मैंने शायद पहले भी लिखा है – रांची के डोरंडा मोहल्ले के ‘नेपाल हॉउस’ में नाना जी रहते थे और करीब पांच बजे दिल्ली वाला ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ आता था ! बरामदे में अखबार वाला अखबार को ‘सुतरी’ से बाँध फेंक जाता था ! मै अखबार की तरफ दौड पड़ता ! आर् के लक्ष्मण के कार्टून को देखने के लिये ! अखबार से जुडी यह मेरी पहली याद है !
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !
रांची प्रवास के दौरान ही – मौसी की पहली पोस्टिंग ‘इटकी’ ( रांची के पास ) हुई थी ! एक ट्रक नुमा बस फिरायालाल से खुलती थी ! दो – तीन दिन इटकी में रहा फिर मौसी के साथ वापस ! वहीँ ‘फिरायालाल’ के पास लौटते वक्त मौसी मेरे लिये ‘पराग’ और ‘पौप्पिंस’ खरीद देती थीं ! ‘पराग’ मेरे उम्र के लिये नहीं था – मुझसे बड़े बच्चों के लिये था पर् पराग पढ़ने के बाद कुछ और पसंद नहीं आया ! चम्पक और चंदा मामा कभी नहीं पढ़ा ! और फिर पराग से सीधे ‘कादम्बिनी’ J ! फिर नंदन ! फिर अमर चित्र कथा ! पागलों की तरह पढता था ! धर्मयुग ! पत्र – पत्रिका के चलते बहुत बचपन में ही बहुत कुछ बहुत जल्द समझ में आया गया जिसके कारण जीवन में बहुत चमकीली चीज़ें बहुत फीकी लगती थी ! खैर ..
मुजफ्फरपुर लौटा ! यहाँ दर्शन हुए आर्याव्रत और इन्डियन नेशन से ! बड़े बाबा मिजाज़ से बहुत रईस थे – ढेर सारे अखबार वो खरीदते थे – जाड़े के दिन में पूरा मोहल्ला दरवाजे पर् आ जाता था – अखबार पढ़ने के लिये – बदले में उनलोगों को बड़े बाबा का ‘गप्प’ सुनना पड़ता था ! बड़ी दादी रोज अखबार वाले को धमकी देती थीं ! सर्च लाईट – प्रदीप !
पिता जी जब पीजी में एडमिशन लिये तब हम सपरिवार मुजफ्फरपुर में ही दूसरे जगह शिफ्ट कर गए ! यहीं मुझे अमर चित्र कथा पढ़ने का मौका मिला ! इंद्रजाल कॉमिक्स – वेताल – बहादुर – फैंटम ! अमर चित्र कथा के माध्यम से ही मैंने भारत वर्ष को जाना ! फिर अचानक से ‘स्माल पॉकेट बुक्स’ में ‘राजन इकबाल’ सीरीज ! पागल की तरह ! एक अटैची भर गया – राजन – इकबाल से ! दोस्तों से एकदम सिनेमा माफिक सीधे ‘अटैची’ का आदान – प्रदान ! एक दो साल खूब पढ़ा ! एक रविवार बाबु जी के पॉकेट से मैंने पचास रुपैये भी चुराए – ‘किंग कॉंग’ खरीदने के लिये ! दो चटकन में मुह से सब चोरी निकल गया ! L नंदन में राजा – राजकुमार की कहानी J
पिता जी का पीजी समाप्त हुआ और वो अचानक से सभी अखबार और पत्र – पत्रिकाएं खरीदने लगे ! देर शाम वो अपने लम्ब्रेटा के बास्केट में सभी अखबार और पत्र पत्रिकाएं ले आते थे ! मै किसी और को छूने नहीं देता ! ‘सारिका’ से परिचय वहीँ हुआ ! इलस्ट्रेटेड वीकली , धर्मयुग , साप्ताहिक हिंदुस्तान ! तीनो काफी लंबे – चौड़े मैग्जीन होते थे ! करीब एक दो साल जम के ‘सारिका’ पढ़ा ! हिन्दी साहित्य की समझ और समाज से परिचय हुआ ! तब तक मै हाई स्कूल भी नहीं गया था ! जितनी कम उम्र में जितना पढ़ा और समझ में आया – एक आश्चर्य है – मेरी हिन्दी उतनी ही कमज़ोर है L
भारत क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता ! डा० नरोत्तम पूरी की ‘खेल भारती’ से परिचय हुआ और और खेल भारती को तब तक पढ़ा – जब तक वो छपता रहा ! इसी टाईम में टीनएजर के लिये ‘सुमन सौरव’ आया ! मै कभी नहीं पढ़ा – एक बार एक नज़र देखा और एक दोस्त के मुह पर् मारा – ई सब बउआ लोग के लिये है ! मुझे सारिका पढ़ने दो ! ;)
इसी दौरान ‘क्रिकेट सम्राट’ आ गया ! उसमे किसी खिलाड़ी का पोस्टर होता था ! वो पोस्टर मेरे कमरे में चिपक जाता था !
बाबा राजनीति में थे सो उनके अटैची में ‘माया’ रखी होती थी ! चुप चाप माया को निकाल दिन भर पढ़ना ! दिनमान और रविवार भी बाबु जी खरीदते थे ! शायद दिनमान में पिता जी के एक सीनियर दोस्त के साले साहब काम करते थे !
खैर , पटना आ गया ! मामा लोग इन्टेलेकचूयल टाइप थे ! इंडिया टूडे और रीडर्स डाईजेस्ट हाथ में लेकर घुमते थे ! इण्डिया टूडे को पीछे से पढ़ना J तब वो पाक्षिक होती थी ! पटना आने पर् एक खुशी यह हुई की – यहाँ सुबह में ही अखबार मिलता था ! स्पोर्ट्स का पेज लेकर गायब J किसी कोना में मैल्कम मार्शल के बारे में पढ़ रहा हूँ J क्रिकेट सम्राट चालू रहा ! पुरे कमरे में ‘वेस्ट इंडीज’ के खिलाड़ी का पोस्टर ! एक बार गाँव से कोई आया – वो मेरे कमरे में ही ठहरे – एक सुबह सुबह बोले – ‘भोरे भोरे ई करिया करिया सब का चेहरा देख – जतरा खराब हो जाता है’ ;)
खैर ..पटना में ‘पाटलिपुत्रा टाइम्स’ – आज इत्यादी से परिचय हुआ ! मैट्रीक में रहा हूँगा – नव भारत टाईम्स और टाईम्स ऑफ इंडिया – पटना पहुँच गयी ! हाँ , आठवीं में ही – हर शाम – दिल्ली के अखबार मै अपने पॉकेट मनी से खरीदने लगा ! शाम पांच बजे तक – कंकडबाग में दिल्ली वाले मोटे – मोटे अखबार आने लगे !
हम लोग पटना में किराया पर् थे – मकानमालिक के सीढ़ी घर में एक बड़ा ट्रंक होता था – हिन्दी साहित्य की सभी मशहूर किताबें ! आठवीं में सब पढ़ गया ! स्कूल से आने के बाद – सीढ़ी घर में – एक हाथ में अमरुद और एक हाथ में एक उपन्यास ! चुप चाप पढ़ना और फिर जहाँ से किताब निकाला वहीँ रख दिया !
प्लस टू में गया तो रीडर्स डाईजेस्ट ! हर दूसरा अंक में – हाउ टू सेभ यूर मैरेज – हा हा हा हा ..तब नहीं बुझाता था – अब बुझा रहा है ;)
कॉलेज में हिंदू से परिचय हुआ ! फिर बंगलौर में नौकरी के दौरान – वहाँ से छपने वाली – लगभग सभी अंग्रेज़ी अखबार ! इतवार पूरा दिन रूम में बैठ कर अखबार पढ़ना ! बस !
रांची में पीजी के दौरान – मेरे कमरे में लगभग सभी अंग्रेज़ी अखबार आते रहे ! इण्डिया टूडे और रीडर्स डाइजेस्ट लगभग पचीस साल से साथ में हैं ! नॉएडा – गाज़ियाबाद में दस साल से हूँ ! पुरे मोहल्ले में सबसे ज्यादा अखबार मेरे यहाँ ही आता है ! अब जब सुबह में समय नहीं है तो अखबार को देर रात पढता हूँ ! पेज थ्री नहीं पढता हूँ ! पत्नी पढ़ती हैं – कहाँ कहाँ डिस्काउंट लगा है – देखने के लिये J
और क्या लिखूं ..अखबार पढ़िए ! जरुर पढ़िए ! एक बढ़िया चाय और दो तीन अखबार के साथ सुबह हो – उसके आगे सब फेल है ! इंटरनेट कुछ ज्यादा समय ले रहा है ! टीवी - टावा कम देखता हूँ - बस न्यूज चैनल !
विश्वविद्यालय की सेमेस्टर एग्जाम शुरू हो चुका है ! ठण्ड भी बढ़ रही है ! ढेर सारे उपन्यास 'पाइप - लाईन' में हैं !
कुछ बढ़िया उपन्यास पढ़ कर - उनके बारे में यहाँ लिखना चाहता हूँ ! समय चाहिए !
रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !