारी डायलोग सुन ..दिल गदगद हो गया ...तब उधर से वो तेज आवाज़ दिए ....'सलीम भाई' ...डेढ़ किलो अलग से ..गर्दन / सीना और कलेजी ! तब तक डब्बू भईया दूसरा विल्स जला लिये ..अब वो फिलोसफर के मूड में आने लगे ..थैंक्स गोड..सलीम भाई उधर से चिल्लाया ...मीट तौला गया ! जितना डब्बू भईया बोले ...उतना पैसा हम दे दिए ...फिर वो बोले ..शाम को आना ...मोकामा वाली तुम्हारी भौजी बुलाई है ! डब्बू भईया उधर 'सचिवालय कॉलोनी' निकले ...हम इधर साइकिल पर् पेडल मारे ...अपने घर !
मोहल्ला में घुसे नहीं की ....देखे मेरे उमर से पांच साल बड़ा से लेकर पांच साल छोटा तक ...सब होली के मूड में है ! सबका मुह हरा रंग से पोताया हुआ ! साइकिल को सीढ़ी घर में लगाते लगाते ..सब यार दोस्त लोग मुह में हरा रंग पोत दिया ! घर पहुंचे तो पता चला - प्याज नहीं है ...अब आज होली के दिन कौन दूकान खुला होगा ...पड़ोस के साव जी का दूकान ..का किवाड आधा खुला नज़र आया ...एक सांस में बोले ...प्याज - लहसुन , गरम मसाला ..सब दे दीजिए ...! सब लेकर आये तो देखा ..मा 'पुआ' बना दी हैं ...प्याज खरीदने वक्त एक दो दोस्त को ले लिया था ...वो सब भी घर में घुस गए ...मस्त पुआ हम लोग चांपे ..फिर रंगों से खेले !
कंकरबाग रोड पर् एक प्रोफेशनल कॉलेज होता है - यह कहानी वहीँ के टीचर्स क्वाटर की है - हमलोग के क्वाटर के ठीक पीछे करीब दो बीघे के एक प्लाट में एक रिटायर इंजिनियर साहब का बंगलानुमा घर होता था ! हमारी टोली उनके घर पहुँची ! बिहार सरकार के इंजिनियर इन चीफ से रिटायर थे - क्या नहीं था - उनके घर ! जीवन में पहली दफा 36 कुर्सी वाला डाइनिंग टेबुल उनके घर ही देखा था ! एकदम साठ और सत्तर के दसक के हिन्दी सिनेमा में दिखने वाला 'रईस' का घर ! पिता जी के प्रोफेशन से सम्बंधित कई बड़े लोगों के घर को देखा था - पर् वैसा कहीं नहीं देखा ! हर होली में मुझे वो घर और वो रईस अंदाज़ याद आता है !
देखते देखते दोपहर हो गया - मीट बन् के तैयार ! अब नहाना है ! रंग छूटे भी तो कैसे छूटे ...जो जिस बाथरूम में घुसा ..घुसा ही हुआ है :)
क्रमशः
क्रमशः
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !
13 comments:
ha ha rang barse....jogira sara ra ra ra ra ...
mazaa aa gaya padh ke, ekdum purana time jaisa......likhte rahiye
Bura na mano holi hai..happy holi.Bhaang aur dahi vada kene gayeel?
गजबे वर्णन किये हैं आप होली का! कुल मिलके लगभग पुरे बिहार में यही किस्सा होता है. जल्दी जल्दी घर का निपटा लें तब जाके आराम से दोस्तों के साथ होली खेलें.
आपके ब्लॉग में बिहार की खुसबू कूट कूट कर समाई होती है और आपके ब्लॉग पढने का मतलब की अपने प्रदेश का एक चक्कर लगाना!
बहुत जबरदस्त. मिजाज फ्रेश हो गया!
और आपको अडवांस में होली की ढेरो शुभकामनायें
असल में हमरे घर में मीत बनाबे नहीं करता था/है, एही से ई वाला एक्सपीरियंस नहीं हुआ कभी.. बाक़ी फुच्कारी से इयाद आया कि थाकुर्बारी रोड में पित्तर वाला फुच्कारी लेकर उसमें नया बासर लगवाने जाते थे.. रात भर तेल में फुलाकर रखना होता था, तब जाकर फुच्कारी का इस्पीड देखने लायक होता था.. माने साहित् समेलन के पास से तृप्ति मिस्टान भण्डार के सामने फुच्कारी मारिये त एकदम दिनकर जी का चरण अस्पर्स करता था रंग जाकर!!
पटना का बाते अलग है!!
aap ka likha hua padhte padhte apne gaon k holi ki yad aa gayi....Bahut achha likhte hen aap.... Yu hi likhte rahiye....
aap ka likha hua padhte padhte apne gaon k holi ki yad aa gayi....Bahut achha likhte hen aap.... Yu hi likhte rahiye....
Ha ha sahi hai
Patna ka to nai lekin apane gaen nalanda (Bargawn) ka bilkul same laga....es..story..se thanks...laga bachpan ki sair ho gayi
हम भी बहुत दौड़े हैं बहादुरपुर गुमटी मीट लाने | भीड़ तो बहुत रहता था| इसलिए पाँचे बजे निकल जाते थे |
हम भी बहुत दौड़े हैं बहादुरपुर गुमटी मीट लाने | भीड़ तो बहुत रहता था| इसलिए पाँचे बजे निकल जाते थे |
Kuch , adhura sa laga, maan hai ki manta nahi !
Kuch , adhura sa laga, maan hai ki manta nahi !
Post a Comment