१ अक्तूबर और फिर ३ अक्तूबर को पटना की एक अदालत ने कुछ बाहुबलियों को सजा सुनायी ! "सजा" ऎसी की शेर के आखों मे भी आंसू आ गए ! "समाज" अजीब है ! कभी सर आखों पर तो कभी जूतियों के नीचे ! आदमी वही है , व्यक्तित्व भी वही है ! देखने की नज़र बदल जाती है ! मुझे भी याद है - गाँधी मैदान का वोह रैली जिसमे एक शेर की तरह "आनंद मोहन" गरज रहे थे ! आज वही "आनंद मोहन " के आंसू पोछने वाला कोई नही है ! यही वक़्त है !
आप सभी लोग पढे लिखे हैं - राजनीति का अपराधीकरण कैसे हुआ ? या अपराधियों का राजनीति मे प्रवेश कैसे हुआ ? सुरजभन या अशोक सम्राट जैसे लोगों को कौन पनपाता है ? ईन गिदर को शेर कौन बनाता है ? सिर्फ बंदूक की बदौलत कोई बाहुबली नही बन सकता ! यह मेरा दावा है !
बिहार मे १९८० से १९९० के दशक मे कई बाहुबली पैदा हुये ! बीर मोहबिया , बीरेंद्र सिंह , काली पाण्डेय , सूरज देव सिंह इत्यादी ! लेकिन इनमे दम नही था ! क्योंकि इनकी संख्या कम थी ! राज्य स्तर पर इनकी पहचान नही थी !
१९९० का चुनाव - कई बाहुबली पैदा लिए ! कॉंग्रेस के खिलाफ , लोगों ने इनको चुनकर भेजा ! यह जनता का पैगाम था - राजनीति कराने वालों के लिए ! लेकिन - यह लालू जीं से संभल नही पाए ! सही नेतृत्व के आभाव मे यह सभी कहीँ ना कहीँ जनता की मज़बूरी बन गए ! समाज पहले भी विभाजित था , समाज आज भी विभाजित है और समाज कल भी विभाजित रहेगा ! हाँ , हो सकता है कल विभाजित समाज का पैमाना कुछ अलग हो !
सन २००० का चुनाव और नितीश जीं का मुख्य मंत्री बनाना , १४ निर्दालिये बाहुबली विधायकों का समर्थन लेना वोह भी सूरजभान के नेतृत्व मे ! क्या यह फैसला - बाहुबलियों के मन को बढाना नही था ! क्या इस फैसले ने जनता के गलत फैसले को मजबूत नही किया ? क्या संदेश गया जनता के बीच की सरकार सिर्फ इनकी ही सुन सकती है ! लल्लू के दरबार मे सहबुद्दीन जैसे लोगों को राजा की उपाधि देना । जड़ विहीन लोगों के दवाब मे विश्वा प्रख्यात चिकित्सक सी पी ठाकुर को मंत्रिमंडल से बहार कर देना और पटना एअरपोर्ट पर सी पी ठाकुर का २१ ये के ४७ से आव्गानी करना और सरकार का चुप चाप तमाशा देखना , क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढाना नही है ! क्या हम पूछ सकते हैं श्री नितीश कुमार जीं से की रेल मंत्री होने के नाते सूरजभान को आर्थीक रुप से वोह कितना मजबूत बनाए की आज यह आदमी बिहार का सबसे धनिक लोगों मे से एक है ! जब सूरजभान से मन मुताओ हुआ तो अनंत सिंह को चांदी के सिक्कों से तुलना या फिर अनंत सिंह के दरवाजे पर हर दुसरे दिन जाना ! क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढ़ाने के लिए काफी नही था ? सन २००० के चुनाव मे क्या सोच कर ४० सीट दिये - आनंद मोहन को ! जब वंदना प्रेयसी अनंत सिंह की नकेल कस रही थी तो फिर क्या सोच कर आप उनका ट्रांफर कर दिए ? गुल खाए और गुलगुले से परहेज !
आप राज नेताओं ने इन बाहुबलियों का मन इतना उंचा उठा दिया की सही ढंग से राजनीति कराने वाले ग़ायब हो चुके हैं ! हर गली मुहल्ला मे अपराधी का बोल बाला था ! कानून का भय तो बिल्कुल ही नही है !
खिलाड़ी तो यह राजनेता हैं ! जनता और कुत्ते की मौत मरने वाले अपराधी तो बस गोटी भर ही हैं ! पढे लिखे गरीब बिहारीओं का यह दुर्भाग्य है की "नौकरी" पा कर पेट भर लेना ही उनका एक मात्र लक्ष्य है ! फिर भटके हुये समाज को बाहुबली के अलावा क्या उपाय है ?
आप सभी लोग पढे लिखे हैं - राजनीति का अपराधीकरण कैसे हुआ ? या अपराधियों का राजनीति मे प्रवेश कैसे हुआ ? सुरजभन या अशोक सम्राट जैसे लोगों को कौन पनपाता है ? ईन गिदर को शेर कौन बनाता है ? सिर्फ बंदूक की बदौलत कोई बाहुबली नही बन सकता ! यह मेरा दावा है !
बिहार मे १९८० से १९९० के दशक मे कई बाहुबली पैदा हुये ! बीर मोहबिया , बीरेंद्र सिंह , काली पाण्डेय , सूरज देव सिंह इत्यादी ! लेकिन इनमे दम नही था ! क्योंकि इनकी संख्या कम थी ! राज्य स्तर पर इनकी पहचान नही थी !
१९९० का चुनाव - कई बाहुबली पैदा लिए ! कॉंग्रेस के खिलाफ , लोगों ने इनको चुनकर भेजा ! यह जनता का पैगाम था - राजनीति कराने वालों के लिए ! लेकिन - यह लालू जीं से संभल नही पाए ! सही नेतृत्व के आभाव मे यह सभी कहीँ ना कहीँ जनता की मज़बूरी बन गए ! समाज पहले भी विभाजित था , समाज आज भी विभाजित है और समाज कल भी विभाजित रहेगा ! हाँ , हो सकता है कल विभाजित समाज का पैमाना कुछ अलग हो !
सन २००० का चुनाव और नितीश जीं का मुख्य मंत्री बनाना , १४ निर्दालिये बाहुबली विधायकों का समर्थन लेना वोह भी सूरजभान के नेतृत्व मे ! क्या यह फैसला - बाहुबलियों के मन को बढाना नही था ! क्या इस फैसले ने जनता के गलत फैसले को मजबूत नही किया ? क्या संदेश गया जनता के बीच की सरकार सिर्फ इनकी ही सुन सकती है ! लल्लू के दरबार मे सहबुद्दीन जैसे लोगों को राजा की उपाधि देना । जड़ विहीन लोगों के दवाब मे विश्वा प्रख्यात चिकित्सक सी पी ठाकुर को मंत्रिमंडल से बहार कर देना और पटना एअरपोर्ट पर सी पी ठाकुर का २१ ये के ४७ से आव्गानी करना और सरकार का चुप चाप तमाशा देखना , क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढाना नही है ! क्या हम पूछ सकते हैं श्री नितीश कुमार जीं से की रेल मंत्री होने के नाते सूरजभान को आर्थीक रुप से वोह कितना मजबूत बनाए की आज यह आदमी बिहार का सबसे धनिक लोगों मे से एक है ! जब सूरजभान से मन मुताओ हुआ तो अनंत सिंह को चांदी के सिक्कों से तुलना या फिर अनंत सिंह के दरवाजे पर हर दुसरे दिन जाना ! क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढ़ाने के लिए काफी नही था ? सन २००० के चुनाव मे क्या सोच कर ४० सीट दिये - आनंद मोहन को ! जब वंदना प्रेयसी अनंत सिंह की नकेल कस रही थी तो फिर क्या सोच कर आप उनका ट्रांफर कर दिए ? गुल खाए और गुलगुले से परहेज !
आप राज नेताओं ने इन बाहुबलियों का मन इतना उंचा उठा दिया की सही ढंग से राजनीति कराने वाले ग़ायब हो चुके हैं ! हर गली मुहल्ला मे अपराधी का बोल बाला था ! कानून का भय तो बिल्कुल ही नही है !
खिलाड़ी तो यह राजनेता हैं ! जनता और कुत्ते की मौत मरने वाले अपराधी तो बस गोटी भर ही हैं ! पढे लिखे गरीब बिहारीओं का यह दुर्भाग्य है की "नौकरी" पा कर पेट भर लेना ही उनका एक मात्र लक्ष्य है ! फिर भटके हुये समाज को बाहुबली के अलावा क्या उपाय है ?
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
7 comments:
Aapne bilkul ek aam aadmi ka sawal sarkar ke saamne rakha hai. Ees lekhani se aapne sarkar ko specially Criminal ke kandha ko Gaddi bana baithane waale CM ko katghare me khada kar diya hai. Sarkar ko samane aakar een sawalo ka jawab janta ke saamane rakhana hoga. Gur khaye aur gulgule se parheze? Ees type ke bahrupiye CM ko aasali rup me aana chahiye.
आपके विचारो से सहमत हूँ क़ि राजनीति के अपराधीकरण के लिए राजनेता ही ज़िम्मेदार है जिन्होने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए अपराधिओ को राजनीति मे प्रवेश करने दिया है |
Janta itni samazhdaar hoti to Bihar, Bihar nahi rahta...Japan bun gaya hota...lekin jub log apne hi taang par kullhari marne me ek dusre se hor karte rahenge to yahi hoga .
Post Mandal kamission/1990 ke baad yahi Anand Mohan aur lovely anand Bhumihar/Rajpoot ki saan hua karte the..kahan gayi unki saan?Mai to kahta hun..aur giro..khub niche giro..itna niche gart me..ki use niche kutch naa ho..tabhi uppar uthoge..aur yahi Bihar ke saath hua hai..ab chinta ki baat nahi hai..ab upar uthne ke siwa Bihariyon ke paas aur koi chara nahi hai.
Angrej ke khilaaf aawaz dekar,Bharat ko swadhinta dilaane wale Ghandhi ko "Goli"di gai,Gaali di jaa rahi hai.Lekin tab bhi wo Bharat ki Shaan the.J.P. Aapaat kaal me Bharat ki shaan bane the. ve bhi aaj nahi hain.
Anand Mohan nishchay hi ek vidhrohi neta ke rup me un yuvaa Bhumihar, Rajput,Brahmin, aur Kayestha ke tatkalin shaan kuchh din ke liye rahe,jab tak aawaz uss joker type C.M.{Laaloo} jo khulaam en chaar jaati ko Gaali deta tha ke kilaaf uthaa tab Anand Mohan nichay hi aanad sancharit kiya tha, Shaan bhi thaa,Lekin jab sur badali,aawaz badali to kya public apani bhavna nahi badalti kya?
Tab ka Jet Fighter ya Mig fighter Anand Mohan hi tha.Un logon ka kya kahna jo aaj tak Laalu ki Gundai ko,Luhedepan ko Samajik nyaay ki Ladaai maante rahe.uperyukt Chaar jaati ko chun-chun kar pratadit karna agar saamajik nyay thaa ya hai to Anand Mohan ka "Aar Paar ki Ladaai" ekdam jaayej thi.
Ab aaiye saja par ! agar nichali adalat koi bhi saja sunaati hai aur faisale ko upari adalat me le jaane ki chhoot tatkaal to saja ko na maanne ki sandesh chhupe taur par to deti hi hai.Abhi 3 adalat baanki hai.
Doshi ko hi saja mile ye sabhi chahte hain."Jansamooh kisi ki hatya kar de aur doshi jan samooh ke leader ko mana jaaye ye kuchh atpata sa to lagta hi hai,haan agar kisi ne Anand ko goli maarte dekha hai to saja sahi hai.Hasate -hasate,faansi ko gale laga liya jayega.Maut se sabhi kaapte hain.
Par maut to sabko aayegi "Shaan" ko bhi "Beimaan" ko bhi.
Jo bhi Vipreet samay me jisake liye bhi aawaz dega wo usake liye Shaan rahega hi.saath hi kisi ka jeevan leela koi samapt kar de ye ghor sharmindayukt,Danviye karya hai Sajaa Hard honi hi chahiye.
Koi khooni kisi ki shan nahi hota aur koi shaan khoon nahi karta.
Sanjay Sharma
Sanjay Sharma Jee aap bhi kis bhul me hai.Koi kisi ke shaan ke liye nahi ladta ..sab apni roti seknte hai..Laaloo jasa chor bhi aur aur Anand Mohan jaise Sher bhi...wo din to 1947 me hi khatm ho gaya tha..jub neta naukar hua karta tha janta ka..ab to janta naukar hoti hai neta ke.
Rahi baat sazaa ki...to jo "jansamooh" Anand Mohan "jee" ke ek awaaj par jaan de sakta tha wohi jansamooh unki ek aawaaj par kisi ka jaan lene se apne ko rook bhi sakta tha..agar Anand Mohan Jee ne ek aawaaj lagai hoti ,agar bhid ko mana kiya hota...
muk darshak bane rahna bhi dosi ka sath dena hi hai...aur yahan to anand Mohan ki baat chal rahi hai to wardaat aur bhi gambhir hai.
Apana apana nazariya hai.Jet Fighter saheb,Bas maine aapake kathan "yahi Anand Mohan aur lovely anand Bhumihar/Rajpoot ki saan hua karte the..kahan gayi unki saan?" ka reply jaroori samjha tha."
Thats true. But unfortunate. I have followed couples of them closely and am sure they have been doing nothing but bad for the society. But irony is that our society still idolises them. I agree with Mukhiya Ji that to a certain extent we are responsible for that. We are the people who study and settle outside for our own life and large section of youth doesnt gets the opportunity to understand the importance of it. Resulting these criminals getting idol status as they find them closer to themselves.
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