Tuesday, November 30, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - जाड़ा का दिन !!

पिछला हफ्ता देखा की कुछ लोग हाफ स्वेटर पहने हुए थे ! शाम को घर लौटा तो  पत्नी को बोला - ए जी ..अब कोट सोट , स्वीटर इयूटर निकालिए ..कहाँ रखीं है सब ? बोली की 'पलग' के बक्सा में रखा हुआ है - कल निकाल दूंगी !  इस बात पर् 'एक राऊंड बहस' हो गया ! पुर पलंग के बक्सा को 'उकट' दिए ! फिर देखे की लाल वाला स्वेटर नहीं मिल रहा है - थोडा कड़ा आवाज़ में बोले - 'लाल वाला स्वेटर नहीं दिख रहा है ??' पत्नी बोली - 'हमको , क्या पता' ! अब फिर एक राऊंड बहस हुआ ! फिर , माँ को फोन लगाया - माँ बोलीं - वहीँ पटना में है ..पापा के आलमीरा में !! 

खैर , पटना याद आ गया ! छठ पूजा खत्म  होते ही माँ लालजी मार्केट जाती थीं ! उन का गोला खरीदने ! साथ में 'काँटा' ( सलाई ) ! ठण्ड शुरू होते ही छत पर् चटाई बीछ जाता - दिन भर माँ - चाची - फुआ - मामी जैसा लोग स्वेटर बुनता था ! हर चार दिन पर् - हमको बुलाया जाता और आधा बीना हुआ स्वेटर  मेरे ऊपर नपाता ! कभी कभी पुराना स्वेटर को 'उघार' दिया जाता - फिर उस रंग का उन खोजने जाओ - यहाँ जाओ - वहाँ जाओ :( हम लोग तबाह हो जाते - साईकील चलाते चलाते :( "मनोरमा" नाम की एक मैग्जीन होती थी - उसमे 'स्वेटर' के तरह तरह के डिजाईन ! पुर मोहल्ला में एक ही मनोरमा - सबके घर घूमता :) 

मौसी लोग बाबु जी के लिये कोट के नीचे पहनने वाला हाफ स्वेटर बून कर भेजता ! कई महिलायें काफी फास्ट - चार दिन में स्वेटर बून के तैयार ! कुछ लोग पुर सीजन लेता और नवंबर से जो प्रोजेक्ट शुरू होता वो जनवरी में खत्म होता ! हाथ से बुने हुए स्वेटर की खासियत यह थी की - स्वेटर की प्रशंषा होते वक्त 'बुनने वाले' की भी बडाई होती या  बताया जाता की कौन बुना है ! 

हाल फिलहाल तक मेरी छोटी फुआ जो मुझे 'चिंकू' के नाम से पुकारती हैं - मेरे लिये स्वेटर बुन कर भेजती थी ! बहुत प्यार से ! पत्नी को फुर्सत नहीं है या मेरे लिये स्वेटर बुनने का मन नहीं है  और मेरे बच्चों की  कोई छोटी 'मौसी' नहीं है :( 

कॉलेज तक लाल और ब्लू वाला 'ब्लेज़र' का फैशन था ! अब तो बहुत कम लोग पहनते हैं ! मफलर का क्रेज होता था ! थ्री पीस सूट जो बियाह में सिलाता था ..लोग पहनते थे ! इंग्लिश जैकेट भी ! ओवर कोट भी ! आज कल तो चाईना वाला जैकेट का फैशन है ! वूडलैंड के मालिक चाईना से जैकेट माँगा के यहाँ बेच रहे हैं :(  मैंने बचपन में कई लोगों को देखा है  'थ्री पीस कोट' और साईकील :)) अब वैसा सीन नहीं दिखता ! 

बचपन में खेल भी सीजन के हिसाब से होते थे ! देर शाम तक लाईट जला के 'बैडमिंटन' खेलना ! उसके पहले क्रिकेट ! बाबु जी बैडमिंटन खेलते थे और जब वो घर लौट जाते तो हम लोग टूटे हुए कॉर्क के साथ :) शाम को स्कूल से आता तो 'चुरा - घी - चीनी ' - मनपसंदीदा ! स्कूल जाने के पहले भर पेट 'कूकर से तुरंत निकला हुआ - गरम गरम भात - दाल भुजीया और धनिया का चटनी ' ! मजा आ जाता ! लाई बनता था ! एकदम बज्ज्जर लाई - लोढा से फोड के खाना पड़ता था ! :) अमीर रिश्तेदारों के यहाँ से 'बासमती का चिउरा' आता था - झोला में :( एक किलो - दू किलो :(( माँ के एक ही मामा जी थे - बहुत अमीर - हर साल खुद आते थे ' बासमती चिउरा - गया वाला तिलकूट' लेकर ! जब तक जिन्दा रहे आते रहे ..! ऐसे कई सम्बन्ध थे ! मालूम नहीं वो सभी लोग कहाँ खो गए :( 

गाँव में 'घूर' ( घूरा , आग ) जलता था ! माल मवेशी के समीप ! वहाँ पुरा गाँव आता ! शाम साढ़े सात बजे का प्रादेशीक समाचार फिर बी बी सी - हिंदी  :) वहीँ हम बच्चे भी :) अलुआ पका के खाते थे :) उफ्फ़ ....आँगन में बोरसी जलता था ...खटिया के नीचे रख दीजिए और सूत जाईये .. :) बाहर बरामदा में ..चौकी से घेर के ..धान के पुआल पर् चादर बिछा दिया जाता ...जो सो आकार सोता ...! वो एक व्यवस्था थी ! खुद का खुद होता ! अब सब कुछ बदल गया ! अब हमारे बरामदा पर् कोई सोने नहीं आता :(  

बचपन में बिना रजाई जाड़ा जाता ही नहीं :( सफ़ेद रंग के कपडे से रजाई का खोल ! कम्बल में भी खोल लगता था ...हम तो आज भी कम्बल ओढ़ के नहीं सो सकते :( ....एकदम से रजाई चाहिए ..! अब तो रूम हीटर आ गया है ..तरह तरह का ! कार में भी हीटर :) "गांती" भी बच्चे बांधते थे ..हम आज तक नहीं बांधे ! 

दिन भर ईख ( उख  ) चूसना ! मैट्रीक का परीक्षा का तैयारी भी ! 'सेन-टप' एग्जाम देने बाद ..इसी जाडा में दिन भर छत पर् 'गोल्डन गाईड' के अंदर हिंदी 'उपन्यास' पढते रहना ;) दोस्त लोग भी आ जाता था ! एक सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक गप्प ;) बीच बीच में पढाई भी ! कई दोस्त ऐसे होते जो कार्तिक पुर्णीमा के दिन नहाते फिर 'मकर संक्रांती ' दिन ! हा हा हा ......एक से बढ़ कर एक आइटम होता था ! 

क्या लिखूं :) हंसी आ रही है ..गुजरे जमाने को याद कर !! :)) 

रँजन  ऋतुराज  - इंदिरापुरम !

Wednesday, November 24, 2010

"नितीश मोदी " को बधाई !!!!




ये पांच साल पुरानी तस्वीर है ! ठीक पांच साल पुरानी ! यह तस्वीर अब और बड़ी हो चुकी है ! नितीश और बड़े होकर निकले ! जनता के पास और कोई उपाय नहीं था ! विकल्पहीनता के बेताज बादशाह को इस बार फिर 'ताज और राज' मिला ! 

बिहार का स्वर्णीम काल चल रहा है या नहीं - ये मुझे नहीं पता पर् 'नितीश कुमार' पर् 'समय' इस कदर मेहरबान है की वो एक साथ अपने कई दोस्तों और दुश्मनों को  अपनी और उनकी अवकात दिखा दिया ! इनकी जीत में विकास से ज्यादा कुछ और फैक्टर है - और सबसे बड़ा फैक्टर है - "ईबीसी और एमबीसी" वोट का लालू से नितीश के तरफ शिफ्ट करना ! यहाँ नितीश उनका 'विश्वास' जीतने में सफल हुए ! 

इस बार नितीश कुमार के सामने कई और चैलेन्ज होंगे ! उनका ड्रीम कानून - "बटाईदार कानून" के साथ वो क्या करेंगे - यह देखना होगा ! क्या इस बार भी  वो 'नालंदा और अपनी जाति' के लोगों को मलाईदार पदों पर् बैठाएंगे ? सवर्णों के प्रती उनका क्या रवैया रहेगा ? 

नितीश तो उस दिन ही जीत गए थे - जिस दिन 'दिग्विजय बाबु' का देहांत हो गया था और लालू ने रघुवंश बाबु को मुख्यमंत्री के रूप में आगे नहीं बढ़ाया .....बाकी की सभी चीज़ें खानापूर्ती थी ! 

अंततः ...नितीश मोदी ..बिहार को एक नयी छवी देंगे ..इन्ही आशाओं के साथ ....


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Saturday, November 20, 2010

"बिहारी प्राईड - भाग तीन"

बात उन दिनों की है ! २००३ की ! फेसबुक नहीं था ! ऑरकुट भी नहीं था ! याहूग्रुप हुआ करते थे ! घर से दूर होने के कारण मैंने भी कई 'याहूग्रुप' अपने स्वादानुसार  ज्वाइन किया ! बिहारीओं के भी ग्रुप थे ! पढ़े - लिखे बिहार से बाहर बसे युवाओं का ग्रुप ! सबके अंदर एक ही भावना - मेरा बिहार ..देश की रफ़्तार के साथ कैसे जुडेगा ! अगर आप उनदिनो उन ग्रुप के मेंबर थे तो आपको उस छोटे ग्रुप में एक 'मिनी बिहार' नज़र आता !
इंटरनेट में बने याहूग्रुप दरअसल 'डिस्कशन फोरम' था - जिसको कई लोग समझ नहीं पाते थे ! फिर भी लोगों ने इस छोटे छोटे ग्रुप से बहुत कुछ निकालने की कोशिश की ! कई बार तरह तरह के काम के लिये 'चंदे' इकठ्ठे किये गए - थोडा बचकाना भी लगता था - पर् भावना ऐसी थी की आपको अपना 'झंडा' ऊँचा रखना था ! इन युवाओं में अपने 'राज्य' के लिये कुछ करने की बेचैनी थी - अजब सी बेचैनी - पर् साथ साथ 'बिहार के सारे रंग' ;-)
मुझे कुछ चीजें बहुत अच्छी लगी ! उनमे से एक था - 'मीडिया' का मुह बंद करना ! 'राष्ट्रीय मीडिया' ने अजब सा तमाशा बना दिया था - जब देखो तब 'बिहार' के लिये कुछ 'निगेटीव' ! इसमे आगे आये - आई टी - बी एच यू के अलुम्नी ठाकुर विकास सिन्हा जिन्हें सभी प्रेम से 'TVS' कहते हैं ! इनके साथ एक मजबूत कड़ी और थी इनका 'XLRI' का भी अलुम्नी होना - जिसके कारण 'अजित चौहान' इत्यादी लोग मजबूती से इनका साथ देते गए और नतीजा निकला - 'मीडिया' मुह बंद करने लगा ! कई लड़ाई इनलोगों ने लड़ी ! धीरे - धीरे इन्होने ने एक 'कोर इलीट ग्रुप - वन बिहार' भी बनाया ! फ्लड रीलीफ में इनलोगों ने पटना निवासी 'चन्दन सिंह' के एन जी ओ के द्वारा बहुत कुछ करने की कोशिश की ! लालू प्रसाद विदा हुए और नितीश के आगमन पर् इस ग्रुप ने एक बेहतरीन काफी टेबल बुक निकली - गौरवशाली बिहार ! जिसमे नवीन और चन्दन का बहुत बड़ा रोल था ! बिहार्टाईम्स के द्वारा आयोजित ग्लोबल मीट में  ये ग्रुप काफी सक्रिय भी रहा ! नवीन आई आई टी - खरगपुर के अलुम्नी हैं और नितीश जी के काफी करीबी भी - जिसके फलस्वरूप 'नालंदा खँडहर' के गेट के ठीक सामने 'नितीश' जी ने इनको जगह दी - जहाँ इन्होने 'मल्टीमीडिया' सेंटर खोला !  सुना है लाखों में कमाई है ! अभी ५-६ दिन पहले अजीत चौहान ने मुझे फेसबुक पर् बने 'बिहार' ग्रुप पर् एड किया - जबकि वहाँ करीब तीन सौ मेंबर पहले से मौजूद थे - थोडा आश्चर्य भी हुआ - सोचा ..चलो कोई बात नहीं .....याद तो किया :-) थैंक्स ..अजीत भाई !! :))
अभी हाल में ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बहुत गंदे ढंग से बिहार के लिये अपने शब्दों का प्रयोग किया - अजीत चौहान - टीवीएस टीम को पता चला और इनलोगों के उनको मुहतोड  जबाब दिया - उन्हें अपने शब्द वापस लेने पड़े ! व्यक्तिगत रूप से मुझे काफी खुशी मिली !
२००३ में ही मेरी जान पहचान हुई - संजीव रॉय से ! वो भी आई टी - बी एच यू के अलुम्नी ! टोएफेल और जी आर् ई के वर्ल्ड टोपर :) सिंगापूर में 'बिहार और झारखण्ड' का ग्रुप "बिझार" को चलने वाले ! बेहद मृदुभाषी और सभ्यता - संस्कृति को अपने अगले जेनेरेशन तक ले जाने को बेचैन ! ये ग्रुप सिंगापूर में बिहारीओं के बीच लोकप्रिय भी हुआ और 'रीयल ग्रुप' के रूप में सामने आया - यह ग्रुप साल में सभी पर्व त्योहारों में आपस में मिलता और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करता ! लोहा सिंह के कई नाटक - मैंने इस ग्रुप के वेब साईट पर् जा कर देखे हैं :) मेरे दालान को शुरू करने का सलाह 'संजीव रॉय ' का ही था ! वो सिर्फ बिहार ही नहीं रांची के अपने स्कूल और आई टी - बी एच यू अलुम्नी के बीच भी काफी व्यस्त रहते हैं साथ ही साथ अपनी कंपनी के 'ग्लोबल मैनेजर' भी हैं ! अब वो बे एरिया में शिफ्ट कर गए हैं - मैंने उनको 'मुंबई' के लिट्टी चोखा ग्रुप के बारे में बताया - तो वो बोले हाँ - मेरे ही आई टी - बी एच यू के सीनियर वहाँ एक्टिव हैं :) मै टीवीएस को याद कर मुस्कुरा दिया ! फिर संजीव रॉय बोले - कनाडा में 'मनोज कुमार सिंह' ने भी ऐसा ही ग्रुप बनाया है - मै फिर मुस्कुराया - क्योंकी मनोज भैया मेरे स्कूल के सीनियर ही नहीं 'दालान' के काफी बड़े फैन भी हैं :) मनोज भैया भी आई टी - बी एच यू के ही अलुम्नी हैं !
आई टी - बी एच यू के इन तीनो अलुम्नी को सलाम !
इंटरनेट से ही लोगों को जोड़ 'विभूती विक्रमादित्य और राम राज पांडे ' ने 'बिहार साईनटीफिक सोसाईटी' बना हर साल विश्व स्तर के कॉन्फेंस करते हैं ! यह काम आसान नहीं है ! इंटरनेट पर् दोस्ती तो बहुत जल्द होती हैं - पर् विश्वास बनाने में कई जनम भी लग् सकते हैं ! पर् अपने राज्य के लिये कुछ करने की जिद ने ऐसे लोगों को हर एक बाधा पार करने की क्षमता दी !
इन सबमे बिहारटाईम्स डॉट कोम के अजय कुमार का भी योगदान रहा ! वो १९९८ से लगातार अपनी साईट बिना किसी भेदभाव के चलाते रहे ! २००६ जनवरी में ग्लोबल मीट करवा - एन आर् बी की मजबूत आधार को और मजबूती दी ! पटना डेली भी है जो पटना के रंग बिरंगे फोटो और समाचारों के साथ अपने विजिटर्स का स्वागत करती है !
ये कोई फैशन नहीं है ! कोई जरूरत नहीं है ! यह एक भावना है ! मुझे बहुत अच्छी तरह याद है - सन २००४ में जब मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली के सभी अखबारों में 'वर्ल्ड पंजाबी फोरम' के तहत उनको बधाई सन्देश हाफ पेज में दिए गए थे !
सफर अभी लंबा है और बहुत सारी चीजों से लड़ना बाकी है !!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Monday, November 8, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा छठ

कल से ही अखबार में 'छठ पूजा' को लेकर हो रही तैयारी के बारे में समाचार आने लगे ! आज तो दिल्ली वाला 'हिंदुस्तान दैनिक' फूल एक पेज लिखा है ! कल दोपहर बाद देखा - फेसबुक पर् शैलेन्द्र सर ने एक गीत अपने वाल पर् लगाया था - शारदा सिन्हा जी का ! गीत सुनते सुनते रोआं खडा हो गया और आँख भर आयी !

"छठी मैया ...छठी मैया....." ..............

क्या लिखूं ? अपना वतन याद आ रहा है ! अपना गाँव - शहर - अपने लोग ! क्या खोया - क्या पाया ..इसका हिसाब तो बाद में होगा ! ये चमक - ये दमक - ये धन - ये दौलत - ये रोब - ये अकड - ये घमंड ..कभी कभी ये सब फीका लगता है ! खैर ...

दशहरा के बाद ही 'कैलेण्डर' में 'चिन्हा' लगा दिया जाता था - कहिया गाँव जाना है ! हमारे गाँव में एक बहुत खूबसूरत परंपरा थी - दशहरा से लेकर दीपावली के बीच 'नाटक' खेला जाता था ! कभी पहले पहुंचा तो ..नाटक में भाग ले लेता था ! अब कुछ नहीं होता - अब हर घर में टी वी है ! मेरे घर में एक परंपरा है - हर होली और छठ में परिवार के सभी लोगों के लिये 'कपड़ा' खरीदने का पैसा - बाबा देते हैं - आज उनकी उम्र करीब चौरासी साल हो गयी - फिर भी इस बार दशहरा में उनसे मिला तो 'छठ' के नाम पर् वो बच्चों और पत्नी के कपडे के लिये कुछ पैसा - मां को दिए - फिर मां ने हमारी पत्नी को दीं ! :) पैसा से ज्यादा 'आशीर्वाद' होता है !

बचपन में ये पैसा से हमलोग का कपड़ा खरीदाता था ! रेडीमेड का जमाना नहीं था ! मा बाबु जी के साथ रिक्शा से जाना - कपड़ा खरीदना - फिर उसको 'फेरने' जाना ;-) 'फेरते' वक्त बाबु जी नहीं जाते - खैर ..कपडा खरीदा गया ! दीपावली भी मन गया ! मुजफ्फरपुर में रहते थे - एक दिन पहले रिक्शा वाले को बोल दिया जाता की - सुबह सुबह ३ बजे आ जाना ! उस रात ..माँ रात भर कपडा को सूटकेस में डालती ! हल्का ठण्ड भी होता था सो स्वेटर वैगरह !

सुबह सुबह रिक्शा आ जाता ! सूटकेस रखा जाता ! एक रिक्शा पर् माँ और बहन और एक पर् बाबु जी और हम ! पैर को सूटकेस के ऊपर लटका के ! बाबु जी के गला में मफलर और एक हाफ स्वेटर ! चार बजे एक बस - रेलवे स्टेशन के सामने से खुलता था ! ठीक उसी वक्त एक ट्रेन 'कलकत्ता' से आता - हम लोग जब तक पहुंचते बस भर चूका होता ! सिवान के बच्चा बाबु का बस होता था - कंडक्टर - खलासी - ड्राईवर जान पहचान का सो सीट का इंतजाम हो जाता ! अब इमेजीन कीजिए - पूरा बस 'कलकतिया' सब से भरा हुआ ! "चुकुमुकू" कर के सीट पर् बैठ कर बीडी ! भर माथा 'कियो-कारपीन' तेल ! एक झोला और झोला में तरह तरह का साबुन :) और पाकीट में 'गोल वाला चुनौटी' ;-) खिडकी खोल के हवा खाता :)

गाँव से कुछ दूर पर् ही एक जगह था - वहाँ हम लोग उतरते ! माँ को चाय पीने का मूड होता ! तब तक बाबु जी देख रहे होते ही गाँव से कोई आया है की नहीं ! पता चलता की 'टमटम' आया हुआ है ! माँ और बहन टमटम पर् ..पूरा टमटम साडी से सजाया हुआ ! 'कनिया' :) हम और बाबु जी हाथी पर् ! हम लोग निकल पड़ते ..! वो लहलहाते खेत ! रास्ता भर हम बाबु जी को तंग करते जाते - ये खेत किसका है ? इसमे क्या लगा है ?

गाँव में घुसते ही - बाबु जी हाथी से उतर जाते और पैदल ही ! जो बड़ा बुजुर्ग मिलता - उसको प्रणाम करते - अपने बचपन के साथीओं से मिलते जुलते ! तब तक हम दरवाजे पर् पहुँच जाते ! बाबा को देख जो खुशी मिलती उस खुशी को बयान नहीं कर सकता ! वो खादी के हाफ गंजी में होते - सीसम वाला कुर्सी पर् - आस पास ढेर सारे लोग ! उनको प्रणाम करता और कूदते फांदते आँगन में ..दीदी( दादी)  के पास ! आँगन में लकड़ी वाला चूल्हा - उस चूल्हे से आलूदम की खुशबू ! आज तक वैसा आलूदम खाने को नहीं मिला :(  दरवाजे पर् कांसा वाला लोटा में पानी और आम का पल्लो लेकर कोई खडा होता ..माँ के लिये ! फिर 'भंसा घर' में जा कर 'कूल देवी' को प्रणाम करना ! इतने देर में हम 'दरवाजा - आँगन' दो तीन बार कर चुके होते ! ढेर सारे 'गोतिया' के भाई बहन - कोई रांची से - कोई मोतिहारी से - कोई बोकारो से ! कौन कब आया और कितने 'पड़ाके' साथ लाया :-) तब तक पता चलता की 'पड़ाका' वाला झोला तो मुजफ्फरपुर / पटना में ही छूट गया ! उस वक्त मन करता की 'भोंकार' पार कर रोयें ! गोतिया के भाई - बहन के सामने सारा इज्जत धुल जाता ! माँ को तुरंत खड़ी खोटी सुनाता ! दीदी ( दादी ) को ये बात पता चलता - फिर वो बाबा को खबर होता ! बाबा किसी होशियार 'साईकील' वाले को बुलाते - उसको कुछ पैसा देते की पास वाले 'बाज़ार' से पड़ाका ले आओ :)

दोपहर में हम बच्चों का डीयुटी होता की पूजा के परसाद के लिये जो गेहूं सुख रहा है उसकी रखवाली करो के कोई कौआ नहीं आये ! हम बच्चे एक डंडा लेकर खडा होते ! बड़ा वाला खटिया पर् गेहूं पसरा हुआ रहता ...फिर शाम को कोई नौकर उसको आटा चक्की लेकर जाता ! कभी कभी हम भी साथ हो जाते ! बिजली नहीं होता था ! आटा चक्की से एक विशेष तरह का आवाज़ आता ! वो मुझे बहुत अच्छा लगता था !

दादी छठ पूजा करती ! पहले बाबु जी भी करते थे ! आस पास सभी घरों में होता था ! नहा खा के दिन बड़ा शुद्ध भोजन बनता ! खरना के दिन का परसाद सभी आँगन में घूम घूम के खाना ! छठ वाले दिन - संझीया अरग वाले दिन - जल्दी जल्दी तैयार हो कर 'पोखर' के पास पहुँचाना ! बहुत साल तक माँ नहीं जाती - फिर वो जाने लगीं ! वो सीन याद आ रहा है और आँखें भींग रही हैं ! १५ - २० एकड़ का पोखर और उसके चारों तरफ लोग ! रास्ता भर छठ के गीत गाते जाती महिलायें ! भर माथा सिन्दूर ! नाक से लेकर मांग तक ! पूरा गाँव आज के दिन - घाट पर् ! क्या बड़ा - क्या छोटा - क्या अमीर - क्या गरीब ! गजब सा नज़ारा ! पोखर के पास वाले खेत में हम बच्चे ..पड़ाका में बिजी ..तब तक कोई आता और कहता ..'अरग दीआता'  ...पड़ाका को वहीँ जैसे तैसे रखकर दादी के पास ..वो "सूर्य" को प्रणाम कर रही हैं ....आस पास पूरा परिवार ...क्या कहूँ इस दृश्य के बारे में ....बस कीबोर्ड पर् जो समझ में आ रहा है ..लिखते जा रहा हूँ ....

हमारे यहाँ 'कोसी' बंधाता है - आँगन में ! उस शाम जैसी शाम पुर साल नहीं आती ! बड़ा ही सुन्दर 'कोसी' ! चारों तरफ ईख और बीच में मिट्टी का हाथी उसके ऊपर दीया ...! घर के पुरुष कोसी बांधते ..हम भी पुरुष में काउंट होते :)  बड़े बड़े पीतल के परात में परसाद ! वहाँ छठ मैया से आशीर्वाद माँगा जाता - हम भी कुछ माँगते थे :) फिर दादी को प्रणाम करना !

अब यहाँ एक राऊंड फिर से दरवाजा पर् 'पड़ाका' ! पूरा गाँव हील जाता ;-) दादी कम्बल पर् सोती सो उनके बड़े वाले पलंग पर् जल्द ही नींद आ जाती ...सुबह सुबह ..माँ जगा देती ....कपड़ा बदलो ....पेट्रोमैक्स जलाया जाता ...कई लोग "लुकारी" भी बनाते ! कई पेट्रोमैक्स के बीच में हम लोग फिर से पोखर के पास निकल पड़ते ! दादी खाली पैर जाती थी ! पूरा गाँव ..नहर के किनारे ....  एक कतार में ......पंडीत जी की खोजाई होती ..'बनारस वाला पत्रा' देख कर वो बताते ...सूरज भगवान कब उगेंगे ....उसके १० -१५ मिनट पहले ही दादी पोखर के किनारे पानी के खडा होकर 'सूर्य' भगवान को ध्यानमग्न करती ! अरग दिआता !

पूजा खत्म हो चूका होता ! पोखर से दरवाजे लौटते वक्त ...तरह तरह का परसाद खाने को मिलता ! किसी का देसी घी में तो किसी का 'तीसी के तेल ' का :) फिर दरवाजे पर् आ कर 'गन्ना चूसना' :)) फिर हम दादी के साथ बैठ कर खाते - पीढा पर् !

अब दिल धक् धक् करना शुरू कर देता ..बाबु जी को देखकर डर लगता ..मालूम नहीं कब वो बोल दें ...मुजफ्फरपुर / पटना वापस लौटना है :( बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती ...माँ को देखता ...वो धीरे धीरे 'टंगना' से सिर्फ हम लोगों के ही कपडे चुन चुन कर एक जगह रख रही होतीं ....ऐसा लगता ..अब दिल बाहर आ जायेगा ....तब तक देखता ..टमटम सजा खडा है ..पता चलता की 'मोतीहारी' वाले बाबा का परिवार वापस जा रहा है ...सब गोतिया - पटीदार के भाई बहन हम ऐसे मिलते जैसे ..मालूम नहीं अब कब मिलेंगे ....बाबा के पास दौर कर जाता ..काश वो एक फरमान जारी कर दें ...एक दिन और रुकने का ....बाबा ने फरमान जारी कर दिया और हम लोग एक दिन और रुक गए :))

अगले दिन ...जागते ही देखता की ..बाबू जी 'पैंट शर्ट 'में :( मायूस होकर हम भी ! माँ का खोइंछा भराता..कुल देवी को प्रणाम ..दादी के आँखें भरी ..माँ की ...दादी - बाबा आशीर्वाद में कुछ रुपये ..पॉकेट में छुपा कर रख लेता :)

फिर होली का इंतज़ार .....

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मालूम नहीं ..क्या लिखा ..कैसा लिखा ..बस बिना संपादन ..एक सांस में लिख दिया ....कम्मेंट जरुर देंगे !


छठ का गीत !!





रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Wednesday, November 3, 2010

बिहारी प्राईड : भाग दो

अभी हाल तक मलय स्कूल में था ! बारहवीं की परीक्षा के बाद जहाँ उसके सभी दोस्त आगे की पढाई के लिये कमर कस रहे थे - मलय अमरीका पहुँच छः महीने का 'हवाई जहाज' उड़ाने का ट्रेनिंग लिया और अब मात्र २२-२३ साल में वो 'कैप्टन' रैंक पर् पहुँच गया ! अभय मरे स्कूल का दोस्त है और मरे साथ ही काम करता है - मलय उसका छोटा साला है ! जब कभी मै मिलता हूँ - दोस्त के साले के नाते हंसी - मजाक ! बात बात में ही पूछ दिया - कितना मिलता है ? बोला - काट कूट के ५ लाख महीना ! अब वो बी एम डब्लू का कोई नया सीरीज खरीदने वाला है ! इतने कम उमर में इतना तनखाह फिर भी बेहद शर्मीला ! नॉएडा के आम्रपाली ग्रुप के एक प्रोजेक्ट में खुद के लिये एक पेंट हॉउस भी बुक किया है !

ये एक मलय नहीं है - हो सकता है आपके जान पहचान में भी ऐसे कई बिहारी हों ! लालू-राबड़ी के पन्द्रह साल के शासन काल में कई परिवारों को बिहार से दिल्ली - मुंबई आने पर् मजबूर कर दिया ! ये लोग कोई बड़ा सपना लेकर नहीं आये थे - बस दो वक्त की रोटी कि तलाश में आये थे ! संजीव मरे साथ पढता था - पर् दूसरे कॉलेज में ! सिविल इंजीनियर - इरादा - बिहार सरकार में नौकरी का ! पर् बिहार नसीब में नहीं था ! कहता है - नौकरी मिलने के ठीक पहले वाले महीने में - पॉकेट में मात्र कुछ रुपये बच गए थे - इंडोनेशिया - मलेशिया इत्यादी जगहों से काम कर के कुछ पैसा जमा किया और चाचा के बिजिनेश में छोटा पार्टनर बन गया ! जब पूरी दुनिया आर्थिक रूप से टूट रही थी - संजीव ने दूसरे बिहारी के साथ मिलकर अपनी कंपनी २००६ में शुरू की और इस साल उसने नॉएडा में १५० एकड लेकर पुरे एन सी आर में हंगामा खड़ा कर दिया - जिसकी सरकारी कीमत करीब एक हज़ार करोड होती है ! साल में २ नए गाड़ी जरूर खरीदता है - उसके पार्टनर और मरे पुराने मित्र मनोज रे कहते हैं - अब हम बिहारीओं को बाकी के लोग सीरियस लेने लगे हैं ! हमारी पहचान 'पुरबिया मजदूर' से मालिक वाली होने लगी है ! इन दोनों की कम्पनी 'गारडेनिया' अब अगले साल आई पी ओ लाने वाली है - देखिये आगे आगे क्या होता है ? पर् ..इस जोखिम के खेल में बहुत साहस चाहिए !

और आम्रपाली ग्रुप के अनील शर्मा का क्या कहना :) कहते हैं - हम तो किसान के बेटे थे - बिहार में क्षीण होती संभावनाएं और कुछ करने कि तमन्ना ने आज 'एन सी आर' का बादशाह बना दिया - बेहद मीठे बोलने वाले ! दिल्ली से लेकर पटना तक - बिहारी प्राईड से जुड़े किसी भी कार्यक्रम को वो प्रायोजित करने से नहीं चूकते ! कल तक पटना की सडकों पर् पीले रंग की स्कूटर से चलने वाले अनील शर्मा का काफीला जब नॉएडा से दिल्ली एअरपोर्ट के लिये निकलता है - 'ओबामा' भी शरमा जाएँ :) इस तेज रफ़्तार की बढ़त में कई और कारक हो सकते हैं - पर् 'इरादा' बुलंद है ! हिटलर पर् एक सिनेमा भी बना रहे हैं !

बक्सर निवासी संजीव श्रीवास्तव पैन बिहारी इमेज के साथ हैं ! एन सी आर से कमाए पैसे बिहार में लगाना चाहते हैं ! बिहार के परिवहन मंत्री के बेटे के साथ मिलकर कंकडबाग में ४०० बेड का हॉस्पीटल और कई होटल ! बयूरोक्रैट परिवार से आते हैं - पता है - अपर क्लास को क्या पसंद है :) सो उनके सभी प्रोजेक्ट काफी इलीट होते हैं ! अभी हाल में ही 'आई बी एन - सी एन एन ' के सागरिका के प्रोग्राम में नज़र आये थे !

कवी कुमार से बेहतर बोलने वाला बिहारी मैंने आजतक नहीं देखा ! जमींदार घराने से आये हुए - कवी कुमार इंडियाबुल्स के एक मजबूत खम्भे थे ! समीर गहलौत के सबसे नजदीकी है ! समीर ने उनकी प्रतिभा का उपयोग और सम्मान भी किया ! बड़े ही आलिशान कोठी में - नॉएडा में रहते हैं ! कहते हैं - हम हर सुबह 'दही चुडा' ही नास्ता करता हूँ ! अपने गाँव सीतामढी में सिनेमा सूटिंग के लिये एक स्टूडियो बनाया है ! हर दूसरे महीने बिहार जाते हैं ! अपने शहर में जमीन खरीद .कई परियोजनाओं में पैसा लगाना चाह रहे हैं ! एक भोजपुरी सिनेमा भी बनाया है - कब अइबू अंगनवा हमार - और उसको नॉएडा के मल्टीप्लेक्स में भी लगवाया !

ये अनगिनत बिहारी हैं - जो घर  से बाहर आकर 'बिहारी प्राईड'  और रोजगार पैदा कर रहे हैं और सबके दिल में एक बिहार बसता है - सभी बिहार के लिये कुछ करना चाहते हैं !

क्रमशः


यह जारी रहेगा ....कृपया आपको कुछ और जानकारी हो तो मेल कीजिए mukhiya.jee@gmail.com


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Monday, November 1, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरी दीपावली

एक बार फिर दिवाली आ गया ! हर साल आता है ! यादों का मौसम एक बार फिर आया ! अभी अभी पटना से लौटा हूँ - कई लोग फिर से बोलने पूछने लगे - 'दिवाली में भी आना है ?' अरे ..मेरे भाई ..हम पेटभरुआ मजदूर हैं ..कहाँ इतना पैसा बचाता है कि ..हर पर्व त्यौहार में घर-गाँव जा सकें !

स्कूल में पढते थे ! कई दिन पहले से सड़क पर् ईट लगा के चौकी पर् 'पड़ाका' ( पटाखा ) बिकता था ! स्कूल से लौटते वक्त उन पडाकों को मन भर देखना - दोस्तों से तरह तरह के 'पडाकों' के बारे में बात करना - खासकर 'बम' ..एटम बम ..बीडिया बम.. हई बम ..हौऊ बम - सड़क पर् लगे चौकी पर् चादर बिछा कर पठाखे को देख उनको एक बार छूना ...! फिर ..घर में पिछले साल के बचे पटाखे खोजना और उनको छत पर् चटाई बिछा करने धूप दिखाना ! उफ्फ़..वो भी क्या दिन थे !

दिवाली के एक दो दिन पहले से ही .खुद को रोक नहीं पाते ..कभी बालकोनी तो कभी छत पर् जा कर एक धमाका करना और उस धमाके के बाद खुद को गर्वान्वीत महसूस करना ! फिर ये पता करना की सबको पता चला की नहीं ..मैंने ही ये धमाका किया था :-) कार के मोबील का डब्बा होता था - उस तरह के कई डब्बों को दिवाली के दिन के लिये जमा करना और फिर दिवाली के दिन उन डब्बों के नीचे बम रख उनको आसमान में उडाना :-)

धनतेरस के दिन दोपहर से ही 'बरतन' के दूकानदारों के यहाँ भीड़ होती थी - जो बरतन उस दिन खरीदाता वो 'धनतेरस वाला बरतन' ही कहलाता था ! अब नए धनीक बैंक से सोना का सिक्का खरीदते हैं - तनिष्क वाला डीलर धनतेरस के दिन राजा हो जाता है ! पब्लिक दुकान लूट लेता है !

दीया का जमाना था - करुआ तेल डाल के - स्टील के थरिया में सब दीया सजा के घर के चारों तरफ दीया लगाना  ! इस काम में फुआ - बहन लोग आगे रहती थीं - हमको इतना पेशेंस नहीं होता ! बाबु जी को कभी लक्ष्मी पूजन में शरीक होते नहीं देखा - मा कुछ आरती वैगरह करती थीं - हम लोग इतने देर बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पाते ! पूजा के बाद लड्डू खाया और फरार !

कॉलेज गया तो - 'फ्लश' ! एक दोस्त होता है - पंडित ! बेगुसराय का पंडित ! बहतर घंटा लगातार 'फ्लश' का रिकॉर्ड - पंडित  के चक्कर में ! बहुत बड़ा करेजा था उसका ! अब तो रिलाइंस में मैनेजर है - लेकिन कॉलेज के ज़माने उसके दबंगई का कोई जोड़ नहीं ! दिवाली के दस दिन पहले से ही पंडित के यहाँ कॉलेज के सभी  वेटरन जुआरी सीनियर - जूनियर पंडित के कमरे में पहुँच जाते ! पब्लिक के जोर पर् 'नेता' भी शामिल होते ! हमारा पूरा गैंग ! हंसी मजाक और कभी कभी मामला काफी सीरिअस भी ! हारने पर् हम अपना जगह बदलते या फिर कपड़ा भी - यह बोल कर की - यह 'धार' नहीं रहा है ! :-) कई दोस्त इस दिन गर्ल्स होटल के पास मिठाई और पटाखे के साथ देखे जाते ! :-)

बचपन में दीवाली की रात कुछ पटाखे 'छठ पूजा' के लिये बचा कर रखना - और फिर अगले सुबह छत पर् जा कर यह देखना की ..पटाखे के कागज कितने बिखरे पड़े हैं :-) अच्छा लगता था !

नॉएडा - गाजियाबाद आने के बाद - मुझे पता चला की - इस दिन 'गिफ्ट' बांटा जाता है ! अब मुझ जैसे शिक्षक को कौन गिफ्ट देगा :) खैर , बिहार के कुछ बड़े बड़े बिल्डर यहाँ हो गए हैं और पिछले साल तक दोस्त की तरह ही थे - सो वो कुछ कुछ मेरी 'अवकात' को ध्यान में रखते हुए - भेज देते थे :-) घरवालों को भी लगता कि हम डू पैसा के आदमी हैं :-) लेकिन ..इस गिफ्ट बाज़ार को देख मै हैरान हूँ ! मेरा यह अनुमान है की कई ऐसे सरकारी बाबु हैं - जिनको दिवाली के दिन तक करीब एक करोड तक का कुल गिफ्ट आता है !  जलन होती है - पर् सब दोस्त ही हैं - सो मुह बंद करता हूँ ;-) वैसे इनकम टैक्स वाले अफसर भाई लोग को '१-२ लाख' का जूता तो मैंने मिलते देखा है ! मालूम नहीं ये जूता कैसे चमड़ा से बनता है :(

इस बार मै भी धनतेरस में एक गाड़ी खरीदने का सोचा था ! डीलर भी उस दिन देने के मूड में नहीं था ! कोई नहीं - अगला साल ! पटना के फेमस व्यापारी अर्जुन गुप्ता जी जो मेरे ससुराल वालों के काफी करीबी हैं - कह रहे थे - नितीश राज में हर धनतेरस को लगभग ४०-५० टाटा सफारी बिकता है !

पवन जी ने कुछ कार्टून "दालान" के लिये भेजे हैं - आप सभी इसका आनंद उठायें :)



पवन जी का एक फैन पेज फेसबुक पर् है - जिसका लिंक है

http://facebook.com/pawantoon

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Friday, October 29, 2010

बिहारी प्राईड : भाग एक

कल रात सी एन एन- आई बी एन  पर् 'बिहारी प्राईड' पर् एक सकरात्मक बहस चल रही थी ! हम सपरिवार बड़े ही ध्यान से देख रहे थे ! अच्छा लगा ! नीतू चंद्रा ने बड़े ही भोले अंदाज में अपनी बात कही , इरफ़ान भी ! सैबाल और संजीव की मजबूरी थी - नितीश सरकार के पक्ष में बोलने की ! खैर , कुल मिला कर बेहद 'पोजीटिव शो' ! सागरिका घोष बधाई की पात्र है - वो अभी हाल में पटना भी गयी थी !

अभी नीरज से बात हो रही थी - हमदोनो साथ में ही पढ़े हैं - कॉलेज के दिनों में कई राजनीतिक बहस होती थी - राजनीति उसकी भी रुची है ! एल एंड टी में प्रोजेक्ट मैनेजर है ! शुरू से ही महाराष्ट्र , गुजरात , राजस्थान में उसकी पोस्टिंग रही ! कहता है - हाल फिलहाल तक खुद को 'बिहारी' कहने पर् अजीब लगता था लेकिन अब बिहार से आती अच्छी खबरें 'फील गुड' का फैक्टर देती हैं और बिहारी कहने पर् शर्म नहीं होती ! नितीश और मीडिया को धन्यवाद दे रहा था !

ऐसा एक नीरज नहीं है - करोड़ों हैं ! नितीश ने कुछ किया हो न किया हो - थोडा तो सर ऊँचा कर ही दिया - इसमे बिहार और बाहर कि मीडिया का भी प्रमुख रोल है ! अच्छा होना और अच्छा प्रचार होना दोनों अगर साथ हों तो छवी सुधरती है ! छवी सुधरने में वर्षों लग जाता है और छवी गलत होने के लिए एक सेकेण्ड काफी है !

मै जब फाईनल इअर में पढने जाता हूँ तो - पहले लेक्चर में अपने विद्यार्थीओं को कहता हूँ - अपनी आँख बंद करो और 'इन्फोसिस' को सोचो - कैसी तस्वीर मन में आयी - अधिकतर का यही जबाब होता है - 'नारायणमूर्ती और नंदन निलेकनी' का ! जी , यही है लीडरशीप !

नितीश की लीडरशीप उन बिहारीओं के लिए अच्छी है - जिन्हें राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है या जिनके परिवार का अब कोई बिहार सरकार में ना हो ! नितीश के पक्ष में कितना लहर है - यह हमको नहीं पता - पर् 'पति-पत्नी' की पन्द्रह साल की अजीबोगरीब शासनकाल ने नितीश को बहुत मदद किया - इस चुनाव में भी 'एंटी लालू' लहर है - दुर्भाग्यवश कॉंग्रेस और भाजपा दोनों इसको भुनाने में असफल हुए और नितीश विजेता ! नितीश जब आये थे - बिलकुल ताज़ा - चंद दिनों के लिए वो 'स्टेटमैन" रहे फिर वो एक पके राजनेता के रूप में अपनी वोट बैंक बनाने को बढे ! विकास नहीं किया - रंगाई - पोताई जरुर किया - झरझर हो चुके बिहार में हल्की पोताई भी दूर से दिखने लगी - वो और बहुत कुछ कर सकते थे - पर् वो बकरे को किश्तों में काटना चाहते थे और सफल भी हुए - विकल्पहीनता उनके लिए वरदान बनी !

अफसरों से हमेशा घिरे रहनेवाले नितीश ने हर गाँव - टोला में कुकुरमुता की तरह उग आये - क्षेत्रीय नेताओं को खत्म कर दिया - जिसका तत्काल राहत आम जनता को मिला - वैसे सभी नेता / अपहरणकर्ता अब अपनी अवकात के हिसाब से सड़क निर्माण में लग गए और धीरे धीरे राजनीति नितीश केंद्रित होती चली गयी ! कई कांटो को वो बहुत आसानी से निकल - देह झाड खडा हो गए ! कई जगहों पर् वो लालू से भी ज्यादा कट्टर लगे - जैसे सभी मलाईदार पदों पर् सिर्फ अपनी जाति के लोगों को बैठाना - लेकिन यह सन्देश आम जनता तक नहीं पहुंचा और पहुंचा भी आम जनता को कोई फर्क नहीं पड़ा - कौन इंजीनियर किस जाति और जिला का है - जनता को बस यही समझना था की - कॉंग्रेस राज में बनी सड़क - रिपेयर हो रही है ..या नहीं ! जी , कहने का यही मतलब की - नितीश राज में कोई नया प्रोजेक्ट नहीं आया ! १९९० में कॉंग्रेस ने जिन सडकों को जिस हालात में छोड़ा था - नितीश ने पन्द्रह साल में बेहद खराब स्थिति में आ चुकी सडकों को ठीक बनवा दिया ! जनता खुश !

आम जनता को और क्या चाहिए ! पिछले २० साल में पूरा एक नया जेनेरेशन आ चूका है जो विकास चाहता है - बिहार को महाराष्ट्र और गुजरात देखना चाहता है और उसके पास नितीश से बढ़िया कोई विकल्प नहीं - जब तक की नितीश कुमार अपनी जातीय कमजोरी के कारण बुरी तरह बदनाम ना हो जाएँ - होशियार होंगे बिहार कि जनता - जिसका हर एक तबका उनको वोट दिया है - उसका आदर करते हुए अपने आवास को 'नालंदा माफिया' से मुक्त करवाएंगे - भ्रष्टाचार चरम सीमा पर् है !

पर् ..अभी आप ही हमारे प्राईड बने हुए हैं - अंदर कैसे हैं - आम जनता को इससे कोई मतलब नहीं - यही आपकी जीत है - बधाई स्वीकार करें !!

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Friday, October 22, 2010

बिहार तमाशा - भाग पांच

कल प्रथम चरण का चुनाव समाप्त हो गया और दूसरे चरण का आज प्रचार भी समाप्त हो गया ! बहुत मुश्किल है कुछ भी कह पाना ! पर् आश्चर्यजनक रूप से 'छोटे भाई' ने 'बड़े भाई' पर् हमला बंद कर - कॉंग्रेस पर् तेज कर दिया ! सिग्नल साफ़ है - लालू की वोट बैंक में 'कॉंग्रेस' ने सेंध लगा दिया है - अब हानि कितना हुआ - मतगणना में पता चलेगा !

" विकास बनाम जाति " का बहस थोडा प्रायोजित लगता है ! वैसे धंधा चलाने के लिए ..प्रायोजित कार्यक्रम होना जरुरी है ...बहुत खर्चा है :) स्टार न्यूज तो हद कर दिया - नितीश को १४३ सीट में १२० ;-) आर सी पी को हम सभी के तरफ से बधाई !

नितीश के 'विकास' के तीन चेहरे थे - 'लौ & ऑर्डर' - 'शिक्षा' - 'सड़क' ! ये तीनो के पीछे 'ब्यूरोक्रेट' थे ! काम ठीक हुआ है - लेकिन इतना भी नहीं की - नितीश को हम सभी डिक्टेटर बना दें - वो एक बहुत ही सामन्य आदमी हैं - पगला जायेंगे - फिर बिहार कौन संभालेगा ? कॉंग्रेस का अगला मुख्यमंत्री 'ललन यादव' को अभी वक्त लगेगा !








रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Thursday, October 21, 2010

दालान को पसंद करनेवाले :)

जब से फेसबुक ज्वाइन किया - 'दालान' को पसंद करने वाले लोग बढे ! कई लोग कई तरह के सवाल - जबाब करते हैं ! बहुत दिन तक खुद को छुपाये रखा ! फिर धीरे धीरे खुद के बारे में सबको बताया ! कई मैसेज आते हैं ! एक मैसेज ये भी आया :

आशीष : सिवान / मोटोरोला - हैदराबाद


Thanks for your blogs in "Daalaan".I am a regular visitor of daalan right from ur 1st blog in July 2007.I am working in Motorola Hyd.apke blogs ke through Bihar ki samvednaye milti rahti hai.Apke harek blog me kafi apnapan feel hota hai.Jab chhath aur holi me ghar(siwan,ujain market) jata hu tab Daalan ke print outs le ke jata hu...papa aur other family members ko paradhta hu.Apse milne ki bahut dili tamanna hai kyu ki apke bachpan aur apne bachpan me kafi similarity pata hu..like ghar me XXXXXXXXXX ...bahut kuch hai share krne ko..samay ka aabhav hai..phir kabhi....Anyway...keep writing in a same way...
 
 



रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Tuesday, October 19, 2010

बिहार तमाशा - भाग चार !

भाग तीन संजय भैया लिख चुके हैं !

आज प्रथम चरण का चुनाव प्रचार समाप्त हो गया होगा ! अब असली काम शुरू हुआ होगा ! बोरा का बोरा - ठूंस के - टोला - टोला , गाँव - गाँव एजेंट लोग घूम रहा होगा ! नितीश बाबु ने बहुत कुछ किया उसमे से एक काम था पूरा बिहार को शराबी बना दिया ! सो आज - कल और परसों मस्त लाईफ होगा ! पटना गया था - कौन ऐसा गली नहीं था जहाँ शराब का दूकान नहीं था - सबका बोर्ड एक डीजाईन का ! लौ - ऑर्डर ठीक है सो किसी शराब के दूकान में पहले जैसा लोहा का सुरक्षा कवच नहीं था !

इस बार कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं है ! अब देखिये - अफसर राजा हो गया ! एक अफसर अपने अंदर कई हज़ार 'साधू - सुभाष' को डकार सकता है ! पर् सब कुछ 'लौ -ऑर्डर' के अंदर ! साधू - सुभाष जैसा नहीं - खाली हल्ला ! खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोडा बारह आने का ! तो मै बात कर रहा था - कार्यकर्ताओं के उत्साह का ! :( सब ठंडा है ! पांच साल में मुख्यमंत्री जब मिनिस्टर से नहीं मिलते थे तो कार्यकर्ताओं का क्या अवकात ? जे कामया से अफसर और ठेकेदार  ! बहुत कार्यकर्ता मास्टर बन गया - कम से कम महीना में पांच हज़ार त मिलेगा :) एक नितीश जी के पार्टी के राष्ट्रीय 'महासचिव' से मिले - मोटरसाईकील पर् ढनमना रहे थे ! हम बोले - काश आप नालंदा के होते :) आपके लिए नितीश अंकल हेलोकोपटर का इंतजाम करवा देते ! खैर , नितीश जी का पार्टी है - हम कौन होते हैं कुछ बोलने वाले !

कॉंग्रेस का तो अजीब हाल है ! दिल्ली में बैठा हुआ सब चाहता ही नहीं है कि कॉंग्रेस बिहार में मजबूत हो ! जगदीश टाईटलर आये थे - खाया - पिया पप्पू यादव से दोस्ती किया और कॉंग्रेस को और कमज़ोर कर के निकल पड़े ! :) अनील शर्मा - कैसा नेता हैं - आज तक नहीं समझ पाया ! अरे बाबा - पांच साल में एक क्षेत्र तो बना लिया होता ! महबूब कैसर आये - चांदी कि कुर्सी दिखाने में ही व्यस्त रहे - हम खानदानी मुसलमान हैं - तब तक अशोक राम सब टिकट 'ब्लैक' कर दिया ;) मुकुल जी के सहायक 'मित्तल' का फोन नंबर जिसको मिला - वो समझा कि हमको टिकट मिल ही गया :) हाय रे - नेतागिरी ! कॉंग्रेस का प्रचार टी वी पर् आता है " अब देश कि रफ़्तार से जुडेगा बिहार" ! ऐसा लगता है कि किसी मोबाईल कंपनी का प्रचार है - एयरटेल का ! इस पार्टी के पास बहुत 'धैर्य' है ! तब तक हम .....

लालू पर् कोई विश्वास करने को तैयार नहीं है ! यादव साथ हैं - कुछ मुसलमान भी और पासवान जी के कारण - पासवान लोग ! लालू अगर हनुमान कि तरह अपना सीना फाड़ के बोलें - देखो इसके अंदर 'विकास' है - कोई नहीं मानेगा ! हम सब को यही उम्मीद थी की - लालू शायद 'रघुवंश बाबु' को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करेंगे - पर् लालू अभी 'शहीद' होने को तैयार नहीं थे ! लेकिन बहुत मेहनत कर रहे हैं ! शत प्रतिशत यादव् उनके साथ हैं ! मुसलमान अगर कॉंग्रेस और नितीश में नहीं बंटे तो लालू नितीश को 'हरदी चुना' बोलने पर् मजबूर कर सकते हैं !

बेचारी भाजपा :( सन २००० के चुनाव में 'कैलाशपति मिश्र' इसको बर्बाद किये - इसबार उनके एकमात्र चेला 'सुशिल मोदी' ! जय हो ! नितीश डुगडुगी बजाते हैं और भाजपा वाला सब नाचता है ! सी पी ठाकुर के कारण 'रामलीला' के मैदान में 'धृतराष्ट्र' वाला खेल खेला गया ! चलिए , इसी बहाने पूरा बिहार विवेक ठाकुर को जान गया :) संजय झा खाते भाजपा के हैं और झोला नितीश का उठाते हैं ! सब कोई 'सुशिल मोदी' बन नितीश से नज़दीक होना चाहता है - अब नितीश कितना इंटरटेन करें - बोले की आप सभी 'सुशिल मोदी' कि अगुआई में मेरी प्राईवेट लिमिटेड पार्टी में मिल जाईये ! खैर , अन्तोगत्वा नितीश आडवानी का इज्जत रखे और उनका 'बिहार प्रवेश' करवा ही दिए !

क्रमशः


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Monday, October 18, 2010

मेरी पटना यात्रा - भाग दो

पटना में एक दिक्कत है ! रात भी जल्द हो जाती है और सुबह भी :( सुबह सुबह बाबा और बाबु जी बोलना शुरू कर देते - रंजू अब तक उठे नहीं ? लैपटॉप का एडाप्टर इंदिरापुरम में ही छूट गया था सो रात भी जल्द हो जाती :( 

चुनावी बयार था ! सुबह सुबह टी वी के सामने बैठ जाता - लोकल चैनल सब पर् कोई जान पहचान का नेता दिख जाता ! बेंत वाला कुर्सी पर् दोनों पैर ऊपर कर के :) तब तक चाय पर् चाय ! फिर वहीँ से बैठ कर मोबाईल से फेसबुक पर् स्टेटस अपडेट करना और थोडा बहुत इधर उधर का पढ़ना !

पिछले कुछ बार से जैसे ही पटना पहुँचता - प्रभाकर के पास ! बहुत ही हल्की जान पहचान थी पर् फेसबुक ने अजीब सा सम्बन्ध बना दिया ! इस बार मुझे लगा वो बीजी होंगे चुनाव में, सो सोच कर पहला दिन नहीं गया ! अगले दिन फोन कर के उनके दफ्तर पहुँच गया - आधा कप कॉफी पीने ;) जुन में पुत्र के जनेऊ में सिर्फ दो ही लोग रिश्तेदार नहीं थे उनमे प्रभाकर और कृष्ण सर थे ! तब पता चला कि हमारा परिवार उनके परिवार को कई वर्षों से जानता है ! वो भी काफी दिनों तक कंकडबाग में रह चुके हैं ! वक्त ने उनको समय से पहले परिपक्व कर दिया है ! मुझे नहीं लगता कि वो किसी कि बातों का बुरा भी मानते होंगे ! बेहद मिलनसार और थोड़े इलीट :) पिछली बार भी उनके घर गया था - इस बार सपरिवार गया ! लौटते वक्त अपनी गाड़ी से सूरज दा कि गाड़ी में ठोक दिया :) इस बार जब मूड होता - गाड़ी उनके दफ्तर के तरफ मोड़ देता :) पत्नी ने मजाक भी किया - आपको पटना में मन लगता है - प्रभाकर जी कि ओफ्फिस में नौकरी कर लीजिए :) हा हा हा हा ! विशुद्ध दोस्ती तब कही जाती है जब आप एक दूसरे के स्पेस और विचारधारा को इज्जत देते हुए एक दूसरे से एक खूबसूरत मुस्कान से ज्यादा आशा नहीं करें ! वो भी अब दिल्ली आते हैं तो - जरूर मिलते हैं !  और क्या लिखूं - ज्यादा लिखूंगा तो दोस्ती को नज़र लग सकती है - वैसे मैंने उनके बारे में नहीं लिखने का प्लान किया था :) पर् लिख दिया -कुल मिलाकर उम्र में मुझसे छोटे हैं पर् परिपक्वता में काफी ज्यादा बड़े दिखते हैं !

एक दिन प्रकाश सिंह से भी मिला ! टाईम्स नाऊ के लिए काम करते हैं ! छह फीट के नौजवान ! जब मै पटना से लौट जाता तो वो शिकायत करते - इस बार बिना बोले उनके दफ्तर पहुँच गया ! बेहद शरीफ और बिना किसी लाग लगाव के बोलने वाले ! प्रभाकर,  प्रकाश और मेरे बीच एक कॉमन लिंक हैं - देवब्रत ! अब तक देवब्रत नदारत थे - मौसी के यहाँ गए थे !

एक दिन शाम सोच समझ कर दिवाकर भैया के पास गया ! डॉक्टर हैं ! मेरे स्कूल के सीनिअर ! २२ -२३ साल से उनको जानता हूँ - कभी मिला नहीं था ! सोचा मिल ही लूँ ! क्लिनिक में मिला ! ढेर सारे पदक - ट्राफी - क्या नहीं था ! बेहद मीठे स्वभाव के ! कॉंग्रेसी हो गए हैं - उनको कुछ पोलिटिक्स समझाया :( मालूम नहीं वो मेरी बातें कितनी गौर से सुने :(  थोड़ा महिनी से राजनीति में प्रवेश करना चाहते हैं - चाय तो लोगों को पिलाना ही पड़ेगा ;) बहुत बड़ा क्लिनिक है ! उनके पिता जी और माता जी दोनों पटना के डॉक्टर समाज के काफी प्रतिष्ठित लोग हैं !

एक दिन शाम हिंदुस्तान दैनिक से प्रशांत जी का फोन आया ! कुछ बोले - सेमीनार के बारे में ! मुझे ज्यादा समझ में नहीं आया ! अगले दिन उनसे फिर बात हुई - हिंदुस्तान दैनिक के ऑफिस में पहुँच गया ! अगरवाल साहब से मुलाकात हुई - शायद अब वो मुझे भूल चुके होंगे - किसी जमाने में बहुत हल्की परिचय थी ! कार्टूनिस्ट पवन जो मेरे स्कूल से ही हैं - और मै उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ - मुलाकात हुई ! प्रशांत जी से भी - पहली दफा मिला ! परिचर्चा हुई ! कौशलेन्द्र जी से मिला - आई आई एम - अहमदाबाद से पास कर पटना में करोड़ों कि सब्जी का व्यापार कर रहे हैं ! इरफ़ान जी मिले - सम्मान फाउन्डेशन वाले ! उनके साथ कई साल पहले मै दिल्ली से पटना सफर कर चूका हूँ - तब जब मेरे पास रिजर्वेशन नहीं था और उन्होंने अपना सीट मेरे साथ शेयर किया था - उन्हें भी याद था :) अमिकर दयाल - जिनको बचपन से हमसभी फैन हुआ करते थे ! और भी कई लोग थे ! कुल मिलाकर एक बहुत ही बढ़िया अनुभव रहा ! 'प्रशांत जी' का शुक्रगुजार हूँ ! मै बुध्धीजीवी नहीं हूँ ! ना तो मुझे भाषा आती है और ना  ही साहित्य ! मुझे आज तक याद है - एक वरिष्ठ पत्रकार बोले थे - मेरे जैसे लोग हजारों सड़क पर् होते हैं - किसी बिल्डर के यहाँ छत ढल्वाते हैं कौन जानता है ! मै कहीं से भी 'बुध्धिजीवी नहीं हूँ ! बस जोश में फेसबुक पर् अखबार कि कटिंग डाल दिया और कुछ नहीं ! बस यह एक संयोग था और प्रशांत जी - पवन जी का मेरे प्रती स्नेह !

आने के एक दिन पहले 'देवब्रत' को फिर रिंग किया - परिवार के साथ कहीं घूम रहा था ! देर रात फोन किया फिर अगले दिन मुलाक़ात हुई - बहुत दिनों बाद हम दोनों सड़क पर् खड़े होकर घंटो बात किये ! अपनी अपनी कहानी ! नॉएडा में ही रहता है - यहाँ भी मुलाक़ात होती है पर् पटना जैसी नहीं ! देव के माता जी और पिता जी दोनों से मिला ! अच्छा लगा !

अपने सास - ससुर अब नहीं रहे ! सो चचेरे साला और सास लोग के यहाँ भी गया ! पाटलिपुत्र कॉलोनी में ! कंकडबाग से पाटलीपुत्र कॉलनी जाना आसान काम नहीं है :( और किसी के यहाँ नहीं गया ! वहाँ भी बहुत स्वागत हुआ ! चचेरे साला लोग रईस हैं ! पूरा बिहार का राजनीति समझा कर आ गया ;) हंस रहे होंगे :) दबंग लोग हैं :)

मूड हुआ गिरिराज बाबु से मिलता ! कई सम्बन्ध हैं और आदर भाव से फोन पर् बात होती है ! पर् चुनाव के कारण वो व्यस्त दिखे ! मैंने भी थोड़ा महटीआ दिया ! अगली बार मिलूँगा !

हर बार कोशिश यही रहती है कि एक बार बिहारटाईम्स वाले अजय भैया से जरूर मिलूं ! इस बार मौर्यालोक के बसंत बिहार में मिला ! साथ साथ डोसा खाया और उनके बिहार कन्क्लेव प्रोग्राम पर् चर्चा हुई ! मालूम नहीं मेरी बातों को वो कितना गंभीर रूप से लेते हैं - पर् गौर से सुनते हैं - ऐसा मुझे लगता है ! १२ साल से बिहारटाईम्स चला रहे हैं ! अब आज कल चुनाव चर्चा में वो सभी बिहार न्यूज चैनल पर् आते हैं !

दिल में पटना बसता है !

 मै राजनीतिक बिलकुल नहीं हूँ - थोडा 'इन्फो -हंग्री' हूँ - जिसके कारण बहुत लोगों को दिक्कत भी होती है :( सॉरी ! पटना थोड़ा साफ़ दिखा ! 

क्रमशः

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

मेरी पटना यात्रा - भाग एक :)

दशहरा में पटना गया था ! कल ही लौटा हूँ ! कॉमनवेल्थ के कारण बच्चों की  छुट्टी हो गयी थी ! मेरी भी ९ अक्टूबर से होने वाली थी ! बाबु जी हलके से बोले कि 'पटना ही - आ जाओ ' ! पहले सोचा था 'मैसूर-बंगलौर' जाऊंगा ! ८ साल से नॉएडा - इंदिरापुरम  इलाके में हूँ ! सारा पैसा पटना आने जाने में खत्म ! पहले 'पटना में टी ए - डी ए बिल भंज जाता था - अब वो भी नहीं :( 

पत्नी और बच्चे ४ अक्टूबर को यहाँ से निकल पड़े ! साइड वाला सीट उनको मिला - गलती रेलवे रिजर्वेशन की थी -  पत्नी कि गाली मुझे मिली कि पहले से क्यों नहीं टिकट कटाया :( खैर , अब आदत हो गया है ! आलसी हूँ ! आज का काम कल करने कि आदत है ! वो लोग पटना पहुंचते ही पहला शिकायत किये कि - लाईन नहीं है :( अब बिहार बिजली बोर्ड के लिए मै कैसे जिम्मेदार हो सकता हूँ :(  पत्नी के नहीं रहने पर् यहाँ 'इंदिरापुरम' में मुझे सबसे बड़ी दिक्कत होती है - सुबह उठने कि - खैर दोस्तों को बोल दिया था - वो लोग फोन कर के उठा दिए :) तीन दिन मस्त से गुजरे ;) 

८ अक्टूबर को मै भी निकल पड़ा ! स्टेशन थोडा लेट पहुंचा ! वैसे आदत है - गाड़ी खुलने से एक घंटा पहले ही स्टेशन पहुँच जाना ! फिर स्टेशन को निहारना - गौर से यात्रीओं के चेहरे के भाव को पढ़ना ! मैग्जीन के दुकान से अमिताव घोष कि एक नोवल ख़रीदा ! ट्रेन में ढेर सारे 'कॉंग्रेसी; चढ़े हुए थे ! मेरे डिब्बा में ही ! धनी - मनी दिख रहे थे ! सीट बदल के मै उनके पास पहुँच गया ;) नोवल को बंद किया और 'राजनीति' पर् एक बहस छेड दिया :) कुछ लोजपा के भी धनी मनी उम्मेदवार बैठे थे ! हुआ हंगामा ! फिर एक उम्मीदवार था - जो शायद मेरी बातों से सहमत था - वो मेरा हाथ दबाया और बोला - अब आप चुप रहिये - वरना मार पीट हो जाएगा ! बड़ा मजा आया ! 

९ अक्टूबर को सुबह सुबह पटना पहुँच गया ! राजू गाड़ी लेकर आया था ! करीब १५ साल से हम लोगों के साथ है ! नालंदा जिला का नितीश जी का स्वजातीय है और उनसे ज्यादा खानदानी है ! पहले साथ में ही आऊट हॉउस में रहता था ! रास्ता में बोले कि तनी पान खाने दो ! मुह लाल लाल कर के डेरा पहुंचे ! बाबु जी सभी भाई का फ़्लैट एक साथ ही है ! आज तक इसको हमलोग 'डेरा' ही कहते हैं :) चाचा नीचे मिले ! प्रणाम किया और मुजफ्फरपुर से कौन कौन खड़ा है - पता किया ! वो बोले - रंजू , जितना पोलिटिक्स में तुमको इंटरेस्ट है - उतना हमको नहीं :(  ऊपर गए ! बाबा - बाबु जी जैसे इंतज़ार ही कर रहे हों ! सबको प्रणाम किया ! माँ ने चाय बना के दिया ! तीन दिन का पुराना सभी हिंदी अखबार उठा के टैरेस पर् झुलुआ पर् चला गया ! 

पत्नी के साथ ही सेम ट्रेन में 'देव' भी अपने परिवार के साथ पटना आया था ! बेहद ही संजीदा और संस्कारी ! बचपन का दोस्त है ! एक दो साल छोटा होगा ! अब वो खुद ही इतना फेमस है कि - उसके बारे में क्या लिखूं ! मै उसकी बहुत इज्जत करता हूँ ! वादा था - पटना में मिलेंगे ! सो उसको फोन लगाया ! लगा उसका फोन काम नहीं कर रहा ! खैर ! बाबा के साथ बैठ कर पूरा गोपालगंज जिला का राजनीति चर्चा किया ! तब तक पत्नी हाथ में तौलिया थमा गयीं - ऑर्डर के साथ - जल्द नहाईये - गरम गरम भात - दाल - आलू कि भुजिया - चटनी तैयार है ! ह्म्म्म .... काका से बोला एक कप और चाय :) 

बाबु जी अपने गठिया के दर्द से थोडा परेशान दिखे - उनके कमरे में गया ! धीरे से पूछे - 'नौकरी , मन लगा के कर रहे हो ..न ' ! पुराना सवाल - मेरा पुराना जबाब - पटना में बहुत स्कोप है ;) फिर वो लोन सोन का स्टेटस पूछे :( मैंने फिर बताया - फलाना - फलाना दोस्त लोग बी एम डब्लू इत्यादी खरीद लिया है - मौका मिला तो हम भी एक ... :) बाबु जी थोडा झिडके ...हमेशा फैंटसी में रहते हो ! पहले घर और पुरानी गाड़ी का क़र्ज़ समाप्त करो :( 

फिर पुरंदर भैया को फोन लगाया और बोला कि मेरे ससुराल वाले मार्केट में पहुंचिए ! मै भी नहा धो खा पी के निकल पडा ! बाबा कि नयी गाड़ी थी - टंकी फूल करवाया ! बाबा पैसा दे रहे थे - लेकिन मैंने मना कर दिया ! खुद के कमाई से बाबा कि गाड़ी में पेट्रोल डलवाना अच्छा लगा ! 

  कृष्ण सर के पास गया - रईस हैं ! मगही पान - ग्रीन टी और गप :) नितीश के पार्टी के कुछ महासचिव लोग भी मिले ! कुछ मत्री लोग कि भी शिकायत रहती है कि मै पटना आकर उनसे नहीं मिलता - पर् मैंने सन २००२ के बाद से ये प्रण लिया कि किसी राजनेता और बयूरोक्रेत से नहीं मिलूँगा - अगर जब तक यह विश्वास न हो जाए कि हमदोनो एक दूसरे को आदर करते हैं ! 

क्रमशः ..

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Thursday, October 14, 2010

"दिल वाले बचाए दिल अपना, हम तीर चलाना क्यों छोड़े ! "

"बिहार चुनाव"
बदलाव की इच्छा जब जब बलवती हुई है, बिहार के चुनाव का आधार जातिगत नहीं रहा .
१९७७ और २००५ का चुनाव और इसके परिणाम इसका प्रमाण है. सभी धर्म, जाति के लोग
नीतिश जी को जिताया नहीं था ,बल्कि लालू जी को हराया था. बिहार करवट बदला, क्योंकि
बदलना चाहता था. इसके लिए जातिगत नीति [अनीति ] को ताक पर रखना जरूरी था .

बिहार विकास को हरी झंडी दिखाए वगैर ,नीतिश जी का एक साल भी टिकना मुश्किल था .
अर्थव्यवस्था जनमानस की सोंच को रिचार्ज करता है . बदहाली के राह में खुशहाली के मोड़
भी आते है उस मोड़ से चलकर चौड़ी सड़क पर आया जा सकता है .
विकास की इच्छा बिहार की थी . केवल नीतिश की इच्छा या प्रयास कहना , करोड़ों की भावना
को आहत करना होगा .क्योंकि उनके धुर विरोधी लालू जी पर भी विकास का भूत इस कदर सवार
था कि विकास को रेल की रफ़्तार देने में कोई कोताही नहीं बरती. आज पूरा बंगाल भले ममता
अपने कब्जे में कर लिया हो पर रेल बेकाबू है ." रेल विकास" से "बिहार विकास" का भरोसा
जीतने में लालू अब भी नाकाम हैं.या यूँ कहें रेल विकास को चुनाव में भुना नहीं सके .
सच ही कहा गया है . "सफलता के शिखर पर पहुंचना आसान हैं, मुश्किल है वहां पर टिके रहना".
लालू की नौटंकी फिर से चालू हुआ 'पार्टी टिकट इच्छुक' के साक्षात्कार से . इस साक्षात्कार में
भरपूर मात्रा में डांट फटकार ,दुत्कार , दुराचार,अत्याचार {जो उनकी पार्टी का शिष्टाचार है}का नंगा
प्रदर्शन था .अपमानित कार्यकर्ता लाइन में लग कर उनके 'लालटेन' में 'तेल' तो नहीं ही डाल पायेगा .

चुनावी वादा चाहे किसी भी दल का हो ,पूरा नहीं होता. जनता अब समझ रही है .बिहार में ७७ और
२००५ के बदलाव में चुनावी वादा आने से पहले लोगों ने मन बना लिया था पटकनी देने की .
जो "छूट" पिछले सरकार को मिलती आई है आवाम से वहीँ "छूट " नितीश जी भी चाह रहे हैं .
अब किसी भी सरकार को छूट देने की भूल जनता करती है तो बदलाव अपना अर्थ खो देगा .
एक दरोगा चाह लेता है तो अपने थाने को २४ घंटे के अन्दर टकुये की तरह सीधा कर देता है ,
वैसे ही जिलाधीश अपने जिले को . फिर एक राज्य का मुखिया राज्य को क्यों नहीं कर सकता ?
क्यों अगला पांच साल माँगा जा रहा है ? अपनी "खिचड़ी" को "खीर" कहना उचित है ?
आप अपराधी को माला पहनाकर ,जनता को ताली बजाने को नहीं कह रहे ?

" राजनीति में सब जायज है." इस कथन में राज्य का शोषण है , दोहन है .राष्ट्रद्रोह है .

बिहार में कांग्रेस पुनर्जन्म हेतु गर्भ में है .वैसे गर्भपात का दंश कई बार झेल चुकी है.शुभ
शुभ रहा तो नीतिश जी की "गोद " में खेलना पसंद करेगी . दिल्ली दरबार से नेता तय करने
वाली पार्टी बिहारी जनमानस को केंद्र सरकार द्वारा दिए गए मदद को समझाने, बुझाने या भुनाने
में नाकाम साबित हुई.
मतलब राज्य और केंद्र का लेन-देन ठीक वैसे ही रहा जैसे बिगड़ैल बेटा बड़ा होकर बाप से बोल
दे मेरे में आपका खर्च ही क्या है ? राबड़ी जी भी बोली थी "हमें केंद्र ने कुछ नहीं दिया".
प्रो. रघुबंश ने बोलती बंद कर दिया था हिसाब देकर और उनका हिसाब लेकर .कांग्रेस की
चुनावी रणनीति बेहद फीकी है .

और राम विलास तो भोग विलास में लिप्त हैं नहीं तो मायावती अपने ५० सेंधमार भेज पाती .

नीतिश जी विकास की टोपी लगाये हुए भी परेशान है . छुपम -छुपाई खेलना पड़ रहा है .
सांप-सीढ़ी भी .जो इनका साथ दिया उसको तबाह और बर्बाद कर दिया इन्होने . भाजपा
को अपना वाला "तीर" मार कर" शर शैय्या" मुहैया करा दिया है .बोलने के लिए एक शब्द भी
नहीं छोड़ा है जिसको मतदाता के सामने भाजपा बोल सके .बिना शर्त समर्थन देने वाली भाजपा
को सशर्त अपने साथ खड़ा होने की इजाजत दिया है .मतलब "आना है आओ बुलाएँगे नही."
उस मोदी से नहीं इस मोदी से काम चलाओ,वरुण गाँधी से नहीं विकास की आंधी से काम चलाओ.
जैसे इनका बाहुबली अबतक केवल जीवन बाटता रहा हो .

जैसा लालू जी ने आडवानी जी का रथ रोककर मुस्लिम समाज का पुरजोर विकास किया था ,
ठीक वैसा ही विकास नितीश जी ने "गुजराती मोदी" ,और "वरुण" की "उड़ान" रद्द करवाकर
किया है .पता नहीं नेता लोग ठगी को किसी भी रंग से पोत देते है .

भाजपा अकेले भी लड़ती तो ४०-५० सीट निकाल ले जाती अभी मुश्किल से २० निकाल पायेगी .
क्योंकि कमज़ोर साथी की जरूरत है नितीश को.उनकी चुनावी रणनीति पिछले ४ साल से चल रही है.
क्षेत्र परिसीमन चुपके से अपने फायेदे को सोंच कर किया है .भाजपा की उम्मीदवारी को
प्रभावित किया है. केंद्र के पैसे को अपनी जेब का बताने में कामयाब रहा है . खाली पटना
और नालंदा का मेकअप करके बिहार को सपना दिखाया है . पत्रकार पटाये गए है.
"दिल वाले बचाए दिल अपना, हम तीर चलाना क्यों छोड़े ! "
अपने आदमी की तैनाती एक साल पहले . साईकिल से कन्या शिक्षा ,और शिक्षण से
"पंचर शिक्षक" को जोड़ा है .विद्यार्थी और शिक्षक के घर वाले तीर तो चलाएंगे ही .
नितीश जी सधे हुए नेता भी हैं .शरद यादव ,जार्ज जैसे को चार्ज किया .बिहार को अपना
समझकर ही न किसी को बिहार मसले में फटकने नहीं दिया .'एकोअहम द्वितीयोनास्ति'

कुछ भी हो अन्दर, 75 प्रतिशत लोग बाहर के लिपा पोती से प्रभावित है .एक मौका और
नितीश जी को मिले शायद . चलिए दुआ करते है कि भाजपा को जिस मुकाम पर इन्होने
पहुचाया है या इस चुनाव में जहाँ भेजने की तैयारी है .वो बिहारी मानस को नसीब न कराये.
आदत में सुधार लाना जरुरी समझें. जो जन मानस १५ साल लालू के लालटेन की लाल
रोशनी में गुजारा है ,उसे अगला पांच साल नीतिश की तीरंदाजी दिखने में हर्ज़ नहीं दिख रहा .
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझेगी जनता .

:- Sanjay ( Indirapuram )

Monday, October 11, 2010

बिहार तमाशा - भाग दो

पटना पहुँच गया ! लोकल चैनल पर चुनाव की धूम है ! पर आम मतदाता अभी शांत है ! अन्तिम दौर में कई दलों ने आखिरी क्षण में अपने उम्मीदवार बदलते देखे गए !

"लालू राबडी " राज को जंगल राज कहा गया और कहा जाता है ! पर मुझे घोर आश्चर्य हुआ 'नितीश मोदी ' और 'सुशिल कुमार' की लिस्ट को देख कर ! फॉर एक्जाम्पल - 'वारसलीगंज' से नितीश मोदी के उम्मीदवार है - श्री प्रदीप महतो ! अब वहां के 'सवर्ण' मतदाता किस आधार पर 'तीर' पर मुहर लगायेंगे ! ये प्रदीप महतो इतने खतरनाक छवी के हैं की - बिहार का कोई भी 'पत्रकार' इनके बारे में कुछ लिखने की हिम्मत नहीं कर सकता है - अब चलिए - गोपालगंज - यहाँ के कुचायकोट से हैं - पप्पू पांडे - सतीश पांडे के छोटे भाई ! गृह विभाग के अनुसार पुरे बिहार में 'सतीश पांडे' से खतरनाक कोई और नहीं है ! पुरे ३६ गिरोह का मालिक और पिछले २० साल से उस क्षेत्र में हो रहे सभी राजनितिक हत्याएं का शक 'सतीश पांडे' पर जाता है !

.अनंत सिंह को ले लीजिये - बाढ़ में 'छोटे सरकार' के रूप में जाने जाते हैं ! नितीश का आशीर्वाद है - जीत जायेंगे पर ये आतंक हैं ! सबसे ज्यादा जुल्म इन्होने अपने ही लोगों पर किया है - जिसका परिणाम यह है की - इनके जान के दुश्मन इनके गाँव के ही 'विवेका पहलवान' हैं ! मुन्ना शुक्ल जेल में हैं सो इन्होने अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनाया है ! कब तक हम सभी 'बाहुबलीओं' के आतंक के साए में जियेंगे ? और जो लोग इनकी वकालत करते हैं -  हतप्रभ हूँ !

खैर 'नितीश मोदी' की लिस्ट में ऐसे कई लोग भरे पड़े हैं ! ये कैसा राज है ? कौन सी मजबूरी है ? सवर्णों को किस रंग से नितीश रंगना चाहते हैं ? क्या भूमिहार-राजपूत -ब्राहमन में कोई साफ़ सुथरी छवी का नहीं था ? लोकसभा चुनाव में खुद को साफ़ बताने वाले नितीश कुमार को क्या हो गया ?
 
नितीश इन बाहुबलीओं की बदौलत सता तो पा लेंगे पर बिहार के लिए ये अच्छा नहीं है !
भाजपा की तो और बुरी स्थिति है ! पूरा पार्टी नितीश के पौकेट में है ! 'प्रधानमन्त्री' बनने की चाहत में इसका केंद्रीय नेत्रित्व 'नितीश' के इशारे पर नंगा होने को तैयार है ! सी पी ठाकुर ने अपनी ऐसी तैशी करवा ली ! इस्तीफा दे दिया तो दे दिया - वापस लेने से ये और कमज़ोर ही हुए ! पुत्र को 'परसों' एम एल सी बनाया जाएगा - राजनीती में परसों कभी नहीं आता ! अगर आया तो 'विवेक ठाकुर' नसीब वाले होंगे !




कौंग्रेस - करीब ८० यादव और मुस्लिम को कौंग्रेस टिकट दी है - मतलब साफ़ है - लालू की वोट में सेंध मारना !



प्लीज़ , जाती के नाम पर 'बाहुबलीओं' को समर्थन देना बंद कीजिए और नवबिहार का निर्माण कीजिए ! हाथ में दम है !
 
 रंजन ऋतुराज सिंह -  !

Thursday, October 7, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा त्यौहार - दशहरा - भाग बारह


हर जगह का 'दशहरा' देखा हूँ :) मुज़फ्फ्फरपुर -  रांची - पटना - गाँव - कर्नाटका - मैसूर - नॉएडा -गाज़ियाबाद :)

गाँव में बाबा कलश स्थापन करेंगे ! हर रोज पाठ होगा ! बाबा इस बीच दाढ़ी नहीं बनायेंगे ! पंडित जी हर रोज सुबह सुबह आयेंगे ! नवमी को 'हवन' होगा ! दशमी को मेला ! दशमी को हम सभी बच्चे मेला देखने जाते थे - हाथी पर् सवार होकर ;) ( सौरी , मेरी हाथी वाली किस्से पर् कई भाई लोग नाक - भों सिकोड़ लेते हैं )...महावत को विशेष हिदायत ...गान के सबसे बड़े ज़मींदार के दरवाजे के सामने से ले चलो ...जब तक मेरा हाथी उनका पुआल खाया नहीं ...तब तक मन में संतोष कहाँ ...:P  गाँव से दूर ब्लोक में मेला लगता था ! जिलेबी - लाल लाल :) मल मल के कुरता में ! फलाना बाबु का पोता ! कितना प्यार मिलता था ! कोई झुक कर सलाम किया तो कोई गोद में उठा कर प्यार किया ! किसी ने खिलौने खरीद दिए तो किसी ने 'बर्फी मिठाई' ! तीर - धनुष स्पेशल बन कर आता था ! लगता था - हम ही राम हैं :) पर् किस सीता के लिए 'राम' हैं - पता नहीं होता ! 

रांची में याद है  नाना जी के एक पट्टीदार वाले भतीजा होते थे - एच ई सी में - हमको मूड हुआ - रावणवध देखने का - ट्रक भेजवाये थे ! ट्रक पर् सवार होकर हम 'रावण वध' देखने गए थे ! ननिहाल से लेकर अपने घर तक - दुश्मन से लेकर - दोस्त तक - 'भाई ..बात साफ़ है ....मेरा ट्रीटमेंट एकदम 'स्पेशल' होना चाहिए ...अभी भी वही आदत है ...जहाँ हम हैं ..वहां कोई नहीं .. :P

मुजफ्फरपुर में 'देवी स्थान' ! बच्चा बाबु बनवाए थे - सिन्धी थे - पर नाम 'बिहारी' ! अति सुन्दर - दुर्गा की प्रतिमा  ! वहाँ से लेकर कल्याणी तक मेला ! पैदल चलते चलते पैर थक जाता था :( चाचा जैसा आइटम लोग पीठईयाँ कर लेता :) फिर बाबू जी एक आर्मी वाला सेकण्ड हैंड जीप ले लिए ! पूरा मोहल्ला उसमे ठूंसा जाता ! फिर रात भर घूमना :) झुलुआ झुलना ! कुछ खिलोने - चिटपुटिया बन्दूक  !  उस ज़माने में दुर्गा पूजा के अवसर पर् - ओर्केस्ट्रा आता था ! शाम से ही आगे की कुर्सी पर् बैठ जाना और प्रोग्राम शुरू होने के पहले ही सो जाना :) पापा मोतीझील के पूजा मार्किट से एक हरे रंग का 'एक्रिलिक' का टी शर्ट खरीद दिए थे - तब वो पी जी ही कर रहे थे - मोहल्ला के सीनियर भईया लोग के साथ घुमने गए थे - बहुत साल तक उस हरे रंग के टी शर्ट को 'लमार - लमार' के पहिने ..:)) 

पटना आ गया ! विशाल जगह था ! बड़ा ! माँ - बाबु जी घूमने नहीं जाते ! कोई स्टाफ साथ में ! भीड़ ही भीड़ ! मछुआटोली आते आते - लगता कहाँ आ गए ! तब तक आवाज़ आती - अमूल स्पेय की दुर्गा जी - पूरा भीड़ उधर ! ठेलम ठेल ! ये लेडिस के लाईन में घुसता है ? हा हा हा हा ! उफ्फ्फ ...बंगाली अखाड़ा ! नवमी को दोस्त लोग मिलता - कोई बोलता - फलाना जगह का मूर्ती कमाल का है - फिर नवमी को ..वही हाल ! 

 गाँधी मैदान और पटना कौलेजीयट में तरह तरह का प्रोग्राम होता - पास कैसे मिलता है - पता ही नहीं था ! गाँधी मैदान गया था - महेंद्र कपूर आये थे ! देख ही लिए :) एक बार मूड हुआ 'गाँधी मैदान' का रावण वध देखने का ! एक दोस्त मेरे क्लास का ही - हनुमान बना था - राम जी के साथ जीप पर् सवार था ! इधर से बहुत चिल्लाये - नहीं सुना :) एक बार गए - फिर दुबारा नहीं गए ! बाद में छत पर् पानी के टंकी पर् चढ  कर देखने का एहसास करते थे :)

थोडा जवानी की रवानी आयी तो सुबह में - सुबह चार बजे ..:)) जींस के जैकेट में ....बाल में जेल वेल लगा के ...जूता शुता टाईट पहिन के ...:)) आईक - बाईक पर ट्रिपल सवारी ...पूरा पटना रौंद देते थे ...

नॉएडा आ गए ! बंगाली लोग का एक मंदिर है - कालीबाड़ी ! वहाँ जरुर जाते ! नवमी को मोहल्ले में ही 'बंगाली दादा' लोग पूजा करता था ! जबरदस्त ! अब यहाँ एकदम एलीट की तरह ! मल मल का कुरता ! बेटा भी ! दुर्गा माँ को साष्टांग ! हे माँ - इतनी शक्ति देना की ..........! फिर प्रोग्राम ! रविन्द्र संगीत और नृत्य ! ये लोग बड़े - बड़े कलाकार बुलाते हैं - कभी कुमान शानू तो कभी उषा उथप ! गाना साना सुने ! ढेर बंगाली दादा लोग हमको 'बिहारी बाहुबली' ही समझता था - सो इज्जत भी उसी तरह ! पर् अच्छा लगता था !


रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Wednesday, October 6, 2010

बिहार चुनाव - भाग एक

कल देर रात तक 'चन्दन' पास बैठा हुआ था ! बोला - भैया , अब आपको राजनीति ज्वाइन कर लेना चाहिए ...फिर हंसने लगा ..आप इतना "तीखा"  बोलते हैं - कौन आपके साथ रहेगा ? :(  फिर उसको बोला ..मेरा 'ब्लॉग' पढ़ो :) मै "बिहार राजनीति" का बाल कलाकार 'सचिन' हूँ :) बहुत देर तक बातें हुई !

इस बार अजीब हुआ - कई लोग फोन किये - रंजन जी , यही मौका है - कूद जाईये ! एक देर रात - राजीव कुंवर अड् गए - अभी बाओ डाटा भेजिए - अभी का अभी ! खैर , ना तो इतना पैसा है और ना ही 'कुब्बत' ! बेरोजगार होता - पटना में होता तो कोई और बात होती ! कई करीब के दोस्तों ने समझाया - अभी खेलो - कूदो , फिर आराम से "हनुमान कूद" करना :)

बिहार में एक कहावत है - किसी से दुश्मनी है तो उसको एक 'सेकण्ड हैंड गाड़ी' खरीदवा दो - दुश्मनी गहरी है तो 'चुनाव' लडवा दो :) एक जमाना था - जब चुनाव में खेत बिकते थे - अब 'चुनाव' में हारने के बाद भी लोग नॉएडा में प्लाट खरीदते हैं :) कॉंग्रेस के एक बहुत ही बड़े नेता से बात हो रही थी - बोले - क्या हीरो - कब आ रहे हो मैदान में ? मै एक शर्मीला लडका की तरह नजरें झुका मुस्कुराने लगा - वो बोले - अरे , इंदिरापुरम में फ़्लैट लिए हो न ..क़र्ज़ से लिए होगे ...एक चुनाव में सब क़र्ज़ खत्म हो जायेगा :)

देखिये , बाहुबली से डर नहीं लगता है ! बिलकुल नहीं ! डर लगता है - नेता सब से ! कहाँ 'सेट' कर दे और आप 'बैकुंठधाम' :( बात करीब तेईस साल पुरानी है - बिहार के प्रथम बाहुबली 'काली पांडे' जी हमारे सांसद हुआ करते थे ! मै मैट्रीक के परीक्षा के बाद अपने गृह जिला के दौरा पर् था और तत्कालीन मुख्यमंत्री 'श्री विदेश्वरी दुबे' जी भी आने वाले थे सो हम सभी उनकी आगवानी के लिए लोकल हवाई अड्डा पर् खड़े थे ! मेरी थोड़ी नोक झोंक 'काली पांडे' जी से हो गयी - जो बिलकुल मेरे बगल में थे ! मेरे दादा जी बीच बचाव करते - पर् मै पुरे आवेश में था जिसका भरपूर इज्जत "काली पांडे" ने किया - पर् इस छोटी सी घटना ने कईओं को आशा जगा दिया की - एक दिन मै भी .....

राजनीति ठीक है ..लेकिन 'हिंसा' देखकर डर लगता है ! बहुतों को मौत के घाट तक पहुंचते देखा हूँ ! कई करीबी ! यहाँ घात होता है ! मर्दों की तरह सामने से लड़ाई नहीं होती है ! जो कल तक आपकी उंगली पकड़ 'राजनीति का पाठ' पढ़ रहा था वो आज अपने निजी स्वार्थ के लिए आपकी हत्या करवाने में थोडा भी नहीं जिझकेगा - ये बहुत ही गलत है ! नगीना राय की हत्या देखी है ! उस दौर में "गोपालगंज" में कई हत्याएं देखी ! लगातार ! 

लेकिन ये नशा है ! नगीना राय को मरे १९ साल हो गए - एक बार फिर उनके पुत्र 'महेश राय' कॉंग्रेस की टिकट पर् चुनाव लड़ रहे हैं ! सोचा फोन करूँगा ! कई अपने अलग अलग पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं !

मंजीत हमारे विधायक होते थे ! पिछली दफा हार गए ! हमलोगों की बहुत इज्जत करते हैं ! नितीश ने उनको फिर एक बार टिकट दिया है ! आशा है जीत जायेंगे ! उनके पिता जी हमलोगों के विधायक होते थे - हमसभी उनको 'बाबूसाहब' कहते थे - छोटे सरकार ( सत्येन्द्र बाबु) के दाहिना हाथ ! राजनीतिक विरोध था पर् बड़े ही खानदानी थे ! 'बड़े आदमी' ! छोटापन नहीं था ! सत्येन्द्र बाबु के कैबिनेट में वो थे - मंत्री बनने के बाद सबसे पहले हमारे दरवाजे पर् आये थे - हमने भी उनके 'बडपन्नता' को इज्जत दी थी !

पारिवारिक मित्र और पटना में हमारे परिवार के अभिभावक 'कृष्णकांत बाबु' के परिवार से उनके बड़े लडके - चुन्नू बाबु गोरियाकोठी से भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं ! फरवरी २००५ में जीते भी थे ! इस बार उनको जरूर जितना चाहिए ! इस परिवार ने 'गोरियाकोठी' को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है ! बिहार का कोई भी ऐसा जिला नहीं है जहाँ आपको इस गाँव की कोई लडकी डॉक्टर नहीं मिलेगी !

और क्या लिखूं ? सभी अपने जीते ! शुभकामना रहेगी !

पर् मुझसे 'नितीश कुमार' नहीं "घोंटाता" है :( 






रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Saturday, September 25, 2010

लाईफ इन अ मेट्रो - पार्ट वन

फाईनल सेमेस्टर का परीक्षा के बाद हम 'पटना' में जम गए थे ! दोस्त लोग नौकरी में जाने लगे - फोन आने लगे ! हम सोचे जब सब 'नौकरी' कर रहे हैं - फिर हमें भी कर लेना चाहिए ! :)

'अमित' को बंगलौर में नौकरी लगी थी ! फोन किया - बोला 'आ जाओ' ! हम भी ट्रेन पकड़ लिए ! उनदिनो 'मोबाईल' नहीं होता था ! बंगलौर पहुंचा तो पता चला की वो 'दूसरे शहर ' गया हुआ है दीदी से मिलने ! अब मै क्या करूँ ? सोचा "नौकरी" करने आया हूँ - अंदाज़ फ़िल्मी होना चाहिए ! पूरी रात 'मजेस्टिक बस स्टेशन' पर् गुजार दिया ! अगली सुबह 'अमित' से मुलाकात हुई ! उसको कंपनी वालों ने 'मल्लेश्वरम' चौक पर् एक कमरा दिया हुआ था ! जम गए 'कमरा' में ! 'अमित' को हमारे बैच वाले 'दादा' कहते हैं ! 'दादा' को मेरी नौकरी की टेंशन थी - मैंने उसको समझाया - नौकरी बड़ी चीज़ नहीं है - नौकरी में मन लगना बड़ी चीज़ है ! पटना से चलते वक्त - बाबु जी ने बाटा का किंगस्ट्रीट जूता खरीद कर दिया था - १० ही दिन में वो बेचारा दम तोड़ दिया ! खैर अगले एक दो सप्ताह में ही नौकरी लग गयी ! एक आई आई एम अलुम्नी की छोटी सी कंपनी थी !

हर सुबह 'नहाने' का झंझट होता था ! जब तक मै सो कर उठता - 'दादा' नहा धो कर 'तैयार' :) अब जब वो अपने ओफ्फिस की तरफ निकलता तब मै 'अखबार' पढता - फिर चाय - फिर नहा धो कर लेट लतीफ़ ! शाम को लगभग हम दोनों एक ही समय में पहुँचते ! फिर साथ में 'दूकान' में एक कप चाय को दो भाग में करके  पीते ! जिस जगह हम रहते थे - वहाँ काफी व्यस्त सड़क थी ! उसको 'मल्लेश्वरम सर्किल' कहते थे ! देर रात तक भीड़ भाड़ ! एक मैग्जीन की दूकान होती थी - वहाँ से आठ आना में मैग्जीन को रात भर पढने के लिए लाते थे ! :) The Week की लत वहीँ लगी थी !

रात को खाने का हमलोगों ने बढ़िया ट्रिक निकाला था ! एक अंडा के दूकान से चार उबला अंडा खरीद , फिर एक रेस्तरां से छह रुपईया में एक प्लेट चावल और चिकन की करी :) कुल १२ -१३ रुपईया में दम भर खाना :) दरअसल 'दादा' ने रेस्तरां के किचेन वाले को 'फिट' कर रखा था :) वो एक प्लेट चावल की जगह दो प्लेट दे देता था और चिकन करी मुफ्त में :) हम इतने बेचारा शक्ल में होते की - कोई भी कुछ भी दे सकता था :) एक शनीवार दादा 'ब्रिगेड' लेकर गया - बोला 'देखो' यही है "दुनिया" ! फिर क्या 'दादा' के "विजय सुपर " पर् चढ हम रोज "दुनिया" देखने जाने लगे ! :) फिर , शनीवार देर रात ! क्या 'दुनिया थी' :) "जन्नत लगता था" ! कई दोस्त जो वहाँ विदेशी कंपनी में काम करते थे - वहीँ मिलते ! जो जितना 'कमाता' वो उतना ही बड़ा 'कंजूस' :)

मेरे लिए 'अन्जान' लोगों से दोस्ती थोड़ी मुश्किल थी - पर् 'दादा' सब से कर लेता था ! हम जिस मकान में रहते थे - उसका नाम था "रतन महल" ! हम जैसे ही वहाँ रहते थे ! दादा वहाँ बहुतों से दोस्ती कर लिया ! एक और टीम था - उडिया का - "सुबुध्धी" - ISRO में वैज्ञानिक था ! अब टीम बड़ी हो गयी - रात में साथ खाना खाने वालों का ! हम और दादा अब 'चावल और अंडा' वाला धंधा बंद कर दिए थे - हम सभी अब नए ठीकाने खोज लिए - "आन्ध्र स्टाईल" रेस्तरां ! इसी बीच हम भी एक 'बजाज चेतक स्कूटर' खरीद लिए !

तब तक 'तविंदर सिंह' पहुँच गया ! लंबा चौड़ा 'जम्मू का सरदार' ! उसको भी नौकरी लग गयी :) हम तीनो एक साथ "दादा" के कमरे में रहने लगे ! एक दिन 'दादा' बोला - भाई - ये रूम मेरी कंपनी का है - अब तुम दोनों अलग कमरा ले लो ! हम और तविंदर दोनों ने एक कमरा उसी 'रतन महल' में ले लिया ! तविंदर सरदार था - दिल बहुत बड़ा और 'बहस करने में उतना ही माहीर ! रात भर बहस करता था ! और कमरे में मै पलंग पर् सोता और वो नीचे ! कभी शिकायत नहीं किया ! अब वो कंगारू स्टेपलर का इंटरनेशनल हेड है :) नॉएडा आया था तो मिला था :) फेसबुक पर् भी है :)

तविंदर के आने से एक फायदा हुआ - हम सभी अलसूर रोड पर् एक गुरुद्वारा में हर रविवार 'लंगर' खाने जाने लगे :) बहुत मजा आता था ! पूरा एक टीम ! तविंदर देर रात अपनी पगड़ी को हम सभी से सीधा करवाता था :) फिर सुबह में उसकी पगड़ी बांधो !

एक छोटी सी घटना याद है - के आर सर्किल के पास बंगलौर का सबसे बढ़िया 'इंजिनिअरिंग कॉलेज' है - वेश्वेश्वरैया जी के नाम पर् ! वहाँ से गुजर रहा था ! पोस्टर देखा - वहाँ 'मिलेनियम ग्रुप' का रॉक शो होने वाला था ! मै कॉलेज के अंदर घुसा गया ! अभी नया नया खुद भी कॉलेज से पास किया था तो झिझक नहीं हुई ! वहाँ के विद्यार्थीओं के कल्चरल सेक्रेटी से मिला और बोला - "मुझे अवसर दोगे , मिल्लेनियम ग्रुप के साथ ? " वो बहुत देर तक हंसा फिर बोला - ओके , आ जाना कल :) अब , कल के लिए कपडे नहीं थे :) जिस कपडे में 'इंटरविउ' देता फिरता था - उसमे ही पहुँच गया - सफ़ेद शर्ट - काला पैंट और लाल टाई ;) "दादा" भी साथ में था ! जबरदस्त स्टेज और क्रावूड ...मस्त !! ;) पचास हज़ार वाट के स्पीकर्स :) बेहद ख़ूबसूरत लड़कियां - हर लिबास में ! दक्षिण भारत के सभी बढ़िया इन्जीनिअरिंग कॉलेज के एक से बढ़कर एक लडके - लडकी आये थे ! "दादा" को किस किया और फांद गया - स्टेज पर् - खुद का लिखा 'गाना' - सब झूम गए ! स्टेज से नीचे उतरा तो 'दादा' बोला - क्या बोला ....आज तक कानो में सुरक्षित हैं :) फिर क्या था ...दादा थोडा दूर खड़ा था और मै जिंदगी में पहली दफा इतनी सारी हसीनाओं के बीच अकेला खडा था :) किसी ने कहा 'दम चलेगा ? " हा हा हा ... ....उफ्फ्फ्फ़ ..वैसे पल फिर कभी नहीं आये ...और सिर्फ 'दादा' ही इसका गवाह बन सका ! दोस्त है - बड़ा भाई जैसा भी ! इंदिरापुरम में ही रहता है :) विप्रो में बहुत बड़ा अधिकारी बन गया है ! मेरी एक डायरी भी उसके पास सुरक्षित है ;) !
कुछ महीनो के बाद दादा कलकत्ता चला गया ! वहीँ उसको नौकरी मिल गयी ! तविंदर अपने ढेर सारे सामान को मेरे पास छोड़ ..जम्मू वापस चला गया ! मै काफी अकेला हो गया ! मै अपनी पुरानी कंपनी छोड़ 'दादा' वाली कंपनी में चला गया ! 'सिंगापूर' की कंप्यूटर नेटवर्किंग कंपनी थी - मालिक 'I I Sc ' से पास था - 'वैज्ञानिक' जैसा ! बहुत पढ़ना पड़ता था - वहाँ ! तनखाह मुहमांगी जैसी थी - पर् 'मन' बिलकुल नहीं लगता था ...बिलकुल भी नहीं ..!

क्रमशः !!!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !


Thursday, September 16, 2010

अखबार में नाम - "हिंदुस्तान दैनिक" में अपना दालान !!

बिहार में चुनाव के घोषणा होते ही मैंने 'फेसबुक' पर् लिखा की - चुनाव की हलचल को 'दालान' पर् लिखूंगा - रवीश भी कम्मेंट किये की - 'इंतज़ार करूँगा' ! मैंने लिखा भी - फिर डिलीट मार दिया ! अचानक दो दिन पहले - रवीश का एस एम एस आया की - अपने दालान का लिंक दीजिए ! उस वक्त मै अपने एक बेहद जिगरी दोस्त से गप्प मार रहा था - उसको भी बोला - शायद 'रवीश अभी फुर्सत में दालान पढ़ना चाह रहे होंगे ! फिर अगले दिन रवीश को मैसेज भेजा - "दालान कैसा लगा ?" उन्होंने जबाब दिया - "मेरा गाँव - मेरा देस " काफी पसंद आया !  बात आयी गयी हो गयी !

कल सुबह अचानक संजय भैया का फोन आया ! बोले की "दालान" के चर्चे "हिंदुस्तान दैनिक" में छपा है ! आम इंसान हूँ - खुशी हुई ! नेट पर् लिंक खोजा और चार बार पढ़ा ! फिर रवीश को थैंक्स एस एम एस भेजा ! कई नजदीकी दोस्त खुश हुए ! डरते डरते बीवी को भी बताया - एक छोटी सी सच्ची कहानी के साथ ! वो मुस्कुरायीं और हम थोड़े निश्चिन्त हुए :)

आम  इंसान हूँ ! खुश हूँ और खुशी से लिखने की तमन्ना बढ़ी है ! "पत्रकारों" की बेहद इज्जत करता हूँ ! पर् 'पत्रकार' बनना पसंद अब नहीं होगा - हिंदी पत्रकारिता में बहुत ही गंदी राजनीति है ! बहुत ही करीब से देख लिया ! प्रतिभाएं कैसे पनप जाती है - आश्चर्य होता है ! यहाँ "भ्रूण हत्या" होती है ! दुःख होता है ! शायद रवीश मुझसे सहमत होंगे !

खैर , राजनीति भी ज्वाइन नहीं करना ! इस बार करीब बीस लोग फोन किये होंगे - चुनाव कहाँ से लड़ रहे हो ? :) कई वरिष्ठ लोग बोले - राहुल जी से एक बार और मिल लो - टिकट मिल जाएगा ! मेरा जबाब स्पष्ट था - 'इगो' डाउन कर के राजनीति नहीं करनी ! राहुल जी चाहेंगे तो 'राज्यसभा' भेज सकते हैं ;) ( हवा )

खैर ...चलिए देखते हैं ...रवीश ने क्या लिखा

"जातिगत समीकरणों का ऐसा ही विश्लेषण पिछले चुनावों के दौरान भी था। बहुत समीकरण बनाए गए, लेकिन नीतीश का जातिगत समीकरण और एक पार्टी के लंबे शासन से निकलने की पब्लिक की चाह ने नतीजे बदल दिये। जातिवाद की मजबूरी बिहार की राजनीति की आखिरी सीमा नहीं है। इसे समझने के लिए दालान ब्लॉग पर जा सकते हैं।

http://daalaan.blogspot.com/ पर रंजन ऋतुराज लिखते हैं कि उनके गांव में एक ब्राह्मण को पोखर दान कर दिया गया। मरने के बाद एक ठेकेदार ने उसकी विधवा से पोखर अपने नाम करा लिया, लेकिन लोग कई साल से पोखर का सार्वजनिक इस्तेमाल भी करते रहे। छठ पूजा का घाट बन गया। रंजन के परिवारवालों ने मुसलमानों से चंदा करा कर पोखर के एक किनारे मस्जिद बनवा दी। जब ठेकेदार ने कब्जा करने की कोशिश की सब ने उसे भगा दिया। गांव के हर घर ने चंदा कर मुकदमा लड़ा। अदालत का फैसला हुआ और पोखर को सार्वजनिक घोषित कर दिया गया।

इस छोटी-सी सत्यकथा में बिहार के लिए सबक है। रंजन लिखते हैं कि मैंने समाजशास्त्र किसी किताब में नहीं पढ़ा है। समाज के साथ रहा हूं सो जो महसूस करता हूं लिखता हूं। लोग किस-किस अवस्था में कैसे सोचते हैं, इसका पता किसी को नहीं चलता। रंजन अपने फेसबुक पर स्टेटस में लिखते हैं कि दलसिंहसराय के विधायक राम लखन महतो को जदयू में लाने की बात पर उपेंद्र बाबू गुस्सा गए। जहानाबाद के दलबदलू अरुण बाबू भी कहने लगे कि दूसरी पार्टी के लोगों की पूछ नहीं बढ़नी चाहिए। भूल गए कि वे बिहार के सब दलों में घूम कर वापस आए हैं।

वाकई बिहार एक फैसले के मोड़ पर खड़ा है। सब एक ही सवाल कर रहे हैं कि बिहार विकास के नाम पर वोट करेगा या जाति के नाम पर। कोई इन दोनों के कॉकटेल की बात नहीं कर रहा है। जो कॉकटेल बना लेगा जीत का नशा वही चखेगा। रंजन लिखते हैं कि जाति की राजनीति बिहार या भारत या विश्व के लिए नयी नहीं है।
बिहार पोलिटिक्स पेज है - फेसबुक पर् ! वहाँ की बातें भी मेरे नाम से कोट की गयी हैं - पर् उसमे ज्यादा योगदान "सौमित्र जी और सर्वेश भाई " का है - दोनों बंगलौर में ही रहते हैं !


लिंक है "हिंदुस्तान में दालान"  



रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Friday, September 10, 2010

टुनटुन बाबु की कहानी !!


टुनटुन बाबु - गाँव के सबसे बड़े गृहस्थ के एकलौते बेटे ! कहते हैं - इनके यहाँ १९०७ से ही गाड़ी है ! सन १९५२ से ही रसियन ट्रेक्टर और अशोक लेलैंड की ट्रक ! जम के ईख की खेती होती ! खुद परिवार वालों को नहीं पता की कितनी ज़मीन होगी ! इलाके में नाम ! गांव बोले तो 'टुनटुन बाबु' के बाबा के नाम से ही जाना जाता था !

मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज से बी ए फिर एम ए पास करने के बाद - जब सभी दोस्त 'दिल्ली' जा कर 'कलक्टर' की तैयारी करने लगे तो 'टुनटुन बाबु' को भी मन किया ! अब बाबा और बाबु जी को बोले तो कैसे बोलें ? माँ को बोला - 'दिल्ली' जाना चाहता हूँ ! माँ ने बाबु जी को बोला - बाबु जी ने बाबा को बोला ! 'कलक्टर' बनने के नाम से इजाजत मिल गयी - पर् शर्त यह की - डेरा अलग लिया जायेगा - एक रसोइया रहेगा साथ में रहेगा और एक नौकर ! दिल्ली के मुखर्जी नगर में डेरा हो गया ! गाँव से 'मैनेजर' जी आये थे - साथ में चावल -आटा - शुद्ध खोवा का पेडा ! देखते देखते ढेर सारे 'दोस्त' बन गए ! सुबह उनके डेरा पर् दोस्त जमा हो जाते - गरम गरम पराठा और भुजिया खाने ! "टुनटुन बाबु' को काहे को पढने में मन लगता :) कई दोस्त उनका ही खा कर 'कलक्टर' बन निकल पड़े :) कई पत्रकारिता की तरफ तो कई एक्सपोर्ट हॉउस में ! ३ साल बाद टुनटुन बाबु वापस लौट गए - गाँव ! जो गाँव के दोस्त थे - उनसे 'दिल्ली' का गप्प होता - वहाँ ये किया - वहाँ वो किया - हाव भाव भी बदले हुए !

शादी तय हो गयी ! तिलक के दिन - पूरा इलाका आया था ! टुनटुन बाबु के कई दोस्त भी ! लडकी वाले ने सिर्फ 'चांदी' का सामान चढ़ाया था ! कई 'कलक्टर' दोस्त भी आये थे - उनलोगों को ठहरने का अलग इंतज़ाम ! सब भौचक्क थे !

शादी के बाद - पहला होली आया ! माँ के कहने पर् १० दिन पहले ही 'टुनटुन बाबु' ससुराल पहुँच गए ! साथ में एक 'हजाम' , एक नौकर भी ! हर रोज तरह तरह के पकवान बनते ! घर के सबसे छोटे दामाद थे - पूरा आवभगत हुआ ! होली के २ दिन पहले और भी बड़े 'साढू-जेठ्सर' आ गए ! कोई कहीं कैप्टन तो कोई कहीं अफसर ! पत्नी का जोर था - 'जीजा जी' लोग से मिक्स क्यों नहीं करते ? पत्नी के दबाब में - "टुनटुन बाबु" अपने साढू भाई लोग से गपिआने लगे ! कोई बंगलौर का कहानी सुनाता तो कोई दिल्ली का ! बात - बात में वो सभी अपनी 'नौकरी' के बारे में बात करते - और 'चुभन' टुनटुन बाबु को होती ! पत्नी भोलेपन में अपनी दीदी लोग के रहन सहन की बडाई कर देती ! होली का माहौल था ! "सास" सब समझ रही थीं ! छोटे दामाद की पीड़ा ! "साढू भाई" लोग की बोलियां और नौकरी की बडाई - टुनटुन बाबु के अंदर एक दूसरी होली जला दी थी ! खैर , पत्नी को मायके में छोड़ - होली के दो दिन बाद वो वापस अपने गाँव आ गए ! उदास थे ! सब कुछ था - पर् नौकरी नहीं था ! अक्सर यह सोचते - नौकरी से क्या होता है ? पैसा ? पैसा से क्या ? घर - जमीन जायदाद ? परेशान हो गए !

जब परेशानी बढ़ गयी तो - माँ को बोले - मै नौकरी करने 'दिल्ली' जाना चाहता हूँ ! माँ ने बाबु जी को बोला - बाबु जी ने बाबा को बोला ! बाबा बोले - "क्या जरुरत है - नौकरी की ? हम गिरमिटिया मजदूर थोड़े ही हैं ? " खैर किसी तरह इजाजत मिल गयी ! टुनटुन बाबु भी अपने एक दोस्त का पता ..पता किया ! पता चला की वो एक एक्सपोर्ट हॉउस में है - वो नौकरी दिलवा देगा !
जाने के दिन - माहौल थोडा अजीब हो गया ! माँ ने 'अंचरा' से कुछ हज़ार रुपये निकाल के दिए - बाबु जी से छुपा के दे रही हूँ ! जब  दिक्कत होगा तो खर्च करना ! बाबु जी भी उदास थे ...जाते वक्त ..'एक पाशमिना का शाल" कंधे पर् डाल दिया ! बड़ा ही भावुक माहौल था ! जीप से स्टेशन तक आये ! ट्रेन पर् चढ ..दिल्ली पहुँच गए !

दिल्ली बदल चूका था - दोस्त बदल चुके थे ! इस बार ना तो रसोईया था और ना ही कोई नौकर ! कई 'कलक्टर' दोस्त जो दिल्ली में ही थे - सबको फोन लगाया - कुछ करो यार ! पहले तो सब हँसे - तुम और नौकरी ? जो पिछली बार तक इनके 'पराठे - भुजिया' खाने के लिए सुबह से ही इनके डेरा पर् जमे रहते थे - किसी ने घर तक नहीं बुलाया ! अंत में काम वही आया - एक्सपोर्ट हॉउस वाला - जिसको 'टुनटुन बाबु' कभी भाव नहीं दिए - अपनी शादी में भी नहीं बुलाया था ! एक सप्ताह में - नौकरी का इंतजाम हो गया ! एक दूसरे एक्सपोर्ट हॉउस में !

बड़ा मुश्किल था ! सुबह ८ बजे ही बस पकडो ! बस से ऑफिस पहुँचो ! फिर मैनेजर ! ढेर सारा काम ! बहस ! मालिक ! उफ्फ्फ्फ़ ! कभी कभी कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता ! पत्नी के साथ पटना में एक जूता ख़रीदे थे - वुडलैंड का ! अब वो जूता जबाब देने लगा ! माँ का भी दिया हुआ पैसा - खत्म होने के कगार पर् था ! सात तारीख को तनखाह मिलती !

सात तारीख आ गया ! मैनेजर ने बोला - कैश लोगे या चेक ! टुनटुन बाबु बोले - "कैश" ! ७ हज़ार रुपये ! कितने भारी थे ! माँ बाबु जी को याद किया ! बाबा को भी ! फिर 'साढू भाई' लोग याद आये :)
महंगे जूते खरीदने की हिम्मत नहीं हो रही थी - किसी तरह सब से सस्ता एक जूता ख़रीदा ! वैसा जूता उनके गाँव का उनका नौकर भी नहीं पहनता होगा !

अब घर याद आने लगा ! हर शाम वो बेचैन होने लगे ! मन में ख्याल आने लगा - कौन सा 'सरकारी हाकीम" बन गया हूँ ! प्राइवेट नौकरी है ! जितना कमाएंगे नहीं - उससे ज्यादा तो गाँव में लूटा जायेगा ! ऐसी सोच हावी होने लगी ! एक दिन "सामान" पैक किया - मकानमालिक को कमरे का चावी पकडाया और स्टेशन की तरफ चल दिए !

आये थे - थ्री टायर एसी में ! वापसी जेनेरल में ! दिल्ली ने धक्कों से लड़ना सिखा दिया था ! सीट पकड़ ही ली ! सामने एक बुजुर्ग भी बैठे हुए थे ! ट्रेन खुल गयी !
अलीगढ में ट्रेन रुकी तो चाय वाला आया - चाय की कुछ बुँदे जुते पर् गिर गयी ! कंधे पर् रखे - "पाशमिना के शाल" से टुनटुन बाबु जूता पोंछने लगे ! फिर कुछ देर बाद एक - दो बार और पोछे !
सामने की सीट पर् बैठे - बुजुर्ग ने पूछा - "बेटा , इतने महंगे शाल से इतने सस्ते "जूते" को क्यों पोंछ रहे हो ?

टुनटुन बाबु बोले - "ये कीमती शाल - बाप दादा की कमाई का है और ये जूता भले ही सस्ता है - लेकिन "अपनी कमाई" का है :)


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Sunday, September 5, 2010

शिक्षक दिवस ....कुछ दिल से ...

बहुत सारे विषय पर लिखने का मन करता है ! कई लोग पर्सनल चैट पर प्रशंषा करते हैं - आगे खुल कर नहीं बोल पाते :) ! आप सभी को मेरा लिखना पसंद आता है - यही बहुत बड़ी बात है ! बहुत सारे लोग जो यह भी जानते हैं की मै एक शिक्षक हूँ - उन्हें यह आशा जरुर होगी की मै शिक्षक दिवस पर कुछ लिखूंगा ! 

एक घटना याद है - उन दिनो "याहू मेस्सेंजर" पर चैट होती थी - एक सज्जन थे - 'पनिया जहाज' पर कैप्टन या इंजिनियर ! सुना है वैसे कामो में बहुत पैसा होता है ! खैर , परिचय हुआ - बिहार के थे ! मैंने भी अपना परिचय दिया ! अब वो अचानक बोल पड़े - "शिक्षक हो ? कैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालते हो ? - कितना कमाते हो ? " उनकी भाषा 'कटाक्ष' वाली थी ! मै कुछ जबाब नहीं दे पाया - सन्न रह गया ! जुबान से कुछ नहीं निकला - बस एक स्माईली टाईप कर दिया ! पर , उनके शब्द आज तक 'कानो' में गूंजते हैं ! 

कई घटनाएं हैं ! नॉएडा नया नया आया था ! जिस दिन ज्वाइन करना था - अपने 'हेड' के रूम के आगे दिन भर खड़ा रहा - मुझे उनसे मिलना था और उनके पास समय नहीं - मेरे 'इंतज़ार' करने का फल ये हुआ की - इम्रेशन बढ़िया बना ! सब्जेक्ट भी आसान मिला  - प्रथम एवं अंतिम बार "जम के मेहनत किया और पढाया" ! कई विद्यार्थीओं ने मेरे नाम के आगे "झा" जोड़ दिया था :) 

कुछ बैच ऐसे होते हैं - जिसमे आप २-३ सब्जेक्ट पढाएं तो वहाँ एक खास तरह का स्नेह बन जाता है ! फिर ता उम्र आप उनसे जुट जाते हैं ! एक रिश्ता बन जाता है ! एक विद्यार्थी था - दूसरे ब्रांच का ! उसे थोड़ी हिम्मत की कमी थी - अक्सर वो मिल जाता और मै उसको हमेशा यह बोलता की तुम अपने क्लास में टॉप कर सकते हो ...फिर मैंने उसको जान बुझ कर उसके हौसले को बढ़ाने के लिए १-२ मार्क्स ज्यादा दिए - फिर वो आगे देखा न पीछे ...अचानक फ़ाइनल इयर में पता चला की - वो टॉप कर गया है - क्लास में नहीं -पुरे यूनिवर्सटी में :) कॉलेज आया तो अपने माता -पिता से मुझसे मिलवाया ! अछ्छा लगा था ! 

एक बार मै अपने हेड के कमरे में गया तो वहाँ एक वृद्ध सज्जन बैठे थे - उनदिनो मेरे हेड एक 'सरदार जी' होते थे ! शायद उनको मै बहुत पसंद नहीं था - पर मै इतनी सज्जनता से पेश आता की - उनके पास कोई और उपाय नहीं था - खैर उनके कमरे में बैठे सज्जन के बारे में पूछा तो पता चला की उनका 'पोता' हमारे यहाँ पढता है और  फेल कर गया है - अब वो नाम कटवा के वापस ले जाना चाहते हैं - मैंने बोला - आप एक कोशिश और कीजिए - मै उसका ध्यान रखूँगा - मै ज्यादा ध्यान नहीं रख पाया - पर , हाँ - कभी कभी टोक टाक दिया करता था - वो लड़का सुधर गया - पास करने के कुछ दिन बाद आया - मेरे केबिन में -  "पैर छूने लगा - मैंने मना कर दिया " - धीरे से बोला - 'सर , विप्रो में नौकरी लग गयी है ' - बंगलौर जाना है - सोचा आप से मिल लूँ ! इतनी खुशी हुई की - पूछिए मत - लगा आँखों से खुशी के आंसू छलक जायेंगे ! मुझे यह पूर्ण विश्वास है की - दुनिया की कोई ऐसा दूसरा पेशा नहीं है - जिसमे आपको ऐसी खुशी मिल सके  ! 

मुझे मैनेजमेंट गुरु बहुत पसंद आते हैं - और अक्सर मै एक 'इलेकटीव' पढाता हूँ - जिसमे मैनेजमेंट के कुछ                   ज्यादा भाग हैं ! अखबार में अगर कोई ऐसा आर्टिकल किसी मैनेजमेंट गुरु का अगर आ जाए तो - मै उसे बिना पढ़े नहीं छोड़ता - खास कर 'ब्रांड मैनेजमेंट' का ! खैर ये मेरी पुरानी आदत से - कोर विषय से अलग हट के 'काम' करना ;) वैसे मेरी नज़र में 'कंप्यूटर इंजिनीरिंग' में 'प्रोग्रामिंग' के बाद अधिकतर  विषय बकवास ही होते हैं - और मुझे सब कुछ नहीं आता ! :) 

बाबू जी भी शिक्षक हैं ! जिस किसी दिन भी उनका क्लास होता है - उसके २ दिन पहले से वो 'जम' के पढते हैं - उनके कमरे में कोई नहीं जाता है ! 

खुद शिक्षक हूँ - पर मुझे मेरी जिंदगी में कोई ऐसा शिक्षक नहीं मिला - जो मेरी प्रतिभा को पहचान एक दिशा देता ! कुल मिलाकर - मेरे बाबु जी ही मेरे लिए दिशा निर्देशक के रूप में हैं - शुरुआती दिनों में उनके कई बात नज़रंदाज़ किया हूँ - अब दुःख होता है - खासकर उनकी एक सलाह - जब मैंने 'मैट्रीक पास किया' - मानविकी एवं समाज विज्ञानं  ले लो , पढ़ा होता तो शायद किसी बड़ी पत्रिका का संपादक या राज नेता होता ! माँ की  ट्रेनिंग भी बहुत महत्वपूर्ण है मेरे लिए - आम जिंदगी में मेरी शालीनता और त्याग जल्द ही नज़र आ जाती है - कभी इसका बुरा फल मिलता है - कभी लोगों में जलन तो कभी लोग महत्त्व भी देते हैं - मेरे इस गुण के लिए मेरी माता जी ही जिम्मेदार है - कुछ खून का असर है - कुछ ट्रेनिंग ! 

मेरी स्नातक 'इलेक्ट्रोनिक एवं संचार' अभियंत्रण में है ! 'खुद जब विद्यार्थी था तब क्लास में आज तक मुझे कुछ समझ' में नहीं आया ! जिसका रिजल्ट यह हुआ की  - मै  बहुत ही सरल अंदाज़ में कोई भी सब्जेक्ट पढ़ाना पसंद करता हूँ ! अब तो कुछ सालों से 'प्योर लेक्चर' - एक घंटा तक बक बक ! मुझे याद है - पटना के एक कॉलेज में पढाने गया था - पहले ही क्लास में वहाँ के डाइरेक्टर साहब बैठ गए - जो जाने माने शिक्षक होते थे और आजादी के समय अमरीका से  पढ़ कर लौटे थे - मेरा लेक्चर सुनने के बाद बोले - " पढने की कोशिश करना - ज़माने बाद - कोई ऐसा मिला - जिसके अंदर ऐसी क्षमता हो जो  बातों को सरल अंदाज़ में विद्यार्थीओं को समझा सके - पर ज्ञान बढ़ाने के लिए तुमको पढ़ना होगा " ! खुद विद्यार्थी जीवन में बहुत अच्छे मार्क्स कभी नहीं आये पर बहुत सारी चीज़ें बहुत जल्द समझ आ जाती थी - जिसने मुझे 'खरगोश' बना दिया और देखते देखते 'कई कछुए' आगे निकल गए ! 

मेरी दो तमन्ना है - एक मैनेजमेंट में कोई बढ़िया लेख लिखूं और 'हाई स्कूल' में पढाऊँ ! कंप्यूटर से पी जी करने के बाद भी - मैंने कई 'हाई स्कूल' में शिक्षक के रूप में नौकरी के लिए आवेदन दिया था - सब्जेक्ट - भूगोल , इतिहास , नागरीक शास्त्र :) मुझे लगता है - अगर हाई स्कूल में हम चाहें तो बच्चों को जीवन में कुछ बड़ा सपना देखने को बढ़िया ढंग से प्रेरित कर सकते हैं ! 

कई लोग मुझे मिलते हैं जो भिन्न - भिन्न पेशा में हैं और कहते हैं - मै भी कुछ दिनों बाद 'शिक्षक' बनना पसंद करूँगा ! पर , बहुत कम लोग 'शिक्षक' बनने आते हैं और एक बेहरतीन विद्यार्थी होते हुए भी - बढ़िया शिक्षक नहीं बन पाते ! 

बहुत कुछ लिखने का मन था ...लिख नहीं पाया ...फिर कभी .. 



रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Friday, September 3, 2010

सिनेमा- सिनेमा : सोनाक्षी सिन्हा

अपनी दबंग 'बिहारन' - सोनाक्षी सिन्हा ! वक्त कैसे गुजर जाता है - पता ही नहीं चलता ! अभी हाल फिलहाल तक तो मै 'फ़िल्मी मैग्जीन' में शॉटगन सिन्हा को पढता था - कैसे वो ट्रेन में 'आठवीं की छात्रा 'पूनम' से मिले थे , कैसे सिनेमा में एंट्री मिला और कालीचरण , विश्वनाथ , दोस्ताना , शान , क्रांति और न जाने कितने ...! और अब देखिये तो बेटी सिनेमा में आ गयी :) अब बहुत मुश्किल है उसको इग्नोर करना ..जब भी टी वी या इन्टरनेट पर उसको देखता हूँ - एक अलग एहसास होता है - 'पटना की है' - भगवान इसकी सिनेमा हिट कर देना ! अन्जान सा सम्बन्ध जिसकी डोर अनचाहे 'क्षेत्रवाद' पर टिकी है - पर डोर मजबूत है !
स्कूल में पढता था ..कई दोस्त ऐसे होते जिनके ये सम्बन्धी होते थे - मुझे ये विश्वास नहीं होता - मालूम नहीं क्यों ! कई दोस्त ऐसे होते थे की 'सम्बन्ध' जोडने में बेजोड ! हम आज तक ऐसा सम्बन्ध नहीं जोड़ पाए :(
कितने बिहारी हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में थे य है ये नहीं पता पर कुछ नाम याद है - कुमुद चुगानी , कुमकुम , शत्रु जी , अपने शेखर सुमन और नीतू ! शेखर सुमन का घर हमारे स्कूल के पास होता था सो उनसे एक अलग तरह का लगाव है - उनकी एक सीरियल आती थी - "वाह जनाब ! " - संडे को ! कभी मिस नहीं किया !
सुना है - सोनाक्षी बहुत मोटी थी - वजन कम कर के खुद को मॉडल बनाया ! पिछले साल जब वो लक्मे फैशन शो में आयीं तो मैंने "बिहार टूडे" पर प्रमुख खबर के रूप में छापा था ! अछ्छा लगा था और आश्चर्य भी !
"दबंग" में वो गाँव की घरेलु लडकी के रूप में आयेंगी - बस यह छाप ना रह जाए - कुछ अलग किरदार में रूप में भी वो नज़र आयें - हम सब यही चाहेंगे ! अपने से २२ -२३ साल बड़े कलाकार के साथ काम करना आसान नहीं है - अब इसको 'सोनाक्षी' ने कितना आसान बनाया है - यह परदे पर ही नज़र आएगा !

आगे वो 'बोनी कपूर' के बेटे 'अर्जुन' के साथ भी नज़र आयेंगी !

कुछ का कहना है - सोनाक्षी को देख 'रीना रॉय' की याद आती है :) - फिलहाल हम चुप रहेंगे :)
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !