Saturday, December 29, 2007

तारे जमीन पर और भी हैं

आमिर खान द्वारा निर्देशित " तारे जमीन पर " पर देखा ! मेरी नज़र मे यह और "चक दे इंडिया " २००७ की कुछ कमाल के सिनेमा हैं ! यह संतोषजनक है की अब व्यावसायिक सिनेमा भी संदेश देने लगे हैं ! आमिर खान कमाल के एक्टर हैं और "तारे ज़मीन पर " से उन्होने यह भी दिखाया है की वह एक कुशल निर्देशक हैं ! वैसे आमिर खान ने सिनेमा के प्रचार मे भी काफी समय और बहुत कुछ "मीडिया" को दिया है !
आम आदमी की जिन्दगी से जुडी और बिना किसी लटके झटके के भी एक सफल सिनेमा दिखाया जा सकता है - तारे ज़मीन पर संवेदना से भरपूर सिनेमा है जिसमे पैसा वसूल के साथ साथ कई संदेश एक साथ नज़र आएंगे ! आपको अपने बच्चों के साथ साथ अपना बचपन भी नज़र आएगा ! आपके कई गुरुजन भी नज़र आएंगे ! और अगर आप थोडा भी संवेदनशील हैं तो रुमाल को साथ ले जाना नही भूलियेगा ! महिलाएं , बाल्टी भी ले जा सकती हैं ! मध्यमवर्ग के लिए यह सिनेमा देखना बहुत जरुरी है - क्योंकि आज़ादी के बाद यह वर्ग "शिक्षा" को सिर्फ और सिर्फ रोजगार के रुप मे देखता है - जिसके कारण समाज मे कई "साइड इफेक्ट" आ गया है ! और हमारे जीवन शैली , भाग दौड़ , पैसा- पैसा के खेल मे बच्चे काफी बुरी तरह से प्रभावित हैं ! महानगर तो और त्रशादी से गुजर रहा है - जिसके कारण अब " छोटे शहर " के बच्चों ने कमाल दिखाना शुरू कर दिया है !
आज के दौर मे "माँ" भी संवेदनशील है ! सिनेमा के साथ साथ सिनेमा हॉल मे भी मुझे यह नज़र आया ! मंहगे मोबाइल , कंधे पर लप टॉप और गला लटकता 'कम्पनी' का पट्टा होने के वावजूद लोग अपने बच्चों के साथ सिनेमा हॉल मे नज़र आये ! पटना से बिछुड़ने के बाद आज पहली दफा , सिनेमा खतम होने के बाद मैंने भी लप टॉप वालों के साथ जम कर ताली बजाया !
मल्टीप्लेक्स मे सिनेमा देखना काफी महंगा सौदा है - पर हम बच कैसे सकते हैं ? "मेट्रो समाज " के साथ भी तो चलना है ! :)
दिल्ली वालों के लिए खुशखबरी है की - वहाँ ये "टैक्स फ्री " है !

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Thursday, December 27, 2007

बेनजीर की अंतिम बिदाई

( १९५३ - २००७ )
और आज बेनजीर भी चली गयीं ! अब वो खाक - ऐ - सुपुर्द हो जायेंगी ! कुछ तो वजह है - जब से पाकिस्तान का जनम हुआ - वहाँ कभी भी स्थिर सरकार नही रही और बहुत सारे राजनेता मारे गए !

हमे आज भी याद है १९९० का दौर जब उनका दुपट्टा और मुस्कान भारत मे भी काफी मशहूर हुआ था ! हम सभी उनको एक खानदानी और सभ्य महिला के रुप मे जानते थे ! उनके पिता भी काफी कड़क मिजाज थे और पाकिस्तान की राजनीती के शिकार हुए !

किसी भी राष्ट्र की तरक्की वहाँ की राजनीती स्थिरता मे है - यह बात अब पाकिस्तानी राजनेताओं को समझ लेनी चाहिऐ वरना २१ वी सदी की चाल मे वह कहीं अफगानिस्तान न बन जाएँ !
एक वीर महिला को हमारा अंतिम सलाम !

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

लालू और मोदी

राजनेता किसी भी दल के हों - कोई भी विचारधारा हो - लेकिन यह सभी सिर्फ और सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए ही 'नेतागिरी' करते हैं ! और इस वोट बैंक को इन नेताओं के लिए मजबूत करने मे दलाल की भूमिका "मीडिया" करता है !
मीडिया का लगातार प्रहार से कहीं न कहीं नरेन्द्र भाई दामोदर मोदी को जबरदस्त फायदा हुआ ! यह प्रयोग पहली दफा नही हुआ था - बिहार मे लालू के समर्थन मे मीडिया ऐसा "महिनी" खेल , खेल चूका है ! निर्दोष की बलि पर अपनी रोटी सेंकना - अघोरी हो गए हैं - ये सब !
क्या मीडिया को यह पता नही था की वह जितना विरोध मोदी का करेंगे मोदी उतना ही मजबूत होंगे ! बिहार मे क्या हुआ था ! जब तक लालू खुलेआम मंडल के बहाने सवर्ण को निशाना बना रहे थे और मीडिया आग उलग रही थी और लालू और मजबूत होते जा रहे थे ! फिर अचानक आप लल्लू के आगे नतमस्तक हो गए क्योंकि कई सवर्ण नेता लालू के साथ हो चले और बिहार के घोर जातिवाद के शिकार मीडिया के नए नायक बन गए - लालू !
क्या पटना मे बैठे पत्रकारों को यह नही पता है की अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण मे जाने वाले "राम शिला" का पहला पूजन कौन और कहाँ करता है ! आप किसको बेवकूफ बनाते हैं ? चंद पैसा खा कर आप अपना जमीर बेचते हैं !
मुझे लालू और मोदी मे कोई भी फरक नज़र नही आता है ! जहाँ बिहार मे लालू ने सरकारी प्रायोजित कार्यक्रम मे भूमिहारों को मरवाया वहीं गुजरात मे मोदी ने दंगा करवाया ! लालू ने भी भूमिहारों को "कश्मीरी आतंकवादी" कहा ! सेनारी मे सहन्भुती के रुप मे जाने से मन कर दिया ! सं १९९२ मे बारा गाँव मे १०० के करीब भूमिहार मारे गए - पुरस्कार फलस्वरूप तत्कालीन पुलिस मुखिया के भाई को राज्यसभा भेज दिया गया !
देखिए , देश की जनता को बेवकूफ बनाना छोड़ दीजिए ! एक तरफ आप मोदी को समाचार पत्र और टेलीविजन मे गाली देते हैं और दूसरी तरफ मोदी के जितने का जश्न भी ! मुकेश भैया और सोनिया बेन के पैसा का लाज रखिये !

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Monday, December 24, 2007

ई साल भी जा रहा है !

देखते देखते २००७ भी बीत गया ! अभी सोचने बैठा की इस साल मैंने क्या क्या किया ? सोचते सोचते ऐसा लगा की साल भर दालान मे खटिया पर बैठ कर सिर्फ सोचा ही हूँ ! सोचना भी एक कला है - हर कोई नही सोच सकता है ! गदहा - बैल को कभी किसी ने सोचते देखा है ?
चिंतन करना स्वाभाविक है ! मनुष्य मे जनम लिए हैं तो चिंतन करना जरुरी है ! लेकिन चिंतन करने मात्र से पेट नही भरता है ! लेकिन कर्म का मतलब भी यह नही की आप - हम गदहा - बैल बन जाएँ ! लेकिन युग ऐसा आ गया है की बिना गदहा - बैल बने हुए कोई गुजारा नही है !
अब क्या किया जाये ?
रुकिए , खटिया को थोडा झार दें ! बहुत खटमल हो गया है ! रात भर सुते नही देता है !
२२ दिसम्बर को दिन सबसे छोटा होता है - लेकिन इसको "बड़ा" दिन क्यों कहते हैं ?
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Thursday, December 20, 2007

दिनकर की सांस्कृतिक दृष्टि



इस वर्ष रामधारी सिंह दिनकर की जन्म शताब्दी है। आधुनिक हिंदी कविता में उनका विशिष्ट स्थान है। कुछ लोग उन्हे छायावादी काव्य का प्रतिलोम मानते है, किंतु इसमें किसी को संदेह नहीं है कि दिनकर ने हिंदी काव्य जगत को उस पर छाए छायावादी कल्पनाजन्य कुहासे से बाहर निकाल कर प्रवाहमयी, ओजस्विनी कविता की धारा से आप्लावित किया। गद्य के क्षेत्र में उनका लगभग 700 पृष्ठों का 'संस्कृति के चार अध्याय' ग्रंथ अपने आप में एक विशिष्ट रचना है। यह ग्रंथ उनके गहन अध्ययन और उसमें से निर्मित दृष्टि को स्पष्ट करने वाली रचना है। दिनकर ने संपूर्ण भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक विकास को चार कालखंडों में विभाजित करके देखा। लेखक की मान्यता है कि भारतीय संस्कृति में चार बड़ी क्रांतियां हुईं। पहली क्रांति आर्यो के भारत में आने और उनके आर्येतर जातियों से संपर्क में आने से हुई। आर्य और आर्येतर जातियों से मिलकर जिस समाज की रचना हुई वही आर्यों अथवा हिंदुओं का बुनियादी समाज बना और आर्य तथा आर्येतर संस्कृतियों के मिलन से जो संस्कृति उत्पन्न हुई वही इस देश की बुनियादी संस्कृति बनी। आर्य कहीं बाहर से इस देश में आए अथवा वे मूलरूप से यहीं के वासी थे, इस संबंध में लंबे समय से बहस होती आ रही है। इतिहासकारों का एक वर्ग मानता है कि आर्य मध्य एशिया, या उत्तरी धु्रव से भारत में आए। कुछ इतिहासकार मानते है कि आर्य इसी भूमि के निवासी थे। मैंने अनेक वर्ष पूर्व डा. संपूर्णानंद की लिखी एक पुस्तक पढ़ी थी-'आर्यो का आदि देश'। उनकी मान्यता थी कि आर्य मूल रूप से सप्त सिंधु प्रदेश के निवासी थे। सात नदियों का यह प्रदेश उत्तर में सिंधु नदी, बीच में पंजाब की पांच नदियों और उसके नीचे सरस्वती नदी से बनता है। इस दृष्टि से इस देश में एक बहुत संवेदनशील वर्ग भी है। आर्यो के बाहर से आने की थीसिस को वे पश्चिमी इतिहासकारों और उनसे प्रभावित कुछ भारतीय इतिहासकारों का षड्यंत्र मानते है।
दिनकर की मान्यता थी कि आर्य मध्य एशिया से आए थे। दिनकर ने आर्य और आर्येतर संस्कृतियों के मिलन की अपने ग्रंथ में व्यापक चर्चा की है। उनका कहना है कि सभ्यता यदि संस्कृति का आदिभौतिक पक्ष है तो भारत में इस पक्ष का अधिक विकास आर्यो ने किया है। इसी प्रकार भारतीय साहित्य के भीतर भावुकता की तरंग अधिकतर आर्य-स्वभाव के भावुक होने के कारण बढ़ी, किंतु भारतीय संस्कृति की कई कोमल विशिष्टताएं, जैसे अहिंसा, सहिष्णुता और वैराग्य-भावना द्रविड़ स्वभाव के प्रभाव से विकसित हुई हैं। वैदिक युग के आर्य मोक्ष के लिए चिंतित नहीं थे, न वे संसार को असार मानकर उससे भागना चाहते थे। उनकी प्रार्थना की ऋचाएं ऐसी है, जिनसे पस्त से-पस्त आदमियों के भीतर भी उमंग की लहर जाग सकती है। वर्ण-व्यवस्था के संबंध में उन्होंने लिखा है कि वर्ण का निर्धारण पहले व्यवसाय, स्वभाव, संस्कृति के आधार पर ही था। पीछे जातिवाद के प्रकट होने पर वर्ण का आधार भी जातिगत हो गया।
दिनकर के अनुसार दूसरी क्रांति तब हुई जब महावीर और गौतम बुद्ध ने स्थापित वैदिक धर्म या संस्कृति के विरुद्ध विद्रोह किया। बुद्ध के समय और उनके ठीक पूर्व इस देश में वैरागियों और संन्यासियों की संख्या बहुत बढ़ गई थी। उन दिनों के समाज में प्राय: दो प्रकार के लोग थे। एक तो वे जो यज्ञ मात्र को ही इष्ट मानकर वैदिक धर्म का पालन करते थे, किंतु जो लोग इस धर्म से संतुष्ट नहीं होते थे वे संन्यासी हो जाते थे और हठयोग की क्रिया से देह-दंडन करने में सुख मानते थे। यज्ञों में दी जाने वाली पशु बलि की अधिकता से उत्पन्न विक्षोभ को जैन और बौद्ध धर्मो के रूप में वैदिक धर्म के विरुद्ध विद्रोह कहा जाता है। दोनों ही धर्म वेद की प्रामाणिकता को अस्वीकार करते है। दोनों का ही विश्वास है कि सृष्टि की रचना करने वाला कोई देवता नहीं है। आमतौर पर यह माना जाता है कि जैन और बौद्ध मत वेदों की मान्यता को स्वीकार नहीं करते थे, इसलिए वे नास्तिक थे, किंतु दिनकर ने इस मान्यता का खंडन किया है।
भारत में इस्लाम के आगमन, हिंदुओं से उसके संबंध, उसकी टकराहट और विग्रह का इतिहास एक हजार वर्ष से अधिक पुराना है। यह संपूर्ण प्रसंग भ्रांतियों और संवादहीन अवधारणाओं से भरा हुआ है। 'संस्कृति के चार अध्याय' में इस तीसरे अध्याय पर बड़े विस्तृत और अध्ययनपूर्ण ढंग से विचार किया गया है। दिनकर ने यह प्रश्न उठाया है कि कौन सी वह राह है जिस पर चलकर हिंदू मुसलमान के और मुसलमान हिंदू के अधिक समीप आ सकता है। दिनकर का कहना है कि गजनवी और गोरी के साथ जो इस्लाम भारत पहुंचा वह वही इस्लाम नहीं था जिसका आख्यान हजरत मुहम्मद और उनके शुरू के चार खलीफों ने किया था। लगभग दो सौ पृष्ठों में लेखक ने इस्लाम के आगमन, पृष्ठभूमि, इस देश की संस्कृति पर पड़े उसके प्रभाव समीक्षा की है।
इस ग्रंथ का बहुत महत्वपूर्ण चौथा अध्याय भारतीय संस्कृति और यूरोप के संबंध पर आधारित है। सबसे पहले पुर्तगाली भारत आए। फिर डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज इस देश में व्यापार करने आए और उपनिवेश स्थापित करने लगे। धीरे-धीरे सारे देश पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। पश्चिमी संसार के संपर्क में आने के पश्चात भारत में किस प्रकार शिक्षा का विस्तार हुआ, इस पर भी इस अध्याय में चर्चा है। अंग्रेजों के साथ बने संपर्क ने इस देश की जनता में किस प्रकार आत्म-चेतना उत्पन्न की, किस प्रकार विभिन्न समुदायों में पुनर्जागृति की भावना उत्पन्न हुई, इसका विश्लेषण भी इस अध्याय में है। भारत की संस्कृति का मुख्य गुण उसका सामाजिक स्वरूप है। इसे समझने में दिनकर की यह कृति हमारी बहुत सहायता करती है। दिनकर की अनेक मान्यताओं से मतभेद हो सकता है, किंतु यह निश्चित है कि इस देश की सामाजिक संस्कृति को समझने के लिए यह बहुत सार्थक प्रयास था। [डा. महीप सिंह, लेखक जाने-माने साहित्यकार हैं]

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Tuesday, December 11, 2007

बहुत ठंडा है !!!

"दिल्ली" गजब का जगह है ! यहाँ सर्दी भी जम के पड़ती है और गर्मी भी ! लेकिन पैसा के कारण गर्मी-सर्दी का फरक बहुत लोगों पर नही पङता है ! हम जैसे "पेट-भरुआ" लोग को बहुत ठंडा लगता है !
नवम्बर के आस पास ही सोनपुर मेला लगता था ! वहाँ हम लोग का एक टेंट गड़ता था ! गाँव के गोतिया - पट्टीदार , रिश्ते -नाते , हित कुटुम सभी लोग आते थे ! कोई मवेशी खरीदने आता था तो कोई "थियेटर" देखने ! वार्षिक परीक्षा देने के बाद हम भी पहुंच जाते थे ! बाबा पहले से पहुंचे होते थे ! " १९९० " के आस पास तक हाथी था ! हर साल खरीद बेच होता था ! यह एक तरह का बिजिनेस था ! कम दाम मे खरीदना और एक साल खिला पिला के ऊँचा दाम मे बेच देना ! इसका श्रेय हमारे महावत "अल्शेर मियां जी" को जाता था ! लोग कहते थे की वैसा महावत राजा राजवादा के पास भी नही होता था ! बाबा खुश हो कर १९८० मे उनको हमारे गाँव का मुखिया बना दिए थे ! अब वह नही रहे - मेरी तरह ही उनके बच्चे भी कहीं दूर , घर से मीलों दूर - अपनी रोजी रोटी कम रहे हैं !
हम लोग सुबह सुबह पटना से सोनपुर मेला पहुंच जाते थे ! वहाँ दुकान से पूरी - जिलेबी आता था ! या फिर railway कैंटीन से मस्त नास्ता ! फिर दिन भर घुमाना , कभी मीना बाज़ार तो कभी कृषि बाज़ार ! रात मे खंसी के मीट के साथ लिट्टी ! बडे बडे लोग टेंट मे आते थे ! "बच्चा बाबु " के परिवार का कोई आया तो उनका भरपूर स्वागत होता था ! "हवा-पानी " पुरा टाईट रहता था ! सर्कस से मद्रासी सब भी अपना हाथी लेकर आते थे ! केरल वाले भी होते थे ! वहाँ हाथी के दलाल भी होते थे ! किसी मद्रासी के हाथी के सामने खडा होजाते थे - कोई ग्राहक आया तो दलाल ने भोजपुरी / हिन्दी मे बोल दिया की - हाथी बिक चूका है ! बेचारा मद्रासी १५ दिन मे औने पौने दाम मे अपना हाथी बेच कर चला जाता था ! १९८० के दसक से पंजाब से जर्सी गाय भी आने लगी ! मेरे परिवार मे भी एक खरीदाया था - दूर दूर से लोग देखने आते थे !
अंतिम दफा मेला १९९७ मे गया था ! घर से कोई नही आया था ! लेकिन मैं हाथी बाज़ार के उस जगह गया जहाँ कभी हम लोग का पारिवारिक टेंट लगता था ! रुलाई आ गयी !
दिसम्बर मे हम लोग गाँव जाते थे - बड़ा दिन के छुट्टी मे ! दरवाजा पर " आग का घुर" लगता था ! हम सभी भाई लोग उस आग मे "अलुआ" को पका के खाते थे !
वक़्त कभी नही बदलता है ! वक़्त स्थिर है ! शान शौकत को बरकरार रखने के लिए - आपके पास ज़माने के हिसाब से "पैसा" होना बहुत जरुरी है !
जम के पैसा कमाइये और ऐश कीजिए !

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Monday, November 19, 2007

ढोल बाजे !!!!

छठ पूजा के शुभ अवसर पर दिल्ली के बिहारिओं ने अपने लोक कलाकारों को बिहार से बुलवाया ! कई जगह इस तरह के कार्यक्रम हुए ! एक जगह पर मुझे जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! "मगही" सांस्कृतिक मंच ने "मगध" से कई कलाकार बुलवाये ! आयोजन बहुत बड़ा तो नही था - लेकिन यह शुरुआत अपने आप मे प्रशंशिये हैं ! बिहार के मगध से आये इन कलाकारों को राष्ट्रिये राजधानी क्षेत्र मे एक अवसर देना - काबिले तारीफ है ! करीब ३० लोक कलाकारों को लाना और उनके कला को समान्नित करना ! "गौरवशाली बिहार" के संयोजक श्री संजय शर्मा और संजय साही कहते हैं - "घर तो छुट ही गया - हम अपनी संसकृति बचा लें - यही हमारी कोशिश रहेगी " !
इन लोगों ने आम्रपाली ग्रुप के मुखिया श्री अनिल शर्मा को आमंत्रित किया था - जो खुद मगध से आते हैं ! उन्होने ने कहा - "मैं हर वक़्त आपके साथ हूँ - घर से कोसों दूर अपने लोगों के बीच अपनी संसकृति और लोक गीत का आनद उठाना - अपने आप मे एक सौभाग्य है " !
सभ्यता और संसकृति हमारी पहचान है ! अभी हाल मे ही इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर गया था - वहाँ एक जोडा को सिंगापुर से आते हुए देखा - पाया की वह दोनो अपनी मत्री-भाषा मे बातें कर रहे थे ! मुझे उनकी मीठी बोली "मैथली " बहुत अछ्छी लगी और मैंने टोक दिया - पता चला वह "मनागेमेंट कांसुल्तंत" है - और अमरीका से वाया सिंगापुर आ रहे हैं ! अमेरिका मे ही पढ़ाई लिखाई हुई है ! धन्य है वह माता पिता जिसने ऐसे संस्कार दिए जिसके कारन आपके निजी जिन्दगी पर दूसरों का लेप नही चढ़ सका !
कल देखा - मेरा बेटा भी बाथरूम मे एक भोजपुरी गाना गा रहा था !


रंजनऋतुराज सिंह , नॉएडा

Saturday, November 17, 2007

हे ! छठी मैया !



ऊपर वाले फोटो को सिएटल टाईम्स ने अमरीका मे प्रकाशित किया है ! यह हमारी श्रद्धा , बिस्वास , शुद्धता को बयां करता है ! खबरिया चैनल वालों ने भी कल कुछ खास प्रोग्राम भी दिखाया ! दोपहर मे जी न्यूज़ वालों का स्पेसल प्रोग्राम आ रहा था ! देखते देखते ही आंखों से आंसू आने लगे ! सहारा समय भी दिखाया !
एक खास चॅनल जिसको बिहार मे सिर्फ गूंडा तत्व ही नज़र आते हैं और उनके स्पेशल संपादक जो खुद बिहार के रहने वाले हैं और नीतिश काल मे वह बिहार नही गए हैं , ने छठ पूजा को भरपूर नज़र-अंदाज़ करने की कोशिश की !
खैर - सबकी अपनी अपनी श्रद्धा है ! अब वह दिन दूर नही है जब मन्हात्तन की गलियों मे बिहारी भाई - बहन अपने माथा पर "डाला" उठा कर , नंगे पाँव निकलेंगे !
एक पंजाबी अमेरिका जाता है - पुरा गाँव चला जता है !



रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Friday, November 16, 2007

आस्था व भक्ति का केन्द्र नोनार का सूर्य मंदिर

पीरो (भोजपुर)। पीरो अनुमंडल मुख्यालय से सटे आरा-सासाराम मुख्य मार्ग पर नोनार गांव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर क्षेत्र के लोगों के बीच आस्था एवं भक्ति का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया है। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में कोलाहल से दूर बसे इस सूर्य मंदिर का महत्व कार्तिक एवं चैती छठ के अवसर पर काफी बढ़ जाता है। इस दौरान यहां आसपास के गांवों के अतिरिक्त सीमावर्ती बक्सर एवं रोहतास जिले के श्रद्धालु लोग भी छठव्रत करने के लिए बड़ी संख्या में जुटते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण दशकों पूर्व अयोध्यावासी महात्मा निराला बाबा की देखरेख में स्थानीय लोगों के सहयोग से कराया गया था। यहां मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित संगमरमर की बनी भगवान भास्कर की प्रतिमा अपने आप में अद्वितीय है। वही मंदिर के समीप बाबन बीघा का पोखरा लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र होता है। बताया जाता है कि नोनार गांव के लोगों द्वारा दान में दी गयी जमीन पर खुदाई कर, इस विशाल पोखरा का निर्माण कराया गया है जबकि ग्रामीणों द्वारा चंदा में मिली राशि से पक्के घाटों का निर्माण हुआ है। लेागों के बीच ऐसी मान्यता है कि यहां आकर पूरे मनोयोग से छठ का व्रत करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। कई नि:संतान दम्पतियों द्वारा यहां छठ करने के पश्चात उन्हें पुत्र रत्‍‌न की प्राप्ति होने से इस सूर्य मंदिर के प्रति लोगों की आस्था और बढ़ गयी है। यहां आने वाले छठ व्रतियों की सुविधा को ध्यान में रखकर सभी आवश्यक व्यवस्था नोनार गांव के लोगों द्वारा ही की जाती है। नोनार गांव निवासी बीरेन्द्र राय बताते हैं कि इस साल यहां छठव्रतियों के लिए पेयजल, चिकित्सा एवं प्रकाश व्यवस्था हेतु स्थानीय नवयुवकों द्वारा विशेष तैयारी की गयी है।


ranJan rituraJ sinh , NOIDA

Thursday, November 15, 2007

ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे है देवचंदा का सूर्य मंदिर

बिहार की पावन पवित्र धरती पर एक से बढ़कर एक सूर्य मंदिर है पर तरारी प्रखंड के देव (चंदा) गांव का प्राचीन सूर्य मंदिर न केवल ार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। जिससे हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है। ऐसे में यह मंदिर पूरे शाहाबाद प्रक्षेत्र सहित आसपास के इलाकों में लोगों के बीच प्रसिद्ध है। भोजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दक्षिण कुरमुरी नहर लाइन के किनारे देव गांव में अवस्थित यह प्राचीन सूर्य मंदिर चौदहवीं शताब्दी में निर्मित बताया जाता है। हालांकि इसका लिखित ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है फिर भी मंदिर की बनावट एवं यहां स्थापित मूर्तियों के कलाकृति से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर सल्तनत काल में ही स्थापित किया गया है। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण यह सूर्य मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण इन ऐतिहासिक धरोहर की ओर आज तक पुरातत्ववेत्ताओं का ध्यान भी केन्द्रित नहीं हो पाया है। वर्तमान में मंदिर का अवशेष एक आयताकार ऊंचे टीले पर अवस्थित है जिसका क्षेत्रफल लगभग 35 डिसमिल भूमि पर फैला है। टीले के दक्षिणी सीमा पर प्रधान मंदिर अवस्थित है। सतह पर मंदिर की स्थिति लगभग 16 फीट लंबी एवं 16 फीट चौड़ी है। लगभग 30 फीट ऊंचे गुम्बज वाले इस मंदिर का द्वार परंपरानुसार पूरब की ओर है। गर्भ गृह के पश्चिमी दीवार से सटे पांच चबूतरे बने है जो सीमेंट से निर्मित एक सुंदर रथ से जुड़ा है। इस चमकीले रथ पर एक सारथी की आकृति बनी है। प्रधान मंदिर से सटे पूरब तरफ 30 फीट लंबा प्रांगण है जो यहां निर्मित सभा भवन का अवशेष बताया जाता है। यह विशाल प्रांगण ईट की दीवार से घिरा है। इस प्रांगण में दीवार के सहारे कई प्राचीन मूर्तियां टीकाकर रखी गयी है। बालू पत्थर से निर्मित ये मूर्तियां यहां समय-समय पर हुई खुदाई से प्राप्त हुई है। मूर्तियों की बनावट से इनकी प्राचीनता का एहसास होता है। देव गांव स्थित इस प्राचीन मंदिर के साथ कई आश्चर्यजनक तथ्य जुड़े है। मंदिर को बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त ईटे परस्पर एक-दूसरे पर बिना किसी जोड़ के रखा गया है जबकि बारीकी से निरीक्षण करने पर इसके अंदर सूर्खी चूना दिखाई पड़ता है। मंदिर के दीवार की इस तरह जुड़ाई तत्कालीन कारीगरों की काबिलियत को दर्शाती है। मंदिर के गर्भ गृह में वृत्ताकार ईट से निर्मित क्रमश: एक-दूसरे से छोटे परस्पर उभरे हुए 23 वृत्त है। बुजुर्गो के अनुसार प्राचीन मंदिर के दरवाजे के पास से ही एक भूमिगत रास्ता यहां से 300 मीटर दूर स्थित विशाल जलाशय तक जाता था, जो अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। देव गांव तक पहुंचने के लिए कुरमुरी नहर लाइन के समानांतर बनी सड़क आज भी जर्जर स्थिति में है जिसे पर सफर करना दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। सूर्य मंदिर के आसपास पेयजल, बिजली, धर्मशाला आदि की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यहां छठ करने के लिए आने वाले बाहरी लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। सिकरहटा पंचायत के मुखिया ऋषिदेव सिंह के अनुसार इस प्रसिद्ध तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए बिहार राज्य पर्यटन विभाग के निदेशक आनंद किशोर के पास सुझाव भेजा गया था लेकिन पर्यटन विभाग द्वारा इसकी अनदेखी किये जाने से अभी तक इसके कायाकल्प की संभावना तक दिखाई नहीं पड़ती है।



रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Wednesday, November 14, 2007

Tuesday, November 13, 2007

महापर्व और घर की याद :- मुखिया के दिल से

बहुत लोग हमको कहे कि " मुखिया जी , दीपावली मे आप कुछ नही लिखे ? " , क्या लिखते ? यही कि यह धनी मनी लोगों का पर्व है ? यही लिखते कि गरीब लोग घर से हजार किलोमीटर दूर - saat समुन्दर पार दीपावली के दिन भी कम्पूटर पर ठुक ठएं कर रहे थे ! यही लिखते कि बाबा-दादी गाँव पर अकेले हैं , माँ- बाबुजी पटना मे अकेले हैं और हम यहाँ "दिल्ली" कि दीपावली मना रहे हैं ?
कल्ह , छठ पूजा का नहाय - खाए है ! बिहार के हर घर मे छठ पूजा का गीत शुरू हो चुका होगा ! ऐसा लगता है यह पर्व हमारे खून मे समां चुका है - मालूम नही क्या है ? श्रद्धा का वातावरण कब और कैसे बन जाता है ! हेमंत ऋतु मे पर्वों का होना और बचपन का याद आना -

कैफी आज़मी साहब के चंद लाईन याद आ रहे हैं -

चंद सीमाओं में, चंद रेखाओं में ,

जिंदगी कैद है , सीता की तरह ,

पता नही ,राम कब लौटेंगे ?

काश ! कोई रावण ही आ जाता ॥

पटना का छठ पूजा बहुत धूम धाम से मनाया जाता है ! इस पूजा कि एक सब से बड़ी खासियत है कि - यह समता भाव का पूजा है ! क्या अमीर , क्या गरीब , क्या राजा और क्या रंक ? क्या घूसखोर और क्या इमानदार , सभी के सभी एक साथ डूबते और उगते सूरज को "अरग" देते हैं ! शाम वाले अरग के दिन आपको पटना का पुरा गाँधी मैदान भरा हुआ नज़र आएगा ! मैंने देखा है - बड़ा से बड़ा आदमी भी माथा पर "डाला" उठाए हुए चल रहा है ! ऐसा जैसे सूरज देवता के सामने सभी बराबर है ! सुबह वाला अरग के समय पर पटना के गांधी सेतु से घात का नजारा देखते ही बनता है !


हम लोग बच्चा थे ! गाँव जाते थे - दीपावली के ठीक अगले दिन या आज वाले दिन ! मुजफ्फरपुर मे सुबह सुबह इमली चट्टी से बस पकड़ कर ! रात मे कलकत्ता से एक ट्रेन आती थी और कलकतिया सब बस पर कब्ज़ा जमा लेता था ! "सिवान" वाले बच्चा बाबु का बस होता था सो जगह मिल जाती थी ! अगल बगल मे कलकतिया सब एकदम "चुकु- मुकू " कर के सीट पर बैठा होता था ! साथ मे एक झोला - झोला मे सब से ऊपर एक कियो -कारपीन तेल और दू ठो लक्स साबुन ! सब का देह बसाता था ! गाँव के पास वाले स्टॉप पर पहुंच कर हम लोग बैलगाडी या हाथी या टम-टम पर बैठते थे ! बैलगाडी या टम टम को साडी या चादर से ढक दिया जाता था !परदा वाला जमाना था ! धीरे धीरे जमाना बदलने लगा ! तम तम और बैलगाडी और हाथी की जगह "जीप" आ गया ! हम लोग भाडा पर गाओं तक के लिए "जीप" ठीक कर लेते थे ! रास्ता मी कई लोग मिलते थे ! साईकिल पर ! हाल चाल पूछते थे ! "घर" पर डीजल "जीप" की आवाज़ से आँगन से चचेरे फुफेरे भाई बहन सभी निकल आते थे ! "बाबा" दुआर पर आराम कुर्सी पर खादी वाला हाफ बांह वाला गंजी पहन कर बैठे होते थे ! आस पास ४०-५० आदमी ! "बाबा" के पास जाने पर वहाँ कई लोगों को पैर छू कर प्रणाम करना पङता था ! कोई फलना बाबु टू कोई चिलाना बाबु ! पटना / मुजफ्फरपुर से दीपावली वाला पटाखा बचा कर लाते थे और सभी भाई-बहन को दिखाते थे ! मन नही मानता था तो एक दो छोड़ देते थे ! कभी कभी डांट भी मिलाती थी !


खरना वाले दिन शाम को जम के पटाखा छोडा जाता था ! कभी कभी भाई-पट्टीदार से "शक्ति-पर्दर्शन" भी होता था ! किसके पटाखे मे कितना है -दम ! शाम वाले अरग के दिन "दुआर" पर हम सभी बच्चे लोग नया नया कपडा पहन कर खूब मस्ती करते थे ! उन दिनों होली और छत मी ही सिर्फ़ नया कपडा मिलता था ! वक्त बदल गया - यहाँ "मेट्रो" मे हर महीना "सेल " लगता है और और धर्म-पत्नी जी मेरी गाढी कमाई मे आग लगा कर दीवाली मनाती हैं !
रात मे "लुकारी" बनाया जाता था ! या फिर गैस लाईट के साथ साथ "छठ वरती" लोग सुबह ४ बजे ही घाट पर पहुँच जाते थे ! उगते सूरज को अर्ध्य देकर - हम सभी घर वापस आ जाते थे ! परसाद मिलता था ! दिन भर हम सभी "ईख" चबाते थे !
शाम को माँ- बाबु जी को अटैची पैक करते देख "कलेजा" धक् से कर जाता था ! रात भर यह सोच कर नींद नही आती थी की अब अगला दिन " कसाई -खाना" जाना है ! सुबह सुबह मेरा झूठ मूठ का कभी पेट ख़राब तो कभी उलटी ! बाबा मेरे मन का बात समझ जाते थे और बाबु जी को बोलते - " एक दिन और रुक जाओ " !
मेरा तो मानो लोटरी खुल गया !

बहुत कुछ लिखना छुट गया है ! आपके कमेंट के इंतज़ार मे -

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Monday, November 12, 2007

पूर्वांचल का महापर्व : छठ पूजा









घर की याद मे जी भर के रो लीजिए !






रंजन
ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Tuesday, November 6, 2007

"चक-दे-बिहार" कब होगा ?

अरे यार ? नीतिश भी गुंडा रखता है , क्या ?
तेरे को कौन बोला ?
मेरे को कौन बोलेगा - तेरे बिहारी ही खबरिया चैनल पर दिखा रहे हैं ?
"हा हा हा " , बेटा थोडा बच के वह मूंछों वाला विधायक मेरी ही जाती का है !
ऐसा क्या - तू तो ऐसा नही लगता है ?
अच्छा ! तेरे बिहारिओं ने खबरिया चैनल पर कब्जा जमा लिया है - फ़िर भी "माँ" ( बिहार) को गाली देते हैं ?
हाँ ! यह सभी - गांधीवाद के शिकार हैं ! "परिवारwaad" मे विस्वास नही रखते हैं !
हाँ ! यह तो वेश्या वाली कहानी हो गयी यार - वेश्या के प्रेम मे एक युवक अपनी माँ का कलेजा काट लाता है और रास्ते मे जब युवक को चोट लगाती है तो माँ का कलेजा रो पङता है !
हाँ ! अगर माँ को गाली देने से इनका पेट भर रहा हो तो माँ को वह भी स्वीकार है !
चल - तेरे साथ रहते रहते मैं भी लगभग "बिहारी" हो जाऊंगा !तुम सभी अपना - अपना "इगो" को छोड़ - सिर्फ़ और सिर्फ़ "बिहार" की भलाई के लिए क्यों नही सोचते हो ? एक बार दिल से "चक-दे-बिहार" बोल को तो देख - तेरा बिहार स्वर्ग हो जाएगा ! देख , कैसे वह राजदीप जैसा पत्रकार भी "चक दे गुजरात" बोलता है ! कुख्यात - मोदी को भावी प्रधानमंत्री बताता है ! कुछ सीख इन लोगों से !
अबे - बिहार स्वर्ग हो जाएगा ! फिर मुम्बई - दिल्ली - बंगलोर मे कौन रहेगा ? कौन अरुण पूरी , राजदीप और प्रनोय रोय के तलवे चाटेगा , कौन अपनी माँ का कलेजा इनको देगा ? कौन श्री भल्ला , श्री चोपडा , श्री साह इत्यादी के यहाँ काम करेगा ! कौन पंजाब , सूरत , हरयाणा , भोपाल ,कलकत्ता को अपना घर से भी ज्यादा चम्कायेगा ? कौन बिहार को गाली दे कर अपना पेट भरेगा ? हम सभी "पेट-भरुआ" मजदूर हैं ! कोई ज्यादा पढ़ लिखा तो कोई कम पढा लिखा - mansik स्तर सभी का एक है ! दिन भर म्हणत करते हैं और रात मे एक दूसरे भाई के साथ गाली गलुज और फिर सो जाते हैं - फिर , अगला सुबह वही मजदूर वाली नौकरी !
भूखे पेट से "चक दे बिहार " कैसे निकलेगा ?
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Wednesday, October 31, 2007

बिहार :- एक ओल्ड एज होम

बचपन मे सुनता था कि विदेश मे "ओल्ड एज होम" होता है ! मुझे बहुत आश्चर्य होता था ! भला कोई अपने माता - पिता को क्यों "ओल्ड एज होम" मे डालेगा ! क्या मजबूरी होगी ? ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपने माँ बाप से दूर चले जाएँ ! उनको अकेला छोड़ दें ! 


मेरे "ब्लोग" पढ़ने वाले अधिकतर पूर्वांचल के लोग हैं , जिनको आज कल "बिहारी" कहा जाता है ! सच सच बताएं - आप मे से कितने लोग अपने माँ-पिता जी के साथ रहते हैं ! अगर आपके माँ - पिता जी साथ मे नही रहते हैं तो फिर वह कहाँ रहते हैं ?
सिप्ताम्बर के महीने मे पटना गया था - माँ- बाबुजी के पास ! सड़क पर एक भी युवा नज़र नही आ रहा था ! या तो २० वर्ष से कम आयु वाले या फिर ४५ से ज्यादा वाले ! अजीब हालात है ! जिस राज्य का युवा ही गायब है - वहाँ क्या हो सकता है ? विकास और उत्थान कि बातें करना बेईमानी है !
पटना या बिहार का कोई भी ऐसा गाँव या शहर या फिर यूं कह लीजिए - कोई ऐसा परिवार नही है जहाँ का कोई न कोई बाहर कमाने नही गया हो ! माँ- बाप यूं ही चुप चाप रात के अंधेरों मे दिन गिन रहे हैं और हम यहाँ चका चक दुनिया मे मस्त !
आपको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ :- 
सोहन जी मेरे वाले अपार्टमेंट मे रहते हैं - माता जी पटना मे अकेले - बाबु जी नही रहे ! सोहन जी हर रोज अपनी माँ से बातें करते थे - फोन पर ! अचानक एक दिन शाम , फोन तो घडघडा रहा था लेकिन उधर से कोई उठा नही रहा था ! थोडी चिंता हुई - फिर सोने चले गए ! फिर अगला दिन वही हालत ! पटना वाले घर पर कोई फोन नही उठा रहा था ! अब वह सचमुच मे घबरा गए ! किसको फोन करें ? फूफा जी खुद बीमार हैं - मामा जी तो मुम्बई मे बसे हैं ! कोई भी दोस्त महिम पटना मे नही है ! किसी तरह पडोसी का फोन जुगार किया और "माँ" का हाल चाल बताने को कहा ! पता चला घर अन्दर से बंद  है ! पुलिस को फोन किया - पुलिस आयी ! दरवाजा तोडी तो पता चला कि - माँ अब नही रही ! 
पटना के  एक प्रख्यात डाक्टर मिले , बोले - हम तो बहुत कमा लिए हैं ! बेटा नालायक निकले तो अच्छा है - कम से कम पास मे तो रहेगा ! 'फलना बाबु' को हार्ट अटैक आ गया - कोई नही मिला जो हॉस्पिटल पहुंचा सके ! तीनो बेटा अमेरिका मे थे - तीन दिन लग गया - आने मे - तीन दिन तक बर्फ पर् पड़े रहे ! 
हम आम बिहारी के नसीब अजीब हैं ! हम बहुत सपने लेकर जिंदा नही हैं ! कम से कम हैसियत के मुताबिक २ वक़्त कि रोटी मिल जाये - वह बिहार मे नामुमकिन है !
हमारा समाज भी अजीब है - जैसे आप बिहारी होने के नाते - बाहर जा कर कमाना आपका धर्म है ! दिल्ली मे रह कर अगर आप पटना वापस आने का सोचे तो सभी तरफ से उंगली उठने लगेगी - क्या बात है ? अरे मेरे भाई - बात कुछ नही है - बस , अब घर लौटने को दिल कर रहा है !
भांड मे जाये ऐसा नौकरी - 
नितीश कुमार भी सात साल हम जैसे लोगों के लिये कोई जगह नहीं बना सके हैं ! 




~ रंजन ऋतुराज 

Tuesday, October 23, 2007

दालान पढे , क्या ?

जब से हिन्दी मे ब्लोग लिखना शुरू किया हूँ , हर रोज -हर वक़्त सब से यही पूछता रहता हूँ - क्या , आप ने मेरा "दालान" पढा ? साथ ही साथ यह भी आशा करता हूँ को वह आदमी मेरे "दालान" कि बड़ाई मेरे सामने करेगा ! अपना "बड़ाई" सुनने के लिए आदमी क्या कुछ नही करता है ! कई दोस्त मुझे झेल जाते हैं ! दोस्ती को लिहाज रखते हुए "दालान" पढ़ना पङता है ! फिर वह गाली देते हैं कि - मुखिया को कितना टाइम है ! मुझे पता है - ऐसे लोग ज्वलनशील होते हैं ! मुखिया का एक ब्लोग उनको बर्दास्त नही होता है ! बहुत दुःख कि बात है ! खैर - कोई बात नही - कसाई के श्राप से गाय थोडे ही मरती है !
१८-१९ साल से लिखता आ रहा हूँ ! पहले हिन्दी समाचार पत्रों मे लिखता था ! अब इलेक्ट्रोनिक दुनिया मे लिखता हूँ ! ज़िंदगी के हर अनुभव से गुजरा हूँ ! कल्पना शक्ति काफी मजबूत है ! जो पल जिन्दगी मे नही आये - उनकी कल्पना कर सकता हूँ - शायद यही सोच "कुछ लोग" मुझे अजीब नज़र से देखते हैं ! जैसे मैं पटना का कोई "लोफर" हूँ और बालकोनी से उनकी धरमपतनी पर बुरी नज़र रख रहा हूँ !
भाषा कमज़ोर है - साहित्य नही ! बहुत लोग भाषा और साहित्य को एक साथ देखते हैं ! मैं ऐसा नही मानता हूँ ! क्या सुन्दर लड़की होने के लिए "कुंवारा" होना जरुरी है , क्या ? मैं अपने साहित्य मे भाषा का कौमार्य भंग नही किया है !
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Monday, October 22, 2007

आज सोमवार है !

आज "सोमवार" है ! सच पूछिये तो आज "काम" पर आने का मन एकदम नही करता है ! सुबह सुबह बच्चा लोग भी स्कूल नही जाना चाहता है ! "कसाई" की तरह उनको तैयार कर के स्कूल भेजना पङता है ! इधर "त्यौहार" वाला मूड हो गया था ! अचानक आज सुबह पता चला की आज सोमवार है ! मौसम भी अजीब है ! कच्ची धुप थोडी अच्छी लगती है ! मन कर रहा है कि हरे हरे घास - ( दूभ) पर एक चटाई बिछा के - भागलपुरी चादर ओढ़ के एक नींद मार लें ! बीच बीच मे कोई ग्रीन लेबल वाली चाय देता रहे और हाथ मे एक उपन्यास ! फिर दोपहर को उठ कर भर पेट आलू दम कि सब्जी के साथ चावल ! फिर एक नींद !
मेट्रो मे ज़िंदगी अजीब है ! हर कोई पैसा के पीछे भागता नज़र आता है ! यहाँ पैसा भी है ! कोई "लहर" गिनने का भी पैसा कमा लेता है ! वैसे , "पैसा और खुशामद " सबको अच्छा लगता है ! हम कोई अपवाद नही है ! "राजा" इसलिए "राजा" होता था कि उसके पास धन होता था !
रमेश मिला ! पूछे कि भाई हम दोनो एक साथ दिल्ली आये थे ! तुम गाडी पर गाडी बदल रहे हो ! और एक हम हैं :(
कहने लगा - "मुखिया जी " , हम यह नही सोचते कि - आज सोमवार है और कल इतवार था ! बस यही फर्क है ! "लहर" गिनने से हमको शरम नही है ! "बीबी" को माथा पर सवार नही किये हैं ! जम के मेहनत करते हैं ! अपना -पराया का भेद भाव किये बिना जेब काटने से हिचकते नही हैं !
एक सांस मे ही सब कुछ कह गया ! हम चुप रह गए ! लेकिन मेरे अन्दर का अर्जुन जाग रहा था ! अब असली महाभारत होगा ! मुखिया जी पैसा कमा के गर्दा गर्दा कर देंगे ! मालूम नही - मैंने क्या क्या सोच लिया !
सोचते सोचते - फिर नींद आने लगी और मैं मखमली दूभ कि तलाश मे निकल पडा !
जरा , एक कप ग्रीन लेबल चाय ! आज सोमवार है ! कुछ भी करने का मूड नही बन रहा है !


रंजनऋतुराज सिंह , नॉएडा

Thursday, October 18, 2007

दुर्गा








नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है। माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। नवरात्रि के सभी नौ दिन इन सभी रूपों में बंटे हुए हैं जो इस प्रकार हैं -
शैलपुत्री -


वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम। वषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशिंस्वनीम॥


मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
ब्रह्मचारिणी


दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥


मां दुर्गा की नौ शिक्तयों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वद्धि होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपाासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भिक्त प्राप्त करता है।
चंद्रघण्टा


पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥


मां दुर्गा की तीसरी शिक्त का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि -विधान के अनुसार, मां चंद्रघण्टा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
कूष्माण्डा


सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे॥


माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरत्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा -उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
स्कन्दमाता


सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशिस्वनी॥


मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का शस्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य किरयाएं एवं चित्र वित्तयों का लोप हो जाता है।
कात्यायनी


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
कालरात्रि


एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी॥


मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और
ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।
महागौरी


श्वेते वषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥


मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शिक्त अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
सिद्धिदात्री


सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥


मां दुर्गा की नौवीं शिक्त को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।


रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, October 9, 2007

"चुनाव" नजदीक है !

"आम चुनाव" का नाम जेहन मे आते ही मन एकदम फ्रेश हो जाता है ! १९७७ से लेकर आज तक के सभी चुनाव को काफी नजदीक से देखा है ! १९८० का बिहार विधानसभा और १९८४ के लोकसभा का चुनाव को काफी ही नजदीक से देखा है ! उसके बाद टी वी पर भी चुनाव देखा है ! बिहार और उत्तर-प्रदेश के गाँव मे , "चुनाव" को एक पर्व के रुप मे देखा जाता है ! कई बेरोजगारों को क्षणिक रोजगार मिल जाता है ! कई "परिवार" मे आपस मे ही "भात" बंद हो जाता है ! जीता कोई - हारा कोई लेकिन गांव मे टेंशन काफी दिन तक रहता है ! कुछ भी कहिये , बहुत मजा आता है ! "लोकसभा " का चुनाव "बूथ कैप्चर" कर के नही जीता जा सकता है ! चुनाव के ठीक दो दिन पहले "कट्टा , बम्ब" इत्यादी का सप्लाई होना शुरू हो जाता है ! इन सब का इस्तेमाल कम और हड्काने मे ज्यादा होता है ! थोडा टेंशन बढ़ाने के लिए "हवाई फैरिंग" किया जाता है !

पहले प्रचार जोर दार ढंग से होता था ! कई लोग ऐसे होते थे जो गाड़ी किसी और उम्मीदवार का , पैसा किसी और उम्मीदवार का और वोट किसी और को ! दुनिया मे सभी जगह जात पात है , चुनाव के दौरान दुसरा जात का वोट पाने के लिए उम्मीदवार बेचैन होते हैं ! अगर आप अपने "जात" के उम्मीदवार के खिलाफ दुसरे जात वाले उम्मीदवार के लिए थोडा भी काम कर रहे हैं तो आपको "दामाद " वाला ट्रीटमेंट मिलेगा ! अधिकतर चुनाव मे , चुनाव के ठीक एक दिन पहले वाली रात मे "निर्णय" होता है ! कहीँ कहीँ एक तरफा मुकाबला होता है - वहाँ मजा नही आता है ! किसी चुनाव मे आप किसी उम्मीदवार के लिए काम कीजिये और देखिए आपको "भारत-पाकिस्तान" वाला क्रिकेट मैच से ज्यादा मजा आएगा !

कई उम्मीदवार समर्थन रहने के वावजूद चुनाव हार जाते हैं - क्योंकि उनमे "चुनाव - प्रबंधन " नही होता है ! कई ऐसे होते हैं - जो पैसा के बल पर चुनाव जीत जाते हैं ! कई पैसा खर्चा कर के भी जीत नही पाते हैं ! कुछ लोग खानदानी चुनाव लड़ने वाले होते हैं - हर चुनाव मे बाप -दादा का २-४ बीघा जमीन बेचने मे हिचकिचाते नही ! मुझे लगता है - आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थान को "चुनाव-प्रबंधन" पर कुछ १-२ साल का डिप्लोमा शुरू करना चाहिऐ !

किसी बडे पार्टी का टिकट जुगार कर लेना भी लगभग चुनाव जितना जैसा होता है ! बहुत दिन तक हमको यह नही पता था कि "टिकट" का होता है ! टिकट कैसा होता है ? एक बार लालू जीं को धोती मे पार्टी का टिकट बाँध कर रखते हुये देखा ! फिर वोही हमको बताये कि - यह पार्टी का स्य्म्बोल होता है - जिसके हाथ मे यह चला गया वोही पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार होता है ! कई जगह पैसा वाले टिकट का दाम बढ़ा देते हैं ! और यहाँ पार्टी पेशोपेश मे पड़ जाती है ! कई जगह टिकट कि नीलामी होती है !

नॉमिनेशन वाले दिन भी थोडा हंगामा जरूरी होता है ! २-४ ठो गाड़ी घोडा , किराया पर "जिंदाबाद - मुर्दाबाद" कराने वाले लोग इत्यादी कि जरूरत होती है ! यहीं आपके खिलाफ या पक्ष मे पहला "हवा" तैयार होता है ! अब यह "हवा" आपके साथ कितना दिन तक रहता है - यह आपका नसीब !

कई बार पढे लिखे विद्वान् लोग चुनाव हार जाते हैं ! "जनता" को विद्वान् से ज्यादा उनके दर्द और तकलीफ को जानने वाला ज्यादा "मत" पता है - भले ही वोह बाद मे बेईमान हो जाये !

"मत गिनती" वाले दिन भी बहुत टेंशन रहता है - पहले कई राउंड होते थे ! "दशहरा - दीपावली " जैसा २ दिन तक कोउन्तिंग होता था ! कभी कोई ४००० से आगे चल रहा है तो कभी कोई ५००० से पीछे ! हमलोग टी वी से बिल्कुल चिपके होते थे ! खैर अब तो सब कुछ - २ -४ घंटो मे ही खतम हो जाता है !

खैर , अगर मरने से पहले एक चुनाव नही लड़े तो क्या किये ? हमारे एक कहावत है - अगर किसी से दुश्मनी है तो उसको एक पुराना चार-पहिया खरीदवा दीजिये और अगर दुश्मनी गहरी है तो "चुनाव" लड्वा दीजिये !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Friday, October 5, 2007

बाहुबलीयों की वक़ालत

१ अक्तूबर और फिर ३ अक्तूबर को पटना की एक अदालत ने कुछ बाहुबलियों को सजा सुनायी ! "सजा" ऎसी की शेर के आखों मे भी आंसू आ गए ! "समाज" अजीब है ! कभी सर आखों पर तो कभी जूतियों के नीचे ! आदमी वही है , व्यक्तित्व भी वही है ! देखने की नज़र बदल जाती है ! मुझे भी याद है - गाँधी मैदान का वोह रैली जिसमे एक शेर की तरह "आनंद मोहन" गरज रहे थे ! आज वही "आनंद मोहन " के आंसू पोछने वाला कोई नही है ! यही वक़्त है !
आप सभी लोग पढे लिखे हैं - राजनीति का अपराधीकरण कैसे हुआ ? या अपराधियों का राजनीति मे प्रवेश कैसे हुआ ? सुरजभन या अशोक सम्राट जैसे लोगों को कौन पनपाता है ? ईन गिदर को शेर कौन बनाता है ? सिर्फ बंदूक की बदौलत कोई बाहुबली नही बन सकता ! यह मेरा दावा है !
बिहार मे १९८० से १९९० के दशक मे कई बाहुबली पैदा हुये ! बीर मोहबिया , बीरेंद्र सिंह , काली पाण्डेय , सूरज देव सिंह इत्यादी ! लेकिन इनमे दम नही था ! क्योंकि इनकी संख्या कम थी ! राज्य स्तर पर इनकी पहचान नही थी !
१९९० का चुनाव - कई बाहुबली पैदा लिए ! कॉंग्रेस के खिलाफ , लोगों ने इनको चुनकर भेजा ! यह जनता का पैगाम था - राजनीति कराने वालों के लिए ! लेकिन - यह लालू जीं से संभल नही पाए ! सही नेतृत्व के आभाव मे यह सभी कहीँ ना कहीँ जनता की मज़बूरी बन गए ! समाज पहले भी विभाजित था , समाज आज भी विभाजित है और समाज कल भी विभाजित रहेगा ! हाँ , हो सकता है कल विभाजित समाज का पैमाना कुछ अलग हो !
सन २००० का चुनाव और नितीश जीं का मुख्य मंत्री बनाना , १४ निर्दालिये बाहुबली विधायकों का समर्थन लेना वोह भी सूरजभान के नेतृत्व मे ! क्या यह फैसला - बाहुबलियों के मन को बढाना नही था ! क्या इस फैसले ने जनता के गलत फैसले को मजबूत नही किया ? क्या संदेश गया जनता के बीच की सरकार सिर्फ इनकी ही सुन सकती है ! लल्लू के दरबार मे सहबुद्दीन जैसे लोगों को राजा की उपाधि देना । जड़ विहीन लोगों के दवाब मे विश्वा प्रख्यात चिकित्सक सी पी ठाकुर को मंत्रिमंडल से बहार कर देना और पटना एअरपोर्ट पर सी पी ठाकुर का २१ ये के ४७ से आव्गानी करना और सरकार का चुप चाप तमाशा देखना , क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढाना नही है ! क्या हम पूछ सकते हैं श्री नितीश कुमार जीं से की रेल मंत्री होने के नाते सूरजभान को आर्थीक रुप से वोह कितना मजबूत बनाए की आज यह आदमी बिहार का सबसे धनिक लोगों मे से एक है ! जब सूरजभान से मन मुताओ हुआ तो अनंत सिंह को चांदी के सिक्कों से तुलना या फिर अनंत सिंह के दरवाजे पर हर दुसरे दिन जाना ! क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढ़ाने के लिए काफी नही था ? सन २००० के चुनाव मे क्या सोच कर ४० सीट दिये - आनंद मोहन को ! जब वंदना प्रेयसी अनंत सिंह की नकेल कस रही थी तो फिर क्या सोच कर आप उनका ट्रांफर कर दिए ? गुल खाए और गुलगुले से परहेज !
आप राज नेताओं ने इन बाहुबलियों का मन इतना उंचा उठा दिया की सही ढंग से राजनीति कराने वाले ग़ायब हो चुके हैं ! हर गली मुहल्ला मे अपराधी का बोल बाला था ! कानून का भय तो बिल्कुल ही नही है !
खिलाड़ी तो यह राजनेता हैं ! जनता और कुत्ते की मौत मरने वाले अपराधी तो बस गोटी भर ही हैं ! पढे लिखे गरीब बिहारीओं का यह दुर्भाग्य है की "नौकरी" पा कर पेट भर लेना ही उनका एक मात्र लक्ष्य है ! फिर भटके हुये समाज को बाहुबली के अलावा क्या उपाय है ?

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Friday, September 28, 2007

बुद्धिमान और विद्वान्

"विद्वान्" कोई भी बन सकता है लेकिन "बुद्धिमान " होना आपके लिए आसान नही है ! कुछ अध् कचरे "विद्वान्" दोस्तो को अक्सर यही लगता है कि वोह बहुत "बुद्धिमान" हैं और यहीं वोह मात खा जाते हैं ! कई लोगों को देखा है - "विद्वता" तो आ जाती है लेकिन "बुद्धि" नही आती ! तभी तो देश मे कई "बुद्धिमान" लोग राज करते हैं ! जैसे - " धीरूभाई " , "लालू प्रसाद " ! मुझे नही लगता है कि यह लोग "विद्वान्" हैं लेकिन कोई शक नही कि यह "बुद्धिमान " हैं !
मैंने देखा है "बुद्धिमान" लोग "विद्वानों" को क़द्र करते हैं ! लेकिन वक़्त वक़्त पर "विद्वानों" को उनका औकात भी बता देते हैं ! यह गलत है ! लेकिन इससे भी ज्यादा दिक्कत तब होती है जब अध् कचरे "विद्वान्" खुद को बुद्धिमान समझने लगते हैं !
अभी हाल मे ही उत्तर प्रदेश मे कुछ "विद्वान" चुनाव लड़ने चले गए ! हार ही नही गए - बुरी तरह हारे ! यह एक सबक है और संदेश भी ! आप बहुत विद्वान् है - आप अपने "मालिक" के लिए २४ घंटा काम करते हैं - मालिक को कमा कर देते हैं - मालिक खुश होता है - पगार कुछ बढ़ा देता है ! लेकिन इसका मतलब यह नही कि बाकी का समाज भी आपको स्वीकार करे ! पुरा बिहार आपकी कंपनी तो नही , है ना ? सामाजिक स्तर पर कुछ करने के लिए प्राकृतिक "बुद्धिमान" कि जरूरत है ना कि क्रितिम रुप से बनाए हुये "विद्वान्" कि ! यह समझ आपको होनी चाहिऐ ! वर्ना विद्वान् लीडर बनने के चक्कर मे समाज कि दुलत्ती भी लग सकती है !
विद्वता दिखाने के कई अवसर और जगह मिलेंगे ! उन अवसरों और मौकों को खोजिए - जहाँ आपकी "विद्वता" का आदर हो !
खुद को आंकिये और तीर सही निशाने पर लगायीये ! "विद्वान्" हैं - विद्वान् कि तरह रहिये , बेवजह  बुद्धिमान मत बनिए !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, September 25, 2007

डिप्रेशन

एक दादा जीं पागलों के बहुत बडे डाक्टर हैं - बिहार सरकार के अपने फकुल्टी के सबसे बडे अधिकारी हैं - कहते हैं आज कल "डिप्रेशन" के मरीज बहुत बढ़ गए हैं ! मैंने बातों ही बातों मे पूछ बैठा कि इस तरह के मरीज किस आय वर्ग से आते हैं - वोह मुस्कुरा कर कहते हैं - गरीबों मे 'डिप्रेशन' नही होताहै ! या फिर गरीबों को पता ही नही चलता है ! गरीब पागल हो जायेंगे लेकिन "डिप्रेशन' के शिकार नही होते !
कुछ तो है - अच्छा पढ़ाई लिखाई ! अछ्छी नौकरी ! मस्त वेतन ! बढिया लोकेशन ! सुन्दर पत्नी ! फिर भी डिप्रेशन !
कुछ लोग बिल्कुल "मस्त" होते हैं ! हाथी कि तरह ! "भय" नही होता है !किसी भी चीज़ का "भय" नही होना ! जिन्दगी मे सबको सब कुछ नही मिलता है ! आज कि युवा पीढी को सब कुछ चाहिऐ ! सब कुछ ! यह प्रकृति के विपरीत है ! "त्याग" को भी भंजाने से वोह नही चुक रहे हैं ! शिक्षा का उद्धेश्य - कमाना - कमाना और कमाना है ! ठीक है ! लेकिन "पैसा" का साइड एफ्फेक्त भी होता है ! और सबसे बड़ा साइड एफ्फेक्त होता है - "डिप्रेशन" !
"पैसा" कमाने कि होड़ मे आदमी बिल्कुल अकेला हो गया ! यह अकेलापन बहुत खराब है - "खा" जाता है आदमी को ! "कपिलदेव" या "धोनी" कि टिम ही वर्ल्ड कप जीतती है ! यह सच्चाई है ! इस सच्चाई को कबूल करना सीखें ! "फल कि चिन्ता किये बैगैर कर्म किये जाएँ " ! कहना कितना आसान है ! लेकिन हम सभी को इसके महत्व को समझाना होगा !
एक आदमी सब कुछ कर सकता है ! मेरे मित्र "चंदन जीं : कहते हैं - "गया निवासी 'दशरथ मांझी' एक बहुत ही सरल उदाहरण हो सकते हैं !" एक दिशा मे ही लगातार बढ़ाते रहना ही - सबसे आसान उपाय है ! एक कहावत है " एक साधे - सब सधे " !
कई लोग अपनी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नही कर पाते हैं ! अलूल - जलूल कि चीजों मे फँस जाते हैं ! कई कारण हैं - घातक डिप्रेशन के ! हमे इससे बचना चाहिऐ ! ठंडा दिमाग से सोचना चाहिऐ कि हमे अपने ज़िंदगी से क्या चाहिऐ ? चिन्ता ना करें ! दूसरों को भी अपनी "चिंता" ना थोपें ! व्यक्ति और व्यक्तित्व दोनो का आदर करें ! सामने वाले पर विश्वास करना सीखें ! कोई आपको सिर्फ और सिर्फ एक बार हो धोखा दे सकता है - दुसरी दफा नही !
और हमेशा ईमानदार रहे ! अपने कर्तव्य और संबंधों के प्रति !
और कुछ ??

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Monday, September 24, 2007

पाकिट मे पत्थर और आसमान मे छेद

शायद वफ़ा के खेल से उकता गया था वोह, मंज़िल के पास आके जो रस्ता बदल गया
कौन कहता है , आसमान मे छेद नही होता , एक पत्थर तो 'तबियत' से उछालो ! चलिए पत्थर तो मिल जाएगा लेकिन 'तबियत' कहॉ से बनेगा ? आसान काम है क्या - 'तबियत' बनाना ? अब अगर 'तबियत' बन भी जाएगा तो क्या जरुरी है कि हम 'आसमान' मे पत्थर को उच्छालें ? हो सकता है हम इस पत्थर से किसी का 'कपाड़' फाड़ दें या 'पत्थर' को पाकिट मे ले कर घूमें या किसी के 'आंगन' मे फेंक दें ! मेरी मर्जी !
'बकरी' चराने वालों को 'बाघ' नही पालना चाहिऐ ! हमेशा खतरा रहता है कि कहीँ 'बाघ' बकरी को खा ना जाये ! 'बकरी' को हमेशा घमंड रहता है कि 'मालिक' उसके साथ है - 'बाघ' कुछ नही कर सकता ! यह मालिक कि गलती है कि 'बाघ' और 'बकरी' दोनो को एक साथ एक ही घर मे पालने का शौख रखते हैं ! यह बिल्कुल 'गलत' बात है !
तो मैं कह रहा था - 'तबियत' बनाने कि बात ! धरती है सो तरह तरह के 'प्राणी' मिलेंगे ! लोग अलग अलग ढंग से 'तबियत' बनाते हैं ! 'चाचा' बिहार सरकार मे नौकरी karate हैं ! सेक्रेटेरिएट मे जाते हैं ! पटना का सेक्रेतेरिअत को उद्योग का दर्जा मिल हुआ है ! सभी इस उद्योग पर kabzaa जमाना चाहते हैं ! "पोर्टर' का कोम्पितितिव मोडल यहाँ लागू होता है ! खैर , चाचा सेक्रेतेरिअत पहुंचाते ही शुरू हो जाते हैं - कहते हैं कि जब तक २-४ थो को गरिया नही दें - 'तबियत' नही बनता है ! फिर पाकिट से 'पत्थारवा' निकाल के टेबुल पर रख देते हैं ! हम कितना बार पूछे कि 'ई , पत्थारवा से कहियो 'आसमान' मे छेद भी होगा कि यूं ही रखल रह जाएगा ! 'चाचा' बोले कि - जब तक हाथ मे पत्थर है पब्लिक को आशा है कि आज नही ता कल , कहियो ना कहियो आसमान मे छेद होगा ही !
हम कहे चाचा , हंसिये मत ! पब्लिक बौरा गया है ! आज - kheera चोर को धुन रह है ! कल हीरा चोर को धुनेगा ! सोचिये जरा - पब्लिक ठीक इसी तरह सभी बड़का बड़का चोर लोग को खदेड़ खदेड़ के khet मे ले जाके पिटने लगे ता क्या होगा ? चाचा बोले - बुरबक हो ? ऐसा दिन कभी नही आएगा ! हम सोचे कि चाचा कितना आशावादी हैं , तब ही तो उनके पास तबियत और पत्थर दोनो है !
तबियत बना के , पाकिट मे पत्थर लेकर घुमिये और मौका मिलाते ही आसमान मे छेद कर दीजिये ! काम खतम !
रंजन ऋतुराज सिंह ,
पाठक वर्ग से मेरा अनुरोध है कि कृपया इस लेख को बिहार कि राजनीति से जोड़ कर ना देखें ! आपको कष्ट हो सकता है !

संस्कृति और कुछ तस्वीरें


http://lelongdugange.blogspot.com/

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, September 11, 2007

मन नही लगता है - भाग एक

मन नही लगता है ! मन करता है , बिहार वापस चले जाएँ ! दिल्ली मे पेट भरुआ नौकरी से क्या मिलेगा ? एक रुपईया जमा नही है ! ऊपर से ढ़ेर सारा हेडक , जो बचाता है पटना आने जाने मे खर्चा हो जाता है !
वहीँ पटना मे रहेंगे ! कुछ लोन ले के एक स्कार्पियो गाड़ी ख़रीद लेंगे ! हरा रंग का ! झकास लगेगा ! गाड़ी मे उजाला परदा लगा लेंगे ! सीट पर सफ़ेद तौलिया , फर वाला बिछा देंगे ! २- ४ ठो चेला चपाटी बना लेंगे ! सप्ताह दू सप्ताह पर गांव से घूम आवेंगे !
कभी कभी मन करता है कि कोई बिजिनेस करें ? अब क्या करें , यही नही बुझाता है ! बाबूजी के डर से नौकरी कर रहे हैं ! मेरा नौकरी करना उनके इज्जत से सरोकार रखता है ! अगर हम नौकरी नही किये तो लोग क्या कहेगा ? ई साला लोग के चक्कर मे हम अपना ज़िन्दगी नाश दिए , फेर भी लोग बहुत कुछ कहता है - मेरी सास कहती है कि सबका दामाद बड़का बड़का कम्पनी मे काम करता है - और एक आप हैं !! अब हम अपना सास को कैसे समझायें कि कम्पनी मे गदहा का जरूरत है घोडा का नही ! हमसे बोझा नही उठेगा !
दूर , माथा खराब हो जाएगा - जितना सोचेंगे ! मूड खराब हुआ ता गरीब रथ से वापस लॉट जायेंगे ! हो गया ! लोग जान गया कि फलना बाबु का लईका भी कुछ कर सकता है ! यही कम है , क्या ? एक ही ज़िन्दगी मे क्या क्या करें ? बाप - दादा , ख़ानदानी और रईस बना के रख दिया - संस्कार ऐसा डाल दिया कि किसी के सामने सर झुकता नही है ! पैसा ही सब कुछ का माप दण्ड हो गया ! बचपन मे देखा कि बडे बडे पैसा वाले को हिम्मत नही होती थी हम लोगों के सामने बैठने की  - अब सब कुछ उलटा हो गया ! ऐसा लगता है कि पैसा के खेला मे फंस गए !
लिखा होगा ता पैसा कहीँ भी मिल जाएगा ! क्या जरूरत है मान - सम्मान बेच के पैसा कमाने कि ! थोडा सकून भी होना चाहिऐ - जिन्दगी मे !
ता , कह रहे थे कि पटना चले जायेंगे - वहीँ राम बिलास चाचा का पार्टी जोइन कर लेंगे ! लालू जीं और नितीश जीं के यहाँ बहुत धक्का है ! रोज शाम को अपना स्कार्पियो मे चेला चपाती सब के साथ डाक बंगला चौराहा पर केदार के दुकान पर पान कचरेंगे और उज्जर उज्जर कुरता - पैजामा पहन कर खूब हवा देंगे ! एक रे बन का चश्मा भी ले लेंगे ! कभी कभी जेंस का पैंट और T शर्ट और बाटा का हवाई चप्पल पहन के बोरिंग रोड़ मे घुमेंगे या मौर्या लोक मे टहलेंगे !
मूड हुआ ता "महंगू" के दुकान मे जाके बगेरी या चाहा का मीट खायेंगे ! रिटेल का जमाना है ता - हर शहर मे कोर्ट - कचहरी के सामने "मीट-भात" का दुकान खोलेंगे ! आप देखे होंगे कि बहुत सारा लोग ऐसा होता कि जब तक वोह दू-चार कित्ता केस नही लडेगा उसका जीना बेकार है , ऐसा लोग के लिए ही - कोर्ट - कचहरी के सामने मीट - भात का दुकान होता है ! हर शहर मे आपको ऐसा कोई ना कोई फेमस दुकान मिल जाएगा ! वैसा मीट खाने के बाद पांच सितारा का खाना बेकार लगेगा !
बहुत सारा प्लान है - लेकिन ई पेट भरुआ नौकरी ज्यादा दिन नही होगा ! हमलोग काम करने के लिए पैदा लिए हैं कि करवाने के लिए ... बताईये तो महाराज ....
क्रमशः

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Saturday, September 8, 2007

बिदाई : श्री मदन मोहन Jha



कुछ कह नही सकते ! लेकिन "बिदाई" हमेशा दुखदायी होती है ! "कफ़न मे जेब नही होती " ! बस और बस रह जाते हैं - आपके कर्म !
"झा" जीं , आप कहॉ गएँ हैं ? आप तो हम लोगों के बीच मे ही हैं ! कौन कहता है - आप चले गए ? झूठ बोलता है ! देखिए ना , कल मीटिंग है - नए बहाल शिक्षक गन के पेंशन का ! सिन्हा जीं , आ रहे हैं ! बहुत सारा बेजुबान फ़ाइल आपका इंतज़ार कर रहा है ! बिहार के शिक्षा के बुनियादी ढांचा को संवारना है ! उठिये ना ! आराम - हराम है ! यही ना , आप कहते हैं !
"नितीश जीं " आप रो क्यों रहे हैं ? Brishan पटेल जीं आप फूट फूट कर क्यों रो रहे हैं ! क्या हो गया ? "झा जीं " कुछ बोलते क्यों नही ?
किसी अफसर कि क़ाबलियत कि मिशाल यही है कि उनके जाने के बाद - मंत्री और मुख्य मंत्री फूट फूट कर रो रहे हैं !
आप बहुत याद आएंगे ! सच्ची श्रद्घांजलि यही होगी कि उनके सुरु किये हुये कामो को बिना किसी रुकावट के जारी रहे !
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पटना। मानव संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव और 1976 बैच के बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी डा. मदन मोहन झा का शुक्रवार को अहले सुबह आकस्मिक निधन हो गया। वे 56 वर्ष के थे। हाजीपुर में गंगा घाट पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। स्व. झा अपने पीछे धर्मपत्नी श्रीमती निशा झा, पुत्र सौरव और पुत्री नेहा को छोड़ गए। डा. झा के निधन की खबर से पूरे सरकारी महकमे और शिक्षा जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है।

मूलत: भागलपुर जिले के भागलपुरा गांव निवासी डा.मदन मोहन झा के निधन के वक्त उनकी धर्मपत्‍‌नी श्रीमती निशा झा मौजूद थीं। उनके करीबी रिश्तेदार बीएन झा ने बताया कि रिश्ते में उनके ममेरे बहनोई डा. झा के माता-पिता श्रीमती भवानी देवी और शकुन लाल झा जीवित हैं। उन्होंने बताया कि रात साढ़े तीन बजे अचानक उन्हें बेचैनी महसूस हुई। तत्काल एम्बुलेंस बुलाई गई और पीएमसीएच के इन्दिरा गांधी हृदय रोग संस्थान ले जाया गया,जहां चिकित्सकों ने रात के करीब साढ़े चार बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया।
डा. झा के निधन की खबर से पूरे सरकारी महकमे और शिक्षा जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है। राज्य सरकार ने इनके निधन पर एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा करते हुए शुक्रवार को सरकारी विभागों में अवकाश घोषित कर दिया। उनकी अंत्येष्टि शुक्रवार की देर शाम पूरे राजकीय सम्मान के साथ हाजीपुर स्थित कौनहरा घाट पर कर दिया गया। घाट पर बिहार सैन्य पुलिस की गोरखा बटालियन के जवानों ने 12 राइफलों की गारद सलामी दी। इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, रामाश्रय प्रसाद सिंह, वृषिण पटेल, अश्विनी चौबे, मुख्य सचिव अशोक कुमार चौधरी, गृह सचिव अफजल अमानुल्लाह, कैबिनेट सचिव गिरीश शंकर, अपर पुलिस महानिदेशक अभ्यानंद, महाधिवक्ता पीके शाही, बिहार राज्य धार्मिक न्याय परिषद के प्रशासक आचार्य किशोर कुणाल, पटना के डीएम डा. बी. राजेन्दर, वरीय आरक्षी अधीक्षक कुन्दन कृष्णन, आईएएस आमीर सुबहानी, डा. दीपक प्रसाद, वैशाली के डीएम लल्लन सिंह, आरक्षी अधीक्षक अनुपमा निलेकर सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

अपने कैरियर का आगाज पटना विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में करने वाले डा.मदन मोहन झा ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि अर्जित की थी। शिक्षा पर उनकी ख्यातिनाम पुस्तक आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेस से प्रकाशित हुई। प्राथमिक शिक्षा और विकलांग शिक्षण पद्धति के राष्ट्रीय विशेषज्ञ माने गए डा.झा भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1976 में आए। डा. झा ने धनबाद और सहरसा समेत कई जिलों के जिलाधिकारी के रूप में महत्वपूर्ण कार्य किया। वे भारत सरकार में संयुक्त सचिव भी रहे। बिहार सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर योगदान दे चुके डा. झा 2011 में सेवानिवृत्त होने वाले थे पर नियति को कौन जानता है..!
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Wednesday, September 5, 2007

श्री राजू नारायणस्वामी , केरल

श्री राजू नारायणस्वामी केरल कैडर के एक आईएस अधिकारी है ! चलिए कुछ इनके बारे मे जानते हैं !
  • केरल राज्य माध्यमिक परीक्षा मे प्रथम
  • +२ परीक्षा मे प्रथम
  • IIT-JEE मे प्रथम दस
  • IIT-मद्रास मे कंप्यूटर इंजीनियरिंग मे प्रथम
  • "मस्सचुसेत्त्स" विश्वविद्यालय से आमंत्रण
  • और सिविल परीक्षा , १९९१ मे प्रथम
  • केरल कैडर के आईएस अधिकारी
  • केरल साहित्य अकादमी से पुरस्कृत

इमानदार छवी के इस अधिकारी के कई बातें मशहूर हैं ! कहते हैं इन्होने ने अपने ससुर को ही कटघरे मे खड़ा कर दिया जब इनके ससुर अपने आईएस दामाद के नाम को भंजाने कि कोशिश कि ! अभी हाल मे ही केरल के एक मंत्री को अपना इस्तीफा देना पड़ा - क्योंकि राजू नारायणस्वामी उनके पीछे पडे थे !

ज्यादा डिटेल मे जानना है तो पढिये :-

http://www.indianexpress.com/story/214374.html

http://think-free.blogspot.com/2005/11/raju-narayanaswamy-ias.html

http://en.wikipedia.org/wiki/Raju_Narayana_Swamy


कुल मिला कर आपको यही लगेगा कि क्या "बिहार-UP " और क्या "केरल" सभी जगह के लोग एक जैसे हैं और सभी जगह SYSTEM मे कुछ ईमानदार अधिकारी है जिनके कारण यह SYSTEM चल रह है ! कुछ ऎसी ही कहानी बिहार के एक IPS अधिकारी कि रही है जिन्होंने अपने ससुर के घर ही vigilence का छापा पड़वा दिया था और मूड खराब हुआ तो राज नेताओं के गरम बिस्तर कि लाश को निकलवा लिया !

समाज को बिना किसी भेद भाव , जात -पात के द्वेष इस तरह के ईमानदार अधिकारीयों को हीरो बनाना चाहिऐ ताकी वोह राज नेताओं को नंगा कर सके !

लेकिन ऐसे अधिकारी सिर्फ और सिर्फ अपने होम कैडर मे ही हीरो बन पाते हैं ! अभी हाल मे ही गुजरात के एक बेहद ईमानदार आईएस अधिकारी जो बिहार के रहने वाले हैं , उन्होने इस्तीफा दे दिया और मुकेश अम्बानी कि team मे सबसे ज्यादा तनखाह पाने वाले अधिकारी बन गए ! दुर्भाग्यवश , मोदी अभी तक उनका इस्तीफा स्वीकार नही किये हैं !

कुछ भी कहिये एक ईमानदार आईएस या IPS के सामने सभी पेशा फीका है !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Sunday, September 2, 2007

असली हीरो !

आज कि शाम छ बज कर बीस मिनट पर इसरो ने अपना rocket दागा और वोह सफल हुआ ! बाकी का समाचार आप लोग पढे होंगे या खबरिया चैनल पर देखे होंगे !
यह वैज्ञानिक हैं ! यह आईआईएम से पढे नही हैं ! इनकी कारें मन्हातन कि गलियों मे खडी नही होती हैं ! "सीताराम येचुरी " कि तरह ये "Color plus" के पैंट शर्ट नही पहनते हैं ! इनके बच्चे "doon school" मे नही पढते हैं ! ये किसी टॉक शो मे नही आते हैं और ना ही प्रभु चावला कोई सवाल दागते हैं ! दिल्ली नौएडा और नवी मुम्बई मे इनके कोई फ़्लैट नही होते हैं !
ये मात्र ८००० बेसिक तनखाह से अपनी जिन्दगी शुरु करते हैं ! शायद यही तनखाह भारतीय प्रशाश्निक सेवा के अधिकारीयों कि होती है !
बात ९२-९३ कि रही होगी , हमारे कालेज मे तत्कालीन इसरो अध्यक्ष उद्दप्पी राम कृष्णन राव आये थे ! उन्होने ने बताया कि उनका टेक्नोलॉजी यह बताता है कि बिहार के गंगा तट के आस पास कि जमीन सबसे उपजाऊ है ! मेरा सीना चौड़ा हो गया था ! हम सभी कितने बेताब थे उनसे हाथ मिलाने को ! ऐसा लगा था कि वही असली हीरो हैं ! बाकी सब बकवास !
"मेसरा" मे पढ़ाई के दौरान वहाँ के Rocketary Department के कई शिक्षक गन को दिन रात काम करते देखा था ! उनमे कई तो ऐसे थे जो "Visual C ++" मे बहुत बडे बडे software बनाते थे और बिना किसी पैसा के इसरो को दे देते थे !
आज शाम NDTV पर पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब का Interview देखा ! इसमे कोई शक नही कि शेखर गुप्ता एक बेहतरीन और सफल पत्रकार हैं सो कलाम साहब को वापस T V पर देख बहुत अछ्छा लगा ! धन्यवाद शेखर गुप्ता जीं और "NDTV" ! अब तो कलाम साहब "नालंदा" मे भी नज़र आएंगे - बिहार विकाश पुरुष नितीश कुमार ने उनको "Visitor" बनाया है !
कुछ दिन पहले NDTV-इंडिया ने एक पोल किया कि कौन असली हीरो है ? 'ओप्शन ' मे बहुत कुछ नही था लेकिन जो था उसमे करीब ९८ % वोट "असली हीरो - सैनिक " को मिला ! मुझे अपना बचपन याद है - हम सभी "सिपाही" बनाना पसंद करते थे क्योंकि सिपाही के हाथ मे बंधूख होती थी !
लेकिन कितने लोग हैं जो "सैनिकों " को "असली हीरो" मानते हुये अपने बच्चों को सेना मे भेजना पसंद करेंगे ???
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Saturday, September 1, 2007

संसद और सांसद

मैं करीब साढे चार - पांच बजे शाम को घर वापस लौटता हूँ ! आते ही चाय - नास्ता वैगरह के साथ साथ अपने "T V "पर लगभग सभी खबरिया चैनल को एक नज़र देखता हूँ ! "मानसून सत्र " चल रह है संसद मे सो "लोकसभा T V " पर आ कर रूक जाता हूँ ! देश के सबसे ताकतवर स्तम्भ को "लाइव" देख अछ्छा लगता है ! लोकसभा मे जो भी व्यक्ति बैठा हुआ है - वोह देश का सबसे ताकतवर है ! यह बात १९७७ और १९८० के आस पास मेरे दिमाग मे बैठ गयी और अभी तक है ! और यही सच्चाई है !
शाम के वक़्त बहुत कम सांसद बैठे होते हैं ! सुना सुना सा संसद अछ्छा नही लगता है ! फिर भी कुछ लोग बैठे होते हैं और कुछ कुछ बोलते हैं ! उन्ही बैठे लोगों मे एक हमारे क्षेत्र के प्रतिनिधी यानी पटना के सांसद "श्री राम कृपाल यादव" जीं भी होते हैं ! मैं उनको हर रोज कुछ ना कुछ बोलते देखता हूँ - सच पूछिये तो मेरे मन मे उनके प्रति बहुत आदर बढ़ गया है ! मैंने उनको अपने ही रेल मंत्री को धावा बोलते देखा है ! "बिहार" का कोई भी मुद्दा हो और वोह मुद्दा राम कृपाल जीं से छुट जाये - यह हो नही सकता ! कई बार तो वोह देश के दुसरे प्रांत से सम्बंधित वाद विवाद मे हिस्सा लेते हैं ! कल परसों उनको ग़ैर बिहार मसलों पर बोलते देखा ! वैसे कभी कभी सभापति बने हुये मधुबनी के सांसद स्री देवेन्द्र यादव जीं - राम कृपाल यादव को ज्यादा समय नही देते हैं ! देवेन्द्र प्रसाद भी एक अच्छे सांसद हैं ! कल श्री नवीन जिंदल के "प्रायवेट बिल " पर इन सबों को खुल के बोलते देखा ! यहाँ भी , राम कृपाल यादव जीं छाये रहे !
अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो उनको किसी ना किसी मंत्रालय का मंत्री बना देता ! लल्लू जीं के साथ है - यह वरदान है या श्राप - यह बात राम कृपाल जीं से ज्यादा कोई नही जानता होगा ! राम कृपाल जीं पटना के बीचों बीच बसें हुये मुहल्ला "गोरिया-टोली " के निवासी है ! "गोरिया टोली " के यादव यह समझते हैं कि "पटना" उनका है और हम ही खांटी 'यादव' है ! यह बात लालू जीं भी अछ्छी तरह से जानते हैं ! जब जय प्रकाश नारायण यादव जीं मंत्री बन सकते हैं फिर राम कृपाल जीं क्यों नही ? क्या "खांटी " और "खानदानी " यादव होना अभिशाप है ?

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Thursday, August 30, 2007

कुछ खास पत्रकार !

बात २००५ के जून महीना कि है पटना मे अचानक से मेरी जरुरत आ पडी और मैंने सुब्रतो रोय के जहाज से पटना के लिए निकल पड़ा ! बगल वाली सीट पर एक खबरिया चैनल के पटना प्रमुख बैठे हुये थे - मैंने पुछा कि आप तो फलना न्यूज़ चॅनल के लिए काम करते हैं - वोह मुसकुरा दिए ! मैंने बातों ही बातों मे पूछ लिया कि - कंपनी के काम से आये थे , क्या ? वोह बोले नही एक नेता जीं के बेटी के बियाह मे आये थे ! हम बोले बेटी के बियाह मे आये हैं सो खुद के पैसा से हवाई जहाज का खर्चा वहन किये होंगे ! वोह बोले - 'नही , नही - सब ARRANGE हो जाता है ' !
कुछ दिनों के बाद - वही नेता जीं जो केंद्रिये मंत्रिमंडल के सदस्य भी हैं , उनको हार्ट अटैक आया ! हार्ट हॉस्पिटल मेरे घर के पास ही था - पटना मे ! सो 'ब्रेकिंग न्यूज़' देख मैं भी एक आम जनता और थोडा जागरूक होने के कारण , पैजामा कुर्ता मे हॉस्पिटल कि तरफ दौड़ पड़ा ! वहाँ देखा तो वही न्यूज़ चैनल वाले 'पत्रकार' महोदय अपने केमरा मैन के साथ हॉस्पिटल के गेट के सामने खडे थे ! केमरा ऑफ़ था ! और पत्रकार महोदय - मंत्री जीं के एक खास करीबी दुसरे नेता के साथ - ही - ही- आ रहे थे ! मैं उनको 'ही-ही-आते ' देख दंग रह गया ! पत्रकार महोदय के चारों तरफ राज्य स्तर के नेता थे ! कोई पूर्व मंत्री तो कोई वर्तमान विधायक ! इन सबों के बीच पत्रकार महोदय का STATUS देख मेरा कई भ्रम एक साथ चकनाचूर हो गया ! जिसको मैं एक आम जनता का पत्रकार समझाता था - वोह "खास' लोगों का "खास" पत्रकार निकला !
यही सच्चाई है और इस दुनिया मे सब कुछ बिकाऊ है ! अगर मैं नही बिक पता हूँ तो इसमे उस पत्रकार कि क्या दोष है ?
क्या मैं भी कुंठित हो गया हूँ ?

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

आज के पत्रकार : कुछ सवाल

बात सन १९८९ कि होगी ! मैं +२ मे था ! अखबार मे एक खबर आयी कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित रोजगार मे 'चिकित्सा' प्रथम स्थान पर और 'पत्रकारिता' दुसरे स्थान पर ! मेरे मानस पटल पर यह बात अंकित हो गयी ! 'पत्रकारों' को मैं एक विशेष नज़र से देखता था ! पर भ्रम टूटते ज्यादा देर नही लगी ! दिल्ली के डाक्टर समाज को मरीजों को लुटते देखा था पर पत्रकार तो पुरे देश को ही दावं पर लगा देते हैं ! अधिकतर तो वैसे लोग है - जिनके अन्दर 'कलक्टर ' नही बन पाने कि कुंठा है ! और उनके अन्दर कि यह 'कुंठा' हमारे लिए 'अभिशाप' बन जाती है ! 'कलम' कि ताकत को आतंकवादी कि राइफल के बराबर खड़ा कर दिए हैं !

अभी हाल मे ही एक 'पत्रकार' महोदय का 'ब्लोग' पढ़ रह था ! अजीब लगा ! देखा कैसे वोह कहानी के द्वारा 'बिहारी' समाज को गाली दे रहे हैं ! उनको 'बिहारीयों' को गाली देने मे एक अलग आनंद मिलता है ! खुद को 'दिल्ली वाला' कहलाने मे और राजदीप जैसे "बिहार विरोधीओं' के साथ फोटो खिंचवाने के उनकी आदर बढती है !

"चक दे इंडिया' मे और भी बहुत कुछ है ! मुस्लिम के अलावा और भी बहुत सारे संदेश हैं ! पर पत्रकारों को 'कबीर खान' का मुस्लिम होना जैसे एक तोहफा है - जिसमे वोह अपना एक 'पाठक-वर्ग' और 'बाज़ार' देखते हैं ! और पत्रकारों का यह बाज़ार , भारत को बाँट रहा है !

इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो और 'बरबाद' है ! बिल्कुल सडे और गले हुये टमाटर कि तरह ! एक दो को छोड़ - किसी मे भी मेरिट नही है ! 'बिहारी पत्रकारों' के बीच एक होड़ है - कौन कितना बिहार को और गंदा दिखा सकता है ! आप एक सवाल puchhiye तो - खुद को समाज का आईना बताने लगेंगे ! यह कौन सा आईना है जिसमे सिर्फ और सिर्फ गंदी तस्वीर दिखाई देती है ! अब मेरे जैसे कई लोग हैं जिनको लगने लगा है कि यह आईना ही गन्दा है ! और गंदे आईने मे कौन अपनी तस्वीर dekhana पसंद करेगा ? शायद मैं तो नही !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Thursday, August 23, 2007

गुनाहों का देवता !

आज "संजू बाबा" रिहा हो गए ! एक प्रसंशक होने के नाते मुझे अच्छा लगा ! यूं कहिये बहुत अच्छा लगा ! लेकिन सजा बहुत है ! वोह खुद करीब १४ साल पहले १६ महीने के लिए सजा काट चुके हैं ! बिहार के बेगुसराय और पूर्वांचल के गाजीपुर मे आपको कई ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनके पास बिना लाईसेन्स का ही हथियार होता है ! यह पकडे नही जाते ! पकडे भी गए तो थानेदार साहब कुछ ले देकर मामला राफ़ साफ कर देते हैं !
लेकिन यहाँ मामला कुछ अजीब है ! किसी ने कहा कि अपराधी तो संसद मे भी है ! कोई कुछ क्यों नही कर लेता है ! खैर , मेरी क्या awakaat कुछ बोलने कि !
लेकिन एक सवाल आप सभी लोगों से - "सजा का क्या मतलब है ? " सजा क्यों दीं जाती है ? क्या , समाज को संदेश दी जाती है ? या मुजरिम को सुधरने का एक मौका ? अगर समाज को संदेश देना है तब तो ठीक है ! लेकिन अगर मुजरिम को सुधारना ही "सजा" का मकसद है और अगर मुजरिम खुद से सुधर जाये और समाज उसको अपना ले फिर भी सजा जरुरी है , क्या ?
कुछ लोग कहेंगे कि Bomb बिस्फोट मे मरे हुये लोगों के परिवार के आंसू कौन पोछेगा ?
मेरे भी कुछ सवाल है :-
#। घटिया राजनीति के कारन मेरा बड़ा भाई अब तक बेरोजगार है ! ४० बरस कि उमर मे वोह हर रोज मरता है !
#। पूर्वांचल और बिहार मे बाढ़ आ गया ! केंद्र के नेता , हाथ पर हाथ धरे बैठे हुये हैं ! क्या इन नेताओं को सजा नही मिलनी चाहिऐ !
#। जब देश के सभी राज्यों के लोगों को घर मे ही नौकरी मिल रही है और हम लोग "second citizen" बनने को मजबूर हैं ! इस घुटन के लिए किसको सजा मिलनी चाहिऐ !
कई सवाल हैं - मज़बूरी वाले 'जबाब' भी हैं ! तब ही तो ज़िन्दगी चल रही है या हम जिंदगी काट रहे हैं ! जैसे , एक मुजरिम अपनी 'सजा' काटता है !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Wednesday, August 22, 2007

चौंकिए मत ! यह "पटना" है !


Drishya aabhaar : www.patnadaily.com

यह विहंगम दृश्य देश कि आर्थिक राजधानी मुम्बई कि नही है और ना ही दलालों का शहर दिल्ली कि है ! यह पटना है ! विश्वास नही होता है , ना ! विश्वास क्यों होगा ? इसी बिहार के दुसरे रुप को बेच कर आपके परिवार के लिए दो वक़्त कि रोती आती है ! कौन सा गुनाह किया था "बिहार" ने आपको जनम देकर ? आये थे दिल्ली मे कलक्टर बनने के लिए ! अब "दलाल" बन गए हैं ! हाथ मे "कलम" क्या मिला , छुरी समझ कर चलाने लगे ? "



रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, August 21, 2007

कडी मेहनत और सुकून : श्री अजीत चौहान

श्री नारायण मुर्ति से "Infosys अवार्ड ऑफ़ Excellence" लेते हुये श्री अजीत चौहान

अजीत को मैं WBF के द्वारा ही जानता हूँ ! फिर बाद मे पता चला कि वोह खुद का भी एक ग्रुप चलाते हैं और कई ब्लोग्स भी लिखते हैं ! वोह अक्सर मेरे mails कि तारीफ किया करते थे ! सो नजदीकी और दोस्ती होनी वाजिब थी ! 'प्रशंशा और पैसा सबको अछ्छा लगता है " !
पिछली दीपावली मे जब हम सभी पटना मे थे मुझे अजीत जीं से मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! उनके साथ थे , चंदन जीं , अतुल और मयंक जीं ! काफी लोग मेरे प्रति थोडा पूर्वाग्रह से ग्रसित थे लेकिन मुलाक़ात के बाद हम सभी एक अछ्छे दोस्त बन गए ! फिर अगले दिन मुझे वापस नौएडा आना था पर अजीत जीं के निमंत्रण को अस्वीकार नही कर पाया और उनके द्वारा आयोजीत कैरीअर सेमिनार मे पिछली seat पर बैठ कर सभी का भाषण सुना ! बहुत अछ्छा लगा !

अजीत जीं मे असीम उर्जा है ! साथ ही साथ धारातल पर रह कर खुद अपने पैरों पर खडे एक सच्चे बिहारी हैं ! हाल मे ही इनके team द्वारा गौरवशाली बिहार नमक किताब छापी गयी थी ! अजीत जीं के दोस्त और मेरे हमउम्र श्री चंदन जीं का काफी योगदान था इस किताब को प्रकाशित कराने मे ! इन सबों मे प्रथम और एक मजबूत कडी हैं - अजीत जीं !
मिडिया के द्वारा बिहार कि प्रतिष्ठा को धूमिल कराने कि कोशिश को भी इन सबों ने भरपूर विरोध किया ! आज जब बिहार बाढ़ से पीड़ित हैं , अजीत जीं और चंदन जीं काफी कुछ कर रहे हैं ! चंदन जीं तो मुज़फ़्फ़रपुर मे बाढ़ पीडितों के बीच ही हैं ! समाज के लिए कुछ करना है पर वोह समाज हित के लिए हो - खुद के प्रचार और आत्म संतुस्थी के लिए नही ! अजीत जीं का यही मूल-मंत्र है !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Sunday, August 19, 2007

वाह रे हिंदुस्तान - लेफ्ट - लेफ्ट -लेफ्ट !

हमको त राजनीति समझ मे नही आता है ! लेकिन बहुत कुछ बुझाता है ! शरद भाई कह रहे थे - " मुखिया जीं , बुझ के ही क्या कर लीजिये गा ? " १९९० से लेकर आज तक पुरा हिंदुस्तान "लेफ्ट-राईट-लेफ्ट " कर रहा है !अब आदमी का क्या ठिकाना , एक तो आदमी ऊपर से सरदार जीं , हो गया सब घोर मट्ठा :( , बर्दास्त नही हुआ , मुह से कुछ निकल गया , फिर पुरा हिंदुस्तान "लेफ्ट-राईट-लेफ्ट " करने लगा :) न्यूज़ चैनल वाला सब को त कोई धंधा है नही , कल ऐसा कर दिया कि लगा कि अब सरकार गिरा त तब गिरा ! राजदीप भाई त इतना चिल्लाते हैं कि पूछो मत ! रविश भाई को सब जगह "कविता" ही नज़र आता है - "खिड़की बंध है त दरवाजा खुला है " !
अरे भाई लोग हमसे पूछिये - ई सब को बिहारी भाषा मे कहते हैं - " मुह-फुल्लौवल" ! १२ बज रहा होगा सरदार जीं कहीँ भाषण दे दिए कि लेफ्ट क्या कबाड़ लेगा , हमारा ! फिर क्या ? ब्रिन्दा कारत ने प्रकाश कारत को रात भर सोने नही दिया होगा -" कैसा मरद हो जीं ? " ! बस अगला दिन सुबह "मरद" जाग गया और पुरा देश -"लेफ्ट-राईट-लेफ्ट " करने लगा ! जिसको नही करने का मन था उसको ई न्यूज़ चैनल वाला सब करा दिया ! सबसे दुःखी "सीताराम" भैया नज़र आये :( , जुबान कुछ और , और चेहरा कुछ और ही कह रहा था ! हमको पता था - बेचारे का दरद !
देखिए महाराज , सभी जगह बाढ़ आया हुआ है - कई राज्य इसके चपेट मे हैं लेकिन किसी कोई चिन्ता नही - किसी न्यूज़ चैनल वाला ने बाढ़ का सही कवरेज नही किया ! मूड त उखदा हुआ है ! लेकिन कर भी क्या सकते हैं ?
ठीक हुआ कि आप लोग विदेश चले गए ! कोई स्कोप हो तो बतायीयेगा ! दूर्र ,,,,,,, यहाँ कौन रहेगा !
"लेफ्ट-राईट-लेफ्ट"
१-२-३
"लेफ्ट-राईट-लेफ्ट"
१-२-३


रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Saturday, August 18, 2007

हिम्मत, नेक इरादे और साहस कि अंतिम बिदाई



पत्नी के प्रेम में 22 वर्ष के कठिन परिश्रम के बाद गया जिले में गहलौर पहाड़ को काटकर गिराने वाले दशरथ मांझी (78) का लंबी बीमारी के बाद शुक्रवार की शाम निधन हो गया। लिम्का बुक आफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में शामिल बाबा मांझी एम्स में भर्ती थे। उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होगी। ऐसा निर्देश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिया है। मूलरूप से गया जिले के अतरी के रहने वाले दशरथ मांझी गांव में ही रहकर खेती करते थे। करीब 47 वर्ष पूर्व एक दिन उनकी पत्नी खेत में उनके लिए खाना लेकर आ रही थी कि गांव के निकट गहलौर पहाड़ पर उनका पैर फिसल गया और कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गई। पत्नी की मौत के लिए पहाड़ को जिम्मेवार मानते हुए उन्होंने पहाड़ को गिराने की ठान ली। करीब 22 साल तक वह छेनी हथौड़ी लेकर इस काम में जुटे रहे और आखिरकार 1982 में सफल हुए। वह गया से पैदल चलकर दिल्ली आए। इस अद्भुत कार्य के लिए 1999 में उनका नाम लिम्का बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हुआ था। पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक वह लंबे समय से बीमार थे। कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी स्वस्थ न होने पर उन्हें दिल्ली लाया गया। वह विगत 24 जुलाई से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे, जहां शुक्रवार शाम उनका निधन हो गया। उनके इलाज का खर्च राज्य सरकार वहन कर रही थी। पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से उनका शव गया लाया जा रहा है। मांझी की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ होगी। उन्होंने पहाड़ को काटकर जिस सड़क का निर्माण किया था अब उसे सरकार बनाएगी। कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिल चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि वे कर्मठता की जीवंत मिसाल थे। गहलौर पहाड़ी को काटकर जिस सड़क का निर्माण उन्होंने किया उस पथ का नाम दशरथ मांझी पथ कर दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने अपने गांव में एक अस्पताल भी शुरू किया था। उक्त अस्पताल का नाम भी अब दशरथ मांझी अस्पताल होगा। भू-राजस्व मंत्री रामनाथ ठाकुर ने भी दशरथ मांझी के निधन पर शोक जताया है।



रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Friday, August 17, 2007

करियेगा खेला ?


करिएगा खेला ? धर लिए , उनका कालर ! अब , केने जईयेगा भाई जीं ? बुझौवल बुझाते हैं ? सोझ रहिए ना ता पब्लिक कपार फाड़ देगा ! अंग्रेज़ी पढाते हैं ? जहाँ के आप विद्यार्थी है नु, हमनी वोही जा के प्रिंसिपल है ! रे मुन्ना वा , पप्पुआ , गुद्दुआ - लो ता रे , लाओ - लाठी , ई ससुरा जिनगी नासे हुये है ! हे , बाबा , हेने आईये , हेने ! देखिए ई का बतिया रहा है ! तनी , आप ही पुछीये येकरा से ! का दो - का दो बक रहा है ! ये चाची - चाची हो , तनी येकर jhontawa धरे रहिए ता ! रे गुद्दुआ - गुद्दुआ , केने गया रे ? सुन हेने ! तनी बुलाओ तो पुत्तन चाचा के - उहे येकरा ठीक करेंगे ! आवे दे , पुत्तन चाचा के - उहे तोर बुखार छुद्वायेंगे !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Thursday, August 16, 2007

श्रद्घांजलि : श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा

१४ अगस्त २००७ को इनका देहांत हो गया ! बचपन से घर-परिवार मे राजनीतिक लोगों का आना जाना था ! बहुत सुना था इनके बारे मे ! बडे बुजुर्ग कहते हैं - जब यह बोलती थी तो लोकसभा रूक सा जाता था ! किसी ने इनको लोकसभा कि बुलबुल कहा तो किसी ने हंटरवार्ली ! भाषण ऐसा कि सुनाने वाला मंत्रमुग्ध हो जाये ! जिस किसी ने इनका भाषण सुना वोह हमेशा के लिए इनका दीवाना हो गया ! हिम्मत इतना कि कॉंग्रेस मे रहते हुये भी इंदिरा गाँधी के खिलाफ आवाज़ कि बिगुल उठा देना ! दिल्ली के राजनीतिक गलिआरों मे इनके कदम इतने मजबूती से बढ़ने लगे थे कि देश के नेताओं को इनके कदम को कटना पड़ा और लगातार ४ बार लोकसभा को प्रतिनिधित्व कराने बाद दुबारा नही जा सकीं ! किसी ने कहा -आप राज्यसभा से क्यों नही संसद चली जाती हैं ? कई प्रस्ताव आये , सबको ठुकरा दिया ! "बाढ़-मोकामा" कि बेटी को अपने स्वाभिमान पर बहुत ही गर्व था ! जीवन के अन्तिम क्षण तक "जनता-जनार्दन" के बीच जाने से नही हिचकती थीं !
वोह कहती हैं :-
तुम हो जहाँ , बेशक वहाँ ऊंचाई है
मगर सागर कि कोख मे
गहरी खाई है
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, August 14, 2007

धन्नो का देश प्रेम !

यह एक लोक गीत है जिसको मैंने पहली दफा अपने एक सीनियर श्री राजन श्रीवास्तव जीं से सुना था !

यहाँ पति और पत्नी के बीच तकरार चल रह है ! पत्नी अपने पति से "सोना के अंगूठी " का आग्रह कर रही है और पति उसको प्रेम्वार्तालाप मे ही कुछ और ला कर देने कि बात कह रहा है !

लीजिये :-

पत्नी : अरे , ये हो पिया , हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
पति : अरे , ना हो ! धन्नो , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !

पत्नी : अरे , ना हो पिया , हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !
पति : अरे , ना हो धन्नो , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !
लाली रे चुनरिया , पहिन के चलबू तू डगरिया !
लागी स्वर्ग से उतरल हो कठपुतली !
से , तोहके मंगाइब पटना के चुनरी !

( अब थक हार के पत्नी कुछ और बोलती है , जरा ध्यान से सुनिये )

पत्नी : 'ननदी' के अंगूरी के सोना , कईलक हमारा मन पर 'टोना' !
पिया , सोना ना मंगाइब त घर मे कलह पडी !
हो , पिया ! हमके मंगा द सोनवे के अंगूठी !


( पत्नी के इस तर्क के सामने अब पति थक हार जाता है और जो बोलता है , उसे देखिए )

पति : अरे धन्नो , सोनवा विदेश जाई , जा के "मिग -जेट " लाई !
तब तहरा " सिन्दूर के रक्षा " होई !
से , धन्नो , तोहके मंगाइब 'पटना' के चुनरी !

( पति कि बात सुन के पत्नी भव भिह्वाल हो जाती है , सोना विदेश जाएगा , तब तो हमारे देश मे "मिग-जेट" आएगा और "सिन्दूर कि रक्षा" होगी ! अब सुनिये , कितनी सरलता से पत्नी बोलती है )

पत्नी : अरे , हाँ हो पिया , हमके मंगा द पटना के चुनरी !!!

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दोस्तों ! काल्ह १५ अगस्त है ! १९६२ , १९६५ , १९७१ और कारगिल मे कई माँ ने अपने सपूत खोये होंगे , कई बहन के भाई कि कलाई राखी के बिना ही चिता पर सजी होगी ! कितने बच्चे अपने पिता को खोये होंगे !कई औरतों के सुहाग सुने हुये होंगे !

प्रदीप जीं कि कविता याद आ रही है :-

ए मेरे वतन के लोगों
जरा , आंख मे भर लो पानी
शहीद हुये हैं , उनकी

जरा याद करो कुर्बानी

जय हिंद ! जय हिंद ! जय हिंद !

रंजन ऋतुराज सिंह ,नौएडा