Sunday, July 22, 2012

धन्यवाद ...आप सभी का !

आजकल फेसबुक पर लिखने लगा हूँ ! वहाँ बहुत कम शब्दों में ही लिखना पड़ता है - लोगों के पास समय कम है - उन्हें कुछ क्रिस्पी चाहिए - पढ़े - लाइक बटन दबाये और चल दिए ! मालूम नहीं मेरे शब्द कितनो को याद रहता है - पर मुझे लिखना पसंद है - शब्दकोष कमज़ोर है - इसलिए थोड़ी दिक्कत होती है !

अब सोचा हूँ - अगर इतवार को फुर्सत रहा तो - यहीं ब्लॉग पर लिखूंगा - कम शब्दों में लोग बातों को समझ नहीं पाते हैं - जिसको फुर्सत होगा वो यहाँ आकर पढ़ लेगा !

हिंदी साहित्य एक बचपन से ही पसंद है ! रांची में रहता था - कभी कभी मौसी के साथ इटकी चला जाता लौटते वक्त फिरायालाल चौक पर एक पोप्पिंस और एक पराग ! अम्पक - चम्पक / चाचा चौधरी लगभग नहीं पढ़ा - उम्र सात - आठ साल रही होगी !

ननिहाल में साहित्य का चलन था - प्लस टू में था तो करीब आठ - दस साल बाद एक मामूजान के यामाहा मोटरसाइकिल पर लटक कर - ननिहाल गया था - गाँव - हैरान था - माँ के बचपन का 'पराग' और ढेर सारी पत्रिकाएं - माँ ने खुद हिंदी साहित्य से हैं और संगीत से भी उनका जुडाव रहा है - तानपुरा बजाती थी -  बड़ा तानपुरा देखा है मैंने - ननिहाल के खंडहर में ! पर माँ ने मुझे कोई ट्रेनिंग नहीं दिया - कुछ आया होगा उनसे तो वो 'खून' से ही आया होगा ! ननिहाल बुरी तरह बर्बाद / खत्म हो चुका है - लिख नहीं सकता - किसी से कह नहीं सकता - दर्द और दुःख दोनों है ! मेरे जेनेरेशन में कुछ पढ़ लिख कर - देश विदेश में नाम कमा रहे हैं - पर उन बच्चों से मेरा अपना कोई व्यक्तिगत लगाव नहीं है - ननिहाल / ममहर - तभी तक जब तक नाना - नानी / मामा ! बस ! पर आधा खून तो वहीँ का है ..न ...वो तो बोलेगा ही ! खून नहीं बोलेगा तो क्या पानी बोलेगा ?? :))

मुजफ्फरपुर में रहने के दौरान - बाबु जी एक बहुत बढ़िया काम किये - ढेर सारी मैग्जीन ! उसमे से एक था  - सारिका - आजभी उस साहित्य मैग्जीन की याद है ! बाबु जी भी पढते थे और हम भी ! बहुत ही कम उम्र में बड़े ही परिपक्व कहानीओं से पाला पड़ा ! छठी - सातवीं क्लास में खूब पढ़ा ! धर्मयुग / साप्ताहिक हिन्दुस्तान की कहानी / कादम्बिनी ! कुछ ऐसा ही पढ़ने का शौक मेरी बहन को भी है - दस साल पहले वो अमरीका गयी तो वहाँ कादम्बिनी खोजी - याद है - फोन पर बोली थी - भईया ..यहाँ कादम्बिनी मिल गयी ! :))

मैट्रीक की परीक्षा पास करने के बाद - याद है - बाबू जी बोले थे - पटना कॉलेज में एडमिशन ले लो - एक दिन वो काउंसेलिंग भी किये - हम कहाँ मानने वाले थे - जब आदमी जिद पर अडा हो - पाँव पर कुल्हाड़ी मारने के लिए - फिर कौन रोक सकता है ! फिर ..प्लस टू को बुरी तरह तहस नहस करने के बाद - एक मौक़ा और था - वापस आर्ट्स पढ़ने के लिए - पर नसीब में कुछ और लिखा था - जीवन के सफर को लेकर बुरी तरह डर चुका था ...इस डर में ही न जाने कितने साल सोया रहा ....जागा तब तक ...शाम हो चली है ....अब रात का भय सताता है ...!

प्लस टू में था तो एक मामा जान हैं / थे - यामहा मोटर साइकिल और हाथ में रीडर्स डाइजेस्ट ! हमको भी शौक हुआ - ताज्जुब है ..अंग्रेज़ी गोल होते हुए भी ..रीडर्स डाइजेस्ट से आज तक प्यार है ! खुशी तब होती है - जब आज के दिन रीडर्स डाइजेस्ट आता है - पुत्र महोदय भी उसी चाव से पढते हैं !

कॉलेज के जमाने पास - फेल में ही व्यस्त रहा ! अंतिम वर्ष में 'निखरने' का मौका मिला - एक गीत खुद से लिखा - बाबा सहगल का प्रभाव था - वो भी इंजिनियर थे - फिर क्या 'धूम' ! अत्लाफ असलम को देख वो सारे दृश्य याद आते हैं ! वो एक स्टारडम था - कुछ पल का - शोर - वन्स मोर का - आप सफ़ेद फ्लोपी शर्ट - काला जींस - काला वेस्ट कोट पहन स्टेज से कूदते हैं - जिससे आज तक कभी नैनो को छोड़ बात नहीं किया - उसका जुबान पहली और अंतिम दफा खुलता है - वन्स मोर ..मेरे लिए ! कहानी समाप्त !

शादी विवाह / नौकरी छोड़ भगोरा / बिजनेस डूब जाना - परेशान हो गया था - पिता जी का प्रेशर - उनका इज्जत - दस साल पहले नॉएडा आ गया ! उस साल एक बढ़िया काम हुआ - एक नया कंप्यूटर मेरे केबिन में लग गया - मालूम नहीं मेरे तब के एच ओ डी मुझे क्यूँ बहुत मानते थे - किसी से उनको कहते सुना था - रंजन इज अ हम्बल गाई ..वेरी सोबर ...! :( नो आइडिया ! इंटरनेट से जुडा था - पर यहाँ तब ढेर सारे याहूग्रुप से जुड गया ! कुछ बदमाशी सूझी = मैंने अपना आईडी "मुखिया जी" रखा ! फिर ..धडाम ..धडाम मेल लिखने लगा ...मेरे गहरे मित्र 'सर्वेश उपाध्याय' ने एक दिन मुझसे कहा ....रंजन जी ..उस दौर में ..आपके मेल पढ़ने के पहले ..लोग हनुमान चालीसा पढ़ लिया करते थे ! हा हा हा ...सर्वेश खुद कई ग्रुप के मोडरेटर होते थे ...मुझे ब्लोक करते करते थक चुके थे ...पर दोस्ती और एक दूसरे के लिए बहुत आदर और स्नेह ..टचवूड !

इसी बीच ..मैंने 'लोहा सिंह - रामेश्वर सिंह कश्यप' से मिलाता जुलता कुछ लिखा - रोमन लिपि में - हिंदी में - संजीव कुमार राय भैया बहुत पसंद किये - पीठ ठोक दिए ! वो खुद साहित्य के प्रेमी हैं ...! फिर मैंने एक कहानी लिखी - 'विजय बाबु की कहानी' जो  अमरीका के सुलेखा डॉट कौम पर आया - पर रोमन लिपि में ही था - कितनो को पसंद आया - पता नहीं ! फिर दूसरी कहानी - टूनटून बाबु की कहानी - फिर संजीव भैया पीठ थपथपा दिए ! फिर होली दीपावली छठ को लेकर लिखने लगा - याहूग्रुप पर - एक दिन लिखा - मैट्रीक परीक्षा पर - संजीव भैया को भेज दिया - उधर से जबाब आया - देवनागिरी में लिखो - ब्लॉग खुल गया :))

ब्लॉग खुलने के बाद - सर्वेश जी और संजय शर्मा भैया जी तोड़ मेहनत किये - कैसे इसकी लोकप्रियता बढाई जाए :)) सच में - दालान उनलोगों का कर्ज़दार है - संजय भैया खुद भी बहुत बढ़िया लिखते हैं - सहारा में काम करते हैं - साहित्य को बहुत पढ़े हैं !

फेसबुक को समझते - समझते में ही दो आईडी बर्बाद हो गए :( जब समझ में आया - सावधान हो गया ! दो साल पहले मैने  एक सीरीज शुरू की - 'मेरा गाँव - मेरा देस' ! पहला पोस्ट में ही देश के विख्यात पत्रकार 'विनोद दुआ' साहब फेसबुक पर कमेन्ट कर गए - बहुत बढ़िया लिखते हो - खूब लिखो ! यह कमेन्ट एक जादू था - आप अपने परिवार के बारे में लिख रहे हैं और आपका पीठ ऐसा आदमी थपथपा रहा है - जिसको टीवी पर देख आप बड़े हुए हैं ! आज भी मेरी नज़र में वो टीवी के हिंदी में सबसे बढ़िया पत्रकार हैं - पर दुर्भाग्य वश - मै उनसे उलझ गया - दुःख है पर मेरे पास कोई और चारा नहीं था ! पर सर मै आज भी आपकी बहुत इज्जत करता हूँ !

फिर पटना के हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र ने पटना में एक परिचर्चा की - वहाँ के पत्रकार 'प्रशांत कक्कर ' जी ने मुझे भी न्योता भेजा - कमलेश वर्मा सर ने मेरी बातों को छाप दिया - मेरा शहर मुझे लौटा दो :)) पुरे एक पेज में !

यह एक आम आदमी की सोच है - कोई भी आम इंसान खुद को अखबार में देख खुश होना लाजिमी है - जब तक उस परिचर्चा में शहर के नामी गिरामी लोगों के साथ बैठे हों और संपादक आपके शब्दों को ऊपर उठा दे - अजीब सी अनुभूती होती है !

रवीश कुमार उनदिनो दिल्ली हिंदुस्तान के लिए लिखते थे - एक दिन वो भी छाप दिए ! गौरव की बात थी ! फिर एक दिन - कमलेश सर का फोन आया मुझसे दालान के बारे में कुछ पूछे - अगले दिन पटना के प्रथम पृष्ठ पर - दालान की चर्चा - रवीश कुमार के ब्लॉग के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय ! अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था - लिखता गया - आम लोगों की कहानी - लोग खुद को मेरे शब्दों में खोजने लगे !

छठ पूजा के दौरान - मैंने छठ पूजा पर लिखा - लिखते - लिखते रोने लगा - लिखता गया ! फिर शांत मन से पोस्ट किया - शैलेन्द्र भारद्वाज सर का कमेन्ट आया - साक्षात सरस्वती आपके कलम पर हैं ! यह एक ऐसा कमेन्ट था - जिसे किसी भी मेरे जैसे आम आदमी के लिए भूलना मुश्किल है - शैलेन्द्र भारद्वाज सर खुद हिंदी के जानकार हैं और हिंदी में ही यूपीएससी कम्पीट किये ! बेहद शालीन व्यक्तित्व ! छठ वाले पोस्ट को पढ़ - पत्नी भी रोने लगी थी - तब मुझे समझ में आया था - शब्द कहाँ तक पहुँच सकते हैं !

'मेरा गाँव - मेरा देस' को लेकर कुछ नेगेटिव प्रतिक्रिया भी आई - फिर लिखना कम हो गया ! खुद के लिखे शब्दों को मशहूर करने का फेसबुक ही एक जरिया था / है - पर वहाँ लोग कम समय के कारण - लिंक कम खोलते हैं - सो छोटा - छोटा लिखने लगा ! कई बात समझने के लिए - लोगों के ऊपर ही छोड़ देता हूँ !

गाँव में घुमने वाले जोगी और उनकी माँ के दर्द को लेकर बहुत कम शब्दों में कुछ लिखा था - कई लोग पसंद किये - उसपर एक कहानी भी लिखी जा चुकी है - इस पर चर्चा बाद में ...पर बेहद खुशी हुई / है !

संकोची हूँ - बहुत कुछ खुल कर नहीं लिख पाता - सिवाय झगडा होने पर - एक पत्थर उठा के देखिये - अभी पत्थर आपके हाथ में ही रहेगा - इधर से इतनी बौछार होगी की ...आप भूल जायेंगे ..ये वही 'सोबर आदमी' है - संकोची ! इस चक्कर में कई बढ़िया रिश्ता खराब हो जाता है :((

खैर ..आदमी हर वक्त क्रिएटिव नहीं रह सकता ..सो कभी कभी बहुत बेकार लिखना पड़ता है - समाज है - समाज में हर तरह के लोग होते हैं - और 'दालान' का दायरा बहुत बड़ा है !

पर अन्तोगत्वा ..मेरे जैसे लेखक को ...टीआरपी चाहिए ...प्रशंशक चाहिए ....प्रसंशा / पैसा सबको पसंद है ....मै कोई अपवाद नहीं !


करीब चार महीनो बाद लंबा पोस्ट लिख रहा हूँ ..मालूम नहीं ...इन्स्टैंट राइटर हूँ ...बिना कुछ सोचे समझे ...एक सांस में लिख देता हूँ ...संडे है ..फुर्सत मिले तो ..एक लाइक / कमेन्ट :))


दालान - इंदिरापुरम !

Monday, March 5, 2012

मेरा गाँव - मेरा देस - होली पार्ट - २

सुबह सुबह किसी ने पूछ दिया - इंदिरापुरम में आप लोग होली कैसे मनाते हैं ? अब हम क्या बोलें - कुछ नहीं - सुबह से पत्नी - दही बड़ा , मलपुआ , मीट और पुलाव बनाती हैं ! दिन भर खाते हैं - ग्यारह बजे अपने फ़्लैट से नीचे उतर कुछ लोगों को रंग / अबीर लगाया - फोन पर् टून् - टून् फोन किया - एसएमएस किया और एसएमएस रिसीव किया - दोपहर में स्कूल - कॉलेज के बचपन / जवानी वाले दोस्तों की टीम आएगी - सभी के सभी बेहतरीन व्हिस्की की बोतल हाथ में लिये - घिघिआते हुए पत्नी की तरफ देखूंगा - वो आँख दिखायेगी - हम् निरीह प्राणी की तरह उससे परमिशन लेकर - दो घूँट पियेंगे - गला में तरावट के लिये - तब तक दोस्त महिम लोग 'मीट और पुआ' खायेगा - फिर लौटते वक्त - थोडा बहुत अबीर ! हो गया होली - बीन बैग पर् पसर के टीवी देखते रहिए ! 

मुह मारी अइसन होली के :( 

क्या सभ्यता है :) मदमस्त ऋतुराज वसंत में होली - बुढ्ढा भी जवाँ हो जाए - एकदम प्रकृति के हिसाब से पर्व - त्यौहार !  

होली बोले तो - ससुराल में ! जब तक भर दम 'सरहज - साली - जेठसर ' से होली नहीं खेला ..क्या खेला ? और तो और पहली होली तो ससुराल में ही मनानी चाहिए ! 'देवर - नंदोशी' से अपने गालों में रंग नहीं लगवाया - फिर तो जवानी छूछा ही बीत गया ! समाज के नियम को सलाम ! मौके के हिसाब से स्वतंत्रा मिली हुई है - मानव जाति एक ही बंधन में बंध के ऊब जाता है - शायद - तभी तो ऐसे रिश्ते बनाए गए ! एक से एक बुढ्ढा 'ससुराल' पहुंचाते ही रंगीन हो जाता है ;) 

दामाद जी अटैची लेकर ससुराल पहुँच गए - पत्नी पहले से ही वहाँ हैं - कनखिया के एक नज़र पत्नी को देखा - भरपूर देखा - सरहज साली मिठाई लेकर पहुँच गयी ! पत्नी बड़े हक से 'अटैची' को लेकर कमरे में रख दी !   तब तक टेढा बोलने वाला - हम उम्र 'साला' पहुँच गया - पूछ बैठेगा - का मेहमान ..बस से आयें हैं  की कार से  ..ससुर सामने बैठे हैं ..आपको उनका लिहाज भी करना है ..लिहाज करते हुए जबाब देना है ...दामाद बाबु कुछ जबाब देंगे ..जोर का ठहाका लगेगा ...तब तक रूह आफजा वाला शरबत लेकर 'सास' पहुँच जायेंगी - बड़ी ममता से आपको देखेंगी ...'सास - दामाद' का रिश्ता भी अजीब है .."घर और वर्" कभी मनलायक नहीं होता ..कैसा भी घर बनवा दीजिए ..कुछ कमी जरुर नज़र आयेगी ..बेटी के लिये कैसा भी वर् खोज लाईये ..कुछ कमी जरुर नज़र आयेगी ! 

होली कल है ! अब आप नहा धो कर 'झक - झक उज्जर गंजी और उज्जर लूंगी' में हैं - दक्षिण भारतीय सिनेमा के नायक की तरह ! छोटकी साली को बदमाशी सूझेगी - आपके सफ़ेद वस्त्रों को कैसे रंगीन किया जाए ..वो प्लान बना रही होगी ...बहन का प्यार देखिये ..वो अपना सारा प्लान अपनी बड़ी बहन यानी आपकी  पत्नी को बता देगी ..और आपकी पत्नी इशारों में ही आपको आगे का प्लान बता देगी ...बेतिया वाली नयकी सरहज भी उसके प्लान में शामिल हो जायेगी ...[ आगे का कहानी सेंसर है ] 

आज होली है ...बड़ी मुद्दत बाद आप देर रात सोये थे ;) ...सुबह देर से नींद खुली नहीं की ..सामने स्टील के प्लेट में पुआ - पकौड़ी तैयार है ...जितना महीन ससुराल ..उतने तरह के व्यंजन ...तिरहुत / मिथिला में तो पुरेगाओं से व्यंजन आता है ..'मेहमान' आयें हैं ..साड़ी के अंचरा में छुपा के ..व्यंजन आते हैं ..अदभुत है ये सभ्यता ! 

अभी आप व्यंजन के स्वाद ले ही रहे हैं ...तब तक आपका टीनएज साला ...स्टील वाला जग से एक जग रंग  फेंकेगा ...आप बस मुस्कुराइए ..उसको ससुर जी के तरफ से एक झिडक मिलेगी ..वो भाग जायेगा ..अब आप होली के मूड में हैं...तब तक आपका हमउम्र साला आपसे कारोबार का सवाल पूछने लगेगा ...आप अंदर अंदर उसको मंद बुध्धी बोलेंगे - साले को यही मौक़ा मिला था ..ऐसा सवाल पूछने का ..बियाह के पहले काहे नहीं पता किया था ..! हंसी मजाक का दौर ...खाते - पीते समय गुजरने लगेगा ...तब तक ..सुबह से गायब एक और साला जो थोड़ा ढीठ और मुहफट है ...आपको इशारा से एक कोना में बुलाएगा ..आप सफ़ेद लूंगी संभालते हुए उसके पास पहुंचेंगे ...वो धीरे से पूछेगा ...'मेहमान ..आपको 'चलता' है ? न् "...अब आपको यहाँ एकदम शरीफ जैसा व्यव्हार करना है ...पत्नी ने जैसा कल रात समझाया था ..वैसा ही ...आप उसको बोलेंगे ...'क्या "चलता" है ? ' वो गुस्सा के बोलेगा - अरे मेरे गाँव के राम टहल बाबु का बेटा आर्मी में है ...सबसे बढ़िया वाला लाया है ..कहियेगा तो इंतजाम हो जायेगा ...आप चुप चाप उसको एक शब्द में कुछ ऐसा जबाब दीजिए जिससे वो समझ जाए ..आप आज नहीं 'लेंगे' !

अचनाक से आपको युद्ध वाला माहौल नज़र आएगा - चारों तरफ से - छोटका साला , साली , सरहज आप पर् रंगों का बौछार करेंगे ..यहाँ तक की घर में काम करने वाली 'मेड' भी ! आप अपने स्वभानुसार प्रतिक्रिया देंगे ...अब देखिये ..अभी तक आपके ससुर जी जो आपके बगल में बैठे थे ...वो धीरे से उठ कर अपने कमरे में चले गए ....आपने पत्नी की तरफ एक शरारत भरी नज़र से देखा और .....होली शुरू :)))

[ यह पोस्ट एक कल्पना है ... पसंद आया हो तो एक लाईक / कमेन्ट ]

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, March 4, 2012

मेरा गाँव - मेरा देस - पटना की होली

छठ / होली में जो अपने गाँव - घर नहीं गया - वो अब 'पूर्वी / बिहारी' नहीं रहा ! मुजफ्फरपुर / पटना में रहते थे तो हम लोग भी अपने गाँव जाते थे - बस से , फिर जीप से , फिर कार से ! जैसे जैसे सुख सुविधा बढ़ने लगा - गाँव जाना बंद हो गया ! अब पटना / नॉएडा / इंदिरापुरम में ही 'होली' मन जाता है ! चलिए ..होली की कुछ यादें ताजा करते है ! 

चलिए आज पटना की होली याद करते हैं ! होली के दस दिन पहले से माँ को मेरे कुर्ता - पायजामा का टेंशन हो जाता था क्योंकी पिछला साल वाला कुर्ता पायजामा छोटा हो चुका होता ! मेरा अलग जिद - कुछ भी जाए - 'सब्जीबाग' वाला पैंतीस रुपैया वाला कुर्ता तो हम किसी भी हाल में नहीं पहनेंगे ! बाबु जी का अलग थेओरी - साल में एक ही दिन पहनना है ! बाबु जी उधर अपने काम धाम पर् निकले - हम लोग रिक्शा से सवार - हथुआ मार्केट - पटना मार्केट  ! घूम घाम के कुछ खरीदा गया ...सब बाज़ार में 'हैंगर में लटका के कुर्ता रखता था ..झक झक उजला कुर्ता ! पटना मार्केट के शुरुआत में ही एक दो छोकरा लोग खडा रहता - हाथ में पायजामा का डोरी लेकर ;) आठ आना में एक ;)

अब कुर्ता - पायजामा के बाद - मेरा टारगेट 'पिचकारी' पर् होता - गाँव में पीतल का बड़ा पिचकारी और शहर में प्लास्टिक :( 'सस्तऊआ प्लास्टिक का कुछ खरीदा गया - रंग के साथ - हम हरा रंग के लिये जिद करते - माँ कोई हल्का रंग - किसी तरह एक दो डिब्बा हरा रंग खरीद ही लेता था !

धीरे धीरे बड़ा होते गया ...पिता जी के सभी स्टाफ होली में अपने गाँव चले जाते सो होली के दिन 'मीट खरीदने' का जिम्मा मेरे माथे होता था ! एक दिन पहले जल्द सो जाना होता था ! भोरे भोरे मीट खरीदने 'बहादुरपुर गुमटी' ! जतरा भी अजीब ..स्कूटर स्टार्ट नहीं हो रहा ...टेंशन में साइकिल ही दौड़ा दिया ..हाँफते हुन्फाते हुए 'चिक' के पास पहुंचे तो देखे तो सौ लोग उसको घेरे हुए है ..देह में देह सटा के ..मेरा हार्ट बीट बढ़ गया ...होली के दिन 'खन्सी का मीट' नहीं खरीद पायेंगे ...जीना बेकार है वाला सेंटीमेंट हमको और घबरा देता था ...इधर उधर नज़र दौडाया ...डब्बू भईया नज़र आ गए ...एक कोना में सिगरेट धूकते हुए ...सुने थे ..डब्बू भईया का मीट वाला से बढ़िया जान पहचान है ...अब उनके पास हम सरक गए ...लाइए भईया ..एक कश हमको भी ..भारी हेडक है ..ई भीड़ देखिये ..लगता है हमको आज मीट नहीं मिलेगा ...डब्बू भईया टाईप आईटम बिहार के हर गली मोहल्ला में होता है ..हाफ पैंट पहने ..एक पोलो टी शर्ट ..आधा बाल गायब ...गला में ढेर सारा बध्धी ..हाथ में एक कड़ा ...स्कूटर पर् एक पैर रख के ..बड़े निश्चिन्त से बोले ...जब तक हम ज़िंदा है ..तुमको मीट का दिक्कत नहीं होगा ..उनका ई भारी डायलोग सुन ..दिल गदगद हो गया ...तब उधर से वो तेज आवाज़ दिए ....'सलीम भाई' ...डेढ़ किलो अलग से ..गर्दन / सीना और कलेजी ! तब तक डब्बू भईया दूसरा विल्स जला लिये ..अब वो फिलोसफर के मूड में आने लगे ..थैंक्स गोड..सलीम भाई उधर से चिल्लाया ...मीट तौला गया ! जितना डब्बू भईया बोले ...उतना पैसा हम दे दिए ...फिर वो बोले ..शाम को आना ...मोकामा वाली तुम्हारी भौजी बुलाई है ! डब्बू भईया उधर 'सचिवालय कॉलोनी' निकले ...हम इधर साइकिल पर् पेडल मारे ...अपने घर !
मोहल्ला में घुसे नहीं की ....देखे मेरे उमर से पांच साल बड़ा से लेकर पांच साल छोटा तक ...सब होली के मूड में है ! सबका मुह हरा रंग से पोताया हुआ ! साइकिल को सीढ़ी घर में लगाते लगाते ..सब यार दोस्त लोग मुह में हरा रंग पोत दिया ! घर पहुंचे तो पता चला - प्याज नहीं है ...अब आज होली के दिन कौन दूकान खुला होगा ...पड़ोस के साव जी का दूकान ..का किवाड आधा खुला नज़र आया ...एक सांस में बोले ...प्याज - लहसुन , गरम मसाला ..सब दे दीजिए ...! सब लेकर आये तो देखा ..मा 'पुआ' बना दी हैं ...प्याज खरीदने वक्त एक दो दोस्त को ले लिया था ...वो सब भी घर में घुस गए ...मस्त पुआ हम लोग चांपे ..फिर रंगों से खेले ! 

कंकरबाग रोड पर् एक प्रोफेशनल कॉलेज होता है - यह कहानी वहीँ के टीचर्स क्वाटर की है - हमलोग के क्वाटर के ठीक पीछे करीब दो बीघे के एक प्लाट में एक रिटायर इंजिनियर साहब का बंगलानुमा घर होता था ! हमारी टोली उनके घर पहुँची ! बिहार सरकार के इंजिनियर इन चीफ से रिटायर थे - क्या नहीं था - उनके घर ! जीवन में पहली दफा 36 कुर्सी वाला डाइनिंग टेबुल उनके घर ही देखा था ! एकदम साठ और सत्तर के दसक के हिन्दी सिनेमा में  दिखने वाला 'रईस' का घर ! पिता जी के प्रोफेशन से सम्बंधित कई बड़े लोगों के घर को देखा था - पर् वैसा कहीं नहीं देखा ! हर होली में मुझे वो घर और वो रईस अंदाज़ याद आता है ! 

देखते देखते दोपहर हो गया - मीट बन् के तैयार ! अब नहाना है ! रंग छूटे भी तो कैसे छूटे ...जो जिस बाथरूम में घुसा ..घुसा ही हुआ है :)

क्रमशः 




रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, February 13, 2012

स्टेटस सिम्बल - पार्ट 4

राजेंद्रनगर ओवरब्रीज के पास कंकरबाग में 'चौरसिया पान दूकान' पर् शर्मा जी भेंटा गए ! शर्मा जी उम्र में काफी बड़े हैं पर् हम सभी उनको शर्मा जी ही कहते हैं ! पटना की एक मात्र इंडस्ट्री - ओल्ड सेक्रेटेरिएट में काम करते हैं - अब वो किस पोस्ट पर् हैं - मुझे नहीं पता ! मंकी कैप - एक बड़ा चादर लपेटे हुए अपने वेस्पा से वो थे ! आदतन हम पूछ दिए - तब ..शर्मा जी ...बेटी का बियाह तय हो गया ? मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले - हाँ , रंजू बाबु ..तय हो गया :) ! हम पूछे ..कहाँ किये ? वो अब शुरू हो गए - ' मेरे होने वाले समधी 'फलाना बाबु' इंजिनियर इन चीफ हैं - तीन बार तो सस्पेंड हुए हैं और एक बार 'इनकम टैक्स' का छापा भी पड़ा है ! आपका नॉएडा वाला बिल्डर भी इनके संपर्क में रहता है , बोरिंग रोड में दूकान है - इनकम टैक्स वाला का ताला लगा हुआ है - एक सुर से वो अपने समधी के 'सस्पेंसन और छापा' का कहानी एक सांस में सुना दिए ! हम भी सुन लिये ! अंत में हम बोले - चलिए ..बेटी को सुख होगा ! 

इंदिरापुरम में फ़्लैट ख़रीदे नहीं की - बिल्डर लोग के यहाँ 'छापा' पडने लगा ! हम त घबरा गए - लगता है - पईसवा डूबा ..का ?  छापा के दिन हम कितना परेशान थे - कॉलेज से भागे भागे आये - बजाज चेतक स्कूटर से पूरा इंदिरापुरम का चक्कर लगाए - दूर से सब देख रहे थे ! इनकम टैक्स वाला चला गया - भाई लोग से पूछे - क्या हुआ ? भाई लोग बोला - कुछ नहीं ..इनकम टैक्स कमिश्नर गिडगिडा रहा था - कुछ तो 'डीक्लेयर' कर दो - वरना वापस डिपार्टमेंट में क्या मुह दिखायेंगे ! बाद में पता चला - बिल्डर भाई को - बिल्डर समाज में इज्जत नहीं मिल रहा था - छापा पड़ने के बाद - इज्जत में भारी उछाल आया - पंजाबी बिरादरी के बिल्डर्स में अपना 'बिहारी भाई' भी शामिल हो गया - अब 'पार्टी' होता है तब अपना 'बिहारी बिल्डर्' को भी बुलाया जाता है ! फ़्लैट भी दनादन बिकने लगे - कस्टमर को कनफिडेंस आ गया - बिल्डर बड़ा पार्टी है - तब न इनकम टैक्स का छापा पड़ा है ! 

पटना में एक डाक्टर दम्पती होते हैं - अंतरजातीय विवाह किये हैं - नालंदा जिला के ! स्कूटर से घुमते नज़र आ जाते थे - हम तो सीधा मुह बात भी नहीं करते - मालूम नहीं कहाँ से पैसा आ गया - छापा पड गया ! छापा क्या पड़ा - अब वो बड़े डाक्टर के समाज में उठना - बैठना शुरू कर दिए - मुश्किल से एक एक्स रे चलाने वाले - अब सीटी स्कैन और एम आर् आई के मलिक हो गए ! मैडम मिल गयीं - हम पूछ बैठे - का मैडम ..इनकम टैक्स वाला कुछ लेकर गया है की ..कुछ देकर ? हद हाल है ! वैसे भी पटना का डाक्टर समाज पूर्णतः 'फयूडल सिस्टम' पर् आधारित है - अब इस् फयूडल सिस्टम में अपना जगह बनाने का एक ही रास्ता सुगम है - आपके यहाँ इनकम टैक्स का छापा पड़े ;) 

दिल्ली में कुछ बिजनेस मैन दोस्त हैं - छापा पड  गया - छापा पड़ते ही मुझे खबर आ गयी - हम सोच में पड़ गए - मुझे उन्हें सांत्वना देना चाहिए या बधाई - हम चुप रह गए - दो तीन दिन तक हम फोन नहीं किये - किसी तीसरे से खबर आई - वो मुझसे मुह फूला लिये हैं - बेवजह एक बढ़िया सम्बन्ध - नेवता पेहानी तक बंद हो गया :(  एक बचपन से मुझमे यह कमी है - समय पर् मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है :( 

पटना में ससुराल वाले हमेशा परेशान रहते हैं - जब तब कोई इनकम टैक्स कमिश्नर हड़का देता है ! दरअसल उसमे बहुत पेंच है - एक पेंच 'जात पात' वाला है !

एक मित्र हैं - दवा के कारोबारी ! उनके ससुर जी बिहार सरकार में हैं ! हर महीना में एक दिन वो 'छापा' वाला कहानी सूना देते हैं - पैसा वाले हैं ..सुनना पड़ता है ..कैसे अचानक इनकम टैक्स वाला उनके ससुर  जी के यहाँ आया ..कैसे सारा पैसा वो अपने घर में 'डाइनिंग' टेबुल पर् रखे ...फिर अचानक इनकम टैक्स वाला उनके घर आ गया ...सारा पैसा डाइनिंग टेबुल पर् ही मिल गया ...कैसे वो केस लड़े ..फिर कैसे जीत गए ..और कैसे उनका सारा ब्लैक ..बिना खर्च के व्हाईट हो गया ! सुनना पड़ता है ...हाथ ऊपर कर के ..जम्हाई लेते हुए ..उनका कहानी ! 

एक भैया हैं - बिहार के एक बहुत ही बड़े खानदानी परिवार से आते हैं - अलायड अफसर हैं - आई आर् एस अफसर की ट्रांसफर पोस्टिंग उनके जिम्मे थी ! एक बार घर पर् आये ..संभवतः मेरी बहुत इज्जत करते हैं ! हम बोले ..बढ़िया नौकरी है - बोले बस तीन साल के लिये ही मिनिस्ट्री ऑफ फाईनांस में हूँ - दो घंटा मेरे घर रुके - उस दो घंटा में बीस चीफ कमिश्नर और चार्टेड एकाउंटेंट का फोन आया - अंत में वो फोन बंद कर दिए ! हम बोले - चीफ कमिश्नर लोग का फोन तो ठीक है ...ई 'चार्टेड एकाउंटेंट लोग काहे फोन कर रहा है ?'  हंसने लगे ...बोले ..चुप चाप 'पढ़ने - पढाने का काम करो' ...ज्यादा दिमाग मत लगाओ ! हम भी चुप रह गए ! 

पूर्वी दिल्ली में एक मोहल्ला है 'लक्ष्मी नगर' ...जिस तरह कंकरबाग पटना में हर मकान में एक डाक्टर ..वैसे ही यहाँ हर एक मकान में 'चार्टेड एकाउंटेंट' ...दिन भर 'ब्लैक का व्हाईट' व्हाईट का ब्लैक' - मेरा अनुमान है - इस् मोहल्ले से प्रतिदिन करीब 'पांच सौ करोड़' रुपैये 'धुलाते' हैं ! दो प्रतिशत का खर्च है ..क्या दो कहता है ..सब ...'पैसा घुमा देना' ..हा हा हा हा हा हा ! इस् तरह का कहानी सुन के ..पैसा क्या घूमेगा ..मेरा दिमाग घूमने लगता है ....हा हा हा हा हा हा ....पुरे विश्व में आर्थिक मंदी आई ..भारत बच गया ...एक वरिष्ठ सज्जन ने कहा - भारत की इकोनोमी को 'ब्लैक मनी' 'टाने' हुए है..गिरने नहीं देता है ... ! 

कुछ भी कहिये ...समाज के अपने नियम कानून हैं ...इज्जत पाना है तो कम से कम एक बार 'इनकम टैक्स' का छापा तो होना ही चाहिए ...वरना ऐसा लगेगा ...ये जीवन छूछा ही गुजर गया ...



रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, January 23, 2012

दलाली कहाँ नहीं है - पार्ट वन

दलाली कहाँ नहीं है ! किस धंधा - पेशा में नहीं है ! समाज ने इसको स्वीकार किया है ! हाँ , इस् दलाली में इतने जल्द पैसे बनते हैं - वो भी बहुत कम मेहनत में - जिसके कारण इसको इज्जत नहीं मिल पाती है ! चलिए ...कुछ कहानी सुनाता हूँ - आराम से पढियेगा - बिना किसी द्वेष के - मैंने भी दलाली दिया और कमाया है - सभी किस्से यहाँ मिलेंगे - :) 

दस साल पहले नोयडा आये थे - कुछ दिन बैचेलर दोस्तों के साथ रहते हुए - नौकरी करते हुए - किराया का मकान खोजने लगा - कॉलेज के आस पास ही ! एक दोस्त है - उनदिनो वो एक पब्लिक सेक्टर कंपनी में थी - कदमकुआं का खांटी पटनहिया ! कॉलेज में मेरा रूम पार्टनर भी होता था - उसका अपना फ़्लैट नॉएडा में था  - कार थी - पत्नी भी इंजिनियर ! सुखी संपन्न छोटा परिवार ! एक शाम उसके घर पहुंचे - बोले , भाई मेरे ..एक किराया का फ़्लैट खोज दो - अपने मोहल्ले में ही ! झल्ला गया - बोला , एक तुम ..ऊपर से भूमिहार ! हम रिस्क नहीं ले सकते .कब कहाँ 'मार्' करवा दोगे कोई ठीक नहीं - उसकी बातें सुन मुझे बहुत गुस्सा आया - पर् वो सही था ! फिर एक दूसरा दोस्त - बोला , काहे घबराता है - 'ब्रोकरेज दोगे ? तो एक चीफ इंजिनियर है - वो फ़्लैट के किराया का काम करते हैं - फलाना नंबर फ़्लैट में रहते हैं ! अंधा को और क्या चाहिए - मै भागा - भागा उस चीफ इंजिनियर के पास गया - उन्होंने मुझे एक फ़्लैट चार हज़ार  रुपैया महीना किराया पर् दिलवा दिया - रेंट अग्रीमेंट भी बनवा दिए - मै खुश था - अंत में उन्होंने मुझसे दो हज़ार रुपैये लिये ! मै हैरान और परेशान था ! चीफ इंजिनियर और किराया का काम और दलाली ! मैने तो पटना - कंकरबाग में कई चीफ इंजिनियर के मकान और गाड़ी देखे थे ! एक दोस्त जो उम्र में थोडा बड़ा था - बोला - नेता , पब्लिक सेक्टर का चीफ इंजिनियर है - बिहार सरकार का नहीं - और अगर वह ये सब नहीं करेगा तो ...फिर वो चुप हो गया ..मै समझ गया ! पर् मै आज तक उस चीफ इंजिनियर को शुक्रिया अदा करता हूँ ! 

नॉएडा आने के पहले - पटना - कंकरबाग में खुद का एक छोटा कंप्यूटर सेंटर होता था - जिसको मेरी पत्नी 'पान के दूकान' से ज्यादा दर्जा नहीं देती थी :( खैर ...शुरुआत तो मैंने सॉफ्टवेयर डेवेलोपमेंट से की थी - पर् बाद में वो इंस्टीच्युट बन् गया ! इग्नू के विद्यार्थी आते थे ! एक दिन जान पहचान एक हम उम्र लडकी का फोन आया - हमारे बैच की सर्वोत्तम और भारत के सबसे बेहतरीन संस्था से इंजिनियर फिर एमबीए ! फोन की - आर् आर् , क्या कर रहे हो ? बड़ी मुद्दत बाद बात हो रही थी - हम बोले - क्या करेंगे - 'पान का दूकान' चला रहे हैं - वो हंसने लगी - बोली - मुझे अमरीका जाना है - 'जावा' सिखा दो - हम पूछे कब जा रही हो ? बोली - देखो ...एक ब्रोकर से बात चल रही है ! 'ब्रोकर' सुन मेरा कान खडा हुआ ...माथा धर लिये ...देश के बेहतरीन संस्था से पढ़ कर अमरीका में नौकरी के लिये - ब्रोकर ? :( फिर वो समझाई - आई आई टी के बूढ़े - बूढ़े अलुम्नी आज कल यही काम कर रहे हैं - इसको 'बौडी शौपिंग' कहा जाता है ! फिर मैंने उसको पटना के एक बढ़िया कंप्यूटर इन्स्टिच्युट का पता बता दिया - बात शायद 1999 की है ! वो अमरीका गयी - और विश्व के बेहतरीन स्कूल से एमबीए की दूसरी डिग्री भी ली ! पर् ..अमरीका जाने के लिये उसको 'बौडी शॉपर' (( बुढा आई आई टी अलुम्नी ) का ही सहारा लेना पड़ा था ! 

नॉएडा में फ़्लैट लेने के एक महीना बाद मैंने परिवार को बुला लिया - जिस दिन मेरा परिवार नई दिल्ली स्टेशन पर् आया - सभी दोस्त वहाँ पहुंचे हुए थे - कॉलेज के दिनों में दोस्त' प्यार से मुझे 'नेता' कहते थे -  ठसक भी वही थी ! मैंने सभी फर्नीचर एक दिन में ही खरीद लिया ! पर् 'सोफा' पर् पत्नी से सहमती नहीं बन्  पाने के कारण - गुस्सा में प्लास्टिक की चार कुर्सीयां मैंने खरीद ली ! कुछ दिन बाद - मूड ठीक हुआ तो नॉएडा से ही एक ख़ूबसूरत सोफा खरीदा ! सर मुडाते - ओले पड़े ! सोफा खरीदने के कुछ दिन ही बाद - ससुराल से कुछ लोग आये - खांटी पटनहिया - सोफा पर् लेट कर ही 'टीवी' देखेंगे ! सोफा और सेंटर टेबल पर् ही खाना खायेंगे ! गेस्ट लोग चले गए ! एक दिन देखा तो - सोफा 'हिल' चूका था ! बहुत दुःख हुआ ! बजाज चेतक पर् सपरिवार दुकानदार के पास गए - क्या कहूँ ..गिडगिडा रहे थे ..पर् वो दुकानदार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं ! मात्र एक महीना में सोफा 'हिल' गया था ! बहुत कष्ट से पैसा जमा किये थे फिर सोफा  ख़रीदे थे ! मुह लटका के घर वापस हो गए ! बिहारी होने पर् बहुत गुस्सा आ रहा था - क्या मजाल की पटना के नाला रोड वाला कोई दुकानदार ऐसा कर पाता - पूरा सैदपुर होस्टल मेरे पीछे खडा होता ! फिर थोडा गुस्सा ससुराल वाले गेस्ट लोगों पर् भी आ रहा था - पत्नी के सामने खखर कर बोंल तो पाता नहीं हूँ - शिकायत तो बहुत दूर की बात है ! इसी बीच ..पत्नी ने कहा ...रुकिए ..'झब्बू चाचा' को फोन करती हूँ ! हम बोले - ई 'झब्बू चाचा' कौन हैं ? पत्नी बोली ..चाचा लगते हैं ..क्या काम करते हैं ..पता नहीं पर् ..पर् बहुत बड़ा - बड़ा गाड़ी से घुमते हैं ! झब्बू चाचा को फोन लगाया गया - झब्बू चाचा बोले - दोदिन बाद 'सोफा दुकानदार खुद फोन करेगा - मेहमान , आप घबराईये मत ! सच में ऐसा ही हुआ ..दो दिन बाद सोफा दुकानदार खुद फोन किया !इस् बार हम लोग फिर से बजाज स्कूटर पर् सवार - पर् बहुत ही कनफिडेंस के साथ - सोफा दूकान गए ! अपने बजट में जो सबसे बढ़िया सोफा था - उससे अपना पुराना सोफा बदले ! पर् ..मै हैरान था ...'झब्बू चाचा' कौन हैं ? हिम्मत कर के खुद ही फोन लगाया ...प्रणाम और थैंक्स बोला ..वो उधर से बोले ..मेहमान ..ई हमलोग का कर्तव्य है ..जब तक दिल्ली में हूँ ..आप निश्चिन्त रहिए ! बड़ी हिम्मत कर के मैंने उनसे पूछा - आप करते क्या है ? वो बोले - कुछ खास नहीं - 'आई आर् एस ' अफसर लोग के साथ उठना - बैठना है ..बस - इनकम टैक्स - सेन्ट्रल टैक्स कमिश्नर लोगों के साथ - आगे का कहानी मै समझ गया ! एक दो बार झब्बू चाचा से मुलाकात हुई - एक दिन टीवी में उनको शरद यादव के बगल में खडा देखा - मैंने सोचा - झब्बू चाचा का प्रोमोशन हो गया है ! खैर ..वो जब भी मिलते हैं ..मै उनको   पैर छू कर ही प्रणाम करता हूँ ! 

ये तीनो कहानी सच है ...उम्र के साथ मेमोरी कमज़ोर होने लगी है ...कैसी लगी ..बताएँगे ....

हाँ , दिल्ली और आस-पास के आधे लोग दलाली करते हैं और आधे झूठ बोलते हैं ;) 

क्रमशः ...





रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Friday, December 2, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस् - पत्र पत्रिका

मैंने शायद पहले भी लिखा है रांची के डोरंडा मोहल्ले के नेपाल हॉउस में नाना जी रहते थे और करीब पांच बजे दिल्ली वाला टाईम्स ऑफ इंडिया आता था ! बरामदे में अखबार वाला अखबार को सुतरी से बाँध फेंक जाता था ! मै अखबार की तरफ दौड पड़ता ! आर् के लक्ष्मण के कार्टून को देखने के लिये ! अखबार से जुडी यह मेरी पहली याद है !

रांची प्रवास के दौरान ही मौसी की पहली पोस्टिंग इटकी ( रांची के पास ) हुई थी ! एक ट्रक नुमा बस फिरायालाल से खुलती थी ! दो तीन दिन इटकी में रहा फिर मौसी के साथ वापस ! वहीँ फिरायालाल के पास लौटते वक्त मौसी मेरे लिये पराग और पौप्पिंस खरीद देती थीं ! पराग मेरे उम्र के लिये नहीं था मुझसे बड़े बच्चों के लिये था पर् पराग पढ़ने के बाद कुछ और पसंद नहीं आया ! चम्पक और चंदा मामा कभी नहीं पढ़ा ! और फिर पराग से सीधे कादम्बिनी J ! फिर नंदन ! फिर अमर चित्र कथा ! पागलों की तरह पढता था ! धर्मयुग ! पत्र पत्रिका के चलते बहुत बचपन में ही बहुत कुछ बहुत जल्द समझ में आया गया जिसके कारण जीवन में बहुत चमकीली चीज़ें बहुत फीकी लगती थी ! खैर ..

मुजफ्फरपुर लौटा ! यहाँ दर्शन हुए आर्याव्रत और इन्डियन नेशन से ! बड़े बाबा मिजाज़ से बहुत रईस थे ढेर सारे अखबार वो खरीदते थे जाड़े के दिन में पूरा मोहल्ला दरवाजे पर् आ जाता था अखबार पढ़ने के लिये बदले में उनलोगों को बड़े बाबा का गप्प सुनना पड़ता था ! बड़ी दादी रोज अखबार वाले को धमकी देती थीं ! सर्च लाईट प्रदीप !

पिता जी जब पीजी में एडमिशन लिये तब हम सपरिवार मुजफ्फरपुर में ही दूसरे जगह शिफ्ट कर गए ! यहीं मुझे अमर चित्र कथा पढ़ने का मौका मिला ! इंद्रजाल कॉमिक्स वेताल बहादुर फैंटम ! अमर चित्र कथा के माध्यम से ही मैंने भारत वर्ष को जाना ! फिर अचानक से स्माल पॉकेट बुक्स में राजन इकबाल सीरीज ! पागल की तरह ! एक अटैची भर गया राजन इकबाल से ! दोस्तों से एकदम सिनेमा माफिक सीधे अटैची का आदान प्रदान ! एक दो साल खूब पढ़ा ! एक रविवार बाबु जी के पॉकेट से  मैंने पचास रुपैये भी चुराए किंग कॉंग खरीदने के लिये ! दो चटकन में मुह से सब चोरी निकल गया ! L नंदन में राजा राजकुमार की कहानी J

पिता जी का पीजी समाप्त हुआ और वो अचानक से सभी अखबार और पत्र पत्रिकाएं खरीदने लगे ! देर शाम वो अपने लम्ब्रेटा के बास्केट में सभी अखबार और पत्र पत्रिकाएं ले आते थे ! मै किसी और को छूने नहीं देता ! सारिका से परिचय वहीँ हुआ ! इलस्ट्रेटेड वीकली , धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान ! तीनो काफी लंबे चौड़े मैग्जीन होते थे ! करीब एक दो साल जम के सारिका पढ़ा ! हिन्दी साहित्य की समझ और समाज से परिचय हुआ ! तब तक मै हाई स्कूल भी नहीं गया था ! जितनी कम उम्र में जितना पढ़ा और समझ में आया एक आश्चर्य है मेरी हिन्दी उतनी ही कमज़ोर है L


भारत क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता ! डा० नरोत्तम पूरी की खेल भारती से परिचय हुआ और और खेल भारती को तब तक पढ़ा जब तक वो छपता रहा ! इसी टाईम में टीनएजर के लिये सुमन सौरव आया ! मै कभी नहीं पढ़ा एक बार एक नज़र देखा और एक दोस्त के मुह पर् मारा ई सब बउआ लोग के लिये है ! मुझे सारिका पढ़ने दो ! ;)

इसी दौरान क्रिकेट सम्राट आ गया ! उसमे किसी खिलाड़ी का पोस्टर होता था ! वो पोस्टर मेरे कमरे में चिपक जाता था !

बाबा राजनीति में थे सो उनके अटैची में माया रखी होती थी ! चुप चाप माया को निकाल दिन भर पढ़ना ! दिनमान और रविवार भी बाबु जी खरीदते थे ! शायद दिनमान में पिता जी के एक सीनियर दोस्त के साले साहब काम करते थे !


खैर , पटना आ गया ! मामा लोग इन्टेलेकचूयल टाइप थे ! इंडिया टूडे और रीडर्स डाईजेस्ट हाथ में लेकर घुमते थे ! इण्डिया टूडे को पीछे से पढ़ना J तब वो पाक्षिक होती थी ! पटना आने पर् एक खुशी यह हुई की यहाँ सुबह में ही अखबार मिलता था ! स्पोर्ट्स का पेज लेकर गायब J किसी कोना में मैल्कम मार्शल के बारे में पढ़ रहा हूँ J  क्रिकेट सम्राट चालू रहा ! पुरे कमरे में वेस्ट इंडीज के खिलाड़ी का पोस्टर ! एक बार गाँव से कोई आया वो मेरे कमरे में ही ठहरे एक सुबह सुबह बोले भोरे भोरे ई करिया करिया सब का चेहरा देख जतरा खराब हो जाता है ;)

खैर ..पटना में पाटलिपुत्रा टाइम्स आज इत्यादी से परिचय हुआ ! मैट्रीक में रहा हूँगा नव भारत टाईम्स और टाईम्स ऑफ इंडिया पटना पहुँच गयी ! हाँ , आठवीं में ही हर शाम दिल्ली के अखबार मै अपने पॉकेट मनी से खरीदने लगा ! शाम पांच बजे तक कंकडबाग में दिल्ली वाले मोटे मोटे अखबार आने लगे !

हम लोग पटना में किराया पर् थे मकानमालिक के सीढ़ी घर में एक बड़ा ट्रंक होता था हिन्दी साहित्य की सभी मशहूर किताबें ! आठवीं में सब पढ़ गया ! स्कूल से आने के बाद सीढ़ी घर में एक हाथ में अमरुद और एक हाथ में एक उपन्यास ! चुप चाप पढ़ना और फिर जहाँ से किताब निकाला वहीँ रख दिया !

प्लस टू में गया तो रीडर्स डाईजेस्ट ! हर दूसरा अंक में हाउ टू सेभ यूर मैरेज हा हा हा हा ..तब नहीं बुझाता था अब बुझा रहा है ;)


कॉलेज में हिंदू से परिचय हुआ ! फिर बंगलौर में नौकरी के दौरान वहाँ से छपने वाली लगभग सभी अंग्रेज़ी अखबार ! इतवार पूरा दिन रूम में बैठ कर अखबार पढ़ना ! बस !

रांची में पीजी के दौरान मेरे कमरे में लगभग सभी अंग्रेज़ी अखबार आते रहे ! इण्डिया टूडे और रीडर्स डाइजेस्ट लगभग पचीस साल से साथ में हैं ! नॉएडा गाज़ियाबाद में दस साल से हूँ ! पुरे मोहल्ले में सबसे ज्यादा अखबार मेरे यहाँ ही आता है ! अब जब सुबह में समय नहीं है तो अखबार को देर रात पढता हूँ ! पेज थ्री नहीं पढता हूँ ! पत्नी पढ़ती हैं कहाँ कहाँ डिस्काउंट लगा है देखने के लिये J

और क्या लिखूं ..अखबार पढ़िए ! जरुर पढ़िए ! एक बढ़िया चाय और दो तीन अखबार के साथ सुबह हो उसके आगे सब फेल है ! इंटरनेट कुछ ज्यादा समय ले रहा है ! टीवी - टावा कम देखता हूँ - बस न्यूज चैनल ! 

विश्वविद्यालय की सेमेस्टर एग्जाम शुरू हो चुका है ! ठण्ड भी बढ़ रही है ! ढेर सारे उपन्यास 'पाइप - लाईन' में हैं ! 

कुछ बढ़िया उपन्यास पढ़ कर - उनके बारे में यहाँ लिखना चाहता हूँ ! समय चाहिए !



रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Thursday, November 10, 2011

बरतुहारी

'बरतुहारी' एक बिहारी शब्द है ! यह एक क्रिया है - जिसका मतलब होता है - किसी कन्या के लिये योग्य वर् की तलाश ! 'बरतुहार' संज्ञा है - जिसमे उस कन्या के माता - पिता , सगे सम्बन्धी शामिल होते हैं ! इस् प्रक्रिया में हास्य - व्यंग और एक दर्द भी शामिल है ! मै किस पक्ष को रख पाता हूँ - अभी लेख के शुरुआत में मेरे लिये कुछ कहना मुश्किल है ! पढ़िए ! 

घर परिवार , ननिहाल , सगे सम्बन्धी , दोस्त महिम सभी जगह कन्यायें होती हैं ! बाबा सामाजिक होते थे ! इस् मामले में मेरे पिता जी भी काफी सामाजिक हैं ! मै भी हूँ ! विशेष क्या कहूँ - बहुत यादें हैं ! कुछ मीठी - कुछ खट्टी और कुछ बहुत तीते ! 

हम जिस दौर / जाति / समाज और आर्थिक स्थिती से आते हैं - वहाँ तीन चीज़ें महतवपूर्ण होती हैं - किसी भी शादी में ! 
१. परिवार 
२. पैसा 
३. लड़का / लड़की 

पहले क्या था ? परबाबा की मृत्यु बहुत पहले हो चुकी थी ! बाबा दोनों भाई पर् अपनी बहन की शादी का जिम्मा था ! बाबा कहते हैं - एक आदमी बेडिंग और एक सूटकेस लेकर चलता था ! धान वाले देस में ! बहन की शादी - बिना धान वाले देस में कैसे कर दे ? क्या ज़माना था ! बाबा के दूर के फुफेरे भाई और काफी घनिष्ठ मित्र 'चम्पारण' के मदन मोहन बाबु ने बात बात में ही कह दिया - चलो मै तुम्हारी बहन की शादी अपने भांजे से तय करता हूँ - और शादी हो गयी ! क्या महत्व होता था - फूफा - मामा के शब्दों का ! लड़का का बाप - काट नहीं सकता ! सम्बन्ध की इज्जत होती थी ! 

पिता जी की शादी में भी ऐसा ही हुआ ! बाबा किसी फुटबॉल टूर्नामेंट में कहीं गए थे ! हाई कोर्ट के जज और बड़े बाबा के साले - राम रतन बाबु आ धमके गाँव - बड़े नाना जी को लेकर - फूलहा लोटा पर् फलदान पड़ गया ! ना तो बाबु जी को पता और ना ही मेरे बाबा को ! तिलक की बात को गोली मारिये ! मेरे ननिहाल वाले जितना सोच के आये थे - आधे में काम फरिया गया ! 

विस्वास था - सम्बन्धी धोखा नहीं देगा ! 

वक़्त बदलने लगा ! सगे सम्बन्धी कहीं छुप गए ! परिवार गौण हो गया ! 'लईका - लईकी' और पैसा ही सब कुछ हो गया ! 

कई बरतुहारी में मै बचपन से जाने लगा - बिस्कुट खाने के लिये ;) धम्म से सोफा पर् बैठा - बिस्कुट खाया और चल दिया ! बड़े फूफा किसान होते हैं ! मुजफ्फरपुर शहर से बिलकुल सटे ही उनका गाँव है ! अच्छे किसान हैं ! बड़ी फुफेरी बहनों के बरतुहारी में घूमना शुरू किया ! अचानक से फूफा जी एक इंजिनियर लड़के के कहाँ गए ! खेत बारी ज्यादा नहीं था - पर् सरकारी नौकरी था ! मेरे गृह जिला में ! लडके के पिता जी ने मेरे फूफा जी को बोला - देखिये , मेरे इंजिनियर लडके की शादी में चेयरमैन साहब जहाँ कहेंगे - वहीँ होगा ! फूफा जी मुस्कुराने लगे - बोले - लडकी चेयरमैन साहब की अपनी बड़ी नतिनी ही है ! तिलक ? जो मिला वो लोग आशीर्वाद समझ ले लिये - तिलक से ज्यादा का सोना मड़वा पर् मेरी फुफेरी बहन को चढा दिए ! 

पर् सभी बरतुहारी इतने मीठे नहीं होते ! मै अपने दर्द को ब्यान नहीं कर सकता हूँ ! पर् इस् दर्द ने मुझमे एक संस्कार क जनम दिया - खासकर इस् विषय पर् ! 

एक बहुत ही नजदीकी कुटुंब की लडकी के लिये एक जगह एक प्रोफ़ेसर साहब के बेटा का  पता चला ! क्या नसीब था - प्रोफ़ेसर साहब का ! तीन बेटा - तीनो के तीन - आई आई टी से पास ! वाणी ऐसी की - लगे जैसे सरस्वती बैठी हो ! पिता जी और मेरे कुटुंब उनके यहाँ गए ! फोटो और बाओडाटा दे दिया गया ! जब काफी दिन हो गए - वहाँ से कोई बुलावा नहीं आया - पिता जी ने मेरे एक कजीन को बोला - जाओ ..प्रोफ़ेसर के यहाँ से बाओडाटा - फोटो मांग लाओ ! जब मेरा कजीन उनके यहाँ गया तो हैरान हो गया ! बोला - उनके यहाँ करीब दो सौ बाओडाटा और फोटो तहिया' के रखा हुआ था ! मन त किया की - प्रोफ़ेसरवा को दें - दू हाथ - घींच के ! दूकान खोल के रखे हुए था ! 

ये चेहरा हो चुका था - वैसे माँ बाप का - जिनकी औलाद सामाजिक पटल पर् कुछ सफल हो चुकी थी ! लोग पागल की तरह वर्ताव करना शुरू कर दिए ! एक बीपीएससी के मेंबर से मेरी गुफ्तगू हो रही थी - बोले - कई  लड़कों को डिप्टी कलक्टर बनवा दिया ! जब लडकी वाले आते थे - तो - मै उन लड़कों का पता दे दिया करता था - अब देखिये - लड़के का बाप बोलता था - लडकी वाले को - देखिये , महराज ...फलाना बाबु का पैरवी लेकर मत आयें ! हद्द हाल हो गया समाज का ! आँख की शर्म जाने लगी ! जिस व्यक्ती ने तुम्हारे बेटा को डीएसपी / डिप्टी कलक्टर बनाने में मदद की - अब तुम उसको ही पह्चानाने से इनकार करने लगे ! जियो ..सफल लड़का के बाप ..जियो ! 

दरवाजे पर् बड़े ठेकेदार / घूसखोर  इंजिनियर / एडीएम के गाड़ी रुकने लगे ! घर से चार कप चाय आया - चारों चार रंग के कप में ! भविष्य यहीं था ! लड़का के बाप को पता ही नहीं - कितना मांगे ? इसमे शादी बिगाड़ने वाले भी सक्रिय हो गए - आपके बेटा का कीमत ऐसा बोंल दिया - जो कोई और दे ही ना सके ! हुआ फेरा ! अब वो ऊँची कीमत लगाने वाला गायब ! अब आप इंतज़ार में ! हा हा हा हा ! 

लड़का ही सबकुछ हो गया ! पटना के एक जज साहब गए - बेटी की बरतुहारी में ! लड़का - आई आई टी , आई ये एस , फिर अमरीका में एम बी ए ! लड़का का बाप खोजा गया - पता चला - एक मडई में बाबा धाम वाला लाल गमछी पहन - मुह में जीवन जैसा बीडी दबाये - तीनतसिया ( ताश के पत्तों से जुआ ) खेल रहा था ! अब परिवार को कौन पूछता है ! लडकी को तो अमरीका में रहना है ! वाह भाई वाह ! जब लडकी को मानसिक प्रताडना और फिर फिजिकल प्रताडना शुरू हुआ ! पटना का एक खास तबका - एन आर् आई के लिये दरवाजे बंद कर दिया ! अब जज साहब कहते फिरते हैं - अगर परिवार बढ़िया है- लड़का बेरोजगार हो - पान गुटखा बेचता हो - गरीब हो - कर दीजिए ! लोग डर चुके थे ! सामाजिक उठा - पटक चल रही थी ! शिकार - बेचारी बेटी हो रही थी ! 

पटना विश्वविद्यालय के एक वीसी होते थे ! बहुत पहले ! एक वाइवा में मुजफ्फरपुर गए ! उनकी बेटी के लिये कुछ योग्य वर् का लिस्ट दिया गया ! कई होनहार के नाम वीसी साहब ने काट दिया ! एक प्रोफ़ेसर ने उन्हें टोका - सर , ई लईका का यू पी एस सी शिओर हैं ! वीसी साहब बोले - ठीक है , ईमानदार निकल गया तो ..टीवी , फ्रीज़ , जर जमीन खरीदने में ही जीवन गुजर जाएगा , मेरी बेटी का सुख कहाँ गया ? फिर वीसी साहब ने मुजफ्फरपुर के एक रईस के यहाँ अपना ओहदा भंजा कर बेटी का बियाह कर दिए ! 

दुनिया जो समझे - लेकिन इस् बरतुहारी में लडकी के पिता की जान निकल जाती थी ! रात का नींद गायब !   

इस् पूरी प्रक्रिया का सबसे घटिया पार्ट होता है - लडकी दिखाना ! आई जस्ट हेट दिस पार्ट ! पर् लडकी का बाप सबसे मजबूर होता है ! मुजफ्फरपुर के एम डी डी एम कॉलेज के गेट के सामने या किशोर कुनाल द्वारा बनाया हुआ पटना का  हनुमान मंदिर , या हथुआ महराज वाला 'हथुआ मार्केट' हो पटना मार्केट या फिर चाणक्य होटल , मौर्या ! देखो ..जितना देखना है देखो - पर् देख कर रिजेक्ट मत करो ! बाप रे ..सच में इससे घटिया कोई और काम नहीं है ! रेप से भी घटिया ! रिजेक्ट की हुई लडकी जब रोती है ..उसके आंसूं में तुम्हारा कई खानदान जल जायेगा ! 

लडकी देखे के जाएगा ? लडका की भाभी , बहन , चाची - जिससे भविष्य में उस लडकी का कभी भी बढ़िया सम्बन्ध नहीं रहेगा ! लेकिन , जायेगा - यही लोग ! 

इस् तरह की घटना का मेरे ऊपर इतना जबरदस्त प्रभाव है - पूछिए मत ! अभी हम पढ़ ही रहे थे - बाबु जी समधी बनने के लिये हडबडाने लगे - कहने लगे - गाभीन गाय  के ज्यादा दाम मिलता है ! हम बोले - जे करना है - करिये ! पर् याद रखियेगा - किसी भी लडकी को शादी की नियत से देख लेने के बाद - ना , मत कीजियेगा - किसी भी हाल में ! मेरे नौकरी पकड़ते - पकड़ते में माँ- बाबु जी एक जगह हडबडा के देख लिये ! फिर ..डिसीजन बदलने लगे ! हमको अपने ही बाबु जी को हडकाना पड़ा - बोले ..चुप चाप फाईनल कीजिए ! माँ बोलने लगी - तुम भी देख लेते- अभी कैरियर बनाने का टाईम है  - हम बोले - रोज बंगलौर में तमिल ब्राह्मण की सुन्दर लडकी को देखता हूँ - सब एक जैसी हैं - कोई फर्क नहीं , कैरियर बनते रहता है - आप लोग डेट फायीनल कीजिए ! दरअसल , मेरे दिमाग में बैठा हुआ था - कुंवारी कन्या का श्राप नहीं लेना है और कोई भी लडकी वस्तु नहीं होती है ! 

समाज खुद अपनी दिशा तय करता है ! अब हमारी बेटी - बहन पढ़ने लगी ! उसकी पढ़ाई की इज्जत होने लगी ! पढ़ी - लिखी बेटी - बहनों का बियाह जल्द तय होने लगा ! समाज में एक सन्देश गया ! मिडिल क्लास आगे आया ! 

पिछले दस सालों में कई सैकडे लोग मुझसे सुयोग्य वर् का लिस्ट मांग चुके हैं ! फिर दुबारा नहीं आते ! बेटी जब फायीनल इयर में रहेगी तो फोन पर् जीना मुश्किल कर देंगे ! रँजन जी , आपका नेटवर्क बहुत लंबा - चौड़ा है - कुछ मदद कीजिए ! फिर अगला साल किसी दूसरे के मुह से सुनायी देता है - फलाना की बेटी का शादी हो गया ! लडकी के पिता - पान के दूकान पर् मिल जायेंगे ! समझाने लगेंगे - राजस्थान वाले हैं , लड़का वहीँ साथ में था - वो लोग भी ब्राह्मण हैं ..ब्ला ..बला ...ब्लाह ! अंत में हम बोलेंगे - अरे ..सर ..बहुत बढ़िया ..लडकी खुश है ..पढल - लिखल है ,,फिर हमको - आपको क्या सोचना ! लडकी के पिता के चेहरे पर् ..एक निश्चिन्त भाव आता है ! क्या करे ..वो बेचारा ! जेनेरेशन इतनी जल्दी बदलेगा - कोई सोचा नहीं होगा ! वो मुझसे इस् शादी का सर्टिफिकेट मांगता है ! मै कौन हूँ ! उसका चेहरा कहता है - समाज के आदमी हो - अप्रूव करो ! कर दिया ..भाई ..अप्रूव ! जाओ ..पति - पत्नी को खुश रहने दो ! 

फुर्सत से केबिन में बैठा हूँ - कुछ कुछ लिख दिया हूँ ! कैसा लगा - कमेन्ट कीजियेगा ! 

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, October 25, 2011

टीए - डीए का खेला ...

बचपन याद है ! बाबा सहकारिता आंदोलन के अपने क्षेत्र के अग्रणी नेता थे - सो - बिहार स्तर के कई सहकारी संस्थाओं में प्रतिनिधि थे ! साल में दो तीन बार सबकी मीटिंग होती थी - बिस्कोमान , सहकारी बैंक , भूमि विकास बैक इत्यादी ! बाबा की लाल बत्ती वाली गाड़ी में मै भी बैठ कर इन मीटिंग में पहुँच जाता था ! वहाँ एक लंबा लाईन लगा होता था - सामने एक आदमी बैठ होता था - जो एक अटैची और एक पैकेट देता था ! अटैची में कागज पत्र होते थे और पैकेट में कुछ सौ रुपये ! अटैची मै लेकर कार में रख देता था और पैकेट बाबा अपने पॉकेट में ! बाद में अन्य जिला से आये लोगों से उनको बात करते सुनता था - टीए कम दिया है ! डीए एक दिन और का मिलना चाहिए था - ब्ला..ब्ला ! हम ज्यादा माथा नहीं लगाते - दोपहर को पसंदीदा मुर्गा भात खाने को मिलता - तपेश्वर बाबु हर टेबल पर् पहुंचते और सबसे हाल समाचार पूछते ! इन्ही एक मीटिंग में बिस्कोमान भवन के निर्माण के मंजूरी मेरे आँखों से मिली थी ! इन्ही मीटिंग में एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व० बिन्देश्वरी दुबे को मुर्गा का टांग दोनों हाथ और दांत में दबाये हुए अखबार में फोटो छाप दिया था ! :) सब याद है - हमको ! वो मेरा स्वर्णीम काल था ! अब गदहा काल है :( खट रहे हैं :( 

हाँ तो बात हो रही थी - टीए डीए पर् ! बाबु जी वर्तमान में पटना के एक कॉलेज में विभागाध्यक्ष हैं - प्रैकटीकल परीक्षा में एग्जामिनर बाहर से आते हैं ! बिहार सरकार / कॉलेज / विश्वविद्यालय का जो हाल है वो किसी से छुपा नहीं है ! वैसे परीक्षक जाते वक्त 'टीए - डीए' को लेकर कुछ हल्ला नहीं मचाये सो बाबूजी को अपने पॉकेट से ही देना पड़ता है ! 

हम भी शिक्षक हैं ! दूसरे कॉलेज में प्रैक्टिकल परीक्षा लेने जाना पड़ता है ! परीक्षा खत्म होने के बाद - भारी हंगामा होता है ! टीए - डीए को लेकर हम तो चुप ही रहते हैं लेकिन बाकी लोग तो ऐसा करते हैं - जैसे उनका कोई हक मारा जा रहा है ! आयेंगे मोटरसाइकिल से टीए मांगेंगे - कार का ! एकाउंटेंट पूछ बैठेगा - कार नंबर दीजिए - बाहर पाकिंग से किसी का नंबर लिख देते हैं लोग ! एकॉन्टेंट हडकाता है - सरकार का पैसा है - जेल चले जाईयेगा ..ब्ला ब्ला...कौन उसकी बात सुनता है ! 

यही हाल कॉपी जांचते वक्त होता है ! उपरवाले की मेहरबानी से बड़ी कम उम्र में हेड एग्जामिनर बनने का मौका मिला ! बाकी के परीक्षक माथा नोच लेते थे - सर , एकॉन्टेंट बहुत बदमाश है - दो दिन का का डीए काट लिया ! सेन्ट्रलाईज कॉपी चेकिंग होती हैं ! भारी हेडक हो जाता है ! प्रोफ़ेसर को लेक्चरर वाला डीए मिल गया - हुआ हंगामा - बोला - इज्ज़त चला गया ! हम बोले भाई - दस - बीस रुपैया से क्या बिगड जायेगा ! प्रोफ़ेसर बोलेगा - आप नहीं समझियेगा ..ब्ला ..ब्ला ! 

कुल मिलाकर मेरी समझ में यही आया की - नौकरी करने वाला - टीए डीए को जन्मसिद्ध अधिकार समझता है - होना भी चाहिए - कंपनी / सरकार के काम से आप जा रहे हैं तो खर्चा पानी तो लगेगा ही ! हम भी गाँव में अपना नौकर को कहीं काम से भेजते हैं तो खर्चा देते ही थे ! लेकिन जब वो नौकर खर्चा में से कुछ बचा कर वापस कर देता था - मन एकदम से गद गद् हो जाता ! 


अब आईये - किरण आंटी पर् ! एक एनजीओ से पैसा उठाकर दूसरे एनजीओ को पैसा देना - गलत है ! सीधे  चंदा मांग लेती ! दरअसल आदत खराब है ! यह विशुध्ध पाकिटमारी है ! आप इतनी ईमानदार थी फिर 'मिजोरम' से क्यों भागना पड़ा ? आप सभी मीडिया की देन हैं और याद रखिये यही मीडिया आपके चमक  को  खत्म भी करेगा ! आपके जैसे हर स्टेट में दस आई पी एस अफसर हैं ! मीडिया मैनेज ही सब कुछ होता तो - भाजपा के रविशंकर प्रसाद को राज्यसभा में नहीं जाना पड़ता - लोकसभा में जाते ! आपने क्या काम किया जिसके लिये - आप खुद को राष्ट्रिय स्तर की नेता खुद को समझाने लगीं ! बस 'अन्ना' मिल गए - सब कूद गए ! 

जिस लोकसभा को आपसभी रामलीला मैदान में नौटंकी कर के क्या क्या नहीं कहा - आज उसी लोकसभा में बैठने के लिये - सबकुछ मंजूर है ! टीवी पर् देश के प्रधानमंत्री का मजाक उडाना कहाँ तक सही था ! उनकी मीमीकरी करना ! क्या यह सब एक पूर्व आईपीएस को शोभा देता है ! अवकात में रहिए ! हम भी बिहार से आते हैं जहाँ हर मोहल्ले से दो सिविल सर्वेंट होते हैं ! पर् आप जैसा किसी को नहीं देखा ! हाँ , कॉंग्रेस गलत है ! पर् देश का संविधान उसको पांच साल शासन का अधिकार दिया है - कोई गलत नहीं है ! मैडम , बहुत आसान है - दिल्ली के किसी क्षेत्र को रिप्रेजेंट करना ! देहाती क्षेत्र में बुखार छूट जायेगा ! बेटी की शादी में दो क्विंटल चीनी मांगेगा ! कोई अपने बेटा को नौकरी के लिये कहेगा ! कोई भूख मर जायेगा ! 

हिम्मत और अवकात है तो - देश का कोई पिछड़ा क्षेत्र से खुद को लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कीजिए - चुनाव जीतिए और वहाँ की जनता के दर्द को समझिए ! टीवी पर् बोलना बहुत आसान है ! चार एंकर / न्यूज रीडर से दोस्ती कर - किसी चैनल पर् बोंल लेना आसान है ! असली जनता के बीच रहना आसान नहीं है , मैडम ! 

और आप केजरीवाल जी , याद है ..रँजन ऋतुराज का नाम ? नहीं याद होगा ! सत्येन्द्र दुबे हत्या कांड के बाद के जन्मे ग्रुप में ही आपका जन्म हुआ था ,ज्यादा नहीं लिखूंगा क्योंकी आपका भी इज्जत दो पैसा का हो गया है ! आई आई टी का सीट आपने खराब  किया - फिर सिविल सर्वेंट भी सही ढंग से काम नहीं किये - अब फ्लाईंग शर्ट को ऊपर से पहन - देश के सबसे ईमानदार बन् गए ! हद्द हाल देश की मिडिल क्लास का ! 

लोकपाल क्या कर लेगा ? दस लाख जनता से आप एक एम पी को चुनते हैं ! कभी किसी एम पी के घर गए हैं ? जितना आपके तनखाह है उतना का लोग उसके घर चाय पी जाता है ! कहाँ से लाएगा वो पैसा ? हर लगन में लाखों रुपैये के नेवता बंट जाता है ! कौन देगा ? 

देश के सबसे बेहतरीन दीमाग को आप सिविल सर्वेंट बनाते हैं - देते क्या है - उसको ? पांचवे वेतनमान में - तनखाह थी - आठ हज़ार बेसिक ! अब है पन्द्रह हज़ार बेसिक ! उसका बच्चा भूख रहे और आपलोग ? दो महीना जावा सीख लिये और पचास हज़ार कमाने लगे ! 

जितना लोग हल्ला करता है - इंटरनेट की दुनिया में - सबसे ज्यादा ट्रैफिक रुल वही तोडता है ! सुबह में ट्रैफिक रुल तोडेगा और शाम को इंटरनेट पर् 'अन्ना - अन्ना' चिल्लाएगा ! गजब का चमड़ी है ! मै गुस्सा में हूँ - मुझे तीन किलोमीटर का सफर ऐसे कार वालों के कारण एक घंटा लगाना पड़ता है ! हद्द हाल है ! 

दिन में फेसबुक पर् 'अन्ना - अन्ना' चिल्लाएगा और शाम को बेटा बेटी के एडमिशन के लिये स्कूल के दलाल के घर जायेगा ! मत जाओ ..ना ! सेना की नौकरी सबसे बढ़िया - पर् वहाँ जायेगा - कौन ? पड़ोसी का बेटा ! हाय रे ...मिडिल क्लास ! 

एल पी जी में सब्सीडी क्यों ? डीजल में सब्सीडी क्यों ? शर्म नहीं आती ? - डीजल कार खरीदते वक्त ! आज दिल्ली - मुंबई जैसे शहर में डीजल कार पर् आठ आठ महीना का लाईन है ! डीजल का सब्सीडी किसके लिये है - मेरी जान - मिडिल क्लास ? 

भारत में भ्रष्टाचार खून में है ! हीरा चोर - खीरा चोर को पिटता है ! कई ईमानदार लोग भी कई गलत काम कर बैठते हैं - हक समझ कर ! 

अब कितना लिखा जाए ! कानून भी दोषी है ! 

माथा खराब है !

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, October 18, 2011

दूसरी आज़ादी के साइड इफेक्ट्स – भाग दो

 ऋतुराज सर का लिखा यह लेख ! ऋतुराज सर बिहार राज्य के नालंदा जिला के रहने वाले हैं ! विश्व प्रख्यात नेतरहाट विद्यालय , पटना कॉलेज और जेएनयू से शिक्षा ग्रहण करने के बाद सन 1983 में भारतीय आरक्षी सेवा के अधिकारी बने और अपने गृह राज्य बिहार को सन 2005 तक सेवा दिया और स्वेच्छा से अवकाश ग्रहण  किया  ! फिर उसके बाद कुछ वर्षों के लिये टाटा स्टील के साथ जुड़े रहे और पिछले दो साल से फुर्सत के क्षण अपने गृह जिला में बिता रहे हैं ! इनकी फोटोग्राफी भी कमाल की है !

वे पटना के एक नामचीन डाक्टर हैं. उनकी ख्याति पूरे राज्य में है और उनके क्लीनिक में मरीजों की लंबी लाइनें लगी रहती हैं. वे डाक्टरी के विज्ञान के साथ साथ मैनेजमेंट की कला में भी पारंगत हैं. बिहार का हर धनपशु उनका मरीज है. धनपशुओं से डाक्टर साहब के गहरे निजी सम्बन्ध भी हैं क्योंकि वे इनसे कोई फीस नहीं लेते हैं. धनपशुओं से फीस नहीं लेने की प्रक्रिया को डाक्टर साहब communication initiative की संज्ञा देते हैं और कहते हैं कि ये धनपशु ही उनके विजिटिंग कार्ड हैं. डाक्टर साहब की बात में दम भी है, क्योंकि इन धनपशुओं की बदौलत पूरे बिहार के मरीज डाक्टर साहब को साक्षात धन्वंतरि का अवतार समझते हैं. ऐसे आम मरीजों से डाक्टर साहब फीस लेने में कोई कोताही नहीं करते हैं क्योंकि उनके अनुसार, “घोड़ा यदि घास से दोस्ती कर लेगा, तो खायेगा क्या?”
लेकिन, डाक्टर साहब बहुत भावुक भी हैं और गरीबों के दुःख से पीड़ित हो कर वे प्रतिदिन 20 मरीजों का न केवल मुफ्त इलाज करते हैं बल्कि उन्हें “Physician’s Sample. Not for sale.” वाली दवाएं भी मुफ्त देते हैं. डाक्टर साहब की इस सदाशयता की अखबारों और टी वी चैनलों में जम पर प्रशंसा होती है क्योंकि हर संपादक और संवाददाता भी डाक्टर साहब का मरीज है. डाक्टर साहब अपनी इस सदाशयता को मैनेजमेंट की भाषा में ‘outreach programme’  कहते हैं. इस ‘outreach programme’ से न केवल डाक्टर साहब की दरियादिली का डंका बजता है बल्कि दवा कंपनियों को भी खूब फायदा मिलता है क्योंकि डाक्टर साहब सिर्फ दो दिन की खुराक मुफ्त देते हैं और बाद में यही दवाएं खरीद कर खाने की ताकीद कर देते हैं. लिहाजा, डाक्टर साहब दवा कंपनियों के चहेते हैं. उनके यहाँ medical representatives की भीड़ लगी रहती है जिनसे डाक्टर साहब सिर्फ रात के 10 से 11 बजे के बीच ही मिलते हैं. दवा कंपनियों के सौजन्य से डाक्टर साहब साल में सिर्फ दो बार सपरिवार छुटियाँ बिताने विदेश चले जाते हैं. लालच तो उन्हें छू तक नहीं गया है. उनके दिल में लक्ष्मी नहीं गांधीजी का वास है.
 अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन में डाक्टर साहब देश के बड़े बड़े औद्योगिक घरानों के Corporate Social Responsibility Initiatives से भी आगे हैं.  नकली दवाओं के कहर से मरीजों को बचाने के उद्देश्य से डाक्टर साहब ने क्लीनिक के बगल में ही दवा की एक दुकान खोल दी है. उसी दुकान से दवा खरीदने की सख्त हिदायत डाक्टर साहब के कारिंदे हर मरीज को देते हैं और लगे हाथ यह गंभीर चेतावनी भी दे देते हैं कि किसी दूसरी दुकान से दवाएं खरीदने से जान जाने का भी खतरा है. लिहाजा, डाक्टर साहब की दवा दुकान में भीड़ लगी रहती है और अच्छा ख़ासा मुनाफा भी हो जाता है. यद्यपि उनकी पत्नी को दवा दुकान के कारोबार से कोई लेना देना नहीं है तथापि सरकारी तौर पर वे ही इसकी मालकिन हैं क्योंकि डाक्टर साहब टैक्स मैनेजमेंट में भी उस्ताद हैं.
हर आम भारतीय की तरह डाक्टर साहब आयकर को एक अनावश्यक बोझ मानते हैं; और आयकर के इस बोझ को सही-गलत किसी भी तरीके से कम करना अपना नैतिक कर्तव्य मानते हैं. अस्तु, वे मरीजों की संख्या का कोई लेखा जोखा नहीं रखते हैं, अपनी वास्तविक आय का एक दशांश ही अपने रिटर्न में दर्शाते हैं और अपने घर के बिजली-पानी, दाई-नौकर, रसोईया-खानसामा, ड्राइवर-माली इन सब पर होने वाले खर्च को भी अपनी आय में से मिन्हा कर देते हैं. वह तो दुष्ट सरकार ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं बनाया वर्ना वे अपने घर के चावल-दाल, नून-हल्दी, सब्जी-भाजी का खर्च भी अपनी आय में से मिन्हा कर देते !! आयकर विभाग वाले उन्हें अनावश्यक तंग नहीं करें इस निमित्त डाक्टर साहब न केवल उनकी मुफ्त चिकित्सा करते हैं बल्कि हर दीपावली और नववर्ष के पावन अवसर पर आयकर विभाग के चपरासी से लेकर चीफ कमिश्नर तक को नियमित सौगात भी भेजते हैं. साथ ही साथ अपने चार्टर्ड अकाउन्टेंट (सी. ए.) को उन्होंने स्पष्ट हिदायत भी दे रखी है कि ‘खर्चा-पानी’ करने में कभी कोई कोताही ना करे.
डाक्टर साहब की इस चतुरंगी प्रतिभा के फलस्वरूप हर वर्ष उनके दो नंबर के बैंक खाते में एक मोटी रकम जमा हो जाती है. डाक्टर साहब अपने पूर्वजों का बहुत भी सम्मान करते हैं!  अतः उनसे प्रेरणा लेकर वे इस धन को जमीन में गाड़ देते हैं; और नियमित रूप से भूखंड / मकान / फ़्लैट का बेनामी क्रय कर लेते हैं.
अचल संपत्तियों के पंजीकरण की प्रक्रिया को डाक्टर साहब अत्यंत जटिल और कठोर मानते हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में उन्हें स्टैम्प ड्यूटी अदा करनी पड़ती है. वे हमेशा न्यूनतम स्टैम्प ड्यूटी ही अदा करते हैं और अचल संपत्तियों का वास्तविक मूल्य कभी नहीं दर्शाते हैं. इस प्रयोजन हेतु डाक्टर साहब ने पंजीकरण कार्यालय के हर कारिंदे से ‘लेन-देन’ का एक पवित्र रिश्ता स्थापित कर लिया है.
सम्पूर्णता में देखा जाए तो डाक्टर साहब एक सच्चे भारतीय हैं !!!
और हर सच्चे भारतीय की तरह वे दूसरों के भ्रष्टाचार की सख्त खिलाफत करते हैं. भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी का नाम सुनते ही उनका चेहरा गुस्से से तमतमा जाता है, भृकुटी तन जाती है, नथुने फड़कने लगते हैं और आँखों से अंगारे बरसने लगते हैं. उनके इस रौद्ररूप को देखकर लगता है कि यदि कहीं कोई भ्रष्टाचारी उनके सामने पड़ गया तो वे उसका टेंटुआ ही दबा देंगे !!
हर सच्चे भारतीय की तरह डाक्टर साहब भी भ्रष्टाचार को देश का सबसे बड़ा कोढ़ मानते हैं; इसके उन्मूलन के लिए कड़े से कड़ा क़ानून बनाए जाने की पुरजोर वकालत करते हैं और मानते हैं कि जन लोकपाल कानून बनते ही भ्रष्टाचार का सर्वनाश हो जाएगा.
‘आज़ादी की दूसरी लड़ाई’ से वे इतने प्रभावित हुए कि अपने वातानुकूलित क्लीनिक से कूदकर सड़क पर आ गए तथा अन्य नामचीन और ख्यातिप्राप्त डाक्टरों के साथ ‘अन्ना टोपी’ और ‘अन्ना तख्ती’ से लैस होकर कड़ी धूप में पूरे आधे घंटे तक प्रदर्शन करते रहे !! उनके इस अप्रतिम बलिदान से सभी टी वी चैनल मंत्रमुग्ध हो गए और आधे घंटे के इस महान प्रदर्शन का ‘लाइव कवरेज’ 12 घंटे तक करते रहे!!!   
डाक्टर साहब ने उसी दिन फेसबुक प्रोफाइल से अपनी तस्वीर उखाड़ फेंकी और अन्नाजी को वहाँ चिपका दिया, अपने क्लीनिक को अन्नाजी की तस्वीरों से पाट दिया, ‘अन्ना टोपी’ को अपने वस्त्र-विन्यास का अभिन्न अंग बना लिया और अपने दिल में गांधीजी के साथ साथ अन्नाजी को भी एडजस्ट कर लिया. ‘दूसरी आज़ादी’ के आंदोलन ने उन्हें देशभक्त से अन्नाभक्त बना दिया !!! 
लेकिन अन्ना जी का अनशन समाप्त होने के कुछ दिनों बाद ही डाक्टर साहब के व्यक्तित्व में एक आमूलचूल परिवर्तन आ गया. उनके चेहरे से रौनक और सर से ‘अन्ना टोपी’ गायब हो गयी ! भ्रष्टाचार का नाम सुनने पर उनकी आँखों से अब अंगारे नहीं आंसू टपकते और अन्नाजी का नाम सुनते ही डाक्टर साहब दांत किटकिटाने लगते !!!
डाक्टर साहब के व्यक्तित्व के इस आमूलचूल परिवर्तन का कारण एक खौफनाक हादसा था. हुआ कुछ यूँ कि :-
एक दिन डाक्टर साहब ‘अन्ना टोपी’ लगाए मरीजों से मुखातिब थे. मरीजों का भारी हुजूम बाहर वोटिंग रूम में जमा था. एक मरीज अंदर आया. अपनी आदत के मुताबिक़ डाक्टर साहब ने उससे पूछा, “क्या तकलीफ है?” मरीज बोला, “आप आयकर की चोरी करते हैं, यही मेरी तकलीफ है.” डाक्टर साहब सकपका से गए. यह कैसा मरीज है जो उन्हें ही ताने दे रहा है!! पर, वे अन्ना रस में सराबोर थे, उनके सर पर ‘अन्ना टोपी’ थी. दिल में अन्ना भक्ति का ज्वार और ‘दूसरी आज़ादी’ प्राप्त हो जाने का गुरूर था. सो तैश में बोले, “इतनी ओछी बात करते आपको शर्म नहीं आती?” मरीज ने संजीदगी से कहा, “जी नहीं. आपको आयकर चोर कहने में मुझे तनिक भी शर्म नहीं आ रही है.”
मरीज की संजीदगी का असर डाक्टर साहब पर भी पड़ा, वे कुछ संयमित हुए और संजीदा लहजे में उन्होंने कहा, “माफ कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं.” मरीज विनम्रता से फरमाया, “मैं इस एरिया का आयकर इन्स्पेक्टर हूँ.” डाक्टर साहब चौंके, यह कौन सा आयकर इन्स्पेक्टर आ गया जिसे वे पहचानते तक नहीं हैं? उन्होंने कुछ झेंपते हुए कहा, “यहाँ के इन्स्पेक्टर तो फलां जी हैं. मैं तो उन्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ.” मरीज बोला, “उनका तबादला हो गया है और अभी दो महीने पहले ही मैंने यहाँ योगदान दिया है.”
डाक्टर साहब की जान में जान आ गयी, उनकी साँसे फिर से सामान्य हो गयी और दिल की धडकन 103 से घट कर पुनः 72 पर स्थिर हो गयी !!. वे समझ गए कि चिंता करने का कोई सबब है ही नहीं ... यह नया इन्स्पेक्टर अपनी उपस्थिति भर दर्ज करा रहा है. वे मुस्कुराते हुए बोले, “अच्छा, इसीलिए पहचान नहीं पाया आपको. मैं अपने सी.ए. को बोल देता हूँ वह मिल लेगा आपसे.” इन्स्पेक्टर ने भी मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “जी जानता हूँ मैं आपके सी. ए. को.”
डाक्टर साहब की पैनी बुद्धि ने तुरंत ताड़ लिया कि इन्स्पेक्टर सिर्फ अपनी खुराकी बढ़ाना चाह रहा है; और चाहे भी क्यूँ नहीं? मंहगाई भी तो आखिर आसमान छू रही है !! वे पुनः अपने प्रसन्नचित्त स्वरूप को प्राप्त हो गए और गदगद भाव से बोले, “वह मिल लेगा आपसे और जो भी आप चाहते हैं वह दे देगा.” इन्स्पेक्टर ने विनम्रता से उत्तर दिया, “लेकिन मुझे तो आप से ही चाहिए.”
डाक्टर साहब को इंस्पेक्टर की बात बहुत अटपटी लगी. क्या चाहता है यह इन्स्पेक्टर? क्या उन्हें अपने हाथों से इसे घूस देना पड़ेगा?? क्या यह दुर्दिन भी देखना पड़ेगा उन्हें? राम, राम ... अन्ना, अन्ना ... !! इतनी धृष्टता, इतनी निर्लज्जता?? डाक्टर साहब को लगा कि वह इन्स्पेक्टर नहीं साक्षात् दुश्शासन है जो मरीजों से भरी क्लीनिक में उनका चीर-हरण कर रहा है ! संकट की इस घडी में उन्होंने अन्ना को याद किया. अन्ना का स्मरण करते ही डाक्टर साहब के शरीर में एक नयी स्फूर्ति का संचार होने लगा, उनके अन्नाभक्त रक्त में उफान आने लगा और सहसा उन्हें यह दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया कि वे ‘अन्ना टोपी’ रुपी कवच से सुरक्षित हैं !! उन्होंने ऐंठते हुए इन्स्पेक्टर को धमकाया, “मैं आपकी शिकायत आपके कमिश्नर साहब से करूँगा और तब आपको पता चलेगा कि आप किस से उलझ रहे हैं. अरे, आप मुझे कोई ऐरा-गैरा-नत्थूखैरा समझ रहे हैं क्या? मैं अन्ना-भक्त हूँ और भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ हूँ.”
डाक्टर साहब के इस प्रलाप का इन्स्पेक्टर पर लेशमात्र भी असर नहीं हुआ. उसने अपना फटीचर सा ब्रीफकेस खोला और कुछ कागजातों के साथ-साथ एक टोपी निकाली. कागजातों को टेबल पर रख उसने टोपी को शिरोधार्य कर लिया. डाक्टर साहब को मानो सांप सूंघ गया. उनकी बोलती बंद हो गयी और विस्फारित नयनों से एकटक वे उस टोपी और टोपी धारक को ताकते रहे. वह इन्स्पेक्टर भी अब उनकी ही तरह ‘अन्ना टोपी’ से सुसज्जित हो गया था. ‘अन्ना टोपी’ को अपने सर पर सही ढंग से व्यवस्थित कर इन्स्पेक्टर डाक्टर साहब से मुखातिब हुआ और बोला, “आपको कमिश्नर साहब से बात करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके निर्देशन में ही मैं पिछले एक महीने से आपका समस्त लेखा जोखा खंगाल रहा हूँ और उनके द्वारा हस्ताक्षरित ये नोटिसें आपको तामील करने आया हूँ. कृपया इन्हें हस्तगत करें और प्रमाणस्वरूप अपने हस्ताक्षर अंकित कर दें.” कांपते हाथों से डाक्टर साहब ने हस्ताक्षर किये.
इन्स्पेक्टर ने ‘अन्ना टोपी’ को पुनः ब्रीफ्केसस्थ किया और यह कहते हुए बाहर निकल गया, “मैं अन्नाभक्त नहीं सिर्फ ईमानदार हूँ! यह ‘अन्ना टोपी’ तो सिर्फ दिखावा है. होने को तो आप की ‘अन्ना टोपी’ भी वैसे दिखावा ही है, क्यूँ?” इन्स्पेक्टर के जाने के बाद डाक्टर साहब काफी देर तक ‘कारवाँ गुज़र गया ... गुबार देखते रहे’ की तर्ज़ पर नोटिसों को देखते और ‘दूसरी आज़ादी’ के इस साइड इफेक्ट पर सर धुनते रहे.
और उसी पल से डाक्टर साहब के चेहरे से रौनक और सर से ‘अन्ना टोपी’ गायब हो गयी !!

नोट : इस कथा के सभी पात्र और स्थान पूर्णतः काल्पनिक हैं और एक ‘सच्चे भारतीय’ के चरित्र को उजागर करने के लिए मात्र रूपक के तौर पर हैं. 


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रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, September 6, 2011

दूसरी आज़ादी के साइड इफेक्ट्स - भाग एक

 ऋतुराज सर का लिखा यह लेख ! ऋतुराज सर बिहार राज्य के नालंदा जिला के रहने वाले हैं ! विश्व प्रख्यात नेतरहाट विद्यालय , पटना कॉलेज और जेएनयू से शिक्षा ग्रहण करने के बाद सन 1983 में भारतीय आरक्षी सेवा के अधिकारी बने और अपने गृह राज्य बिहार को सन 2005 तक सेवा दिया और स्वेच्छा से अवकाश ग्रहण  किया  ! फिर उसके बाद कुछ वर्षों के लिये टाटा स्टील के साथ जुड़े रहे और पिछले दो साल से फुर्सत के क्षण अपने गृह जिला में बिता रहे हैं ! इनकी फोटोग्राफी भी कमाल की है ! 

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मेरे एक पुराने मित्र हैं. हम दोनों कालेज और विश्वविद्यालय के दिनों से ही मित्र रहे हैं और यह मित्रता अब तक बरकरार है. सार्वजनिक रूप से उनका नाम बताने में संकोच है इसलिए उन्हें ‘राजा’ के छद्मनाम से ही संबोधित करूँगा. मूल बिंदु पर आने के पहले ‘राजा’ का एक संक्षिप्त परिचय समीचीन होगा.
मेरी ही तरह ‘राजा’ के जीवन के समापन की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है अर्थात 50 वर्ष की सीमारेखा के पार खड़ा है वह भी. सही उम्र का पता तो खैर उसे भी नहीं है, क्योंकि उसके दूरदर्शी और कंजूस पिता ने विद्यालय में नामांकन के समय ही अपनी कंजूस प्रवृति के अनुरूप ‘राजा’ की उम्र अंकित करने में भी कंजूसी दिखा दी थी.
      ‘राजा’ अपनी युवावस्था से ही काफी जुझारू किस्म का इंसान रहा है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रान्ति में उसने सम्पूर्णता से भाग लिया था. आपातकाल में पुलिस की लाठियां भी खाई थीं और जेल भी गया था. लिहाजा ‘राजा’ मुझसे दो साल बाद स्नातक बना. स्नातकोत्तर हेतु वह दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय आया और तब से संघर्ष के साथ-साथ उसने दिल्ली को भी सीने से लगा लिया. संघर्ष और दिल्ली ने उसके दिल में डेरा डाल दिया और इस चक्कर में प्रणय के लिए उसके दिल में कोई स्थान ही नहीं बचा. नतीजा यह हुआ कि 40 वसंत देखने के बाद ही वह प्रणय निवेदन कर सका. सम्प्रति ‘राजा’ अपने परिवार (पत्नी और दो छोटे बच्चों) के साथ दिल्ली में ही रहता है. लेकिन, दिल्ली की रौनक भी उसकी जुझारू प्रकृति के पैनेपन को कुंद नहीं कर पायी है और अभी भी वह हर संघर्ष में बढ़ चढ कर हिस्सा लेता है. ‘राजा’ की मैं बहुत कद्र करता हूँ क्योंकि तीन दशक से दिल्ली में रहने के बावजूद वह अब तक बुद्धिजीवी है.
      ‘राजा’ ने अपनी आदत के मुताबिक़ अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में ‘दूसरी आज़ादी की अगस्त क्रान्ति’ में भी सम्पूर्णता से भाग लिया. इस दौरान एक दिन मैंने उसे टी वी पर देखा. बिलकुल शिव स्वरूप दीख रहा था ... गले में सर्प माला की जगह भ्रष्टाचार विरोध की तख्ती थी और सर पर जटा की जगह ‘मैं अन्ना हूँ’ की टोपी. बच्चों को भी उसने अन्ना टोपी से संवार दिया था और अपनी धर्मपत्नी के चेहरे पर तिरंगा का लेप लगवा दिया था. ‘राजा’ और ‘रानी’ दोनों एक एक बच्चे का हाथ थामे हुए थे और पूरा परिवार जोर जोर से ‘वंदे मातरम’ ... ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे लगा रहा था. मैं मंत्रमुग्ध हो इस अविस्मरणीय दृश्य तो तब तक देखता रहा जब तक मुए टी वी वालों ने दृश्य बदल नहीं दिया. दूसरे दिन ‘राजा’ को मैंने फोन किया और बताया कि मैंने उसे टी वी पर देखा था सपरिवार. वह खुशी से झूम उठा, और पूछा ‘बढ़िया लग रहा था न?’ मैंने कहा, ‘अत्यंत मोहक दृश्य था ... पूरे के पूरे जोकर लग रहे थे तुम सब!’ वह कुछ खिसिया सा गया लेकिन भडका नहीं. बहुत ही संजीदा इंसान है मेरा मित्र.
      कल जब अन्ना हजारे जी के अनशन का समापन हो गया और पूरा देश ‘दूसरी आज़ादी’ के जश्न टी वी पर मनाने लगा तो मैंने ‘राजा’ को बधाई देने के निमित्त फोन किया. परेशानी से सराबोर एक रुआंसी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने पूछा, ‘क्या हुआ, खैरियत तो है न?’ ‘राजा’ ने कहा, ‘अरे क्या बताऊँ यार, भारी मुश्किल खड़ी हो गयी है. बाद में फोन करता हूँ तुम्हें.’
      मैं चिंताग्रस्त हो उसके फोन का इंतज़ार करने लगा. मन में तरह तरह बातें घुमड़ने लगीं. खैर, देर रात उसका फोन आया. इस वार्तालाप को अक्षरशः प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
मैं : “क्या बात है, इतने परेशान क्यों थे?”
राजा : “भारी मुसीबत हो गयी थी यार. यह पांच साल का छोटुआ सुबह सुबह मोहल्ले के अपने 10-12 दोस्तों को बुला लाया और अन्ना टोपी पहन, डाइनिंग टेबल को मंच बना कर अनशन पर बैठ गया. उसके दोस्त डाइनिंग टेबल को घेर कर बैठ गए और भजन गाने लगे. बीच बीच में वे ‘वंदे मातरम’ और ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ के नारे भी लगाते.
मैं और तुम्हारी भाभी समझा समझा कर थक गए लेकिन वह माने तब तो !! काफी देर तक समझाने बुझाने के बाद मैंने खीझ कर डांट दिया तो उसके दोस्त भड़क गए. कहने लगे कि हम अन्ना की तरह अहिंसक और शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे हैं और आप हमें धमकी दे रहे हैं??? एक दो बच्चे गए और मोहल्ले के ढेर सारे बच्चों-बच्चियों को इकठ्ठा कर लाये. बगल के पार्क में एक टेबल लगा दिया और छोटुआ को कंधे पर बिठा कर नारे लगाते हुए वहाँ लेते गए. तीन से तेईस साल के बच्चे-बच्चियां इकठ्ठे होने लगे. कुछ गिटार और ड्रम ले आये और लड़कियों के साथ मिल कर ‘मितवा ... ओ मितवा’ गाने लगे. एस.एम.एस और इंटरनेट के माध्यम से अपने सभी दोस्तों को खबर कर दी और थोड़ी ही देर में मोटरसाइकिलों / गाड़ियों पर सवार हो हो कर बच्चे पहुँचने लगे. पार्क के अगल बगल की सारी सड़कें खचाखच भर गयीं. मोहल्ले के बाज़ार में खबर हो गयी तो चाट/आइसक्रीम/भूंजा/नूडल बेचने वाले भी अपना अपना ठेला ले कर चले आये. अन्ना जी के अनशन के चक्कर में दिल्ली के हर बाज़ार में तिरंगे झंडों और अन्ना टोपी / अन्ना तख्ती की दुकानें तो खुल ही चुकी थीं ... वे सब भी अपना अपना बचा खुचा माल ले कर आ गए और ‘एक पर एक फ्री’ चिल्लाने लगे. तुम तो जानते ही हो कि फ्री की हर चीज़ हम भारतीयों को कितनी अच्छी लगती है, सो देखते ही देखते पूरा पार्क रामलीला मैदान की तरह तिरंगों / अन्ना टोपियों / अन्ना तख्तियों से पट गया. बाल हितों की रक्षा करने वाले कुछ गैर सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) को भी खबर हो गयी. तुरंत फैब इंडिया के डिजाइनर कपड़ों में सजे धजे एन.जी.ओ. वाले भी कंधे पर झोला टाँगे पहुँच गए. उनलोगों ने तुरंत मंच बने उस टेबल के ऊपर एक शामियाना टंगवा दिया, लाउडस्पीकर लगवा दिया, बिजली बत्ती का इंतजाम कर दिया और छोटुआ के लिए एक पेडस्टल पंखा भी मंगवा दिया. बाल हितों की रक्षा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के उद्देश्य से उन्होंने टी वी वालों को फोन करके खबर कर दी कि आज़ादी के बाद देश का महानतम बाल संघर्ष इस मोहल्ले में चल रहा है और इस संघर्ष को वे अपना पूरा समर्थन दे रहे हैं. बस, पलक झपकते टी वी वाले भी कैमरा और माइक लिए धमक गए. थोड़ी ही देर में पार्क में बच्चों से कहीं ज्यादा संख्या एन.जी.ओ. और टी.वी. वालों की हो गयी. बस यही समझो यार, कि रामलीला मैदान की तरह पूरा पिकनिक का माहौल बन गया मेरे मोहल्ले के पार्क में. अब बच्चे माइक के सामने ‘मितवा ... ओ मितवा’ के साथ साथ यह भी गाने लगे, ‘सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं”, “कर चले हम फ़िदा जान ओ तन साथियों ... अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों”, “मेरा रंग दे, मेरा रंग दे बासंती चोला ...”, “मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास ... हम होंगे कामयाब एक दिन” !!
      टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आने लगा “आज़ादी के बाद का सबसे व्यापक बालाक्रोश”, “अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मासूम बच्चों ने बाँधे सर पर कफ़न”, “माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के लोमहर्षक उत्पीड़न का पर्दाफाश”, “दिल्ली में माँ-बाप ने ही घोंट दिया ममता का गला” आदि आदि. कुछ टी वी चैनलों ने सेवानिवृत्त समाजशास्त्रियों, बेरोजगार मनोवैज्ञानिकों, बूढ़े पत्रकारों और निठल्ले नेताओं को बुला कर चर्चा प्रारम्भ कर दी और छोटुआ के अनशन का गहन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, मनोवज्ञानिक और भौगोलिक विश्लेषण होने लगा. एक दो टी वी चैनलों ने अन्य महानगरों में स्थापित अपने संवाददाताओं को निर्देश दिया कि दिल्ली में चल रहे इस बाल संघर्ष पर देश के बच्चों की प्रतिक्रियाएं दें. धड़ा-धड़ हर महानगर से बच्चों की प्रतिक्रियाएं आने लगीं कि वे इस संघर्ष में छोटुआ के साथ हैं और अपने माता-पिता के ज़ुल्म अब वे बर्दाश्त नहीं करेंगे. टी वी वालों ने छोटुआ के अनशन को “बाल आज़ादी का प्रथम भारतीय संग्राम” घोषित कर दिया.
      देखते ही देखते तीन-चार पुलिस जिप्सियां सायरन बजाती हुई मेरे घर के सामने आ गयीं. क्या बताऊँ भाई, पहली बार घर में पुलिस वालों को देख कर मेरे तो रोंगटे ही खड़े हो गए. थानेदार ने गुर्राते हुए कहा, “यह क्या बवंडर खड़ा कर दिया है आपके बच्चे ने? क्या मांग है उसकी??” मैंने कहा, “अभी तक तो मुझे बताया ही नहीं है कि उसकी मांग आखिर है क्या!!” इतना सुनते ही थानेदार हत्थे से उखड़ गया और बोला, “इतना बड़ा बवंडर खड़ा हो गया है और आप को पता तक नहीं है कि आपके बेटे की मांग क्या है?? तुरंत जाइए और इस मामले को फौरन निपटाइए, वर्ना आप दोनों पति-पत्नी को बाल उत्पीडन के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़ जाएगा !” 
      मैंने थानेदार को समझाने की बहुत कोशिश की कि हमने कोई बाल उत्पीडन नहीं किया है. अपने दोनों बच्चों पर हाथ उठाना तो दूर हमने कभी उनके कान तक नहीं ऐंठे हैं. लेकिन वह मानने को तैयार ही नहीं हुआ और बोला, “इतना व्यापक जनाक्रोश क्या बिना बात के ही है? अरे, जरूर आप दोनों नियमित रूप से अपने बच्चों को उत्पीड़ित करते रहे होंगे जिसका परिणाम इस व्यापक जन आंदोलन में नज़र आ रहा है मुझे. आप अभी तुरंत जाइए और अपने बच्चे से बात करिये.” अपने छोटे दारोगा को उसने हिदायत दी, “साथ जाओ इसके ... और ध्यान रखना कहीं भाग ना जाए!”
      मुंह लटकाए मैं छोटे दारोगा और एक दो सिपाहियों से घिरा हुआ मंच के पास पहुंचा. मुझे पुलिस वालों के साथ देखते ही एन.जी.ओ. वाले उत्तेजित हो गए और नारे लगाने लगे. “हर जोर ज़ुल्म के टक्कर में ... संघर्ष हमारा नारा है”, “जो हमसे टकराएगा ... चूर चूर हो जाएगा”, और “वापस जाओ ... वापस जाओ” के नारों से पूरा मोहल्ला गूंजने लगा. मैं अवाक खड़ा हो कर टेबल नुमा मंच पर आसीन अपने बच्चे को देखता रहा ... वह मसनदों के सहारे अधलेटा हुआ था और उसकी दो सहपाठिनें उसे पंखा झल रही थीं. उधर भीड़ की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. वह तो भला हो उस छोटे दरोगा का जिसने समय रहते मुझे वहाँ से निकाल लिया नहीं तो मुझे अस्पताल ही पहुंचा देते ये एन.जी.ओ. वाले.
      थानेदार ने सुना तो उसने छोटे दारोगा को कहा, “फौरन दो तीन लोगों को सादे कपड़ों में भेजो और प्रदर्शनकारियों के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए प्रेरित करो”. कुछ ही देर में तीन एन.जी.ओ. वाले छोटुआ के प्रतिनिधिमंडल के रूप में वार्ता के लिए आ गए. मैंने उनसे पूछा, “क्या मांग है छोटुआ की?” वे बोले, “आप पहले यह बताइये कि उसकी सभी मांगें मानने के लिए आप तैयार हैं या नहीं?” मैंने कहा, “अरे पहले मांगें तो बताइये!” मेरे यह कहते ही वे तैश में आ गए और तमतमाते हुए बाहर चले गए. टी वी वालों ने उनको घेर लिया और सवालों की बौछार कर दी. प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने जवाब दिया, ”हमारे लाख प्रयास करने के बावजूद, छोटुआ जी के पिता के अड़ियल रवैये के कारण ... वार्ता विफल हो गयी है. वे बालमानस की मांग तक सुनने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसा लगता है कि छोटुआ जी उनके सगे नहीं सौतेले बेटे हैं.”
      टी वी चैनलों में हमारी भर्त्सना करने की होड़ लग गयी. मेरा घर पड़ोसियों, पुलिसवालों और नेताओं से खचाखच भर गया. इन सबकी सलाह और डांट सुनते सुनते मेरे कान पक गए. उधर तुम्हारी भाभी का रो रो कर बुरा हाल हो गया. उसे चुप कराने जाऊं तो वह बार बार यही कहती, “दोपहर हो गयी और मेरे छोटुआ ने अभी तक कुछ खाया नहीं है. आप कुछ भी करिये लेकिन उसके  अनशन को समाप्त करवाइए नहीं तो मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी.”
      मैंने कुछ पड़ोसियों को कहा कि कृपया छोटुआ के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए पुनः बुलाने का प्रयास करिये क्योंकि यदि मैं उस पार्क में गया तो भीड़ को एन.जी.ओ. वाले फिर उत्तेजित कर देंगे. मैं छोटुआ की हर मांग बिना शर्त मानने के लिए तैयार हूँ.
      पड़ोसियों ने लौट कर सूचना दी कि एन.जी.ओ. के नेतागण बगल के पांच सितारा होटल में लंच करने चले गए हैं. वे जब लौटेंगे तब ही वार्ता संभव है. मैंने माथा पीट लिया. उधर मेरा मासूम छोटुआ सुबह से भूखा प्यासा बैठा है और इधर ये एन.जी.ओ. वाले, जो खुद को उसका हमदर्द बताते हैं, पांच सितारा भोजन का लुत्फ़ उठा रहे हैं. मन में तो आया कि दुबारा आयें तो इन एन.जी.ओ. वालों का गला ही घोंट दूँ. पर क्या करता, खून का घूँट पीकर रह गया.
      शाम के चार बज गए तब जा कर कहीं छोटुआ का एन.जी.ओ. प्रतिनिधिमंडल प्रगट हुआ. पता चला कि लंच के बाद वे आराम करने चले गए थे. आते के साथ उन्होंने पूछा, “हाँ तो छोटुआ की सारी मांगें मानने के लिए आप तैयार हैं या नहीं?” मैंने दांत पीसते हुए कहा, “हाँ, मैं तैयार हूँ. क्या मांगें हैं उसकी?” वे बोले, ”अपनी मांगें तो वही बताएगा क्योंकि उसकी मांग से हमें कोई लेना देना नहीं है. हाँ, आज आपके छोटुआ के संघर्ष ने हमें पूरे भारत में विख्यात कर दिया है.” मारे गुस्से के मैं कांपने लगा. ये लोग मेरे छोटुआ को मोहरा बना कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ... एक निरीह और अबोध बालक की जान से खेल रहे हैं ... ये इंसान हैं या हैवान??? क्या विदेशी धन के लालच में ये किसी को भी बलि का बकरा बना दे सकते हैं? तरह तरह के प्रश्न कौंध रहे थे मेरे मन में, पर मौके की नजाकत तो समझ कर मैं चुप ही रहा.
        एन.जी.ओ. प्रतिनिधिमंडल ने बाहर निकल कर घोषणा की, “छोटुआ जी  के पिता के रुख में कुछ बदलाव आया है लेकिन वे अभी भी सभी मांगें मानने के लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए छोटुआ जी का अनशन अभी जारी रहेगा.”
      मैं, पडोसी, पुलिस वाले सभी अवाक रह गए ... यह क्या कह रहे हैं ये एन.जी.ओ. वाले??? मैंने तो बिना शर्त सभी मांगें मानने की बात कही थी और ये बिलकुल उल्टी बात बता रहे हैं टी वी वालों को !! गुस्से में मैं घर के बाहर निकला तो थानेदार ने मुझे रोक लिया. उसे अब मेरी हालत पर तरस आ रहा था. मुझसे उसने पूछा, “कहाँ है आपका बड़ा बेटा? उसे बुलवाइए.” कुछ पडोसी पार्क की तरफ भागे और थोड़ी देर में मेरे बड़े बेटे बड़कू को साथ लिए लौटे.
      थानेदार ने बड़कू को अपने पास बिठाया और प्यार से पुचकारते हुए कहा, “बेटा, तुम्हारा छोटा भाई सुबह से भूखा है, तुम्हारी माँ का रो रो कर बुरा हाल हो गया है, तुम्हारे पिता दिन भर परेशान रहे हैं. क्या तुम्हें अपने भाई के लिए बुरा नहीं लग रहा है?” बड़कू रुआंसा हो गया और बोला, “अंकल, छोटुआ तो कब से अनशन तोड़ने को तैयार बैठा है लेकिन ये एन.जी.ओ. वाले उसे मंच से हटने ही नहीं दे रहे हैं.” थानेदार ने कहा, “बेटा, जाओ और छोटुआ को बोलो कि वह मंच से घोषणा कर दे कि उसकी सभी मांगें मान ली गयी हैं और इसलिए वह अब अपना अनशन समाप्त कर रहा है ... लेकिन ध्यान रहे कि यह बात कोई एन.जी.ओ. वाला नहीं सुने.” बड़कू चुपचाप उठा और बाहर चला गया. कुछ पडोसी भी उसके साथ चल पड़े पीछे पीछे.
      कुछ समय बाद पड़ोसियों ने लौट कर बताया कि बहुत समझदारी का परिचय देते हुए बड़कू छोटुआ को ले कर टेबल के एक कोने में चला गया है और कान में फुसफुसा रहा है. थानेदार मुस्कुराया और बोला कि बस अब कुछ ही देर में सारा मामला शांत हो जाएगा ... आप लोग चिंता मत करिये बस टी वी देखिये.
      और थोड़ी ही देर में सचमुच टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आने लगा “छोटुआ जी की मांगे बिना शर्त मानी” ... “छोटुआ जी ने अपना अनशन समाप्त करने की घोषणा की”, “छोटुआ जी की जीत पूरे राष्ट्र के बच्चों के हक की जीत है” ... !!
      आधे घंटे में ही बड़कू और छोटुआ के अन्य दोस्त उसे कंधे पर बिठाए हुए घर आ गए. पीछे पीछे एन.जी.ओ. वाले भी जीत के नारे लगाते हुए चल रहे थे.  छोटुआ दौड कर अपनी माँ से चिपट गया. मैंने एन.जी.ओ. वालों को कहा, “सालों, यदि घर के अंदर पैर रखा तो पैर तोड़ कर हाथ में दे दूंगा ... उसके बाद बच्चों नहीं अपाहिजों के हितों की रक्षा करते रहना.” थानेदार भी उनपर गुर्राया तो वे अपना अपना झोला संभालते हुए भागे.
      घर के अंदर पहुंचा तो छोटुआ रोते रोते अपनी माँ से कह रह था कि मैं तो बस मैगी नूडल खाना चाहता था. उस दिन पापा के साथ रामलीला मैदान में अन्ना का अनशन देखा था तो मुझे लगा कि यह काम बहुत अच्छा होता होगा इसीलिए अनशन करने लगा था. अब कभी नहीं करूँगा मम्मी!!
      बस यार इसी परेशानी में दिन भर उलझा रहा था ... अभी मैगी नूडल खा कर छोटुआ सो गया है, तुम्हारी भाभी को भी काम्पोज खिला कर सुला दिया है और तुम्हें फोन करके अपनी आपबीती सुना रहा हूँ यार.”
मैं : “ अरे यार, यह तो लेने के देने पड़ गए तुम्हें.”
राजा : “हाँ यार, दूसरी आज़ादी का साइड इफेक्ट है यह.”



रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !