Thursday, October 17, 2013

तेरी रूह ....:))

मंदिर तो वहीँ हैं ...जहाँ तेरी रूह बसती है ...जलती है ...उस कमरे को रौशन करती है ...सुगन्धित करती है ...इस जहान में ...सबकुछ तो पत्थर ही है ...बस तेरी 'केफी' की इबाबत ने ...उस आवारे पत्थर को खुदा बना दिया ...
मंदिर तो वहीँ हैं ...जहाँ तेरी रूह बसती है ...
~ RR

1 comment:

dr.mahendrag said...

बहुत सुन्दर