Friday, April 5, 2019

चिट्टी मिट्टी नरेन्द्र झा फाऊंडेशन


जीवन इस काया के पहले भी है और जीवन इस काया के बाद भी है ! पिछले साल 2018 के 14 मार्च की सुबह प्रसिद्द अभिनेता नरेन्द्र झा अपनी काया छोड़ दिए ! अब उनकी इस नयी काया को गढ़ रही हैं उनकी पत्नी , परिवार और मित्र ! 
उसी क्रम में 'चिट्टी मिट्टी नरेन्द्र झा फाऊंडेशन' का जन्म होने जा रहा है ! इस रविवार 7 अप्रैल को रांची के हरमू मैदान में आयोजित झारखण्ड मिथिला मंच के कार्यक्रम में छः सम्मान होंगे ! 
* भद्रकाली नाट्य परिषद् , कोइलख , मधुबनी 
* श्रीमती गौरी मिश्रा , सुप्रसिद्ध समाज सेविका और दरभंगा के विख्यात डॉ भवनाथ मिश्र की पत्नी ! 
* श्री सुरेन्द्र यादव , प्रसिद्द मैथिलि गीतकार , संगीतकार और गायक 
* श्री अभिनव आनंद , महज १७ साल में ही कई किताबों से प्रसिद्द कथाकार 
* श्री मुकुंद नायक , झारखण्ड में आदिवासी कल्याण में एक सुप्रसिद्ध नाम 
* झारखण्ड मिथिला मंच , रांची 
इन सभी को 'मिथिला रत्न नरेद्र नारायण झा सम्मान' से सुशोभित किया जाएगा जिसके अंतर्गत रु 25,०००/- , शाल , सम्मान पत्र और एक मोमेंटो !  
नरेन्द्र नारायण झा मिथिला के कोइलख ग्राम , मधुबनी के रहने वाले थे ! पटना विश्वविद्यालय , जेएनयू के बाद उन्होंने रंगमंच के तरफ अपना रुख रखा जो उनके अंतिम दिनों तक कायम रहा ! बेहतरीन मॉडल , फिर करीब २० से ऊपर टेलीविजन सीरियल और इतने ही बड़े छोटे सिनेमा ! वो खुद एक बेहतरीन गायक और कई वाद्ययंत्रो पर माहिर थे ! अध्यात्मिक थे - एकांत के क्षणों में मंदिर के चबूतरे पर बैठना उन्हें पसंद था ! एक अदभुत बात थी - मीडिया के ही सबसे बड़े रूप सिनेमा से जुड़े थे लेकिन अन्य रूपों से दुरी रखते थे ! मुझसे पहली ही मुलाकात में - मैंने यही बोला था - काश मेरे पास पैसा होता और मै आपको लेकर 'द ग्रेट गेट्सबाई' सिनेमा का हिंदी रूपांतर बनाता और फिर हमदोनो जोर जोर से हंसने लगे थे ! ग्रीक गॉड की विशाल छवि लेकर पैदा हुए थे और उसी छवि के साथ अपनी काया भी छोड़े ! जेएनयू में उनके सहपाठी टाईम्स ऑफ़ इंडिया में श्रधांजलि देते हुए लिखा था की - नरेन्द्र जी का आवरण ऐसा था की आप बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकते थे ! 
मैंने जो कुछ भी उनके बारे में जाना , वो उनकी पत्नी पंकजा के माध्यम से ही जाना और कुछ उनसे कुछ उनसे हुई मेरी मुलाकतों में  ! इस फाऊंडेशन की सूत्रधार और कर्ता उनकी बहादुर पत्नी पंकजा है ! 
पंकजा का परिचय जरुरी है - सर्वप्रथम वो दालान ब्लॉग की फैन नंबर एक है !पंकजा की एक बात मुझे अक्सर याद आती है ! नरेन्द्र जी और पंकजा मुंबई से दूर एक मकान बना रहे थे - सिविल डिजाईन में चौखट की उंचाई थोड़ी कम थी - पंकजा ने पलभर में निर्णय लेकर उस अर्धनिर्मित मकान को फिर से बनवाया क्योंकि नरेंद्र झा की लम्बाई ज्यादा थी , पंकजा का प्रेम नरेन्द्र जी के लिए गीत और कविता में नहीं बल्कि एक्शन में था और शायद यही प्रेम की सच्ची अनुभूति होती है ! पंकजा साहसी है , भयमुक्त है ! मेरे पिता जी इन्हें बहादुर कहते है ! दिल्ली विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडलिस्ट होते हुए भी वर्षों बाद मुझे पता चला की वो एक गोल्ड मेडलिस्ट है तब जब हमदोनो के परिवार पिछले चालीस साल से ज्यादा से एक दुसरे को जानते हैं ! पंकजा असीम ऊर्जा की वाहक है - नरेन्द्र जी की अनुपस्थिति में पिछले एक सवा साल से जिस भावनात्मक उतार चढ़ाव से वो गुजर रही हैं - वहां से खुद को सकरात्मक रखना आसान ही नहीं असंभव था और फिर इस फाऊंडेशन का जन्म ! कहते हैं - पंकजा से विवाह करने के लिए नरेन्द्र करीब छः साल इंतज़ार ही नहीं किये बल्कि पंकजा की गरिमा को बरक़रार रखने के लिए पंकजा के माता पिता से एक अनुरोध के साथ पंकजा का हाथ माँगा!यह अंदाज़ मैंने खुद दो बार देखा - जब पटना आगमन पर पंकजा की उपस्थिति में नरेन्द्र जी के हाव भाव , बातों  और आँखों में पंकजा के लिए असीम आदर देखा ! तब जब हैदर , रईस , मोहनजोदारो , काबिल इत्यादि फिल्मों के साथ नरेन्द्र जी काफी बड़े नाम हो चुके थे ! हैदर में पूरी फिल्म ही उनके इर्द गिर्द मन में गुजंती है तो रईस में उनकी भूमिका को युवा वर्ग इन्स्टाग्राम पर चंद सेकेण्ड में कई हज़ार लाईक आये - ये कौन तो ये कौन ! लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था ! 
पंकजा भारतीय राजस्व सेवा की बेहतरीन अधिकारी रह चुकी है ! वो कर्मठ है ! पंद्रह साल पहले जब वो मुंबई इंटरनेश्नल एअरपोर्ट पर पदस्थापित थी और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने उन्हें अपने पहले पन्ने पर 'किरण बेदी' की संज्ञा दी और पंकजा कभी इसकी चर्चा भी नहीं करती है ! बतौर फिल्म सेंसर बोर्ड सीइओ पंकजा ने कई ऐसे निर्णय लिए जो ना सिर्फ वजनदार थे बल्कि उनके द्वारा लिए गए निर्णय इतिहास भी बनाए और उनके शुरूआती दौर में ही दिल्ली के टाईम्स ऑफ़ इण्डिया ने उनपर एक लेख छापा - तब मैंने जाना की पंकजा अब सेंसर बोर्ड की सीइओ बन चुकी है - और तब से लेकर आज तक पंकजा दालान की फैन नंबर एक है , 9 साल से लगातार !  पंकजा की सबसे बड़ी खासियत है - कमिटमेंट ! प्राण जाए पर वचन ना जाये ! कमिटमेंट वाला उनका यह व्यक्तित्व जबरदस्त है ! जो उन्हें जानते है वो मेरी बातों से अवश्य ही सहमत होंगे :)   
इसी वर्ष फ़रवरी 2019 को पंकजा ने स्वेच्छा से वीआरएस लिया तब जब वो बिहार झारखंड की कम्निश्नर ( जीएसटी ) थी ! यह निर्णय भी अपने आप में बहुत साहसी था - और उस संध्या उनके सामने बैठा था - उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं था और उस वक़्त भी उनका मन  इस फाऊंडेशन के जन्म को लेकर चिंतित था ! 
पंकजा कर्मवीर है लेकिन उनके व्यक्तित्व को 360 डिग्री के साथ जानने के बाद - मुझे हमेशा यही लगता है - उनका साहस , उनकी ऊर्जा किसी कर्म से नहीं प्राप्त की जा सकती - यह दैवीय संयोग और आशीर्वाद है ! 
लेकिन आप कितने भी मजबूत क्यों न हो , ज़िन्दगी इम्तहान जरुर लेती है और इन्ही इम्तहानों में पता चलता है की आप सचमुच में कितने मजबूत है ! मै खुद , परिवार और दालान के पाठकों के तरफ से यही कामना करूंगा की पंकजा मजबूत बनी रहें और यह फाऊंडेशन अपने शिखर के तरफ बढे :)) 


शुभकामनाओं के साथ - 
~ दालान 


@RR

1 comment:

Radha Madhav Bharadwaj said...

अद्भुत सुंदर लेख है। सुंदर गढ़ा हुआ और भावुक कर देने वाला। मेरे बाल्यकाल के मित्र थे नरेंद्र झा जी जब वे 9वी कक्षा में थे और कोइलख नाट्य परिषद द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित स्टेज से बांसुरी वादन करते थे उसी कोइलख भद्रकाली उच्च विद्यालय परिसर में। बांसुरी पर ऐसा कमांड हो रहा था उनका। Half pent पहनते थे।मेरा ननिहल वहीं है और मेरे बड़े भैया स्वनामधन्य गरीब परवर बेनी माधव ब्रह्मचारी1927 में बने Govt hospital ke resident doctor the जिनके आवास पर कोइलख गाँव के सभी लोगों का जमावड़ा होता था क्यूंकि डाक्टर साहेब बड़े साहित्यिक कलाप्रेमी थे और खासकर नरेंद्र जी के बड़े भैया रमन जी, सुमन जी, उनके पिता को उसी High school ke principal ban Kar aaye the। Hamare आवास पर ही कन्हैया जी से नित्य मुलाक़ात होती थी। वहीं प्रेम आगे भी बना रहा जब वे दिल्ली विश्वविद्यालय पढ़ने आए फिर मैंने अपने ग्रामीण चाचा से रिक्वेस्ट कर उनकी टीम को अशोक विहार का फ्लैट दिलवाया जहां वे जेएनयू शिफ्ट से पहले एक साल तक रहे। में हिन्दू कॉलेज हॉस्टल में था जहां वे हर 15-20दिन या महीने में एकबार ज़रूर आते थे शुरू शुरू में खास कर Sunday ke din jab हमारा lunch continental hota tha cold coffee ke sang। Kintu धीरे धीरे उनका आना बंद हो गया और हम भी अपने कैरियर में खो गए किंतु उन्हें टीवी पर देखता था। Captains house etc me एकबार पुनः उनका दर्शन जेएनयू हाउसिंग सोसइटी में हुआ जहां वे अपनी cousin sister Baby se Milne aaye। the kintu atyalpa samay ke liye। Punah Kashmir wali film me unko देखकर चौंक गया और मैंने बच्चों से कहा कि ये तो मेरे freind Kanhyaya जी हैं और उनको फोन मिलाया वे बहुत खुश हुए और लंबी बात हुई। 2016में Bombay Gaya to पिछला सारा छूटा प्यार उन्होंने उंडेल दिया और जुहू बीच लेे गए ड्राइव करके, होटल में खिलाया, मेरे बहुत सारे फोटो खींचे समंदर के किनारे और बोलते रहे, रविन्द्र बाबू, राधा बाबू, डाक्टर साहेब, पृथ्वी थियेटर लेे गए क्या कुछ नहीं। तीन बार पंकजा जी के घर गया और उनका होली में आतिथ्य पाया। 2018 के 14मार्च से कुछ पहले वे बीमार पड़े थे और गहन rest me the Maine phone Kiya ki आपसे मिलने आ रहा हूं Bombay we बीमार थे तब भी फोन उठाया और कहा राधा बाबू होम एखान बहुत बीमार छी अहान किछु दिन बाद आयाब किंतु नहीं जानता था कि अब उनसे दोबारा मिलना न हो सकेगा। उफ्फ। मैं भी बहुत बदनसीब हूं ज़िन्दगी में कई भाइयों और प्रिय मित्रों को असमय खोकर भी जी ही रहा हूं। किंतु ठीक लिखा आपने पंकजा जी एक बहादुर पत्नी हैं और विदुषी, कर्मठ, committed Jo Naren Babu ke विचारों को आगे ले जाएंगी और बहुत साहसी और एकनिष्ठ हैं। में उन्हें उनके ध्येय में सफलता की कामना करता हूं और उनकी विचार यात्रा का एक यात्री मानता हूं। पंकजा जी को नमस्कार और चिती मिटटी नरेंद्र झा फाउंडेशन प्रिय नरेन बाबू की विरासत को चिरस्मरणीय बना दे। शुभकामना। आचार्य राधा माधव भारद्वाज, अनिवUniver of Delhi