Wednesday, October 31, 2007

बिहार :- एक ओल्ड एज होम

बचपन मे सुनता था कि विदेश मे "ओल्ड एज होम" होता है ! मुझे बहुत आश्चर्य होता था ! भला कोई अपने माता - पिता को क्यों "ओल्ड एज होम" मे डालेगा ! क्या मजबूरी होगी ? ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपने माँ बाप से दूर चले जाएँ ! उनको अकेला छोड़ दें ! 


मेरे "ब्लोग" पढ़ने वाले अधिकतर पूर्वांचल के लोग हैं , जिनको आज कल "बिहारी" कहा जाता है ! सच सच बताएं - आप मे से कितने लोग अपने माँ-पिता जी के साथ रहते हैं ! अगर आपके माँ - पिता जी साथ मे नही रहते हैं तो फिर वह कहाँ रहते हैं ?
सिप्ताम्बर के महीने मे पटना गया था - माँ- बाबुजी के पास ! सड़क पर एक भी युवा नज़र नही आ रहा था ! या तो २० वर्ष से कम आयु वाले या फिर ४५ से ज्यादा वाले ! अजीब हालात है ! जिस राज्य का युवा ही गायब है - वहाँ क्या हो सकता है ? विकास और उत्थान कि बातें करना बेईमानी है !
पटना या बिहार का कोई भी ऐसा गाँव या शहर या फिर यूं कह लीजिए - कोई ऐसा परिवार नही है जहाँ का कोई न कोई बाहर कमाने नही गया हो ! माँ- बाप यूं ही चुप चाप रात के अंधेरों मे दिन गिन रहे हैं और हम यहाँ चका चक दुनिया मे मस्त !
आपको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ :- 
सोहन जी मेरे वाले अपार्टमेंट मे रहते हैं - माता जी पटना मे अकेले - बाबु जी नही रहे ! सोहन जी हर रोज अपनी माँ से बातें करते थे - फोन पर ! अचानक एक दिन शाम , फोन तो घडघडा रहा था लेकिन उधर से कोई उठा नही रहा था ! थोडी चिंता हुई - फिर सोने चले गए ! फिर अगला दिन वही हालत ! पटना वाले घर पर कोई फोन नही उठा रहा था ! अब वह सचमुच मे घबरा गए ! किसको फोन करें ? फूफा जी खुद बीमार हैं - मामा जी तो मुम्बई मे बसे हैं ! कोई भी दोस्त महिम पटना मे नही है ! किसी तरह पडोसी का फोन जुगार किया और "माँ" का हाल चाल बताने को कहा ! पता चला घर अन्दर से बंद  है ! पुलिस को फोन किया - पुलिस आयी ! दरवाजा तोडी तो पता चला कि - माँ अब नही रही ! 
पटना के  एक प्रख्यात डाक्टर मिले , बोले - हम तो बहुत कमा लिए हैं ! बेटा नालायक निकले तो अच्छा है - कम से कम पास मे तो रहेगा ! 'फलना बाबु' को हार्ट अटैक आ गया - कोई नही मिला जो हॉस्पिटल पहुंचा सके ! तीनो बेटा अमेरिका मे थे - तीन दिन लग गया - आने मे - तीन दिन तक बर्फ पर् पड़े रहे ! 
हम आम बिहारी के नसीब अजीब हैं ! हम बहुत सपने लेकर जिंदा नही हैं ! कम से कम हैसियत के मुताबिक २ वक़्त कि रोटी मिल जाये - वह बिहार मे नामुमकिन है !
हमारा समाज भी अजीब है - जैसे आप बिहारी होने के नाते - बाहर जा कर कमाना आपका धर्म है ! दिल्ली मे रह कर अगर आप पटना वापस आने का सोचे तो सभी तरफ से उंगली उठने लगेगी - क्या बात है ? अरे मेरे भाई - बात कुछ नही है - बस , अब घर लौटने को दिल कर रहा है !
भांड मे जाये ऐसा नौकरी - 
नितीश कुमार भी सात साल हम जैसे लोगों के लिये कोई जगह नहीं बना सके हैं ! 




~ रंजन ऋतुराज 

Tuesday, October 23, 2007

दालान पढे , क्या ?

जब से हिन्दी मे ब्लोग लिखना शुरू किया हूँ , हर रोज -हर वक़्त सब से यही पूछता रहता हूँ - क्या , आप ने मेरा "दालान" पढा ? साथ ही साथ यह भी आशा करता हूँ को वह आदमी मेरे "दालान" कि बड़ाई मेरे सामने करेगा ! अपना "बड़ाई" सुनने के लिए आदमी क्या कुछ नही करता है ! कई दोस्त मुझे झेल जाते हैं ! दोस्ती को लिहाज रखते हुए "दालान" पढ़ना पङता है ! फिर वह गाली देते हैं कि - मुखिया को कितना टाइम है ! मुझे पता है - ऐसे लोग ज्वलनशील होते हैं ! मुखिया का एक ब्लोग उनको बर्दास्त नही होता है ! बहुत दुःख कि बात है ! खैर - कोई बात नही - कसाई के श्राप से गाय थोडे ही मरती है !
१८-१९ साल से लिखता आ रहा हूँ ! पहले हिन्दी समाचार पत्रों मे लिखता था ! अब इलेक्ट्रोनिक दुनिया मे लिखता हूँ ! ज़िंदगी के हर अनुभव से गुजरा हूँ ! कल्पना शक्ति काफी मजबूत है ! जो पल जिन्दगी मे नही आये - उनकी कल्पना कर सकता हूँ - शायद यही सोच "कुछ लोग" मुझे अजीब नज़र से देखते हैं ! जैसे मैं पटना का कोई "लोफर" हूँ और बालकोनी से उनकी धरमपतनी पर बुरी नज़र रख रहा हूँ !
भाषा कमज़ोर है - साहित्य नही ! बहुत लोग भाषा और साहित्य को एक साथ देखते हैं ! मैं ऐसा नही मानता हूँ ! क्या सुन्दर लड़की होने के लिए "कुंवारा" होना जरुरी है , क्या ? मैं अपने साहित्य मे भाषा का कौमार्य भंग नही किया है !
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Monday, October 22, 2007

आज सोमवार है !

आज "सोमवार" है ! सच पूछिये तो आज "काम" पर आने का मन एकदम नही करता है ! सुबह सुबह बच्चा लोग भी स्कूल नही जाना चाहता है ! "कसाई" की तरह उनको तैयार कर के स्कूल भेजना पङता है ! इधर "त्यौहार" वाला मूड हो गया था ! अचानक आज सुबह पता चला की आज सोमवार है ! मौसम भी अजीब है ! कच्ची धुप थोडी अच्छी लगती है ! मन कर रहा है कि हरे हरे घास - ( दूभ) पर एक चटाई बिछा के - भागलपुरी चादर ओढ़ के एक नींद मार लें ! बीच बीच मे कोई ग्रीन लेबल वाली चाय देता रहे और हाथ मे एक उपन्यास ! फिर दोपहर को उठ कर भर पेट आलू दम कि सब्जी के साथ चावल ! फिर एक नींद !
मेट्रो मे ज़िंदगी अजीब है ! हर कोई पैसा के पीछे भागता नज़र आता है ! यहाँ पैसा भी है ! कोई "लहर" गिनने का भी पैसा कमा लेता है ! वैसे , "पैसा और खुशामद " सबको अच्छा लगता है ! हम कोई अपवाद नही है ! "राजा" इसलिए "राजा" होता था कि उसके पास धन होता था !
रमेश मिला ! पूछे कि भाई हम दोनो एक साथ दिल्ली आये थे ! तुम गाडी पर गाडी बदल रहे हो ! और एक हम हैं :(
कहने लगा - "मुखिया जी " , हम यह नही सोचते कि - आज सोमवार है और कल इतवार था ! बस यही फर्क है ! "लहर" गिनने से हमको शरम नही है ! "बीबी" को माथा पर सवार नही किये हैं ! जम के मेहनत करते हैं ! अपना -पराया का भेद भाव किये बिना जेब काटने से हिचकते नही हैं !
एक सांस मे ही सब कुछ कह गया ! हम चुप रह गए ! लेकिन मेरे अन्दर का अर्जुन जाग रहा था ! अब असली महाभारत होगा ! मुखिया जी पैसा कमा के गर्दा गर्दा कर देंगे ! मालूम नही - मैंने क्या क्या सोच लिया !
सोचते सोचते - फिर नींद आने लगी और मैं मखमली दूभ कि तलाश मे निकल पडा !
जरा , एक कप ग्रीन लेबल चाय ! आज सोमवार है ! कुछ भी करने का मूड नही बन रहा है !


रंजनऋतुराज सिंह , नॉएडा

Thursday, October 18, 2007

दुर्गा








नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है। माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है। नवरात्रि के सभी नौ दिन इन सभी रूपों में बंटे हुए हैं जो इस प्रकार हैं -
शैलपुत्री -


वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम। वषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशिंस्वनीम॥


मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्र पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।
ब्रह्मचारिणी


दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥


मां दुर्गा की नौ शिक्तयों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वद्धि होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपाासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भिक्त प्राप्त करता है।
चंद्रघण्टा


पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥


मां दुर्गा की तीसरी शिक्त का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि -विधान के अनुसार, मां चंद्रघण्टा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।
कूष्माण्डा


सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे॥


माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरत्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा -उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
स्कन्दमाता


सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशिस्वनी॥


मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्र पूजन के पांचवें दिन का शस्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य किरयाएं एवं चित्र वित्तयों का लोप हो जाता है।
कात्यायनी


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥


मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।
कालरात्रि


एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता। लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी॥ वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी॥


मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और
ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।
महागौरी


श्वेते वषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥


मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शिक्त अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।
सिद्धिदात्री


सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥


मां दुर्गा की नौवीं शिक्त को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।


रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Tuesday, October 9, 2007

"चुनाव" नजदीक है !

"आम चुनाव" का नाम जेहन मे आते ही मन एकदम फ्रेश हो जाता है ! १९७७ से लेकर आज तक के सभी चुनाव को काफी नजदीक से देखा है ! १९८० का बिहार विधानसभा और १९८४ के लोकसभा का चुनाव को काफी ही नजदीक से देखा है ! उसके बाद टी वी पर भी चुनाव देखा है ! बिहार और उत्तर-प्रदेश के गाँव मे , "चुनाव" को एक पर्व के रुप मे देखा जाता है ! कई बेरोजगारों को क्षणिक रोजगार मिल जाता है ! कई "परिवार" मे आपस मे ही "भात" बंद हो जाता है ! जीता कोई - हारा कोई लेकिन गांव मे टेंशन काफी दिन तक रहता है ! कुछ भी कहिये , बहुत मजा आता है ! "लोकसभा " का चुनाव "बूथ कैप्चर" कर के नही जीता जा सकता है ! चुनाव के ठीक दो दिन पहले "कट्टा , बम्ब" इत्यादी का सप्लाई होना शुरू हो जाता है ! इन सब का इस्तेमाल कम और हड्काने मे ज्यादा होता है ! थोडा टेंशन बढ़ाने के लिए "हवाई फैरिंग" किया जाता है !

पहले प्रचार जोर दार ढंग से होता था ! कई लोग ऐसे होते थे जो गाड़ी किसी और उम्मीदवार का , पैसा किसी और उम्मीदवार का और वोट किसी और को ! दुनिया मे सभी जगह जात पात है , चुनाव के दौरान दुसरा जात का वोट पाने के लिए उम्मीदवार बेचैन होते हैं ! अगर आप अपने "जात" के उम्मीदवार के खिलाफ दुसरे जात वाले उम्मीदवार के लिए थोडा भी काम कर रहे हैं तो आपको "दामाद " वाला ट्रीटमेंट मिलेगा ! अधिकतर चुनाव मे , चुनाव के ठीक एक दिन पहले वाली रात मे "निर्णय" होता है ! कहीँ कहीँ एक तरफा मुकाबला होता है - वहाँ मजा नही आता है ! किसी चुनाव मे आप किसी उम्मीदवार के लिए काम कीजिये और देखिए आपको "भारत-पाकिस्तान" वाला क्रिकेट मैच से ज्यादा मजा आएगा !

कई उम्मीदवार समर्थन रहने के वावजूद चुनाव हार जाते हैं - क्योंकि उनमे "चुनाव - प्रबंधन " नही होता है ! कई ऐसे होते हैं - जो पैसा के बल पर चुनाव जीत जाते हैं ! कई पैसा खर्चा कर के भी जीत नही पाते हैं ! कुछ लोग खानदानी चुनाव लड़ने वाले होते हैं - हर चुनाव मे बाप -दादा का २-४ बीघा जमीन बेचने मे हिचकिचाते नही ! मुझे लगता है - आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थान को "चुनाव-प्रबंधन" पर कुछ १-२ साल का डिप्लोमा शुरू करना चाहिऐ !

किसी बडे पार्टी का टिकट जुगार कर लेना भी लगभग चुनाव जितना जैसा होता है ! बहुत दिन तक हमको यह नही पता था कि "टिकट" का होता है ! टिकट कैसा होता है ? एक बार लालू जीं को धोती मे पार्टी का टिकट बाँध कर रखते हुये देखा ! फिर वोही हमको बताये कि - यह पार्टी का स्य्म्बोल होता है - जिसके हाथ मे यह चला गया वोही पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार होता है ! कई जगह पैसा वाले टिकट का दाम बढ़ा देते हैं ! और यहाँ पार्टी पेशोपेश मे पड़ जाती है ! कई जगह टिकट कि नीलामी होती है !

नॉमिनेशन वाले दिन भी थोडा हंगामा जरूरी होता है ! २-४ ठो गाड़ी घोडा , किराया पर "जिंदाबाद - मुर्दाबाद" कराने वाले लोग इत्यादी कि जरूरत होती है ! यहीं आपके खिलाफ या पक्ष मे पहला "हवा" तैयार होता है ! अब यह "हवा" आपके साथ कितना दिन तक रहता है - यह आपका नसीब !

कई बार पढे लिखे विद्वान् लोग चुनाव हार जाते हैं ! "जनता" को विद्वान् से ज्यादा उनके दर्द और तकलीफ को जानने वाला ज्यादा "मत" पता है - भले ही वोह बाद मे बेईमान हो जाये !

"मत गिनती" वाले दिन भी बहुत टेंशन रहता है - पहले कई राउंड होते थे ! "दशहरा - दीपावली " जैसा २ दिन तक कोउन्तिंग होता था ! कभी कोई ४००० से आगे चल रहा है तो कभी कोई ५००० से पीछे ! हमलोग टी वी से बिल्कुल चिपके होते थे ! खैर अब तो सब कुछ - २ -४ घंटो मे ही खतम हो जाता है !

खैर , अगर मरने से पहले एक चुनाव नही लड़े तो क्या किये ? हमारे एक कहावत है - अगर किसी से दुश्मनी है तो उसको एक पुराना चार-पहिया खरीदवा दीजिये और अगर दुश्मनी गहरी है तो "चुनाव" लड्वा दीजिये !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

Friday, October 5, 2007

बाहुबलीयों की वक़ालत

१ अक्तूबर और फिर ३ अक्तूबर को पटना की एक अदालत ने कुछ बाहुबलियों को सजा सुनायी ! "सजा" ऎसी की शेर के आखों मे भी आंसू आ गए ! "समाज" अजीब है ! कभी सर आखों पर तो कभी जूतियों के नीचे ! आदमी वही है , व्यक्तित्व भी वही है ! देखने की नज़र बदल जाती है ! मुझे भी याद है - गाँधी मैदान का वोह रैली जिसमे एक शेर की तरह "आनंद मोहन" गरज रहे थे ! आज वही "आनंद मोहन " के आंसू पोछने वाला कोई नही है ! यही वक़्त है !
आप सभी लोग पढे लिखे हैं - राजनीति का अपराधीकरण कैसे हुआ ? या अपराधियों का राजनीति मे प्रवेश कैसे हुआ ? सुरजभन या अशोक सम्राट जैसे लोगों को कौन पनपाता है ? ईन गिदर को शेर कौन बनाता है ? सिर्फ बंदूक की बदौलत कोई बाहुबली नही बन सकता ! यह मेरा दावा है !
बिहार मे १९८० से १९९० के दशक मे कई बाहुबली पैदा हुये ! बीर मोहबिया , बीरेंद्र सिंह , काली पाण्डेय , सूरज देव सिंह इत्यादी ! लेकिन इनमे दम नही था ! क्योंकि इनकी संख्या कम थी ! राज्य स्तर पर इनकी पहचान नही थी !
१९९० का चुनाव - कई बाहुबली पैदा लिए ! कॉंग्रेस के खिलाफ , लोगों ने इनको चुनकर भेजा ! यह जनता का पैगाम था - राजनीति कराने वालों के लिए ! लेकिन - यह लालू जीं से संभल नही पाए ! सही नेतृत्व के आभाव मे यह सभी कहीँ ना कहीँ जनता की मज़बूरी बन गए ! समाज पहले भी विभाजित था , समाज आज भी विभाजित है और समाज कल भी विभाजित रहेगा ! हाँ , हो सकता है कल विभाजित समाज का पैमाना कुछ अलग हो !
सन २००० का चुनाव और नितीश जीं का मुख्य मंत्री बनाना , १४ निर्दालिये बाहुबली विधायकों का समर्थन लेना वोह भी सूरजभान के नेतृत्व मे ! क्या यह फैसला - बाहुबलियों के मन को बढाना नही था ! क्या इस फैसले ने जनता के गलत फैसले को मजबूत नही किया ? क्या संदेश गया जनता के बीच की सरकार सिर्फ इनकी ही सुन सकती है ! लल्लू के दरबार मे सहबुद्दीन जैसे लोगों को राजा की उपाधि देना । जड़ विहीन लोगों के दवाब मे विश्वा प्रख्यात चिकित्सक सी पी ठाकुर को मंत्रिमंडल से बहार कर देना और पटना एअरपोर्ट पर सी पी ठाकुर का २१ ये के ४७ से आव्गानी करना और सरकार का चुप चाप तमाशा देखना , क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढाना नही है ! क्या हम पूछ सकते हैं श्री नितीश कुमार जीं से की रेल मंत्री होने के नाते सूरजभान को आर्थीक रुप से वोह कितना मजबूत बनाए की आज यह आदमी बिहार का सबसे धनिक लोगों मे से एक है ! जब सूरजभान से मन मुताओ हुआ तो अनंत सिंह को चांदी के सिक्कों से तुलना या फिर अनंत सिंह के दरवाजे पर हर दुसरे दिन जाना ! क्या यह सब बाहुबलियों के मन को बढ़ाने के लिए काफी नही था ? सन २००० के चुनाव मे क्या सोच कर ४० सीट दिये - आनंद मोहन को ! जब वंदना प्रेयसी अनंत सिंह की नकेल कस रही थी तो फिर क्या सोच कर आप उनका ट्रांफर कर दिए ? गुल खाए और गुलगुले से परहेज !
आप राज नेताओं ने इन बाहुबलियों का मन इतना उंचा उठा दिया की सही ढंग से राजनीति कराने वाले ग़ायब हो चुके हैं ! हर गली मुहल्ला मे अपराधी का बोल बाला था ! कानून का भय तो बिल्कुल ही नही है !
खिलाड़ी तो यह राजनेता हैं ! जनता और कुत्ते की मौत मरने वाले अपराधी तो बस गोटी भर ही हैं ! पढे लिखे गरीब बिहारीओं का यह दुर्भाग्य है की "नौकरी" पा कर पेट भर लेना ही उनका एक मात्र लक्ष्य है ! फिर भटके हुये समाज को बाहुबली के अलावा क्या उपाय है ?

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा