Tuesday, December 22, 2015

सफ़र

#सफ़र 
 हमलोग बचपन में पब्लिक ट्रांसपोर्ट यानी बस / ट्रेन से सफ़र करते थे ! एक चीज़ देखने को मिलती थी - अभी बस ....स्टैंड में लगा नहीं की ...धड़-धड़ लोग सीट 'छेंकने' लगते थे - कोई खिड़की से ही - अखबार / गमछी / छोटा तौलिया फेंक के सीट रिजर्व कर दिया और खुद पास के पान के दूकान या चाय वाला के पास बैठ गया ! अब आप 'लेडिस सवारी' के साथ बस में घुसे ..कोई सीट खाली नहीं है :( भारी फेरा है :( अब यहाँ तीन कैटोगेरी है - एक अखबार वाला , दूसरा गमछी वाला और तीसरा छोटा तौलिया वाला - अखबार को उठा के किसी और सीट पर रख - खुद वहां बैठ जाईये - जब वो आएगा तब देखा जाएगा टाईप ! गमछी वाला के साथ अलग ट्रीटमेंट - दो उंगली से मलेछ गमछी उठा के - सीट के नीचे :P - एक फर वाला तौलिया टाईप इंसान होता था - अब उसके तौलिया से उसके अवकात का अंदाजा लगाया जाता था - अब उसका तौलिया कैसे हटायें :( कहीं हमसे ज्यादा हाई फाई निकल गया तो :( आएगा तो बुखार उतार देगा टाईप ख्यालों के बीच - उसका तौलिया सीधे खिड़की से बाहर :D हुआ हंगामा ..हा हा हा हा ! 
अब तो बस भी एकदम हाई फाई हो गया है - वॉल्वो और मर्सिडीज का बस - इंटरनेट से टिकट - पर वो मजा नहीं है - जो अखबार / गमछी / तौलिया से सीट छेंकने में आता था ! 
कभी आप ऐसे ही सीट 'छेंके' हैं ? या किसी का गमछी / तौलिया बाहर फेंके हैं ? हा हा हा हा .....
#OldPost

Saturday, December 19, 2015

भय

#OldPost #BeStrong 
हमारे कई स्वभाव / आचरण के तह में भय बैठा हुआ रहता है ! यह 'भय' हमारे कई सकरात्मक और नकरात्मक कदमो को तय करता है - अब वो कदम सकरात्मक होने या नकरात्मक होंगे यह हमारा अपना व्यक्तित्व / मूल स्वभाव तय करेगा ! व्यक्तित्व निर्माण में कई चीज़ों / स्थान / लोगों / 'घटनाओं' का सहयोग होता है पर 'मूल स्वभाव' कभी नहीं बदलता ! 
अब बात आती है ...इंसान.... इंसान या घटनाओं को या समाज को या इर्द गिर्द के लोगों को नियंत्रीत क्यों करना चाहता है ? यह प्रक्रिया घर से शुरू होकर विश्व तक पहुँचती है - क्या घर का मुखिया और क्या विश्व का मुखिया - जैसे सब कुछ उसके उंगलीओं पर ही नाचे ! एक हद तक यह आनंद देता है - जब जब यह लगता है - कोई मुझे फौलो / मेरे बातों को समझ / मेरे साथ साथ चल रहा है - कड़वा तब हो जाता है - जब हम जबरदस्ती कंट्रोल शुरू कर देते हैं - इंसान की समझ कम - जानवर की तरह - चरवाहे की लाठी से 'हांक' दिया जाता है - पर जब उसकी समझ जागेगी - तब क्या होगा ? उसका फल कौन भूगतेगा ?? 
यह कहानी सिर्फ इंसान - इंसान' तक ही सिमित नहीं है - इसका दायरा थोडा बड़ा कर के सोचियेगा - इसमे आपको मार्टिन लूथर किंग से लेकर महात्मा गांधी ..फिर लालू जैसे लोग भी नज़र आयेंगे ..! 
खैर ...बात 'भय' और 'मूल स्वभाव' की है ..! चोर का भय ..कोई डर से दरवाजे / पलंग के पीछे / निचे भाग जाता है ...कोई हाथ में डंडा लेकर आगे बढ़ जाता है ..यह आचरण उसके मूल स्वभाव से आता है या आता होगा ! यही भय कई चीज़ों को नियंत्रण करने पर मजबूर करता है ...इंसान के अन्दर एक भय रहता है ...गलती से / समाज से ..उसे एक शक्ती मिल जाती है ...अब वह इस शक्ती को लेकर सब कुछ नियंत्रण में रखना चाहता है ...पर अन्तोगत्वा दुःख उसको नहीं होता ..जिसे आप नियंत्रण में रखते हैं ...अपने डंडे के जोर पर ...चाबुक चलाते है ...असल दुःख तब होता है ...उस अहंकार को ठेस पहुँचती है ...वो विकृत कुंठा चूर चूर होती है ...जब वो इंसान / चीज़ आपके नियंत्रण से बाहर निकल जाती है ...
दरअसल जब आप गौर फरमाएंगे ...इन सबके के पीछे ...एक कुंठा रहती है ...वो इतनी भयानक होती है ...अगर आप कोमल ह्रदय वाले हैं ....उस कुंठा को नजदीक से देख समझ ...एकदम से ठिठुर जाए ...आप कुछ नहीं कर सकते ...वो कुंठा उसके साथ ही रहेगी ...मरने के साथ जायेगी ...उसने उसको बड़े जतन से पाला है ..जिसने अपनी कुंठा ही बड़े जतन से पाला हो ...वो भला क्यों उसे मरने देगा ...:)) 
19.12.2013

Wednesday, December 16, 2015

पटना पुस्तक मेला


कल पंद्रह दिसम्बर को पुस्तक मेला समाप्त हो जाएगा । आज शाम वहाँ कवि सम्मेलन था । टहलते - घुमते मेला में पहुँच गया । वहीं गेट के पास पत्रकार चंदन द्विवेदी अपने युवा साथीजन के साथ मिल गए । चाय ~ कॉफ़ी हुआ । 
फिर मेला के कर्ता धर्ता श्री रतनेश्वर जी मिल गए । मेला को लेकर उनसे कई सवाल मैंने किए । मेला का इतिहास और वर्तमान स्वरूप । बातों बातों में पता चला वो भी कुछ वर्ष मेरे स्कूल में पढ़े हैं । 
गेट से घुसते ही दाएँ - बाएँ दोनो तरफ़ साहित्य वाले प्रकाशन के स्टॉल लगे हैं । राजकमल और वाणी । ढेरों किताब । हिंदी साहित्य का कोई भी नाम लीजिए - किताब हाज़िर है । पहली नज़र में सभी किताबों को ख़रीदने का मन करेगा ...:)) 
वहीं राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर मेरे स्कूल सीनियर श्री विकास कुमार झा मिल गए । वो अपनी नयी किताब 'वर्षावन की रूपकथा' के साथ मौजूद थे । विकास भैया को हर बिहारी जानता होगा - माया नाम की मैगज़ीन के लिए वो बिहार से लिखते थे । हम तो बचपन से उनके फ़ैन । वो अपनी महिला प्रशंसकों से घिरे और हाथ पकड़ लिए - फ़ुर्सत में गप्प कर के जाओ । मेरे कई सवाल - पहला सवाल - आज के पत्रकार "पावर हाऊस" के आगे नतमस्तक क्यों ? फिर उनकी किताब की चर्चा । पहले भी वो मैस्कूलीगंज नाम की किताब छाप चुके हैं । वर्षावन की रूपकथा - कर्नाटक के शिमोगा ज़िले की कहानी है । पढ़ूँगा तो कुछ लिखूँगा । 
फिर अन्य स्टॉल पर घुमा । एक दो और किताब ख़रीदा । फिर मंच की तरफ़ बढ़ा - वहाँ पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर श्री नवल चौधरी जी का किसी पुस्तक पर समीक्षा चल रहा था । बढ़िया लगा - अपने भाषण में समाजवाद की धज्जी उड़ा रहे थे । बाद में पता चला - ख़ुद कम्युनिस्ट विचारधारा के हैं । 😮
फिर कवि सम्मेलन । विभिन्न समाचार पत्रों के लिए काम कर रहे युवा पत्रकारों की टोली थी । चंदन ने मुझे पहले ही ख़बर किया था । बहुत बढ़िया रहा । प्रेम - मुहब्बत से लेकर राजनीति वाया गाँव ...:)) 
इस बार पटना में लिट्रेचर फ़ेस्टिवल नहीं हुआ सो ये पुस्तक मेला कुछ कुछ लिट्रेचर फ़ेस्टिवल का स्वाद दे गया । पटना में भी बड़े बड़े साहित्यकारों का जमावड़ा होता है जिनके इर्द गिर्द सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके ही लोग बैठे होते हैं - कभी यह बात अखर जाती है तो कभी बढ़िया लगता है । 
लौटते वक़्त भूख लग गयी । सो वहीं अंत में ...एक फ़ूड स्टॉल पर "लिट्टी और चिकेन" खाया ...नज़रें बचा के ..:)) 
बाहर निकल - चनाजोड़ गरम खाया । दस रूपैया का । निम्बू डाल कर । काँख में - "मोहन राकेश की - आषाढ़ का एक दिन " को दबा के ....!!!

@RR

अरुण शर्मा / Arun Sharma CAT IIM

‪#‎Mulakat‬ - Arun Sharma / CAT Coach 
कल दोपहर अरुण से मुलाक़ात हुई । पटना आए हुए थे । अकेले थे सो लम्बी और एकदम खुल के सीधे गप्प हुआ । पिछली दफ़ा माता पिता और उनका पूरा परिवार था । 
अरुण कल भी CAT के ब्राण्ड थे । आज भी हैं । सत्रह अठारह साल पुरानी जान पहचान है । तब वो पटना में रहते थे । पटना के हृदय में एकड़ में फैला हुआ उनके दादा जी का मकान । हमउम्र ही हैं । सीधी बात करते हैं । १९९९ में उनके पास गया था - मुझे अमेरिका में किसी विश्वविद्यालय में एडमिशन लेना है - बेहतरीन नेक टाई , शर्ट और दो दो टन के दो एसी के बीच वो सुस्ता रहे थे । अब हम अमेरिका में क्या एडमिशन लेते - दोस्ती हो गयी । गप्प चालू हो गया । फिर मैंने पटना छोड़ दिया - एक आध साल बाद वो भी लखनऊ बस गए । क़रीब ग्यारह साल पहले मैं ग्रेटर नॉएडा के ग़लगोटिया कॉलेज में एक्ज़ामिनर बन के गया था तो वो मिलने आए । सबने पूछा ये कौन हैं - मैंने कहा - "हर साल CAT कम्पीट करते हैं " ! तब वो अपनी किताब के सहारे नेशनल ब्राण्ड बनने की ओर अग्रसर थे और आज अपने पब्लिशर मैकग्राहिल के सबसे चहेते लेखक ।

बस यूँ ही - चाय और 'निमकी' के साथ - एक बेहद सहज भाव से डेढ़ दो घंटो तक लगातार गप्प । विश्व की राजनीति से लेकर पटना का भविष्य 😶 जब दो लोग - हमउम्र बैठते हैं - फिर बातचीत एक दरिया के माफ़िक़ हो जाती है । कई विषय एक गप्प में मोती के माला की तरह पिरो होते हैं । बग़ैर किसी नक़ाब के - बग़ैर किसी अंह के । 
अरुण एक नयी किताब लेकर आ रहे हैं - जिसका टीज़र विडीओ उनके वाल पर है । बातों बातों में ज़िद्द कर देते हैं - आप भी किताब लिखिए । किताब लिखना और उसे बेस्टसेलर बना देना उनके बाएँ हाथ का खेल है सो वो मुझे भी इस खेल शरीक होने का दबाव बनाते हैं । 
हर किसी के जीवन में उतार चढ़ाव होता आया है । स्थान / कैरियर परिवर्तन इत्यादि इत्यादि । पर अरुण की सबसे बड़ीं ख़ासियत यह है की - वो रुकते नहीं है - चलते चले जाते हैं । फिर कुछ दिन बाद पता चलता है - अरे ...अरुण तो एक नए मुक़ाम पर हैं ...:)) 
नयी किताब की शुभकामनाएँ ...स्पेसिमेन कॉपी भेजवा दीजिएगा ...:))


@RR

कश्मीरी

कश्मीरी आया होगा - शाल बेचने ! माँ, चाची , मामी , फुआ , पड़ोस वाली आंटी लोग सब लोग उसको घेर के बैठ गए होंगे ! उसके गठरी की एक - एक शाल को देख रहे होंगे ! माँ भी दो शाल ली होगी - सस्ता ! पश्मीना कभी देखा नहीं - ख़रीदा नहीं - छुआ नहीं - ओढा नहीं ! पूछने पर् बोलेगा - बीस् हज़ार से शुरू ही होता है ! पश्मीना के नाम पर् 'पश्मीना मिक्स' कोई दो तीन हज़ार में बेच जायेगा ! इस् बार बड़ा दिन की छुट्टी में घर जाऊंगा तो माँ वो शाल मुझे दिखाएंगी और वापस लौटने वाले दिन मेरी पत्नी को दे देंगी - ढेर सारे स्नेह के साथ ! 
कश्मीरी फिर अगले साल ...नए शाल के साथ आएगा !
smile emoticon
~15.12.2011

@RR

बचपन से ....

#OldPost
जितनी जिंदगी - उतनी कहानियां और उतने ही जीवन दर्शन ! हर व्यक्ती जीवन को सिर्फ और सिर्फ अपने ही आँखों से देखना चाहता है - फिर भी उसके आँखों पर कई परदे होते हैं ! एक महतवपूर्ण फैक्टर होता है - चाईल्ड साइकोलोजी ! जब कुछ सिखने की उम्र होती है - तब आप क्या सिखते हैं और क्या अपनाते हैं ! आपका खुद का खून होता है - फिर आपके आस पास एक माहौल होता है - उस माहौल में कई महान आत्माएं होती हैं - जो आपसे दूर होकर भी आपके करीब होती हैं - माता पिता के अलावा भी कई और लोग होते हैं - जिनका एक जबरदस्त प्रभाव आपके जीवन पर होता है - कई ऐसी आत्माओं के किस्से / घटनाएं आपके जेहन में इस कदर घुस जाती हैं - आप ताउम्र उसमे क़ैद होते हैं ! 
बहुत पुरानी एक बात याद है - पिता जी पटना के नाला रोड में अपना पहला क्लिनिक खोले थे - उस वक़्त पटना शहर हमलोगों के लिए किसी विदेश से कम नहीं था - कोई अपना / जान पहचान ..बहुत कम ! शाम के वक़्त ..मैं अपने स्कूल से लौटकर - उत्साह में पापा के क्लिनिक में चला गया - पापा नहीं थे - अचानक देखा - पटना के एक मशहूर डाक्टर अपने कई दोस्तों के साथ - पैदल ही आ गए  ! मैं हैरान था - उनकी सरलता पर ! वो एक घटना थी - जो ताउम्र मुझे आकर्षित किये रखी और मैं अपने जीवन में जब कभी भी किसी अपने से मिला - खुद को बहुत ही नेचुरल और सरल रखने की कोशिश की ! उनके एक और दोस्त होते थे - पर वो मुजफ्फरपुर में पिता जी के 'हेड' होते थे - हम सभी पटना में सेटेल हो चुके थे - अचानक एक सुबह हमारे दरवाजे पर खटखटाहट हुई - मैंने दरवाजा खोला - उनको पाया - पता चला - वो मुजफ्फरपुर में एक मंदिर बनवा रहे हैं - पिता जी चुप चाप नज़रें झुका उनकी बात सुन रहे थे - अपना चेक बुक निकाले और जितना पैसा था - सभी दे दिए - वहां मैं भी खडा था - वो एक भाव था - ताउम्र मुझे प्रभावित किया ! ये दोनों दोस्त बिहार मेडिकल में - अपने अपने क्षेत्र में 'भीष्मपितामह' के रूप में जाने गए !
~ १६.१२.२०१२

Sunday, August 30, 2015

भूमि अधिग्रण बिल



‪#‎भूमि‬ पार्ट - एक 
मै एक ऐसे कूल / खानदान / परिवार / जाति / समाज से आता हूँ - जहाँ आप हार्वर्ड से भी पढ़ के आयें - अगर लड़की वाले आपकी शादी के लिए आये तो - कहीं न कहीं से एक प्रश्न जरुर उठेगा - "लड़का के हिस्से कितना जमीन है ? " ..:)) क्योंकी यही एक ठोस है बाकी सब तरल है ! ठीक वैसे ही - शादी के बाद हर लड़की का वजूद उसके स्त्री धन से लगाया जाता है - कितना तोला / भर सोना उसके हिस्से है ! विपती पूछ कर नहीं आती और विपत्ती में जो ठोस है वही काम देता है ...:)) 
आज ही टाईम्स ऑफ़ इण्डिया की खबर है - देश के 'अल्ट्रा धनीक' लोग अपने अधिकतम पैसे 'रियल स्टेट' में ही लगाते हैं ! एक मित्र जो अफ्रीकन देशों के जानकार हैं - कहने लगे - इन्डियन कंपनी अब अफ्रीका में लाखों एकड़ जमीन खरीद रही हैं ! 
आपकी कोर्पोरेट / सरकारी नौकरी आप तक ही है - बैंक में रखा पैसा कब फुर्र से उड़ जाए कोई ठीक नहीं - लेकिन जो जमीन जायदाद है वह पीढी दर पीढी चलती है क्योंकी उसे इवोपोरेट होने में समय लगता है ! 
सब कुछ बढ़ रहा है बस जमीन जितनी इस धरती के जन्म के समय थी - उतनी ही जमीन आज भी है ! वो ना घट रहा है ना ही बढ़ रहा है ! दिक्कत किसी को भी नहीं है - बड़े किसान जमीन छोड़ बड़े शहर में सुख सुविधा भोग रहे हैं - छोटे किसान का पेट नहीं भर रहा - दिक्कत मंझोले किसानो को है ! 
सरकार का कौन सा मंत्री / अफसर किसके हाथ बिका हुआ अहै - कहना मुश्किल हो जाता है या वो कुंठीत है - इसमे फंस जाते हैं - बेचारे मंझोले किसान ! 
उदहारण - सन १९९६ में बंगलौर में इंटरनेशनल एअरपोर्ट के नाम पर किसाओं की जमीन अधिगृहित की गयी - रातों रात किसान अरबपति बन गए - बड़ी गाडी से से एमजी रोड में घुमने लगे - जो कल तक हल चलाता था वो मर्सिडीज में घुमने लगा - जिसे सही से पैजामा पहनने का ढंग नहीं वो अपनी गाडी में अल्ट्रा मॉडर्न लड़की लोग को घुमाने लगा - ताकत उस लिक्विड पैसे में थी ! पैसा लिक्विड होता है - गैस फॉर्म में उड़ गया ! कई किसानो के घर भुखमरी की नौबत आ गयी - सारी जमीन "गुजराती" बिजनेस मैन के हाथों में जा चुकी थी - जहाँ आने वाले समय में बड़े होटल खुलने वाले थे - जहाँ वो किसान और उनके बच्चे प्लेट धोने की तैयारी में ...कई रात भूखे पेट सो रहे थे ...जमीन भी गया - पैसा भी गया ...
क्रमशः ...

‪#‎भूमि‬ - पार्ट दो : उत्पल पाठक / पत्रकार 
रंजन जी आज दालान में भूमि पर लिखे हैं , हमेशा की तरह बहुत लोगो की कहानी एक कहानी में समेट कर , मुंशी प्रेमचंद जी भी भूमि के आगे पीछे जोड़ कर बहुत कुछ लिख गये , उनके घीसू , होरी , अमीना के बीच भूमि और उसका विवाद , उसका प्रेम और भूमि से उपजा प्रतिवाद भी उनकी लेखनी से बाहर आता रहा, डा राही मासूम रज़ा साहब भी अपनी आत्मकथा "आधा गाँव" में मुहर्रम के इर्द गिर्द घूमती कहानियों के साथ भूमि और उसके प्रभाव बताते नहीं थकते , नीम का पेड़ में भी बुधीराम की गरीबी और सुखराम के अमीर हो जाने के बाद तक भी ज़ामिन मियाँ और सामिन मियाँ की भूमि कथानक के इर्द गिर्द घूमती रही और न कहानियों ने ही अंत तक उस नीम के पेड़ को ज़मीन में गाड़ कर रखा।

खैर , भूमि सिर्फ शब्द नहीं , बल्कि सम्पदा का स्वरुप और आभिजात्य वर्ग में बैठने का लाइसेंस भी , आपको भले ही आपके सामान्य कपड़ो , गाड़ियों के माध्यम से कम आँका जाय, लेकिन अगर आपने ये बताया कि आपके पास गाँव में भूमि है तो आपकी इज़्ज़त बढ़ जाएगी, और शहर में भूमि होना तो रेगिस्तान में नखलिस्तान होने के मानिंद है , लेकिन भूमि को लेकर कुछ शाश्वत सत्य भी हैं जिनका न कोई विकल्प है और न ही उत्तर , दर असल ये भूमि हमारे समाज में आत्ममुग्धता और आत्म प्रवंचना का सबसे बड़ा उदहारण है , और ख़ास तौर पर पैतृक भूमि और जिन्हे आज भी अपनी भूमि का मिथ्या आकर्षण प्रभावित करता हो , और जिन्हे ये लगता हो कि एक दिन आप उसका इस्तेमाल कर पायेंगे , ठीक उसी तरह जैसे आपके बाप दादा बाप दादा नौकरी करते रहते कर लेते थे तो कृपा करके इस आत्मप्रवंचना से बाहर आ जाईये, और फिर भी आप उस भूमि से जुड़े रहना हैं तो यकीन कर लीजिये कि आपकी ज़िंदगी अब सिर्फ चंद बीघे ज़मीन को बचाने में ही बीतेगी।
तहसील , दीवानी , कचहरी और न जाने क्या क्या , मध्यम वर्गीय मानसिकता के बीच इन सब को ढो कर ही जीना अब आपकी नियति है . और अब बाजार के और समाज के दबाव में आप सब में इतनी हिम्मत भी नहीं बची कि आप सूबेदार पान सिंह तोमर जैसे बागी बन जायेंगे, और मुआफ कीजियेगा बन कर भी क्या उखाड़ लेंगे ? कोशिश भी मत करियेगा, अंत में तो मौत ही मिलेगी लेकिन उसके पहले छीछालेदर हो चुकी होगी, राय मशवरे के लिये संगी साथी खोज रहे तो भी मत खोजिये क्यूंकि सबका जवाब यही होगा, बेचो और आगे बढ़ो , सब कुछ अजीब और अनमना सा लगता है , बेसाख्ता बस सब कुछ होते हुए देखते रहिये .. मान सम्मान प्रतिष्ठा सब सामाजिक लोलुपता सरीखी बातें हैं।
आप सरकारी नौकरी में हों या प्राइवेट , आप निज प्रदेश में हो या परदेस में , सह प्रांतीय हों या परप्रांतीय , लेकिन आपके पास यदि भूमि है तो आपके पास पट्टीदार भी हैं , गोतिया भी , भाई भी भौजाई भी और साथ में तहसील है , मुक़दमा है , ख़ारिजा है , खसरा है , खतौनी भी है , आप बचा पाएं तो बचा लें लेकिन बचने बचाने की लालच में बहुत कुछ हाथ से निकल जायेगा और एक अवस्था के बाद भूमि का उपयोग आप भी न कर पाएंगे। और जिसे इस बात का दुःख है कि काश हम पुलिस में होते या काश हम किसी सरकारी विभाग में होते या डाक्टर इंजीनीयर होते तो हमारा काम आसानी से हो जाता तो अपने मन से वहम निकाल दीजिये क्यूंकि भूमि के चक्कर में सिपाही से लेकर साहब तक और मोहर्रिर से लेकर कलक्टर तक परेशान है , गोतिया पट्टीदार के लिए आप साहब नहीं , वो आपका सब कुछ जानते हैं और आप अपनी नौकरी बचाने के लिये मर्यादा में रह कर ही लड़ाई लड़ पाएंगे।
छुट्टी मिलती नहीं , मिलती है तो पैरवी होती नहीं , हड़ताल , शोक में बंदी , और तीज त्यौहार के बीच कभी तहसीलदार , कभी कानूनगो , कभी एसडीएम के कमरों की ख़ाक छानिये और चूँकि आप शहर में नौकरी करते हैं लिहाजा आपकी फीस में एक शून्य बढ़ा के लिया जाना अनिवार्य है , और आपकी इस हालत पे किसी को कोई तरस नहीं, बड़े बड़े पैरोकार भी जब अपने गाँव गिरांव में किसी से सुनते हैं कि अमुक की जमीने नहीं बची या हाथ से निकल गयी तो बड़े बड़े तुर्रम खान खुद के लिए बस ये कहते हैं कि "लज्जा करो" .
अब आप ठहरे सामाजिक और पारिवारिक प्राणी , सो इच्छाएँ कई और भी थी जो आपके परिवार के लोगों की थी, पिता की थी , पूर्वजों की थी जो पूरी नहीं हुईं, कई और सपने थे , वे तमाम अधूरे सपनों के साथ भी आपके पूर्वज जीने को तैयार थे क्यूंकि आशावाद चरम पर था , अब नतीजे नहीं मिले उन्हें चंद और साल बीत गये , उलाहना सुनिए और शेषनाग बन कर पृथ्वी अपने सर पर उठा लीजिये।

दरअसल ये भूमि एक रहस्यमय से तिलिस्म में आपको बाँध कर रख देती हैं और उस तिलिस्म के अन्धकार में सिर्फ रोने की आवाजें सुनायी देती हैं , विलाप , रुदन क्रंदन , केश खोल कर शून्य में अपलक निहारती हुयी विधवा माओं के चेहरे, पथराई आँखों से कागज़ और दस्तावेज सहेजती हुयी बहनें , बीबियाँ और बेटियां और उन सबके बीच अकेला एकाकी खड़ा हुआ वो पुरुष। वही जिसे बहुत कुछ करना था , वही जिससे लोगों ने न जाने कितने अरमान पाले थे वो पुरुष सिर्फ अंतरद्वंद और अवसाद के बीच अनाथ, निराश्रित और विपन्न होकर गति को प्राप्त करता है।

सड़कों पर पसरा सन्नाटा हो भीड़ भाड़ , त्योहारों का वो एक विचित्र सा उत्साह हो , शादी विवाह की धूम हो हर किसी की मृत्यु पर हुआ जमावड़ा , लेकिन भूमि की चर्चा बगैर वो अधूरा है , और जब वो भूमि हाथ से जाती है तो जाते जाते अचानक सब कुछ से मोह होने होने लगता है, कोई यह भी नहीं समझ पाता कि इस मोह से उठकर निर्मोही बनना ही पड़ेगा, लेकिन भूमि पीछा नहीं छोड़ती , आने वाले भयावह भविष्य को सोच कर ही आपकी मज्जा तक में कम्पन होने लगता है , उससे ज्यादा डर आपको उसके बाद के समय से है। अब तक जो भी हाथ से गया या छीन लिया गया उसका दुःख रह रह कर आता था , लेकिन अगर आप वाकई भूमि के लिये दिन रात सोचते और मंथन करते हैं तो छठी इन्द्रीय का इतना ज्यादा विकसित हो जाना भी कष्टकारी है कि आपको पहले से सब पता चलने लगे कि आगे क्या होने वाला है ?
वो जो स्व-अर्जित था , वो जो मिला था , वो जो पुश्तैनी था , वो भी जो विरासत का हिस्सा था , जो अपनी पसंद का था , जो अपना था और इस जैसा बहुत कुछ एक एक करके चला जायेगा। रह जायेगा तो सिर्फ एक प्रामाणिक स्वाधिकार एकाकीपन से , और इससे कहीं ज्यादा विह्वल होगा आपके आश्रितों का चेहरा , चाह के भी उनके मुंह से सवाल नहीं निकलेंगे , जो निकलेंगे वो भी अजीब से होंगे , और आप झल्ला कर जवाब भी नहीं दे पायेंगे , बस उनसे मुँह छिपाकर कहीं शून्य में देखते हुए जवाब देने की चेष्टा करिये , और फिर उनको फुसलाने के लिए मिथ्या आश्वासन भी दीजिये ।
लेकिन वो सब भी जानते हैं कि जवाब सारे गलत होंगे। बावजूद इसके, उनके सबके सामने आप रो नहीं सकते, नहीं तो उनके आँसू कौन पोछेगा और उनको झूठा ढाँढस कौन बँधायेगा। भूमि आपको सिर्फ अकेलापन देती है एक ऐसा अकेलापन जिसका सिर्फ आस पास के लोगों से दूर हो जाने से मतलब नहीं है , अकेला होना मतलब शायद सजीव निर्जीव सबसे एक साथ या अचानक अलग हो जाने का भी नाम है।
भूमि की कहानियां इस बार सिर्फ कमासुत बाबू टाइप लोगो के लिए , अभी किसानों और मजदूरों की भूमि की कहानियाँ बाकी हैं , वो अगली बार लेकिन तब तक सुमित्रानंदन पन्त जी ने यह पंक्तियाँ लिख छोडी हैं जो शायद ऐसे ही एकतरफा भूमि प्रेमियों के लिए ही बनी हैं।
कुटिल कंकडों की कर्कश रज घिस घिस कर सारे तन में 
किस निर्मम निर्दयी ने मुझे बाँधा है इस बंधन में 
फांसी सी है पडी गले में नीचे गिरता जाता हूँ
बार बार इस महाकूप में इधर उधर टकराता हूँ 
ऊपर नीचे तम ही तम है बंधन है अवलम्ब यहाँ 
यह भी नहीं समझ में आता गिरकर मैं जा रहा कहाँ ?
काँप रहा हूँ , विवश करूँ क्या ? नहीं दीखता एक उपाय 
ये क्या ये तो श्याम नीर है डूबा अब डूबा मैं हाय 
चला जा रहा हूँ ऊपर अब परिपूरित गौरव लेकर 
क्या उऋण हो सकूँगा मैं ? ये नवजीवन भी देकर

#‎भूमि‬ : पार्ट थ्री 
कल रात विनोवा भावे के भूदान आन्दोलन के बारे में पढ़ा ! उस दौर में भी गैर सरकारी ढंग से लाखों एकड़ जमीन गरीबों के बीच बांटी गयी ! खुद मेरे गाँव में कई छोटे 'टोले' बसा दिए गए ! चीन से युद्ध के समय नेहरु के अपील के बाद कई गाँव के किसानों की महिलायें अपना स्त्री धन सरकार को दीं ! आसान नहीं होता है किसी महिला के लिए अपना सोना / जेवर दे देना ! लोगों ने दिया ! सिर्फ अपील पर दिया - बगैर कोई कानून के दिया ! 
राष्ट्र विकास में कुछ भी देना - लोग प्राण तक देश के लिए दे देते हैं - फिर जमीन जायदाद कोई बड़ी बात नहीं - दिक्कत तब होती है जब आपकी रोटी कोई खुद के पेट के वास्ते के लिए ले ले और उस रोटी को किसी और के हाथों बेच दे ! 
भय तो है - हर किसान का बेटा आईआईटी पढ़ कोई स्टार्टअप कंपनी बना कर - करोड़ों नहीं कमा लेता है - कई किसान के बेटे अपने बाप दादा की तरह अपने खेतों पर ही निर्भर होते हैं और तब जब उनकी खेत विकास के नाम पर ले ली जाए और उसका फायदा कोई 'बिजनेस ग्रुप' ले - इंसान छटपटा के बेमौत मर जाएगा ! 
बात किसी पार्टी की नहीं है - किसी दल की नहीं है - बात किसानों के अधिकार की है ! कई सवाल हैं - बड़े बिल्डर पोंटी चड्ढा ग्रुप जैसे - जहाँ कहीं भी रोड बनाते हैं - रोड के दोनों तरफ की जमीन पहले खरीद लेते हैं - फिर सड़क बना कर - उसी किसान को बीस गुनी कीमत में दुबारा बेचते हैं - पंजाब के हर एक शहर के हर एक बाईपास की यही कहानी है ! 
यह पुरी प्रक्रिया मानव स्वभाव से भी जुडी है ! 
हर इंसान मजबूत नहीं होता - वो कहीं न कहीं फिसल जाता है - फिसलने वाले से बड़ा गुनाह उसका है जो लालच पैदा करवाता है - यह एक पूरा गेम है ! जमीन जब एक बार निकल जाती है - फिर दुबारा नहीं हो पाती ! 
हर क्षेत्र में विकास हुआ - सिवाय एग्रीकल्चर सेक्टर के ! हरित क्रांती पंजाब हरियाणा से बाहर नहीं निकल पाई - जबकी सबसे उर्वरक जमीन - यूपी से बिहार - गंगा बेसिन की है ! 
राष्ट्र विकास सर्वोपरि है - लेकिन हमारे मुह के निवाला को निकाल अपने पसंदीदा के मुह में दे देना - गुनाह है ! 
क्रमशः ...

‪#‎भूमि‬ - पार्ट फोर - दर्द ए जमीं 
दिलीप त्यागी नाम है उसका ! मुझसे दो साल छोटा होगा ! लम्बा चौड़ा कद - बड़ा ललाट - सर हमेशा झुका ! पेशे से ड्राईवर ! बेहद ईमानदार ! कड़क आवाज़ ! 
दिल्ली - नॉएडा - इंदिरापुरम से सटे 'मकनपुर' गाँव का रहने वाला ! 2004 से उसे जानता हूँ - बेहद करीबी मित्रों की कार चलाता है - कभी ऑडी तो कभी बीएमडब्लू ! मेरे अपार्टमेंट्स के नीचे मिल जाता है - कहो त्यागी क्या हाल ...मुस्कुराता है 
smile emoticon
 थोडा डिप्रेशन में रहता है ! एक दिन इंदिरापुरम की कहानी कहने लगा ! हाथों में रुमाल थे - बोला - सर जी ...जहाँ आप खड़े हो ...जहाँ आपका फ़्लैट है ...जहाँ मै आपके दोस्तों की करोड़ों की कार पार्क करता हूँ - वहां कभी मेरी 60 बीघे जमीन होती थी - "सरकार ने ले ली " ! ये पूरा हज़ार एकड़ का इंदिरापुरम हम त्यागीओं का था - सरकार ले ली ! कुछ पैसे थमा दी - कहाँ गया वो पैसा - पता ही नहीं चला ! चार भाई - अब हम सभी उन्ही बिल्डर के बड़ी कार को चलाते हैं - जिनके महल हमारे खेतों में है - सर जी - ये जमीन हमारी है ! 
पुरे नॉएडा - ग्रेटर नॉएडा - गाज़ियाबाद के डेढ़ सौ गाँव के हर एक परिवार की यही कहानी है ! ग्रेटरनॉएडा में सरकार रु 320 प्रती वर्ग मीटर किसानो से लेती थी ! करीब दस प्रतिशत किसान ही उबार पाए - नब्बे प्रतिशत कहीं के नहीं रहे - उनका कोई नेता बना भी तो उन्हें उलटा ठगते चला ! 
यह कहानी हर उस गाँव की है - जो शहर से नज़दीक है ! हर दर्द हर एक किसान की है जिसका गाँव शहर से नजदीक है ! उनके भविष्य के साथ कोई सुरक्षा नहीं है ! 
सरकार क्या कर सकती थी - उस विकास में उनकी भागेदारी बढ़ा सकती थी - मसलन - नॉएडा / ग्रेटर नॉएडा / गाज़ियाबाद में बने फ्लैटों में - उनको कुछ हिस्सा दे सकती थी ! अब जब सरकार खुद व्यापारी बन जाए - फिर कुछ नहीं हो सकता ! रु 320 प्रतीवर्ग मीटर जमीन खरीद आप बिल्डर को रु 10,000 /- प्रती वर्गमीटर बेच रहे हैं...यह कहाँ का इन्साफ है ...और यह कहानी सिर्फ किसी ख़ास दल की नहीं है ...यह कहानी हर सरकार की है ...दल बदल जाता है ...लेकिन दुर्भाग्यवश तंत्र वही रह जाता है ...
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मिडिल क्लास क्यों आवाज़ उठाये ...बड़ी मुश्किल से तो वो ...कुछ पढ़ लिख ...अपने माँ पिता जी को गाँव में ही छोड़ ...बड़ी शहर में आया है ...अब यहाँ कौन झंझट मोले ...कल उसका भी बेटा / बेटी उसको झंझट समझ उसी फ़्लैट में सड़ने को छोड़ देगा ...
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क्रमशः ...


#‎भूमि‬ - पार्ट फाईव - राघव वर्मा - दालान से 
ट्रेजडी-ड्रामा बहुत है भूमिअधिग्रहण सीरीज के लेखन में.. समाधान तो दिख ही नहीं रहा है.. 
दिल्ली एनसीआर में सबसे ज्यादा प्रवासी--अध्यापकों/विद्यार्थियों/श्रमिकों/परिवारों/नौकरीपेशा/व्यावसायिकों में बिहारियों-पूर्वी उप्र के लोगों की रही है.. आजादी के आसपास के दिनों में कोलकाता जब वाणिज्यिक केंद्र हुआ करता था तब बड़ा प्रवास कोलकाता हुआ करता था.. पुराने भोजपुरी गानों के बोल में आपको प्रमाण भी मिल जाएगा.. साठ-सत्तर के दशकों के बाद से सब दिल्ली में ही खपने लगे.. एक गौरवशाली भारत के इतिहास के केंद्र 'बिहार' के मूल-निवासियों ने अपना खेत छोड़ दिया.. अब वो स्थायी निवासी दिल्ली के होते गये.. कभी मैंने किसी सरकार को जनसँख्या पलायन को रोकने के स्थायी उपाय पर चर्चा करते नहीं सुना है .. शायद ये भी एक सामाजिक-कारक हों
गलती से मैं जिस कोलकाता की बात कर रहा हूँ,वहां के लोग भी पढने-नौकरी के लिए दिल्ली-मुंबई शिफ्ट होते गये.. समस्या वहीँ है.. जड़ वहीँ है कि इतने बृहद पैमाने पर जनसँख्या दूसरे केंद्र पर शिफ्ट होते ही जा रहे हैं.. एक नगर उठ के दूसरे जगह बस रहा है.. समस्या सामाजिक है.. मुंबई में जब राज ठाकरे/बाल ठाकरे भड़कते हैं तो हम इतने घटिया लोग बन जाते हैं कि दोष अपने-अपने राज्य में नीति-निर्माता पर भी न दे पाते हैं.. कोलकाता-पटना-इलाहबाद-काशी कभी भारत के शिक्षण-केंद्र हुआ करते थे.. पूरी फिल्म इंडस्ट्री कोलकाता में बसी हुई थी..अकेले कोलकाता में ४०० छोटे-मंझौले कारखाने होते थे.. गंगा किनारे स्ट्रैंड रोड के साथ-साथ चलते चलते लुप्त 'सभ्यता' दिखेंगी .. एक बंदरगाह/एक रेलवे हब/एक एअरपोर्ट वाला कोलकाता अब बर्बाद है तो पटना को कौन पूछे..

‪#‎भूमि‬ - पार्ट सिक्स - अधिग्रहण 
मुजफ्फरपुर को उत्तर बिहार का राजधानी कहा जाता है ! 1977 में जोर्ज फर्नांडिस यहाँ से चुनाव जीते और वो मुजफ्फरपुर के विकास की सोचे - बिहार का पहला दूरदर्शन केंद्र / कांटी थर्मल पावर और शहर से बिलकुल सटे 'बेला इंडस्ट्रियल' ! बेला एक गाँव था जो शहर से बहुत सटे हुए था - किसानो की जमीन दखल कर ली गयी - छोटे छोटे कल कारखाने खुल गए - एक बहुत बड़ा सरकारी ड्रग कंपनी भी खुला ! व्यापारी बैंक से लोन / सरकार से मदद लेकर - उस इलाके में अपनी फैक्ट्री बना लिए ! फैक्ट्री कितना दिन चला नहीं पता - पूरा इंडस्ट्रियल बेल्ट बीमार घोषित हो गया - उजड़े हुए फैक्ट्री की शक्ल में पूरा इलाका ! अब वापस जमीन मालिक को भी नहीं मिल सकता था और ना ही फैक्ट्री चल सकता था ! सैकड़ों एकड़ बेशकीमती ज़मीन यूँ ही बर्बाद होते नज़र आयी ! तीस साल बाद - नितीश आये तो उस जमीन पर गिद्ध नज़र से - बड़े व्यापारी घुस आये - नाम नहीं लूंगा - लोगों के इगो को हर्ट होता है 
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Priyadarshan Sharma भी लिखते हैं कैसे 'मोकामा' में करीब तीन सौ एकड़ जमीन यूँ ही अधिगृहित होकर बेकार पडी है ! और ऐसी कहानी हर एक शहर की है ! मुंबई का ही हाल देखिये - कपड़ा मिल से ज्यादा कीमती - वहां की बंद पडी मिलों के जमीन की कीमत हो चुकी है ! कई हज़ार करोड़ में जमीन बिक रही है ! 
एक उदहारण देता हूँ - सरकार किसान से विकास के नाम पर जमीन लेती है - मसलन किसी बड़े ग्रुप को हॉस्पिटल खोलने के नाम पर - मुफ्त में जमीन दे दी जाती है ! फिर वर्षों बाद - हॉस्पिटल बिजनेस से ज्यादा कीमत उस जमीन की हो जाती है - दिल्ली के 'एस्कोर्ट हॉस्पिटल' का 'फोर्टिस हॉस्पिटल' के साथ विलय की कहानी पुरानी नहीं हुई है - कई हज़ार करोड़ के सौदे में - सबसे ज्यादा कीमत - जमीन की थी ! 
यही हाल स्कूल / कॉलेज के जमीन के साथ है - व्यापारी सरकार से अपनी नजदीकी का फायदा उठा जमीन ले लेते हैं फिर कुछ वर्षों के बाद जमीन की कीमत बढ़ते ही उसका सौदा कर दिया जाता है ! 
विकास के नाम पर जमीन लेना उचित है - लेकिन उसका समुचित हिस्सेदारी भी किसानो को मिलनी चाहिए - सिर्फ हाथ में कुछ लिक्विड पैसे थमा देना - यह गलत है ...
क्रमशः .....

‪#‎भूमि‬ : पार्ट सेवेन - भ्रम 
बड़े किसानो को लेकर पचास के दसक में लिखी गयी किताबें आज भी पढी जा रही हैं - यह गलत है - पचास साठ साल में बहुत कुछ बदल चुका है और पिछले बीस साल में तो बहुत कुछ - पर 'भ्रम' वही है - जिसके पास जमीन वही राजा है - पर जमीन कितनो के पास बची है ? उदहारण के तौर पर - आज से साठ साल पहले - अगर मेरे परदादा के पास सौ एकड़ जमीन थी तो आज मेरे हिस्से दस एकड़ भी नहीं है ! और बिहार जैसे पिछड़े राज्य में - दस एकड़ जमीन जोतने वाले की आर्थीक स्थिती एक चपरासी से भी बदतर है ! 
जो पहले के बड़े किसान थे - या तो वो धोती कुरता छोड़ - पैन्ट / बुशर्ट पहन नौकरी में चले गए या फिर बिलकुल बर्बाद हो चुके है - बर्बादी की असल वजह है - आर्थीक स्थिती में कमजोरी और जीवन शैली में कोई बदलाव नहीं ! इसलिए पचास की दसक की वामपंथी किताबों को पढ़ - इस मजबूत मुद्दे से मुह मत मोड़िए ! 
अब असल किसान कौन है - वो लोग हैं जिनके पास दस एकड़ से भी कम जमीन है - वो कोई बड़े ज़मींदार जाति से नहीं हैं - एक उदहारण देता हूँ - नॉएडा / ग्रेटर नॉएडा / गाज़ियाबाद के एक सौ पचास गाँव के अधिग्रहण में करीब सौ गाँव सिर्फ 'ब्राह्मण बहुल' गाँव है - अखबार और टीवी के ब्राह्मण पत्रकार 'भ्रम' में चुप रह गए - जाट / गुर्जर / त्यागी के जमीन की लूट हो रही है - हम क्यों आवाज़ उठायें - जबकी कहानी दूसरी है ..:)) 
अब बिहार में कोई भूमिहार / राजपूत / अवधिया खेती नहीं करता - अब खेती करते हैं यादव / कुशवाहा जैसी जाति - जो खुद से खेती कर रहे हैं - भूमिहार / राजपूत अपने दो हज़ार के फ़्लैट में मेट्रो में जा बसा है या फिर किसी पिछड़ी जाति के राजनेता का लठैत बना हुआ है - खेत पर झांकने भी नहीं जा रहा - उसे बस थोड़ा मोह है अगर वो मेरी उम्र का है - वरना नौजवान है तो उसके बाप दादा की खेत कहाँ है उसे वो भी नहीं पता ! पढ़ लिख गया तो मल्टीनेशनल का लठैत बन गया वरना बिहार में लालू / नितीश इत्यादी के यहाँ जी हुजुरी में लगा हुआ है - उनको अपना देवता समझ दो वक़्त की रोटी में लगा हुआ है और यह सत्य है की वो अपनी अगली पीढी को किसी भी हाल में जमीन से जोड़ के नहीं देखना चाहता ! 
इसलिए इस मुद्दे को जाति के भ्रम से मत जोड़ें ! यह मुद्दा बिलकुल ही वैसे किसानो से जुड़ा हुआ है जो खुद खेती कर रहे हैं - जिनके पास एक एकड़ से पांच एकड़ तक जमीन है - वो मध्य पिछड़ी जाति हैं - जिनका राज भी है - जिनके पास ताज भी है - जो खुद शिकार भी हैं और जो शिकारी भी हैं ...
और जो मुर्ख है - वो पचास की दसक की वामपंथी इतिहासकारों की किताबें पढ़ - भ्रम में चुप हैं ...:)) 
क्रमशः ...
‪#‎भूमि‬ - पार्ट दस 
बंगलौर में एक बेहतरीन आईटी कंपनी है - माईंडट्री टेक्नोलोजी - हमारे जमाने के विप्रो के ग्रुप प्रेसिडेंट - अशोक सूटा ने इस कंपनी को जन्म दिया ! इस कंपनी का जन्म - इनफ़ोसिस का नक़ल था ! सुब्रतो बागची इसी कम्पनी के कर्ता धरता है ! उन्होंने कुछ साल पहले एक किताब लिखी - उसमे एक सर्वे दिखाया और कहा - " आईटी सेक्टर के लगभग एक तिहाई स्किल वर्कर किसान परिवारों से आते हैं " ! 
अभी मेरे इस सीरिज को लगभग पांच सौ से ऊपर लोगों से शेयर किया और हज़ारों के वाल तक पहुंचा ! मैंने थोड़ा ध्यान से देखा - आखिर ये कौन लोग हैं जो इस कदर मेरे पोस्ट को शेयर किये - क्योंकी जिनसे उम्मीद थी - वो लोग तो मेरे पीछे में मुझपर थूकते हुए नज़र आये ..हा हा हा ...एक मित्र से बात हो रही थी - कैसी बिम्बडना है - जिसे आवाज उठानी चाहिए - जिसकी पहचान ही 'खेती / भूमि' रही हो - जिसकी पिछली सारी वजूद ही 'खेती / भूमि' रही हो - वो ही मुझे देख मुह बिचका रहा है - हा हा हा ...इसलिए मैंने एक पोस्ट में लिखा था - पचास की दसक की इतिहास की किताबों को पढ़ कर समाज या किसी जाति का विश्लेषण नहीं कीजिए .. 
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फिर भी हज़ारों लोगों ने मेरे लिखे हुए को पढ़ा - पांच सौ से ऊपर शेयर - यूँ ही नहीं था ! उनलोगों को गौर किया - उत्तर भारत के सभी प्रांत के लोग - सभी जाति के लोग - संभवतः वैसे लोग जिनकी पिछली पीढी अभी भी किसान है - जिन्होंने बचपन में खेतों को देखा है - वो सारे लोग अभी भी खेतों के प्रती अपनी भावना रखे हुए हैं - उनका जाति / क्षेत्र से कोई मतलब नहीं ! 
एक जाति के अन्दर ही अलग अलग क्लास है - मसलन कोई ब्राह्मण जो कभी पुजारी / पुरोहीत नहीं रहा हो - उसका संस्कार अलग है - वो खेतों पर आश्रित परिवार है - उसके अन्दर क्षत्रिय का गुण है - वो राजनीति या तत्काल लाभ की वजह से भले ब्राह्मणवाद कर रहा हो पर वो 'स्तुतीगान' कर के अपना जीवन यापन नहीं करेगा - उसे माँगने में लाज आएगा ! 
जो एक मजबूत दलित परिवार से है - जिसके यहाँ पीढी से खेती बारी होती आयी है - उसका कोई भेई सभ्यता / संस्कार / सोच किसी क्षत्रिय / ब्राह्मण से अलग नहीं होगा ! जो क्षत्रिय नौकरी पर आश्रित है - उसके आन बाण शान में कमी आयेगी ही आयेगी ! 
पूरा खेल - वर्ग / क्लास का है ! कहीं भी जाति नहीं है ! अब देखना है - अपने खेतों को लूटते देख - अब यह आधे किसान और आधे नौकरी वाले 'वर्ग' ..किस तरह से रिएक्ट करते है...हवा तो उठ गयी है ...
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देश अम्बानी / अदानी के अलावा कई और लोगों का है ....क्या समझे फूफा जी ...:))



‪#‎भूमि‬ - पार्ट - ग्यारह 
एक बार अमरीका की एक कंपनी में - बचपन के दो दोस्त एक साथ काम कर रहे थे - एक उस कंपनी का सीईओ और दूसरा उसी कंपनी में चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर ! CTO के दिमाग में एक प्रोजेक्ट आया - क्यों न उस कंपनी का वेयरहाउस को पूरा हाई फाई बना दिया जाए - सब कुछ कंप्यूटर से संचालित - छोटे छोटे कार जो कंप्यूटर से चलते और सामान को खुद ही उठा कर एक जगह से दुसरे जगह करने वाले और हॉलीवुड की सिनेमा की तरह बहुत कुछ ! 
CEO ने तुरंत हामी भर दी ! काम शुरू हुआ ! प्रोजेक्ट बहुत बड़ा था ! और बिलकुल अपने आप में अनोखा ! धीरे धीरे प्रोजेक्ट अपने आप में इतना बड़ा हो गया की वो कंपनी के टर्नओवर के कई गुणा हो गया और एक दिन उस आइडिया / प्रोजेक्ट के चक्कर में पुरी कंपनी ही ध्वस्त हो गयी ! 
दोस्ती / हित कुटुंब को फायदा पहुंचाने में - देश भी डूब जाता है ! रेलवे कॉरिडोर बनेगा - प्राईवेट पार्टनरशिप के तहत - बड़ी कंपनी को प्रोजेक्ट मिलेगा इसी बीच मौसम के मार से किसान मरते रहेंगे ! 
पिछली सरकार गलत थी - इस चक्कर में आप भी गलती मत कीजिए - किसान की ज़मीन आप नहर बनाने / कुएं खोदने / गाँव में पंचायत भवन इत्यादी में उसी उत्साह से लेते तो 'शक' नहीं पैदा होता ..."मै" सिर्फ पिछली सरकारों को गाली देने के लिए बल्की उनकी गलती को सुधारने के लिए आया हूँ और एक ऐसा वातावरण के लिए आया हूँ - जहाँ समाज के सभी लोग सुख चैन से रह सकें ...तब न हुई ...विशाल बहुमत की विशालता ..
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@RR

Monday, August 17, 2015

कॉलेज के दिन .....कुछ यादें !

शायद थर्ड इयर का अंतिम सप्ताह चल रहा था ! एक शाम क्लास ख़त्म होने के बाद दूसरी मंजिल से कोई गीत गुनगुनाते नीचे उतर रहा था तभी किसी ने कहा - फलाने हॉल में 'डीबेट' होने वाला है ! मन एकदम से ललच गया ! एक मित्र को कहा - यार , डीबेट में हिस्सा लेने का मन ! उसने तड़ाक से जबाब दिया - अंग्रेज़ी में होगा , सोच लो ! तब के दिनों या शायद आज भी उनदिनों के दोस्त मुझे 'नेता' ही कहते हैं ! नोटबुक को पीछे जींस में खोंसा और हॉल में प्रवेश किया ! कुछ दोस्तों ने उत्साह में जबाब दिया - 'नेता ..आ गया ' ! डर था - रवि कॉल से - जूनियर था - गजब का अंग्रेज़ी बोलता था - एकदम पटना के कॉन्वेंट की लड़की लोग जैसा पटर पटर ! तेज भी था ! पर मेरे बैच वाले साथ में थे - अब किस बात की देर - सीधे डायस पर ! माईक हाथ में ! हॉल ठसाठस भरा हुआ ! सबसे पीछे मेरे बैच के 'चौदह सरदार' ! लम्बे चौड़े ! सीटी मारने लगे ! मैंने उन्हें 'थम्स अप' इशारा किया  और शुरू हो गया :) क्या बोला और क्या नहीं बोला , कुछ नहीं पता लेकिन बोलते गया ! सरदार पीछे से सीटी और तेज़ आवाज़ ! दस मिनट बाद शांत हुआ !
रवि को प्रथम और सरदारों के हल्ला गुल्ला की वजह से मुझे द्वितीय ! सब दोस्त यार साथ में ढाबा गए - चाय सिगरेट ! उस झुण्ड में वैसे भी बैचमेट थे जो ताली बजाने के बजाए हाल से बाहर निकल गए थे ! हा हा हा हा !
फिर कभी रुका नहीं ! तविंदर बहुत मदद किया ! जहाँ जहाँ इंटर कॉलेज कुछ प्रोग्राम ! मुझे खोज के साथ ले जाता ! रास्ता भर समझाता - नेता , घबराना नहीं , नेचुरल रहना , तुम जैसा कोई नहीं ! उसके शब्द मेरे अन्दर गजब का कांफिडेंस पैदा करते ! एक बार फाईनल ईयर में, पास के एक बहुत नामी कॉलेज में जाना हुआ - खुद नहीं पता कितने प्राईज़ जीते ! बण्डल बन गया था ! अचानक से इतना फेमस हो गया - उसका अन्तिम दिन का अन्तिम प्रोग्राम मेरे नाम हो गया ! लडके पागल हो गए थे ! वेभ की तरह डेनिम का जैकेट लहरा रहे थे !
इंसान वही था , जो प्रथम वर्ष में कॉलेज प्रशासन के खिलाफ भाषण देकर रातों रात भूतो न भविष्यती जैसा स्ट्राईक करवा दे ! इंसान वही था जो अब बण्डल के बण्डल कल्चरल टूर्नामेंट के प्राईज़ जीत रहा था !
वो भी क्या दिन थे ! कभी सूर्योदय नहीं देखा था ! आराम से जागना ! तबतक सारे रूममेट नदारत - वैसे दोस्तों की अनुपस्थिती में उनको भरदम श्लोक सुनाना :)  आराम से नहाना ! घनी मूछें ! ब्लू बेसिक कलर डेनिम ! ढेर सारे पौकेट वाले शर्ट ! एक छोटा नोटबुक - पीछे खोंस के ! नुकीला तीन इंच हील वाला जूता ! टक - टक करते हुए पांच मिनट देर से क्लासरूम में घुसना ! ब्लैकबोर्ड को देखते हुए - सेकेण्डलास्ट बेंच पर जा कर बैठ जाना ! कलम नदारत ! क्लास की सखी - सहेली से - पेन प्लीज़ ...! और एक साथ पांच सखी लोग का अपना बैग से एक्स्ट्रा पेन निकालना और टॉपर की पेन को ले लेना और बाकी की तरेरती नज़रों को मुस्कुरा कर देखना ! फिर नोटबुक के पीछे - गुना भाग ...:))
कभी किसी शिक्षक के पास जाकर मार्क्स के लिए कोई अनुरोध नहीं ! कुछ दोस्त यार करते थे ! अजीब लगता था ! अगर पुरुष शिक्षक है तो - इगो क्लेश ! महिला शिक्षक खुद मेरी क्षमता से ज्यादा मार्क्स ! एकदम गाय की तरह सीधा मुह बना के उनके सामने नज़रें झुका लेता था ! करुना भाव में न जाने कितने बार उनलोगों का मुझपर उपकार :))
इन्टरनल / सेशनल परीक्षा के ठीक पहले - क्लास के फ्रंट बेंच वालों के रूम का चक्कर ! यार , सिलेबस बता दो ! यार नोट्स दे दो ! सेशनल / इन्टरनल परीक्षा के ठीक पहले क्लासरूम में ब्लेड के साथ - बेंच को साफ़ करना , खूब प्रेम से  ! फिर वहां सारे फोर्मुला लिखना ! फिर मैडम का आना और हमलोगों का जगह बदल देना ! हा हा हा हा !
फाईनल परीक्षा के एक रात पहले - विल्स का पूरा डब्बा ! सारी रात जागते हुए - अगली भोर परीक्षा हाल में ! अगर रात जाग गया तो पास और अगर सो गया तो फेल ! सेमेस्टर का यही वरदान और अभिशाप ! सारा सेमेस्टर एक तरफ और परीक्षा की रात एक तरफ ! परीक्षा हमेशा बढ़िया जाता था ! रिजल्ट ख़राब या बढ़िया ! फिर उधर से ही - सिनेमा ! पूरा सिनेमा हाल में पूरा बैचमेट ! सिगरेट के धुंआ से भरा हुआ ! सिनेमा में कोई गाना आ रहा है - डर का - जादू तेरी नज़र ! और मन में परीक्षा में गलत फोर्मुला यूज करने का टेंशन ! वो तीन घंटा - अजीब टेंशन से भरा हुआ ! जैसे ही पता चलता ...और भी दोस्त गलती कर के आये हैं ...मन एकदम शांत ...खुश ! हा हा हा हा ....
बस यूँ ही ....

@RR

Monday, August 10, 2015

Daalaan Literature Festival - Saavan 2015 सावन की तमन्ना

कारी कारी बदरी बनू
बादलों के संग घूमूं
पवन के झोकों पे...
मस्त होके झूमू 
बारिश की बूदें बन...
इस धरती पर बरस जाऊं
बहारों के सपनों संजोये
बूँद बूँद बह जाऊं
सावन बन जाऊं...
कभी किसी नदिया पे
कभी किसी पर्वत पे
कभी किसी बच्चे के
कागज़ की नाव पे ...
कभी किसी गौरैया पे
कभी किसी गैया पे
कभी किसी प्रेमी के
दहकते हुए सीने पे...
बूँद बूँद बह जाऊं

                                                                                                           सावन बन जाऊं ...:))
                                                                                                           ~ सावन
                      पेंटिंग साभार : रौफ जानिबेकोव


@RR

Saturday, June 13, 2015

Bihar Assembly Election - 2015 / बिहार विधानसभा चुनाव - २०१५


ये राजनीति नहीं आसां , इतना तो समझ लीजिये 
एक आग का दरिया है , और डूब के जाना है ...:)) 
मामला फंस गया है ! लालू कमज़ोर हुए या उनको गठबंधन में कम सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली , यादव वोट बिदक कर 'भाजपा' के पास चली जायेगी , जब अपना नेता मुख्यमंत्री के लिए नहीं है फिर क्यों वोट बर्बाद करना ! अगर लालू को गठबंधन में बराबर की सीटें मिली , फिर लालू चुनाव के बाद नितीश को निगल जायेंगे , बराबर के गठबंधन में किसी भी हाल में लालू के ज्यादा उम्मीदवार जीत के आयेंगे - फिर लालू किसी सोनिया / राहुल की नहीं सुनेंगे बहुत बार्गेन हुआ तो अपनी बेटी को वो उपमुख्यमंत्री बना कर ही मानगे ! इस हाल में प्रशासन का क्या होगा , भगवान् ही मालिक है ! इसमे कोई शक नहीं की मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिर्फ और सिर्फ लालू की ही चली जिसका नतीजा यह हुआ है की लॉ - ऑर्डर बुरी तरह चरमराया हुआ है , नितीश को मांझी का फैलाया हुआ रायता साफ़ करने में दम निकल गया है , बहुत कोशिश के बाद अब कुछ बढ़िया सरकारी मुलाजिम काम कर रहे हैं ! मुस्लिम के शत प्रतिशत वोट नितीश वाले गठबंधन को मिलेगी ! 
मांझी को लाकर नितीश गलती किये , मांझी को हटा कर नितीश गलती किये ! कमज़ोर दलित वर्ग बुरी तरह आहत है ! वोट बर्बाद हो जाए तो हो जाए लेकिन नितीश को नहीं देंगे वाली तर्ज़ पर वर्तमान में हवा है ! अगर मांझी भाजपा के साथ चले गए फिर ब्रह्मा भी नितीश को हारने से नहीं रोक सकते ! 
नितीश को एक ही आदमी मदद कर सकता है वह हैं सुशील मोदी ! आरएसएस में अपनी पकड़ के बदौलत नितीश के पक्ष में भाजपा के अगर बीस भी कमज़ोर उम्मीदवार खड़े हुए फिर तो नितीश की बल्ले - बल्ले होगी ! भाजपा के लिए बेहतर होगा वह अभी ही सुशील मोदी को केंद्र का रास्ता दिखा दे , वरना ये आदमी कुछ भी बेच देगा ! नेटवर्किंग के उस्ताद सिर्फ और सिर्फ 'दलाली' कर सकते हैं - नेतागिरी नहीं ! 
नितीश कितना भी कर ले , किसी भी मंझे हुए दरबारी / स्तुतिगान करने वाले को ले आयें एक बात याद रखें - 'दरबारी' किसी का नहीं होता है , कल किसी और के साथ था आज आपके साथ है और कल किसी और के साथ रहेगा ! लोकसभा के तर्ज़ पर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा जाता ! दिल्ली के बड़े पत्रकारों को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर उनके हर हर एक शब्दों को अपने लिए खरीदने को जो मुहीम चला है - उसका कोई फायदा नहीं होगा ! वोट अप्रवासी बिहारी नहीं देंगे , वोट यहाँ के लोग देंगे !
जब नेतृतव मजबूत होता तब राजनीति कमज़ोर होती है ! जब राजनीति हावी होती है जब नेतृतव कमजोर हो जाता है ! जब तक नितीश का नेतृतव मजबूत था , उनके उपमुख्यमंत्री भी उनसे मिलने के लिए घंटो इंतज़ार करते थे ! सबकुछ सही था ! यही हाल केंद्र में है - नरेन्द्र मोदी मजबूत है सो वहां केन्द्रीय भाजपा में कोई राजनीति नज़र नहीं आ रही ! सब कुछ कमांड और कंट्रोल में है ! 
गठबंधन की तरफ बढ़ते हुए 'मांझी जी ' भाजपा के साथ हाथ मिला लिए हैं ! कल लालू जी के जन्मदिन पर नितीश जी उनसे मिलने गए और भरत मिलाप के दौरान कई पत्रकार इस कदर भावुक हुए की 'भोंकार पार' कर रोने लगे ! पूरा शहर भाव विह्वल हो गया ! पत्रकारों के साथ दिक्कत यह है की वो राजनीति को देखते तो जरुर हैं पर राजनीति और उनके बीच एक पारदर्शी ग्लास / सीसा होता है - नज़र सब कुछ साफ़ साफ़ आता है लेकिन महसूस नहीं कर सकते और जब तक आप किसी चीज़ को महसूस नहीं करेंगे - वह चीज़ आपको समझ में नहीं आयेगी ! पत्रकार जनता के बीच जाते हैं , घुल कर मिलते हैं तो कई बार वो सच लिखते - बोलते हैं ! अगर आपको राजनीति समझनी है तो राजनेताओं को सिर्फ खबर नहीं समझें , उनके अन्दर प्रवेश करें ! कोई कितना बड़ा पद पर पहुँच जाए - अन्तोगत्वा वह एक इंसान ही होता है जो अपने आंतरिक व्यक्तित्व से संचालित होता है ! 
कई पत्रकार और अफसर अक्सर मुझसे पूछते हैं - राजनेता कैसे सोचते हैं , पता ही नहीं चलता ! कब उनका अहंकार जाग जाता है और कब उनका अहंकार ख़त्म हो जाता है ! दरअसल - एक राजनेता असल मुहब्बत सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति से करता है और जहाँ असल मुहब्बत है - वहीँ उसके लिए अहंकार का विशार्जन है और वहीँ उसकी रक्षा के लिए अहंकार जागृत है ! यह मामला पुरी तरह ह्यूमन साईकोलोजी से जुड़ा हुआ है ! 
दुर्भाग्यवश , आज के दिन बिहार में नेतृतव कमज़ोर हुआ तो राजनीति हावी हो गयी है ! नेतृतव शेर होता है और राजनीति लोमड़ी और इस जंगल में सभी साथ होते हैं ..वक्त का तकाजा है ..कौन कब मजबूत है ....:)) 
फिलहाल बिहार की जनता मौन है ...!!! 


@RR

Monday, June 8, 2015

नितीश कुमार / Nitish Kumar - कल , आज और कल


बिहार में नितीश राज के दस साल होने वाले हैं ! कुछ नौ महीने श्री जीतन राम मांझी के भी रहे , जो की उनके अनर्गल बयानों , विवादित कुंठीत सरकारी कर्म कर्मचारीओं के प्रोमोशन और परदे के पीछे कई कांडो के कारण बदनाम रहा ! 

अब सवाल उठता है - नितीश ने क्या किया और क्या नहीं किया ! नितीश ने जो कुछ भी साढ़े सात साल किया या नहीं किया , उसमे भाजपा भी शामिल रही है ! 

मुझे अपने एक दोस्त संतोष के द्वारा वर्षों पहले कही गयी एक बात याद आती है - ' किसी भी राष्ट्र , राज्य , इलाका , धर्म , जाति या परिवार के फॉरवर्ड / एडवांस होने का एक मात्र पैमाना है - वहां की औरतों / बेटी / बहु को कितने अधिकार मिले हुए हैं या उनका सामाजिक स्तर क्या है ' ! 
नितीश जिस इलाका / समाज / जाति से आते हैं , वहां के मिडिल क्लास में औरतों को लगभग पुरुषों के बराबर का अधिकार मिला हुआ है ! और इंसान जब शक्तीशाली होता है तब वह जिस समाज से आता है उसकी विशेषताओं को फैलाना चाहता है ! नितीश ने लगभग यही किया ! 
आज पटना का कोई ऐसा मिडिल क्लास का परिवार नहीं है , जहाँ बेटी को स्कूटी / स्कूटर नहीं मिला हुआ है ! आप किसी भी गली मोहल्ले में चले जाईये आपको किसी कोचिंग से ठहाका लगाते , अपने कंधे पर झोला लटकाए और अपने सपनों को उड़ान भरते हुए लड़कियाँ मिल जायेंगी ! यह परिवर्तन 'बॉटम - अप ' हुआ ! नितीश ने गाँव के हाई स्कूलों में पढ़ने वाली हर बेटी को साईकिल दिया ! जो बाप अपनी बहन को स्कूल जाने से रोकता था , वही बाप अपनी बेटी को साईकिल सिखाते नज़र आया ! 
सुबह नौ बजे गाँव की सडकों पर जब एक साथ बीस पच्चीस लड़कियाँ साईकिल पर सवार होकर स्कूल के लिए निकलती हैं , कोई भी संवेदनशील प्राणी का ह्रदय भर आएगा ! सपने पुरे होंगे या नहीं वो बाद की बात है , सपने आये तो सही ..यह एक जबरदस्त सामाजिक क्रांती थी , जिसका भरपूर फायदा नितीश कुमार - भाजपा की सरकार को नवम्बर 2010 में मिला ! जैसा की मैंने कहा - यह क्रांती ' बॉटम - अप ' था सो गाँव से शहर में भी आया ! कल तक जो सपने समाज के अभिजात वर्ग के महिलाओं के लिए थे , वो सपने धरातल पर फ़ैल कर हर किसी के लिए हो चला था ! 
बिहार बदलने लगा ...अखबार सकरात्मक होने लगे ...नितीश ने दूसरा एक बहुत बढ़िया काम किया , वो है 'सड़क निर्माण' ! गाँव गाँव सड़क बनवा दिया ! उदहारण के लिए , पटना से मेरा गाँव मात्र सौ किलोमीटर के एरियल डिस्टेंस पर है , लेकिन गाँव जाने में छः - सात घंटे लग जाते थे ! आज के तारीख में मुझे अपने गाँव पहुँचने के कई रास्ते हैं ! 
नितीश का स्लोगन ही था , राजधानी पटना से बिहार के किसी भी जिला मुख्यालय में पहुँचने में मात्र - पांच घंटे लगाने चाहिए और बहुत हद तक उनका सपना साकार नज़र आ रहा है ! 

इसके कई फायदे हुए , समाज का मिडिल और अपर मिडिल क्लास शहर के साथ साथ गाँव में भी बढ़िया घर बनाने लगा ! आप अपनी कार उठा , किसी भी मुख्या सड़क पर निकल जाईये , सड़क किनारे आपको कई गाँव और उन गाँव में एक से बढ़कर एक बढ़िया मकान नज़र आयेंगे ! हर एक बढ़िया गाँव में पचास लाख , एक करोड़ तक के घर नज़र आ जायेंगे !
इस सड़क निर्माण का दूसरा असर यह है की - अब हर घर में 'महिन्द्रा' के जीप नज़र आ जायेंगे ! पंचायत सदस्य से लेकर लोकसभा सांसद तक , सबके पास महिंद्रा कंपनी की 'स्कार्पियो' कार है ! बिहार के कोने कोने से औसतन हर दिन पटना में लगभग पांच हज़ार स्कार्पियो प्रवेश करती है ! पटना ठसमठेल रहता है !
ग्रामीण विकास का नतीजा यह है की जिला मुख्यालय भले ना पनप पायें हों पर छोटे मोटे कसबे में बहुत पैसा हो गया ! पिछले दस साल में सिर्फ केंद्र सरकार से बिहार के विभिन्न योजनाओं में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपैये आये ! यह पैसा विकास के साथ साथ , जिस जिस हाथों से गुजरा - उन उन हाथों को मजबूत बनाया 
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 अब यह आपका नसीब - आपके हाथ कितना आया लेकिन धरातल पर भी काम हुआ ! छोटे - मोटे कस्बे / प्रखंड में कई करोडपति नज़र आयेंगे , ठीकेदार से लेकर डॉक्टर तक ! सेमी अरबन इलाकों के प्रमुख डॉक्टर / फिजिसियन की कमाई लगभग पांच लाख रुपैये प्रतिमाह से ज्यादा है , जो पटना - मुज़फ्फरपुर इत्यादी प्रमुख शहरों के डॉक्टर्स की औसत कमाई से बहुत ज्यादा है ! यही हाल अन्यों का है ! सरकारी 'कर - कर्मचारी' भी फिल्ड पोस्टिंग के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे / हैं ! ( फिल्ड पोस्टिंग - छोटे शहर में पोस्टिंग ) क्योंकी सारा मलाई उधर ही बह रहा था !
बढ़िया सड़क और नए सड़क के चलते कई खेत सड़क किनारे हो गए जिसके चलते अचानक से कई खेतों का दाम भी बहुत बढ़ा , लेकिन उसी रफ़्तार में अन्य विकास नहीं होने से दाम घटा भी !
एक और बढ़िया चीज़ हुई , उद्योग / बिजनेस के नाम पर - हर बड़े शहर से लेकर छोटे शहर तक - ऑटोमोबाईल्स की एजेंसी खुल गयी और आज बिहार में यही ऑटोमोबाईल एजेंसी वाले नए 'कुबेरपति' है ! पेज थ्री आइटम से लेकर , हर कोई इनसे दोस्ती करना चाहता है ! अधिकतर चालीस / पैंतीस से कम उम्र के लडके हैं , जिनके बिजनेस में सरकारी कर कर्मचारी के पैसे लगे होते हैं ! पर , विकास नज़र आता है ! हर शहर के बाईपास पर बड़े बड़े शो रूम ! अब पचायत सदस्य भी अपनी बेटी को शादी के बाद किसी बड़े चार पहिया में विदा कर रहा है !
टैक्सपेयर का गाढ़ी कमाई ...हर तबके में बराबर बंट रहा है ...थोडा सड़क निर्माण हो रहा है ...थोडा इंजिनियर / ठीकेदार साहब का छत भी ढला रहा है ...:))
बिहार बदलने लगा ...अखबार छपने लगा ...

इस सीरिज के पहले हिस्से के पहले पैरा में ही कुछ बातें हैं , ध्यान से पढियेगा ! मै कोई भाजपा - नितीश - लालू नहीं कर रहा , बल्की चीज़ों को अपनी नज़र से देख रहा हूँ ! इसमे कोई दो राय नहीं की अगर बिहार की राजनीति एक दुल्हन है तो नितीश से बढ़िया कोई दुल्हा नहीं ! अब येन सिन्दूर दान के वक़्त दुल्हा बेवडा होकर भाग जाए तो यह एक दुर्भाग्य ही है , ऐसे मौकों पर बाराती में से ही किसी अन्य को खोज दुल्हन का सिंदूरदान करवा दिया जाए तो यह कोई मेल भी नहीं ! 
नितीश ने ग्रामीण विकास पर जोर तो दिया पर शहर बुरी तरह नेगलेक्ट हो गए ! शहर विकास के नाम पर इनके पास कुछ नहीं था ! हर चुनावी घोषणा पत्र में 'ग्रेटर पटना' की बात हुई पर हुआ कुछ नहीं ! मिडिल और अपर मिडिल क्लास को देने के लिए इनके झोली में कुछ नहीं था ! कुछ एक ओवरब्रिज बना देना ही विकास नहीं होता है !
समाजवादी और कम्युनिस्ट नेताओं का यह जबरदस्त भ्रम रहता है की जो कल गरीब था वो आज भी गरीब है और वो कल भी गरीब रहेगा ! जबकी पिछले पच्चीस साल में देश के हर तबके , जाति , समाज के जीवन स्तर में जबरदस्त सुधार आया है और जो कौमें मेहनतकाश हैं वो तो आसमान छू रही हैं ! हर जाति के लोग मिडिल क्लास / अपर मिडिल क्लास में प्रवेश किये हैं ! और आप जैसे ही एक ऑर्बिट से दुसरे ऑर्बिट में प्रवेश करते हैं , आपकी कई जरूरते और आदतें बदल जाती है ! यही वो क्लास है जो सबसे ज्यादा टैक्स पे करता है !
उदहारण के लिए , पटना में कहीं भी , कोई भी एक कॉफ़ी हॉउस नहीं है जहाँ कुछ बुद्धिजीवी वर्ग एक जगह बैठ कर कुछ बहस कर सकें ! मिडिल क्लास की बहुत सारी जरूरतें होती हैं - बच्चों के लिए बढ़िया स्कूल , पार्क से लेकर एक बड़ा मॉल तक ! उसको अपनी कार पार्किंग के लिए भी जगह चाहिए ! इस क्लास को बहुत कुछ चाहिए !
नितीश यहाँ बुरी तरह फेल हैं ! जिस बाज़ार से मेरी नानी अपने लिए चूड़ी खरीदती थीं , उसी बाज़ार से मेरी बेटी भी अपने लिए चूड़ी खरीद रही है - यह एक जबरदस्त दुर्भाग्य है ! देश के दुसरे राजधानी मसलन रायपुर , रांची , भुवनेश्वर कहाँ से कहाँ पहुँच गए पर पटना वहीँ खडा है - कंकडबाग में ! हद हाल है !
और यही वजह है की बिहार से पलायन नहीं रुका ! आज भी ट्रेन / प्लेन पकड़ के बाहर कमाना एक स्टेटस सिम्बल है ! आदमी वही है , जगह बदल गया तो वो राजा बन गया , बिहार में रह गया तो गर्त में समा गया !
कुछ नहीं करना था , बस पटना के आस पास एक हज़ार एकड़ ज़मीन एक्वायर कर के , वहां आधा में आईटी पार्क बना देना था और आधा को बिल्डर में बाँट देना था ! बस आईटी पार्क में देश के कोने कोने से लोग आते , अपने साथ अपनी सभ्यता लाते , कुछ कमाते - कुछ खर्च करते और वहीँ से बिहार में एक 'सिविक सेन्स' शुरू होता !
मालूम नहीं ये सामाजिक क्रांती के नाम पर चलने वाली राजनीति में और कितने पीढी बर्बाद होंगे ....

शक्ती अंधा बना देती है ! इंसान अपने कानो पर ज्यादा भरोसा करने लगता है ! पर यह गलत है , कई बार देश , राज्य , परिवार या किसी रिश्ते के हित में अपने अहंकार को झुका देना होता है ! इंसान तो इंसान ही है - गलती करेगा ही करेगा ! 
और यहीं नितीश मात खा गए ! शेर के इर्द गिर्द भेड़िये बैठे होते हैं , पहले वो शेर के जूठे खाते हैं और एक दिन शेर को ही खाने के फ़िराक में होते हैं ! यही कुछ नितीश के साथ हुआ ! एक गलती कर बैठे - राज्य के विकास को रोक भाजपा से अलग हो गए ! फिर दूसरी गलती मांझी जैसे मंझे हुए खिलाड़ी को मुख्यमंत्री बना कर ! फिर तीसरी गलती लालू से दोस्ती ! पिछले दो साल में पूरा बिहार चरमरा गया , लड़की लोग का शिक्षा - सड़क निर्माण - प्रशासन सब का सब बैठते चला गया !
पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ एक जगह मै घुमा ! लोगों का यही कहना था - लोकसभा में नरेन्द्र मोदी को वोट देंगे और विधानसभा में नितीश कुमार को ! नितीश भय में चले गए - लोकसभा चुनाव में भाजपा की जबरदस्त जीत ने उनके कॉन्फिडेंस को हिला कर रख दिया और आस पास 'भेडिये' बैठे ही हुए थे - हाथ मिलवा दिया लालू से !
आज के दिन में लालू के पास अपनी जाति को छोड़ कोई वोट बैंक नहीं है , मुझे यह भी शक है की उनकी खुद की जाति के नौजवान भी उनको वोट नहीं देंगे ! नितीश खुद को ज़िंदा करने के चक्कर में लालू को ज़िंदा करने लगे !
अकेला रहना कहीं भी गलत नही है - कई बार आपके अकेलेपन को भी इज्जत मिलती है पर किसी गलत से हाथ मिला लेना , यह गलत है ! लोग आपके व्यक्तित्व पर ही सवाल उठाने लगते हैं !
लालू और मांझी ने प्रशासन का जो हाल किया है वो किसी से छुपा नहीं , नितीश को इसको संभालते - संभालते देर हो गयी ! भाजपा विपक्ष में है - वो तो चाहेगी ही की नितीश से गलती हो ! हर कोई संजय नहीं होता जो बंद कमरे से भी महाभारत का हाल देख ले ! नितीश जिस जुबान पर भरोसा किये वो सारी जुबाने उन्हें कुएं में धकेलने के लिए बैठी थी !
भाजपा के साथ वो शेर थे , लालू के साथ वो दरिद्र बनते नज़र आ रहे थे !
अभी भी वक़्त है - अगर वो अकेले चलेंगे - बिहार की जनता उनको चुन सकती है ! रवि शंकर प्रसाद , सुशील मोदी से काफी बेहतर नेतृतव देने की क्षमता नितीश के पास है !



"इश्क और राजनीति में यही होता है - दुनिया घात लगा कर बैठी होती है , जहाँ आप कमज़ोर दिखे वहीँ आप पर हावी होकर आपको अन्दर से तोड़ देती है " ! 

जो कुछ भी खबरें आ रही हैं , नितीश कुमार बुरी तरह फंसे हुए नज़र आ रहे हैं ! समय का कुचक्र है या नितीश के खुद के निर्णय लेकिन अन्तोगत्वा नितीश फंस चुके हैं ! अखबारों में छपी तस्वीरें , नितीश के मनोदशा को दिखा रही है ! अब इस मोड़ पर , नितीश भाजपा के साथ जा भी नहीं सकते हैं , वह स्वीकार नहीं करेगी ! लालू के साथ खुल कर जायेंगे , चुनाव बाद लालू ऐसा पलटेंगे , जिसका पूरा अंदेशा है ! 'वोट हमारा - ताज तुम्हारा' नहीं होगा कह कर लालू अपनी बेटी को कुर्सी पर बैठा देंगे ! नितीश इस भविष्य को पुरी तरह भांप चुके हैं ! सोनिया / राहुल के दरबार से लालू को समझाने का प्रयास होगा , लालू अभी मान भी जाएँ लेकिन इसका कोई गारंटी नहीं है की चुनाव के बाद लालू सोनिया की बात भी मानेंगे , ऐसा नहीं होगा - लालू अपना गमछा उठा निकल पड़ेंगे ! राजनीति में कोई त्याग नहीं होता , सत्ता ही सबकुछ होती है !
ऐसी परिस्थिती में , या तो फिर से दुबारा जल्द ही चुनाव होंगे या जनता अकुता कर इसी बार भाजपा को पूर्ण बहुमत दे देगी ! ऐसा लग रहा है , नितीश अपनी जिद में , खुद ही तस्तरी में सता भाजपा को सौंपते नज़र आ रहे हैं !
पर भाजपा में भी सबकुछ आसान नहीं है ! सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद शायद ही नसीब हो , नन्द किशोर यादव को बहुत तेज़ी से आगे बढ़ाया जा रहा है ! अब इस हाल में सुशील मोदी खुद भाजपा को सत्ता के नज़दीक आनी से कितना रोक पाते है , यह समय बताएगा ! वो मुख्यमंत्री पद से कम कुछ भी नहीं के आधार पर राजनीति करते नज़र आ रहे हैं !
कहने के लिए - राजनीति में लड़ाई बाहर वालों से होती हैं - पर असल लडाई तो अन्दर होती है , कब कौन आपके पीठ में खंज़र घोंप दे ...:))
अगला एक महिना ..तराजू का पलरा ..कभी इधर तो कभी उधर नज़र आएगा ...पर जनता सारे खेल को देख रही है ...और नरेन्द्र मोदी / अमित शाह के लिए बिहार ही सबकुछ होगा वाली तर्ज़ पर राजनीति करनी होगी ...किसके घर में क्या पाक रहा है ...सबकुछ परदे के भीतर ही है ...! जुबान चुप है ..मन अशांत है ! यही राजनीति है ...इश्क से भी घटिया ..:))



इश्क और राजनीति में जुबान का कोई महत्व नहीं होता ! दोनों पक्ष अपना अपना टारगेट फिक्स करता है ! जिसका टारगेट पहले पूरा हुआ , वह अपने जुबान से पलट जाता है ! जो जुबान को महत्व दिया , उसका डूबना तय है ..:)) इसलिए लोग सामने वाले को मजबूर / कमज़ोर बनाए रखते हैं ..या किसी कठोर बंधन के तलाश में रहते हैं ! वरना जैसे ही सामने वाला मजबूत हुआ , अपना टार्गेट पूरा होते ही कमंडल उठा चल देता है ..:))
अभी - अभी मुलायम ने कहा है - नितीश ही गठबंधन के नेता होंगे ! लालू पर निगाहें टिकी हुई हैं ! लालू को 'खखर कर बोलना होगा' ! जब तक लालू 'खखर के नहीं बोलेंगे - वोटर असमंजस की स्थिती में रहेंगे !
अभी तक जो खबर आया रही है - लालू और नितीश 100-100 सीट पर लड़ेंगे ! बाकी के 43 सीट कांग्रेस और अन्य को दी जायेंगी ! चुनाव के बाद लालू या नितीश , किसका दल कितना सीट जीतता है - अगर लालू के उम्मीदवार ज्यादा होंगे फिर लालू किसी भी स्थिती में नितीश को मुख्यमंत्री नहीं बनायेंगे ! अगर भाजपा मौक़ा चुक जाती है फिर वो चुनाव बाद इस खेल में बड़ा भाई बन कर नितीश को आगे कर सकती है !
अभी के स्थिती में लड़ाई कांटे की नज़र आ रही है , खासकर कागज़ पर ! लोकसभा चुनाव के तर्ज़ पर इस बार 'एनआरबी' / अप्रवासी बिहारी का रोल नहीं होगा ! वोट यहाँ के लोग देंगे ! अधिकतर वही देंगे जो पचास - पचपन से ऊपर के हैं और जो सब कुछ जाति देख कर ही करते हैं , ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है ! नरेन्द्र मोदी का भी वैसा हवा नहीं रह गया है ! नितीश को चाहते हुए भी लोग लालू से भयभीत हैं ! युवा वर्ग जन्मते ही बिहार छोड़ने के जुगार में रहता है !
कुछ भी हो , इस बार चुनाव में जाति / क्लास / उम्र / केंद्र सरकार / लालू / नितीश / मांझी / पीठ में छुरा इत्यादी सारे रंग एक साथ होंगे ! लगभग सौ सीटों पर हार जीत का मामला पांच हज़ार वोटों से कम पर होगा ! तराजू किधर झुकेगा कहना मुश्किल है ! मांझी भी लगभग आठ - नौ प्रतिशत वोट लेकर किसको फायदा पहुंचाएंगे , कहना मुश्किल है !
कई उम्मीदवार वोट रहते चुनाव हार जाते हैं ! हर दल से विद्रोही उम्मीदवार उठेंगे ! कई शौकिया उम्मीदवार होंगे ! कुल मिलाकर अगला नब्बे दिन , हर दिन इम्तेहान का होगा !
अखबार , टीवी , सोशल मिडिया भी अपने रंग में रहेगी !
वोटर चुप है ! उसे पता है ...भविष्य कहाँ है ! बिहार अपने गर्त से एक भविष्य को ताक रहा है ...फिर से गर्त में ना फिसल जाए ...यहीं पर सबकी निगाहें होंगी ...:))
धन्यवाद !



@RR