Sunday, July 25, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस- "फैशन" - भाग नौ

अभी हाल में ही एक 'धनी व्यापारी' दोस्त के साथ एक पांच सितारा होटल में आयोजित फैशन शो में गया था - भारत के एक मशहूर 'फैशन डिजाइनर'' को बात ही बात में मैंने 'दर्जी' बोल दिया और मामला बढ़ गया - क्योंकि उसने बहुत पी रखी थी - हुआ हंगामा और मै चुपके से दोस्त की बड़ी लंबी गाड़ी में जा बैठा :)

खैर चलिए - फैशन की बात करते हैं ! बचपन की बात है - रेडीमेड का जमाना नहीं था ! मुजफ्फरपुर के मोतीझील के बंका मार्केट में पिता जी के स्कूल ज़माने के एक दोस्त हुआ करते थे - जो कुछ वो सील दिया करते - हम लोग पहन लेते ! वो जमाना  "बेलबॉटम" का था ! "मामा-चाचा" टाईप आइटम  'बेलबॉटम' पहनते थे ! नीचे 'मोहरी' में चेन लगा हुआ ! ऐसा लगता की सड़क सफाई के लिए बना है !  कुत्ता के कान की तरह वाला शर्ट का "कॉलर" और छींटदार कपड़ा - "बॉबी प्रिंट" ! बेलबॉटम उनीसेक्स था - महिलाएं भी पहनती थी - "नीतू सिंह" टाईप !

फैशन की समझ "नौवीं" कक्षा में आया - तब के साल में दो बार "कपड़ा" जरुर खरीदा जाता था - "होली और छठ" में ! कंकडबाग में एक दूकान होता था - सुशवी ! वहाँ आया हुआ था - "स्टोन वाश" - मै पुरे पटना में पहला आदमी हूँगा जिसने "स्टोन वाश" ख़रीदा होगा :) घर आया तो बाबु जी बोले " ऐसा कपडा पहनोगे तो कुत्ता भौंकने लगेगा " !

तभी के समय फैशन आया था - मिथुन चक्रवर्ती स्टाईल 'बिना कलम का बाल " और फूल पैंट में आगे कोई पौकट नहीं ! एक चाचा थे - जो "बीरगंज" से "हारा का जींस" खरीद लाते - मै भी एक बार उनके साथ लटक कर 'बीरगंज' जा पहुंचा और पहली बार विदेशी जींस पहनी !

+ २ में गया तो "क़यामत से क़यामत" तक आयी ! उस वक्त एक लहर आया ' काला पैंट और पीला शर्ट " का ! जिसको देखो वही पहन रखा है ! मैंने कभी नहीं पहना ! फिर आया "बैगी पैंट " का जमाना ! कंकडबाग वाला "सुशवी" दूकान वाला तब तक मुझे पहचान लिया था - और फिर एक बार उसने मुझे 'बैगी' थमा दिया ! मुझे चेक बैगी पैंट में देख पिता जी के एक दोस्त बोले  "क्या तुमने अपने बाबु जी का पैंट पहन रखा है  ? " बड़ी हंसी आयी थी :)

सफारी सूट बहुत पोपुलर होता था - यह ड्रेस बैंक अधिकारिओं के लिए डिजाईन किया गया था - पर यह शादी विवाह में बहुत पोपुलर हो गया - जो शादी में "सूट" नहीं सिलवा पाता वो 'सफारी सूट" जरुर सिलवाता - और धीरे - धीरे सफारी का पैंट की जगह 'लूंगी' ले लेता था :) बड़ा ही बेजोड कम्बिनेशन था ;) स्सफारी सूट और हाथ में एक ८ इंच का कला बैग - भर मुह पान - पतली मुछ ;)
तभी के समय मैंने कुछ जबरदस्त 'कॉटन' के बहुत सारे  ढीले शर्ट ख़रीदे थे ! टाईट जींस - खूब ढीला - स्टार्च डाल के आयरन किया हुआ - शर्ट और बी एन कॉलेज के सामने से खरीदा हुआ बीस रुपईया में 'गॉगल्स' - साथ में दोस्त का माँगा हुआ 'इंड सुजुकी' ! ऐसा लगता था की 'पटना के असली राजकुमार' हम लोग ही हैं - अब बड़ी हंसी आती है ;) वैसे मेरी साईकिल भी बड़ी डिजाईनदार होती थी !

स्नातक में गया तो वहाँ भी फैशन जारी रहा - पर मैंने कभी भी अपने जूता में घोडा का नाल नहीं डलवाया ;) कभी हाई हील जूता या खूब नुखिला जूता नहीं पहना ! पर मित्र मंडली में ऐसे लोगों की कमी नहीं थी :) बंगलौर के 'विअर हॉउस' के सेल्समैन भी पहचानने लगे थे :) एक खासियत थी - फैशन के वावजूद - ड्रेस का सोबरनेस कभी नहीं गया ! स्नातक के दौरान ही ' एरो और लुईस फिल्लिप ' टेस्ट लगा जो आज तक कायम है ! १० साल से 'विल्स' पसंदीदा है ! अपने कपड़ों को बड़े ही सहेज कर रखता हूँ - मौका मिले तो खुद हाथों से धोता हूँ और आयरन भी करता हूँ :)

"यूँ ही कुछ कुछ लिख दिया हूँ - ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है "

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !