Wednesday, June 22, 2011

बहस जारी रहेगी ...भाग एक !!

बहुत पहले की बात है ! एक दोस्त को इंजीनियरिंग में 'मैकेनिकल ब्रांच' मिला ! उसके बाबु जी का बयान था - 'जीप वाला नौकरी नहीं मिलेगा - एस डी ओ नहीं बन् पायेगा' ! बेहद निराशजनक शब्दों में ! शायद उसके बाबु जी की चाहत थी - सिविल इंजिनियर बनता - बिहार सरकार में इंजीनीयर होता - कंकरबाग में जमीन खरीदता - फिर उसमे चार मंजिला मकान - दरवाजे पर् एक जीप खड़ी होती ! दोस्त एकदम अड़ा रहा - पढूंगा तो मैकेनिकल ही वरना कुछ नहीं ! 

इस् पिता की अभिलाषा कहाँ से आई ? 

मेरे इस् मैकेनिकल दोस्त की एक दोस्त होती थी ! बेहद ख़ूबसूरत ! एक देर शाम "नोट्स" आदान प्रदान करना था ! अब उसके घर जाना था ! मै प्लस टू ज़माने में गैरों के लिये काफी 'सोबर' और नजदीक से जानने वालों के लिये 'बदमाश' ! अब दोस्त के 'दोस्त' के घर जाना था ! देर शाम था ! कार चलाने सिर्फ मुझे ही आता - ऊपर से मै काफी 'सोबर' - कहीं भी किसी से पहली मुलाकात में - एक इम्प्रेशन बढ़िया बनने का डर - मेरे दोस्त को सता रहा था ! खैर , मन मार् के वो मुझे लेकर गया !दोस्त के दोस्त के  घर पहुंचे ! एक ड्राईंग रूम खुला - वहाँ से दूसरा ड्राईंग रूम - फिर तीसरा ड्राईंग रूम ! मेरा माथा घूम गया ! टेंशन में हम सोफा पर् धम्म से जा गिरे ! ख़ाक ..इम्प्रेशन बनेगा ! तीन ड्राईंग रूम देख और तीनो बेमिसाल - 

हम तीन दिन तक सोचते रहे - बिहार सरकार ! 


मेरे गाँव में - हमारे घर के ठीक सामने वाले घर से - एक चाचा जी - इंजीनियरिंग में टॉप किये ! इंजीनियरिंग में टॉप बोले तो पक्का इंजिनियर - उनके फाईनल ईयर प्रोजेक्ट को देश भर में सहारा गया ! अब वो एम टेक करने लगे ! इरादा कुछ और था - होस्टल के लॉबी के सभी विद्यार्थी - यू पी एस सी दे रहे थे - ये भी बैठ गए ! आई ये एस बन् गए ! इनके बाबु जी इनको लेकर मेरे बाबु जी के पास आये ! सर झुका ! मेरे बाबु जी बोले - सर क्यों झुकाए हो ? हाकीम बन् गए :)) खुश रहो ! आई एस एस चाचा बोले - नहीं ....मन था अमरीका जा कर कुछ रिसर्च करता ! खैर हाकीमगिरी में अठारह साल गुजारे और अब देश के सबसे धनी व्यक्ती के कंपनी में सबसे बड़े मैनेजर हैं :)) 

क्या सामाजिक दबाब ने विश्व से एक बेहतरीन वैज्ञानिक नहीं छिन लिया ?? 

मार्च महीने में पटना जा रहा था ! राजधानी एसी टू में आर् ए सी ! साथ में उमर में काफी छोटा लड़का ! बात शुरू हुई - हम पूछे - बाबु क्या करते हो ? बोला - सर , मै फलाना स्टेट में फलाना अधिकारी हूँ ! मैंने बोला - हूँ ..आई ए एस हो - और मै मुस्कुरा दिया ! मेरी मुस्कान थोड़ी टेढी थी ! उसने हंसते हुए बोला - सर , मै ईमानदार रहूँगा ! मै जोर से हंस दिया ! वो काफी शरमा रहा था - टी टी को बुला - मैंने उसको फर्स्ट क्लास में भेज दिया ! 

क्या जरुरत आ पडी - उसको यह बोलने की - 'मै ईमानदार रहूँगा' ! 

बहस जारी रहेगी ....क्रमशः 

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Friday, June 10, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - गर्मी की छुट्टी

परसों ट्विटर पर् देखा ..जुही चावला अपने बच्चों के बारे में लिखी थीं - उनके बच्चे गर्मी की छुट्टी मनाने अपने 'ग्रैंड  पैरेंट्स' के पास गए हैं :) मेरे बच्चे भी चार जुन को पटना निकल गए ! मुझे भी जाना था पर् नहीं गया ! ट्रेन पर् बहुत खुश थे ...ट्रेन खुलते वक्त बच्चों ने फ्लाईंग किस दिया ...रमेश भी उसी ट्रेन से जा रहा थे   ..गेट पर् लटका हुआ थे  - बोले की - किसको फ़्लाइंग किस दे रहे हैं ? हम बोले ..नहीं भाई ...बच्चे खुश हैं ...उनको फ्लाईंग किस मार् रहा था ..और कुछ नहीं ! 

अपना बचपन याद आ गया ! बचपन से लेकर मैट्रीक की परीक्षा पास करने तक मैंने सभी गर्मी की छुट्टीयां 'गाँव में बाबा - दीदी ( दादी ) के साथ ही मनाया है ! मस्त ! हर उम्र की यादें साथ हैं ! 

दस बजिया - हिन्दी स्कूल से पढ़ा लिखा हूँ ! छमाही की परीक्षा खत्म होते ही 'पटना/मुजफ्फरपुर' का डेरा जेल सा लगने लगता था ! माँ बाबु जी किसी जेलर से कम नहीं ! गाँव से किसी के आने का इंतज़ार - फिर गाँव के लिये निकल पड़ना ! बाबू जी वाला जेनेरेशन पहला जेनेरेशन नौकरी था - गाँव से लोगों को लगाव था ! पूरा गाँव आ जाता था ! मजा आता ! 

सुबह में दरवाजा पर् बड़ा बाल्टी और बाल्टी में पानी और पानी में आम ! कहीं से भी खेल कूद कर आईये और एक आम :) मुझे आम चिउरा बहुत पसंद ! चिउरा को पानी में फूला कर फिर आम के रस के साथ - भर पेट नाश्ता ! फिर थोड़ी धूप निकल जाती - तो दालान में "वीर कुंवर सिंह" वाला नाटक खेलना ! शाम को "घोन्सार" से भूंजा आता - तरह तरह का - चावल का - चना का - मकई का - शाम को भर पाकीट भूंजा ! फिर खेल कूद ! 

लट्टू नचाना पसंदीदा होता ! बढ़ई के यहाँ जा कर गूँज ठोकवाना ..फिर लट्टू ..शाम को 'गुल्ली - डंडा' ...वो एक समय था - "गुरदेल का" ( गुलेल ) ! गाँव के दक्षिण से 'चिकनी मिट्टी' लाना - उसकी गोली बनाना और फिर गोली को धूप में सुखा - आग में पका - गुलेल चलाना ! उफ्फ्फ्फ़ ....

क्या लिखूं और क्या न लिखूं ? सप्ताह में दो बार - गाँव में हाट लगता था - बाबा चार आना देते थे ! चार आना में "भगाऊ महतो" के ठेला पर् खूब तीता "भूंजा" खाते ...दौड़ते भागते घर लौट आना ! गाँव के बाज़ार में "छुरी" बिकता - बहुत मन करता - एक मै भी रखूं - बाबा से जिद करता - बाबा अपने पॉकेट में एकदम कडकड़ीया नोट रखते थे - वहीँ से एक पांच रुपैया का नोट निकालते और मै एक छुरी खरीदता - घर लौटते - लौटते उंगली कट चुकी होती - घर में किसी को इज़ाज़त नहीं थी - डांटने की ! 'हजाम डाक्टर' आते ! मरहम पट्टी लगती ! फिर मै बाबा के साथ उनके हवादार कमरे में सो जाता ! बाबा के सिराहने एक बन्दूक - एक टॉर्च होता और खूब बड़ा मसनद ! 

आम से कुछ याद आया - अन्यथा नहीं लीजियेगा ! हम बिहार के 'छपरा जिला' वाले थोड़े गरीब होते हैं ! पुरे भारत में इससे ज्यादा उपजाऊ ज़मीन कहीं और की नहीं है - सो जनसँख्या ज्यादा है ! 'इज्ज़त बचाने' के लिये हम सम्मलित रूप से रहते हैं ! कई बगीचा हम 'पट्टीदारों' में संयुक्त थे ! वहाँ से आप तुडा कर आता था - परबाबा जिन्दा थे - आँख से अंधा - क्या मल्कियत थी ....सभी आम उनके सामने रखा जाता ..एक आदमी गिनती करता ...फिर सभी पट्टीदारों में बराबर ..हाँ , पहला हिस्सा 'राम जानकी मठ' को जाता ! इसको हमलोग 'मठिया' कहते थे ! मेरे परिवार के पूर्वजों का देन है - ट्रस्ट है ! इस् ट्रस्ट का मुखिया हमेशा हमारे परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ती ही होगा ! गाँव की सबसे बढ़िया ज़मीन इस् ट्रस्ट को दान दी हुई है - करीब पचीस एकड का एक प्लाट है ! 

आम बंटवाने का रोज का नियम होता था ! तरह तरह के आम - केरवा आम , पिलुहिया आम , बिज्जू , सेनुर ..मालूम नहीं कौन कौन ...! तब तक बड़े बाबा मुजफ्फरपुर से लकड़ी के बक्सा में पांच दस हज़ार लीची भेजवा देते थे ! शाही लीची ! दालान पर् रख दे तो दालान खुशबू से भर जाता ! 

दोपहर में नहाने में मजा आता ! 'इनार' पर् - बाबा के साथ ! लक्स साबुन घस घस के ! "पकवा इनार" ! धीरे धीरे इनार की जगह चापाकल ले लिया ! थोड़ी देर चापाकल चलाया जाता ! उसमे ठंडा पानी निकलता ! पानी एक बड़ा लोहे के टब में भरा जाता ! टब को चार आदमी पकड़ के 'बरामदा में लाते' वहाँ एक खूब बड़ा पीढा होता - उसपर बाबा नहाते ! लक्स साबुन से ! जनेऊ मे वो  अपना  अंगूठी बाँध देते ! फिर वो दुर्गा पाठ करते - सिर्फ धोती पहन ! फिर एकदम सात्विक भोजन ! पीढा पर् बैठ के - भंसा घर के कोना पर् - परदादी खुद बाबा का खाना परोसती - अंत में दही  ! यह एक ऐसी आदत लगी मुझे की मै कभी भी 'भोज भात' में नहीं खा पाता हूँ - खाते वक्त मै बिलकुल अकेला होना चाहिए ! आज भी - दोपहर का भोजन मै बिलकुल अकेले करता हूँ ! डाईनिंग टेबल पर वो मजा नहीं जो पीढ़ा पर पालथी मार के बैठ - खाने में आता था ! 

बाबा राजनीति में थे सो गोपालगंज में डाकबंगला मिला हुआ था - कई एकड में फैला हुआ - डाक्बंगला ! लाल बत्ती गाड़ी और एस्कोर्ट जीप और मालूम नहीं क्या क्या ! बाबा के साथ गोपालगंज निकल जाता ! बाबा नहा धो अपने राजनीतिक सफर पर् और मेरे साथ उनका खानसामा ! डाकबंगला के सामने दो होटल थे ! वहाँ से एकदम खूब झालदार , गाढा रस वाला 'खन्सी का मीट' एक प्लेट आता ! भात और मीट खा के एक नींद मारता !  बाबा एक जीप मेरे लिये डाकबंगला में रखवा देते थे और गोपालगंज के सभी 'सिनेमा हौल' को बोला होता था - मै कभी भी किसी भी सिनेमा हॉल में धमक जाउंगा - सो बिना किसी रोक टोक सिनेमा देखने दिया जाए ;) मेरी सबसे छोटी और मुझे सबसे ज्यादा मानने वाली फुआ वहीँ गोपालगंज के महिला कॉलेज में शिक्षिका थी - उसके डेरा पर् निकल जाता ! बहुत खातिर होता ! बहुत महीन और पढ़ा लिखा परिवार ! बैंक में पैसा रख भूखे पेट सोने वाला परिवार नहीं था - तरह तरह का सब्जी ! छोटा फुफेरा भाई था - हम जहाँ जाते वो मेरे पीछे पीछे !   

धीरे धीरे हम टीनएज हो गए ! गाँव में लगन का समय होता ! दिन में जनेऊ और रात में बारात ! स्कूल पर् बारात ठहरता ! अपना टीम था ! अब हम रात में "दुआर" पर् सोने लगे ! दादी बहुत ख्याल रखती ! बाबा के बड़ा वाला खटिया के बगल में मेरा भी खटिया लगता ! खूब बड़ा - एक दम टाईट बिना हुआ ! सफ़ेद खोल वाला तोशक और चादर ! दो बड़ा मसनद , एक सर के पास और एक पैर के पास ;) बगल में स्टूल - स्टूल पर् एक 'जग ठंडा पानी' और गिलास ! मुशहरी का डंडा और सफ़ेद कॉटन वाला मुशहरी ! रात में सब चचेरा भाई लोग के साथ 'स्कूल पर् रुके हुए बारात का नाच देखने के लिये फरार' ;) डर भी - कोई पहचान न ले ! कभी कोई हंगामा होता तो सबसे पहले हम भागते ! हा हा हा ! सोनपुर मेला से खरीदा हुआ "गुपती" साथ में होता - किसी पर् चल जाए तो भगवान भी न बचा पाये ! 

थोड़ा और बड़ा हुए तो चाचा का 'राजदूत मोटरसाईकील' ! मजा आ जाता ! चाचा बैंक में मैनेजर हैं ! अगर चाचा गाँव पर् नहीं हैं - बाबा भी नहीं हैं - फिर एक चेला मोटरसाईकील के पीछे ! 

मैट्रीक की परीक्षा के बाद मै जबरदस्ती गाँव गया और खेती सिखा ! बाबा एक बगीचा लगवाए थे ! बाबा ही नहीं - हम तीनो पट्टीदार ! अलग अलग जगह - बगीचा के बगल में पोखर ! सुबह सुबह बगीचा चला जाता ! दस बजे तक वहीँ रुकता ! फिर पम्प सेट चालू करवा - खूब ठंडा पानी में  छोटा वाला चौकी पर् 'गमछी' लपेट - जनेऊ धारण कर - नहाता ! फिर वहाँ से खाली पैर - एक किलोमीटर चल घर पहुँचता ! फिर शाम को बगीचा में - फिर नहाना ! 

आज भी बाबा से उस बगीचे का हाल जरुर पूछता हूँ ! बाबू जी दोनों भाई को बाबा ज़मीन बाँट दिए हैं - बगीचा का कौन सा हिस्सा मुझे मिला - बाबा कहते हैं - आ कर देख लो ! अपना सब ज़मीन पहचान लो ! 

आज उस ज़मीन से पेट नहीं भरेगा ! बहुत दुःख है ! कुछ और ज़मीन होता ! असली रईसी तो वहीँ है - जो जमीन से जुड़ा है - बाकी सब तो ...खोखला है ! ज़मीन ऐसा चीज़ है ..टाटा - बिडला भी ईमानदारी से नहीं खरीद सकते :)) 

मेरे बच्चे पटना गए हुए हैं - गाँव भी जायेंगे ! 'मल्कियत' तो नहीं रही - फिर भी  कुछ तो एहसास होगा ....समय बदल गया है ...फिर भी ..कुछ चीजें इतनी जटिल होती हैं ..उनको बदलने में कई जेनेरेशन लग् जाता है !! 


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, April 25, 2011

एक सच्ची कहानी ....भाग - एक

बात चार साल पुरानी है ! मेरे 'हेड' जो भारत सरकार के वैज्ञानिक रह चुके थे अचानक से हमारे यहाँ से छोड़ कर चले गए ! जिम्मेदारी मेरे कंधो पर आ गयी ! मुश्किल घड़ी थी - तब जब आपके डिपार्टमेंट में करीब चालीस 'पढ़ी लिखी' महिलायें हो :( मैंने अपनी मुश्किल ऊपर तक पहुंचाई और मुझे 'एम टेक ( कंप्यूटर इंजिनीयरिंग)' का इंचार्ज बना दिया गया और डिपार्टमेंट के झमेले से छूटकारा मिल गया  ! यह कोर्स विश्वविद्यालय के शिक्षकों के लिए ही था ! खैर जुलाई का महीना था - कॉलेज में छुट्टी हो गयी और मै इस कोर्स के चलते छुट्टी पर नहीं जा सका ! यहाँ एक नियम था की सिर्फ - प्रोफ़ेसर रैंक के ही शिक्षक पढ़ा सकते हैं ! अब कंप्यूटर इंजिनीरिंग में प्रोफ़ेसर पास के आई आई टी में ही थे और उनके नखरे इतने की मुझे उनमे से किसी को बुलाने की हिम्मत नहीं हुई ! तभी अचानक एक वैज्ञानिक एवं भारत सरकार के एक शिक्षण संस्थान के प्रोफ़ेसर के बारे में पता चला ! मैंने उनके नाम के लिए - अपने वाईस चांसलर से परमिशन ले लिया ! उनकी उम्र करीब अस्सी को होने को आयी थी ! उनको लाने  और ले जाने के लिए - मुझे संस्थान से गाड़ी मिली थी पर उनकी इज्जत के लिए मैंने सोचा की - मै खुद उनको लाऊंगा और ले जाऊँगा ! तब मै सहायक प्राध्यापक था ! 

मेरी एक आदत है - जब मै किसी भी व्यक्ति से मिलता हूँ - उनके बारे में 'गूगल' में थोडा खोज बिन कर लेता हूँ ! इस प्रोफ़ेसर साहब के बारे में भी थोड़ा सर्च किया - हालांकी उनका बहुत छोटा और एक पन्ने का रेज्यूमे मेरे पास था ! थोडा इन्फो हंगरी हूँ ! गूगल पर खोज किया ! 

उनको क्लास लेने के लिए - मेरे यहाँ करीब पन्द्रह दिन आना था ! उनको लाते - ले जाते फिर क्लास के बीच चाय पानी फिर उनका मेरे केबिन में बैठना - जान पहचान और अपनापन बढ़ता गया ! मै उनसे 'कंप्यूटर इंजीनियरिंग' के सवाल न के बराबर पर जीवन दर्शन पर उनकी सोच के बारे में पूछता ! 

जो कुछ उन्होंने खुद के बारे बताया - वो इस प्रकार था - उन्होंने अपनी पी एच डी सन 1957 में विक्रम साराभाई के गाईड में की - उनके वाइवा लेने के लिए अमरीका से प्रोफ़ेसर आये थे - संयुक्त राष्ट्र संघ के ! फिर वो अमरीका के सबसे मशहूर विश्वविद्यालय में शिक्षक बने - जिंदगी मजे में गुजर रही थी - कहते हैं - एक दिन अचानक उनके पास भारत से फोन आया - 'श्रीमती गाँधी अब आप से बात करेंगी ' - श्रीमती गाँधी - " देश को आप जैसे लोगों की जरुरत है - अगर आप भारत लौट आयें तो देशवासीओं के साथ साथ मुझे प्रसन्नता होगी " ! वो कहते हैं - कौन ऐसा देशभक्त होगा जो सीधे प्रधानमंत्री से बात कर देश नहीं लौटेगा - मै अगले महीने ही 'भारत लौट आया' ! श्रीमती गाँधी ने बहुत इज्ज़त दी और धीरे - धीरे मै भारत सरकार के सभी 'विज्ञानं और तकनिकी प्रयोगशाला' में अपना योगदान दिया ! एक प्रधानमंत्री के लंबे कार्यकाल में मै 'उनका तकनिकी सलाहकार' बना ! ( पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आज़ाद , राष्ट्रपति बनने के पहले इसी पोस्ट पर थे ) !

कई बार मुझे अजीब लगता ! इतना बड़ा आदमी ! सरकारी बस से अपने संस्थान में आता है ! अस्सी के उम्र में भी पढाता है और पढता है ! मेरी रुची उनके बारे में जानने को और बढ़ी - मै गूगल के तरफ मुखातिब हुआ ! वैज्ञानिक लोग या शिक्षक देश विदेश के जर्नल में अपना 'पेपर' लिखते हैं - इनको भी आदत थी ! रक्षा के बड़े बड़े कंपनी अपने प्रोडक्ट के बारे में रक्षा से सम्बंधित मैग्जीन में निकालते हैं या कुछ फ्री सैम्पल विभिन्न सरकारों को भेजते हैं ! सो , इन्होने एक प्रोडक्ट का ट्रायल रिपोर्ट विदेश की किसी मैग्जीन वाले को भेजा ! कुरियर कंपनी को संदेह हुआ ! उसने कुरियर खोला और कुछ तकनिकी चीज़ें मिली ! केस दर्ज हुआ ! रातों रात छापा पड़ा ! कहीं कुछ भी नहीं मिला ! "जासूसी उपन्यास और मसाला " के लिए पुलिस अधिकारी बुरी तरह पीछे पड गए ! ( बड़े अधिकारी ) ! 

इनको कोर्ट ने बा इज्ज़त बरी कर दिया - सी बी आई के किसी अधिकारी की अहंकार को ठेस पहुँची थी ! उसने फिर से केस खुलवाया ! ऊपर वाले कोर्ट में अपील हुआ - देश के साथ विश्वासघात का ! देशद्रोह का ! केस दस साल चला - इस बीच इस गरीब ब्राह्मण ने अपने बड़ी पुत्र को खोया ! पूरा परिवार डिप्रेशन में ! वो सब कुछ बेच अपनी कोई इज्ज़त और प्रतिष्ठा के लिए लड़ रहे थे ! अंत में सुप्रीम कोर्ट ने जबरदस्त फटकार "बड़े पुलिस अधिकारिओं" को लगाईं और इनको बा इज्ज़त बरी किया गया ! इस बीच बारह साल बीत चुके थे ! 

इनको एक संस्थान में प्रोफ़ेसर एमिरीटस नियुक्त किया गया ! कुछ साल वो यहाँ बिताए - इसी दौरान मेरी उनसे मुलाक़ात हुई ! 

मै इस कहानी को जिस दिन जाना - रात भर नहीं सो सका ! अगले दिन जब उनसे मिला तो मै उनके चरण स्पर्श किया और आँख में आंसू आ गए - वो पूछे - क्यों रो रहे हो - मैंने झूठ बोला - आपको देख 'दादा जी' की याद आ रही है - छुट्टी मिलता तो गाँव घूम आता ! वो हंसने लगे - कहे मुझे भी गाँव जाना है - मेरी माँ ने मुझसे वादा माँगा था - जीवन में कुछ पैसे बचा लिया तो - गाँव के प्राथमिक विद्यालय को डोनेट करूँगा ! मेरे पास कुछ रुपैये बचे हैं - दो साल से लगा हूँ - गाँव का प्राथमिक विद्यालय लगभग तैयार हो चूका है ! 

मै हतप्रभ था - पावर के घमंड में चूर अधिकारी इनके जीवन से इनके पुत्र को छीना - आप जीवन में उच्च शिखर पर हैं - प्रधानमंत्री से हर हफ्ता मिल रहे हैं - अचानक आपके हाथ हथकड़ी और फिर बारह साल की लड़ाई ! फिर भी प्राथमिक शिक्षा के लिए यह व्यक्ति अपना सब कुछ लगा रहा है और वो भी अस्सी वर्ष की आयु में - उसी जोश से ! वो बार बार कहते रहे - 'प्राथमिक शिक्षा और शिक्षक' का बहुत रोल है जीवन में ! इनको इज्ज़त देना सीखिए !

 वो अपना मोबाईल नहीं रखते थे ..जब तक वो पढ़ाते रहे ..मै कोशिश करता रहा ..उनसे मिलूं ..और मिला भी ...उनकी पूरी कहानी नहीं छाप रहा हूँ ....पर ..बहुत दर्द छिपा था ...और हमेशा मुस्कुराते ...और मै .....

क्रमशः

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Saturday, April 23, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - दादी की कहानी :))

मुजफ्फरपुर में रहते थे ! बात 1978 -1979 की रही होगी ! बड़ी दादी - हर शाम एक कहानी सुनाती थी ! उन्ही कहानी में से एक 'कहानी' जिसे आप सभी भी सुने होंगे - लिख रहा हूँ ! 

एक बारएक चिड़िया कहीं से दाल का एक दाना चुग कर ले जा रही थी ! रास्ते में सुस्ताने के लिये वो एक 'खूंटा' के ऊपर बैठ गयी ! तभी उसके चोंच से 'दाल का दाना' खूंटा के अंदर जा गिरा ! अब बेचारी 'चिड़िया' परेशान हो गयी ! बहुत दुखी :( सोचने लगी दाल का दाना कैसे वापस मिले ..इसी सोच में वो 'बढ़ई' के पास गयी ! बढई से बोली - ' बढ़ई - बढ़ई ..खूंटा चीर ..खूंटा में हमार दाल बा .का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं' ! बढ़ई कुछ देर सोचा फिर बोला - ए चिड़िया ..तुम्हारे एक दाना के लिये ..हम खूंटा नहीं चीरेंगे ..मुझे और भी काम है ! 

चिड़िया और दुखी हो गयी और वो 'राजा' के पास गयी और राजा से बोली - राजा राजा ..बढई के डंडा मार् ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ..खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का लेके परदेस जाईं ..! राजा हँसे लगा - बोला - ए चिड़िया ..तुम्हारे एक दाना के लिये हम 'बढ़ई' को क्यों मारे ..जाओ भागो यहाँ से ..मुझे और भी जरूरी काम है ! 

राजा से ना सुन ..चिड़िया और भी दुखी हो गयी ! कुछ हिम्मत रख वो 'सांप' के पास गयी और सांप से बोली - सांप सांप ..राजा डंस ..राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! सांप को भी अजीब लगा वो चिड़िया से बोला - तुम बेवकूफ हो , तुम्हारे एक दाना के लिए मै राजा को डंसने वाला नहीं हूँ ..जाओ ..भागो यहाँ से ..मुझे अभी सोना है !

अब चिड़िया को गुस्सा आया और वो 'लाठी' के पास गई ! लाठी से बोला - लाठी ..लाठी ..सांप मार ..सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! लाठी को भी अजीब लगा और उसने चिड़िया को भगा दिया !

लाठी से ना सुन ...अब चिड़िया 'आग' के पास गयी ! आग से विनती किया - आग आग ...लाठी जलाव ..लाठी ना  सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! आग को बहुत गुस्सा आया ....और वो चिड़िया को भगा दिया और बोला ..मुर्ख चिड़िया ..मै तुम्हारे एक दाना के लिए ...लाठी को जला दूँ ...ऐसा कभी नहीं हो सकता ..भागो यहाँ से ...!

अब चिड़िया हताश हो गयी और अंत में वो अपनी सहेली 'नदी' के पास गयी ! नदी को वो अपनी बड़ी बहन जैसा मानती थी ...रोज नदी में डूबकी लगा नहाती थी ...नदी को बोली - ' नदी ..नदी ..आग बुझाओ ..आग ना लाठी जलाव ...लाठी ना  सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! चिड़िया की व्यथा सुन ..नदी को तरस आ गया ..और वो सोची ...चलो ..बेचारी चिड़िया का मदद किया जाए ...और नदी निकल पडी ..आग बुझाने ..नदी को अपने तरफ आता देख ..आग डर गया ..और बोला ..अरे नदी ..मै अभी लाठी को जला कर आता हूँ ...आग को देख लाठी भी डर गया और वो बोला ..रुको ..मै अभी सांप को मारता हूँ ...लाठी देख ..सांप तेज़ी से राजा के तरफ भागा ..राजा को डंसने के लिए ....सांप को देख ..राजा ने बढ़ई को बुलवाया ...राजा के भय से ...बढ़ई तुरंत खूंटा को चीरने को तैयार हो गया ...बढ़ई को आता देख ...खूंटा बोला ..ए भाई ..हमको क्यों चिरोगे ...बस हमको उल्टा कर दो ...दाल का दाना खुद निकल जाएगा ...बढ़ई ने खूंटा को उल्टा किया और ..दाल का दाना बाहर निकल आया ..चिड़िया ..उसको अपने चोंच से पकड़ कर ...सबको धन्यवाद करके ...फुर्र्र से उड गयी ..:))

हम्मम्मम ....सो बच्चों और उनके माता - पिता  ...दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है ...बस ...एक हिम्मत और प्रण चाहिए :))

कहानी कैसा लगा ....कम्मेंट देंगे ..या फेसबुक पर लाईक करें ...:)) 

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, April 3, 2011

क्रिकेट जूनून है ....

कल रात मै दंग था ! हतप्रभ था ! बालकोनी से देखा - रात 'बारह' बजे - लोग सडकों पर् ! 'चिल्ला रहे थे' ! ऐसा वीकेंड कभी नहीं देखा ! जिस किसी ने भी इस् खुशी को हम सब को दिया - उनको शत शत 'नमन' ! 

हम एक गरीब देश थे ! 'खुशी' का इज़हार कभी सीखे ही नहीं ! टी वी पर् देखता था ! जर्मनी - इंग्लैण्ड में फूटबोंल मैच के बाद 'सडकों' पर् आया जाता है ! जोर जोर से चीखा जाता है - चिल्लाया जाता है ! हमें कभी मौका ही नहीं मिला की हम भी 'चीख - चिल्ला' दुनिया की इलीट क्लब में शामिल हो सकें ! 

सच पूछिए तो 1983 का वर्ल्ड कप जब भारत जीत गया तब 'हमको' पता चला था :( तब जा कर मैंने "खेल भारती' ( संपादक - डा० नरोत्तम पूरी ) और 'क्रिकेट सम्राट' - 'स्पोर्ट्स स्टार' जैसे पत्रिकाओं के मध्यम से 'खेल की दुनिया' को जाने ! "किर्ती आज़ाद' की पारी आज तक याद है - जवाहर लाल स्टेडियम में ! बाद में पता चला की - इनका पूरा नाम - 'किर्ती झा आज़ाद ' है :)) 

1985 में भी गावस्कर के नेतृत्व में "बेन्सन और हेजेज' ट्राफी जीते थे - ऑस्ट्रेलिया में ! एक एक मैच का गवाह हूँ ! कसम मेरे 'अटारी कलर टी वी' का ! रवि शास्त्री को "औडी" कार मिली थी ! फिर भी हिम्मत नहीं हुई थी - 'सडकों' पर् आकार "चीखूँ - चिल्लाऊँ" ! औडी तो बस टी वी में दिखा था :( आज कई दोस्तों के पास है - एक ने तो दो - दो रखी है ! हमउम्र है - दो चार साल ज्यादा ! 1985 से दीमाग में "औडी" घुसा हुआ होगा - आज पैसा हुआ तो एक को कौन पूछे - दो दो खरीद लिया :)) 

क्रिकेट जूनून है ! जिला स्कूल मुजफ्फरपुर में था - क्लास वालों ने 'कैप्टन' बनाने से मना कर दिया - तब हम क्लास के "मुकेश अम्बानी" हुआ करते थे ;) बेचारों को मुझे 'कप्तान' बनाना ही पड़ा ! नंबर पांच का बैट होता था - मेरी ही ऊँचाई का ! लिकोप्लास्त को साट के उसको कई वर्ष जीवित रखा ! पटना आया तो ज्यादा नहीं खेल पाया ..........तृष्णा को 'टी वी ' में देख तृप्त किया ! 

क्रिकेट खुदा है ! परबाबा के छोटे और चचेरे भाई थे - "छोटका बाबा" - संतोष रेडियो पर् दिन भर कमेंट्री सुनते थे  और उस जमाने में - रवि शास्त्री की धीमी पारी के सबसे बड़े आलोचक ! मेरी याद में ..मैंने उनको गाँव से बाहर कभी जाते नहीं देखा - पुत्र सभी अपने अपने 'कैरियर' में बहुत ऊँचाई पर् है - उनके साले साहब भी 'भारत के प्रमुख डाक्टर थे ! क्या जूनून था - पुरे स्टेडियम और खेल की कल्पना वो रेडियो पर् ही कर लेते थे ! दिन भर पान खाते और कमेंट्री सुनते थे ! 

हल्की याद है - बेदी की - प्रसन्ना की - चंद्रशेखर की ! बाबु जी अक्सर 'चंद्रशेखर' की बौलिंग की कहानी बताते ! हम भी उनकी बौलिंग बिना देखे - कल्पना कर लेते ! 'गावस्कर - कपिलदेव" पर् तो खुद भी कई बार दोस्तों से 'खून खराबा' कर चुके हैं :)) 

"कैरी पैकर" समय से कितना आगे थे ....आज वही सब "आई पी एल" में हो रहा है ! चैनल 9 से हमने 'प्रसारण' सीखा ! सुबह सुबह टी वी पर् ऑस्ट्रेलिया वाला खेल देखना और वहाँ के 'दर्शकों' को देखना ! एक एहसास था - हम उनके जैसे नहीं हैं ! ठण्ड के दिनों में - रजाई में दुबक कर 'मैच' देख लेना - बस जीत को स्कूल के दोस्तों तक इज़हार करना ! 

कल पुरस्कार समारोह में कई वर्षों बाद 'क्लाईव ल्योड़' दिखे ! उफ्फ्फ ...आज भी याद है ...उनके मैल्कम मार्शल ....जिनकी बहुत बड़ी तस्वीर मेरे कमरे में होती थी ! मालूम नहीं ..कितने लोगों ने उनको पहचाना ! 

पर् मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतिओं ने देश को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया ! इस् देश में 'अज़ीम प्रेम जी - नारायण मूर्ती' पैदा लिये ! "राजू - रजत गुप्ता - मोदी" भी पैदा लिये ! जी - राजा और निरा राडीया भी ! 

हम सभी में आत्मविश्वास आया - अब हमने भी सडकों पर् "चीखना - चिल्लाना" सीख लिया है ! क्या अम्बानी - क्या सोनिया - क्या हम - क्या तुम ! 

आगे क्या लिखूं ......अचानक से आज एक खालीपन है .....! 


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Wednesday, March 2, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा स्कूल अलुम्नी मीट - पार्ट 2 :))


 सुन्दरम( 85 )  - दिवाकर( 83 ) - रँजन - रँजन पांडे ( 85 )
 रँजन - डा० दिवाकर तेजस्वी - तपन झा 


रँजन - प्रकाश - दीपक 
 रँजन - दीपक - उज्जवल नारायण - श्री गौरी शंकर सिन्हा एवं अन्य 


सोलह फरवरी को 'टीम' विदा लिया और तय हुआ की 'इण्डिया गेट' पर् अठारह को मिलेगा ! हम भी हाँ में हाँ मिला दिए ! सत्रह को 'एनर - बैनर' बैठ के डिजाईन करवाए और ऑर्डर दे दिए - अठारह को देगा ! अठारह को शाम पांच बजे पहुंचे तो पता चला की - "लह.." मशीन खराब है ..एक दो घंटा लेट होगा ! इसी चक्कर में 'इण्डिया गेट' नहीं पहुँच पाया ! 

अठारह काफी देर रात 'जमशेदपुर' से प्रकाश का फोन आया की वो उन्नीस को रांची में एक मीटिंग अटैंड कर के शाम वाला फ्लाईट से दिल्ली पहुँच जायेगा और शाम साथ बजे मेरे यहाँ ! शनीवार दोपहर रांची से दीपक का फोन आया की - "जेतना के मुर्गी न ..ओतना के मसाला" ! फिर हम दोनों हंस दिए ! शाम पांच बजे - दीपक और प्रकाश दिल्ली लैंड कर गए - फोन से बात हुई और बोले की - वो अपने ससुराल से दस मिनट मिल जुल कर - आ रहे हैं ! आठ बजे के करीब वो लोग पहुँच गए ! इतनी खुशी की उनको रिसीव करने मै खाली पाँव ही निकल पड़ा - करीब दस ग्यारह साल बाद 'प्रकाश' से मिल रहा था ! "कोई बदलाव नहीं" - हम दोनों ने एक दूसरे को यही बोला :)) वो आज भी उतना ही मेहनती - और मै आज भी उतना आलसी :))

मैंने पूछा - नॉन वेज ?? वो दोनों भाई बोले - शनिवार को नहीं ! फिर पत्नी ने शुध् शाकाहारी भोजन बनाया - इसी बीच हम तीनो पैदल एक राउंड 'इंदिरापुरम' का चक्कर लगा लिये ! गप्प - गप्प - पुरानी यादें - कुछ नयी भी - कुछ खट्टे तो कुछ मीठे :))) दीपक अपने स्वभाव के विपरीत चुप था ;) रात तीन चार बजे तक गप्प चलता रहा ! फिर सुबह साथ बजे हम तीनो उठ गए :) फिर गप्प ....दस बजे 'नरेन्द्र जी' का फोन आया - मै निकल रहा हूँ - आप भी पहुंचिए - मेरे मुह से निकला .."लह....." 

ड्राइवर 'त्यागी' को बोला - रमेश वाला बी एम डब्लू - सीरीज पांच  निकाल लो - चमका दो - आज इसी गाड़ी से जायेंगे :)) दीपक खुश हो गया - उसे महंगी गाडीओं का शौक है - खुद भी 'रांची' में बढ़िया सा रखा है - पिछली दफा आया था तो बोला "औडी" खरीद दो - मैंने मना  कर दिया - 

हम तीनो बिलकुल हाई स्कूल के विद्यार्थी का मन लिये हुए - स्पोर्ट्स क्लब पहुँच गए ! एक - एक कर के लोग आते गए ! दिवाकर भैया का फोन आया - "लैंड" कर गया हूँ ..बस पहुँच ही रहा हूँ ! मजा आ गया ! खुशी इतनी हो रही थी - कुछ समझ में नहीं आ रहा था - क्या बोले और क्या करें :) 'पंकज तेतरवे' का गोल्ड फ्लेक एक पॉकेट बातों ही बैटन में खाली हो गया ! धीरे से 'नरेन्द्र जी' से पूछा - स्टेज कौन देख रहा है ? बोले विश्वप्रिय के बड़े भैया - 1975 के 'शिवप्रिय वर्मा' ..मेरे मुह से अनायास ही निकल पड़ा - "वाह....." ! थोड़ी देर में 'रँजन पाण्डेय ' भी पहुँच गए - हमने पूछा - 'रँजन ठाकुर ?? ' ( 82 बैच ) ..मुझे थोडा डर था - अगले दिन से चालू होने वाले "लोक सभा" के कारण - हो सकता है - कई अधिकारी नहीं भी आ सकें ...पर् ये ..क्या ...धीरे धीरे ..लाल बत्ती - ब्लू बत्ती - ऑटो - कैब - सभी लोग आने लगे - शम्भू अमिताभ भैया भी ! हर किसी का चेहरा - मुस्कुरा रहा था :)) एक अजीब सी खुशी थी ....अधिकतर "88 बैच" वाले ही नज़र आ रहे थे :)) कमलेश भैया , गौरी शंकर भैया ..कई लोग ..तब तक एक हाथ कंधा पर् टिका - पहचान रहे हो ? हा हा हा ..ये थे "विनय रँजन" भैया करीब आठ साल से हम दोनों इंटरनेट के माध्यम से जुड़े थे - पर् मिल पहली बार रहे थे ...मजा आ गया ! 

कई भैया लोग जो मुझसे इंटरनेट पर् परिचित थे ..पर् पहली दफा मुझसे मिल रहे थे - अधिकतर का यही " आप बढ़िया ..लिखते हैं " :)) अच्छा लग् रहा था ! तब तक कुछ अनाउंस हुआ - हम कुछ इधर उधर देखते की - देखे की - "दीपक पाटलिपुत्रा  स्टाईल में " सबसे आगे वाला सीट लूट लिया :)) 

एक एक कर के सभी सीनियर लोग बैच वाईज स्टेज पर् आने लगे ...उफ्फ़ शमा बंध गया ...शिक्षकों की याद आने लगी ..कई किस्से निकल कर आये .."पिटाई " के किस्से ...दीपक सबसे आगे बैठ कर ..मजा ले रहा था ..मै उसके पास पहुँच कर पूछा .."मुर्गी महंगी या मसाला ??" वो हंस दिया और बोला - "मुर्गी" :)) हा हा हा ! 

बहुत सीनियर लोगों की बातें ..यहाँ नहीं लिख सकता ..पर् 1983 और 1984 बैच जब आया तो ..मजा आ गया ...एक से बढ़ कर एक ..."जय हो " के गाने पर् पहले डांस हुआ ..सांस रुका ..फिर यादों का सिलसिला ...दिवाकर भैया बोले - क्या स्कूल था - जिस बेंच पर् शहर के मशहूर डाक्टर का बेटा बैठा  हो - उसी बेंच पर् उनके धोबी का भी बेटा - जिस बेंच पर् 'राज्यपाल के पुत्र बैठे हों - उसी बेंच पर् उनके ड्राईवर का भी पुत्र ' ..धन्य है वो शिक्षक गण ...जिनकी नज़र में सभी बराबर ..पिटाई हो रही हो तो सबको एक बराबर ..' क्लास में , स्कूल में ..बोर्ड में ...फर्स्ट करना आपकी पहचान हो सकती है ...पर् कैम्पस के अंदर सब बराबर ! 

थोड़ी देर ही पहले ..इसी स्टेज से दिवाकर भैया के चाचा ..पी के शरण भैया एक कहानी सुना कर गए थे ..:)) हंसते हंसते लोट पोट हो गए थे हम सभी ...तपन भैया और आनंद द्विवेदी भैया  ..ने बहुत ही बढ़िया बात बोली ..कुछ करना चाहिए स्कूल के लिये जिससे हम स्कूल के गौरव को दुबारा स्थापित कर सकें !

अब 1984 बैच के "राज दुबे" भैया शुरू हो गए ...एकदम टिपिकल "पाटलिपुत्र स्कूल स्टाईल" में :) फिर स्कूल के लिये पचास हज़ार का डोनेशन भी अनाउंस किया ! 

अब आये ..रँजन पांडे भैया ...दिल्ली विश्वविद्यालय से अगर आप पढ़े हैं तो उनके नाम से परिचित होंगे :) मुझसे वो व्यक्तिगत रूप से कुछ कहानी बता चुके थे ...स्टेज पर् कुछ और कहानी सुनाये :)) ये उन लोगों में से थे - जिनके खानदान के कई लोग इस स्कूल से पढ़ चुके हैं ..सो एक भावनात्मक लगाव ! 

हर एक बैच और हर एक भैया लोग को स्टेज पर् "गुलदस्ता" दिया जा रहा था ...वो क्षण बड़ा ही भावुक होता था ..! एक दर्द और एक खुशी ..हर किसी के चहरे पर् ...बिहार बोर्ड में "नेतरहाट विद्यालय" को टक्कर देने वाला "सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र विद्यालय" का नई दिल्ली में पहला संगठीत पूर्व छात्रों का मिलन ..इससे भी बड़ी कोई खुशी  हो सकती है ..भला ? 

इसी बीच विश्व प्रसिध्ध कार्टूनिस्ट "पवन" भी आ गए ....यहाँ वो अन्यों की तरह एक सामन्य अलुम्नी की तरह .. 

फिर हमारा बैच आया :) मैंने कुछ पहले से सोच नहीं रखा था ..बस यही पता था की ..अंत में 'नरेन्द्र जी के साथ धन्यवाद बोलना है " ..पर् मैंने भी कुछ बोला ....बैच के साथ ..जब सब बोल लिये ...मै थोडा "लंबा" बोल दिया :)) 

बाद में दिवाकर भैया बोले - गजब के ओरेटर हो और ......फिर वो , तपन भैया ..आनंद भैया ..राकेश भैया ..."कुछ मदद हम लोग भी करना चाहते हैं  " ...जिस प्रेम और हक से वो लोग बोले ..आँखों में आंसू आ गए ...नहीं भैया ..."कल शाम ही ...बहुत पैसा दुबे भैया , दिनेश भैया , रँजन भैया , उज्जवल जी इत्यादी का टीम दे चूका है ..." अब आगे जरुरत होगी तो खुद बोलेंगे ...! 

फिर आया 88 batch Onwards - जम के डांस किया सब ! "कार्टूनिस्ट" पवन ने जी भर नाचा :)) 

समय बहुत तेज़ी से खतम हो रहा था .....अंत में हम सभी स्टेज पर् कूद गए :) आप सभी ने फेसबुक पर् सारी तस्वीर देखी होगी .....

ऐसा भावुक माहौल हो गया की ....लौटते वक्त ..कोई किसी से नहीं मिला ..मालूम नहीं ...खुद को रोक पायें या नहीं ...

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कई दिन तक हैन्ग्वोभर रहा ..यही सोचता रहा ...एक स्कूल ..जिसके पास बिहार के अन्य स्कूलों की तरह अपना बहुत बड़ा कैम्पस नहीं ..सिमित  संसाधन ..फिर भी कैसे वो स्कूल "नेतरहाट विद्यालय" को टक्कर देता .होगा ....कैसे इसके विद्यार्थी ..भारत वर्ष में फैले हुए हैं ..1967 पास आउट से लेकर 1991 तक के पास आउट तक की बातों को सुन कर लगा ....यह योगदान उन शिक्षकों का है ...खासकर 1972 के पहले इसके प्रिंसिपल "अवधेश बाबु " और फिर "रामाशीष बाबु" का .....

देखिये ....बिहार में "नेतरहाट विद्यालय" के बाद मैंने किसी अन्य विद्यालय को कभी तरजीह नहीं दी ...पटना में कुछ और अन्य स्कूल हैं ..पर् वो समाज के एक खास वर्ग के लिये ही हैं ...वहाँ के अधिकतर विद्यार्थी में वो लचीलापन नहीं है की ..वो सब जगह फिट कर सकें ....! एक घटना याद है ....साईंस कॉलेज की चाहरदीवारी ..एक लाईन से पचास ...मेरे स्कूल वाले बैठे हुए हैं ..क्या मजाल की कोई कुछ बोल दे .....रांची मेसरा में एडमिशन के लिये ...सुबह वाली बस में तीस सीट ..सभी के सभी ...एक ही स्कूल के ....नालंदा मेडिकल कॉलेज ..ओल्ड कैम्पस हॉस्टल ...डा० प्रवीण गरज रहे हैं ....सभी चुप चाप सुन रहे हैं .....दिवाकर भैया ..को गोल्ड मेडल मिल रहा है .....आई आई टी - कानपूर में चुनाव ....कौशल अजिताभ ...गरज रहे हैं ....आई आई टी - जी ई ई  में प्रथम सौ का तगमा पहले से ही है - क्या मजाल की कोई कुछ बोल सके ....विश्व प्रसिध्ध ...आई पी एस .."अभय   आनन्द " - इस स्कूल के शिक्षकों को साष्टांग दंडवत करते हैं .....

सुब्रतो कप - फूटबाल ...भारतवर्ष में "सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र हाई स्कूल" का नाम ....क्या लिखूं और और क्या न लिखूं ....स्कूल बिल्डिंग और कैम्पस से नहीं होता है .....विद्याथी और शिक्षक ...और अभिभावक का समर्थन ....

फिर कभी यादों को याद किया जायेगा ........


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Wednesday, February 23, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा मैट्रीक परीक्षा

बिहार में छठ पूजा के बाद - सबसे महत्वपूर्ण पर्व त्यौहार होता है - घर के लडके - लडकी का मैट्रीक परीक्षा ! मत पूछिए ! मैट्रीक परीक्षार्थी को किसी 'देवी - देवता' से कम नहीं वैल्यू नहीं होता है :)) 

दसवां में था तब - राजेंद्र नगर स्टेडियम में क्रिकेट मैच हुआ था - मार्च के महीना में - सब यार दोस्त लोग तीन चार दिन देखे थे ! उस वक्त हमसे ठीक सीनियर बैच का परीक्षा चल रहा था ! स्टेडियम से लौटते वक्त पुर रास्ता जाम रहता था ! सीनियर बैच का उतरा हुआ चेहरा देख दिल "ढक ढक" करे लगता :( 

दसवां के पहले मेरे यहाँ एक नियम था - छमाही - नौमही - वार्षिक परीक्षा के ठीक तीन दिन पहले - बाबु जी मेरा "रीन्युअल" करते - बहुत ही हल्का 'नेपाली' चप्पल होता था - बहुत एक्टिंग करना पड़ता - इस चप्पल से बिलकुल ही चोट नहीं लगता था - पर् एक्टिग ऐसा की जैसे की बहुत मार पड़ रहा हो ;) फिर हम कुल तीन दिन पढते और आराम से परीक्षा पास ;) 

अब मैट्रीक का परीक्षा आ गया था - सितम्बर -ओक्टुबर में "सेंटअप" का परीक्षा हो गया ! हम लोग का स्कूल जाना बंद ! "भारती भवन " का गोल्डन गाईड खरीदा गया ! गोविन्द मित्र रोड से खरीद - साईकील के पीछे 'चांप'  के - ऐसा लगता जैसे आधा परीक्षा पास कर गए ;) "गोल्डन गाईड" को अगरबत्ती दिखाया गया ! कभी वो टेबल पर् तो कभी वो बेड में तकिया के बगल में ! दोस्त यार के यहाँ गया तो देखा की उसको पन्द्रह भाग में विभाजीत कर दिया है - हम भी कर दिए ! अब इस गोल्डन गाईड का पन्द्रह टुकड़े हो गए - रोज एक "भुला" जाता - सारा गुस्सा माँ पर् निकलता :) 

हमको भूगोल / इतिहास / अर्थशास्त्र / नागरीक शास्त्र एकदम से मुह जबानी याद हो गया था ! शाम को बाबु जी आते तो बोलते की - हिसाब बनाये हो ? :( सब लोग कहने लगा की - सबसे ज्यादा "नंबर" गणित में उठता है - अलजेब्रा छोड़ सब ठीक था - थोडा मेहनत किया तो वो भी ठीक हो गया ! दिक्कत होती थी - केमिस्ट्री और बायलोजी में :( बकवास था ये सब ! डा ० वचन देव कुमार का "वृहत निबंध भाष्कर' तो खैर जुबान पर् ही था ! अंग्रेज़ी जन्मजात ही कमज़ोर था - इसलिए वहाँ तो बस "पास" ही करने का ओबजेकटीव था ! नौवां से ही - स्कूल के एक दो शिक्षक के यहाँ टीउशन का असफल प्रयोग कर चूका था - सो अब किसी के यहाँ जाने का सवाल ही पैदा नहीं था ! 

खैर ...एक दो और गाईड ख़रीदा गया ! सभी विषय का अलग से "भारती भवन" का किताब ! अर्थशास्त्र में "मांग की लोच " इत्यादी चैप्टर तो आज तक याद है :)) 

खैर ...धीरे धीरे ..प्रेशर बढ़ने लगा ...आज भी याद है ..गाँव से बाबा किसी मुंशी मेजर के हाथ कुछ चावल - गेहूं भेजे थे - और वो पटना डेरा पहुँच चाय की चुस्की के बीच - मेरी तरफ देखते हुए - बोला - "बउआ ..के अमकी "मैट्रीक" बा ..नु " ! मन तो किया की ..दे दू हाथ ! फूफा - मामा - मामी - चाची - चाचा - कोई भी आता तो "उदहारण" देता - फलाना बाबु के बेटा / बेटी को पिछला साल 'इतना' नंबर आया था - ऐसी बातें सुन - हार्टबीट बढ़ जाता ! फिर सब लोग गिनाने लगते - "इस बार कौन कौन मैट्रीक परीक्षा दे रहा है " जिससे मै आज तक नहीं मिला - वो भी मुझे दुश्मन लगता ! कोई चचेरा भाई - मोतिहारी में दे रहा है तो कोई फुफेरी बहन - सिवान में ! उफ्फ्फ्फ़ ....इतना प्रेशर ! 

रोज टाईम टेबल बनने लगा ! क्या टाईम टेबल होता था ;) बिहार सरकार की तरह - सब काम कागज़ में ही ;) धीरे धीरे ठंडा का मौसम आने लगा ! कहीं भी आना जाना बंद हो गया ! बाबु जी को सब लोग कहता - "आपके बेटा - का दीमाग तेज है - बढ़िया से पास कर जायेगा" ! अच्छा लगता था ! पर् ...और बहुत सारी दिक्कतें थी ...:(  

सुबह उठ के नहा धो के - छत पर् किताब कॉपी - गाईड लेकर निकल जाता ! साथ में 'एक मनोहर कहानियां या कोई हिन्दी उपन्यास ' ! गाईड के बीच उपन्यास को रख कर - पढ़ने में जो थ्रील आता ..वो गजब का था :)) फिर 'जाड़ा के दिन' में छत का और भी मजा था ! :)) कहीं से उपन्यास वाली बात 'माता श्री' तक पहुँच गयी ! 'माता श्री ' से 'पिता जी' तक :( तय हुआ - एक मास्टर रखा जायेगा - जो मुझे पढ़ाएगा नहीं - बल्की सिर्फ मेरे साथ दो तीन घंटा बैठेगा ! मास्टर साहब आये - एक दो महीना बैठे - फिर मुझ द्वारा भगा दिए गए ;) लेकिन एक फायदा हुआ - गणित के सवाल रोज बनाने से गणित बहुत मजबूत हो गया ! अलजेब्रा भी मजबूत हो गया - ! 

अब हम लोग दूसरी जगह 'सरकारी आवास' में आ गए - यहाँ भी सभी लोग बाबु जी के नौकरी - पेशा वाले ही लोग थे - माहौल अजीब था - किसी का पुत्र दून में तो किसी का वेलहम में - इन सभी लोगों का जीवन का उद्येश ही यही था - बच्चों को पढ़ाना - अब वो सब कितना पढ़े - हमको नहीं पता - पर् नसीब से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिला ! खैर ...

यहाँ के लिये मै अन्जान था - बस बालकोनी से मुस्कुराहटों को देख मूड फ्रेश कर वापस किताबों में घुस जाना ! तैयारी ठीक थी - मै संतुष्ट था ! अंग्रेज़ी - बायलोजी - केमिस्ट्री छोड़ सभी विषय बहुत परफेक्ट थे - मैंने किसी विषय को रटा नहीं था - आज भी 'रटने' से नफरत है ! खैर ...बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती - ऐडमीट कार्ड मिलने का दिन आ गया - स्कूल गया - कई महीनो बाद दोस्तों से मुलाकात हुई - 

स्कुल में पता चला की - सेंटर दो जगहों पर् पड़ा है :( पहले दो सेक्शन "जालान" और हम दो सेक्शन "एफ एन एस अकेडमी " ! मन दुखी हो गया - बहुत दुखी ! "जालान" में सुना था - उसका बड़ा गेट बंद कर के - अनदर ...सब कुछ का छूट था ;)  बहुत करीबी दोस्त था - दीपक अगरवाल - बात तय हुआ - परीक्षा के दिन - साईकल  से मै उसके घर जाऊंगा - फिर वहाँ से हम दोनों साथ में ! 

परीक्षा के दिन 'जियोमेट्री बॉक्स' लेकर ..एक हैट पहन कर ..साईकील से दीपक अगरवाल के यहाँ निकल पड़ा ..वहाँ पहुंचा तो पता चला की ..दीपक अपने मामा - मामी - फुआ - बाबु जी - माँ - बड़ा भाई इत्यादे के साथ निकल चूका है :(  अजीब लगा ..इतने लोग ..क्या करेंगे ?? रास्ते में साईकील के कैरियर से 'जियोमेट्री बॉक्स ' गिर गया ..देखा तो 'एडमीट कार्ड' गायब ....हाँफते - हुन्फाते ..साईकील को सौ पर् चलाते ..घर पहुंचा तो देखा की ..बाबु जी बालकोनी में मेरा एडमीट कार्ड हाथ में लिये खडा है ...जबरदस्त ढंग से दांत पीस रहे थे ... मुझे नीचे रुकने को बोले और खुद नीचे आये ...लगा की ..आज "जतरा" बाबु जी के हाथ से ही बनेगा ....फिर पूछे ..सेंटर कहाँ पड़ा है - हम बोले ...गुलजारबाग ...! हम अपना "हैट" अडजस्ट किये ..साईकील का मुह वापस किये  ..पैडल पर् एक पाँव मारे ..और चल दिए ...! 

अजीब जतरा था ...रास्ता भर साईंकील का "चेन" उतर जा रहा था :( किसी तरह पहुंचे ...मेरे मुह से निकला ..."लह" ....यहाँ तो "मेला लगा हुआ है " ! हा हा हा ....सेंटर पर् सिर्फ मै ही "अकेला" था ..वरना बाकी कैंडीडेट ..पुरा बारात ! अपने परीक्षा कक्ष में गया ....सबसे आगे सीट ! पीछे "राजेशवा" था ! फिएट से उसका  पुरा  खानदान लदा के आया था ! अब देखिये ...वो हमसे पूछता है ...."पुरा पढ़ के आये हो ना .." हा हा हा हा हा ....प्रश्नपत्र मिला और मै सर झुका के लिखने लगा ....एक घंटा ..शांती पूर्वक ...फिर पीछे के जंगला से एक आवाज़ आई - राजेश का बड़ा भाई था - "ई ..चौथा का आन्सर है" - ढेला में एक कागज़ लपेटा हुआ - राजेश के पास आया ...धब्ब...! राजेशवा जो अब तक मेरा देख लिख रहा था ....अब वो परजीवी नहीं रहा ...वादा किया .."लिख कर ..मुझे भी देगा " ....पहला सिटिंग खत्म हुआ ! टिफिन के लिये मै अपने साथ "शिवानी" के उपन्यास लाया था ..ख़ाक पढता था :(  हल्ला हुआ - सब क्योश्चन .."एटम बम्ब" से लड़ गया ...अब सेंटर के ठीक सामने "एटम बम्ब" बिक रहा था ...मै भी एक खरीद लिया ..बिलकुल सील किया हुआ :) खोला और एक नज़र पढ़ा ..बकवास ! 

हम हर रोज उदास हो जाता था ...सभी दोस्त के साथ पुरे खानदान की फ़ौज होती थी ! टिफिन में हम अकेले किसी कोना में बैठे होते थे ...इसी टेंशन में ...दीपक अगरवाल' को बीच चलते हुए परीक्षा में "धो" दिए ....उसको भी कुछ समझ में नहीं आया ..वो मुझसे क्यों धुलाया ...हा हा हा ! 

इसी तरह एक एक दिन बितता गया ....अंग्रेज़ी भी पास होने लायक लिख दिया ..गणित- अर्थशास्त्र - भूगोल  -  इतिहास -  और संस्कृत सबसे बढ़िया ...बहुत ही नकरात्मक हूँ ..फिर भी खुद के लिये बहुत अच्छे नंबर सोच रखे थे ....अंतिम दिन ..चपरासी को दस रुपैया देकर ..कॉपी कहाँ गया है ..पता करवा लिया ...पर् जहाँ कोई मेरे साथ "सेंटर" पर् जाने को नहीं था ...कोई "कॉपी" के पीछे क्यों भागता ..हा हा हा .....

अंतिम दिन परीक्षा देकर ..कहीं नहीं गया ...चुप चाप चादर तान सो गया ...कितने घंटे सोया ..खुद नहीं पता ...ऐसा लग् रहा था ..वर्षों से नहीं सोया हूँ .....

आज पटना वाले अखबार में पढ़ा की - कल से "बिहार मैट्रीक परीक्षा " शुरू हो रहा है ..सभी विद्यार्थीओं को शुभकामनाएं ..... ज्यादा क्या कहूँ ..मेहनत कीजिए :))

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, February 22, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा स्कूल अलुम्नी मीट - पार्ट १ :))

भैया लोग ( सीनियर ) 
भयवा ( बैचमेट )
भाई लोग ( जूनियर ) 

हैंगओवर क्या होता है ? वो आज हमको बुझा रहा है ! परसों  मेरे स्कूल का अलुम्नी मीट था - नई दिल्ली में ! क्या कहूँ ..और क्या न कहूँ ...यादों की बारात अपने आप में एक याद बन् के रह गयी ! बिना शराब पिए हुए - हैंगओभर ...
चलिए कुछ पृष्ठभूमी बताता हूँ ...( भाषा पर् गौर मत फरमाईयेगा ) 

सन 2005 में 'नरेन्द्र जी' ( 88 बैच ) मिलने के लिये आये ! उनदिनो मै सेटर बासठ - नॉएडा में रहता था ! उनदिनो घर के लोगों के बीमार रहने के कारण करीब २ साल से परेशान था ! बात आई गई हो गयी ! इस बीच पटना में स्कूल मीट होता रहा - पिछला साल दिसंबर में जाने का बहुत मन था - पर् 'नौकरी' के कारण नहीं जा सका ! खैर .....

इसी बीच 'फेसबुक' पर् नरेन्द्र जी अचानक प्रकट हुए और वो स्कूल अलुम्नी मीट - दिसंबर - पटना गए ही नहीं अपने तरफ से वहाँ "कनट्रीब्यूट" भी किया और हम दोनों के बीच बात हुआ की - हम लोग किसी शनीवार मिलेंगे ! एक शनीवार वो आये - जनवरी में - हम दोनों "कुछ यहाँ भी करना है" पर् बात कर ही रहे थे की उनके बैच के दो और लोग आ गए - सुजय जी ( लोकसभा पदाधिकारी ) और आनंद वर्धन ( राष्ट्रीय सहारा ) ! बस एक छोटा सा अलुम्नी मीट हो गया :))फिर अशोक अगरवाल भैया ( 1979 )  दिल्ली में थे तो हमको और नरेन्द्र जी को बुलाहट  हुआ और जल्द से जल्द नई दिल्ली मीट पर् आगे बढ़ने का बात हुआ - वहाँ उनके बैच के भारतीय विदेश सेवा के 'शम्भू अमिताभ' भैया , आई आर् एस दीप शेखर भैया , बिहार निवास में इंजिनीयर - पद्म कान्त झा भैया , एल आई सी के सुनील भैया इत्यादी से मुलाकात हुई ! फिर निर्णय हुआ की - अब बस स्कूल अलुम्नी मीट करवा देना है ! कुछ जगहों का वो सब निर्णय भी कर लिये ! मेरे लिये तो आज भी 'दिल्ली' अन्जान ही है - नरेन्द्र जी से अगले दिन से बात होने लगी - लगभग हर शनीवार - इतवार वो जगह खोजने लगे ! अंत में ..स्कूल के ही और नरेन्द्र जी की तरह ही सुप्रीम कोर्ट के वकील - "रँजन पांडे " भैया ( 1985 ) ने स्पोर्ट्स क्लब बुक करवा दिया - नरेन्द्र जी का फोन आया - जगह बुक हो गया - अब "रेस" हो जाईये :)) अब रेस होना था - कैसे रेस हुआ जाए :( मेरे जैसा आदमी के लिये भारी टेंशन :(  हम दोनों लगभग हर शनीवार मिलने लगे ...

Gardenia India Limited  वाले बिहार के ही हैं और मेरे जान पहचान के हैं - उन्होंने बोल रखा था - "रँजन जी , आपसे पुराना परिचय है - जब कभी भी आपको बिहार से जुड़े किसी भी कार्यक्रम को करना है - संकोच नहीं कीजियेगा - जितना संभव हो - मै मदद करूँगा" ! फिर भी मेरे लिये ये कष्टदायक था ! एक दिन उनलोगों से मिला और बोल दिया ! फिर एक दिन उनको फोन किया - वो बोले की आप मेरे गाज़ियाबाद वाले ओफ्फिस चले जाईये - एकाऊँन्टेंट को बोल दिया हूँ ! हम और नरेन्द्र जी वहाँ पहुंचे - मै अंदर गया - थोडा संकुचाये हुए - कुछ बोला -  एकाऊँन्टेंट ने दे दिया और हम नरेन्द्र जी को ! हम दोनों कनफीडेंस में आ गए ! अगले दिन 'रँजन पांडे' भैया भी कुछ नरेन्द्र जी को दे दिए ! नरेन्द्र जी ने करीब एक सौ बीस लोगों के लिये - क्लब वाले को पैसा जमा करवा दिए ! डेट फिक्स हो गया - बीस फरवरी - रविवार ! 

अब हम लोग टेकनौलोजी का प्रयोग शुरू किये ! इसी बीच नीरज आनंद भी जुड गए - वो नरेन्द्र जी के ही बैच के  हैं ! नरेन्द्र जी को अपने बैच , दुबे भैया , रँजन पांडे भैया पर् पूरा  विश्वास - हर बार वो कहते - ऋतुराज जी , घबराईये मत ! इस बीच मेरी बात हुई - रँजन पांडे भैया से - बोले ...तुम्हारा ब्लॉग तो पढ़ लिया - बढ़िया लिखते  हो ..मै मुंबई निकल रहा हूँ ...तुम और नरेन्द्र देख लेना ..."लह" ...मेरे मुह से पटना स्टाईल में निकल गया ..हा हा हा 

कुछ लोगों का पता / फोन पटना से दीपक जैसवाल भैया और संजय भैया से मिला ..संजय भैया हर दो दिन पर् एक दो नंबर  भेज रहे थे ...नरेन्द्र जी अपना डायरी में नोट कर रहे थे ..इधर हम भी ...मेरे पास पचास लोग का डाटा तैयार हो गया ..नरेन्द्र जी के पास भी ..दोनों को मर्ज किया गया ..संख्या करीब डेढ़ सौ पहुँचने लगी ...अब काम होना था ..सबको "फोन " करना ..एक दिन नरेन्द्र जी सुप्रीम कोर्ट से ही मेरे पास आ गये ..हम दोनों बैठ कर एक एक कर के बहुत लोगों को फोन किये ....इस बीच जब नरेन्द्र जी को फुर्सत मिलता ..वो लोगों से बात करते ...एक दिन हम पूछे ...आपके बैच के उज्जवल जी ?? जबाब आया - दुबई ..हम बोले .."लह" ...हा हा हा ...
उनके बैच का ही और मेरा काफी करीबी दोस्त - प्रकाश जो टॉपर भी था और अब बिजिनेस मैन - अफ्रीका में दो स्टील प्लांट खरीदा है - बोला मुझे भी अफ्रीका दौरा पर् निकलना है ..फिर मेरे मुह से निकला ...."लह" ....हा हा हा ...

पर् नरेन्द्र जी अति आशावादी ...हम उम्र ही हैं ..एक दिन हमदोनो ..भर पेट यहीं इंदिरापुरम में "चिकेन चंगेज़ी" खाए ...थोडा टेंशन कम हुआ ! 

हम भी अपने ढेर सारे बैचमेट को जानते थे - खबर कर दिया गया - नरेन्द्र जी को हम साफ़ साफ़ बोल दिए - बैचमेट को "निहोरा" नहीं करने जायेंगे - सीनियर - जूनियर के 'गोर' भी पड़ लेंगे ....कौन हम अपना बेटा का "तिलक" कर रहे हैं ...

इस बीच - वरिष्ठ अधिकारी गण को फोन करने का जिम्मा मिला - सुजय जी को ! वो एक राऊंड  सबको खबर कर दिए - जितना वो जानते थे - मीडिया का  जिम्मा मिला- "आनंद वर्धन" जी को  ! नीरज आनंद बाबु - कूदने लगे - म्यूजिक रहना चाहिए ...हम लोग बोले - पाटलिपुत्रा स्टाईल में - कर भयवा ..जे करेला हउ ...वो खुद बोले  किसी भी कीमत पर् - "शीला - मुन्नी" नहीं रहेगी :) 

नरेन्द्र जी से लगभग रोज बात होते रही - भोजन 'नान वेज' और "लिकर"  इत्यादी बिलकुल ही नहीं क्योंकि डर था - सीनियर लोग 'लिकर' के बाद 'एन डी ए से लेकर रविन्द्र बालिका' घूमने लगते ...हा हा हा हा ....

फिर ...हुआ की 'एनर - बैनर' इत्यादी ..जिम्मा हम उठा लिये ...फिर हम लोग सोलह तारिख को एक बार फिर बैठे - सभी लोग मेरे ही डेरा में आ गए -नरेन्द्र जी और  नीरज आनंद जी और हम शुरू हो गए फिर से सभी को एक एक कर के फोन करना ...थोड़ी देर में सुजय और आनंद वर्धन भी आ गए ....थोड़ी देर के लिये ऐसा लगा की ..जैसे कॉल सेंटर में बैठे हैं ....उसी दिन निर्णय हो गया की ...प्रती व्यक्ती पांच सौ और एन सी आर् से बाहर वालों से कुछ नहीं ...

धकाधक बाहर से कन्फर्मेशन आने लगा ..विजय रँजन भैया ( 85 ) मुंबई से ....दिवाकर तेजस्वी भैया और उनके बैच के राकेश दुबे और आनंद द्विवेदी पटना से ...टाटा से प्रकाश ..रांची से दीपक ...पटना से विश्व प्रसिध्ध कार्टूनिस्ट - पवन और दीपक जयसवाल भैया तो एक दम से रोज खुद नगाडा पीट रहे थे :) 

अगला पार्ट का इंतज़ार कीजिए ;) ..............

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, February 6, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा स्कूल

हम कितना स्कूल में पढ़े - ये खुद हमको नहीं पता है :(  कभी हम स्कूल को रिजेक्ट किये तो कभी स्कूल हमको रिजेक्ट किया ;)  खैर , सातवीं क्लास मैंने अपने खानदानी स्कूल  "जिला स्कूल - मुजफ्फरपुर" से पास किया ! ये  स्कूल कई मायनों में मेरे परिवार के लिये महतवपूर्ण है - परबाबा से लेकर मुझ तक - चार पीढ़ी इस स्कूल में पढ़े  और इसके ठीक बगल में 'चैपमैन गर्ल्स स्कूल' था जिसमे फुआ दादी और फुआ तीनो बहन ! तीन खूब बड़े बड़े मैदान , अंग्रेजों के द्वारा बनवाया हुआ विशाल स्कूल , स्कूल के अंदर ही शिक्षकों का बड़ा बड़ा क्वार्टर ..क्या नहीं था ! सबसे विशेष यह था की - वहाँ के प्रिंसिपल 'जयदेव झा' ! वो बाबु जी  को पढ़ा चुके थे - अब मै उनका विद्यार्थी था ! न जाने कितने ऐसे शिक्षक थे - जो बाबु जी सभी भाईओं को पढ़ा चुके थे और अब मै उन सब शिक्षकों का विद्यार्थी था ! स्नेह मिलता ! कई किस्से हैं ..कभी बाद में सुनाऊँगा :)) 

 अभी सातवीं का  वार्षिक परीक्षा देने ही वाला था की बाबु जी का ट्रांसफर 'पटना' हो गया ! हम मुजफ्फरपुर में ही रुक गए - फिर टी सी लेकर  पटना आ गए ! हम सभी उन दिनों - नाना जी के साथ 'सलीम अहरा - गली नंबर  एक " ( उमा टाकीज के ठीक पीछे ) रहते थे ! पटना हम लोगों के लिये किसी भी विदेश से कम नहीं था ! बड़ा और लगभग सौ साल पुराना मकान था ! खूब चौडा चौड़ा बरामदा ! मामू जान लोगों के पीछे - पीछे ही समय कटता था ! अब मेरा 'एडमिशन' कहाँ हो - यह नाना जी का हेडक था ;) नाना जी कहीं से किसी से "चिठ्ठी" लिखवा कर लाये - फिर एक दिन मै पहुँच गया - " सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र हाई स्कूल " , कदम कुआं ! जहाँ मै भव्य 'जिला स्कूल' से आया था वहीँ ये स्कूल का कैम्पस छोटा था ! मन में अभी भी 'नेतरहाट' था - एक क्लास जूनियर ही सही - वहीँ निकल जाना चाहिए ! बहुत लोग बोले - बिहार बोर्ड में "नेतरहाट" के बाद "सर गणेश दत्त पाटलीपुत्र " ही आता है ! फलाना बाबु का बेटा - चिलाना बाबु का पोता - तरह तरह के उदाहरण दिए गए ! खैर 'आठवीं' में एक सेक्शन में जगह मिल गया ! 

पहला दिन स्कूल जाने के लिये 'रिक्शा का भाड़ा' मिला ! हम भी रिक्शा खोज उस पर् बैठ गए ! शाम को लौटे तो पता चला की पड़ोस में रहने वाले के पुत्र महोदय भी मेरे क्लास लेकिन दूसरे सेक्शन में हैं - कल से उन सब के साथ ही जाना है ! नाना जी के पड़ोसी थे - पटना / बिहार के शराब के सबसे बड़े विक्रेता 'शालीग्राम प्रसाद' ! बहुत पैसा पर् हम सभी का गजब का इज्जत ! अगले दिन से "बबलू" के साथ जाने लगा ! एक नियम था - मकान के कैम्पस से निकल कर रोड पर्  खडा होना - फिर देखता की उधर से कई लडके आ रहे हैं - फिर एक झुण्ड बन् गया ...और झुण्ड चल दिया ..जगत नारायण रोड :)) रास्ता में 'जन संपर्क विभाग' का एक ऑफिस था  - जहाँ मै थोड़ी देर के लिये 'हिन्दी अखबार' पढ़ने के लिये रुकता था ...हाल में वहाँ गया था - कुछ नहीं था :( "बबलू " चिल्लाता - अखबार पढता है ..हुंह ..नेता बनना है ..का ?? :))

रिक्शा की जगह - पैदल जाने में मजा आने लगा ! रास्ता भर तरह - तरह 'बहस' और स्कूल पहुँचते सब अपने अपने क्लास में ! मेरे बेंच पर् थे - मृत्युंजय कुमार  , दीपक अगरवाल , एक था कोचर और चौथा था - एक वर्मा - नाम भूल रहा हूँ :( श्रीकांत बाबु क्लास शिक्षक थे ! यहाँ फीस का जमाना नहीं था - पर् जो जितना दिन ऐबसेंट रहता - उतना दिन का - प्रती दिन शायद दस पैसा के हिसाब से जमा करना होता था ! पहले ही महीने - श्रीकान्त बाबु ने मुझे यह अवसर दिया की मै ही वो पैसा सर के बगल में बैठ कर जमा करूँ - यह बात उन विद्यार्थीओं को नहीं पचा जो मुझसे पहले से इस स्कूल में थे ! अगले महीने से मै दरकिनार कर दिया गया :( 

खैर ..दो तीन महीना के बाद ही हम लोग 'डोक्टोर्स कॉलोनी ' कंकडबाग आ गए !क्या मजाल की कोई  दूसरा स्कूल वाला कुछ बोल दे ..मेरे मकान में ही 'आनंद मोहन' भैया रहते थे - गजब का स्नेह ! ठीक सामने - बलदेव बाबु का मकान था - जो उन  दिनों वाईस प्रिंसिपल होते थे ! शाम को उनके यहाँ मेरे बैच के कई लडके पढ़ने आते ! उनका खुद का बहुत ही बड़ा मकान था !

अब कंकडबाग से स्कुल जाने के लिये 'हीरो' का नया साईकील खरीदाया ...पहला दिन साईकील से स्कुल गए ...कोई घंटी चुरा लिया :( दोस्तों की जिद से ..अब हम सभी पैदल जाने लगे ! सचिवालय कॉलोनी से मृत्युंजय , पत्रकार नगर से प्रमोद और भी एक दो क्लास जूनियर सब आने लगे ...हम लोग 'राजेंद्र नगर' गुमटी पार कर के          जाने लगे ..तब 'राजेंद्र नगर ओवरब्रिज' बन् रहा था ! वहाँ नीचे ....जुआ वाला सब ठेला पर् जुआ दिखाता ...ताश के तीन पत्ते का हेर फेर ...कई दोस्त जिनको लंच के नाम पर् कुछ पैसा घर से मिलता था ..वो रास्ते में ही इस 'जुआ' में गंवा देते ...हा हा हा हा हा ! हम सब उसका हाथ पकड़ के खिंच के वापस ले जाते ...वैशाली सिनेमा के ठीक सामने से होते हुए ..शेखर सुमन के घर होते हुए ...लोहानीपुर से एक पतली गली से होते हुए स्कुल ....लोहानीपुर पहुंचते ही हम सब ठिठक जाते ....कंकडबाग वाला लड़का सब एक दम से सावधान की मुद्रा में ! मेरे क्लास में 'इन्द्रजीत - दिग्विजय' ..एक से एक हीरो ! अब मालूम सब कहाँ हैं :(

घींच घांच के आठवीं पास किया ! नौवीं में बद्री बाबु क्लास टीचर थे - अंग्रेज़ी पढ़ाते - सैमसंग एंड डेलीला ....डी डी राय ..जो पुरे पटना के सबसे मशहूर शिक्षक थे - वो गणित पढ़ाते - एक दिन 'दिग्विजय' हत्थे चढ गया - हो गया धुनाई .....हा हा हा हा ....महिला शिक्षक बहुत ही कम ...! एक दू नेता टाईप शिक्षक भी ! प्रिंसिपल थे - रामाशीष बाबु - जबरदस्त - भारी भरकम शारीर - अपने कमरे से अगर निकल गए तो - फिर क्या - जो जहाँ है - वो वहीँ रुक गया ! पर् उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली - हमारे स्कुल का गेटकीपर - लंच के ठीक बाद - जब वो शहंशाह स्टाईल में गेट का सिक्कड़ घुमाता ....हीरो टाईप लड़का लोग का होश ठिकाने आ जाता ! क्या मजाल कि कोई लडका गेट से निकल जाए ! प्रिंसिपल सर के कमरे में "ट्रॉफी" भरा होता था ! बोर्ड  लगा होता - बोर्ड पर् तेज विद्यार्थी का नाम - राजीव कुमार सेठ - बिहार बोर्ड - प्रथम - फलाना - बिहार बोर्ड - तृतीय ..चिलाना - बिहार बोर्ड - नौवां स्थान !

नौवां में ही था - युवा दिवस के शुभ कार्यक्रम के लिये - मोईनउल हक स्टेडियम में - हमें कुछ प्रैक्टिस करने जाना था - अपने क्लास से मै सेलेक्ट हुआ - स्कूल से नौवीं और दशमी के ढेर सारे लडके - वहाँ एक दिन प्रैक्टिस के दौरान मेरे स्कूल के किसी दसवें वाले ने किसी 'अंग्रेज़ी' स्कूल की लडकी पर् सीटी मार दी - अगले दिन - हुआ मार - हा हा हा हा हा ....अब सर गणेश दत्त पाटलिपुत्रा का विद्यार्थी कहाँ रुकने वाले थे ...जबरदस्त हंगामा ! कार्यक्रम रोकना पड़ा ! कहानी शुरू हुआ - लोयला में एक बार सेंटर पड़ा - लोयला में डी डी राय पर् कुछ कमेन्ट हुआ ...लगा की ...लोयला में आग लगा देंगे ! ये क्रेज था - डी डी राय का !

वचनदेव कुमार का बृहत् निबंध भाष्कर जुबान पर् था ! एक घटना याद है - आठवीं का नौमही परीक्षा दे रहा था - वर्मा प्रेस से लाल हरा नीला - प्रश्नपत्र आता था ! हिन्दी का परीक्षा था - बगल में नौवां का एक विद्यार्थी बैठा था - इंदिरा गाँधी पर् निबंध लिखने को आया था - हम अपना परीक्षा छोड़ - अपने सीनियर को पुरा  निबंध लिखने में मदद की !

क्लास में अंदर - एक लडका था - राकेश - काला सा - क्या लिखता था ..एकदम मोती जैसा अक्षर और गजब का लैंग्युज सेंस - उससे जलन होती :) एक बेंच पर् हम सभी - फिक्स थे ! महीनो आपस में बात चीत नहीं होता - इगो क्लैश ! एक क्लास छूटता और दूसरे शिक्षक के आने के बीच - पुरा स्कुल ..बरामदा में :) इस वक्त आप किसी को खोज नहीं सकते ! छुट्टी के समय - जिस रफ़्तार से हम सीढियां फांदते ...उफ्फ़ ...! लौटते वक्त ..रास्ता  भर .."कपिलदेव बनाम गावस्कर" ...एक दिन गेट पर् एक सरदार विद्यार्थी .. ..तिवारी पर् मुक्का चला दिया ..तिवारी का जबड़ा टूट गया ....उफ्फ़ ...अगर आज ऐसा होता तो ..अखबार और टीवी में तिवारी हीरो बन् जाता ! गेट पर् छुट्टी के ठीक बाद सभी क्लास के हीरो भाई लोग ..एक साथ जमा होता था ...हा हा हा ...यूँ कहिये ..लोहानीपुर का सब विद्यार्थी हीरो ही होता था !

दसवीं में 'डी डी राय' हमारे क्लास टीचर बने ! बहुत ही गर्व की बात थी - हमारे लिये ! इसी  साल  उनका आवाज़ जाने लगा ...और बाद में पता चला की उनको "कैसर" हो गया ! पटना प्रसिध्ध इस टीचर के हम अंतिम बैच थे ! आज भी उनकी याद आती है ....मन करता है ..उनके नाम पर् एक स्कॉलरशिप शुरू करूँ .....

बहुत यादें हैं ....क्या लिखूं और क्या न लिखूं ....सभी शिक्षक को नमन ....सीनियर को नमस्ते ......बैचमेट को .." का रे ? कहाँ हो आज कल ? " ......जूनियर को ....."और भाई ...सब ठीक न .." :))

आपको एक बात बताता हूँ ....इस स्कुल का अलग संस्कार होता था .....पुरे भारत में उच्च शिक्षा का कोई ऐसा संस्थान नहीं है ...जहाँ यहाँ के विद्यार्थी नहीं पाए जाते होंगे ...अगर आप उन्हें पहचानना चाहते हैं तो जो भी आदमी पटना का हो ..थोडा टेढा हो ..आप "सूंघ" के बता देंगे की - वो "सर गणेश दत्त पाटलिपुत्रा" का अलुम्नी है ....

चलिए ....कुछ आपको याद हो तो लिखिए ...कमेन्ट में ...मै अगले  पोस्ट में आपके कमेन्ट डालूँगा :))


हाँ , बीस फरवरी को हम सभी नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया , प्रगति मैदान के ठीक सामने , नई दिल्ली में "री उनीयन" / गेट टूगेदर / मीट ..जो कहिये ..मना रहे हैं ....जबरदस्त ढंग से ....

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, January 18, 2011

"समाज"

एक घटना सुनाता हूँ - बहुत पहले की बात है ! गाँव में एक अपवाह थी की मेरे बड़े परबाबा के पास बहुत पैसा है और वो पैसों को घर में ही रखते हैं - गाँव के एक थोड़े बदमाश व्यक्ती को यह पता चला तो उसने चोरी करने की कोशिश की - रात में वो 'दालान' में चोरी करने आये - मेरे बाबा ने उनको पकड़ लिया  ! सुबह गाँव के लोग आये और एक छोटी सी पंचायत और मेरे परबाबा के कारण उनको छोड़ दिया गया !  पुलिस - केस - मुकदमा नहीं हुआ ! इस घटना को हुए करीब चालीस साल हो चुके होंगे ! जिन्होंने चोरी करने की कोशिश की - वो गाँव छोड़ कर चले गए फिर कभी वापस नहीं आये ! लोग कहते हैं - कुछ दूरी पर् किसी गाँव में बस गए और जब कभी अपने गाँव का कोई मिलता तो मुह गमछी से ढक लेते थे ! चोर थे - चोरी किया पर् एक शर्म भी - आँखों में ! वो शर्म उन्हें गाँव के समाज ने दिया था ! 

इस घटना पर् मै ज्यादा कुछ और नहीं बोलूँगा पर् वर्तमान में ऐसा नहीं है ! अभी हाल में गाँव गया था - पता चला की 'फलाना बाबु' का बेटा बदमाश हो गया - कुछ 'केस - मुक़दमे' भी चल रहे हैं ! रात - दिन 'कट्टा' साथ में ही रखता है ! जब मूड आया किसी को 'गरिया' दिया ! कोई उसको टोकने - बोलने वाला नहीं है ! गाँव के ही एक शिक्षक को उसने कुछ गाली दे दी ! फिर अगले दिन 'शिक्षक' के ही काफी करीबी 'पट्टीदार / गोतिया' के दरवाजे पर् लंबी - चौड़ी बातें कर रहा था ! मैंने कुछ लोगों से बोला - आप सभी उसे समझाते क्यों नहीं हैं ? जबाब आया - 'गुंडा - मवाली' को कौन समझाए और दोस्ती है तो कभी काम ही आएगा ! 

समाज महत्वहीन हो गया है !मुझे बिलकुल याद है - गाँव के किसी लडके के यहाँ कोई बरतुहार  आया तो सभी बुजुर्ग लडके के दरवाजे पर् पहुँच कर - लडके के पिता जी को समझा बुझा कर 'फैसला' हमेशा से 'लडकी' वाले के ही फेवर में देते थे - उस फैसले को 'लड़का वाला' मानने को विवश होता था ! अब ऐसा नहीं है - शादी और लेन - देन बंद कमरे में होने लगी है ! बिहार लोक सेवा आयोग के एक मेंबर परिचित थे - कहते थे - मैंने कई जान पहचान वाले लड़को को - डिप्टी कलक्टर - डीएसपी - बनने में मदद की ! आशा के अनुसार - वो वैसे लड़कों के यहाँ 'बरतुहार' ( लडकी वाला ) को भेजा करते  थे - लड़का वाला का जबाब - फलाना बाबु का 'पैरवी' लेकर नहीं आईये ! 

कभी कभी लगता है - लोगों के आँखों में शर्म खत्म हो गयी है ! "लिहाज" भी समाप्त है ! बचपन में देखता था - गाँव के कई छोटे चाचा  लोग 'खैनी' खाते थे - बाबु जी या बाबा के सामने नहीं ! गलती से "चुनौटी" दिख गया तो आँख नीची कर के 'निकल' पड़ते थे ! अब शायद ऐसा नहीं है ! 

बड़े बाबा मुजफ्फरपुर में रहते  थे - मेरे बाबु जी - मेरे चाचा - फुआ लोगों के शिक्षा का "कर्तव्य" उनके ही सर पर् था ! यूँ कहिये - एक जमाने में - पुरे इलाके का ! इस आधार पर् ही जब हम लोग पटना आये तो चाचा की बेटी को साथ रखने लगे क्योंकि चाचा बैंक में थे और ग्रामीण पोस्टिंग थी - एक बहुत बड़े खानदान के - एक बहुत ही बड़े डॉक्टर ने 'कमेन्ट' किया हमलोगों पर् - "आप लोग पिछड़े हैं" :)) 


"लोग क्या कहेंगे ? " जबरदस्त ताकत वाला वाक्य है ! पर् अब किसी को इसका ख्याल नहीं है ! लोग हर बंधन से आज़ाद होना चाहते हैं ! इस आज़ादी में ही 'सामाजिक बंधन' कमज़ोर हो रहे हैं ! कोई भी  किसी भी और के लिये - अपनी छोटी सी भी 'खुशीओं' का बलिदान नहीं देना चाहता है ! कल तक गाँव पराया था - आज भाई पराया है - कल माता पिता पराये हो जायेंगे और परसों आपके बच्चे आपको 'पराये' घोषित कर देंगे ! 


तथाकथित "समाज शास्त्र" के विद्वानों के कमेन्ट की आशा में ....


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Friday, January 14, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मकर संक्रांति

कॉलेज के लिये निकलते वक्त हर रोज देर हो जाती है ! आज भी हुआ ! नहा कर सीधे पूजा घर में चला जाता हूँ ! वहाँ गया तो देखा की - सब कुछ सजा हुआ है - 'दही - तील - तिलकुट , गुड़ , चिउरा' ! तुलसी चौरा से तुलसीदल को निकाल कर सभी पर् डाला ! पत्नी ने झट पट 'टपरवेयर' के लंच बॉक्स में चुरा दही सब्जी गुड़ तिलकुट डाला ! 

हर पर्व की तरह बचपन याद आ गया ! पहले 'गीजर' नहीं होता था - होता भी होगा तो हम जैसों के यहाँ नहीं था ! बडका 'तसला' में पानी चुल्हा पर् चढ जाता था ! गरम हुआ तो - बाल्टी में डाला , नहाया फिर बडका "फुलहा" कटोरा में दही चिउरा ! अनुपात इस प्रकार होता था - सबसे कम चिउरा  , उससे ज्यादा दही और फिर सबसे ज्यादा चीनी :)) , छोटका कटोरी में 'आलू दम का सब्जी - गोभी और - मटर' या फिर 'मिर्च का अंचार' :)) 

गाँव में रहता था तो - 'ईनार' का पानी गर्म - वहीँ बडका पीढा पर् - बाबा के साथ नहाना ! फिर कांपते हुए अपने  से बड़ी औकात वाली 'खादी के  गमछा' को लपेट हाथों को सीने से लगा - कापते हुए आँगन में जाना ! फिर कुछ नया कपड़ा पहन - बाबा का इंतज़ार करना ! फिर बाबा के साथ - दही - चिउरा इत्यादी !! 

हम तीन पट्टीदार होते थे ! सबके यहाँ से 'चावल - दाल - हल्दी और आलू' आ जाता था ! परबाबा जो तब तक अंधे हो चुके थे - उनसे सभी सामान को 'छुआया' जाता था - फिर घर का कोई मुंशी मैनेजर दरवाजे पर् चौकी लगा के बैठ जाता - दिन भर ..मालूम नहीं कहाँ कहाँ से लोग आते ...करीब दो तीन हज़ार ..सबको एक बड़ा गिलास चावल , एक मुठ्ठी दाल , दो हल्दी का टुकड़ा और एक चुटकी नमक और दो तीन आलू .....मै भी कभी कभी वहीँ कुर्सी लगा के बैठ जाता था ! अच्छा लगता था ! यह सिर्फ मेरे घर में नहीं था ....गाँव के हर बाबु लोग के दरवाजे पर् यही हाल होता था ! 

दिन भर लाई और लटाई का चक्कर होता ....:)) 

मेरे ससुराल के परिवार में एक बहुत अच्छी परंपरा थी - इस दिन वो सभी लोग अपने सभी दोस्त - सम्बन्धी को 'दही' भेज्वाते हैं....वहाँ दो तीन पहले से करीब सौ दो सौ किलो दही जमता है ...फिर वो सभी दही 'पटना' पहुंचा ....और सभी दोस्त महीम सगे सम्बन्धी के घर पहुंचाया जाता था ! दो तीन साल पहले तक - जब तक सास जिन्दा थीं यह परंपरा चलते रहा ! अब का नहीं पता ....कई लोग तो अपने घर 'दही' जम्वाते तक नहीं थे - की 'फलाना बाबु' के यहाँ से आएगा ही - एक बड़ा 'नदिया दही' :)) 1996 में मेरे ससुर जी आज के ही दिन एक नदिया दही - बेसन की मिठाई और अपनी बेटी का टीपण ( जन्म कुंडली ) मुझे दिए थे ....हर साल आज के दिन वो पल याद आता है ....

माँ के एक ही मामा जी थे - गया जिला के ! हर साल वो सिर्फ एक बार आते थे - मकर संक्रांती के दिन ! तिलकुट लेकर और बासमती चिउरा ! कुछ देर रुकते फिर चले जाते ! 

कल रात देखा - सोसाईटी में - पंजाबी लोग बहुत जोरदार ढंग से 'लोहडी' मना रहे थे .....

आप सभी को मकर संक्रांती की शुभकामनाएं .....

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Thursday, December 30, 2010

ये साल भी जा रहा है ....

अब से कुछ घंटो में यह साल भी चला जायेगा ! विदाई ! इससे ज्यादा कष्ट किसी और शब्द में नहीं है ! मालूम नहीं लोग कैसे नए साल का स्वागत करते हैं ! 

नया नया टी वी आया था ! टी वी के सामने बैठ - रजाई के अंदर से टुकुर - टुकुर टी वी देख रात तक जागना ! फिर थोडा शर्माते हुए - घर के लोगों को 'हैप्पी न्यु ईयर' बोलना और सो जाना ताकि सुबह उठ कर - "मुर्गा" खरीदने जाना है ! बस यही था - नया साल ! मोबाईल नहीं होता था ! बहुत हुआ तो घर वाले सरकारी फोन से किसी खास दोस्त को ! कभी कभी वो भी नहीं ! 

बहुत दोस्त लोग पटना के 'बौटनिकल गार्डन' में - तो कोई गंगा किनारे - दियारा में ! तो ढेर एडभांश भाई लोग 'फिएट कार' से राजगीर ! हम कभी नहीं - कही नहीं ! 

बंगलौर में नौकरी किया तो एम जी रोड पर् ! तब देखा की 'रात में नए साल ' में प्रवेश करते समय - कैसे चिल्लाया जाता है ! हम कभी नहीं चिल्लाये - कोई साथ में था भी नहीं - जिसके साथ चिल्लाया जाए ;) 

बाबा - बाबु जी को कभी 'शराब' के साथ नहीं देखा ! चाचा के जेनेरेशन में लोग 'ड्रिंक' करने लगे ! मेरे संगी साथी - "हार्ड - सोफ्ट " ! और नया जेनेरेशन .......कॉलेज में था तो ऐसा आईटम लोग का कमी नहीं था ...घर से ड्राफ्ट आया नहीं की ...शुरू हो गया ' 31 दिसंबर' का पार्टी का प्लान ! घसीट के सब ले जाता था ! नहीं जाने पर् - ऐसा लगता जैसे हम इस दुनिया के प्राणी नहीं हैं ! अपना पैसा से 'खिला पिया ' दिया फिर एक सप्ताह बाद - हिसाब ! जो "पीता" नहीं - उससका हिसाब अलग से ! अजीब हाल था :(

थोक में ग्रीटिंग्स कार्ड खरीदाता - साथ में स्केच भी ! खूब मन लगा के - दोस्त - सगे सम्बन्धी का एड्रेस लिखता - लिफाफा में ! फिर हर दिन डाकिया का इंतज़ार - सभी कार्ड्स को इकठ्ठा कर बेड के नीचे तोसक के निचे रखना ! फुर्सत में - उनको बार बार देखना ! 'किसी खास का कार्ड हो तो बिन कहे शब्दों को बार बार पढ़ने की कोशिश करना' :))

जब से नॉएडा - इंदिरापुरम आया हूँ - हर बड़ा दिन कि छुट्टी में परिवार 'पटना' चला जाता है :( कुछ अकेले ही यह दिन बितता है :( सबसे पहले पत्नी का ही फोन आता है ! पूछती है - क्या खाए ? मालूम नहीं इनको मेरे खाने का ही ज्यादा चिंता रहता है ! :) फिर उनसे पूछता हूँ - 'माँ - बाबु जी - बच्चे सो गए , क्या ? ' कहती है - हाँ ! सुबह में - माँ और बाबु जी का फोन ! माँ आज भी मुझे 'आप' कह कर ही बुलाती हैं :) बाबु जी - भोजपुरी में 'तू' हम भी उनको भोजपुरी में उनको 'तू' ही बोलते हैं और हिन्दी में 'आप' :) बहस हिन्दी में होती है - "आप" के साथ !

अब साल कैसा बिता - यही सोच रहा था ! जहाँ काम करता हूँ - वहाँ 'अरियर' के साथ 6th पेय कमीशन लागू हुआ ! प्रोमोशन भी मिला ! सहायक प्राध्यापक से 'सह- प्राध्यापक' हो गया हूँ - इस शर्त के साथ की - अगले कुछ सालों में 'पीएचडी' कर लूँगा - वर्ना नौकरी खतरे में है .... :( और मेरे पास 'पीएचडी' का कोई प्लान अभी नज़र नहीं आ रहा है :( सन 2005 में मुझे डबल प्रोमोशन मिला था - मेरे महाविद्यापीठ के पचास साल में पहला उदहारण ! सब , किसी अदृश्य शक्ती का कमाल है  - हम जो आज से बीस साल पहले जैसे थे - आज भी वैसे ही हैं :(

पुत्र का जनेऊ किया ! हम छपरा जिला के हैं - यहाँ एक रिवाज है - घर में किसी लडके - लडकी की शादी के साथ ही घर के छोटे बच्चे का जनेऊ होता है ! बाबु जी के शादी में चाचा का जनेऊ हुआ था ! चाचा की शादी में मेरा और चचेरी बहन की शादी थी तो मेरे पुत्र का ! बहुत खुश और रोमांचित था !  सम्बन्धी को छोड़ किसी और को   इनवाईट नहीं किया था - फेसबुक से सिर्फ दो जाने - कृष्ण सर और प्रभाकर जी ! पुत्र जब स्कूल गया तो उसे 'जनेऊ' के बारे में बोलने में थोड़ी शर्म आई तो अपने मुंडन का दूसरा बहाना बना दिया ! यह एक अलग जेनेरेशन है - मुझे खुशी है ! ( संभवतः आप लोग मेरी बात समझ रहे होंगे )

यह साल 'फेसबुक' के भी नाम गया ! कई नयी दोस्ती हुई और सम्बन्ध बने ! धर्म और जाति के बंधन से बिलकुल अलग ! कुछ लोग अजीबोगरीब ढंग से मुझसे पेश आये - भगवान उनको सुबुध्धि दे ! कई पुराने संबंधों में सुधार आया ! स्कूल और कॉलेज के कई बिछड़े दोस्त मिले ! सीनियर भी ! फेसबुक पर् जो बिहार ग्रुप हैं - वहाँ से मुझे 'फेसबुक यूथ आइकन ऑफ बिहार' मिला - अच्छा लगा ! :)) और क्या कहूँ ? :)) अतुल काफी जोशीला है - मुझे लगता है - आज के बिहार में जैसे 'जयप्रकाश आंदोलन' के लोग राजनीति में हैं - वैसे ही 'अगले दस य बीस साल में इस फेसबुक / याहूग्रुप से निकले लोग - बिहार कि सता पर् काबीज होंगे ! संभवतः तब भी यह ग्रुप मेरे साथ होगा ;) 

एक नयी गाड़ी खरीदने का प्लान था - जो नहीं हो सका ! शायद होली तक ! हम लोग बैंक में पैसा रखने वाले प्राणी नहीं हैं ! दो - तीन लाख में ही "अउल - बउल" होने लगते हैं :(  पति - पत्नी दोनों खर्चीले हैं :)  पन्द्रह साल इंतज़ार किया और एक 'बोस' का स्पीकर खरीदा ! संगीत अच्छा लगता है ! हिम्मत नहीं हो रही थी - पत्नी ने बोला ले लीजिए - कल का कल को देखा जायेगा ! 

इस साल बाबु जी बहुत बीमार रहे ! हमेशा यही चिंता लगी रहती है ! कई बार बोला - मारिये गोली - बिहार सरकार की नौकरी को - मालूम नहीं क्या सोचते हैं ? :( 

अब अगला साल क्या करना है ? 

आज तक प्लानिंग नहीं तो अब क्या करूँ ?? :( 

जे होगा से देखा जायेगा !!! 

आज से हर पोस्ट के साथ एक गीत होगा - लीजिए आज का मेरा पसंदीदा गीत सुनिए :))




रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Monday, December 27, 2010

CNN - IBN अवार्ड समारोह !!

२२ दिसंबर को परिवार को 'पटना' जाना था ! सो मै लंच के बाद कॉलेज से लौट आया ! अभी लिफ्ट में ही था की फोन की घंटी बजी और उधर थे सी एन एन से आकाश - हिन्दी में ही :) बोले आज शाम आप सी एन एन आई बी एन 'अवार्ड समारोह' में आमंत्रित हैं - ताज पैलेस होटल में ! मै मंद मंद मुस्काया और 'प्रभाकर ' को रिंग किया - बोला ..थैंक्स भाई ...! 

फ़्लैट में घुसा तो पत्नी को बोला - तुम लोगों को ट्रेन में बिठा कर - मुझे 'अवार्ड समारोह' के लिये निकल जाऊंगा ! सो कोई बढ़िया सूट निकाल दो - प्रिंस - बंद गला - थ्री पीस - टू पीस - इंग्लिश :( खैर ..एक बढ़िया ग्रे कलर का सूट - सफ़ेद कमीज़ और एक नयी टाई सेलेक्ट हुई - फिर हुआ की स्टेशन पर् 'सूट' गन्दा हो जाएगा - सो कार में ही कोट लटका रहेगा ! 

स्टेशन पर् पहुंचा - वहाँ 'कृष्ण सर ' मिल गए - उनको भी बताया - 'सी एन एन - आई बी एन अवार्ड' समारोह जा रहा हूँ :) 

पुरानी आदत है - समय से पहले पहुँचने का :) आधा घंटा पहले पहुँच गया - लॉबी में खडा था - राजदीप से मुलाकात हुई - ब्लैक कलर के बंद गला में 'गजब के स्मार्ट दिख रहे थे ! स्वभाव से शर्मीला हूँ सो थोड़ी देर बाद आकाश को फोन किया और वो मुझे 'दरबार हौल में पहले से निर्धारित एक टेबल पर् बैठा दिए ! चुप चाप ! थोड़ी दूर पर् थे - 'कुमार  मंगलम बिरला - अपने दादा जी और दादी जी के साथ ' सभी से मिल जुल रहे थे ! धीरे - धीरे  सभी गेस्ट पहुँचाने लगे - वो सभी लोग थे - जिनको आज तक हम जैसे लोग सिर्फ 'अखबार और टी वी ' में ही दिखते थे ! प्रणव मुखर्जी , नितिन गडकरी , सुशील मोदी , ज्योतिराजे सिंधिया , रवि शंकर प्रसाद , विजय त्रिवेदी , सर मेघ्नंद देसाई , "सुधांशु मित्तल" और मालूम नहीं कितने लोग .....हम तो अपने टेबल पर् ऐसे बैठे थे - जैसे इन लोगों से रोज ही मुलाक़ात होती हो .....;) 

प्रोग्राम शुरू हुआ ..राघव जी कुछ बोले ...लिंक लगाया हूँ - आप लोग देख लीजियेगा ....फिर आये 'राजदीप सरदेसाई' ! मै उनको गौर से देख रहा था - आँखों में भोलापन् - चेहरे पर् गजब का आत्मविश्वास ! मै कई 'पत्रकारों' से मिला हूँ - और सबका यह मानना है की 'राजदीप' एक बेहद ही बढ़िया 'इंसान' है ! एक सच्चे नेतृत्व  का यह एक विशेष गुण होता है ! 

और फिर शुरू हुआ - अवार्ड समारोह - मै दो लोगों से बेहद प्रभावित हुआ - एक 'कुमार मंगलम बिरला' - सचमुच - जो वृक्ष फल से लदा होता है - वो उतना ही झुका होता है ! उनके दादा जी 'सी के बिरला और दादी जी' कितने खुश थे ! दूसरे थे - "पत्रकार - गोपीनाथ" जिन्होंने 'टू जी' स्कैम का पर्दाफाश किया - जब वो स्टेज पर् आये तो - पीछे खड़े कई पत्रकार सबसे ज्यादा देर तक - आँखों में खुशी के आंसू लिये 'ताली ' बजा रहे थे ! यह अवार्ड था उन पत्रकारों के लिये - जो 'सता की गलियारी' के चहलकदमी नहीं कर अपना काम ईमानदारी पूर्वक करते हैं - ! 

नितीश को इन्डियन ऑफ द इन्डियन का अवार्ड मिला - मेरे बगल में एक विदेशी और बेहद ख़ूबसूरत - शालीन  महिला बैठी थीं - जब नितीश को अवार्ड मिला तो - खुशी से आंसू आ गए - यह सम्मान - सभी बिहारी के लिये था ! हम तो कुर्सी से खडा हो गया - सबसे देर तक ताली बजाया - विदेशी महिला ने मुझसे पूछा - ये कौन हैं ? मैंने बोला - अगला 'प्रधानमंत्री' :)) मेरे दूसरी तरफ एक बिहारी भाई थे - हम उनके हाव भाव से पहचान लिये थे की - बिहारी हैं - अब भाई इतना बड़ा फंक्शन में - कौन किसको टोके ;) जब नितीश के नाम पर् हम दोनों खडा होकर  - ताली बजाये और एक दूसरे को देख 'मुस्कुराए' तब मैंने बोला - पहले बोलना था न् .."बिहारी" हूँ :)) 

प्रोग्राम खत्म हुआ - भर पेट भोजन हुआ ! "सुधांशु मित्तल" मुझसे कुछ बात करना चाह रहे थे - पर् मेरे पास वक्त नहीं था ! फोन पर् 'प्रभाकर' को बहुत बहुत धन्यवाद दिया - लौटते वक्त रास्ता भूल गया :( एक बिहारी ऑटो वाला मिला - "मोतिहारी" का - उसने रास्ता बताया - 

बढ़िया लगा ....बहुत दिन तक 'नितीश' के शब्द कानो में गूंजते  रहे .....राजदीप का भोलापन याद आता रहा ...कुमार मंगलम बिरला ......गोपीनाथ ....

 प्रोग्राम देखने के लिये - यहाँ क्लिक करें ! जरुर देखें !


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Thursday, December 16, 2010

"अवकात"

"तुम्हारी  अवकात क्या है ? तुम्हारे अवकात का आदमी मेरे घर मुंशी मैनेजर होता है ! तुम जैसे की अवकात जानता हूँ ! अवकात में रहो ! तुम मेरी अवकात क्या समझोगे ? रुको , अपनी अवकात दिखाता हूँ ! देखो इस नीच को - अपनी अवकात दिखा दिया  " 

मालुम नहीं ऐसे कई शब्द कानों में गूंजते हैं !हमें अपनी अवकात से ज्यादा दूसरों की अवकात की ज्यादा चिंता रहती है ! समाज में थोडा कुछ बोलिए नहीं की लोग अपनी अवकात भूल आपकी अवकात नापने लगेंगे ! 

कंकडबाग में किराया के मकान में रहते थे ! पड़ोस वाले के बेटे मेरी उम्र के थे - उनका अपना मकान था ! एक दिन बालकोनी से बोल दिया - "किरायेदार हो , अवकात में रहो " ! आठवीं में पढता था ! बोला नीचे आओ ! वो तीन और मै अकेला ! जम के लड़ाई हुई ! बाबु जी छत से चिल्लाते रहे - मै कहाँ सुनने वाला था ! "उसने बात अवकात की थी - चोट बहुत गहरी लगी थी " ! आज भी वो तीनो भाई मेरे नाम से कांपते हैं ! आज उस मकान से मात्र कुछ सौ मीटर की दूरी पर् हमारा मकान है ! बाबु जी , सभी भाई का - एक साथ ! एक बार रास्ते में मिला - बोला देख लो मेरा अवकात - हम उस खानदान से नहीं आते हैं - जहाँ एक भाई गाँव में खुरपी लेकर 'सोहनी' कर रहा है और दूसरा पटना में मकान पर् मकान बना रहा है ! मै जान बुझ कर उसे अपनी अवकात से ज्यादा बोला था ! बाद में मुझे खुद बहुत बुरा लगा पर् उसकी दी हुई चोट बहुत गहरी थी ! शायद यही एक कारण है की - मै किसी भी किरायेदार को बहुत ही इज्जत करता हूँ ! 

बहुत कम लोग ऐसे होते हैं - जो ताउम्र एक ही रफ़्तार  से आगे बढते हैं ! बाकी की जिंदगी में बहुत उतार और चढाव होता है ! जब किसी की जिंदगी उतर पर्  हो हमें 'अवकात' वाली शब्दों से बचना चाहिए ! कल किसी ने नहीं देखा है ! "गोली" से भी खतरनाक "बोली" होती है ! आदमी नहीं भूलता ! कब किस पर् भगवान मेहरबान हो जाए - कोई नहीं जानता :) 

एम्  टेक करने के बाद मै पटना के एक प्राईवेट कॉलेज में पढाने गया ! उस कॉलेज के चेयरमैन साहब जब तब मुझे मेरी अवकात दिखा देते :) मुझे समझ में नहीं आया ! बाद में पता चला की कॉलेज के संस्थापक और चेयरमैन साहब के पिता जी मेरे ससुर जी के साथ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढते थे - तब शायद मेरे ससुर जी की औकात ज्यादा रही होगी ! जिस दिन मुझे यह पता चला - मैंने उसी वक्त 'नौकरी' को छोड़ा और नॉएडा का ट्रेन पकड़ लिया ! फिर , गया उनसे मिलने :) बंद कमरे में - मै बोला और इस बार उनको सुनना पड़ा ! 

कंकडबाग में हमारे एक पारिवारीक मित्र और हमारे काफी शुभचिंतक बच्चों के एक डॉक्टर हैं ! मेरे और मेरे पिता जी के उम्र के बीच के हैं ! मै उनकी बहुत इज्जत करता हूँ और वो भी मेरी ! कुछ साल पहले - बिहार के बाहुबली लोग उनको थोडा तंग करने लगे ! वो कुछ बर्दाश्त किये ! फिर एक दिन एक बाहुबली को बोला - "डॉक्टर समझ मेरी अवकात मत नाप - जिंदगी के किसी भी परीक्षा में अपने क्लास में 'सेकण्ड' नहीं किया - जिस दिन तुम्हारे धंधे में उतर जाऊंगा - वहाँ फिर मै ही फर्स्ट करूँगा " ! अब बेचारा 'बाहुबली' जो मेरे भी मित्र थे   - एकदम से सहम गए :) मैंने उनको बोला - 'बाहुबली जी , किसी सज्जन पुरुष का अवकात मत नापिए - फेरा में पड़ जाईयेगा " ! 

अभय जी बी पी एस सी परीक्षा में अवल्ल आये - बिहार सरकार में डी एस पी बने ! बात 2006 की है -  उनकी माता जी बीमार थीं और तारा हॉस्पीटल में भरती थीं ! मुझे 'देवेश भैया' का फोन आया - अभय जी से मिल लो ! मै जब तारा हॉस्पीटल पहुंचा तो वहाँ की सेकुरीटी देख मेरा दीमाग खराब हो गया ! काले काले ड्रेस में कमांडो ! कई जिप्सी ! और अभय जी एक कमरे में अपनी माता जी के साथ अकेले बैठे ! पता चला की इतनी सेकुरीटी - बिहार के डी जी पी के पास भी नहीं है ! मामला मैंने अभय जी से खुद पूछा - बोले की 'सिवान का डी एस पी हूँ - 1989 में बहाल हुआ - आज तक फिल्ड पोस्टिंग नहीं हुई - शायद एक खास जाती के होने के कारण - खैर जेल में शहाबुद्दीन को जम के पीटा " ! वो भी एकदम सिनेमा स्टाईल में - जब पीटा तब उसके लोग भी आगे आये - उसने सबको मना कर दिया - और जब मेरे तरफ से लोग आगे आये तो मैंने मना कर दिया - और जी भर उसको पीटा ! 

जी , यही है अवकात ! 

दालान ब्लॉग लोकप्रिय हो रहा है :)) और भी लेखक इससे जुड सकते हैं ! मेरी "अवकात " मत नापियेगा ..मै एक शिक्षक हूँ ...आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता :))

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Wednesday, December 8, 2010

"बिहारी प्राईड - भाग चार "

दो साल पहले की बात है - अचानक से एक ई-मेल आता है - "रँजन जी , अपने गाँव में एक इंजीनियरींग कॉलेज खोलना चाहता हूँ , आप किस तरह से मुझ से जुड सकते हैं " ! ये मेल था - "चंद्रकांत जी " का ! करीब १८-१९ साल पहले की एक घटना याद आ गयी ! उस वक्त बाबु जी के साथ 'तारा हॉस्पीटल' में बैठा था - तब तक 'चंद्रकांत' आते हैं - अपने टेस्टीमोनीयल्स पर् "ऐयटेस्ट" करवाने ! बहुत ही हल्की परिचय हुई थी - उस वक्त ! उनका सेलेक्शन तत्कालीन बिहार के सबसे बढ़िया इंजीनीयरिंग कॉलेज में हुआ था - सिंदरी ! बेहद शर्मीला और ग्रामीण परिवेश की एक झलक ! वो हमारे गाँव के ठीक बगल वाले गाँव के रहने वाले थे ! बीच बीच में उनके बारे में पता चलता रहा ! सिंदरी के बाद वो आई आई टी - मुंबई गए और फिर शादी विवाह और जर्मनी ! खांटी 'इलेक्ट्रिकल इंजिनीयर' हैं ! एक कोशिश उन्होंने 'आई टी सेकटर' में भी की जहाँ वो सन २००१ के हादसे के शिकार हुए ! 

उनका ई-मेल आने के बाद मेरी उत्सुकता बढ़ी और मैंने उनको हरसंभव मदद का वचन दिया ! उनके प्लान काफी क्लेअर थे ! वो एक जिद पर् अड़े थे - जो कुछ भी करूँगा - अपने गाँव में ! उनके गाँव में लोग उत्सुक होने लगे ! धीरे - धीरे माहौल बनने लगा ! उनके पिता जी जो शिक्षक हैं - उन्होंने गाँव को भरोसे में लिया ! 'चंद्रकांत' का प्लान इंजीनियरिंग कॉलेज का था - उनके साथ उनके कई दोस्त भी थे - सभी के सभी सिंदरी वाले - किसी के पिता 'बड़े अफसर' नहीं थे - कोई  आरा का तो कोई मुंगेर का - सभी को 'चंद्रकांत' में असीम विश्वास ! उनकी टीम में मै ही एक अकेला अलग सा था ! बात होते होते - थोडा और करीब आये तो मैंने उन्हें 'स्कूल' खोलने का सलाह दिया क्योंकी इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना इतना आसान नहीं था वो भी पटना से १५० किलोमीटर दूर एक गाँव में ! मै बंगलौर भी गया - चंद्रकांत से मिलने ! १८-१९ साल बाद पहली मुलाक़ात थी - बदल चुके थे ! अपनी कहानी सुनाई - कहते गए - जर्मनी में था - अचानक बेहोश हो गया - हॉस्पीटल गया तो पता चला की 'मधुमेह' है वो भी बहुत सीरियस ! हॉस्पिटल में २ महीना भर्ती कर दिया ! पत्नी अकेली ! एक छोटी बेटी ! माँ-बाबु जी गाँव में ! किसी के पास पासपोर्ट नहीं ! माँ बाबु जी हर रोज रोते थे - कहाँ जाते - किससे कहते - कहाँ आते ? "चंद्रकांत" तुरंत भारत लौट आये और बंगलौर में एक ज़मीन लेकर एक कोठी बनवाई ! फिर भी यहाँ उनका मन नहीं लगता था - फिर अचानक उन्होंने एक डिसीजन लिया - अपनी सारी कमाई अपने गाँव में लगाने की ! गाँव का कई दौरा किया - लोगों का विश्वास जीता और फिर दोस्तों की एक टीम बनाई ! 

फिर वो नितीश के प्रिय 'राघवन' से टाईम लिये  ! मुझे भी बोला आप भी चलिए पटना - मै भी गया ! राघवन के साथ , अशोक सिन्हा जी और संदीप पुण्डरीक थे ! मेरी थोड़ी जिद थी - पटना के आस पास ही खोलने की ! हम सभी इस आशा में थे की सरकार 'चंद्रकांत' को जमीन बाज़ार रेट पर् दे देगी ! संदीप पुण्डरीक के पास जमीन भी थी ! और सूबह में जो मूल्य बताया गया  वो मूल्य बिलकुल 'चंद्रकांत' के फेवर में थे ! सुबह की मुलाकात के बाद - शाम को अशोक सिन्हा जी अपने पास बुलाये - वहाँ जब हम सभी पहुंचे तब तक 'संदीप' जमीन की कीमत चार गुना बढ़ा चुके थे ! हम सभी एकदम 'शौक' में आ गए ! मेरे साथ मेरे बहनोई जी भी थे ! मै 'अशोक सिन्हा' जी की बेबसी समझ रहा था ! और मेरे दीमाग में यही ख्याल आया की 'काश , मै नालंदा का होता ' ! :) खैर अगले दिन हम बिहटा इत्यादी भी घुमे ! शाम को चंद्रकांत अपने गाँव गए और वो अपनी टीम के साथ मीटिंग करने के बाद बोले - वो अपने गाँव में ही स्कूल खोलेंगे ! अब मेरे पास 'कंसल्टेंसी' देने को नहीं रहा ...और उनकी अपनी टीम बीजी हो गयी ! मै बस यहीं से बैठे - शुभकामनायें ही दे सकता था ! 

उन्होंने अपने गाँव में करीब २५ एकड जमीन लिया ! स्कूल बनाया ! और अब स्कूल तेजी से चल रहा है ! जो जमीन उन्होंने लिया - उसकी कीमत ही करीब पांच गुना हो चुकी है ! "चंद्रकांत" इंटरनेट पर् बैठ 'मुखिया जी ' की तरह 'बिहारी प्राईड' नहीं लिखते हैं ! वो पटना के किसी बड़े अफसर के बेटे नहीं हैं ! वो सेंट माइकेल और दिल्ली के मॉडर्न स्कूल से नहीं पढ़े ! वो ..अपनी कहानी शान से सुनाते हैं - कहते हैं - एक वक्त ऐसा था की बाबु जी मुझे 'एयरफ़ोर्स' में बहाल होने को जोर दे रहे थे - आज वो देश दुनिया घूम अपनी जिंदगी की सारी कमाई अपने गाँव में लगा दिए ! वो अभी चालीस भी पार नहीं किये हैं ! कई 'पेटेंट' उनके नाम से है ! बेहद रईस के तरह  बंगलौर में रहते हैं ! उनके किस्से किसी अखबार में नहीं छपते हैं ! वो 'इलीट' नहीं हैं ! पर् एक जज्बात है - मिटटी के क़र्ज़ को लौटाने का ! यह काम आसान नहीं था ! 

ऐसे कई लोग आपके - हमारे इर्द गिर्द हैं - जिनके जज्बे को सलाम कर हम कई और को प्रेरित कर सकते हैं !! 

अगर आपके पास ऐसी कोई कहानी हो तो मुझे ई-मेल करें - mukhiya.jee@gmail.com 


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, December 5, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरे बिजनेस

अभी कुछ दिन पहले की एक बात है ! एक बिहारी मित्र के यहाँ दोपहर में बैठा हुआ था वो खुद बहुत ही बड़े व्यापारी हैं - तब तक दो सज्जन आये ! मेरे मित्र ने मुझसे भी उनका परिचय कराया ! मैंने बात ही बात में पूछ दिया - आप दोनों क्या करते हैं ? उनमे से एक ने बोला - अजी , मेरा 'बाल्टी' चलता है ! मै कुछ समझा नहीं - तो दुबारा पूछा - 'क्या ???' वो फिर बोले - ' अजी , मेरा 'बाल्टी' चलता है' ! इस बीच मेरे मित्र मंद मंद मुस्कुराने लगे - वो समझ गए - बात मेरी समझ में नहीं आई है ! मेरे मित्र ने मुझे समझाया की हर शनीवार दिल्ली / एनसीआर के सभी रेड लाईट पर् आपको पीतल का बाल्टी मिलेगा - लोग उसमे 'सरसों का तेल' और पैसा डालते हैं - सो , ये दोनों भाईसाहब का दिल्ली में हर शनीवार करीब 'दो तीन सौ' बाल्टी "लगता" है ! पुर टीम है ! वर्कर है ! टेम्पो है ! शनीवार सुबह टेम्पो पर्  तीन सौ 'बाल्टी' लदा जाता है - हर चौक चौराहा पर् उसको रख दिया जाता है -दिन भर लोग उसमे पैसा डालते हैं और कई सरसों का तेल भी 'शनी भगवन' को खुश करने के लिये !  शाम को उसको उठा लिया जाता है ! मै एकदम से भौच्चक रह गया ! फिर खुद को संभाला और पूछा - टर्नओवर कितना है ? दोनों ने बोला - करीब महीना में साठ हज़ार से एक लाख के बीच काट छांट कर बच जाता है ! 

कॉलेज के ज़माने का एक जिगरी दोस्त होता था - चन्दन ! हमसभी उसको 'पंडीत' कहते थे ! कहता था - 'देखो  , नेता - पैसा सड़क पर् गिरा पडा है - उठाने का कुब्बत और दिमाग चाहिए ! 

पिछला दस साल छोड़ दीजिए तो हम बिहारी या जिस समाज से हम आते हैं - वहाँ 'बिजनेस' का अलग मायने था ! कुछ बिजनेस जो मुझे याद हैं और पसंद भी - उनके बारे में कुछ लिखता हूँ ! 

१. दवा का दूकान :- आप मिडिल क्लास से हैं ! चश्मा वाले पढ़ाकू हैं ! कम्पीटिशन देते देते थक गए ! पहले मेडिकल का दिया , फिर बिहार सरकार का क्लास वन , फिर पीओ , फिर बैंक क्लर्क - कहीं कुछ नहीं हुआ ! थोड़ा ठीक ठाक परिवार के हैं ! एमएससी , एमए कर  के किसी प्राईवेट कॉलेज में बहाल हो गए - तनखाह नहीं मिल रहा ! शादी में भी दिक्कत ! तब तक आपके कोई 'फूफा-मामा' सलाह देंगे 'दवा के दूकान' का ! आपको बिहार के अधिकतर दवा के दुकानदार इसी पृष्ठभूमि से नज़र आयेंगे ! आज ही अपने एक छोटे फुफेरे भाई से पूछा - जो की गोपालगंज में दवा का व्यापार करता है - कितना का टर्नओवर हुआ - बोला , चिंकू भैया - अमकी एक करोड 'ठेक' जायेगा :) ! 
२. किताब का दुकान :- मेरा यह पसंदीदा व्यापार है ! पटना के अशोक राजपथ पर् आपको कई पुराने बंगाली दादा लोग मिल जायेंगे - बेहद मीठे बोलने वाले - मै बंगलौर के गंगा राम और सपना बुक शॉप  में घंटों बिताया हूँ ! किताबों से भी ज्यादा बढ़िया मुझे 'मैग्जीन' के दूकान लगते हैं ! नाला रोड के मैग्जीन कॉर्नर पर् मै एक पाँव पर् खड़े होकर कई शाम बिताएं हैं ! मालूम नहीं इस तरह के दुकान कितने फायदे के रह गए हैं - पर् ये कुछ बेहतरीन बिजनेस में से एक है ! पिछले तीस साल में इसके स्वरुप बदले हैं ! पर् जेंटलमैन का बिजनेस आप इसे कह सकते हैं ! 
३.ठेकेदारी : - समाज के जिस वर्ग से मै आता हूँ - वहाँ हर परिवार में आपको एक 'ठेकेदार' जरुर मिल जायेंगे !   एक से बढ़ कर एक 'ठेकेदार' ! एक शादी में गया - पूछा लड़का क्या करता है ? पता चला एक सिनेमा हॉल में 'साईकील स्टैंड' का "ठीका" है ! पिछले आठ साल से नॉएडा - इंदिरापुरम इलाके में हूँ - मुझे बहुत कम बार 'पार्किंग' देना पड़ा - क्योंकी यहाँ के सभी ठेकेदार 'बिहारी' ही हैं :)) आज़ादी के बाद देश निर्माण के समय दो काम हुआ - उत्तर बिहार में हर घर में लोग सड़क निर्माण के 'ठीकेदार' बन् गए - जो ठेकेदार नहीं बने वो 'शिक्षक' बन् गए ! लालू राज में सब ठेकेदार गायब हो गए - अब नितीश राज में 'शांती' का एक वजह यह भी है की - सभी के सभी छोटे बड़े गुंडे 'सड़क निर्माण' के ठेकेदार बन् अब 'स्कोर्पियो और पजेरो' से नीचे बात ही नहीं करते हैं ! 
४.कोचिंग :- याद है मुझे बंगलौर से बाबु जी को फोन किया था - बोला की 'अब ई नौकरी न होई' ;-) बाबूजी पूछे -त का करोगे - मेरा जबाब था - "कोचिंग" ;) लालू राज में बिहार के सभी शहरों में हर गली की बात छोडिए - हर घर में - एक कोचिंग सेंटर खुल गया था ! जिसको देखिये वही एक चौकी लगा के - दू चार विद्यार्थीओं को पढ़ा रहा है ! अरबपति कोचिंग वाले से लेकर तुरंत का मैट्रीक पास किया हुआ - कोचिंग मालिक तक ;) हर वेरायीटी का कोचिंग मालिक और पढाने वाला ! आई आई टी टॉपर से लेकर घींच घांच के मैट्रीक पास तक ! आज भी बिहार के कई कोचिंग वाले हैं जिनकी सलाना आय करीब पांच करोड से लेकर पन्द्रह करोड तक है ! अगर आप इन् कोचिंग मालिकों की तरफ उंगली उठा दिए तो 'पत्रकार' आपको पटना में जिन्दा जला देंगे :)) जी , मै सच कह रहा हूँ ! सम्राट कामदेव सिंह के जमाने में बिहार के पुलीस अधिकारीओं को एक तनखाह सरकार देती थी दूसरी तनखाह - सम्राट देता था ! ;-) 
५. नर्सिंग होम : अगर आप उत्तर बिहार से गंगा ब्रीज से पटना में घुस रहे हैं तो आपको हर दूसरे मकान में एक नर्सिंग होम मिल जायेगा ! :) खासकर कंकडबाग में ! एक कमरे का नर्सींग होम भी है ! तिलक से मिल रहे पैसे से एक कमरे वाले 'नर्सिंग' होम खुल रहे हैं ! हनुमान मंदिर से लेकर एनआरआई तक इस धंधे में अपना पैसा लगा रहे हैं ! 
पर् , नितीश आगमन पर् इस बिजनेस को बल मिला और पटना में कई पुराने नर्सिंग होम खुद को अपग्रेड किये ! इससे सबसे ज्यादा सहूलियत एनआरबी ( अप्रवासी बिहारी ) को मिला - जिनके माता पिता पटना में रह रहे हैं और बेहतर स्वास्थ्य सेवा उनको मिल सकती हैं ! पटना के डॉक्टरों में एक बीमारी होती थी - खुद को आगे बढ़ाते थे - अपने नर्सिंग होम को नहीं - लेकिन अब ऐसा नहीं है ! 

मै आपको पटना के प्राईवेट हॉस्पिटल के अंदर की एक तस्वीर दिखाता हूँ - जो सन १९८६ में खुला था ! पर् नितीश राज के दौरान यहाँ के प्रोमोटर ने इसको एक नया रूप दिया ! "तारा हॉस्पीटल " - बिस्कोमान के ठीक पीछे - मेरे पिता जी भी यहाँ कार्यरत हैं ! 





रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Tuesday, November 30, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - जाड़ा का दिन !!

पिछला हफ्ता देखा की कुछ लोग हाफ स्वेटर पहने हुए थे ! शाम को घर लौटा तो  पत्नी को बोला - ए जी ..अब कोट सोट , स्वीटर इयूटर निकालिए ..कहाँ रखीं है सब ? बोली की 'पलग' के बक्सा में रखा हुआ है - कल निकाल दूंगी !  इस बात पर् 'एक राऊंड बहस' हो गया ! पुर पलंग के बक्सा को 'उकट' दिए ! फिर देखे की लाल वाला स्वेटर नहीं मिल रहा है - थोडा कड़ा आवाज़ में बोले - 'लाल वाला स्वेटर नहीं दिख रहा है ??' पत्नी बोली - 'हमको , क्या पता' ! अब फिर एक राऊंड बहस हुआ ! फिर , माँ को फोन लगाया - माँ बोलीं - वहीँ पटना में है ..पापा के आलमीरा में !! 

खैर , पटना याद आ गया ! छठ पूजा खत्म  होते ही माँ लालजी मार्केट जाती थीं ! उन का गोला खरीदने ! साथ में 'काँटा' ( सलाई ) ! ठण्ड शुरू होते ही छत पर् चटाई बीछ जाता - दिन भर माँ - चाची - फुआ - मामी जैसा लोग स्वेटर बुनता था ! हर चार दिन पर् - हमको बुलाया जाता और आधा बीना हुआ स्वेटर  मेरे ऊपर नपाता ! कभी कभी पुराना स्वेटर को 'उघार' दिया जाता - फिर उस रंग का उन खोजने जाओ - यहाँ जाओ - वहाँ जाओ :( हम लोग तबाह हो जाते - साईकील चलाते चलाते :( "मनोरमा" नाम की एक मैग्जीन होती थी - उसमे 'स्वेटर' के तरह तरह के डिजाईन ! पुर मोहल्ला में एक ही मनोरमा - सबके घर घूमता :) 

मौसी लोग बाबु जी के लिये कोट के नीचे पहनने वाला हाफ स्वेटर बून कर भेजता ! कई महिलायें काफी फास्ट - चार दिन में स्वेटर बून के तैयार ! कुछ लोग पुर सीजन लेता और नवंबर से जो प्रोजेक्ट शुरू होता वो जनवरी में खत्म होता ! हाथ से बुने हुए स्वेटर की खासियत यह थी की - स्वेटर की प्रशंषा होते वक्त 'बुनने वाले' की भी बडाई होती या  बताया जाता की कौन बुना है ! 

हाल फिलहाल तक मेरी छोटी फुआ जो मुझे 'चिंकू' के नाम से पुकारती हैं - मेरे लिये स्वेटर बुन कर भेजती थी ! बहुत प्यार से ! पत्नी को फुर्सत नहीं है या मेरे लिये स्वेटर बुनने का मन नहीं है  और मेरे बच्चों की  कोई छोटी 'मौसी' नहीं है :( 

कॉलेज तक लाल और ब्लू वाला 'ब्लेज़र' का फैशन था ! अब तो बहुत कम लोग पहनते हैं ! मफलर का क्रेज होता था ! थ्री पीस सूट जो बियाह में सिलाता था ..लोग पहनते थे ! इंग्लिश जैकेट भी ! ओवर कोट भी ! आज कल तो चाईना वाला जैकेट का फैशन है ! वूडलैंड के मालिक चाईना से जैकेट माँगा के यहाँ बेच रहे हैं :(  मैंने बचपन में कई लोगों को देखा है  'थ्री पीस कोट' और साईकील :)) अब वैसा सीन नहीं दिखता ! 

बचपन में खेल भी सीजन के हिसाब से होते थे ! देर शाम तक लाईट जला के 'बैडमिंटन' खेलना ! उसके पहले क्रिकेट ! बाबु जी बैडमिंटन खेलते थे और जब वो घर लौट जाते तो हम लोग टूटे हुए कॉर्क के साथ :) शाम को स्कूल से आता तो 'चुरा - घी - चीनी ' - मनपसंदीदा ! स्कूल जाने के पहले भर पेट 'कूकर से तुरंत निकला हुआ - गरम गरम भात - दाल भुजीया और धनिया का चटनी ' ! मजा आ जाता ! लाई बनता था ! एकदम बज्ज्जर लाई - लोढा से फोड के खाना पड़ता था ! :) अमीर रिश्तेदारों के यहाँ से 'बासमती का चिउरा' आता था - झोला में :( एक किलो - दू किलो :(( माँ के एक ही मामा जी थे - बहुत अमीर - हर साल खुद आते थे ' बासमती चिउरा - गया वाला तिलकूट' लेकर ! जब तक जिन्दा रहे आते रहे ..! ऐसे कई सम्बन्ध थे ! मालूम नहीं वो सभी लोग कहाँ खो गए :( 

गाँव में 'घूर' ( घूरा , आग ) जलता था ! माल मवेशी के समीप ! वहाँ पुरा गाँव आता ! शाम साढ़े सात बजे का प्रादेशीक समाचार फिर बी बी सी - हिंदी  :) वहीँ हम बच्चे भी :) अलुआ पका के खाते थे :) उफ्फ़ ....आँगन में बोरसी जलता था ...खटिया के नीचे रख दीजिए और सूत जाईये .. :) बाहर बरामदा में ..चौकी से घेर के ..धान के पुआल पर् चादर बिछा दिया जाता ...जो सो आकार सोता ...! वो एक व्यवस्था थी ! खुद का खुद होता ! अब सब कुछ बदल गया ! अब हमारे बरामदा पर् कोई सोने नहीं आता :(  

बचपन में बिना रजाई जाड़ा जाता ही नहीं :( सफ़ेद रंग के कपडे से रजाई का खोल ! कम्बल में भी खोल लगता था ...हम तो आज भी कम्बल ओढ़ के नहीं सो सकते :( ....एकदम से रजाई चाहिए ..! अब तो रूम हीटर आ गया है ..तरह तरह का ! कार में भी हीटर :) "गांती" भी बच्चे बांधते थे ..हम आज तक नहीं बांधे ! 

दिन भर ईख ( उख  ) चूसना ! मैट्रीक का परीक्षा का तैयारी भी ! 'सेन-टप' एग्जाम देने बाद ..इसी जाडा में दिन भर छत पर् 'गोल्डन गाईड' के अंदर हिंदी 'उपन्यास' पढते रहना ;) दोस्त लोग भी आ जाता था ! एक सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक गप्प ;) बीच बीच में पढाई भी ! कई दोस्त ऐसे होते जो कार्तिक पुर्णीमा के दिन नहाते फिर 'मकर संक्रांती ' दिन ! हा हा हा ......एक से बढ़ कर एक आइटम होता था ! 

क्या लिखूं :) हंसी आ रही है ..गुजरे जमाने को याद कर !! :)) 

रँजन  ऋतुराज  - इंदिरापुरम !