Sunday, July 22, 2012

धन्यवाद ...आप सभी का !

आजकल फेसबुक पर लिखने लगा हूँ ! वहाँ बहुत कम शब्दों में ही लिखना पड़ता है - लोगों के पास समय कम है - उन्हें कुछ क्रिस्पी चाहिए - पढ़े - लाइक बटन दबाये और चल दिए ! मालूम नहीं मेरे शब्द कितनो को याद रहता है - पर मुझे लिखना पसंद है - शब्दकोष कमज़ोर है - इसलिए थोड़ी दिक्कत होती है !

अब सोचा हूँ - अगर इतवार को फुर्सत रहा तो - यहीं ब्लॉग पर लिखूंगा - कम शब्दों में लोग बातों को समझ नहीं पाते हैं - जिसको फुर्सत होगा वो यहाँ आकर पढ़ लेगा !

हिंदी साहित्य एक बचपन से ही पसंद है ! रांची में रहता था - कभी कभी मौसी के साथ इटकी चला जाता लौटते वक्त फिरायालाल चौक पर एक पोप्पिंस और एक पराग ! अम्पक - चम्पक / चाचा चौधरी लगभग नहीं पढ़ा - उम्र सात - आठ साल रही होगी !

ननिहाल में साहित्य का चलन था - प्लस टू में था तो करीब आठ - दस साल बाद एक मामूजान के यामाहा मोटरसाइकिल पर लटक कर - ननिहाल गया था - गाँव - हैरान था - माँ के बचपन का 'पराग' और ढेर सारी पत्रिकाएं - माँ ने खुद हिंदी साहित्य से हैं और संगीत से भी उनका जुडाव रहा है - तानपुरा बजाती थी -  बड़ा तानपुरा देखा है मैंने - ननिहाल के खंडहर में ! पर माँ ने मुझे कोई ट्रेनिंग नहीं दिया - कुछ आया होगा उनसे तो वो 'खून' से ही आया होगा ! ननिहाल बुरी तरह बर्बाद / खत्म हो चुका है - लिख नहीं सकता - किसी से कह नहीं सकता - दर्द और दुःख दोनों है ! मेरे जेनेरेशन में कुछ पढ़ लिख कर - देश विदेश में नाम कमा रहे हैं - पर उन बच्चों से मेरा अपना कोई व्यक्तिगत लगाव नहीं है - ननिहाल / ममहर - तभी तक जब तक नाना - नानी / मामा ! बस ! पर आधा खून तो वहीँ का है ..न ...वो तो बोलेगा ही ! खून नहीं बोलेगा तो क्या पानी बोलेगा ?? :))

मुजफ्फरपुर में रहने के दौरान - बाबु जी एक बहुत बढ़िया काम किये - ढेर सारी मैग्जीन ! उसमे से एक था  - सारिका - आजभी उस साहित्य मैग्जीन की याद है ! बाबु जी भी पढते थे और हम भी ! बहुत ही कम उम्र में बड़े ही परिपक्व कहानीओं से पाला पड़ा ! छठी - सातवीं क्लास में खूब पढ़ा ! धर्मयुग / साप्ताहिक हिन्दुस्तान की कहानी / कादम्बिनी ! कुछ ऐसा ही पढ़ने का शौक मेरी बहन को भी है - दस साल पहले वो अमरीका गयी तो वहाँ कादम्बिनी खोजी - याद है - फोन पर बोली थी - भईया ..यहाँ कादम्बिनी मिल गयी ! :))

मैट्रीक की परीक्षा पास करने के बाद - याद है - बाबू जी बोले थे - पटना कॉलेज में एडमिशन ले लो - एक दिन वो काउंसेलिंग भी किये - हम कहाँ मानने वाले थे - जब आदमी जिद पर अडा हो - पाँव पर कुल्हाड़ी मारने के लिए - फिर कौन रोक सकता है ! फिर ..प्लस टू को बुरी तरह तहस नहस करने के बाद - एक मौक़ा और था - वापस आर्ट्स पढ़ने के लिए - पर नसीब में कुछ और लिखा था - जीवन के सफर को लेकर बुरी तरह डर चुका था ...इस डर में ही न जाने कितने साल सोया रहा ....जागा तब तक ...शाम हो चली है ....अब रात का भय सताता है ...!

प्लस टू में था तो एक मामा जान हैं / थे - यामहा मोटर साइकिल और हाथ में रीडर्स डाइजेस्ट ! हमको भी शौक हुआ - ताज्जुब है ..अंग्रेज़ी गोल होते हुए भी ..रीडर्स डाइजेस्ट से आज तक प्यार है ! खुशी तब होती है - जब आज के दिन रीडर्स डाइजेस्ट आता है - पुत्र महोदय भी उसी चाव से पढते हैं !

कॉलेज के जमाने पास - फेल में ही व्यस्त रहा ! अंतिम वर्ष में 'निखरने' का मौका मिला - एक गीत खुद से लिखा - बाबा सहगल का प्रभाव था - वो भी इंजिनियर थे - फिर क्या 'धूम' ! अत्लाफ असलम को देख वो सारे दृश्य याद आते हैं ! वो एक स्टारडम था - कुछ पल का - शोर - वन्स मोर का - आप सफ़ेद फ्लोपी शर्ट - काला जींस - काला वेस्ट कोट पहन स्टेज से कूदते हैं - जिससे आज तक कभी नैनो को छोड़ बात नहीं किया - उसका जुबान पहली और अंतिम दफा खुलता है - वन्स मोर ..मेरे लिए ! कहानी समाप्त !

शादी विवाह / नौकरी छोड़ भगोरा / बिजनेस डूब जाना - परेशान हो गया था - पिता जी का प्रेशर - उनका इज्जत - दस साल पहले नॉएडा आ गया ! उस साल एक बढ़िया काम हुआ - एक नया कंप्यूटर मेरे केबिन में लग गया - मालूम नहीं मेरे तब के एच ओ डी मुझे क्यूँ बहुत मानते थे - किसी से उनको कहते सुना था - रंजन इज अ हम्बल गाई ..वेरी सोबर ...! :( नो आइडिया ! इंटरनेट से जुडा था - पर यहाँ तब ढेर सारे याहूग्रुप से जुड गया ! कुछ बदमाशी सूझी = मैंने अपना आईडी "मुखिया जी" रखा ! फिर ..धडाम ..धडाम मेल लिखने लगा ...मेरे गहरे मित्र 'सर्वेश उपाध्याय' ने एक दिन मुझसे कहा ....रंजन जी ..उस दौर में ..आपके मेल पढ़ने के पहले ..लोग हनुमान चालीसा पढ़ लिया करते थे ! हा हा हा ...सर्वेश खुद कई ग्रुप के मोडरेटर होते थे ...मुझे ब्लोक करते करते थक चुके थे ...पर दोस्ती और एक दूसरे के लिए बहुत आदर और स्नेह ..टचवूड !

इसी बीच ..मैंने 'लोहा सिंह - रामेश्वर सिंह कश्यप' से मिलाता जुलता कुछ लिखा - रोमन लिपि में - हिंदी में - संजीव कुमार राय भैया बहुत पसंद किये - पीठ ठोक दिए ! वो खुद साहित्य के प्रेमी हैं ...! फिर मैंने एक कहानी लिखी - 'विजय बाबु की कहानी' जो  अमरीका के सुलेखा डॉट कौम पर आया - पर रोमन लिपि में ही था - कितनो को पसंद आया - पता नहीं ! फिर दूसरी कहानी - टूनटून बाबु की कहानी - फिर संजीव भैया पीठ थपथपा दिए ! फिर होली दीपावली छठ को लेकर लिखने लगा - याहूग्रुप पर - एक दिन लिखा - मैट्रीक परीक्षा पर - संजीव भैया को भेज दिया - उधर से जबाब आया - देवनागिरी में लिखो - ब्लॉग खुल गया :))

ब्लॉग खुलने के बाद - सर्वेश जी और संजय शर्मा भैया जी तोड़ मेहनत किये - कैसे इसकी लोकप्रियता बढाई जाए :)) सच में - दालान उनलोगों का कर्ज़दार है - संजय भैया खुद भी बहुत बढ़िया लिखते हैं - सहारा में काम करते हैं - साहित्य को बहुत पढ़े हैं !

फेसबुक को समझते - समझते में ही दो आईडी बर्बाद हो गए :( जब समझ में आया - सावधान हो गया ! दो साल पहले मैने  एक सीरीज शुरू की - 'मेरा गाँव - मेरा देस' ! पहला पोस्ट में ही देश के विख्यात पत्रकार 'विनोद दुआ' साहब फेसबुक पर कमेन्ट कर गए - बहुत बढ़िया लिखते हो - खूब लिखो ! यह कमेन्ट एक जादू था - आप अपने परिवार के बारे में लिख रहे हैं और आपका पीठ ऐसा आदमी थपथपा रहा है - जिसको टीवी पर देख आप बड़े हुए हैं ! आज भी मेरी नज़र में वो टीवी के हिंदी में सबसे बढ़िया पत्रकार हैं - पर दुर्भाग्य वश - मै उनसे उलझ गया - दुःख है पर मेरे पास कोई और चारा नहीं था ! पर सर मै आज भी आपकी बहुत इज्जत करता हूँ !

फिर पटना के हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्र ने पटना में एक परिचर्चा की - वहाँ के पत्रकार 'प्रशांत कक्कर ' जी ने मुझे भी न्योता भेजा - कमलेश वर्मा सर ने मेरी बातों को छाप दिया - मेरा शहर मुझे लौटा दो :)) पुरे एक पेज में !

यह एक आम आदमी की सोच है - कोई भी आम इंसान खुद को अखबार में देख खुश होना लाजिमी है - जब तक उस परिचर्चा में शहर के नामी गिरामी लोगों के साथ बैठे हों और संपादक आपके शब्दों को ऊपर उठा दे - अजीब सी अनुभूती होती है !

रवीश कुमार उनदिनो दिल्ली हिंदुस्तान के लिए लिखते थे - एक दिन वो भी छाप दिए ! गौरव की बात थी ! फिर एक दिन - कमलेश सर का फोन आया मुझसे दालान के बारे में कुछ पूछे - अगले दिन पटना के प्रथम पृष्ठ पर - दालान की चर्चा - रवीश कुमार के ब्लॉग के बाद दूसरा सबसे लोकप्रिय ! अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था - लिखता गया - आम लोगों की कहानी - लोग खुद को मेरे शब्दों में खोजने लगे !

छठ पूजा के दौरान - मैंने छठ पूजा पर लिखा - लिखते - लिखते रोने लगा - लिखता गया ! फिर शांत मन से पोस्ट किया - शैलेन्द्र भारद्वाज सर का कमेन्ट आया - साक्षात सरस्वती आपके कलम पर हैं ! यह एक ऐसा कमेन्ट था - जिसे किसी भी मेरे जैसे आम आदमी के लिए भूलना मुश्किल है - शैलेन्द्र भारद्वाज सर खुद हिंदी के जानकार हैं और हिंदी में ही यूपीएससी कम्पीट किये ! बेहद शालीन व्यक्तित्व ! छठ वाले पोस्ट को पढ़ - पत्नी भी रोने लगी थी - तब मुझे समझ में आया था - शब्द कहाँ तक पहुँच सकते हैं !

'मेरा गाँव - मेरा देस' को लेकर कुछ नेगेटिव प्रतिक्रिया भी आई - फिर लिखना कम हो गया ! खुद के लिखे शब्दों को मशहूर करने का फेसबुक ही एक जरिया था / है - पर वहाँ लोग कम समय के कारण - लिंक कम खोलते हैं - सो छोटा - छोटा लिखने लगा ! कई बात समझने के लिए - लोगों के ऊपर ही छोड़ देता हूँ !

गाँव में घुमने वाले जोगी और उनकी माँ के दर्द को लेकर बहुत कम शब्दों में कुछ लिखा था - कई लोग पसंद किये - उसपर एक कहानी भी लिखी जा चुकी है - इस पर चर्चा बाद में ...पर बेहद खुशी हुई / है !

संकोची हूँ - बहुत कुछ खुल कर नहीं लिख पाता - सिवाय झगडा होने पर - एक पत्थर उठा के देखिये - अभी पत्थर आपके हाथ में ही रहेगा - इधर से इतनी बौछार होगी की ...आप भूल जायेंगे ..ये वही 'सोबर आदमी' है - संकोची ! इस चक्कर में कई बढ़िया रिश्ता खराब हो जाता है :((

खैर ..आदमी हर वक्त क्रिएटिव नहीं रह सकता ..सो कभी कभी बहुत बेकार लिखना पड़ता है - समाज है - समाज में हर तरह के लोग होते हैं - और 'दालान' का दायरा बहुत बड़ा है !

पर अन्तोगत्वा ..मेरे जैसे लेखक को ...टीआरपी चाहिए ...प्रशंशक चाहिए ....प्रसंशा / पैसा सबको पसंद है ....मै कोई अपवाद नहीं !


करीब चार महीनो बाद लंबा पोस्ट लिख रहा हूँ ..मालूम नहीं ...इन्स्टैंट राइटर हूँ ...बिना कुछ सोचे समझे ...एक सांस में लिख देता हूँ ...संडे है ..फुर्सत मिले तो ..एक लाइक / कमेन्ट :))


दालान - इंदिरापुरम !