Wednesday, September 24, 2014

.........माँ.......

कश्मीरी आया होगा - शाल बेचने ! माँ, चाची , मामी , फुआ , पड़ोस वाली आंटी लोग सब लोग उसको घेर के बैठ गए होंगे ! उसके गठरी की एक - एक शाल को देख रहे होंगे ! माँ भी दो शाल ली होगी - सस्ता ! पश्मीना कभी देखा नहीं - ख़रीदा नहीं - छुआ नहीं - ओढा नहीं ! पूछने पर् बोलेगा - पचास हज़ार से शुरू ही होता है ! पश्मीना के नाम पर् 'पश्मीना मिक्स' कोई दो तीन हज़ार में बेच जायेगा ! इस् बार छुट्टी में घर जाऊंगा तो माँ वो शाल मुझे दिखाएंगी - फिर बातों बातों में नानी का जिक्र आएगा - कहेंगी - नानी पश्मीना रखती थी - सोना के फ्रेम वाला चश्मा के साथ - नानी की एक तस्वीर माँ के अलमीरा में रखी हुई है - पश्मीना शाल ओढ़े हुए - उसी चश्मा के साथ - मै बचपन में हँसता था - माँ , ब्लैक एंड व्हाईट फोटो में ..चश्मा सोना का है या लोहा है - कैसे पता चलता है ..... ! सिर्फ बाप दादा का ही क्यों - मेरे इस खून में - माँ , नाना नानी भी तो बसते हैं - सब कुछ बिखर गया है - धत्त ..खून भी कभी बिखरता है ? वो तो रगो में दौड़ता है या फिर .....ब्लीड करता है ! 
अरे.....हाँ ....कश्मीरी फिर अगले साल ...नए शाल के साथ आएगा ! :))
~ ५ दिसंबर २०१२ 

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