Friday, January 2, 2015

धन्यवाद ....मुझे निखारने के लिए ....पार्ट वन...


बात वर्षों पुरानी है - मै कर्नाटका में इंजीनियरिंग स्नातक के फाईनल ईयर में था - कहीं से पता चला - मेरे पड़ोस में एक बिहारी परिवार आया है ! एक इतवार सुबह - 'मै रंजन ....' उधर से एक लम्बे ..मुझसे उम्र में छः साल बड़े .." मै ...फलाना..." ! आज भी वो दिन और वो पल याद है ! बस पहली ही हैंडशेक में जबरदस्त दोस्ती हो गयी ! दोस्ती ऐसी - हर शाम आधा घंटा ..हम लोग चाय पर मिलने लगे - और इतवार को विशेष नास्ता ! कभी मौक़ा मिला तो इतवार को - बुलेट की सवारी ! धीरे धीरे वो बड़े भाई के रूप में आ गए ! रिश्ते में दूरी और नजदीकी का जबरदस्त सामंजस्य ! शायद वो तीन भाईओं में सबसे छोटे थे - उन्हें भी कोई मिला जिसपर वो बड़ा भाई का रोल अदा कर सकें - मै अकेला - मुझे भी कोई मिला जो बड़ा भाई बन कुछ बोले / डांटे  ! उनका ससुराल भी मेरे गाँव के समीप था सो एक बड़ा ही पारिवारिक माहौल बन गया ! 
फिर उनका ट्रांसफर बंगलौर हो गया ! इंडस्ट्री डिपार्टमेंट में ! मैंने एक ख़त लिखा - मै बंगलौर आ रहा हूँ ! मुझे वो दिन याद है - वो मुझे देख बहुत खुश हुए - अपना पूरा मोहल्ला घुमाए - कई मित्रों के घर ले गए - अपना डुप्लेक्स बँगला दिखाए ! फिर अपनी कार - एक पुरानी मारुती - वो उस इतवार अपनी कार धोते रहे और मै बगल में खडा - लम्बी लम्बी हांक रहा था ...:)) उनके दोनों बड़े भाई आईआईएम से पास - अपने बिजनेस में थे - वो लोग उनको  चिठ्ठी लिखते - नौकरी छोड़ मेरे पास आ जाओ - और आप मेरा ब्रेन वाश करते - मै आपके बड़े भाईओं के साथ चला जाऊं ...! 
फिर मै नौकरी के लिए बंगलौर आ गया ! और हर वीकएंड उनके साथ ! शनीवार उनके घर पहुँच जाना - और सोमवार को अपने लौज में वापस ! इतवार को उनके साथ आंध्रा रेस्त्रां की लम्बी लाईन में खड़े रहना ! 
सर ....मै एक अनजान था ! "मै ..रंजन.." से ज्यादा कभी आप मेरे बारे में पूछे नहीं और ना ही मैंने कभी बताया ! आपके पास भारत की सबसे बढ़िया नौकरी का तगमा था - आप पर कोई भी विश्वास कर लेता - पर मै उस वक़्त 'पहचान' क्या होती है - इस शब्द से भी परिचय नहीं किया था ! सर ...कई चीज़ बातों बातों में आप सीखा दिए..कई चीज़ बिना बोले..या चुप रह कर समझा देते थे  ! शनीवार की रात ...आपके कमरे में रखी ...हिंदी साहित्य की किताबें पढता और इतवार सुबह आप मुझे जगाने के लिए आते ...चलो ..निचे ...ड्राइंग रूम में साथ में चाय पियेंगे ...धन्य है आपकी पत्नी जिन्होंने कभी आपसे कोई सवाल नहीं पूछा ...मै अपने ऑफिस से भाग आपके कर्नाटका सेक्रेटेरियेट में पहुँच जाता ...अगर आप ओफ्फिस में नहीं होते ..आपके सोफा पर एक नींद ...फिर कई बार टिफ़िन शेयर ! कोई दूसरा समकक्ष अफसर आता - कोई मेरे बारे में पूछता - मेरा छोटा भाई है ...एक टूक ! 
कभी ..कभी पीछे मुड़ के देखता हूँ तो लगता है ....क्या कोई किसी का सिर्फ नाम जान कर ...इतना करीब आ सकता है ...जब कभी जीवन में विश्वास की कमी नज़र आती है ...आपको याद करता हूँ....किसी ने सिर्फ मेरा नाम जान ...मुझे छोटा भाई वाला स्नेह दिया ! कई बातें याद आ रही हैं ....एक घटना याद है ...बंगलौर में ..मिस वर्ल्ड हो रहा था ...मैंने उस जमाने में 1900 का टिकट ले लिया था ...और आपने मुझसे कहा ...घर ..आ जाना..साथ में टीवी पर देखेंगे ! मेरे लिए मुश्किल - वो टिकट यूँ ही पड़ा रह गया और शाम को मै आपके घर - वहां कोई परिवार आया था - वो लोग जब जाने लगे - आपने उस व्यक्ती का पैर छू प्रणाम किया था - उनके जाने के बाद - मैंने आपसे पूछा - ए लोग कौन थे - आपने कहा..ट्रेन में मिले ...बढ़िया लगे ...बड़ा भाई बना लिया और अब बहुत बढ़िया सम्बन्ध है ! मै पुरी रात नहीं सोया - ए ..कैसा व्यक्तित्व है ...कैसे इतना विश्वास ! 
आपका ट्रांसफर हो गया - बीजापुर - नवम्बर 1996 - आपके मना करने के बाद भी - मै आपसे मिलने गया मुझे यही लगा शायद आपसे फिर कभी मुलाक़ात नहीं हो सके - आपकी कार नहीं आयी थी - फिर ...फिर क्या ..आप और हम दोनों ...स्कूटर पर ...पूरा बंगलौर रौंद दिए ...जीवन में उतनी तेज़ स्कूटर ..ना आप चलाये होंगे और ना ही मै ..:)) बिलकुल अन्तिम समय में ....आप ट्रेन पकड़ने में कामयाब हुए ...मै स्कूटर पार्क करके प्लेटफार्म पर पहुँचता ...तबतक ट्रेन खुल गयी ! 
नौ साल बाद ...फिर दिल्ली में मुलाकात हुई ...इंग्लैण्ड से बिजनेस मैनेजमेंट करने के बाद -अब आप  भारत सरकार के बहुत बड़े अफसर बन गए थे ...एक गर्मी के दोपहर में ...फोन कर के आपको जगाया ...तैयार रहिये ...मै आ रहा हूँ ...आप खुब हँसे थे ...परिवार के अलावा आपने किसी और को भी हक दे रखा था ...जो आपको सोते हुए जगाये ...आप मेरा पसंदीदा जिलेबी मंगवाए ...मेरा परिवार भी उत्सुक था ...वो कौन इंसान है ...जिसने मुझे विश्वास करना और विस्वास निभाना सिखाया ! 
आप भारत के सबसे बढ़िया सरकारी नौकरी में हैं - आपको कभी उस नज़र से नहीं देखा - "दालान" शुरू किया - जब कोई पोस्ट लिखता - आपको जीमेल पर पिंग कर देता - आप उधर से जबाब - यार ..भारत सरकार के मंत्री से मिलूं या दालान पढूं ...हा हा हा हा ...
सर ...क्या लिखूं और क्या नहीं लिखूं ...लोग आते गए ..जाते गए ...बहुत कम रिश्ते निश्छल बने ....मै दिल्ली में कभी आपको डिस्टर्ब नहीं किया ...दुबारा कभी नहीं मिला ...सोचा भी तो यही लगा ...आप बहुत व्यस्त होंगे ...ये प्रीएज्युम मुझे थोड़ा दिक्कत भी देता है ...'हिंदी / अंग्रेज़ी / संस्कृत - और साहित्य की जबरदस्त पकड़ के वावजूद आपको खुद पर कभी घमंड नहीं देखा ...आपकी हस्तलिखित सभी चिठ्ठी ...मैंने एक बेहतरीन ब्रीफकेस में लॉक कर के रख दीं हैं ...पुरी फिलोसोफी से भरी ...:)) 
लोग कहते हैं....एक आईएएस अफसर खुद के सामने प्रधानमंत्री को भी भाव नहीं देता है ...मुझे नहीं लगता ....मुझे तो आप वही नज़र आते हैं...सफ़ेद कुर्ता - पायजामा में ....मैडम का सैन्डील हाथ में लिए ...इतवार की सुबह ...बंगलौर के जीवन बीमा नगर में  ...मोची के यहाँ ....फिर ...पान. ..हम दोनों के मुह में ..गप्प हांकते ....:))
सर ...वक़्त सिर्फ बाहरी व्यक्तित्व को बदलता है ...इंसान का आंतरिक व्यक्तित्व  कभी नहीं बदलता ...और एक भाई दुसरे भाई के लिए कभी नहीं बदलता है ...और ना ही एक भाई दुसरे भाई से कभी कुछ मांगता है ...मांगता है तो बस एक स्नेह और विश्वास ...जिस पर वो रिश्ता बेजुबान सा टिका होता है ...
 ...जब आपको सपरिवार फेसबुक पर पाया ....कई बातें और कहानी सैलाब की तरह उमड़ आयी....
आप दोनों को ....चरण स्पर्श ....! 


@RR

यामाहा - मेरी जान ...:))


जब से मेरा जेनेरेशन बड़ा हुआ है - राजदूत से लेकर अब हार्ले ! तरह तरह का बाईक देखा ! सब बेकार ! आज भोरे भोरे एक कश्मीरी लुक वाला छोकरा को यामहा पर देखा - यामहा याद आ गया - यही लगा यामाहा - आरएक्स १०० के सामने सब फीका ! एक मामू जान यामहा रखते थे - वो एक भोरे से उसको साफ़ करने में लग जाते थे - दे रिम ...दे सीट ..कान में सोनी का वाकमैन लगा के ! हम भी गिडगिडाते थे - मामू ...एक दोपहर हमको भी ...थोडा आस पास के मोहल्ला में 'सेकेण्ड गियर' में हुडहुडाते ...'झमका' के आयें  कभी कभी मामू खुश हो गए - चावी हाथ में पकड़ा दिए ....आपकी कसम ...एकदम सेकेण्ड गेयर में यामहा को उठाते थे ...मामू का कलेजा हाथ में ! कोई दोस्त यार मिल गया - पीछे उसको लटका लिए - हवा में बात करते - पूरा पटना का एक चक्कर - जबतक पेट्रोल का टंकी सूख न जाए  उसके बाद मामूजान से तरह तरह का श्लोक सुनना  
कॉलेज में शौक़ीन दोस्त यार यामहा रखते थे - माँगने जाओ तो पहले ही 'पेट्रोल' नहीं है कह के मूड ऑफ कर देता था - खैर होस्टल में बहुत भाई लोग 'पउआ' के खाली बोतल में पेट्रोल रखता था ! एकदम इसी जाड़ा में - लेदर का जैकेट - जींस - और फुल कवर हेलमेट - हाथ में चावी को नचाते ...अहा ...वो भी क्या दिन थे ...एकदम स्टाईल से यामहा को स्टैंड पर लगाना - यामहा को भरपूर एक नज़र देखना ....फिर एक लम्बी सांस लेना ...फिर आस पास एक नज़र देखना ...जैसे हम ही शहजादा सलीम हैं ...हा हा हा हा ...!!!



@RR २७ दिसंबर २०१४ 

अलविदा .........


साल जा रहा है ! साल आते ही है जाने के लिए ! आते वक़्त बंद मुठ्ठी और जाते वक़्त खुली मुठ्ठी ! "कभी कोई वक़्त किसी दहलीज पर सारी रात गुजारता है तो कहीं चंद लम्हे दिन के उजाले में खुले आसमान में उड़ते हैं - जैसे ये जीवन कुछ भी नहीं - कुछ पलों का आना और फिर चला जाना है ! " 
साल भी अजीब होता है - कभी बीच साल छोड़ नहीं जाता - हमेशा अपनी उम्र बिता के जाता है - कभी ऐसा नही हुआ - जैसे जून में ही साल ख़त्म ....हमेशा दिसंबर के अंतिम दिन तक साथ देता है और फिर एक पल में ...खुद को ख़त्म कर हमें नए साल के हाथ में हमें सौंप देता है ...और फिर न पलट के देखने के अंदाज़ में ...मुस्कुराता निकल जाता है ...यूँ तो विदाई से ज्यादा दुखदायी कुछ भी नहीं होता ....फिर भी साल की विदाई भी अजीब होती है ...अंदाज़ ही निराला है ...खुद के जाने के साथ सपनों से भरा एक नया साल को हमारे सामने खडा कर देता है ...हम पल भर के लिए उस नए साल को देखते हैं और ....ये साल ...उसी पल में ...हमसे हमेशा के लिए दूर निकल जाता है ...
अलविदा ....2014....


@RR ३१ जनवरी २०१४ 

कुछ यूँ ही ...गुलज़ार टाईप ...:))


मूछें ...फिर से उग आयी हैं ...घनी और चौड़ी मूछें ...देर तक ...बाएं हाथ में वो छोटा वाला सीसा ...और दाहिने हाथ में एक छोटी कैंची ...मूछों को दोनों तरफ से छांटना ...बालकोनी में खड़े खड़े ...कब सुबह गुजर जाती है...पता ही नहीं चलता ...वहीँ बालकोनी के रेलिंग पर रखे चाय के कप को बार बार कहता हूँ ...थोडा रुको ..मूछ को दाहीने और बाएं से थोडा बैलेंस कर लूँ ...फिर तुम्हे अपने लबों से सटाऊं ...और वो गरम चाय ...तुरंत मुह बिचका ..ठण्ड हो जाती है ....
सफ़ेद कुरता और पायजामा के ऊपर वो क्रीम कलर का शाल ...कुछ कुछ 'गुलज़ार' सा दिखने लगा हूँ ...ये गुलज़ार भी अजीब हैं ...उनको पढना ...खुद को महसूस करना होता है ...उनको सुनना ..खुद को महसूस करना होता है ...अब तो उनको देखना भी ...खुद को महसूस करना जैसा होने लगा है...ये उम्र भी कहाँ कहाँ ले जायेगी ...न जाने किस किस गली में घुमाएगी ...
मूछें ..फिर से उग आयी हैं ...घनी और चौड़ी मूछें ...थोड़ी सफ़ेद ...थोड़ी काली ...

@RR - १ जनवरी २०१५