Friday, January 29, 2010

नितीश को बैसाखी की जरुरत नहीं रही ...

"आईडिया सेलुलर" का एक प्रचार आया था ..जिसमे 'भूमिहार और कुर्मी' की लड़ाई दिखाई गयी थी ! एन डी टी वी - इंडिया ने एक छोटी रिपोर्ट भी बनाई थी ! 'आईडिया' के श्रीवास्तव जी बहुत खुश होकर रविश को बता रहे थे - कितना 'क्रिएटिव' प्रचार है ! अब यह सच्चाई हो गयी है ! सत्ता में भागीदारी को लेकर लड़ाई तेज़ है ! पर यह लड़ाई सिर्फ 'भूमिहारों' तक ही सीमित नहीं है -  नितीश के खिलाफ  कायस्थो  के महनायक शोट गन सिन्हा प्रथम दिन से ही 'मोर्चा' खोले हुए हैं ! ब्राह्मणों ने काफी पहले से शंख नाद शुरू कर दिया था ! बहुत मामूली वोट से हारने के बाद कल तक संसद में नितीश की आवाज़ बुलंद करने वाले 'प्रभुनाथ' की आवाज़ उनकी जाति में 'धिक्कार' के रूप में गूँज रही है ! 'ललन' को किनारा कर - 'नितीश' ऐसे खुश हैं जैसे - किसी लंगड़े ने बिना "बैसाखी" चलना शुरू कर दिया हो ! पर शिवानन्द को यह आशा है की बिहार की 'राजनीती' में बिना बैसाखी बैठा तो जा सकता है पर 'दौड़ा' नहीं जा सकता !



जात की राजनीति बिहार , भारत या विश्व के लिए नया नहीं है ! ये होता आया है और किसी न किसी रूप में यह हमेशा रहेगा ! नितीश से खुश देश की राजधानी में बैठे - पत्रकार लोग विकास की दुहाई दे रहे हैं ! देना भी चाहिए ! कुछ भी गलत नहीं है ! लेकिन क्या १५ साल तक बिहारी बेवकूफ बने रहे - लालू-रबरी को गद्दी पर बैठा कर ! मेरा ऐसा मानना नहीं है ! लालू ने कभी विकास की बात नहीं की - और उन्होंने 'विकास' के नाम पर कभी वोट नहीं माँगा ! उन्होंने हमेशा दबे कुचले की बात की और एक नया सामाजिक समीकरण बनाया - "माई" का ! इसमे ऐसा फेवोकोल लगा की वो १५ साल तक वो हिले दुले नहीं ! 'सवर्ण' की हमेशा खिलाफ करने वाले - नितीश कुमार जब १९९४ में 'कुर्मी' महारैली में गरज रहे थे - तो मुझे याद है - डर से पटना के सभी सवर्ण घर अन्दर से बंद कर लिए गए थे ! सरकार के नाच के नीचे - दहशत का वातावरण ! पूरा पटना में लाउड-स्पीकर लगा था ! नए बिहार में यह सब से पहला जातिगत आधार का 'महारैली' था ! नितीश स्वाभिमानी हैं ! अड़े रहे - सवर्ण से खुद को दूर किये रहे ! सवर्णों  के पास कोई उपाय नहीं रहने के कारन - वोह धीरे धीरे भाजपा में घुसने लगे - या फिर निर्दलिये उम्मीदवार ! १९९५ और २००० के चुनाव में नितीश बिना सवर्ण ही लालू से लड़े ! फायदा लालू को मिलाता रहा ! पर 'मुख्यमंत्री' बनाने की चाहत में - २००० में वो १४ सवर्ण निर्दलिये विधायकों की बदौलत ७ दिन के लिए मुख्यमंत्री बने ! इन विधायकों का नेतृतव कर रहे थे - 'मोकामा' से भारी मतों से जीते हुए - महा बाहुबली - "श्री सूरज सिंह " उर्फ़ "सूरजभान" ! कब कोई यह कैसे कह दे की - सूरज सिंह का मनोबल किसने और क्यों बढाया !



पर नितीश अड़े रहे ! सवर्ण से नजदीकी उन्हें किसी कीमत पर मंजूर नहीं थी ! फ़रवरी २००५ में हुए चुनाव का फायदा 'पासवान' ने उठाया ! पर सरकार किसी की नहीं बन सकी ! वो घड़ी कितनी मनहूस रही होगी - जब नितीश बुझे मन से 'पासवान' की पार्टी में शामिल 'सवर्णों' को अपने दल में मिलाने की दल की सहमती पर मुहर लगाई होगी ! कीमत तय हो गया था ! 'सत्ता' में भागीदारी ! 'लल्लन' दल प्रमुख बने ! 'प्रभुनाथ' को कुछ इलाके दे दिए गए - जहाँ सिर्फ और सिर्फ उनके कहेनुसार ही कुछ भी होता था ! नितीश पर दबाब बन रहा था ! लालू की तरह - नालंदा के कुर्मी - खुद को सरकारी जात के रूप में देखना चाह रहे थे ! घर सबको प्यारा होता है और परिवार और ज्यादा ! अब निशाने पर थे - प्रभुनाथ और ललन के प्यादे ! राजनीति की शतरंज चालू हो गयी - एक - एक कर सभी प्यादे गिरने लगे ! लोकसभा में नितीश सभी जगह पर जीत गए - रुढी और प्रभुनाथ जीता हुआ चुनाव हार गए ! छपरा में नितीश ने बड़े भाई की लाज बचा - एक तीर से कई निशाने किये ! मुंगेर में भी वही होने वाला था - पर नितीश वहां कमज़ोर हो गए ! ललन जीत कर भी चुनाव हार गए ! ...






क्रमशः..
 
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

Ek baat to hai. jo jo support kiya tha oonka speedy trial kar ke andar karwa diya sarkar ne. :-). Is good governance giving its result.

Ranjan said...

Upadhyay Jee , Its called Politics :) Rajniti !!

Ashish Sinha said...

Hum to patrakarita ki bhsasha me bolenge, "Political masterstroke hai, Nitish ka!" Sawarno ki sankkhya naa kabhi thi, naa aaj hai, naa aage kabhi ho sakti hai. Lekin satta me bhagidaari -- (dadagiri?) -- ka bahut sukh uthaya hai Sawarno ne. OBC-EBC-SC ka zamana hai. Issko samajhne aur maanne me samjhdari hai!

Anonymous said...

लगता है लालू ने जो भूरा बाल साफ़ किया था वोह चार साल में फिर से जम गया है ! कोई बात नहीं अगले इलेक्शन मैं फिर आकर उसको साफ़ के देगा.