Thursday, September 25, 2014

गुलज़ार से मुलाक़ात

कल्पनाओं के शिखर पर एक अबोध तमन्ना बैठी होती है - उसकी अबोधता को देख ईश्वर उसे अपने गोद में बैठाते हैं - फिर वो तमन्ना एक दिन हकीकत बन बैठती है...:)) 

आज का दिन बेहतरीन रहा - कल देर रात तक जागने के बाद - सुबह नींद ही खुली 'रविश' की आवाज़ से - नहाते धोते ...थोड़ी देर हो ही गयी ..झटपट भागा ...रविश स्टेज पर बैठे थे ..वहीं से हाथ हिलाया ..मै भी सबसे पिछली कतार में बैठ गया ...तब तक एक आवाज़ आयी "आप दालानवाले हैं ..न " - एक तस्वीर खिंचवानी है आपके साथ ...ये थे आभाश भूषण - दालान को चाहने वाले ...फिर वो दोनों पति पत्नी मेरे साथ फोटो खिंचवाए - बेहद सज्जन और उन्दोनो ने बताया - दालान पर दी गयी सुचना कारण ही वो दोनों यहाँ आये ..:))
रविश का सत्र ख़त्म होने के साथ - उनका दूसरा सत्र शुरू होने वाला था - इसमे कोई दो राय नहीं - रविश काफी लोकप्रिय हैं - कई नौजवान उनके साथ फोटो खिंचवाने को बेताब थे - मेरी वेश भूषा देख - उनके प्रशंसक भी "दालान" वाले समझ गए ..:)) बढ़िया लगा ...
रविश के दुसरे सत्र के ठीक पहले आये - "गुलज़ार" ..झटपट भागा - दोनों हाथ से उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिया - आभास भूषण समझ गए - उन्होंने बाद में गुलज़ार के साथ मेरी कुछ तस्वीरें लीं ..गुलज़ार के साथ थे - ओम थानवी जी - मै क्या बोलता - भाव विभोर था - बस एक लाईन सुना पाया - "सारी रात मेरे शब्द जलते रहे - वो पत्थर से मोम बनते रहे..:)) गुलज़ार के ठीक पीछे बैठ - रविश का दूसरा सत्र - जिसके वो बादशाह जाने जाते हैं - नोस्टैल्जिया ..मेरा भी पसंदीदा ...उनके साथ थे - अंग्रेज़ी और डेनिश के लेखक - "तबिश खैर" - ताबिश सभी भाषा प्रयोग कर रहे थे - रविश अपनी हिंदी और भोजपुरी ...रविश बोलते बोलते - "छठ पूजा की यादों" पर बोलना शुरू कर दिए - डर था - कहीं फिर से वो मेरा नाम न बोल बैठें ..:)) रविश संभले - शुक्रगुज़ार रहता हूँ - हर ऐसे समाचार पत्र के लेख में वो मेरा नाम ठूंस ही देते हैं ...
रविश को लोग घेरे हुए थे - मैंने बोला - रविश ..मैंने पटना म्यूजियम नहीं देखा है ...और आज आप मेरे गाईड बन के ..मुझे घुमाएं .. रविश तैयार हुए ..हम दोनों अकेले निकल पड़े ...घूम कर लौटे तो ...पवन कार्टूनिस्ट और उनकी पत्नी रश्मी दोनों रविश को अपने कार्टून का एक बेहद बढ़िया गिफ्ट ...इसी बीच ..टेलेग्राफ़ के रोविंग एडिटर 'संकर्षण ठाकुर' मिल गए - बोले ..रंजन ..मेरी भी किताब का आज लोकार्पण है - आप आईये - संकर्षण बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं - अपने साथ वालों से परिचय कराने लगे - रंजन को पढने से ज्यादा सुनने में मजा आता है ...:))
फिर हम और रविश संकर्षण ठाकुर के किताब जो नितीश कुमार के ऊपर छपी है ...के लोकार्पण में चले गए - ढेर सारी गप्प - व्यक्तिगत बातें ...वहां से निकले तो ...रविश के साथ पटना का सैर ...फिलोसोफी ...फिलोसोफी और फिलोसोफी ...ढेर सारी गाईडलाईन ...दोनों तरफ से ...:))
~ १५ फरवरी २०१४

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