Friday, September 2, 2016

सच का सामना



सच का सामना : 
बात वर्षों पुरानी है । मेरे गाँव घर पर कोई आयोजन था । बाबा ने हर किसी को न्योता भेजा था । आयोजन सफल रहा । 
कुछ दिनो बाद - मैं बाबा के साथ उनकी गाड़ी पर बैठ कहीं जा रहा था - अचानक उनकी कार के सामने एक महिला आयीं - उस वक़्त उनकी उम्र 40 रही होगी । बाबा अचानक से कार से निकले और हाथ जोड़ खड़े हो गए । उस महिला की शिकायत थी - सबको न्योता गया , आपने मुझे क्यों नहीं न्योता भेजा । बाबा हाथ जोड़ चुप थे । 
बाद में पता चला की वो हमारे इलाक़े की सबसे बड़े ख़ानदान की बिन ब्याही महिला थी । उनके पिता को ख़ुद की 800 एकड़ ज़मीन थी । अंग्रेज़ के ज़माने में मजिस्ट्रेट होते थे । विलासपूर्ण जीवन था । सब कुछ था पर मरने के पहले बेटी का बियाह नहीं कर पाए ।
इस घटना का मेरे ऊपर बहुत प्रभाव पड़ा । सर्वप्रथम वो ज़मींदार साहब मरने के बाद भी मेरी नज़र से गिर गए और दूसरी बात मैंने अपने जीवन में हर कार्य से ऊपर बेटी / बहन की शादी को माना । ख़ुद जब पीजी में था - परीक्षा के पहले वाले दिन भी बहन की शादी के लिए अकेले घुमा । कई ममेरी / फुफेरी / चचेरी बहनों की शादी में सारे मतभेद भुला आगे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । कई जगहों पर टूटते रिश्तों को बचाने के लिए ज़हर की तरह अपमान का घूँट पिया ।
अभी हाल में ही एक जानकारी मिली - बिहार के एक बड़े नामी परिवार में , पढ़े लिखे भाई ने अपने से आठ वर्ष छोटी बहन की शादी ही नहीं होने दिया क्योंकि 2005 के क़ानून के अनुसार बाप दादा की संपती में बहन का भी अधिकार हो जाता - वो बड़ा मकान दो हिस्सों में बँट जाता । बहन उम्र होते ही पगला गयी । समाज के सामने बोल दिया गया - इस पगली से कौन ब्याह करेगा ।
यह दोनो घटना सच है । दोनो परिवार मुझसे जुड़े हुए हैं । एक जगह बाप आजीवन शराब में डूबा रहा और दूसरी जगह भाई बड़े डिग्री और बड़ी कार में घूम अपनी ज़िम्मेदारी से बचता रहा ।
यह सच है । ईश्वर ऐसे सच से हम सबको बचाए ।


सच का सामना - भाग दो 
दुनिया का सबसे जटिल चीज़ है - इंसान का स्वभाव । लेकिन यह जटिलता भी एक फ़ोरम्युला पर आधारित है । जिसने इस जटिलता को समझ लिया वह विजेता है :)) 
एक उदाहरण देता हूँ - बिहार के जितने भी अपर मिडिल क्लास हैं - वहाँ हर एक घर में एक बूढ़ा और एक बुढ़िया मिल जाएगी । किसी के बच्चे साथ नहीं हैं । सबके बच्चे ख़ूब बढ़िया सेटल हैं । 
एक माँ बाप को अपने बच्चे को पैर पर खड़ा करने में कितना ताक़त लगाना पड़ता है वह एक माँ बाप ही समझता है । और चिड़िया को पर लग गए चिड़िया उड़ गयी । जिस माँ बाप ने जिस औलाद को मज़बूत किया वही औलाद एन वक़्त पर साथ छोड़ दी ...:))
यह दुनिया की रीत है । किसी भी रिश्ते में - आप जिस किसी इंसान को मज़बूत बनाते हैं वह इंसान सबसे पहले आपको ही धोखा देता हैं । वैवाहिक ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है - गोवा की राज्यपाल महोदया लिखती हैं - आएल बेटी गेल शृंगार , आएल सौत भेल शृंगार । मतलब की बेटी के आगमन के बाद शृंगार ख़त्म हो जाता है और उसी समय सौत प्रवेश करती है । वह औरत बेटी के लालन पालन से परिवार को मज़बूत कर रही होती है और उसी वक़्त उसे 'धोखा' मिलता है ..:)) बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री ने एक बयान दिया था - औरत भी तभी चिटिंग करती है जब मर्द परिवार के मज़बूती के लिए घर से बाहर कमाने जाता है ...:))
सीता भी रावण के चूँगल में तभी फँसी जब घर पर राम नहीं थे । आप रावण को भी दोष नहीं दे सकते - उसने अपने स्वभाव से अपना काम किया लेकिन राम की जवानी तो ख़त्म हो गयी । और हर पुरुष राम नहीं होता लेकिन हर पुरुष के अंदर एक रावण भी होता है ।
वैवाहिक चिटिंग को लेकर पुरुषों के ख़िलाफ़ कोरिया में बहुत ही कड़ा क़ानून था । लेकिन अब वो क़ानून हटा दिया गया । कारण टेक्नोलोजी के आने के बाद - शिक्षा और नौकरी ने महिलाओं को भी चिटिंग की आज़ादी दी । उनकी प्रतिशत पुरुषों के बराबर पहुँच गयी । क़ानून ही ख़त्म हो गया ।
लेकिन यहाँ प्रकृति सामने आती है । महिलाएँ चिटिंग को सम्भाल नहीं पाती हैं । क्योंकि पकड़ में आने के बाद पुरुष माफ़ नहीं कर पाते हालाँकि महिलाएँ माफ़ कर देती हैं । यहाँ भी दोनो की अलग अलग प्रकृति है - महिलाएँ अपने पुरुष के सेक्सुअल सम्बंध को माफ़ कर देती हैं लेकिन उनके भावनात्मक सम्बंध को लेकर भूल नहीं पाती - वहीं पुरुष अपनी महिला के भावनात्मक सम्बंध को तवज्जो नहीं देता है लेकिन शारीरिक सम्बन्ध को माफ़ नहीं कर पाता है । ऐसा जानवरों में भी देखा गया है ।
चिटिंग को पुरुष सम्भाल लेते हैं क्योंकि अधिकतर बार वो छल जैसा होता है लेकिन महिलाएँ एक जैसा प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही पुरुष से कर पाती हैं और वो फँस जाती हैं ।
लेकिन यह स्वभाव दोनो में पाया जाता है - रिश्ते ऊब लेकर साँस लेते हैं - शायद इसी वजह से समाज स्त्री और पुरुष दोनो के लिए कुछ मज़ाक़िया रिश्ता बनाया है - जैसे देवर भाभी , जीजा साली इत्यादि लेकिन वो भी परिवार समाज के नज़र के सामने ।
ख़ैर ....


सच का सामना - भाग तीन 
एक घटना याद है ! मेरे पटना में दो दोस्त होते थे ! जबरदस्त दोस्ती ! एक दुबई चला गया और दूसरा पटना में रह गया ! कुछ समय बाद दुबई वाले ने एक बिजनेस सोचा और कंप्यूटर एजुकेशन का फ्रेंचईजी लेने का सोचा और अपने जिगरी दोस्त को बताया ! 
वो वापस दुबई चला गया ! वहीँ से अपने पटनावाले दोस्त के एकाऊंट में पैसे भेजने लगा ! कंप्यूटर सेंटर शुरू हो गया ! दो तीन साल बाद जब हिसाब किताब की बात आई तो पटना वाला पैसे लौटाने लगा - दुबई वाले को पता चला की कंप्यूटर सेंटर तो उसके नाम से है ही नहीं ! वो उसी क्षण पगला गया ! पैसे का धोखा दिल के धोखे से बड़ा होता है ! ( पटना के कुछ लोग इस कहानी को जानते होंगे )
अजीब बात है ! जहाँ विश्वास है वहीँ धोखा छुपा होता है ! जो धोखा देता है उसकी अपनी दलील होती है और जो धोखा खाता है वह बौखलाया हुआ - उलुल जलूल बोलता है और गुस्सा में अपना ही केस कमज़ोर करता है !
पटना वाले का नियत बदल गया था , वह दुबई वाले को पैसा लौटाने को तैयार था लेकिन प्रॉफिट में शेयर को तैयार नहीं था ! दुबई वाला अर्धविछिप्त हो गया !
अजीब है ये - विश्वास और धोखा का खेल ! मेरे एक चचेरे मामा होते थे , मेरी उम्र के - बहुत बढ़िया दोस्ती - हर पल साथ लेकिन मै उन पर विश्वास नहीं करता था क्योंकि वो मेरे महंगे खिलौने या कलम चुरा लेते थे ! लेकिन यह विश्वास था की कहीं बीच बाज़ार मार पीट हुई तो वो बचाने जरुर आयेंगे  एक ही इंसान पर विश्वास और अविश्वास दोनों :))
किसी भी इंसान पर यह विश्वास और अविश्वास दोनों हम अपने उस रिश्ते में अपने हाव भाव से तैयार करते है ! वहीँ कोई मेरा दोस्त कलम चुरा लेता तो मै उसे धोखा कहता लेकिन मामा वाले केस में वह धोखा नहीं कहलाता !
कोई आजीवन झूठ बोलता है वह धोखा नहीं कहलाता है लेकिन कोई पहली बार झूठ बोलता है तो वह धोखा कहलाता है - यह बिलकुल छवि का खेल है ! आप रिश्तों में एक छवि बनाते हैं , उस छवि के विपरीत अगर आप गए तो वही धोखा है !
खैर ...दलील के सामने विश्वास की धज्जी उड़ जाती है धोखा अपनी पताका लहराता है...पर ब्रह्माण्ड का भी खेल अजीब है...वही धोखा लौट कर उसी के पास एक दिन आता है...ब्याज के साथ...पात्र / रोल बदल जाते हैं...खेल वही रहता है...:))
खैर....

सच का सामना - भाग 4 
लगभग हर जागृत आत्मा की ज़िंदगी एक टनेल / गुफ़ा से होकर गुज़रती है । इस गुफ़ा की लम्बाई - उसके नसीब / कर्म / स्वभाव इत्यादि पर निर्भर करती है । यह आंतरिक / बाहरी / रिलेशनशिप / कैरियर / मानसिक / शारीरिक - किसी भी क्षेत्र में हो सकता है । 
हमारा धर्म भी यही कहता है कि राम और पांडव दोनो को वनवास हुआ था । इन दोनो कहानी में हमें स्ट्रगल की सलाह दी गयी है । 
वही इंसान जो सारे युद्ध में विजयी होता है - वही इंसान आगे का हर युद्ध हारते चला जाता है । हो सकता है - किसी की ज़िंदगी में यह गुफ़ा आए ही नहीं या फिर उसकी ज़िंदगी गुफ़ाओं से भरी पड़ी हो । अब वो इन गुफ़ाओं को कैसे महसूस करता है - यह उसके आंतरिक स्वभाव पर निर्भर करेगा । 
कई बार लोग इसी दौर में डिप्रेशन / अवसाद के शिकार होते हुए आध्यात्मिक हो जाते है । मूलतः प्रेम / छल भी इसी दौर का शिकारी होता है - क्योंकि अध्यात्म में हम किसी आत्मा से जुड़ते हैं । ज़्यादातर केस में इस दौर में महिला और पुरुष दोनो अलग अलग स्वभाव से गुज़रते है - महिलाओं का रिलेशनशिप और पुरुष का कैरियर कारक हो जाता है । महिलाओं को जैसे ही कोई प्रेमी मिल जाता है - उनके चेहरे की रौनक़ लौट आती है वहीं पुरुष को कुछ कमाने खाने को मिल गया तो वह इस गुफ़ा में सुबह की रौशनी देखने लगता है । 
मैंने कई लोगों को इस गुफ़ा में देखा है - गुफ़ा में सिसकते वक़्त उनकी फ़िलोसोफ़ी अलग होती है और गुफ़ा से बाहर निकलते ही एक यू टर्न । हैरान हो जाता हूँ । 
लेकिन मैं अपने बुरे समय को अपने तकिए के नीचे रखता हूँ जिससे वो समय मेरे अंदर Compassion / Empathy बरक़रार रखे । शायद यही वजह है - बहुत ज्ञानी नहीं होते हुये भी - मैं एक बढ़िया शिक्षक रहा । 
जो लोग गुफ़ा से बाहर आते ही अपनी फ़िलोसोफ़ी बदल लेते - उनसे मेरा एक सवाल है - तब आप क्या कहेंगे - जब फिर से कोई एक गुफ़ा आ गया ? 
😳


@RR


1 comment:

dr.mahendrag said...

कोई नहीं है कोई किसी का , दुनिया में धोखा ही धोखा है ,