शायद वफ़ा के खेल से उकता गया था वोह, मंज़िल के पास आके जो रस्ता बदल गया
कौन कहता है , आसमान मे छेद नही होता , एक पत्थर तो 'तबियत' से उछालो ! चलिए पत्थर तो मिल जाएगा लेकिन 'तबियत' कहॉ से बनेगा ? आसान काम है क्या - 'तबियत' बनाना ? अब अगर 'तबियत' बन भी जाएगा तो क्या जरुरी है कि हम 'आसमान' मे पत्थर को उच्छालें ? हो सकता है हम इस पत्थर से किसी का 'कपाड़' फाड़ दें या 'पत्थर' को पाकिट मे ले कर घूमें या किसी के 'आंगन' मे फेंक दें ! मेरी मर्जी !
'बकरी' चराने वालों को 'बाघ' नही पालना चाहिऐ ! हमेशा खतरा रहता है कि कहीँ 'बाघ' बकरी को खा ना जाये ! 'बकरी' को हमेशा घमंड रहता है कि 'मालिक' उसके साथ है - 'बाघ' कुछ नही कर सकता ! यह मालिक कि गलती है कि 'बाघ' और 'बकरी' दोनो को एक साथ एक ही घर मे पालने का शौख रखते हैं ! यह बिल्कुल 'गलत' बात है !
तो मैं कह रहा था - 'तबियत' बनाने कि बात ! धरती है सो तरह तरह के 'प्राणी' मिलेंगे ! लोग अलग अलग ढंग से 'तबियत' बनाते हैं ! 'चाचा' बिहार सरकार मे नौकरी karate हैं ! सेक्रेटेरिएट मे जाते हैं ! पटना का सेक्रेतेरिअत को उद्योग का दर्जा मिल हुआ है ! सभी इस उद्योग पर kabzaa जमाना चाहते हैं ! "पोर्टर' का कोम्पितितिव मोडल यहाँ लागू होता है ! खैर , चाचा सेक्रेतेरिअत पहुंचाते ही शुरू हो जाते हैं - कहते हैं कि जब तक २-४ थो को गरिया नही दें - 'तबियत' नही बनता है ! फिर पाकिट से 'पत्थारवा' निकाल के टेबुल पर रख देते हैं ! हम कितना बार पूछे कि 'ई , पत्थारवा से कहियो 'आसमान' मे छेद भी होगा कि यूं ही रखल रह जाएगा ! 'चाचा' बोले कि - जब तक हाथ मे पत्थर है पब्लिक को आशा है कि आज नही ता कल , कहियो ना कहियो आसमान मे छेद होगा ही !
हम कहे चाचा , हंसिये मत ! पब्लिक बौरा गया है ! आज - kheera चोर को धुन रह है ! कल हीरा चोर को धुनेगा ! सोचिये जरा - पब्लिक ठीक इसी तरह सभी बड़का बड़का चोर लोग को खदेड़ खदेड़ के khet मे ले जाके पिटने लगे ता क्या होगा ? चाचा बोले - बुरबक हो ? ऐसा दिन कभी नही आएगा ! हम सोचे कि चाचा कितना आशावादी हैं , तब ही तो उनके पास तबियत और पत्थर दोनो है !
तबियत बना के , पाकिट मे पत्थर लेकर घुमिये और मौका मिलाते ही आसमान मे छेद कर दीजिये ! काम खतम !
रंजन ऋतुराज सिंह ,
पाठक वर्ग से मेरा अनुरोध है कि कृपया इस लेख को बिहार कि राजनीति से जोड़ कर ना देखें ! आपको कष्ट हो सकता है !
4 comments:
Not legible. Please post it in a good hindi font which is visible to the users.
AAYE BHAI MUKHIYA JEE, PISTOL GOLI KE ZAMANE ME DHELA LEKAR KAUN BURBAK GHOMTA HAI? WAISE DHELA HAI BADI KAM KI CHESE, KISI KA KAPAR BHAR DIJYE KOI FINGER PRINT NAHI MILEGA KUTTA SAB KO HAKAL DIJYE HAI WAISE BAHUT KAM KI CHESE.
CHALIYE HUM BHI BHAUT BAKWAS KAR DIYE "BHAI SAHI ME AAPKA YEH LEKH SAMAJ KA AAINA HAI, JO EK DAM HAQIQAT HAI".
CHALIYE EK KA DO GO DHELA IDEHR BHI EXPORT KAR DIJYEGA SAUDI ME.
AAPKA BHAI
AHMAD RASHEED
जी, धर लिये हैं दो ठो पत्थर पाकिट में. मौका लगते ही उछालेंगे. :)
gajab!
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