आज कि शाम छ बज कर बीस मिनट पर इसरो ने अपना rocket दागा और वोह सफल हुआ ! बाकी का समाचार आप लोग पढे होंगे या खबरिया चैनल पर देखे होंगे !
यह वैज्ञानिक हैं ! यह आईआईएम से पढे नही हैं ! इनकी कारें मन्हातन कि गलियों मे खडी नही होती हैं ! "सीताराम येचुरी " कि तरह ये "Color plus" के पैंट शर्ट नही पहनते हैं ! इनके बच्चे "doon school" मे नही पढते हैं ! ये किसी टॉक शो मे नही आते हैं और ना ही प्रभु चावला कोई सवाल दागते हैं ! दिल्ली नौएडा और नवी मुम्बई मे इनके कोई फ़्लैट नही होते हैं !
ये मात्र ८००० बेसिक तनखाह से अपनी जिन्दगी शुरु करते हैं ! शायद यही तनखाह भारतीय प्रशाश्निक सेवा के अधिकारीयों कि होती है !
बात ९२-९३ कि रही होगी , हमारे कालेज मे तत्कालीन इसरो अध्यक्ष उद्दप्पी राम कृष्णन राव आये थे ! उन्होने ने बताया कि उनका टेक्नोलॉजी यह बताता है कि बिहार के गंगा तट के आस पास कि जमीन सबसे उपजाऊ है ! मेरा सीना चौड़ा हो गया था ! हम सभी कितने बेताब थे उनसे हाथ मिलाने को ! ऐसा लगा था कि वही असली हीरो हैं ! बाकी सब बकवास !
"मेसरा" मे पढ़ाई के दौरान वहाँ के Rocketary Department के कई शिक्षक गन को दिन रात काम करते देखा था ! उनमे कई तो ऐसे थे जो "Visual C ++" मे बहुत बडे बडे software बनाते थे और बिना किसी पैसा के इसरो को दे देते थे !
आज शाम NDTV पर पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब का Interview देखा ! इसमे कोई शक नही कि शेखर गुप्ता एक बेहतरीन और सफल पत्रकार हैं सो कलाम साहब को वापस T V पर देख बहुत अछ्छा लगा ! धन्यवाद शेखर गुप्ता जीं और "NDTV" ! अब तो कलाम साहब "नालंदा" मे भी नज़र आएंगे - बिहार विकाश पुरुष नितीश कुमार ने उनको "Visitor" बनाया है !
कुछ दिन पहले NDTV-इंडिया ने एक पोल किया कि कौन असली हीरो है ? 'ओप्शन ' मे बहुत कुछ नही था लेकिन जो था उसमे करीब ९८ % वोट "असली हीरो - सैनिक " को मिला ! मुझे अपना बचपन याद है - हम सभी "सिपाही" बनाना पसंद करते थे क्योंकि सिपाही के हाथ मे बंधूख होती थी !
लेकिन कितने लोग हैं जो "सैनिकों " को "असली हीरो" मानते हुये अपने बच्चों को सेना मे भेजना पसंद करेंगे ???
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
4 comments:
सही कह रहे हैं। पर जनता को तो सिनेमा के हीरो ही हीरो लगते हैं - सलमान खान सरीखे लोग।
इस विचारोत्तेजक एवं देशभक्ति से भरे लेख के लिये आभार -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: जिस देश में नायको के लिये उपयुक्त आदर खलनायकों को दिया जाता है,
अंत में उस देश का राज एवं नियंत्रण भी खलनायक ही करेंगे !!
Thats true Sir.. But at end of the day if we at our part have some affinity to give something back to our society, dont you think it takes care of everything. Be it a IIM passout or a teacher at one of the villages, willingness to contribute back to our society does the trick.
क्या किजियेगा ईसी को कहते है सेल्युलाईड का जमाना जिसे चाहा नायक जिसे चाहा खलनायक बना दिया । धन्यवाद एक बेहतर लेख के लिये ..
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