Wednesday, February 23, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा मैट्रीक परीक्षा

बिहार में छठ पूजा के बाद - सबसे महत्वपूर्ण पर्व त्यौहार होता है - घर के लडके - लडकी का मैट्रीक परीक्षा ! मत पूछिए ! मैट्रीक परीक्षार्थी को किसी 'देवी - देवता' से कम नहीं वैल्यू नहीं होता है :)) 

दसवां में था तब - राजेंद्र नगर स्टेडियम में क्रिकेट मैच हुआ था - मार्च के महीना में - सब यार दोस्त लोग तीन चार दिन देखे थे ! उस वक्त हमसे ठीक सीनियर बैच का परीक्षा चल रहा था ! स्टेडियम से लौटते वक्त पुर रास्ता जाम रहता था ! सीनियर बैच का उतरा हुआ चेहरा देख दिल "ढक ढक" करे लगता :( 

दसवां के पहले मेरे यहाँ एक नियम था - छमाही - नौमही - वार्षिक परीक्षा के ठीक तीन दिन पहले - बाबु जी मेरा "रीन्युअल" करते - बहुत ही हल्का 'नेपाली' चप्पल होता था - बहुत एक्टिंग करना पड़ता - इस चप्पल से बिलकुल ही चोट नहीं लगता था - पर् एक्टिग ऐसा की जैसे की बहुत मार पड़ रहा हो ;) फिर हम कुल तीन दिन पढते और आराम से परीक्षा पास ;) 

अब मैट्रीक का परीक्षा आ गया था - सितम्बर -ओक्टुबर में "सेंटअप" का परीक्षा हो गया ! हम लोग का स्कूल जाना बंद ! "भारती भवन " का गोल्डन गाईड खरीदा गया ! गोविन्द मित्र रोड से खरीद - साईकील के पीछे 'चांप'  के - ऐसा लगता जैसे आधा परीक्षा पास कर गए ;) "गोल्डन गाईड" को अगरबत्ती दिखाया गया ! कभी वो टेबल पर् तो कभी वो बेड में तकिया के बगल में ! दोस्त यार के यहाँ गया तो देखा की उसको पन्द्रह भाग में विभाजीत कर दिया है - हम भी कर दिए ! अब इस गोल्डन गाईड का पन्द्रह टुकड़े हो गए - रोज एक "भुला" जाता - सारा गुस्सा माँ पर् निकलता :) 

हमको भूगोल / इतिहास / अर्थशास्त्र / नागरीक शास्त्र एकदम से मुह जबानी याद हो गया था ! शाम को बाबु जी आते तो बोलते की - हिसाब बनाये हो ? :( सब लोग कहने लगा की - सबसे ज्यादा "नंबर" गणित में उठता है - अलजेब्रा छोड़ सब ठीक था - थोडा मेहनत किया तो वो भी ठीक हो गया ! दिक्कत होती थी - केमिस्ट्री और बायलोजी में :( बकवास था ये सब ! डा ० वचन देव कुमार का "वृहत निबंध भाष्कर' तो खैर जुबान पर् ही था ! अंग्रेज़ी जन्मजात ही कमज़ोर था - इसलिए वहाँ तो बस "पास" ही करने का ओबजेकटीव था ! नौवां से ही - स्कूल के एक दो शिक्षक के यहाँ टीउशन का असफल प्रयोग कर चूका था - सो अब किसी के यहाँ जाने का सवाल ही पैदा नहीं था ! 

खैर ...एक दो और गाईड ख़रीदा गया ! सभी विषय का अलग से "भारती भवन" का किताब ! अर्थशास्त्र में "मांग की लोच " इत्यादी चैप्टर तो आज तक याद है :)) 

खैर ...धीरे धीरे ..प्रेशर बढ़ने लगा ...आज भी याद है ..गाँव से बाबा किसी मुंशी मेजर के हाथ कुछ चावल - गेहूं भेजे थे - और वो पटना डेरा पहुँच चाय की चुस्की के बीच - मेरी तरफ देखते हुए - बोला - "बउआ ..के अमकी "मैट्रीक" बा ..नु " ! मन तो किया की ..दे दू हाथ ! फूफा - मामा - मामी - चाची - चाचा - कोई भी आता तो "उदहारण" देता - फलाना बाबु के बेटा / बेटी को पिछला साल 'इतना' नंबर आया था - ऐसी बातें सुन - हार्टबीट बढ़ जाता ! फिर सब लोग गिनाने लगते - "इस बार कौन कौन मैट्रीक परीक्षा दे रहा है " जिससे मै आज तक नहीं मिला - वो भी मुझे दुश्मन लगता ! कोई चचेरा भाई - मोतिहारी में दे रहा है तो कोई फुफेरी बहन - सिवान में ! उफ्फ्फ्फ़ ....इतना प्रेशर ! 

रोज टाईम टेबल बनने लगा ! क्या टाईम टेबल होता था ;) बिहार सरकार की तरह - सब काम कागज़ में ही ;) धीरे धीरे ठंडा का मौसम आने लगा ! कहीं भी आना जाना बंद हो गया ! बाबु जी को सब लोग कहता - "आपके बेटा - का दीमाग तेज है - बढ़िया से पास कर जायेगा" ! अच्छा लगता था ! पर् ...और बहुत सारी दिक्कतें थी ...:(  

सुबह उठ के नहा धो के - छत पर् किताब कॉपी - गाईड लेकर निकल जाता ! साथ में 'एक मनोहर कहानियां या कोई हिन्दी उपन्यास ' ! गाईड के बीच उपन्यास को रख कर - पढ़ने में जो थ्रील आता ..वो गजब का था :)) फिर 'जाड़ा के दिन' में छत का और भी मजा था ! :)) कहीं से उपन्यास वाली बात 'माता श्री' तक पहुँच गयी ! 'माता श्री ' से 'पिता जी' तक :( तय हुआ - एक मास्टर रखा जायेगा - जो मुझे पढ़ाएगा नहीं - बल्की सिर्फ मेरे साथ दो तीन घंटा बैठेगा ! मास्टर साहब आये - एक दो महीना बैठे - फिर मुझ द्वारा भगा दिए गए ;) लेकिन एक फायदा हुआ - गणित के सवाल रोज बनाने से गणित बहुत मजबूत हो गया ! अलजेब्रा भी मजबूत हो गया - ! 

अब हम लोग दूसरी जगह 'सरकारी आवास' में आ गए - यहाँ भी सभी लोग बाबु जी के नौकरी - पेशा वाले ही लोग थे - माहौल अजीब था - किसी का पुत्र दून में तो किसी का वेलहम में - इन सभी लोगों का जीवन का उद्येश ही यही था - बच्चों को पढ़ाना - अब वो सब कितना पढ़े - हमको नहीं पता - पर् नसीब से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिला ! खैर ...

यहाँ के लिये मै अन्जान था - बस बालकोनी से मुस्कुराहटों को देख मूड फ्रेश कर वापस किताबों में घुस जाना ! तैयारी ठीक थी - मै संतुष्ट था ! अंग्रेज़ी - बायलोजी - केमिस्ट्री छोड़ सभी विषय बहुत परफेक्ट थे - मैंने किसी विषय को रटा नहीं था - आज भी 'रटने' से नफरत है ! खैर ...बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती - ऐडमीट कार्ड मिलने का दिन आ गया - स्कूल गया - कई महीनो बाद दोस्तों से मुलाकात हुई - 

स्कुल में पता चला की - सेंटर दो जगहों पर् पड़ा है :( पहले दो सेक्शन "जालान" और हम दो सेक्शन "एफ एन एस अकेडमी " ! मन दुखी हो गया - बहुत दुखी ! "जालान" में सुना था - उसका बड़ा गेट बंद कर के - अनदर ...सब कुछ का छूट था ;)  बहुत करीबी दोस्त था - दीपक अगरवाल - बात तय हुआ - परीक्षा के दिन - साईकल  से मै उसके घर जाऊंगा - फिर वहाँ से हम दोनों साथ में ! 

परीक्षा के दिन 'जियोमेट्री बॉक्स' लेकर ..एक हैट पहन कर ..साईकील से दीपक अगरवाल के यहाँ निकल पड़ा ..वहाँ पहुंचा तो पता चला की ..दीपक अपने मामा - मामी - फुआ - बाबु जी - माँ - बड़ा भाई इत्यादे के साथ निकल चूका है :(  अजीब लगा ..इतने लोग ..क्या करेंगे ?? रास्ते में साईकील के कैरियर से 'जियोमेट्री बॉक्स ' गिर गया ..देखा तो 'एडमीट कार्ड' गायब ....हाँफते - हुन्फाते ..साईकील को सौ पर् चलाते ..घर पहुंचा तो देखा की ..बाबु जी बालकोनी में मेरा एडमीट कार्ड हाथ में लिये खडा है ...जबरदस्त ढंग से दांत पीस रहे थे ... मुझे नीचे रुकने को बोले और खुद नीचे आये ...लगा की ..आज "जतरा" बाबु जी के हाथ से ही बनेगा ....फिर पूछे ..सेंटर कहाँ पड़ा है - हम बोले ...गुलजारबाग ...! हम अपना "हैट" अडजस्ट किये ..साईकील का मुह वापस किये  ..पैडल पर् एक पाँव मारे ..और चल दिए ...! 

अजीब जतरा था ...रास्ता भर साईंकील का "चेन" उतर जा रहा था :( किसी तरह पहुंचे ...मेरे मुह से निकला ..."लह" ....यहाँ तो "मेला लगा हुआ है " ! हा हा हा ....सेंटर पर् सिर्फ मै ही "अकेला" था ..वरना बाकी कैंडीडेट ..पुरा बारात ! अपने परीक्षा कक्ष में गया ....सबसे आगे सीट ! पीछे "राजेशवा" था ! फिएट से उसका  पुरा  खानदान लदा के आया था ! अब देखिये ...वो हमसे पूछता है ...."पुरा पढ़ के आये हो ना .." हा हा हा हा हा ....प्रश्नपत्र मिला और मै सर झुका के लिखने लगा ....एक घंटा ..शांती पूर्वक ...फिर पीछे के जंगला से एक आवाज़ आई - राजेश का बड़ा भाई था - "ई ..चौथा का आन्सर है" - ढेला में एक कागज़ लपेटा हुआ - राजेश के पास आया ...धब्ब...! राजेशवा जो अब तक मेरा देख लिख रहा था ....अब वो परजीवी नहीं रहा ...वादा किया .."लिख कर ..मुझे भी देगा " ....पहला सिटिंग खत्म हुआ ! टिफिन के लिये मै अपने साथ "शिवानी" के उपन्यास लाया था ..ख़ाक पढता था :(  हल्ला हुआ - सब क्योश्चन .."एटम बम्ब" से लड़ गया ...अब सेंटर के ठीक सामने "एटम बम्ब" बिक रहा था ...मै भी एक खरीद लिया ..बिलकुल सील किया हुआ :) खोला और एक नज़र पढ़ा ..बकवास ! 

हम हर रोज उदास हो जाता था ...सभी दोस्त के साथ पुरे खानदान की फ़ौज होती थी ! टिफिन में हम अकेले किसी कोना में बैठे होते थे ...इसी टेंशन में ...दीपक अगरवाल' को बीच चलते हुए परीक्षा में "धो" दिए ....उसको भी कुछ समझ में नहीं आया ..वो मुझसे क्यों धुलाया ...हा हा हा ! 

इसी तरह एक एक दिन बितता गया ....अंग्रेज़ी भी पास होने लायक लिख दिया ..गणित- अर्थशास्त्र - भूगोल  -  इतिहास -  और संस्कृत सबसे बढ़िया ...बहुत ही नकरात्मक हूँ ..फिर भी खुद के लिये बहुत अच्छे नंबर सोच रखे थे ....अंतिम दिन ..चपरासी को दस रुपैया देकर ..कॉपी कहाँ गया है ..पता करवा लिया ...पर् जहाँ कोई मेरे साथ "सेंटर" पर् जाने को नहीं था ...कोई "कॉपी" के पीछे क्यों भागता ..हा हा हा .....

अंतिम दिन परीक्षा देकर ..कहीं नहीं गया ...चुप चाप चादर तान सो गया ...कितने घंटे सोया ..खुद नहीं पता ...ऐसा लग् रहा था ..वर्षों से नहीं सोया हूँ .....

आज पटना वाले अखबार में पढ़ा की - कल से "बिहार मैट्रीक परीक्षा " शुरू हो रहा है ..सभी विद्यार्थीओं को शुभकामनाएं ..... ज्यादा क्या कहूँ ..मेहनत कीजिए :))

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Tuesday, February 22, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा स्कूल अलुम्नी मीट - पार्ट १ :))

भैया लोग ( सीनियर ) 
भयवा ( बैचमेट )
भाई लोग ( जूनियर ) 

हैंगओवर क्या होता है ? वो आज हमको बुझा रहा है ! परसों  मेरे स्कूल का अलुम्नी मीट था - नई दिल्ली में ! क्या कहूँ ..और क्या न कहूँ ...यादों की बारात अपने आप में एक याद बन् के रह गयी ! बिना शराब पिए हुए - हैंगओभर ...
चलिए कुछ पृष्ठभूमी बताता हूँ ...( भाषा पर् गौर मत फरमाईयेगा ) 

सन 2005 में 'नरेन्द्र जी' ( 88 बैच ) मिलने के लिये आये ! उनदिनो मै सेटर बासठ - नॉएडा में रहता था ! उनदिनो घर के लोगों के बीमार रहने के कारण करीब २ साल से परेशान था ! बात आई गई हो गयी ! इस बीच पटना में स्कूल मीट होता रहा - पिछला साल दिसंबर में जाने का बहुत मन था - पर् 'नौकरी' के कारण नहीं जा सका ! खैर .....

इसी बीच 'फेसबुक' पर् नरेन्द्र जी अचानक प्रकट हुए और वो स्कूल अलुम्नी मीट - दिसंबर - पटना गए ही नहीं अपने तरफ से वहाँ "कनट्रीब्यूट" भी किया और हम दोनों के बीच बात हुआ की - हम लोग किसी शनीवार मिलेंगे ! एक शनीवार वो आये - जनवरी में - हम दोनों "कुछ यहाँ भी करना है" पर् बात कर ही रहे थे की उनके बैच के दो और लोग आ गए - सुजय जी ( लोकसभा पदाधिकारी ) और आनंद वर्धन ( राष्ट्रीय सहारा ) ! बस एक छोटा सा अलुम्नी मीट हो गया :))फिर अशोक अगरवाल भैया ( 1979 )  दिल्ली में थे तो हमको और नरेन्द्र जी को बुलाहट  हुआ और जल्द से जल्द नई दिल्ली मीट पर् आगे बढ़ने का बात हुआ - वहाँ उनके बैच के भारतीय विदेश सेवा के 'शम्भू अमिताभ' भैया , आई आर् एस दीप शेखर भैया , बिहार निवास में इंजिनीयर - पद्म कान्त झा भैया , एल आई सी के सुनील भैया इत्यादी से मुलाकात हुई ! फिर निर्णय हुआ की - अब बस स्कूल अलुम्नी मीट करवा देना है ! कुछ जगहों का वो सब निर्णय भी कर लिये ! मेरे लिये तो आज भी 'दिल्ली' अन्जान ही है - नरेन्द्र जी से अगले दिन से बात होने लगी - लगभग हर शनीवार - इतवार वो जगह खोजने लगे ! अंत में ..स्कूल के ही और नरेन्द्र जी की तरह ही सुप्रीम कोर्ट के वकील - "रँजन पांडे " भैया ( 1985 ) ने स्पोर्ट्स क्लब बुक करवा दिया - नरेन्द्र जी का फोन आया - जगह बुक हो गया - अब "रेस" हो जाईये :)) अब रेस होना था - कैसे रेस हुआ जाए :( मेरे जैसा आदमी के लिये भारी टेंशन :(  हम दोनों लगभग हर शनीवार मिलने लगे ...

Gardenia India Limited  वाले बिहार के ही हैं और मेरे जान पहचान के हैं - उन्होंने बोल रखा था - "रँजन जी , आपसे पुराना परिचय है - जब कभी भी आपको बिहार से जुड़े किसी भी कार्यक्रम को करना है - संकोच नहीं कीजियेगा - जितना संभव हो - मै मदद करूँगा" ! फिर भी मेरे लिये ये कष्टदायक था ! एक दिन उनलोगों से मिला और बोल दिया ! फिर एक दिन उनको फोन किया - वो बोले की आप मेरे गाज़ियाबाद वाले ओफ्फिस चले जाईये - एकाऊँन्टेंट को बोल दिया हूँ ! हम और नरेन्द्र जी वहाँ पहुंचे - मै अंदर गया - थोडा संकुचाये हुए - कुछ बोला -  एकाऊँन्टेंट ने दे दिया और हम नरेन्द्र जी को ! हम दोनों कनफीडेंस में आ गए ! अगले दिन 'रँजन पांडे' भैया भी कुछ नरेन्द्र जी को दे दिए ! नरेन्द्र जी ने करीब एक सौ बीस लोगों के लिये - क्लब वाले को पैसा जमा करवा दिए ! डेट फिक्स हो गया - बीस फरवरी - रविवार ! 

अब हम लोग टेकनौलोजी का प्रयोग शुरू किये ! इसी बीच नीरज आनंद भी जुड गए - वो नरेन्द्र जी के ही बैच के  हैं ! नरेन्द्र जी को अपने बैच , दुबे भैया , रँजन पांडे भैया पर् पूरा  विश्वास - हर बार वो कहते - ऋतुराज जी , घबराईये मत ! इस बीच मेरी बात हुई - रँजन पांडे भैया से - बोले ...तुम्हारा ब्लॉग तो पढ़ लिया - बढ़िया लिखते  हो ..मै मुंबई निकल रहा हूँ ...तुम और नरेन्द्र देख लेना ..."लह" ...मेरे मुह से पटना स्टाईल में निकल गया ..हा हा हा 

कुछ लोगों का पता / फोन पटना से दीपक जैसवाल भैया और संजय भैया से मिला ..संजय भैया हर दो दिन पर् एक दो नंबर  भेज रहे थे ...नरेन्द्र जी अपना डायरी में नोट कर रहे थे ..इधर हम भी ...मेरे पास पचास लोग का डाटा तैयार हो गया ..नरेन्द्र जी के पास भी ..दोनों को मर्ज किया गया ..संख्या करीब डेढ़ सौ पहुँचने लगी ...अब काम होना था ..सबको "फोन " करना ..एक दिन नरेन्द्र जी सुप्रीम कोर्ट से ही मेरे पास आ गये ..हम दोनों बैठ कर एक एक कर के बहुत लोगों को फोन किये ....इस बीच जब नरेन्द्र जी को फुर्सत मिलता ..वो लोगों से बात करते ...एक दिन हम पूछे ...आपके बैच के उज्जवल जी ?? जबाब आया - दुबई ..हम बोले .."लह" ...हा हा हा ...
उनके बैच का ही और मेरा काफी करीबी दोस्त - प्रकाश जो टॉपर भी था और अब बिजिनेस मैन - अफ्रीका में दो स्टील प्लांट खरीदा है - बोला मुझे भी अफ्रीका दौरा पर् निकलना है ..फिर मेरे मुह से निकला ...."लह" ....हा हा हा ...

पर् नरेन्द्र जी अति आशावादी ...हम उम्र ही हैं ..एक दिन हमदोनो ..भर पेट यहीं इंदिरापुरम में "चिकेन चंगेज़ी" खाए ...थोडा टेंशन कम हुआ ! 

हम भी अपने ढेर सारे बैचमेट को जानते थे - खबर कर दिया गया - नरेन्द्र जी को हम साफ़ साफ़ बोल दिए - बैचमेट को "निहोरा" नहीं करने जायेंगे - सीनियर - जूनियर के 'गोर' भी पड़ लेंगे ....कौन हम अपना बेटा का "तिलक" कर रहे हैं ...

इस बीच - वरिष्ठ अधिकारी गण को फोन करने का जिम्मा मिला - सुजय जी को ! वो एक राऊंड  सबको खबर कर दिए - जितना वो जानते थे - मीडिया का  जिम्मा मिला- "आनंद वर्धन" जी को  ! नीरज आनंद बाबु - कूदने लगे - म्यूजिक रहना चाहिए ...हम लोग बोले - पाटलिपुत्रा स्टाईल में - कर भयवा ..जे करेला हउ ...वो खुद बोले  किसी भी कीमत पर् - "शीला - मुन्नी" नहीं रहेगी :) 

नरेन्द्र जी से लगभग रोज बात होते रही - भोजन 'नान वेज' और "लिकर"  इत्यादी बिलकुल ही नहीं क्योंकि डर था - सीनियर लोग 'लिकर' के बाद 'एन डी ए से लेकर रविन्द्र बालिका' घूमने लगते ...हा हा हा हा ....

फिर ...हुआ की 'एनर - बैनर' इत्यादी ..जिम्मा हम उठा लिये ...फिर हम लोग सोलह तारिख को एक बार फिर बैठे - सभी लोग मेरे ही डेरा में आ गए -नरेन्द्र जी और  नीरज आनंद जी और हम शुरू हो गए फिर से सभी को एक एक कर के फोन करना ...थोड़ी देर में सुजय और आनंद वर्धन भी आ गए ....थोड़ी देर के लिये ऐसा लगा की ..जैसे कॉल सेंटर में बैठे हैं ....उसी दिन निर्णय हो गया की ...प्रती व्यक्ती पांच सौ और एन सी आर् से बाहर वालों से कुछ नहीं ...

धकाधक बाहर से कन्फर्मेशन आने लगा ..विजय रँजन भैया ( 85 ) मुंबई से ....दिवाकर तेजस्वी भैया और उनके बैच के राकेश दुबे और आनंद द्विवेदी पटना से ...टाटा से प्रकाश ..रांची से दीपक ...पटना से विश्व प्रसिध्ध कार्टूनिस्ट - पवन और दीपक जयसवाल भैया तो एक दम से रोज खुद नगाडा पीट रहे थे :) 

अगला पार्ट का इंतज़ार कीजिए ;) ..............

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

Sunday, February 6, 2011

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरा स्कूल

हम कितना स्कूल में पढ़े - ये खुद हमको नहीं पता है :(  कभी हम स्कूल को रिजेक्ट किये तो कभी स्कूल हमको रिजेक्ट किया ;)  खैर , सातवीं क्लास मैंने अपने खानदानी स्कूल  "जिला स्कूल - मुजफ्फरपुर" से पास किया ! ये  स्कूल कई मायनों में मेरे परिवार के लिये महतवपूर्ण है - परबाबा से लेकर मुझ तक - चार पीढ़ी इस स्कूल में पढ़े  और इसके ठीक बगल में 'चैपमैन गर्ल्स स्कूल' था जिसमे फुआ दादी और फुआ तीनो बहन ! तीन खूब बड़े बड़े मैदान , अंग्रेजों के द्वारा बनवाया हुआ विशाल स्कूल , स्कूल के अंदर ही शिक्षकों का बड़ा बड़ा क्वार्टर ..क्या नहीं था ! सबसे विशेष यह था की - वहाँ के प्रिंसिपल 'जयदेव झा' ! वो बाबु जी  को पढ़ा चुके थे - अब मै उनका विद्यार्थी था ! न जाने कितने ऐसे शिक्षक थे - जो बाबु जी सभी भाईओं को पढ़ा चुके थे और अब मै उन सब शिक्षकों का विद्यार्थी था ! स्नेह मिलता ! कई किस्से हैं ..कभी बाद में सुनाऊँगा :)) 

 अभी सातवीं का  वार्षिक परीक्षा देने ही वाला था की बाबु जी का ट्रांसफर 'पटना' हो गया ! हम मुजफ्फरपुर में ही रुक गए - फिर टी सी लेकर  पटना आ गए ! हम सभी उन दिनों - नाना जी के साथ 'सलीम अहरा - गली नंबर  एक " ( उमा टाकीज के ठीक पीछे ) रहते थे ! पटना हम लोगों के लिये किसी भी विदेश से कम नहीं था ! बड़ा और लगभग सौ साल पुराना मकान था ! खूब चौडा चौड़ा बरामदा ! मामू जान लोगों के पीछे - पीछे ही समय कटता था ! अब मेरा 'एडमिशन' कहाँ हो - यह नाना जी का हेडक था ;) नाना जी कहीं से किसी से "चिठ्ठी" लिखवा कर लाये - फिर एक दिन मै पहुँच गया - " सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र हाई स्कूल " , कदम कुआं ! जहाँ मै भव्य 'जिला स्कूल' से आया था वहीँ ये स्कूल का कैम्पस छोटा था ! मन में अभी भी 'नेतरहाट' था - एक क्लास जूनियर ही सही - वहीँ निकल जाना चाहिए ! बहुत लोग बोले - बिहार बोर्ड में "नेतरहाट" के बाद "सर गणेश दत्त पाटलीपुत्र " ही आता है ! फलाना बाबु का बेटा - चिलाना बाबु का पोता - तरह तरह के उदाहरण दिए गए ! खैर 'आठवीं' में एक सेक्शन में जगह मिल गया ! 

पहला दिन स्कूल जाने के लिये 'रिक्शा का भाड़ा' मिला ! हम भी रिक्शा खोज उस पर् बैठ गए ! शाम को लौटे तो पता चला की पड़ोस में रहने वाले के पुत्र महोदय भी मेरे क्लास लेकिन दूसरे सेक्शन में हैं - कल से उन सब के साथ ही जाना है ! नाना जी के पड़ोसी थे - पटना / बिहार के शराब के सबसे बड़े विक्रेता 'शालीग्राम प्रसाद' ! बहुत पैसा पर् हम सभी का गजब का इज्जत ! अगले दिन से "बबलू" के साथ जाने लगा ! एक नियम था - मकान के कैम्पस से निकल कर रोड पर्  खडा होना - फिर देखता की उधर से कई लडके आ रहे हैं - फिर एक झुण्ड बन् गया ...और झुण्ड चल दिया ..जगत नारायण रोड :)) रास्ता में 'जन संपर्क विभाग' का एक ऑफिस था  - जहाँ मै थोड़ी देर के लिये 'हिन्दी अखबार' पढ़ने के लिये रुकता था ...हाल में वहाँ गया था - कुछ नहीं था :( "बबलू " चिल्लाता - अखबार पढता है ..हुंह ..नेता बनना है ..का ?? :))

रिक्शा की जगह - पैदल जाने में मजा आने लगा ! रास्ता भर तरह - तरह 'बहस' और स्कूल पहुँचते सब अपने अपने क्लास में ! मेरे बेंच पर् थे - मृत्युंजय कुमार  , दीपक अगरवाल , एक था कोचर और चौथा था - एक वर्मा - नाम भूल रहा हूँ :( श्रीकांत बाबु क्लास शिक्षक थे ! यहाँ फीस का जमाना नहीं था - पर् जो जितना दिन ऐबसेंट रहता - उतना दिन का - प्रती दिन शायद दस पैसा के हिसाब से जमा करना होता था ! पहले ही महीने - श्रीकान्त बाबु ने मुझे यह अवसर दिया की मै ही वो पैसा सर के बगल में बैठ कर जमा करूँ - यह बात उन विद्यार्थीओं को नहीं पचा जो मुझसे पहले से इस स्कूल में थे ! अगले महीने से मै दरकिनार कर दिया गया :( 

खैर ..दो तीन महीना के बाद ही हम लोग 'डोक्टोर्स कॉलोनी ' कंकडबाग आ गए !क्या मजाल की कोई  दूसरा स्कूल वाला कुछ बोल दे ..मेरे मकान में ही 'आनंद मोहन' भैया रहते थे - गजब का स्नेह ! ठीक सामने - बलदेव बाबु का मकान था - जो उन  दिनों वाईस प्रिंसिपल होते थे ! शाम को उनके यहाँ मेरे बैच के कई लडके पढ़ने आते ! उनका खुद का बहुत ही बड़ा मकान था !

अब कंकडबाग से स्कुल जाने के लिये 'हीरो' का नया साईकील खरीदाया ...पहला दिन साईकील से स्कुल गए ...कोई घंटी चुरा लिया :( दोस्तों की जिद से ..अब हम सभी पैदल जाने लगे ! सचिवालय कॉलोनी से मृत्युंजय , पत्रकार नगर से प्रमोद और भी एक दो क्लास जूनियर सब आने लगे ...हम लोग 'राजेंद्र नगर' गुमटी पार कर के          जाने लगे ..तब 'राजेंद्र नगर ओवरब्रिज' बन् रहा था ! वहाँ नीचे ....जुआ वाला सब ठेला पर् जुआ दिखाता ...ताश के तीन पत्ते का हेर फेर ...कई दोस्त जिनको लंच के नाम पर् कुछ पैसा घर से मिलता था ..वो रास्ते में ही इस 'जुआ' में गंवा देते ...हा हा हा हा हा ! हम सब उसका हाथ पकड़ के खिंच के वापस ले जाते ...वैशाली सिनेमा के ठीक सामने से होते हुए ..शेखर सुमन के घर होते हुए ...लोहानीपुर से एक पतली गली से होते हुए स्कुल ....लोहानीपुर पहुंचते ही हम सब ठिठक जाते ....कंकडबाग वाला लड़का सब एक दम से सावधान की मुद्रा में ! मेरे क्लास में 'इन्द्रजीत - दिग्विजय' ..एक से एक हीरो ! अब मालूम सब कहाँ हैं :(

घींच घांच के आठवीं पास किया ! नौवीं में बद्री बाबु क्लास टीचर थे - अंग्रेज़ी पढ़ाते - सैमसंग एंड डेलीला ....डी डी राय ..जो पुरे पटना के सबसे मशहूर शिक्षक थे - वो गणित पढ़ाते - एक दिन 'दिग्विजय' हत्थे चढ गया - हो गया धुनाई .....हा हा हा हा ....महिला शिक्षक बहुत ही कम ...! एक दू नेता टाईप शिक्षक भी ! प्रिंसिपल थे - रामाशीष बाबु - जबरदस्त - भारी भरकम शारीर - अपने कमरे से अगर निकल गए तो - फिर क्या - जो जहाँ है - वो वहीँ रुक गया ! पर् उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली - हमारे स्कुल का गेटकीपर - लंच के ठीक बाद - जब वो शहंशाह स्टाईल में गेट का सिक्कड़ घुमाता ....हीरो टाईप लड़का लोग का होश ठिकाने आ जाता ! क्या मजाल कि कोई लडका गेट से निकल जाए ! प्रिंसिपल सर के कमरे में "ट्रॉफी" भरा होता था ! बोर्ड  लगा होता - बोर्ड पर् तेज विद्यार्थी का नाम - राजीव कुमार सेठ - बिहार बोर्ड - प्रथम - फलाना - बिहार बोर्ड - तृतीय ..चिलाना - बिहार बोर्ड - नौवां स्थान !

नौवां में ही था - युवा दिवस के शुभ कार्यक्रम के लिये - मोईनउल हक स्टेडियम में - हमें कुछ प्रैक्टिस करने जाना था - अपने क्लास से मै सेलेक्ट हुआ - स्कूल से नौवीं और दशमी के ढेर सारे लडके - वहाँ एक दिन प्रैक्टिस के दौरान मेरे स्कूल के किसी दसवें वाले ने किसी 'अंग्रेज़ी' स्कूल की लडकी पर् सीटी मार दी - अगले दिन - हुआ मार - हा हा हा हा हा ....अब सर गणेश दत्त पाटलिपुत्रा का विद्यार्थी कहाँ रुकने वाले थे ...जबरदस्त हंगामा ! कार्यक्रम रोकना पड़ा ! कहानी शुरू हुआ - लोयला में एक बार सेंटर पड़ा - लोयला में डी डी राय पर् कुछ कमेन्ट हुआ ...लगा की ...लोयला में आग लगा देंगे ! ये क्रेज था - डी डी राय का !

वचनदेव कुमार का बृहत् निबंध भाष्कर जुबान पर् था ! एक घटना याद है - आठवीं का नौमही परीक्षा दे रहा था - वर्मा प्रेस से लाल हरा नीला - प्रश्नपत्र आता था ! हिन्दी का परीक्षा था - बगल में नौवां का एक विद्यार्थी बैठा था - इंदिरा गाँधी पर् निबंध लिखने को आया था - हम अपना परीक्षा छोड़ - अपने सीनियर को पुरा  निबंध लिखने में मदद की !

क्लास में अंदर - एक लडका था - राकेश - काला सा - क्या लिखता था ..एकदम मोती जैसा अक्षर और गजब का लैंग्युज सेंस - उससे जलन होती :) एक बेंच पर् हम सभी - फिक्स थे ! महीनो आपस में बात चीत नहीं होता - इगो क्लैश ! एक क्लास छूटता और दूसरे शिक्षक के आने के बीच - पुरा स्कुल ..बरामदा में :) इस वक्त आप किसी को खोज नहीं सकते ! छुट्टी के समय - जिस रफ़्तार से हम सीढियां फांदते ...उफ्फ़ ...! लौटते वक्त ..रास्ता  भर .."कपिलदेव बनाम गावस्कर" ...एक दिन गेट पर् एक सरदार विद्यार्थी .. ..तिवारी पर् मुक्का चला दिया ..तिवारी का जबड़ा टूट गया ....उफ्फ़ ...अगर आज ऐसा होता तो ..अखबार और टीवी में तिवारी हीरो बन् जाता ! गेट पर् छुट्टी के ठीक बाद सभी क्लास के हीरो भाई लोग ..एक साथ जमा होता था ...हा हा हा ...यूँ कहिये ..लोहानीपुर का सब विद्यार्थी हीरो ही होता था !

दसवीं में 'डी डी राय' हमारे क्लास टीचर बने ! बहुत ही गर्व की बात थी - हमारे लिये ! इसी  साल  उनका आवाज़ जाने लगा ...और बाद में पता चला की उनको "कैसर" हो गया ! पटना प्रसिध्ध इस टीचर के हम अंतिम बैच थे ! आज भी उनकी याद आती है ....मन करता है ..उनके नाम पर् एक स्कॉलरशिप शुरू करूँ .....

बहुत यादें हैं ....क्या लिखूं और क्या न लिखूं ....सभी शिक्षक को नमन ....सीनियर को नमस्ते ......बैचमेट को .." का रे ? कहाँ हो आज कल ? " ......जूनियर को ....."और भाई ...सब ठीक न .." :))

आपको एक बात बताता हूँ ....इस स्कुल का अलग संस्कार होता था .....पुरे भारत में उच्च शिक्षा का कोई ऐसा संस्थान नहीं है ...जहाँ यहाँ के विद्यार्थी नहीं पाए जाते होंगे ...अगर आप उन्हें पहचानना चाहते हैं तो जो भी आदमी पटना का हो ..थोडा टेढा हो ..आप "सूंघ" के बता देंगे की - वो "सर गणेश दत्त पाटलिपुत्रा" का अलुम्नी है ....

चलिए ....कुछ आपको याद हो तो लिखिए ...कमेन्ट में ...मै अगले  पोस्ट में आपके कमेन्ट डालूँगा :))


हाँ , बीस फरवरी को हम सभी नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया , प्रगति मैदान के ठीक सामने , नई दिल्ली में "री उनीयन" / गेट टूगेदर / मीट ..जो कहिये ..मना रहे हैं ....जबरदस्त ढंग से ....

रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !