Friday, October 3, 2014

मेरा घोड़ा..........


पार्ट - एक 
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ज़िन्दगी के घोड़े को कुदाते फँदाते ...कभी हरा मैदान तो कभी पर्वत ..कही खाई तो कहीं उंचाई ...कहीं हम थके तो कहीं मेरा घोड़ा ...हिम्मत नहीं हारे ...कभी कोई हसरत कहीं छूटी.... तो कोई और चाहत कहीं जन्म ली ....जो मिला सो मिला ..कहते हुए ...एक हाथ से जिंदगी के घोड़े का लगाम तो दुसरे हाथ में ढेर सारी चाहतें ..हसरतें ...
इस सफ़र में ..मालूम नहीं कब 'चालीस' भी पार कर गए ...ज़िंदगी का घोडा हिनहिना के इस चौराहे पर एकदम से खडा हो गया ...सोचा कुछ सुस्ता लूँ ..उस छाँव में कुछ देर आराम कर लूँ ...तब तक पीछे से आवाज़ आयी ...अब घुड़दौड़ शुरू होने वाली है ...अब मेरा घोडा मेरी तरफ मुह ताकता ...अभी तक क्या कर रहे थे ...मालूम नहीं कहाँ कहाँ और किस किस सफ़र में ...हमको घुमाते रहे ...हमको तो अकेले दौड़ने की आदत लग गयी है ...कहाँ तुम इस घुड़दौड़ में मुझे शामिल करोगे ...क्यों मेरी इज्ज़त के पीछे पड गए हो ...  ... अब हम अपने घोड़े को बोले ...देखो ..सुनो ..सी ...तुम घोडा हो ..घोड़ा की तरह काम करो ...आदमी की तरह मत सोचो ...घोडा बोला ...यार ...ताउम्र तो तुम मुझसे आदमी की तरह बात करते रहे ...अब अचानक तुम मुझको घोडा कह कर चुप करा रहे हो ...हद हाल है ..यार :(( अब मुझे गुस्सा आने लगा है ...ये घोड़ा जिसकी लगाम मेरे हाथों में ...अपनी अवकात भूल मुझसे बहस कर रहा है ...
शोर होने लगा है ...आवाज़ आ रही है ...सभी घुडसवार तैयार हैं ...पर जाना कहाँ तक है ? किसी ने कहा ....उस पहाडी पर ..उस ढलती शाम तक ...उस लालिमा को छूना है ...मेरा घोड़ा जोर से हंसा ...आ बैठ ..लगाम पकड़ ...वो ढलती शाम की लालिमा नहीं है ....वो उगते सूरज की लालिमा है ...बीच सफ़र में फिर कहीं एक रात आयेगी ...लगाम पकडे रहिओ .... :))

पार्ट - दो 
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अभी घुड़दौड़ शुरू होने में समय था ...मैंने घोड़े से कहा ..चल उस छांव में कुछ देर आराम कर लें ! अभी हम एक कदम आगे ही बढाए ...घोडा पीछे से - एक बात बताओ ...तुम भी जानवर ..मै भी जानवर ..फिर तुम जानवर से 'आदमी' कैसे बन गए ...मै हंसने लगा ...घोड़े को गुस्सा आया ...बोला ..यार गजब करते हो ...किसी सवाल का सही जबाब नहीं देते ...कभी हंस देते हो तो कभी गुस्सा जाते हो ...जाओ ..अब कोई सवाल नहीं पूछूँगा ! मै जोर जोर से हंसने लगा ....! पेड़ के पास आकर घोड़े को बाँध दिया ! उसके आगे कुछ चने डाल दिया ...आज घोड़े का मूड कुछ अजीब लग रहा था ...थोड़ी देर बार ....फिर घोड़े ने कहा ...एक बात बताओ ...मेरा माथा ठनका ...जिस घोड़े ने आजतक कोई सवाल नहीं किया ...आज वो 'आदमी' की तरह क्यों सोचने लगा है ...बहुत हिम्मत कर के ..उससे बोला ...बोलो ...क्या पूछना चाहते हो ...घोडा बोला ...देखो ..जबाब देना ...हँसना या गुस्साना नहीं ! हम फिर हंस दिए ...अरे..तुम पूछो तो सही ....घोडा मुस्कुराया ...बोला ....अभी तक के सफ़र में ..कई रात आये ..कई ठहराव आये ...कई छाँव आये ...ना तो तुमको कोई दूसरा घोडा मिला ..ना ही मुझे कोई दूसरा घुड़सवार ..ना तो तुमने मुझे खुद से दूर करने की कोई कोशिश की ...ना मैने ..तुमसे दूर भागने की कोशिश की ....फिर भी हर छाँव / ठहराव / रात ...तुम मुझे किसी खूंटे / पेड़ से बाँध क्यों देते हो ? ? - आदमी होने का घमंड दिखाते हो ? 
अब हम ना तो हंसने के मूड में थे ना गुस्साने के ...जिसका भय था ...वही नज़र आ रहा था ...इतने दिन आदमी के साथ रहते रहते ..ये घोड़ा भी सोचने समझने लगा था ..मुझे घुड़दौड़ की चिंता होने लगी थी ...क्योंकी मुझे पता था ...पुरस्कार तो घुड़सवार को मिलता है ..पर असल जीत घोड़े की ही होती है ...

पार्ट - तीन 
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.....घुड़दौड़ की पहली घंटी बज गयी ...ऐसी तीन घंटी बजने वाली थी ...अब हम प्रेशर में आ गए ...इधर उधर देखा ....बाकी के सभी घुड़सवार अपने अपने घोड़ों के मालिश में लग गए ....हम भी यही सोचने लगे ....घोड़े के पास गए ...बोले ...चलो ..तुम्हारा कुछ मालिश कर दूँ ...अब घोडा हंसने लगा ...कर दो ..मालिश ...हाँ ..आगे दाहिने पैर के पास जख्म है ...थोडा ध्यान से ! हम थोडा चुप रहे ...फिर बोले ...पहले क्यों नहीं बताया ...पैर पर जख्म है ..! घोडा मुस्कुराया ...बोला ...कब बताता ...हमपर सवार मालूम नहीं तुम कहाँ कहाँ भटक रहे थे ...न जाने किस धुन में सवार थे ...अभी तो फुर्सत मिली ...अब जब फुर्सत मिली तो घुड़दौड़ में मुझे शामिल करना चाहते हो ...
हम क्या बोलते ....पास गए ...पूछे ...ये जख्म कब हुआ ..बताओ ..न ...घोडा बोला ..याद है ..वो नाला ...चौड़ा सा ...उसको तडपना था ....उसी वक़्त का जख्म है ...मैंने घोड़े से पूछा ...मगर हम तो वो नाला ..बड़ी आसानी से तड़प गए थे ...कहीं गिरे भी नहीं ...फिर भी ये जख्म ! घोडा थोडा उदास हो गया ...बोला ..चाबुक के निशाँ हैं ..जख्म हैं ! मै हडबडाया ...मुकर गया ...साफ़ बोला ...मै इतना हल्का सवार ...तुम इतने मजबूत घोड़े ...भला मै क्यों चाबुक चलाता ...घोडा मुस्कुराया ...बोला ...ठीक है ..मै अब आदमीओं की समझ रखने लगा हूँ ..पर अभी पुर्णतः आदमी नहीं बना ...तुमको आजादी है ..मुकरने की ...चलो मालिश शुरू करो ..ध्यान से !
मै सोच में डूबा रहा ...हलके मालिश से ....ध्यान उस नाले की तरफ ...कैसे पार किया था ...कुछ याद नहीं ...क्यों नहीं याद ...अभी सिर्फ घुड़दौड़ दिमाग में घुसा हुआ है ...फिर घोड़े से पूछा ...बोलो ..न ..मैंने चाबुक क्यों चलाया ...घोडा बोला ...."तुम भय में थे ...नाला की चौड़ाई देख ...उस भय में तुमने अपना सारा विश्वास मुझपर लाद दिया ...फिर भी तुम भय में थे ...एक तुम ..फिर तुमसे वजनी विश्वास ..ऊपर से तुम्हारा चाबुक ....अब मेरे पास कोई उपाय नहीं था ...चाबुक का जख्म देखता तो ...तुम और तुम्हारा विश्वास आज उस नाले में होता " ....
हम और परेशान हो गए ...ये घुड़दौड़ के वक़्त ही इस घोड़े को सेंटी होना था ...मुझे कुछ याद नहीं आ रहा था ...बस सामने घुड़दौड़ नज़र आ रहा था ....

पार्ट - चार 
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....दूसरी घंटी कब बज गयी ..पता ही नहीं चला ..अचानक देखा तो बाकी के सभी घुड़सवार ..बगीचा से निकल पड़े थे ..वहां के लिए जहाँ से घुड़दौड़ शुरू होने वाली थी ...मैंने घोड़े को बोला ....चल राजा ...सारी ज़िंदगी एक तरफ और ये एक घुड़दौड़ एक तरफ ...घोडा उदास हो गया ...बोला ताउम्र तुमको कहाँ कहाँ नहीं घुमाया ...सारे दर्द - जख्म बर्दास्त किये ...क्या मेरे लिए तुम इस घुडदौड़ को नहीं छोड़ सकते ...घोड़े की बातों में हल्का दर्द था ..मेरी अपनी मजबूरी थी ...उसकी अपनी ...'मुझे जितना था और उसे हारना नहीं था' ...दोनों भय में थे !
मै पैदल था ..और मेरे साथ मेरा घोडा ...रास्ते में मैंने पूछा ...ये बताओ ...तुमने मेरा चाबुक क्यों बर्दास्त किया ? घोडा बोला ....जान कर क्या करोगे ? मैंने बोला ...अब मेरा जानना जरुरी हो गया है ...यह सवाल मुझे परेशान कर रहा है .. ! घोडा बोला ....याद है ..पहला सफ़र ...हम रात में एक जंगल में भटक गए थे ...मैंने बोला ..हाँ ..हाँ ...एकदम याद है ! फिर घोडा बोला ...और क्या याद है ? मैंने बड़े मासूम ढंग से बोला ....और कुछ नहीं ! घोडा बोला ...बड़े ही अजीब आदमी हो ...कोई घनघोर जंगल में भटक जाए और उसे कुछ याद नहीं रहे ..मै झुंझला गया ...बोला ...अरे यार ..बोला न ..मै आदमी हूँ ..ईश्वर का देन है - भूल जाना ...घोडा नहीं हूँ ..जो झखमो को याद रखूं ...! घोडा बोला ...तभी तो तुम घुड़सवार और मै घोडा  वो उदास हो गया ...फिर मैंने पूछा ...बोलो ..न ...उस रात क्या हुआ था ...जिस रात हम जंगल में भटक गए थे ..! घोडा बोला ...जाने दो ..अब जान कर क्या फायदा ...! अब मुझे गुस्सा आया ...बताओ भी ...! घोडा बोला ...तुम गुस्से में सचमुच प्यारे लगते हो ...फिर वो बोला ...उस रात हम जंगल में भटक गए ...हमारे पास खाने को बहुत कम बचा था ...हम दोनों भूखे थे ...बुरी तरह ...तुमने सारे चने मेरे सामने रख दिए ...फिर खुद तुम भूखे पेट सो गए ...तुम भूखे पेट सोते रहे और मै भरा पेट भी जागा रहा ...सारी रात तुमको देखता रहा ...कितने प्यार से तुमने अपना खाना भी मुझे दे दिया ...खाना देते वक़्त जो कुछ तुम्हारी निगाहों में मैंने देखा ....बस उन निगाहों की मासूमियत में ...मैंने तुम्हारे बाकी सारे चाबुक बर्दास्त कर लिए ! 
अब मै असमंजस में था ...अन्दर तक हिल गया ...खुद भूखे रह ..घोड़े को सारे चने खिला देना ..मेरी मजबूरी थी ...वरना ये भूखा घोडा दम तोड़ देता और मै सारी जिन्दगी उस भयावह जंगल में फंस के रह जाता ...मेरे स्वार्थ को इस जानवर ने प्रेम समझ लिया है ...मेरे कदम रुकने लगे ....मै घोड़े के मासूम निगाहों को देखना चाह रहा था ...हिम्मत नहीं हो रही थी ...
घोडा मेरी तरफ नज़रें उठा ..मुस्कुराया ..बोला ....'बोलो ...अब भी घुड़दौड़ की तरफ चलना है ? " 
उसके इस सवाल ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था ...फिर भी आदमी होने का घमंड / अहंकार ...मैं जोर से चिल्लाया ...."हाँ ..मुझे अब भी घुड़दौड़ में जाना है " ....

~ जनवरी - २०१३ - अन्तिम सप्ताह 

2 comments:

Himanshu said...

समझ मे अपनी जिंदगी लिखा है लेखक ने, सब की जिंदगी , पात्र यथार्थ से लगते कौनघोड़ा कौन, घुड़सवार ??
सफर का अंजाम क्या

Harish C Mathpal said...

Tana Bana aham ka...