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क्या तेरे खिड़की से वही चाँद दिखता है ...जो चाँद मेरे बालकोनी से दिखता है ...
उसी चाँद को तुम अपना पैगाम कह देना ...उसी चाँद से हम तेरा पैगाम सुन लेंगे.....:))
~ RR
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| ए शरद पूर्णिमा के चाँद... कहाँ छोड़ आये अपनी चांदनी ... कहाँ गँवा आये अपनी शीतलता ... ग्रहण का क्रोध ...या प्रकृती की विवशता ... |
@RR - 7 / 8 October - 2014


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