अमिताभ और जया बच्चन से एक सवाल !
जया जी का एक बयान आया है ! स्लाम्डाग विदेशी फ़िल्म है - भारत में इतना शोर क्यों हैं ? बात में दम है ! अमिताभ जी सन १९८४ में एक चुनाव लड़े थे - अलाहाबाद से लोकसभा चुनाव ! पर उनके जितने की खुशी में "मुजफ्फरपुर" में मिठाई बटी थी ! वोह भी खासकर एक जाती विशेष के द्वारा ! पटना में भी बटी थी ! इसमे कोई अजीब बात नही है ! हम हर कोई कहीं न कही एक दुसरे से जुड़े हैं ! मेरी पहचान मेरे घर में "रंजन" व्यक्ति विशेष से है ! घर से बहार मेरी पहचान मेरे परिवार से जुडी है ! दुसरे गाँव में मै फलाना गाँव का कहलाता हूँ ! दिल्ली में बिहारी कहलाता हूँ और बंगलुरु और मुंबई में उत्तर भारतीय ! वहीँ अमरीका में एक एशियन और मंगल ग्रह पर एक पृथ्वी वासी ! और जब अमेरिका में कोई भारतीय मिलेगा तब हम उसका जात नही पूछेंगे जैसा की हम बिहार में कोई बिहारी मिले तो ऐसा कर सकते हैं ! अगर मुजफ्फरपुर के कायस्थ जाती के लोग अमिताभ की १९८४ की अल्लाहबाद की जीत में अपनी खुशी खोज सकते हैं फिर हम सब भारतीय "रहमान , गुलज़ार और पुत्तोकोटी " में अपनी जीत क्यों नही ?
ठीक उसी तरह यह सिनेमा को बनाया तो विदेशी लोग हैं - लेकिन इस सिनेमा में कई कलाकार या सभी सभी के कलाकार भारतीय हैं संगीत भारतीये हैं और अधिकतर तकनिकी लोग भारतीये हैं ! रहमान साहब और बोब्बी जिंदल में फरक है ! रहमान साहब विशुध्ध भारतीय हैं और हम सबको उनको नाज़ है ! वैसे उन्होंने ने कई सिनेमा में बहुत ही बढ़िया संगीत दिया है !
हर कलाकार और तकनिकी लोग अपने आप में सम्पूर्ण हैं - यह सौभाग्य है की सब को एक ऐसे छत के नीचे काम करने का अवसर मिला - जहाँ से एक राह निकली और "ऑस्कर" ..."ऑस्कर" और नई पीढी को प्रेरणा !
जहाँ तक गरीबी को दिखने से लोगों को ऐतराज है फ़िर तो हमारे अधिकतर सिनेमा गरीबी और भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द ही घुमते हैं !
चलिए गुलज़ार साहब के गीत से इस लेख को समाप्त करते हैं -
"आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं ...आप से भी ख़ूबसूरत आपके अंदाज़ हैं ....."
और सुभास घई की सलाह "जय हो " शब्द को इस गीत से जोड़ना सचमुच कमाल हो गया !
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !
जया जी का एक बयान आया है ! स्लाम्डाग विदेशी फ़िल्म है - भारत में इतना शोर क्यों हैं ? बात में दम है ! अमिताभ जी सन १९८४ में एक चुनाव लड़े थे - अलाहाबाद से लोकसभा चुनाव ! पर उनके जितने की खुशी में "मुजफ्फरपुर" में मिठाई बटी थी ! वोह भी खासकर एक जाती विशेष के द्वारा ! पटना में भी बटी थी ! इसमे कोई अजीब बात नही है ! हम हर कोई कहीं न कही एक दुसरे से जुड़े हैं ! मेरी पहचान मेरे घर में "रंजन" व्यक्ति विशेष से है ! घर से बहार मेरी पहचान मेरे परिवार से जुडी है ! दुसरे गाँव में मै फलाना गाँव का कहलाता हूँ ! दिल्ली में बिहारी कहलाता हूँ और बंगलुरु और मुंबई में उत्तर भारतीय ! वहीँ अमरीका में एक एशियन और मंगल ग्रह पर एक पृथ्वी वासी ! और जब अमेरिका में कोई भारतीय मिलेगा तब हम उसका जात नही पूछेंगे जैसा की हम बिहार में कोई बिहारी मिले तो ऐसा कर सकते हैं ! अगर मुजफ्फरपुर के कायस्थ जाती के लोग अमिताभ की १९८४ की अल्लाहबाद की जीत में अपनी खुशी खोज सकते हैं फिर हम सब भारतीय "रहमान , गुलज़ार और पुत्तोकोटी " में अपनी जीत क्यों नही ?
ठीक उसी तरह यह सिनेमा को बनाया तो विदेशी लोग हैं - लेकिन इस सिनेमा में कई कलाकार या सभी सभी के कलाकार भारतीय हैं संगीत भारतीये हैं और अधिकतर तकनिकी लोग भारतीये हैं ! रहमान साहब और बोब्बी जिंदल में फरक है ! रहमान साहब विशुध्ध भारतीय हैं और हम सबको उनको नाज़ है ! वैसे उन्होंने ने कई सिनेमा में बहुत ही बढ़िया संगीत दिया है !
हर कलाकार और तकनिकी लोग अपने आप में सम्पूर्ण हैं - यह सौभाग्य है की सब को एक ऐसे छत के नीचे काम करने का अवसर मिला - जहाँ से एक राह निकली और "ऑस्कर" ..."ऑस्कर" और नई पीढी को प्रेरणा !
जहाँ तक गरीबी को दिखने से लोगों को ऐतराज है फ़िर तो हमारे अधिकतर सिनेमा गरीबी और भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द ही घुमते हैं !
चलिए गुलज़ार साहब के गीत से इस लेख को समाप्त करते हैं -
"आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं ...आप से भी ख़ूबसूरत आपके अंदाज़ हैं ....."
और सुभास घई की सलाह "जय हो " शब्द को इस गीत से जोड़ना सचमुच कमाल हो गया !