पुरुष के गहने अलग होते हैं और स्त्रीओं के गहने अलग होते हैं । क्रोध , अहंकार / स्वाभिमान / अभिमान , युद्ध , ज़ुबान , छल इत्यादि पुरुष पर ही शोभा देते हैं । 'अभिमान' देखा है ? अमिताभ पर वह अभिमान शोभा देता है - जया ने उस अभिमान को कभी नहीं पहना - पूरे सिनेमा नहीं पहना । कभी किसी पुरुष को पूर्ण प्रेम करते नहीं देखा - कुछ न कुछ वो छल मिलाएगा ही ! वही छल एक स्त्री को आकर्षित करता है ! कल्पना कीजिए - कोई स्त्री छल सीख ले , फिर क्या होगा ? उसके पास प्रकृति ने एक ऐसी शक्ति दे रखी है - जिससे वो पुरे ब्रह्माण्ड के पुरुष को नियंत्रीत कर लेगी ! लेकिन पुरुष का छल उसे स्त्री का प्रेम लाता है वहीँ स्त्री का छल उसकी इज्जत खा जाती है ! मूलतः स्त्री 'फेक ओर्गेज्म' करती है - अपने पुरुष के अहंकार को शांत करने के लिए वहीँ पुरुष 'फेक रिलेशनशिप' रखते हैं - अपनी वासना के शिकार होने वाली स्त्री को करीब लाने के लिए ! पर कल्पना कीजिए - स्त्री फेक रिलेशनशिप बनाए और पुरुष फेक ओर्गेज्म रखे ...आप अन्दर तक हिल जायेंगे ! पर एक उम्र के बाद - पुरुष भी फेक ओर्गेज्म सीख जाते हैं और स्त्री भी फेक रिलेशनशिप सीख जाती है ! प्रकृति के विरूद्ध जा कर इंसान अपनी दिशा और दशा खुद तय करना चाहता है ! यह एक जिद है जिद के बाद एक स्वभाव और उसके बाद संस्कार ! लेकिन स्त्री पुरुष एक दुसरे के गहने पहनने लगे - बड़े ही गंदे दिखेंगे !
प्रेम , ईर्ष्या , ग़ुरूर , माफ़ी इत्यादि स्त्रीओं के गहने हैं । कभी किसी पुरुष को ईर्ष्या करते देखा है ? अगर वो ईर्ष्यालु है तो उसे अन्य पुरुष अपनी जमात से निकाल देंगे । कभी किसी पुरुष को प्रेम करते देखा है ? प्रेम करेगा तो वह ख़त्म हो जाएगा , वह किसी भी काम लायक नहीं रह जाएगा । वह अपने अहंकार को झुकाता है - स्त्री के क़दमों तक अपने अहंकार को ले जाता है - लेकिन मारता नहीं है - स्त्रीप्रेम में वह मूलतः अपने अहंकार को झुका कर अपने अहंकार की ही तृप्ति करता है । स्त्री पर उसे अपने हुस्न का 'ग़ुरूर' शोभा देता है - अहंकार नहीं । अहंकार भद्द दिखता है - प्रकृति के ख़िलाफ़ दिखता है । स्त्री ज़ुबान की पक्की हो गयी तो उसका बहाव रुक जाएगा । नदी की शोभा तभी है जब तक वह बहती रहे । यह ज़रूरी नहीं कि आप सारे गहने पहन कर ही निकलें - लेकिन जो भी पहनिए - अपने हिसाब से पहनिए ...अपने उम्र , लिंग , सामाजिक स्तर ,कूल खानदान के हिसाब से पहनिए - सुन्दर दिखेंगे :))
@RR
2 comments:
कभी-कभी तैरना न जानने वाले भी जिद्द मे आ के नदी मे कूद जाते है..और डूबते हुए उनकी जो दो अगुलियाँँ दिखती है वही जीतने की जीजिविषा दिखाती है...जीतने की कोशिश तो की जिंंदगी हार गई तो कोई बात नही....अभिमान रूपी गहना किसी पर नही शोभता पुरुष हो या स्त्री...इस शौक से बेहतर है बगैर गहने के जीवन गुजर जाए..
बहुत सुंदर विवेचन ।
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