देश के 'संसद' की क्या हैसियत है ? अगर मै गलत नहीं हूँ तो शायद इससे शक्तिशाली कोई और दूसरी संस्था नहीं है - फिर वहाँ के लोग जिसमे से करीब ५२३ हमारे द्वारा ही दिए गए वोट से जीते जाते हैं , क्यों न एक बेहतर तनखाह लें ? जब 'हरी - हैरी और हरिया' भी मेट्रो में रह कर २-४ लाख झार लेता है फिर जिस संस्था के ऊपर पुरे देश की जिम्मेदारी है अगर उसके सदस्य को पचास हज़ार मिल ही रहा है तो क्या गुनाह हो गया ?
एक छोटा सा सवाल है ? हम में से कितने लोग संसद के दौरान 'लोकसभा टी वी या राज्यसभा टी वी ' देखते हैं ! मुझे जितना वक्त मिलता है - मै देखता हूँ और इसी दालान पर मैंने चौदहवीं लोकसभा में पटना के सांसद 'श्री राम कृपाल यादव' को सर्वश्रेष्ठ सांसद बोला था - बाद में उनको लोकसभा ने उनके कार्यों को देख सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान दिया था ! मैंने 'बाहुबली पप्पू यादव' को लोकहित में बोलते देखा हूँ !
जिस आदमी को राजनीति का क , ख , ग भी नहीं पता वो भी राजनेता को 'भ्रष्ट' बोल देता है ! आज के दिन में बिहार जैसे गरीब प्रदेश में भी 'विधायक' का चुनाव जितने लायक लडने के लिए कम से कम एक करोड चाहिए ! एक उम्मीदवार क्या करता है इन पैसों से ? जी , आपके और हमारे जैसे लोग बिना पैसे दिए वोट नहीं डालते ! फिर 'भ्रष्ट' तो हम ही हुए ! दस साल पहले तो इस तरह पैसा नहीं बहता था !
"लोकतंत्र" में सबसे शक्ती शाली जनता होती हैं ! अगर ऐसा नहीं होता तो एक चपरासी का भाई - बेटा किसी प्रदेश पर २० साल तक राज नहीं करता ! अगर ऐसा नहीं होता तो इंदिरा गाँधी जैसी शक्तिशाली नेत्री चुनाव नहीं हारती !
बहुत कम ऐसे 'लोकप्रतिनिधि' हैं जिनके बाल बच्चे आपकी तरह एक 'एम एन सी ' की नौकरी करते हैं ! उनका बचपन और जवानी दोनों बर्बाद हो जाता है ! अगर वो थोडा खुद के लिए ले ही लिया तो इतना हंगामा ? आप और हम 'बेईमान' रहे और सामनेवाला 'ईमानदार' क्योंकि उसने 'समाज सेवा ' का प्रण लिया है ! इट्स नोट अ फेयर गेम !
देखिये , पैसे की जरुरत अब सबको है ! अगर आप उचित तनखाह नहीं देंगे फिर उसकी नज़र आपके 'तिजोरी' जायेगी ही जायेगी - आप कुछ नहीं कर सकते ! 'पावर' से पेट नहीं भरता ! आज जिसको 'कम्यूटर' का थोडा भी ज्ञान है वो ४०-५० पा लेता है ! फिर , 'लोकप्रतिनिधि' के साथ ऐसा व्यवहार क्यू ? भूखे पेट वो आपके लिए कितना सोचेगा ? इंसान है - उसके भी बाल बच्चे है - कुछ इधर उधर की सोचेगा ही ...!
यही हाल 'अधिकारिओं' के साथ भी है - आप संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा सबसे तेज लोगों को चुनते हैं और उनको देते हैं क्या ? और समाज उनसे अपेक्षा रखता है की वो अपने पद के अनुसार जीवन शैली रखें ! अगर कोई 'सिविल सर्वेंट' यह घोषणा कर दे की वो जीवन में कभी घुस नहीं कमाएगा - उसके यहाँ कोई अपनी बेटी का बियाह नहीं करेगा ! इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है की - कम तनखाह !
कल रवीश की रिपोर्ट देख रहा था - एक शिक्षक की शिकायत बच्चे कर रहे थे ! अब पांच हज़ार में आप कैसा 'शिक्षक' चाहते हैं ? इससे ज्यादा तो मेरे फ़्लैट के सामने 'गुटखा' बेचने वाला कमा लेता है !
अब किसी पेशा में इज्जत नहीं है ! एक जमाना था - जब लोग पूछते थे की आपको कितना पढ़े लिखे हैं - अब पूछा जाता है 'कितना माल' ( पैसा ) है ? यह दबाब कौन पैदा कर रहा है ? बचपन याद है - पटना के विधायक क्लब जाता था - बाबा के ३-४ दोस्त मंत्री - विधायक हुआ करते थे ! वहाँ 'टोनी' जी से दोस्ती हो गयी ! उनके पास गाड़ी होती थी - वहीँ बगल के फ़्लैट में 'पालीगंज' के विधायक रहते थे ! टोनी जी के यहाँ भीड़ होती थी - 'पालीगंज' के विधायक के यहाँ कोई नहीं ! "समाज भी चाहता है की आप झमका कर रहे" ! आज नेता बोले तो ..एक बड़ा गाड़ी ..२-४ चेला चपाती ...कौन देगा खर्चा ? बिना चेला चपाती वाला को आप नेता भी नहीं मानेंगे !
कल शाम बगल के 'शिप्रा मॉल' में चला गया ! एक राज्यसभा सांसद दिख गए - अपनी पत्नी के साथ थे - मै अपने दो दोस्त के साथ ! मैंने 'राज्यसभा सांसद' को अभिवादन किया और रुक कर उनकी पत्नी से उनके बच्चों की पढाई - लिखाई के बारे में पूछने लगा ! फिर वो लोग बाहर निकल गए और मै उनको गाड़ी तक छोडने आ गया ! मेरे दोनों दोस्त थोडा परेशान हो गए - बाद में पूछा - कौन थे ये लोग ? मिने बोला एक संसद सदस्य - वो चौंके - विश्वास नहीं होता - बिना वजन वाला संसद सदस्य होगा - वरना ऐसे ही बिना 'चेला चपाती - सुरक्षा ' का कोई कैसे चलेगा ? यह सवाल ऐसे लोग कर रहे थे - जो बिहार के सबसे बढ़िया इंजिनीअरिंग कॉलेज से पास एक बेहतरीन कंपनी में नौकरी कर रहे हैं - फिर बाकी की जनता तो अपने 'प्रतिनिधि को अवश्य की "शक्तिशाली" और 'झमकते' हुए देखना चाहेगी !
फिर 'बाज़ार' में झमकाने के लिए - पैसा चाहिए - अगर संविधान उनको नहीं देगा तो अवश्य ही उनकी नज़र 'तिजोरी' पर रहेगी ! यह मनुष्य का स्वभाव है !
खैर ..बहस जारी रहेगा ...
"दालान" से
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !