Tuesday, December 22, 2015

सफ़र

#सफ़र 
 हमलोग बचपन में पब्लिक ट्रांसपोर्ट यानी बस / ट्रेन से सफ़र करते थे ! एक चीज़ देखने को मिलती थी - अभी बस ....स्टैंड में लगा नहीं की ...धड़-धड़ लोग सीट 'छेंकने' लगते थे - कोई खिड़की से ही - अखबार / गमछी / छोटा तौलिया फेंक के सीट रिजर्व कर दिया और खुद पास के पान के दूकान या चाय वाला के पास बैठ गया ! अब आप 'लेडिस सवारी' के साथ बस में घुसे ..कोई सीट खाली नहीं है :( भारी फेरा है :( अब यहाँ तीन कैटोगेरी है - एक अखबार वाला , दूसरा गमछी वाला और तीसरा छोटा तौलिया वाला - अखबार को उठा के किसी और सीट पर रख - खुद वहां बैठ जाईये - जब वो आएगा तब देखा जाएगा टाईप ! गमछी वाला के साथ अलग ट्रीटमेंट - दो उंगली से मलेछ गमछी उठा के - सीट के नीचे :P - एक फर वाला तौलिया टाईप इंसान होता था - अब उसके तौलिया से उसके अवकात का अंदाजा लगाया जाता था - अब उसका तौलिया कैसे हटायें :( कहीं हमसे ज्यादा हाई फाई निकल गया तो :( आएगा तो बुखार उतार देगा टाईप ख्यालों के बीच - उसका तौलिया सीधे खिड़की से बाहर :D हुआ हंगामा ..हा हा हा हा ! 
अब तो बस भी एकदम हाई फाई हो गया है - वॉल्वो और मर्सिडीज का बस - इंटरनेट से टिकट - पर वो मजा नहीं है - जो अखबार / गमछी / तौलिया से सीट छेंकने में आता था ! 
कभी आप ऐसे ही सीट 'छेंके' हैं ? या किसी का गमछी / तौलिया बाहर फेंके हैं ? हा हा हा हा .....
#OldPost

Saturday, December 19, 2015

भय

#OldPost #BeStrong 
हमारे कई स्वभाव / आचरण के तह में भय बैठा हुआ रहता है ! यह 'भय' हमारे कई सकरात्मक और नकरात्मक कदमो को तय करता है - अब वो कदम सकरात्मक होने या नकरात्मक होंगे यह हमारा अपना व्यक्तित्व / मूल स्वभाव तय करेगा ! व्यक्तित्व निर्माण में कई चीज़ों / स्थान / लोगों / 'घटनाओं' का सहयोग होता है पर 'मूल स्वभाव' कभी नहीं बदलता ! 
अब बात आती है ...इंसान.... इंसान या घटनाओं को या समाज को या इर्द गिर्द के लोगों को नियंत्रीत क्यों करना चाहता है ? यह प्रक्रिया घर से शुरू होकर विश्व तक पहुँचती है - क्या घर का मुखिया और क्या विश्व का मुखिया - जैसे सब कुछ उसके उंगलीओं पर ही नाचे ! एक हद तक यह आनंद देता है - जब जब यह लगता है - कोई मुझे फौलो / मेरे बातों को समझ / मेरे साथ साथ चल रहा है - कड़वा तब हो जाता है - जब हम जबरदस्ती कंट्रोल शुरू कर देते हैं - इंसान की समझ कम - जानवर की तरह - चरवाहे की लाठी से 'हांक' दिया जाता है - पर जब उसकी समझ जागेगी - तब क्या होगा ? उसका फल कौन भूगतेगा ?? 
यह कहानी सिर्फ इंसान - इंसान' तक ही सिमित नहीं है - इसका दायरा थोडा बड़ा कर के सोचियेगा - इसमे आपको मार्टिन लूथर किंग से लेकर महात्मा गांधी ..फिर लालू जैसे लोग भी नज़र आयेंगे ..! 
खैर ...बात 'भय' और 'मूल स्वभाव' की है ..! चोर का भय ..कोई डर से दरवाजे / पलंग के पीछे / निचे भाग जाता है ...कोई हाथ में डंडा लेकर आगे बढ़ जाता है ..यह आचरण उसके मूल स्वभाव से आता है या आता होगा ! यही भय कई चीज़ों को नियंत्रण करने पर मजबूर करता है ...इंसान के अन्दर एक भय रहता है ...गलती से / समाज से ..उसे एक शक्ती मिल जाती है ...अब वह इस शक्ती को लेकर सब कुछ नियंत्रण में रखना चाहता है ...पर अन्तोगत्वा दुःख उसको नहीं होता ..जिसे आप नियंत्रण में रखते हैं ...अपने डंडे के जोर पर ...चाबुक चलाते है ...असल दुःख तब होता है ...उस अहंकार को ठेस पहुँचती है ...वो विकृत कुंठा चूर चूर होती है ...जब वो इंसान / चीज़ आपके नियंत्रण से बाहर निकल जाती है ...
दरअसल जब आप गौर फरमाएंगे ...इन सबके के पीछे ...एक कुंठा रहती है ...वो इतनी भयानक होती है ...अगर आप कोमल ह्रदय वाले हैं ....उस कुंठा को नजदीक से देख समझ ...एकदम से ठिठुर जाए ...आप कुछ नहीं कर सकते ...वो कुंठा उसके साथ ही रहेगी ...मरने के साथ जायेगी ...उसने उसको बड़े जतन से पाला है ..जिसने अपनी कुंठा ही बड़े जतन से पाला हो ...वो भला क्यों उसे मरने देगा ...:)) 
19.12.2013

Wednesday, December 16, 2015

पटना पुस्तक मेला


कल पंद्रह दिसम्बर को पुस्तक मेला समाप्त हो जाएगा । आज शाम वहाँ कवि सम्मेलन था । टहलते - घुमते मेला में पहुँच गया । वहीं गेट के पास पत्रकार चंदन द्विवेदी अपने युवा साथीजन के साथ मिल गए । चाय ~ कॉफ़ी हुआ । 
फिर मेला के कर्ता धर्ता श्री रतनेश्वर जी मिल गए । मेला को लेकर उनसे कई सवाल मैंने किए । मेला का इतिहास और वर्तमान स्वरूप । बातों बातों में पता चला वो भी कुछ वर्ष मेरे स्कूल में पढ़े हैं । 
गेट से घुसते ही दाएँ - बाएँ दोनो तरफ़ साहित्य वाले प्रकाशन के स्टॉल लगे हैं । राजकमल और वाणी । ढेरों किताब । हिंदी साहित्य का कोई भी नाम लीजिए - किताब हाज़िर है । पहली नज़र में सभी किताबों को ख़रीदने का मन करेगा ...:)) 
वहीं राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर मेरे स्कूल सीनियर श्री विकास कुमार झा मिल गए । वो अपनी नयी किताब 'वर्षावन की रूपकथा' के साथ मौजूद थे । विकास भैया को हर बिहारी जानता होगा - माया नाम की मैगज़ीन के लिए वो बिहार से लिखते थे । हम तो बचपन से उनके फ़ैन । वो अपनी महिला प्रशंसकों से घिरे और हाथ पकड़ लिए - फ़ुर्सत में गप्प कर के जाओ । मेरे कई सवाल - पहला सवाल - आज के पत्रकार "पावर हाऊस" के आगे नतमस्तक क्यों ? फिर उनकी किताब की चर्चा । पहले भी वो मैस्कूलीगंज नाम की किताब छाप चुके हैं । वर्षावन की रूपकथा - कर्नाटक के शिमोगा ज़िले की कहानी है । पढ़ूँगा तो कुछ लिखूँगा । 
फिर अन्य स्टॉल पर घुमा । एक दो और किताब ख़रीदा । फिर मंच की तरफ़ बढ़ा - वहाँ पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर श्री नवल चौधरी जी का किसी पुस्तक पर समीक्षा चल रहा था । बढ़िया लगा - अपने भाषण में समाजवाद की धज्जी उड़ा रहे थे । बाद में पता चला - ख़ुद कम्युनिस्ट विचारधारा के हैं । 😮
फिर कवि सम्मेलन । विभिन्न समाचार पत्रों के लिए काम कर रहे युवा पत्रकारों की टोली थी । चंदन ने मुझे पहले ही ख़बर किया था । बहुत बढ़िया रहा । प्रेम - मुहब्बत से लेकर राजनीति वाया गाँव ...:)) 
इस बार पटना में लिट्रेचर फ़ेस्टिवल नहीं हुआ सो ये पुस्तक मेला कुछ कुछ लिट्रेचर फ़ेस्टिवल का स्वाद दे गया । पटना में भी बड़े बड़े साहित्यकारों का जमावड़ा होता है जिनके इर्द गिर्द सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके ही लोग बैठे होते हैं - कभी यह बात अखर जाती है तो कभी बढ़िया लगता है । 
लौटते वक़्त भूख लग गयी । सो वहीं अंत में ...एक फ़ूड स्टॉल पर "लिट्टी और चिकेन" खाया ...नज़रें बचा के ..:)) 
बाहर निकल - चनाजोड़ गरम खाया । दस रूपैया का । निम्बू डाल कर । काँख में - "मोहन राकेश की - आषाढ़ का एक दिन " को दबा के ....!!!

@RR

अरुण शर्मा / Arun Sharma CAT IIM

‪#‎Mulakat‬ - Arun Sharma / CAT Coach 
कल दोपहर अरुण से मुलाक़ात हुई । पटना आए हुए थे । अकेले थे सो लम्बी और एकदम खुल के सीधे गप्प हुआ । पिछली दफ़ा माता पिता और उनका पूरा परिवार था । 
अरुण कल भी CAT के ब्राण्ड थे । आज भी हैं । सत्रह अठारह साल पुरानी जान पहचान है । तब वो पटना में रहते थे । पटना के हृदय में एकड़ में फैला हुआ उनके दादा जी का मकान । हमउम्र ही हैं । सीधी बात करते हैं । १९९९ में उनके पास गया था - मुझे अमेरिका में किसी विश्वविद्यालय में एडमिशन लेना है - बेहतरीन नेक टाई , शर्ट और दो दो टन के दो एसी के बीच वो सुस्ता रहे थे । अब हम अमेरिका में क्या एडमिशन लेते - दोस्ती हो गयी । गप्प चालू हो गया । फिर मैंने पटना छोड़ दिया - एक आध साल बाद वो भी लखनऊ बस गए । क़रीब ग्यारह साल पहले मैं ग्रेटर नॉएडा के ग़लगोटिया कॉलेज में एक्ज़ामिनर बन के गया था तो वो मिलने आए । सबने पूछा ये कौन हैं - मैंने कहा - "हर साल CAT कम्पीट करते हैं " ! तब वो अपनी किताब के सहारे नेशनल ब्राण्ड बनने की ओर अग्रसर थे और आज अपने पब्लिशर मैकग्राहिल के सबसे चहेते लेखक ।

बस यूँ ही - चाय और 'निमकी' के साथ - एक बेहद सहज भाव से डेढ़ दो घंटो तक लगातार गप्प । विश्व की राजनीति से लेकर पटना का भविष्य 😶 जब दो लोग - हमउम्र बैठते हैं - फिर बातचीत एक दरिया के माफ़िक़ हो जाती है । कई विषय एक गप्प में मोती के माला की तरह पिरो होते हैं । बग़ैर किसी नक़ाब के - बग़ैर किसी अंह के । 
अरुण एक नयी किताब लेकर आ रहे हैं - जिसका टीज़र विडीओ उनके वाल पर है । बातों बातों में ज़िद्द कर देते हैं - आप भी किताब लिखिए । किताब लिखना और उसे बेस्टसेलर बना देना उनके बाएँ हाथ का खेल है सो वो मुझे भी इस खेल शरीक होने का दबाव बनाते हैं । 
हर किसी के जीवन में उतार चढ़ाव होता आया है । स्थान / कैरियर परिवर्तन इत्यादि इत्यादि । पर अरुण की सबसे बड़ीं ख़ासियत यह है की - वो रुकते नहीं है - चलते चले जाते हैं । फिर कुछ दिन बाद पता चलता है - अरे ...अरुण तो एक नए मुक़ाम पर हैं ...:)) 
नयी किताब की शुभकामनाएँ ...स्पेसिमेन कॉपी भेजवा दीजिएगा ...:))


@RR

कश्मीरी

कश्मीरी आया होगा - शाल बेचने ! माँ, चाची , मामी , फुआ , पड़ोस वाली आंटी लोग सब लोग उसको घेर के बैठ गए होंगे ! उसके गठरी की एक - एक शाल को देख रहे होंगे ! माँ भी दो शाल ली होगी - सस्ता ! पश्मीना कभी देखा नहीं - ख़रीदा नहीं - छुआ नहीं - ओढा नहीं ! पूछने पर् बोलेगा - बीस् हज़ार से शुरू ही होता है ! पश्मीना के नाम पर् 'पश्मीना मिक्स' कोई दो तीन हज़ार में बेच जायेगा ! इस् बार बड़ा दिन की छुट्टी में घर जाऊंगा तो माँ वो शाल मुझे दिखाएंगी और वापस लौटने वाले दिन मेरी पत्नी को दे देंगी - ढेर सारे स्नेह के साथ ! 
कश्मीरी फिर अगले साल ...नए शाल के साथ आएगा !
smile emoticon
~15.12.2011

@RR

बचपन से ....

#OldPost
जितनी जिंदगी - उतनी कहानियां और उतने ही जीवन दर्शन ! हर व्यक्ती जीवन को सिर्फ और सिर्फ अपने ही आँखों से देखना चाहता है - फिर भी उसके आँखों पर कई परदे होते हैं ! एक महतवपूर्ण फैक्टर होता है - चाईल्ड साइकोलोजी ! जब कुछ सिखने की उम्र होती है - तब आप क्या सिखते हैं और क्या अपनाते हैं ! आपका खुद का खून होता है - फिर आपके आस पास एक माहौल होता है - उस माहौल में कई महान आत्माएं होती हैं - जो आपसे दूर होकर भी आपके करीब होती हैं - माता पिता के अलावा भी कई और लोग होते हैं - जिनका एक जबरदस्त प्रभाव आपके जीवन पर होता है - कई ऐसी आत्माओं के किस्से / घटनाएं आपके जेहन में इस कदर घुस जाती हैं - आप ताउम्र उसमे क़ैद होते हैं ! 
बहुत पुरानी एक बात याद है - पिता जी पटना के नाला रोड में अपना पहला क्लिनिक खोले थे - उस वक़्त पटना शहर हमलोगों के लिए किसी विदेश से कम नहीं था - कोई अपना / जान पहचान ..बहुत कम ! शाम के वक़्त ..मैं अपने स्कूल से लौटकर - उत्साह में पापा के क्लिनिक में चला गया - पापा नहीं थे - अचानक देखा - पटना के एक मशहूर डाक्टर अपने कई दोस्तों के साथ - पैदल ही आ गए  ! मैं हैरान था - उनकी सरलता पर ! वो एक घटना थी - जो ताउम्र मुझे आकर्षित किये रखी और मैं अपने जीवन में जब कभी भी किसी अपने से मिला - खुद को बहुत ही नेचुरल और सरल रखने की कोशिश की ! उनके एक और दोस्त होते थे - पर वो मुजफ्फरपुर में पिता जी के 'हेड' होते थे - हम सभी पटना में सेटेल हो चुके थे - अचानक एक सुबह हमारे दरवाजे पर खटखटाहट हुई - मैंने दरवाजा खोला - उनको पाया - पता चला - वो मुजफ्फरपुर में एक मंदिर बनवा रहे हैं - पिता जी चुप चाप नज़रें झुका उनकी बात सुन रहे थे - अपना चेक बुक निकाले और जितना पैसा था - सभी दे दिए - वहां मैं भी खडा था - वो एक भाव था - ताउम्र मुझे प्रभावित किया ! ये दोनों दोस्त बिहार मेडिकल में - अपने अपने क्षेत्र में 'भीष्मपितामह' के रूप में जाने गए !
~ १६.१२.२०१२