Thursday, August 16, 2007

श्रद्घांजलि : श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा

१४ अगस्त २००७ को इनका देहांत हो गया ! बचपन से घर-परिवार मे राजनीतिक लोगों का आना जाना था ! बहुत सुना था इनके बारे मे ! बडे बुजुर्ग कहते हैं - जब यह बोलती थी तो लोकसभा रूक सा जाता था ! किसी ने इनको लोकसभा कि बुलबुल कहा तो किसी ने हंटरवार्ली ! भाषण ऐसा कि सुनाने वाला मंत्रमुग्ध हो जाये ! जिस किसी ने इनका भाषण सुना वोह हमेशा के लिए इनका दीवाना हो गया ! हिम्मत इतना कि कॉंग्रेस मे रहते हुये भी इंदिरा गाँधी के खिलाफ आवाज़ कि बिगुल उठा देना ! दिल्ली के राजनीतिक गलिआरों मे इनके कदम इतने मजबूती से बढ़ने लगे थे कि देश के नेताओं को इनके कदम को कटना पड़ा और लगातार ४ बार लोकसभा को प्रतिनिधित्व कराने बाद दुबारा नही जा सकीं ! किसी ने कहा -आप राज्यसभा से क्यों नही संसद चली जाती हैं ? कई प्रस्ताव आये , सबको ठुकरा दिया ! "बाढ़-मोकामा" कि बेटी को अपने स्वाभिमान पर बहुत ही गर्व था ! जीवन के अन्तिम क्षण तक "जनता-जनार्दन" के बीच जाने से नही हिचकती थीं !
वोह कहती हैं :-
तुम हो जहाँ , बेशक वहाँ ऊंचाई है
मगर सागर कि कोख मे
गहरी खाई है
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

3 comments:

ghughutibasuti said...

सुन कर दुख हुआ । हमारी ओर से श्रद्धांजली ।
घुघूती बासूती

sanjay patel said...

रंजनभाई तारकेश्वरी जी का जलवा तो सर्वविदित है वे लाजवाब वक्ता थीं...आजकल जो देहभाषा की बात होने लगी है उस लिहाज़ से श्रीमती सिन्हा का आत्मविश्वास क़ाबिले तारीफ़ था.उनका वस्त्र विन्यास और सुदर्शन व्यक्तिव्य भी मोहक था. इंदिराजी के अलावा वे हीं एक थीं जिनका ड्रेससेंस विलक्षण था.भारतीय राजनीति में जिन मुखर लोगों को याद किया जाएगा उनमें तारकेश्वरीजी का नाम शुमार करना ही पडे़गा...आज १६ अगस्त को अख़बारों की छुट्टी होने से समाचार पढ़ने में नहीं आया. आपने इस अतीत की शख्सीयत को ब्लाँग बिरादरी के लिये जारी किया...साधुवाद

Udan Tashtari said...

श्रद्धांजली.