बचपन याद है ! बुढा बाबा ( बाबा के बड़े चाचा ) ओसारा के एक कोना में एक पलंगनुमा काफी ऊँचा 'नेवारी' के खटिया पर् लेटे रहते थे ! बहुत गुस्से वाले थे और कंजूस भी - जो कुछ भी हम लोग हैं - उनके त्याग का ही फल है - खुद उनको अपनी कोई संतान नहीं थी ! छोटे मोटे ज़मींदार थे !
जब उनका मूड ठीक होता हम बच्चे उनके बगल में बैठ जाते ! वो दौर था - जब हम मिडिल स्कूल में पढते थे ! वीर कुंवर सिंह का नाटक हमारे किताब में था ! 'खूब लड़ी मर्दानी- झांसी की रानी' कविता कंठस्थ था ! चेतक :) और 'हार की जीत' ! बुढा बाबा से एक प्रश्न किया था - बाबा , देश आज़ाद हुआ तो आप कितने वर्ष के थे - वो बोले पचपन ! गांधी जी - हमारे गाँव आये थे ? वो बोले - हाँ , बगल वाले गाँव में 'कार' पर् ! गाँधी जी और कार :( मूड ऑफ हो गया था :( 'वामपंथी किताबों' में कार का जिक्र ही नहीं होता था !
बाबा राजनीति में थे ! बाबा से प्रश्न होता था - राजेन बाबु ( डा० राजेंद्र प्रसाद ) से आप मिले हैं ? वो बोले - हाँ ! संतोष होता था ! मेरा परिवार भी आजादी की लड़ाई में शामिल था ! राजेन बाबु की सादगी की कल्पना ही अपने आप में रोमांचित करती थी ! वामपंथी इतिहास की किताबें ! बाद में पता चला - राजेन बाबु का हमारे छपरा जिला के सबसे बड़े 'ज़मींदार' 'हथुआ' से काफी गहरे सम्बन्ध थे !
एक याद है - एक मामा के बियाह में १९८२ में पटना आये थे ! कदमकुआं से 'बिहार विधानसभा' निकल गए - यह देखने की वो कौन सात विद्यार्थी थे जिन्होंने देश के लिये गोली खाया ! फिर उन नामो में 'खुद के जिले' का कोई है या नहीं - उसको खोजना ! मुजफ्फरपुर में थे तो 'खुद्दी राम बोंस' की मूर्ती के पास से जब भी गुजरे - एक नमन तो जरुर ही किया ! बचपन में सोचता था - जब भी बड़ा होऊंगा - भगत सिंह - चंद्रशेखर आज़ाद जैसा मुछ रखूँगा ! चंद्रशेखर आज़ाद के किस्से हर वक्त जुबान पर् होता था ! कई चाचा - मामा टाईप आईटम लोग वैसा ही मुछ रखता था !
थोडा बड़ा हुए तो - पटना आये ! यहाँ हर कोई 'छात्र आंदोलन ' का नाम लेता ! छात्र आंदोलन में हई हुआ - हउ हुआ ! लालू - नितीश - पासवान - यशवंत सिन्हा - फलना - ठेकाना - झेलाना - जिसको देखो - सब के सब 'छात्र आंदोलन' की उपज ! कुछ लोग इमरजेंसी की प्रशंषा भी करते - कहते ट्रेन समय से चलने लगे थे ! समाज में बकवास बंद हो गया था - पर् घुटन थी !
इस् तरह की कई कहानीयां कानों में गूंजती रही ! जब कोई बोलता - आंदोलन - तो हमारे जेनेरेशन के पास कहने को था - 'आई टी आंदोलन' ! मेरा जेनेरेशन सबसे ज्यादा बदलाव देखा है ! मंडल - कमंडल आया लेकिन वो समाज को विभाजीत ही कर के गया :( शर्म से उसको 'आंदोलन' नहीं कह सकते थे :( आई टी - आंदोलन में सब कुछ था - पर् वो नहीं था - जो आजादी और छात्र आंदोलन में था ! आई टी - आंदोलन कुछ फीका जैसा लगता था :(
'अन्ना' आये ! क्या आये ! जबरदस्त आये ! वो सभी इतिहास की किताबों को सच करने का मौका आ गया ! कानो में गुजती उन कहानीओं को जुबान पर् लाने को दिल मचलने लगा ! टी वी पर् सीरीयल बंद हो गया - रवीश कुमार की खनकती आवाज़ गूंजने लगी ! मस्त ! दिन भर ओफ्फिस में बॉस से अन्ना को डिस्कस करने के बाद 'होंडा सीटी' को घर के पड़ोस वाले पार्क के नज़दीक पार्क कर के - मोमबत्ती मार्च में शामिल होना - फिर खुद के घर के बालकोनी की तरफ - अपनी ही बीवी को गर्व से देखना - देखो ..देखो ..न..मै भी कुछ कर सकता हूँ ! मै विदेशी कंपनी' का गुलाम नहीं - एक भारतीय भी हूँ - तुम भी आओ न ..हर्ष और खुशी को भी लेकर आओ ...रुको आती हूँ ..जींस मिल नहीं रहा ! ऐसा लगा - हम भी इतिहास में शामिल हो गए !
थैंक यू - अन्ना !
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !
2 comments:
आपका मेमोरी तो बड़ा ज़बरदस्त है.. सब कहानी, कविता का नाम याद है...
हमारे गाँव में भी एक वैसे आइटम थे; सीने पर जला के भारत का नक्शा बना लिए थे.. हम बच्चों में क्या वजन था उनका... :)
अन्ना ने इस जेनेरेशन को अपनी कल्पनाओं को साकार करने का एक अवसर दे दिया है..
Aaj kal aap bahut kam likhate hain. Roj main isi intejar mein daalan kholata hoon ki aaj to kooch padhane ko milega.
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