बिहार में छठ पूजा के बाद - सबसे महत्वपूर्ण पर्व त्यौहार होता है - घर के लडके - लडकी का मैट्रीक परीक्षा ! मत पूछिए ! मैट्रीक परीक्षार्थी को किसी 'देवी - देवता' से कम नहीं वैल्यू नहीं होता है :))
दसवां में था तब - राजेंद्र नगर स्टेडियम में क्रिकेट मैच हुआ था - मार्च के महीना में - सब यार दोस्त लोग तीन चार दिन देखे थे ! उस वक्त हमसे ठीक सीनियर बैच का परीक्षा चल रहा था ! स्टेडियम से लौटते वक्त पुर रास्ता जाम रहता था ! सीनियर बैच का उतरा हुआ चेहरा देख दिल "ढक ढक" करे लगता :(
दसवां के पहले मेरे यहाँ एक नियम था - छमाही - नौमही - वार्षिक परीक्षा के ठीक तीन दिन पहले - बाबु जी मेरा "रीन्युअल" करते - बहुत ही हल्का 'नेपाली' चप्पल होता था - बहुत एक्टिंग करना पड़ता - इस चप्पल से बिलकुल ही चोट नहीं लगता था - पर् एक्टिग ऐसा की जैसे की बहुत मार पड़ रहा हो ;) फिर हम कुल तीन दिन पढते और आराम से परीक्षा पास ;)
अब मैट्रीक का परीक्षा आ गया था - सितम्बर -ओक्टुबर में "सेंटअप" का परीक्षा हो गया ! हम लोग का स्कूल जाना बंद ! "भारती भवन " का गोल्डन गाईड खरीदा गया ! गोविन्द मित्र रोड से खरीद - साईकील के पीछे 'चांप' के - ऐसा लगता जैसे आधा परीक्षा पास कर गए ;) "गोल्डन गाईड" को अगरबत्ती दिखाया गया ! कभी वो टेबल पर् तो कभी वो बेड में तकिया के बगल में ! दोस्त यार के यहाँ गया तो देखा की उसको पन्द्रह भाग में विभाजीत कर दिया है - हम भी कर दिए ! अब इस गोल्डन गाईड का पन्द्रह टुकड़े हो गए - रोज एक "भुला" जाता - सारा गुस्सा माँ पर् निकलता :)
हमको भूगोल / इतिहास / अर्थशास्त्र / नागरीक शास्त्र एकदम से मुह जबानी याद हो गया था ! शाम को बाबु जी आते तो बोलते की - हिसाब बनाये हो ? :( सब लोग कहने लगा की - सबसे ज्यादा "नंबर" गणित में उठता है - अलजेब्रा छोड़ सब ठीक था - थोडा मेहनत किया तो वो भी ठीक हो गया ! दिक्कत होती थी - केमिस्ट्री और बायलोजी में :( बकवास था ये सब ! डा ० वचन देव कुमार का "वृहत निबंध भाष्कर' तो खैर जुबान पर् ही था ! अंग्रेज़ी जन्मजात ही कमज़ोर था - इसलिए वहाँ तो बस "पास" ही करने का ओबजेकटीव था ! नौवां से ही - स्कूल के एक दो शिक्षक के यहाँ टीउशन का असफल प्रयोग कर चूका था - सो अब किसी के यहाँ जाने का सवाल ही पैदा नहीं था !
खैर ...एक दो और गाईड ख़रीदा गया ! सभी विषय का अलग से "भारती भवन" का किताब ! अर्थशास्त्र में "मांग की लोच " इत्यादी चैप्टर तो आज तक याद है :))
खैर ...धीरे धीरे ..प्रेशर बढ़ने लगा ...आज भी याद है ..गाँव से बाबा किसी मुंशी मेजर के हाथ कुछ चावल - गेहूं भेजे थे - और वो पटना डेरा पहुँच चाय की चुस्की के बीच - मेरी तरफ देखते हुए - बोला - "बउआ ..के अमकी "मैट्रीक" बा ..नु " ! मन तो किया की ..दे दू हाथ ! फूफा - मामा - मामी - चाची - चाचा - कोई भी आता तो "उदहारण" देता - फलाना बाबु के बेटा / बेटी को पिछला साल 'इतना' नंबर आया था - ऐसी बातें सुन - हार्टबीट बढ़ जाता ! फिर सब लोग गिनाने लगते - "इस बार कौन कौन मैट्रीक परीक्षा दे रहा है " जिससे मै आज तक नहीं मिला - वो भी मुझे दुश्मन लगता ! कोई चचेरा भाई - मोतिहारी में दे रहा है तो कोई फुफेरी बहन - सिवान में ! उफ्फ्फ्फ़ ....इतना प्रेशर !
रोज टाईम टेबल बनने लगा ! क्या टाईम टेबल होता था ;) बिहार सरकार की तरह - सब काम कागज़ में ही ;) धीरे धीरे ठंडा का मौसम आने लगा ! कहीं भी आना जाना बंद हो गया ! बाबु जी को सब लोग कहता - "आपके बेटा - का दीमाग तेज है - बढ़िया से पास कर जायेगा" ! अच्छा लगता था ! पर् ...और बहुत सारी दिक्कतें थी ...:(
सुबह उठ के नहा धो के - छत पर् किताब कॉपी - गाईड लेकर निकल जाता ! साथ में 'एक मनोहर कहानियां या कोई हिन्दी उपन्यास ' ! गाईड के बीच उपन्यास को रख कर - पढ़ने में जो थ्रील आता ..वो गजब का था :)) फिर 'जाड़ा के दिन' में छत का और भी मजा था ! :)) कहीं से उपन्यास वाली बात 'माता श्री' तक पहुँच गयी ! 'माता श्री ' से 'पिता जी' तक :( तय हुआ - एक मास्टर रखा जायेगा - जो मुझे पढ़ाएगा नहीं - बल्की सिर्फ मेरे साथ दो तीन घंटा बैठेगा ! मास्टर साहब आये - एक दो महीना बैठे - फिर मुझ द्वारा भगा दिए गए ;) लेकिन एक फायदा हुआ - गणित के सवाल रोज बनाने से गणित बहुत मजबूत हो गया ! अलजेब्रा भी मजबूत हो गया - !
अब हम लोग दूसरी जगह 'सरकारी आवास' में आ गए - यहाँ भी सभी लोग बाबु जी के नौकरी - पेशा वाले ही लोग थे - माहौल अजीब था - किसी का पुत्र दून में तो किसी का वेलहम में - इन सभी लोगों का जीवन का उद्येश ही यही था - बच्चों को पढ़ाना - अब वो सब कितना पढ़े - हमको नहीं पता - पर् नसीब से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिला ! खैर ...
यहाँ के लिये मै अन्जान था - बस बालकोनी से मुस्कुराहटों को देख मूड फ्रेश कर वापस किताबों में घुस जाना ! तैयारी ठीक थी - मै संतुष्ट था ! अंग्रेज़ी - बायलोजी - केमिस्ट्री छोड़ सभी विषय बहुत परफेक्ट थे - मैंने किसी विषय को रटा नहीं था - आज भी 'रटने' से नफरत है ! खैर ...बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती - ऐडमीट कार्ड मिलने का दिन आ गया - स्कूल गया - कई महीनो बाद दोस्तों से मुलाकात हुई -
स्कुल में पता चला की - सेंटर दो जगहों पर् पड़ा है :( पहले दो सेक्शन "जालान" और हम दो सेक्शन "एफ एन एस अकेडमी " ! मन दुखी हो गया - बहुत दुखी ! "जालान" में सुना था - उसका बड़ा गेट बंद कर के - अनदर ...सब कुछ का छूट था ;) बहुत करीबी दोस्त था - दीपक अगरवाल - बात तय हुआ - परीक्षा के दिन - साईकल से मै उसके घर जाऊंगा - फिर वहाँ से हम दोनों साथ में !
परीक्षा के दिन 'जियोमेट्री बॉक्स' लेकर ..एक हैट पहन कर ..साईकील से दीपक अगरवाल के यहाँ निकल पड़ा ..वहाँ पहुंचा तो पता चला की ..दीपक अपने मामा - मामी - फुआ - बाबु जी - माँ - बड़ा भाई इत्यादे के साथ निकल चूका है :( अजीब लगा ..इतने लोग ..क्या करेंगे ?? रास्ते में साईकील के कैरियर से 'जियोमेट्री बॉक्स ' गिर गया ..देखा तो 'एडमीट कार्ड' गायब ....हाँफते - हुन्फाते ..साईकील को सौ पर् चलाते ..घर पहुंचा तो देखा की ..बाबु जी बालकोनी में मेरा एडमीट कार्ड हाथ में लिये खडा है ...जबरदस्त ढंग से दांत पीस रहे थे ... मुझे नीचे रुकने को बोले और खुद नीचे आये ...लगा की ..आज "जतरा" बाबु जी के हाथ से ही बनेगा ....फिर पूछे ..सेंटर कहाँ पड़ा है - हम बोले ...गुलजारबाग ...! हम अपना "हैट" अडजस्ट किये ..साईकील का मुह वापस किये ..पैडल पर् एक पाँव मारे ..और चल दिए ...!
अजीब जतरा था ...रास्ता भर साईंकील का "चेन" उतर जा रहा था :( किसी तरह पहुंचे ...मेरे मुह से निकला ..."लह" ....यहाँ तो "मेला लगा हुआ है " ! हा हा हा ....सेंटर पर् सिर्फ मै ही "अकेला" था ..वरना बाकी कैंडीडेट ..पुरा बारात ! अपने परीक्षा कक्ष में गया ....सबसे आगे सीट ! पीछे "राजेशवा" था ! फिएट से उसका पुरा खानदान लदा के आया था ! अब देखिये ...वो हमसे पूछता है ...."पुरा पढ़ के आये हो ना .." हा हा हा हा हा ....प्रश्नपत्र मिला और मै सर झुका के लिखने लगा ....एक घंटा ..शांती पूर्वक ...फिर पीछे के जंगला से एक आवाज़ आई - राजेश का बड़ा भाई था - "ई ..चौथा का आन्सर है" - ढेला में एक कागज़ लपेटा हुआ - राजेश के पास आया ...धब्ब...! राजेशवा जो अब तक मेरा देख लिख रहा था ....अब वो परजीवी नहीं रहा ...वादा किया .."लिख कर ..मुझे भी देगा " ....पहला सिटिंग खत्म हुआ ! टिफिन के लिये मै अपने साथ "शिवानी" के उपन्यास लाया था ..ख़ाक पढता था :( हल्ला हुआ - सब क्योश्चन .."एटम बम्ब" से लड़ गया ...अब सेंटर के ठीक सामने "एटम बम्ब" बिक रहा था ...मै भी एक खरीद लिया ..बिलकुल सील किया हुआ :) खोला और एक नज़र पढ़ा ..बकवास !
हम हर रोज उदास हो जाता था ...सभी दोस्त के साथ पुरे खानदान की फ़ौज होती थी ! टिफिन में हम अकेले किसी कोना में बैठे होते थे ...इसी टेंशन में ...दीपक अगरवाल' को बीच चलते हुए परीक्षा में "धो" दिए ....उसको भी कुछ समझ में नहीं आया ..वो मुझसे क्यों धुलाया ...हा हा हा !
इसी तरह एक एक दिन बितता गया ....अंग्रेज़ी भी पास होने लायक लिख दिया ..गणित- अर्थशास्त्र - भूगोल - इतिहास - और संस्कृत सबसे बढ़िया ...बहुत ही नकरात्मक हूँ ..फिर भी खुद के लिये बहुत अच्छे नंबर सोच रखे थे ....अंतिम दिन ..चपरासी को दस रुपैया देकर ..कॉपी कहाँ गया है ..पता करवा लिया ...पर् जहाँ कोई मेरे साथ "सेंटर" पर् जाने को नहीं था ...कोई "कॉपी" के पीछे क्यों भागता ..हा हा हा .....
अंतिम दिन परीक्षा देकर ..कहीं नहीं गया ...चुप चाप चादर तान सो गया ...कितने घंटे सोया ..खुद नहीं पता ...ऐसा लग् रहा था ..वर्षों से नहीं सोया हूँ .....
आज पटना वाले अखबार में पढ़ा की - कल से "बिहार मैट्रीक परीक्षा " शुरू हो रहा है ..सभी विद्यार्थीओं को शुभकामनाएं ..... ज्यादा क्या कहूँ ..मेहनत कीजिए :))
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !
23 comments:
वाह मुखिया जी दालान में बैठ कर लग रहा है की अभी अभी मेट्रिक के परीक्षा देकर लौटे है. कोई कोई guest तो सवाल भी पूछने लगते थे. ऐसे में घर के बड़े बुजुर्ग बचाव में आते थे :-) अगर कोई शिक्षक guest आ गए कहीं से तो कहिये मत जितना सवाल वो अपने class में नहीं पूछते होंगे वो आप ही से पूछ लेंगे, बस चाय पर.
रंजन जी , बहुत बढ़िया ... मन खुश हो गया , लगा जैसे कोई मेरी ही कहानी लिख रहा है , सही है इसी तरह लिखते रहिये
हम लोग के जमाने में मेला लगता था। सोन पुर के बाद का सबसे बिसाल मेला यही होता था।
भीतर कनिय-बहुरिया परीच्छा दे रही होती थी और बाहर दुन्नू समधी पूरा फ़ौज के साथ, खाना-पीना के इन्तज़ाम के साथ।
बरा बढिया लगा और पुरनका दीन सब इयाद आ गया।
maja aa gaya.
एतवारे कोभेंटाए हैं आपसे, अऊर आझे हमको एगो हमरे साथी रेकमेण्ड कर दिहिन की पढिये.. चलिये अच्छा हुआ अपना इस्कूल का एगो भुलाएल साथी का ब्लॉगवो भेंटा गया! लगल रहिये!!
एकदम इस्कूल टाईम इयाद करा दिये!!
हा हा हा ...लड़का गर इस मेला में फेल तो लगता है जैसे पूरे घर में किसी की मौत हो गई हो....पास फेल होना भी यहाँ इज्जत का सवाल होता है.... मुर परिवार जो मेहनत करता है पास होने के लिए वैसे रिजल्ट भी बता देते आप तो मजा आ जाता ..लग रहा है जैसे कहानी अधूरी छोड़ दी है आपने...
बहुत बढ़िया . . .
:-)
very nice!!
ye bala blog miss ho gaya tha mukhiya ji..hum sab ka almost same haal tha us samay..yaad karte hain to bara maja aata hai..kismat kahan se kahan le jata hai logon ko...
Badhayi,Haqeeqat ko is tarah bayan karna ke vo apni baat lage"Achchi kahani" ke shreni me aati hai...na chahte huye bhi bahut se log is me apni parchayi dekhenge.
भाई FNS Acadmey मे तेरे अलावा एक और आदमी akele जाता था ....माँ बोली की किसी को साथ कर दीजिये तो हिटलर सिंह(मेरे बाबूजी का पेट नाम) बोले अभी नहीं सीखेगा तो कब सीखेगा ..हमको मुह्जवानी बता दिए की कैसे पहुचना है ...हमभी कुश की साला कोई टेंशन देने वाला साथ मे नहीं ....नया नया पैंट -शर्ट खास बोर्ड परीक्षा के लिए सिलवाया गया था पहिने और ऐ गो इन्त्रुमेंट बॉक्स लिए admit कार्ड लिए और चल दिए....मोहल्ला मे सब यैसे आशीर्वाद दे रहा था जैसे हम कारगिल सीमा पे जा रहे थे...काजीपुर मे रहते थे ..गली से निकलकर अशोक राजपथ पे आये अऊ पकडे टेम्पो ...देखे की उसमे हमको मिलाकर तीन गो एक्सामिनी .. बाकि दू गो का दू -दू गो "support स्टाफ"...दुनो लड़का ऐसे पड़ रहिस था टेम्पो मे जैसे परीक्षा का ध्यान कम और बगल मे gaurdian रुपी Support स्टाफ को जयादा इम्प्रेस कर रहा था . .थोडा टेंशन हुआ तो हम सुप्पोर्ट स्टाफ से बतियाने लगे ..उनको बड़ा आश्चर्य हुआ की जिंदगी का पहला जुंग और वो भी बिना सिपहसलार के( बाद मे वो दोनों लोग मेरे अछे मित्र हो गए).....खैर टेम्पो से उतरे पत्थर की मस्जिद के पास और पैदल चलकर FNS Academy पहुचे तो गेट बे भीड़ देख कर हमको भी लगा था की एक हमही अक्लेले है.......हहहहः;-)
sir jee mere ko to hindi type karni nahi aati hai par mai to aap ke likhne ka kyal ho gaya hu sir ek batt kahni hai aap likhate bahut hi aacha hai
Thanks Ranjan ji,
it's real story of that time bihar matric exams.Thanks for sharing.
Cheers,
Ramesh Roy
Gurgaon
Bahoot Badiye Ranjan jee..Jaise meri Kahani hai..
apni kahani apki zubani
ap to apni bat keh k tanha reh gye honge
magr hm padhne wale apni apni smrition k sang kho gye
bhai ..sach me padh kr etna khushi milta h ki i dont hav wrds to express... bhai 1 book publish kiya jaaye sab post milaakr ...kya khayaal h ?
wow bhaiya..kal mere b.tech ka last paper hai..aur apki ye kahani padh k to dil khus ho gaya ...
Waah..bhai jee,padke laga ki apna matric ka exam hai ...ekdum se wo samay taza ho gaya.....tension,dant sunana,kabhi bura lagna,kabhi koi badai kar diya to sun ke sina chaura ho jana,exam ke ek din paahle ka wo raat,exam khatm huya us din ko wo sukun,sab jaise laga bus kal hi ki to baat hai.....
Thanks
maja aa gaya!!!!!! kya warnan hai!!!!1111 ek ek pal dil ko chu gaya
पहली बार पढ़ा और मजा आ गया ।लगा जैसे सामने घटित हो रहा हो । एक दम्में से 9 साल पाहिले चले गए थे ।
दिल मे उतर गया। बचपन मे चले गये एकाएक
गज़ब , लेकिन सच में शब्द चित्र
उस ज़माने के लोगों और उस ज़माने की बातों का सच्चा, सजीव चित्रण. बहुत बहुत साधुवाद!
अगर पटना से ही आपने आई.एस.सी और इंजीनियरिंग की कोचिंग भी की थी तो उनसे जुड़ी यादें भी शेयर करें प्लीज.
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