Tuesday, November 30, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - जाड़ा का दिन !!

पिछला हफ्ता देखा की कुछ लोग हाफ स्वेटर पहने हुए थे ! शाम को घर लौटा तो  पत्नी को बोला - ए जी ..अब कोट सोट , स्वीटर इयूटर निकालिए ..कहाँ रखीं है सब ? बोली की 'पलग' के बक्सा में रखा हुआ है - कल निकाल दूंगी !  इस बात पर् 'एक राऊंड बहस' हो गया ! पुर पलंग के बक्सा को 'उकट' दिए ! फिर देखे की लाल वाला स्वेटर नहीं मिल रहा है - थोडा कड़ा आवाज़ में बोले - 'लाल वाला स्वेटर नहीं दिख रहा है ??' पत्नी बोली - 'हमको , क्या पता' ! अब फिर एक राऊंड बहस हुआ ! फिर , माँ को फोन लगाया - माँ बोलीं - वहीँ पटना में है ..पापा के आलमीरा में !! 

खैर , पटना याद आ गया ! छठ पूजा खत्म  होते ही माँ लालजी मार्केट जाती थीं ! उन का गोला खरीदने ! साथ में 'काँटा' ( सलाई ) ! ठण्ड शुरू होते ही छत पर् चटाई बीछ जाता - दिन भर माँ - चाची - फुआ - मामी जैसा लोग स्वेटर बुनता था ! हर चार दिन पर् - हमको बुलाया जाता और आधा बीना हुआ स्वेटर  मेरे ऊपर नपाता ! कभी कभी पुराना स्वेटर को 'उघार' दिया जाता - फिर उस रंग का उन खोजने जाओ - यहाँ जाओ - वहाँ जाओ :( हम लोग तबाह हो जाते - साईकील चलाते चलाते :( "मनोरमा" नाम की एक मैग्जीन होती थी - उसमे 'स्वेटर' के तरह तरह के डिजाईन ! पुर मोहल्ला में एक ही मनोरमा - सबके घर घूमता :) 

मौसी लोग बाबु जी के लिये कोट के नीचे पहनने वाला हाफ स्वेटर बून कर भेजता ! कई महिलायें काफी फास्ट - चार दिन में स्वेटर बून के तैयार ! कुछ लोग पुर सीजन लेता और नवंबर से जो प्रोजेक्ट शुरू होता वो जनवरी में खत्म होता ! हाथ से बुने हुए स्वेटर की खासियत यह थी की - स्वेटर की प्रशंषा होते वक्त 'बुनने वाले' की भी बडाई होती या  बताया जाता की कौन बुना है ! 

हाल फिलहाल तक मेरी छोटी फुआ जो मुझे 'चिंकू' के नाम से पुकारती हैं - मेरे लिये स्वेटर बुन कर भेजती थी ! बहुत प्यार से ! पत्नी को फुर्सत नहीं है या मेरे लिये स्वेटर बुनने का मन नहीं है  और मेरे बच्चों की  कोई छोटी 'मौसी' नहीं है :( 

कॉलेज तक लाल और ब्लू वाला 'ब्लेज़र' का फैशन था ! अब तो बहुत कम लोग पहनते हैं ! मफलर का क्रेज होता था ! थ्री पीस सूट जो बियाह में सिलाता था ..लोग पहनते थे ! इंग्लिश जैकेट भी ! ओवर कोट भी ! आज कल तो चाईना वाला जैकेट का फैशन है ! वूडलैंड के मालिक चाईना से जैकेट माँगा के यहाँ बेच रहे हैं :(  मैंने बचपन में कई लोगों को देखा है  'थ्री पीस कोट' और साईकील :)) अब वैसा सीन नहीं दिखता ! 

बचपन में खेल भी सीजन के हिसाब से होते थे ! देर शाम तक लाईट जला के 'बैडमिंटन' खेलना ! उसके पहले क्रिकेट ! बाबु जी बैडमिंटन खेलते थे और जब वो घर लौट जाते तो हम लोग टूटे हुए कॉर्क के साथ :) शाम को स्कूल से आता तो 'चुरा - घी - चीनी ' - मनपसंदीदा ! स्कूल जाने के पहले भर पेट 'कूकर से तुरंत निकला हुआ - गरम गरम भात - दाल भुजीया और धनिया का चटनी ' ! मजा आ जाता ! लाई बनता था ! एकदम बज्ज्जर लाई - लोढा से फोड के खाना पड़ता था ! :) अमीर रिश्तेदारों के यहाँ से 'बासमती का चिउरा' आता था - झोला में :( एक किलो - दू किलो :(( माँ के एक ही मामा जी थे - बहुत अमीर - हर साल खुद आते थे ' बासमती चिउरा - गया वाला तिलकूट' लेकर ! जब तक जिन्दा रहे आते रहे ..! ऐसे कई सम्बन्ध थे ! मालूम नहीं वो सभी लोग कहाँ खो गए :( 

गाँव में 'घूर' ( घूरा , आग ) जलता था ! माल मवेशी के समीप ! वहाँ पुरा गाँव आता ! शाम साढ़े सात बजे का प्रादेशीक समाचार फिर बी बी सी - हिंदी  :) वहीँ हम बच्चे भी :) अलुआ पका के खाते थे :) उफ्फ़ ....आँगन में बोरसी जलता था ...खटिया के नीचे रख दीजिए और सूत जाईये .. :) बाहर बरामदा में ..चौकी से घेर के ..धान के पुआल पर् चादर बिछा दिया जाता ...जो सो आकार सोता ...! वो एक व्यवस्था थी ! खुद का खुद होता ! अब सब कुछ बदल गया ! अब हमारे बरामदा पर् कोई सोने नहीं आता :(  

बचपन में बिना रजाई जाड़ा जाता ही नहीं :( सफ़ेद रंग के कपडे से रजाई का खोल ! कम्बल में भी खोल लगता था ...हम तो आज भी कम्बल ओढ़ के नहीं सो सकते :( ....एकदम से रजाई चाहिए ..! अब तो रूम हीटर आ गया है ..तरह तरह का ! कार में भी हीटर :) "गांती" भी बच्चे बांधते थे ..हम आज तक नहीं बांधे ! 

दिन भर ईख ( उख  ) चूसना ! मैट्रीक का परीक्षा का तैयारी भी ! 'सेन-टप' एग्जाम देने बाद ..इसी जाडा में दिन भर छत पर् 'गोल्डन गाईड' के अंदर हिंदी 'उपन्यास' पढते रहना ;) दोस्त लोग भी आ जाता था ! एक सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक गप्प ;) बीच बीच में पढाई भी ! कई दोस्त ऐसे होते जो कार्तिक पुर्णीमा के दिन नहाते फिर 'मकर संक्रांती ' दिन ! हा हा हा ......एक से बढ़ कर एक आइटम होता था ! 

क्या लिखूं :) हंसी आ रही है ..गुजरे जमाने को याद कर !! :)) 

रँजन  ऋतुराज  - इंदिरापुरम !

Wednesday, November 24, 2010

"नितीश मोदी " को बधाई !!!!




ये पांच साल पुरानी तस्वीर है ! ठीक पांच साल पुरानी ! यह तस्वीर अब और बड़ी हो चुकी है ! नितीश और बड़े होकर निकले ! जनता के पास और कोई उपाय नहीं था ! विकल्पहीनता के बेताज बादशाह को इस बार फिर 'ताज और राज' मिला ! 

बिहार का स्वर्णीम काल चल रहा है या नहीं - ये मुझे नहीं पता पर् 'नितीश कुमार' पर् 'समय' इस कदर मेहरबान है की वो एक साथ अपने कई दोस्तों और दुश्मनों को  अपनी और उनकी अवकात दिखा दिया ! इनकी जीत में विकास से ज्यादा कुछ और फैक्टर है - और सबसे बड़ा फैक्टर है - "ईबीसी और एमबीसी" वोट का लालू से नितीश के तरफ शिफ्ट करना ! यहाँ नितीश उनका 'विश्वास' जीतने में सफल हुए ! 

इस बार नितीश कुमार के सामने कई और चैलेन्ज होंगे ! उनका ड्रीम कानून - "बटाईदार कानून" के साथ वो क्या करेंगे - यह देखना होगा ! क्या इस बार भी  वो 'नालंदा और अपनी जाति' के लोगों को मलाईदार पदों पर् बैठाएंगे ? सवर्णों के प्रती उनका क्या रवैया रहेगा ? 

नितीश तो उस दिन ही जीत गए थे - जिस दिन 'दिग्विजय बाबु' का देहांत हो गया था और लालू ने रघुवंश बाबु को मुख्यमंत्री के रूप में आगे नहीं बढ़ाया .....बाकी की सभी चीज़ें खानापूर्ती थी ! 

अंततः ...नितीश मोदी ..बिहार को एक नयी छवी देंगे ..इन्ही आशाओं के साथ ....


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Saturday, November 20, 2010

"बिहारी प्राईड - भाग तीन"

बात उन दिनों की है ! २००३ की ! फेसबुक नहीं था ! ऑरकुट भी नहीं था ! याहूग्रुप हुआ करते थे ! घर से दूर होने के कारण मैंने भी कई 'याहूग्रुप' अपने स्वादानुसार  ज्वाइन किया ! बिहारीओं के भी ग्रुप थे ! पढ़े - लिखे बिहार से बाहर बसे युवाओं का ग्रुप ! सबके अंदर एक ही भावना - मेरा बिहार ..देश की रफ़्तार के साथ कैसे जुडेगा ! अगर आप उनदिनो उन ग्रुप के मेंबर थे तो आपको उस छोटे ग्रुप में एक 'मिनी बिहार' नज़र आता !
इंटरनेट में बने याहूग्रुप दरअसल 'डिस्कशन फोरम' था - जिसको कई लोग समझ नहीं पाते थे ! फिर भी लोगों ने इस छोटे छोटे ग्रुप से बहुत कुछ निकालने की कोशिश की ! कई बार तरह तरह के काम के लिये 'चंदे' इकठ्ठे किये गए - थोडा बचकाना भी लगता था - पर् भावना ऐसी थी की आपको अपना 'झंडा' ऊँचा रखना था ! इन युवाओं में अपने 'राज्य' के लिये कुछ करने की बेचैनी थी - अजब सी बेचैनी - पर् साथ साथ 'बिहार के सारे रंग' ;-)
मुझे कुछ चीजें बहुत अच्छी लगी ! उनमे से एक था - 'मीडिया' का मुह बंद करना ! 'राष्ट्रीय मीडिया' ने अजब सा तमाशा बना दिया था - जब देखो तब 'बिहार' के लिये कुछ 'निगेटीव' ! इसमे आगे आये - आई टी - बी एच यू के अलुम्नी ठाकुर विकास सिन्हा जिन्हें सभी प्रेम से 'TVS' कहते हैं ! इनके साथ एक मजबूत कड़ी और थी इनका 'XLRI' का भी अलुम्नी होना - जिसके कारण 'अजित चौहान' इत्यादी लोग मजबूती से इनका साथ देते गए और नतीजा निकला - 'मीडिया' मुह बंद करने लगा ! कई लड़ाई इनलोगों ने लड़ी ! धीरे - धीरे इन्होने ने एक 'कोर इलीट ग्रुप - वन बिहार' भी बनाया ! फ्लड रीलीफ में इनलोगों ने पटना निवासी 'चन्दन सिंह' के एन जी ओ के द्वारा बहुत कुछ करने की कोशिश की ! लालू प्रसाद विदा हुए और नितीश के आगमन पर् इस ग्रुप ने एक बेहतरीन काफी टेबल बुक निकली - गौरवशाली बिहार ! जिसमे नवीन और चन्दन का बहुत बड़ा रोल था ! बिहार्टाईम्स के द्वारा आयोजित ग्लोबल मीट में  ये ग्रुप काफी सक्रिय भी रहा ! नवीन आई आई टी - खरगपुर के अलुम्नी हैं और नितीश जी के काफी करीबी भी - जिसके फलस्वरूप 'नालंदा खँडहर' के गेट के ठीक सामने 'नितीश' जी ने इनको जगह दी - जहाँ इन्होने 'मल्टीमीडिया' सेंटर खोला !  सुना है लाखों में कमाई है ! अभी ५-६ दिन पहले अजीत चौहान ने मुझे फेसबुक पर् बने 'बिहार' ग्रुप पर् एड किया - जबकि वहाँ करीब तीन सौ मेंबर पहले से मौजूद थे - थोडा आश्चर्य भी हुआ - सोचा ..चलो कोई बात नहीं .....याद तो किया :-) थैंक्स ..अजीत भाई !! :))
अभी हाल में ही इलेक्ट्रोनिक मीडिया के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बहुत गंदे ढंग से बिहार के लिये अपने शब्दों का प्रयोग किया - अजीत चौहान - टीवीएस टीम को पता चला और इनलोगों के उनको मुहतोड  जबाब दिया - उन्हें अपने शब्द वापस लेने पड़े ! व्यक्तिगत रूप से मुझे काफी खुशी मिली !
२००३ में ही मेरी जान पहचान हुई - संजीव रॉय से ! वो भी आई टी - बी एच यू के अलुम्नी ! टोएफेल और जी आर् ई के वर्ल्ड टोपर :) सिंगापूर में 'बिहार और झारखण्ड' का ग्रुप "बिझार" को चलने वाले ! बेहद मृदुभाषी और सभ्यता - संस्कृति को अपने अगले जेनेरेशन तक ले जाने को बेचैन ! ये ग्रुप सिंगापूर में बिहारीओं के बीच लोकप्रिय भी हुआ और 'रीयल ग्रुप' के रूप में सामने आया - यह ग्रुप साल में सभी पर्व त्योहारों में आपस में मिलता और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करता ! लोहा सिंह के कई नाटक - मैंने इस ग्रुप के वेब साईट पर् जा कर देखे हैं :) मेरे दालान को शुरू करने का सलाह 'संजीव रॉय ' का ही था ! वो सिर्फ बिहार ही नहीं रांची के अपने स्कूल और आई टी - बी एच यू अलुम्नी के बीच भी काफी व्यस्त रहते हैं साथ ही साथ अपनी कंपनी के 'ग्लोबल मैनेजर' भी हैं ! अब वो बे एरिया में शिफ्ट कर गए हैं - मैंने उनको 'मुंबई' के लिट्टी चोखा ग्रुप के बारे में बताया - तो वो बोले हाँ - मेरे ही आई टी - बी एच यू के सीनियर वहाँ एक्टिव हैं :) मै टीवीएस को याद कर मुस्कुरा दिया ! फिर संजीव रॉय बोले - कनाडा में 'मनोज कुमार सिंह' ने भी ऐसा ही ग्रुप बनाया है - मै फिर मुस्कुराया - क्योंकी मनोज भैया मेरे स्कूल के सीनियर ही नहीं 'दालान' के काफी बड़े फैन भी हैं :) मनोज भैया भी आई टी - बी एच यू के ही अलुम्नी हैं !
आई टी - बी एच यू के इन तीनो अलुम्नी को सलाम !
इंटरनेट से ही लोगों को जोड़ 'विभूती विक्रमादित्य और राम राज पांडे ' ने 'बिहार साईनटीफिक सोसाईटी' बना हर साल विश्व स्तर के कॉन्फेंस करते हैं ! यह काम आसान नहीं है ! इंटरनेट पर् दोस्ती तो बहुत जल्द होती हैं - पर् विश्वास बनाने में कई जनम भी लग् सकते हैं ! पर् अपने राज्य के लिये कुछ करने की जिद ने ऐसे लोगों को हर एक बाधा पार करने की क्षमता दी !
इन सबमे बिहारटाईम्स डॉट कोम के अजय कुमार का भी योगदान रहा ! वो १९९८ से लगातार अपनी साईट बिना किसी भेदभाव के चलाते रहे ! २००६ जनवरी में ग्लोबल मीट करवा - एन आर् बी की मजबूत आधार को और मजबूती दी ! पटना डेली भी है जो पटना के रंग बिरंगे फोटो और समाचारों के साथ अपने विजिटर्स का स्वागत करती है !
ये कोई फैशन नहीं है ! कोई जरूरत नहीं है ! यह एक भावना है ! मुझे बहुत अच्छी तरह याद है - सन २००४ में जब मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली के सभी अखबारों में 'वर्ल्ड पंजाबी फोरम' के तहत उनको बधाई सन्देश हाफ पेज में दिए गए थे !
सफर अभी लंबा है और बहुत सारी चीजों से लड़ना बाकी है !!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Monday, November 8, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा छठ

कल से ही अखबार में 'छठ पूजा' को लेकर हो रही तैयारी के बारे में समाचार आने लगे ! आज तो दिल्ली वाला 'हिंदुस्तान दैनिक' फूल एक पेज लिखा है ! कल दोपहर बाद देखा - फेसबुक पर् शैलेन्द्र सर ने एक गीत अपने वाल पर् लगाया था - शारदा सिन्हा जी का ! गीत सुनते सुनते रोआं खडा हो गया और आँख भर आयी !

"छठी मैया ...छठी मैया....." ..............

क्या लिखूं ? अपना वतन याद आ रहा है ! अपना गाँव - शहर - अपने लोग ! क्या खोया - क्या पाया ..इसका हिसाब तो बाद में होगा ! ये चमक - ये दमक - ये धन - ये दौलत - ये रोब - ये अकड - ये घमंड ..कभी कभी ये सब फीका लगता है ! खैर ...

दशहरा के बाद ही 'कैलेण्डर' में 'चिन्हा' लगा दिया जाता था - कहिया गाँव जाना है ! हमारे गाँव में एक बहुत खूबसूरत परंपरा थी - दशहरा से लेकर दीपावली के बीच 'नाटक' खेला जाता था ! कभी पहले पहुंचा तो ..नाटक में भाग ले लेता था ! अब कुछ नहीं होता - अब हर घर में टी वी है ! मेरे घर में एक परंपरा है - हर होली और छठ में परिवार के सभी लोगों के लिये 'कपड़ा' खरीदने का पैसा - बाबा देते हैं - आज उनकी उम्र करीब चौरासी साल हो गयी - फिर भी इस बार दशहरा में उनसे मिला तो 'छठ' के नाम पर् वो बच्चों और पत्नी के कपडे के लिये कुछ पैसा - मां को दिए - फिर मां ने हमारी पत्नी को दीं ! :) पैसा से ज्यादा 'आशीर्वाद' होता है !

बचपन में ये पैसा से हमलोग का कपड़ा खरीदाता था ! रेडीमेड का जमाना नहीं था ! मा बाबु जी के साथ रिक्शा से जाना - कपड़ा खरीदना - फिर उसको 'फेरने' जाना ;-) 'फेरते' वक्त बाबु जी नहीं जाते - खैर ..कपडा खरीदा गया ! दीपावली भी मन गया ! मुजफ्फरपुर में रहते थे - एक दिन पहले रिक्शा वाले को बोल दिया जाता की - सुबह सुबह ३ बजे आ जाना ! उस रात ..माँ रात भर कपडा को सूटकेस में डालती ! हल्का ठण्ड भी होता था सो स्वेटर वैगरह !

सुबह सुबह रिक्शा आ जाता ! सूटकेस रखा जाता ! एक रिक्शा पर् माँ और बहन और एक पर् बाबु जी और हम ! पैर को सूटकेस के ऊपर लटका के ! बाबु जी के गला में मफलर और एक हाफ स्वेटर ! चार बजे एक बस - रेलवे स्टेशन के सामने से खुलता था ! ठीक उसी वक्त एक ट्रेन 'कलकत्ता' से आता - हम लोग जब तक पहुंचते बस भर चूका होता ! सिवान के बच्चा बाबु का बस होता था - कंडक्टर - खलासी - ड्राईवर जान पहचान का सो सीट का इंतजाम हो जाता ! अब इमेजीन कीजिए - पूरा बस 'कलकतिया' सब से भरा हुआ ! "चुकुमुकू" कर के सीट पर् बैठ कर बीडी ! भर माथा 'कियो-कारपीन' तेल ! एक झोला और झोला में तरह तरह का साबुन :) और पाकीट में 'गोल वाला चुनौटी' ;-) खिडकी खोल के हवा खाता :)

गाँव से कुछ दूर पर् ही एक जगह था - वहाँ हम लोग उतरते ! माँ को चाय पीने का मूड होता ! तब तक बाबु जी देख रहे होते ही गाँव से कोई आया है की नहीं ! पता चलता की 'टमटम' आया हुआ है ! माँ और बहन टमटम पर् ..पूरा टमटम साडी से सजाया हुआ ! 'कनिया' :) हम और बाबु जी हाथी पर् ! हम लोग निकल पड़ते ..! वो लहलहाते खेत ! रास्ता भर हम बाबु जी को तंग करते जाते - ये खेत किसका है ? इसमे क्या लगा है ?

गाँव में घुसते ही - बाबु जी हाथी से उतर जाते और पैदल ही ! जो बड़ा बुजुर्ग मिलता - उसको प्रणाम करते - अपने बचपन के साथीओं से मिलते जुलते ! तब तक हम दरवाजे पर् पहुँच जाते ! बाबा को देख जो खुशी मिलती उस खुशी को बयान नहीं कर सकता ! वो खादी के हाफ गंजी में होते - सीसम वाला कुर्सी पर् - आस पास ढेर सारे लोग ! उनको प्रणाम करता और कूदते फांदते आँगन में ..दीदी( दादी)  के पास ! आँगन में लकड़ी वाला चूल्हा - उस चूल्हे से आलूदम की खुशबू ! आज तक वैसा आलूदम खाने को नहीं मिला :(  दरवाजे पर् कांसा वाला लोटा में पानी और आम का पल्लो लेकर कोई खडा होता ..माँ के लिये ! फिर 'भंसा घर' में जा कर 'कूल देवी' को प्रणाम करना ! इतने देर में हम 'दरवाजा - आँगन' दो तीन बार कर चुके होते ! ढेर सारे 'गोतिया' के भाई बहन - कोई रांची से - कोई मोतिहारी से - कोई बोकारो से ! कौन कब आया और कितने 'पड़ाके' साथ लाया :-) तब तक पता चलता की 'पड़ाका' वाला झोला तो मुजफ्फरपुर / पटना में ही छूट गया ! उस वक्त मन करता की 'भोंकार' पार कर रोयें ! गोतिया के भाई - बहन के सामने सारा इज्जत धुल जाता ! माँ को तुरंत खड़ी खोटी सुनाता ! दीदी ( दादी ) को ये बात पता चलता - फिर वो बाबा को खबर होता ! बाबा किसी होशियार 'साईकील' वाले को बुलाते - उसको कुछ पैसा देते की पास वाले 'बाज़ार' से पड़ाका ले आओ :)

दोपहर में हम बच्चों का डीयुटी होता की पूजा के परसाद के लिये जो गेहूं सुख रहा है उसकी रखवाली करो के कोई कौआ नहीं आये ! हम बच्चे एक डंडा लेकर खडा होते ! बड़ा वाला खटिया पर् गेहूं पसरा हुआ रहता ...फिर शाम को कोई नौकर उसको आटा चक्की लेकर जाता ! कभी कभी हम भी साथ हो जाते ! बिजली नहीं होता था ! आटा चक्की से एक विशेष तरह का आवाज़ आता ! वो मुझे बहुत अच्छा लगता था !

दादी छठ पूजा करती ! पहले बाबु जी भी करते थे ! आस पास सभी घरों में होता था ! नहा खा के दिन बड़ा शुद्ध भोजन बनता ! खरना के दिन का परसाद सभी आँगन में घूम घूम के खाना ! छठ वाले दिन - संझीया अरग वाले दिन - जल्दी जल्दी तैयार हो कर 'पोखर' के पास पहुँचाना ! बहुत साल तक माँ नहीं जाती - फिर वो जाने लगीं ! वो सीन याद आ रहा है और आँखें भींग रही हैं ! १५ - २० एकड़ का पोखर और उसके चारों तरफ लोग ! रास्ता भर छठ के गीत गाते जाती महिलायें ! भर माथा सिन्दूर ! नाक से लेकर मांग तक ! पूरा गाँव आज के दिन - घाट पर् ! क्या बड़ा - क्या छोटा - क्या अमीर - क्या गरीब ! गजब सा नज़ारा ! पोखर के पास वाले खेत में हम बच्चे ..पड़ाका में बिजी ..तब तक कोई आता और कहता ..'अरग दीआता'  ...पड़ाका को वहीँ जैसे तैसे रखकर दादी के पास ..वो "सूर्य" को प्रणाम कर रही हैं ....आस पास पूरा परिवार ...क्या कहूँ इस दृश्य के बारे में ....बस कीबोर्ड पर् जो समझ में आ रहा है ..लिखते जा रहा हूँ ....

हमारे यहाँ 'कोसी' बंधाता है - आँगन में ! उस शाम जैसी शाम पुर साल नहीं आती ! बड़ा ही सुन्दर 'कोसी' ! चारों तरफ ईख और बीच में मिट्टी का हाथी उसके ऊपर दीया ...! घर के पुरुष कोसी बांधते ..हम भी पुरुष में काउंट होते :)  बड़े बड़े पीतल के परात में परसाद ! वहाँ छठ मैया से आशीर्वाद माँगा जाता - हम भी कुछ माँगते थे :) फिर दादी को प्रणाम करना !

अब यहाँ एक राऊंड फिर से दरवाजा पर् 'पड़ाका' ! पूरा गाँव हील जाता ;-) दादी कम्बल पर् सोती सो उनके बड़े वाले पलंग पर् जल्द ही नींद आ जाती ...सुबह सुबह ..माँ जगा देती ....कपड़ा बदलो ....पेट्रोमैक्स जलाया जाता ...कई लोग "लुकारी" भी बनाते ! कई पेट्रोमैक्स के बीच में हम लोग फिर से पोखर के पास निकल पड़ते ! दादी खाली पैर जाती थी ! पूरा गाँव ..नहर के किनारे ....  एक कतार में ......पंडीत जी की खोजाई होती ..'बनारस वाला पत्रा' देख कर वो बताते ...सूरज भगवान कब उगेंगे ....उसके १० -१५ मिनट पहले ही दादी पोखर के किनारे पानी के खडा होकर 'सूर्य' भगवान को ध्यानमग्न करती ! अरग दिआता !

पूजा खत्म हो चूका होता ! पोखर से दरवाजे लौटते वक्त ...तरह तरह का परसाद खाने को मिलता ! किसी का देसी घी में तो किसी का 'तीसी के तेल ' का :) फिर दरवाजे पर् आ कर 'गन्ना चूसना' :)) फिर हम दादी के साथ बैठ कर खाते - पीढा पर् !

अब दिल धक् धक् करना शुरू कर देता ..बाबु जी को देखकर डर लगता ..मालूम नहीं कब वो बोल दें ...मुजफ्फरपुर / पटना वापस लौटना है :( बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती ...माँ को देखता ...वो धीरे धीरे 'टंगना' से सिर्फ हम लोगों के ही कपडे चुन चुन कर एक जगह रख रही होतीं ....ऐसा लगता ..अब दिल बाहर आ जायेगा ....तब तक देखता ..टमटम सजा खडा है ..पता चलता की 'मोतीहारी' वाले बाबा का परिवार वापस जा रहा है ...सब गोतिया - पटीदार के भाई बहन हम ऐसे मिलते जैसे ..मालूम नहीं अब कब मिलेंगे ....बाबा के पास दौर कर जाता ..काश वो एक फरमान जारी कर दें ...एक दिन और रुकने का ....बाबा ने फरमान जारी कर दिया और हम लोग एक दिन और रुक गए :))

अगले दिन ...जागते ही देखता की ..बाबू जी 'पैंट शर्ट 'में :( मायूस होकर हम भी ! माँ का खोइंछा भराता..कुल देवी को प्रणाम ..दादी के आँखें भरी ..माँ की ...दादी - बाबा आशीर्वाद में कुछ रुपये ..पॉकेट में छुपा कर रख लेता :)

फिर होली का इंतज़ार .....

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मालूम नहीं ..क्या लिखा ..कैसा लिखा ..बस बिना संपादन ..एक सांस में लिख दिया ....कम्मेंट जरुर देंगे !


छठ का गीत !!





रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Wednesday, November 3, 2010

बिहारी प्राईड : भाग दो

अभी हाल तक मलय स्कूल में था ! बारहवीं की परीक्षा के बाद जहाँ उसके सभी दोस्त आगे की पढाई के लिये कमर कस रहे थे - मलय अमरीका पहुँच छः महीने का 'हवाई जहाज' उड़ाने का ट्रेनिंग लिया और अब मात्र २२-२३ साल में वो 'कैप्टन' रैंक पर् पहुँच गया ! अभय मरे स्कूल का दोस्त है और मरे साथ ही काम करता है - मलय उसका छोटा साला है ! जब कभी मै मिलता हूँ - दोस्त के साले के नाते हंसी - मजाक ! बात बात में ही पूछ दिया - कितना मिलता है ? बोला - काट कूट के ५ लाख महीना ! अब वो बी एम डब्लू का कोई नया सीरीज खरीदने वाला है ! इतने कम उमर में इतना तनखाह फिर भी बेहद शर्मीला ! नॉएडा के आम्रपाली ग्रुप के एक प्रोजेक्ट में खुद के लिये एक पेंट हॉउस भी बुक किया है !

ये एक मलय नहीं है - हो सकता है आपके जान पहचान में भी ऐसे कई बिहारी हों ! लालू-राबड़ी के पन्द्रह साल के शासन काल में कई परिवारों को बिहार से दिल्ली - मुंबई आने पर् मजबूर कर दिया ! ये लोग कोई बड़ा सपना लेकर नहीं आये थे - बस दो वक्त की रोटी कि तलाश में आये थे ! संजीव मरे साथ पढता था - पर् दूसरे कॉलेज में ! सिविल इंजीनियर - इरादा - बिहार सरकार में नौकरी का ! पर् बिहार नसीब में नहीं था ! कहता है - नौकरी मिलने के ठीक पहले वाले महीने में - पॉकेट में मात्र कुछ रुपये बच गए थे - इंडोनेशिया - मलेशिया इत्यादी जगहों से काम कर के कुछ पैसा जमा किया और चाचा के बिजिनेश में छोटा पार्टनर बन गया ! जब पूरी दुनिया आर्थिक रूप से टूट रही थी - संजीव ने दूसरे बिहारी के साथ मिलकर अपनी कंपनी २००६ में शुरू की और इस साल उसने नॉएडा में १५० एकड लेकर पुरे एन सी आर में हंगामा खड़ा कर दिया - जिसकी सरकारी कीमत करीब एक हज़ार करोड होती है ! साल में २ नए गाड़ी जरूर खरीदता है - उसके पार्टनर और मरे पुराने मित्र मनोज रे कहते हैं - अब हम बिहारीओं को बाकी के लोग सीरियस लेने लगे हैं ! हमारी पहचान 'पुरबिया मजदूर' से मालिक वाली होने लगी है ! इन दोनों की कम्पनी 'गारडेनिया' अब अगले साल आई पी ओ लाने वाली है - देखिये आगे आगे क्या होता है ? पर् ..इस जोखिम के खेल में बहुत साहस चाहिए !

और आम्रपाली ग्रुप के अनील शर्मा का क्या कहना :) कहते हैं - हम तो किसान के बेटे थे - बिहार में क्षीण होती संभावनाएं और कुछ करने कि तमन्ना ने आज 'एन सी आर' का बादशाह बना दिया - बेहद मीठे बोलने वाले ! दिल्ली से लेकर पटना तक - बिहारी प्राईड से जुड़े किसी भी कार्यक्रम को वो प्रायोजित करने से नहीं चूकते ! कल तक पटना की सडकों पर् पीले रंग की स्कूटर से चलने वाले अनील शर्मा का काफीला जब नॉएडा से दिल्ली एअरपोर्ट के लिये निकलता है - 'ओबामा' भी शरमा जाएँ :) इस तेज रफ़्तार की बढ़त में कई और कारक हो सकते हैं - पर् 'इरादा' बुलंद है ! हिटलर पर् एक सिनेमा भी बना रहे हैं !

बक्सर निवासी संजीव श्रीवास्तव पैन बिहारी इमेज के साथ हैं ! एन सी आर से कमाए पैसे बिहार में लगाना चाहते हैं ! बिहार के परिवहन मंत्री के बेटे के साथ मिलकर कंकडबाग में ४०० बेड का हॉस्पीटल और कई होटल ! बयूरोक्रैट परिवार से आते हैं - पता है - अपर क्लास को क्या पसंद है :) सो उनके सभी प्रोजेक्ट काफी इलीट होते हैं ! अभी हाल में ही 'आई बी एन - सी एन एन ' के सागरिका के प्रोग्राम में नज़र आये थे !

कवी कुमार से बेहतर बोलने वाला बिहारी मैंने आजतक नहीं देखा ! जमींदार घराने से आये हुए - कवी कुमार इंडियाबुल्स के एक मजबूत खम्भे थे ! समीर गहलौत के सबसे नजदीकी है ! समीर ने उनकी प्रतिभा का उपयोग और सम्मान भी किया ! बड़े ही आलिशान कोठी में - नॉएडा में रहते हैं ! कहते हैं - हम हर सुबह 'दही चुडा' ही नास्ता करता हूँ ! अपने गाँव सीतामढी में सिनेमा सूटिंग के लिये एक स्टूडियो बनाया है ! हर दूसरे महीने बिहार जाते हैं ! अपने शहर में जमीन खरीद .कई परियोजनाओं में पैसा लगाना चाह रहे हैं ! एक भोजपुरी सिनेमा भी बनाया है - कब अइबू अंगनवा हमार - और उसको नॉएडा के मल्टीप्लेक्स में भी लगवाया !

ये अनगिनत बिहारी हैं - जो घर  से बाहर आकर 'बिहारी प्राईड'  और रोजगार पैदा कर रहे हैं और सबके दिल में एक बिहार बसता है - सभी बिहार के लिये कुछ करना चाहते हैं !

क्रमशः


यह जारी रहेगा ....कृपया आपको कुछ और जानकारी हो तो मेल कीजिए mukhiya.jee@gmail.com


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

Monday, November 1, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरी दीपावली

एक बार फिर दिवाली आ गया ! हर साल आता है ! यादों का मौसम एक बार फिर आया ! अभी अभी पटना से लौटा हूँ - कई लोग फिर से बोलने पूछने लगे - 'दिवाली में भी आना है ?' अरे ..मेरे भाई ..हम पेटभरुआ मजदूर हैं ..कहाँ इतना पैसा बचाता है कि ..हर पर्व त्यौहार में घर-गाँव जा सकें !

स्कूल में पढते थे ! कई दिन पहले से सड़क पर् ईट लगा के चौकी पर् 'पड़ाका' ( पटाखा ) बिकता था ! स्कूल से लौटते वक्त उन पडाकों को मन भर देखना - दोस्तों से तरह तरह के 'पडाकों' के बारे में बात करना - खासकर 'बम' ..एटम बम ..बीडिया बम.. हई बम ..हौऊ बम - सड़क पर् लगे चौकी पर् चादर बिछा कर पठाखे को देख उनको एक बार छूना ...! फिर ..घर में पिछले साल के बचे पटाखे खोजना और उनको छत पर् चटाई बिछा करने धूप दिखाना ! उफ्फ़..वो भी क्या दिन थे !

दिवाली के एक दो दिन पहले से ही .खुद को रोक नहीं पाते ..कभी बालकोनी तो कभी छत पर् जा कर एक धमाका करना और उस धमाके के बाद खुद को गर्वान्वीत महसूस करना ! फिर ये पता करना की सबको पता चला की नहीं ..मैंने ही ये धमाका किया था :-) कार के मोबील का डब्बा होता था - उस तरह के कई डब्बों को दिवाली के दिन के लिये जमा करना और फिर दिवाली के दिन उन डब्बों के नीचे बम रख उनको आसमान में उडाना :-)

धनतेरस के दिन दोपहर से ही 'बरतन' के दूकानदारों के यहाँ भीड़ होती थी - जो बरतन उस दिन खरीदाता वो 'धनतेरस वाला बरतन' ही कहलाता था ! अब नए धनीक बैंक से सोना का सिक्का खरीदते हैं - तनिष्क वाला डीलर धनतेरस के दिन राजा हो जाता है ! पब्लिक दुकान लूट लेता है !

दीया का जमाना था - करुआ तेल डाल के - स्टील के थरिया में सब दीया सजा के घर के चारों तरफ दीया लगाना  ! इस काम में फुआ - बहन लोग आगे रहती थीं - हमको इतना पेशेंस नहीं होता ! बाबु जी को कभी लक्ष्मी पूजन में शरीक होते नहीं देखा - मा कुछ आरती वैगरह करती थीं - हम लोग इतने देर बड़ी मुश्किल से खुद को रोक पाते ! पूजा के बाद लड्डू खाया और फरार !

कॉलेज गया तो - 'फ्लश' ! एक दोस्त होता है - पंडित ! बेगुसराय का पंडित ! बहतर घंटा लगातार 'फ्लश' का रिकॉर्ड - पंडित  के चक्कर में ! बहुत बड़ा करेजा था उसका ! अब तो रिलाइंस में मैनेजर है - लेकिन कॉलेज के ज़माने उसके दबंगई का कोई जोड़ नहीं ! दिवाली के दस दिन पहले से ही पंडित के यहाँ कॉलेज के सभी  वेटरन जुआरी सीनियर - जूनियर पंडित के कमरे में पहुँच जाते ! पब्लिक के जोर पर् 'नेता' भी शामिल होते ! हमारा पूरा गैंग ! हंसी मजाक और कभी कभी मामला काफी सीरिअस भी ! हारने पर् हम अपना जगह बदलते या फिर कपड़ा भी - यह बोल कर की - यह 'धार' नहीं रहा है ! :-) कई दोस्त इस दिन गर्ल्स होटल के पास मिठाई और पटाखे के साथ देखे जाते ! :-)

बचपन में दीवाली की रात कुछ पटाखे 'छठ पूजा' के लिये बचा कर रखना - और फिर अगले सुबह छत पर् जा कर यह देखना की ..पटाखे के कागज कितने बिखरे पड़े हैं :-) अच्छा लगता था !

नॉएडा - गाजियाबाद आने के बाद - मुझे पता चला की - इस दिन 'गिफ्ट' बांटा जाता है ! अब मुझ जैसे शिक्षक को कौन गिफ्ट देगा :) खैर , बिहार के कुछ बड़े बड़े बिल्डर यहाँ हो गए हैं और पिछले साल तक दोस्त की तरह ही थे - सो वो कुछ कुछ मेरी 'अवकात' को ध्यान में रखते हुए - भेज देते थे :-) घरवालों को भी लगता कि हम डू पैसा के आदमी हैं :-) लेकिन ..इस गिफ्ट बाज़ार को देख मै हैरान हूँ ! मेरा यह अनुमान है की कई ऐसे सरकारी बाबु हैं - जिनको दिवाली के दिन तक करीब एक करोड तक का कुल गिफ्ट आता है !  जलन होती है - पर् सब दोस्त ही हैं - सो मुह बंद करता हूँ ;-) वैसे इनकम टैक्स वाले अफसर भाई लोग को '१-२ लाख' का जूता तो मैंने मिलते देखा है ! मालूम नहीं ये जूता कैसे चमड़ा से बनता है :(

इस बार मै भी धनतेरस में एक गाड़ी खरीदने का सोचा था ! डीलर भी उस दिन देने के मूड में नहीं था ! कोई नहीं - अगला साल ! पटना के फेमस व्यापारी अर्जुन गुप्ता जी जो मेरे ससुराल वालों के काफी करीबी हैं - कह रहे थे - नितीश राज में हर धनतेरस को लगभग ४०-५० टाटा सफारी बिकता है !

पवन जी ने कुछ कार्टून "दालान" के लिये भेजे हैं - आप सभी इसका आनंद उठायें :)



पवन जी का एक फैन पेज फेसबुक पर् है - जिसका लिंक है

http://facebook.com/pawantoon

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !