Thursday, September 25, 2014

बर्ग - ए - गुल


तुमसे मिलना ..समुन्दर किनारे ...रेत पर ...उंगलीओं से कुछ लिखना ही तो था ....तुमसे मिलना ...बर्ग ए गुल पर ओस की बूंदों का चमकना ही तो था ...फिर क्यों नहीं समुन्दर की लहरें ...रेत को समेट लेती हैं ....फिर क्यों नहीं ...सूरज की गर्मी ..ओस की बूदों को सोख लेती हैं .....
~ RR 
( बर्ग - ए - गुल = फूल के पत्ते )
~ ११ दिसंबर , २०१३ 

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