Wednesday, September 24, 2014

कज़िन .....

बचपन बड़ा सुहाना होता है ! अपना घर हो या ननिहाल - ढेर सारे हमउम्र कजिन - लड़ाई झगडा - खेल कूद - उठा पटक ! कुछ कजिन बहुत करीब होते थे - ऐसा लगता जैसे इनके बिना जीवन की कल्पना बेकार - पर हमउम्र - कभी न कभी - कुछ हो ही जाता - मुह फुलाने से लेकर - फैटा फैटी तक ! 
कभी कभी मेरी भी गलती होती थी - यहाँ 'माँ' का रोल बड़ा सुन्दर - किसी भी हाल में - मुझे बोलतीं - जाईये ..रंजू ..माफी मांग लीजिये - माफी मांग लेने से आप छोटे नहीं हो जाईयेगा - शुरू में एक झिझक होती थी - फिर माँ की बात सही लगी ! मै चुपके से अपने कजिन के पास जाता और कान पकड़ माफी मांग लेता - क्या भोलापन उम्र था - सेकेण्ड तो लम्बा होता है - सेकेण्ड से सौवें हिस्से में माफी मिल जाती - फिर से उठापटक - हुडदंग ! मालूम नहीं हम कब बड़े हो गए - लोगों से 'माफी' मिलना बंद हो गया - वो सारे भोले रिश्ते को अहंकार ने दीमक की तरह खा लिया !

११ अक्टूबर - २०१२ 

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