Monday, October 26, 2009

अब डाकिया चिठ्ठी नहीं लाता !

अब चिठ्ठी नहीं आती ! कॉलेज में था - बाबा का चिठ्ठी आता था , माँ और बहन का भी आता था ! चिठ्ठी मिलते ही - कई बार पढ़ता था - घर से दूर था ! फिर चिठ्ठी को तकिया के नीचे या सिरहाने के नीचे रख देता - फिर कभी मौका मिलता तो दुबारा पढ़ लेता ! बाबू जी को चिठ्ठी लिखने की आदत नहीं थी सो वो केवल पैसा ही भेजते थे ! किसी दिन डाकिये ने अगर किसी दोस्त का चिठ्ठी हमें पकडा देता तो हम दोस्त को खोज उसको चिठ्ठी सौंप देते ! बड़ा ही सकून मिलता !




मुझे चिठ्ठी लिखने की आदत हो गयी थी - लम्बा लम्बा और भावनात्मक ! बाबा , दादी , माँ - बाबू जी , बहन सब को लिखा करता था ! और फिर कई सप्ताह तक चिठ्ठी का इंतज़ार ! धीरे धीरे चिठ्ठी की जगह बाबू जी के द्वारा भेजे हुए "ड्राफ्ट" का इंतज़ार होने लगा ! और फोन भी थोडा सस्ता होने लगा ! अब धीरे धीरे बाबू जी को फ़ोन करने लगा - END MONEY - SEND MONEY !



कभी प्रेम पत्र नहीं लिखा - आज तक अफ़सोस है ! पर शादी ठीक होने के बाद - पत्नी को पत्र लिखा - जिन्दगी की कल्पना थी - अब हकीकत कितना दूर है !
 
अब ईमेल आता है - अनजान लोगों का ! जिनसे कभी मिला नहीं - कभी जाना नहीं - जबरदस्ती का एक रिश्ता - जिसमे खुशबू नहीं , कोई इंतज़ार नहीं ! फ़ोन पर कई बार दिल की बात नहीं कह पाते हैं लोग फिर क्यों न चिठ्ठी का सहारा लिया जाए !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

3 comments:

Udan Tashtari said...

जरुर लिखना चाहिये..उन पत्रों जैसी आत्मियता कहाँ ईमेल और फोन पर.

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

unn patro ko sahej kar rakhiye. Bachhcho ko aadat dalwaiye chitthi likhne ki.

Fighter Jet said...

bilkul sahi kaha!