Monday, March 5, 2012

मेरा गाँव - मेरा देस - होली पार्ट - २

सुबह सुबह किसी ने पूछ दिया - इंदिरापुरम में आप लोग होली कैसे मनाते हैं ? अब हम क्या बोलें - कुछ नहीं - सुबह से पत्नी - दही बड़ा , मलपुआ , मीट और पुलाव बनाती हैं ! दिन भर खाते हैं - ग्यारह बजे अपने फ़्लैट से नीचे उतर कुछ लोगों को रंग / अबीर लगाया - फोन पर् टून् - टून् फोन किया - एसएमएस किया और एसएमएस रिसीव किया - दोपहर में स्कूल - कॉलेज के बचपन / जवानी वाले दोस्तों की टीम आएगी - सभी के सभी बेहतरीन व्हिस्की की बोतल हाथ में लिये - घिघिआते हुए पत्नी की तरफ देखूंगा - वो आँख दिखायेगी - हम् निरीह प्राणी की तरह उससे परमिशन लेकर - दो घूँट पियेंगे - गला में तरावट के लिये - तब तक दोस्त महिम लोग 'मीट और पुआ' खायेगा - फिर लौटते वक्त - थोडा बहुत अबीर ! हो गया होली - बीन बैग पर् पसर के टीवी देखते रहिए ! 

मुह मारी अइसन होली के :( 

क्या सभ्यता है :) मदमस्त ऋतुराज वसंत में होली - बुढ्ढा भी जवाँ हो जाए - एकदम प्रकृति के हिसाब से पर्व - त्यौहार !  

होली बोले तो - ससुराल में ! जब तक भर दम 'सरहज - साली - जेठसर ' से होली नहीं खेला ..क्या खेला ? और तो और पहली होली तो ससुराल में ही मनानी चाहिए ! 'देवर - नंदोशी' से अपने गालों में रंग नहीं लगवाया - फिर तो जवानी छूछा ही बीत गया ! समाज के नियम को सलाम ! मौके के हिसाब से स्वतंत्रा मिली हुई है - मानव जाति एक ही बंधन में बंध के ऊब जाता है - शायद - तभी तो ऐसे रिश्ते बनाए गए ! एक से एक बुढ्ढा 'ससुराल' पहुंचाते ही रंगीन हो जाता है ;) 

दामाद जी अटैची लेकर ससुराल पहुँच गए - पत्नी पहले से ही वहाँ हैं - कनखिया के एक नज़र पत्नी को देखा - भरपूर देखा - सरहज साली मिठाई लेकर पहुँच गयी ! पत्नी बड़े हक से 'अटैची' को लेकर कमरे में रख दी !   तब तक टेढा बोलने वाला - हम उम्र 'साला' पहुँच गया - पूछ बैठेगा - का मेहमान ..बस से आयें हैं  की कार से  ..ससुर सामने बैठे हैं ..आपको उनका लिहाज भी करना है ..लिहाज करते हुए जबाब देना है ...दामाद बाबु कुछ जबाब देंगे ..जोर का ठहाका लगेगा ...तब तक रूह आफजा वाला शरबत लेकर 'सास' पहुँच जायेंगी - बड़ी ममता से आपको देखेंगी ...'सास - दामाद' का रिश्ता भी अजीब है .."घर और वर्" कभी मनलायक नहीं होता ..कैसा भी घर बनवा दीजिए ..कुछ कमी जरुर नज़र आयेगी ..बेटी के लिये कैसा भी वर् खोज लाईये ..कुछ कमी जरुर नज़र आयेगी ! 

होली कल है ! अब आप नहा धो कर 'झक - झक उज्जर गंजी और उज्जर लूंगी' में हैं - दक्षिण भारतीय सिनेमा के नायक की तरह ! छोटकी साली को बदमाशी सूझेगी - आपके सफ़ेद वस्त्रों को कैसे रंगीन किया जाए ..वो प्लान बना रही होगी ...बहन का प्यार देखिये ..वो अपना सारा प्लान अपनी बड़ी बहन यानी आपकी  पत्नी को बता देगी ..और आपकी पत्नी इशारों में ही आपको आगे का प्लान बता देगी ...बेतिया वाली नयकी सरहज भी उसके प्लान में शामिल हो जायेगी ...[ आगे का कहानी सेंसर है ] 

आज होली है ...बड़ी मुद्दत बाद आप देर रात सोये थे ;) ...सुबह देर से नींद खुली नहीं की ..सामने स्टील के प्लेट में पुआ - पकौड़ी तैयार है ...जितना महीन ससुराल ..उतने तरह के व्यंजन ...तिरहुत / मिथिला में तो पुरेगाओं से व्यंजन आता है ..'मेहमान' आयें हैं ..साड़ी के अंचरा में छुपा के ..व्यंजन आते हैं ..अदभुत है ये सभ्यता ! 

अभी आप व्यंजन के स्वाद ले ही रहे हैं ...तब तक आपका टीनएज साला ...स्टील वाला जग से एक जग रंग  फेंकेगा ...आप बस मुस्कुराइए ..उसको ससुर जी के तरफ से एक झिडक मिलेगी ..वो भाग जायेगा ..अब आप होली के मूड में हैं...तब तक आपका हमउम्र साला आपसे कारोबार का सवाल पूछने लगेगा ...आप अंदर अंदर उसको मंद बुध्धी बोलेंगे - साले को यही मौक़ा मिला था ..ऐसा सवाल पूछने का ..बियाह के पहले काहे नहीं पता किया था ..! हंसी मजाक का दौर ...खाते - पीते समय गुजरने लगेगा ...तब तक ..सुबह से गायब एक और साला जो थोड़ा ढीठ और मुहफट है ...आपको इशारा से एक कोना में बुलाएगा ..आप सफ़ेद लूंगी संभालते हुए उसके पास पहुंचेंगे ...वो धीरे से पूछेगा ...'मेहमान ..आपको 'चलता' है ? न् "...अब आपको यहाँ एकदम शरीफ जैसा व्यव्हार करना है ...पत्नी ने जैसा कल रात समझाया था ..वैसा ही ...आप उसको बोलेंगे ...'क्या "चलता" है ? ' वो गुस्सा के बोलेगा - अरे मेरे गाँव के राम टहल बाबु का बेटा आर्मी में है ...सबसे बढ़िया वाला लाया है ..कहियेगा तो इंतजाम हो जायेगा ...आप चुप चाप उसको एक शब्द में कुछ ऐसा जबाब दीजिए जिससे वो समझ जाए ..आप आज नहीं 'लेंगे' !

अचनाक से आपको युद्ध वाला माहौल नज़र आएगा - चारों तरफ से - छोटका साला , साली , सरहज आप पर् रंगों का बौछार करेंगे ..यहाँ तक की घर में काम करने वाली 'मेड' भी ! आप अपने स्वभानुसार प्रतिक्रिया देंगे ...अब देखिये ..अभी तक आपके ससुर जी जो आपके बगल में बैठे थे ...वो धीरे से उठ कर अपने कमरे में चले गए ....आपने पत्नी की तरफ एक शरारत भरी नज़र से देखा और .....होली शुरू :)))

[ यह पोस्ट एक कल्पना है ... पसंद आया हो तो एक लाईक / कमेन्ट ]

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, March 4, 2012

मेरा गाँव - मेरा देस - पटना की होली

छठ / होली में जो अपने गाँव - घर नहीं गया - वो अब 'पूर्वी / बिहारी' नहीं रहा ! मुजफ्फरपुर / पटना में रहते थे तो हम लोग भी अपने गाँव जाते थे - बस से , फिर जीप से , फिर कार से ! जैसे जैसे सुख सुविधा बढ़ने लगा - गाँव जाना बंद हो गया ! अब पटना / नॉएडा / इंदिरापुरम में ही 'होली' मन जाता है ! चलिए ..होली की कुछ यादें ताजा करते है ! 

चलिए आज पटना की होली याद करते हैं ! होली के दस दिन पहले से माँ को मेरे कुर्ता - पायजामा का टेंशन हो जाता था क्योंकी पिछला साल वाला कुर्ता पायजामा छोटा हो चुका होता ! मेरा अलग जिद - कुछ भी जाए - 'सब्जीबाग' वाला पैंतीस रुपैया वाला कुर्ता तो हम किसी भी हाल में नहीं पहनेंगे ! बाबु जी का अलग थेओरी - साल में एक ही दिन पहनना है ! बाबु जी उधर अपने काम धाम पर् निकले - हम लोग रिक्शा से सवार - हथुआ मार्केट - पटना मार्केट  ! घूम घाम के कुछ खरीदा गया ...सब बाज़ार में 'हैंगर में लटका के कुर्ता रखता था ..झक झक उजला कुर्ता ! पटना मार्केट के शुरुआत में ही एक दो छोकरा लोग खडा रहता - हाथ में पायजामा का डोरी लेकर ;) आठ आना में एक ;)

अब कुर्ता - पायजामा के बाद - मेरा टारगेट 'पिचकारी' पर् होता - गाँव में पीतल का बड़ा पिचकारी और शहर में प्लास्टिक :( 'सस्तऊआ प्लास्टिक का कुछ खरीदा गया - रंग के साथ - हम हरा रंग के लिये जिद करते - माँ कोई हल्का रंग - किसी तरह एक दो डिब्बा हरा रंग खरीद ही लेता था !

धीरे धीरे बड़ा होते गया ...पिता जी के सभी स्टाफ होली में अपने गाँव चले जाते सो होली के दिन 'मीट खरीदने' का जिम्मा मेरे माथे होता था ! एक दिन पहले जल्द सो जाना होता था ! भोरे भोरे मीट खरीदने 'बहादुरपुर गुमटी' ! जतरा भी अजीब ..स्कूटर स्टार्ट नहीं हो रहा ...टेंशन में साइकिल ही दौड़ा दिया ..हाँफते हुन्फाते हुए 'चिक' के पास पहुंचे तो देखे तो सौ लोग उसको घेरे हुए है ..देह में देह सटा के ..मेरा हार्ट बीट बढ़ गया ...होली के दिन 'खन्सी का मीट' नहीं खरीद पायेंगे ...जीना बेकार है वाला सेंटीमेंट हमको और घबरा देता था ...इधर उधर नज़र दौडाया ...डब्बू भईया नज़र आ गए ...एक कोना में सिगरेट धूकते हुए ...सुने थे ..डब्बू भईया का मीट वाला से बढ़िया जान पहचान है ...अब उनके पास हम सरक गए ...लाइए भईया ..एक कश हमको भी ..भारी हेडक है ..ई भीड़ देखिये ..लगता है हमको आज मीट नहीं मिलेगा ...डब्बू भईया टाईप आईटम बिहार के हर गली मोहल्ला में होता है ..हाफ पैंट पहने ..एक पोलो टी शर्ट ..आधा बाल गायब ...गला में ढेर सारा बध्धी ..हाथ में एक कड़ा ...स्कूटर पर् एक पैर रख के ..बड़े निश्चिन्त से बोले ...जब तक हम ज़िंदा है ..तुमको मीट का दिक्कत नहीं होगा ..उनका ई भारी डायलोग सुन ..दिल गदगद हो गया ...तब उधर से वो तेज आवाज़ दिए ....'सलीम भाई' ...डेढ़ किलो अलग से ..गर्दन / सीना और कलेजी ! तब तक डब्बू भईया दूसरा विल्स जला लिये ..अब वो फिलोसफर के मूड में आने लगे ..थैंक्स गोड..सलीम भाई उधर से चिल्लाया ...मीट तौला गया ! जितना डब्बू भईया बोले ...उतना पैसा हम दे दिए ...फिर वो बोले ..शाम को आना ...मोकामा वाली तुम्हारी भौजी बुलाई है ! डब्बू भईया उधर 'सचिवालय कॉलोनी' निकले ...हम इधर साइकिल पर् पेडल मारे ...अपने घर !
मोहल्ला में घुसे नहीं की ....देखे मेरे उमर से पांच साल बड़ा से लेकर पांच साल छोटा तक ...सब होली के मूड में है ! सबका मुह हरा रंग से पोताया हुआ ! साइकिल को सीढ़ी घर में लगाते लगाते ..सब यार दोस्त लोग मुह में हरा रंग पोत दिया ! घर पहुंचे तो पता चला - प्याज नहीं है ...अब आज होली के दिन कौन दूकान खुला होगा ...पड़ोस के साव जी का दूकान ..का किवाड आधा खुला नज़र आया ...एक सांस में बोले ...प्याज - लहसुन , गरम मसाला ..सब दे दीजिए ...! सब लेकर आये तो देखा ..मा 'पुआ' बना दी हैं ...प्याज खरीदने वक्त एक दो दोस्त को ले लिया था ...वो सब भी घर में घुस गए ...मस्त पुआ हम लोग चांपे ..फिर रंगों से खेले ! 

कंकरबाग रोड पर् एक प्रोफेशनल कॉलेज होता है - यह कहानी वहीँ के टीचर्स क्वाटर की है - हमलोग के क्वाटर के ठीक पीछे करीब दो बीघे के एक प्लाट में एक रिटायर इंजिनियर साहब का बंगलानुमा घर होता था ! हमारी टोली उनके घर पहुँची ! बिहार सरकार के इंजिनियर इन चीफ से रिटायर थे - क्या नहीं था - उनके घर ! जीवन में पहली दफा 36 कुर्सी वाला डाइनिंग टेबुल उनके घर ही देखा था ! एकदम साठ और सत्तर के दसक के हिन्दी सिनेमा में  दिखने वाला 'रईस' का घर ! पिता जी के प्रोफेशन से सम्बंधित कई बड़े लोगों के घर को देखा था - पर् वैसा कहीं नहीं देखा ! हर होली में मुझे वो घर और वो रईस अंदाज़ याद आता है ! 

देखते देखते दोपहर हो गया - मीट बन् के तैयार ! अब नहाना है ! रंग छूटे भी तो कैसे छूटे ...जो जिस बाथरूम में घुसा ..घुसा ही हुआ है :)

क्रमशः 




रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !