Tuesday, March 5, 2019

स्त्री - पुरुष / स्पर्श

स्त्री और पुरुष जब एक दुसरे से नजदीक आते हैं ! स्पर्श की अनुभूति या स्पर्श का होना ही प्रेम का परिचायक है ! स्त्री 'मन के स्पर्श' को प्रेम कहती है और पुरुष 'तन के स्पर्श' को प्रेम की मंजिल समझता है ! यह स्पर्श कैसा होगा - यह उन्दोनो के प्रेम की इन्तेंसिटी पर निर्भर करेगा ! लेकिन ऐसा नहीं की पुरुष सिर्फ तन के स्पर्श को ही प्रेम समझते हैं या स्त्री सिर्फ मन के स्पर्श को ! दोनों को दोनों तरह का स्पर्श चाहिए लेकिन प्रमुखता अलग अलग है ! 
एक उदाहरण  देना चाहूंगा ! हमारे दौर में भी क्रश होता था ! स्कूल कॉलेज इत्यादि में ! यहाँ लड़की लडके की किसी अदा पर रिझती थी - शायद वही मन का स्पर्श होता है ! वहीँ लडके क्लास नोट्स आदान प्रदान के वक़्त उंगलिओं के स्पर्श को ही प्रेम की मंजिल समझ लेते थे से लेकर शादी की बात तक ! जैसा की मैंने ऊपर लिखा है - प्रेम के विस्तार तक - स्पर्श की अनुभूति या कल्पना ! 
स्त्री के मन को समझना कठिन है ! यह तरल है ! बहाव में तेज़ी है ! इस मन का कैसे और कब स्पर्श होगा - कहना मुश्किल है ! उम्र के हिसाब से इसका अंदाज़ लगाने की कोशिश की गयी है - एक पैटर्न को देखते हुए ! फिर भी एक पुरुष के लिए यह समझना कठिन है ! यौवन के शुरुआत में गली मोहल्ला के लोफर का बाईक चलाना से लेकर यौवन के अंत में किसी पुरुष की कुलीनता ! लेकिन यह एक महज एक स्टडी है - सच्चाई नहीं ! 
हमारे इलाके में - एक स्त्री को अपने जेठ से किसी भी तरह की दैहिक छुअन की मनाही है ! वो जब अपने जेठ के पैर छूकर प्रणाम की जगह - उनके पैरों के पास जमीन को छुएगी ! यह सामाजिक परम्परा इंसान की मन को देख कर बनाया गया होगा ! यह मान कर चला गया होगा की स्त्री अपने से ज्यादा उमरदराज जेठ से प्रभावित हो चुकी होगी और जेठ अपने से कम उम्र की भाभी / भाभो के तरफ आकर्षित हो चुका होगा ! अब यह बात यहीं ख़त्म हो जाये सो इसके लिए किसी भी तरह स्पर्श की सख्त मनाही है ! स्त्री स्वभाव से अपने से ज्यादा उम्र के पुरुष के प्रति आकर्षित हो चुकी होती है ! वो उन्हें विशाल मान कर चलती है - तब जब उनकी उपस्थिति मृदुल और सुरक्षात्मक हो ! पुरुष अपने से कम उम्र की स्त्री के प्रति आकर्षित हो चुके होते है , तब जब उनकी उपस्थिति एक झरोखों में हो ! स्त्री को अपना जेठ भले वो घास काटने वाला क्यों न हो - विशाल लगेगा ही लगेगा ! तब जब कोई अन्य अहंकार की टकराव न हुई हो ! शायद यही वजह रही होगी की हमारे यहाँ शादी में एक रस्म - आशीर्वादी / मझ्क्का ! जहाँ वर अपनी वधु के सर पर के आंचल को पीछे की तरफ खींचेगा और जेठ उस आँचल को आगे की तरफ लाएगा ! यह उस मनोभाव को दर्शाता है की - पुरुष समय के साथ नजदीक आने पर अपनी स्त्री / पत्नी के इज्जत के साथ खिलवाड़ कर सकता है और तब उस जेठ का दायित्व होगा की वह अपनी भाभी / भाभो के इज्जत को बरक़रार रखे ! यह पूरा खेल - विशालता का है ! और स्त्री विशालता ही तलाशती है तभी किसी भी तरह के स्पर्श की सख्त मनाही है ! 
स्त्री के मन को कुछ भी स्पर्श कर सकता है , कुछ भी ! झूट या सही - मुझे पता चला की देश की एक मशहूर परिवार की लड़की एक अत्यंत साधारण लडके के तरफ इसलिए आकर्षित हुई की वो लड़का डांस फ्लोर पर बहुत बढ़िया डांस करता था ! हा हा हा ! यह घटना हम जैसे तीसरे इंसान के लिए एक घोर आश्चर्य की बात थी ! मै तो इस सुचना के बाद कई दिनों तक सोचता रहा की कोई इतने बड़े खानदान की लड़की किसी पुरुष के डांस से कैसे प्रभावित होकर अपना जीवन सौंप सकती है ! लेकिन ऐसे कई उदहारण है ! किसी पुरुष की कौन सी बात किस स्त्री के मन को स्पर्श कर जाए - कहना मुश्किल है ! फिल्म पाकीज़ा में मीना कुमारी की खुबसूरत पैरों की तारीफ करना ही उनके मन को स्पर्श कहा जा सकता है ! उस तारीफ में कितनी इंटेंसिटी रही होगी की पूरी फिल्म ही उस घटना के इर्द गिर्द घुमती है ! ऐसी घटनाएं हम पुरुषों को हतप्रभ कर देती हैं लेकिन किसी अन्य महिला को नहीं ! शायद वजह होगी की एक महिला दुसरे महिला का मन समझ सकती है ! 
ठीक उसी तरह मेरे अत्यंत प्रिय कलाकार शाईनी आहूजा के ऊपर नौकरानी ने आरोप लगाए तो मेरी पत्नी को आश्चर्य हुआ - मुझे नहीं ! हा हा हा ! पुरुष का मन शारीरिक स्पर्श के लिए कब जाग जाए - कहना कठिन है ! सिवाय खुद के भाई बहन के - कहीं भी ! उसी तरह स्त्री का मन कब और कौन स्पर्श कर जाए कहना कठिन है ! 
एक यात्रा के दौरान मै एक बकरी पालन के बिजनसमैन से  वार्तालाप किया और उन्होंने कहा की जब तक बकरी इजाजत नहीं दे - बकरे दैहिक मिलन को पास नहीं जाते हैं ! यह प्रक्रिया / स्वभाव  कई जानवरों में पायी जाती है ! इंसान को छोड़ ! शायद यहीं से सभी समाज में 'स्वयंवर' की प्रथा चालु हुई होगी ! प्रकृति यह इजाजत सिर्फ और सिर्फ स्त्री जाति को देती है की वो किसको अपने पास आने की इजाजत देगी और इंसानों का भी सभ्य समाज हमेशा से इसका आदर किया है ! असभ्य समाज पुरुष के अहंकार से चलता है और सभ्य समाज स्त्री के मन से ! और यहाँ बकरी जाति से सीखना होगा की - जो पसंद है उसे कैसे पास बुलाएं :) 
तो यह मान कर चलना चाहिए की पुरुष शारीरिक मिलन को बेचैन होते हैं और महिलायें मन के मिलन को ! लेकिन ऐसा भी नहीं है ! बस अनुपात का अंतर है ! शायद स्त्री अपने शरीर के मिलन के साथ पुरुष के मन में जाना चाहती है और पुरुष मन के रास्ते स्त्री के तन तक ! यह भी एक कारण रहा होगा की समाज में पुरुष को अपने मन को खोलने की मनाही है और स्त्री को तन की ! स्त्री अपने मन को कभी भी और कहीं भी खोल सकती है ! पुरुष भी ! नजदीक आने पर स्त्री का मन खुलना ही खुलना है और पुरुष तो अपना शर्ट का दो बटन खोल पहले से ही बैठे होते हैं ! हा हा हा ! पुरुष भूल जाते हैं - मन को मन ही स्पर्श करता है ! और पुरुष सबसे अंत में अपनी आत्मा खोलते हैं और स्त्री सबसे अंत में अपना शरीर ! जिस पुरुष ने संबंधों में अपनी आत्मा पहले ही खोल दी - वो स्त्री के सामने अपनी महता खो भी सकता है और कुछ ऐसा ही नियम स्त्री पर लागु होता है की वो सबसे अंत में अपना शरीर खोले ! लेकिन यह पुर्णतः सच भी नहीं है - यहाँ परिपक्वता का खेल है ! एक परिपक्व दिमाग सामने वाले के शरीर की इज्जत देगा और मन की भी ! लेकिन दोनों तरफ इस स्पर्श के पहले - पूरी तरह ठोक बजा लेते हैं ! यहीं व्यक्तित्व है ! खुलना तो है ही है - राजा हो रंक ! क्योंकि खुलना प्रकृति है ! और आप हम सभी प्रकृति के नियम से बंधे है ! भूख सबको लगती है - राजा हो या रंक ! यह समाज है जो हमें गलत सिखाता है की राजा नहीं रोयेगा या उसे सिर्फ रानी से प्रेम होगी इत्यादि इत्यादि ! यह गलत है ! सही यही है की प्रकृति या ईश्वर की नज़र में सब बराबर है ! भावनाओं का अनुपात इंसान इंसान पर अलग अलग निर्भर करेगा ! या ज़िन्दगी का अनुभव या प्राकृतिक परिपक्वता उन भावनाओं को बढ़ा देंगी या घटा देंगी ! 
लेकिन वो सारे प्रेम अधूरे हैं - जहाँ अभी तक स्पर्श नहीं हुआ हो - या शायद वही प्रेम ज़िंदा हैं :)
@RR / 5 March 2019 / Patna 
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Monday, March 4, 2019

स्त्री - पुरुष / अर्धनारीश्वर

आज महाशिवरात्रि है ! स्त्री पुरुष के बीच के संबंधों को समझने का एक अध्यात्मिक कोण ! किसी भी चीज को समझने का अलग अलग कोण है ! अब आप अपने सुविधानुसार या किसी कारणवश किसी भी चीज को अपने कोण से देखते हैं और आपको प्रकृति भी आपको अपने कोण से देखने की छुट भी देती है ! 
सर्वप्रथम  यह मान के चलना चाहिए की यह 'महाशिवरात्रि' नहीं बल्कि 'महाशिवशक्ति रात्री' है ! शिव और शक्ति दोनों के मिलन की रात्री है ! अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट ! एक ऐसी संरचना या  अनुभूति जहाँ शिव और शक्ति दोनों की बराबर उपस्थिति है ! जैसे 'शिव लिंग की पूजा' - वो शिव लिंग नहीं बल्कि 'शिव और शक्ति' दोनों का लिंग है ! वो मिलन के मुद्रा में है - वह मिलन जो इस जगत का आधार है , वो मिलन जो इंसान के परम सुख का आधार है ! यही मिलन अर्धनारीश्वर है ! 
संभवतः समाज पुरुष प्रधान रहा होगा तो इस शिव और शक्ति के मिलन वाले दिन को महाशिवरात्री कह दिया गया या शिव शक्ति के लिंगों के मिलन को सिर्फ शिव लिंग कह दिया गया और यह परंपरा चलती आई ! हालांकि इस विषय पर मैंने कुछ साल पहले हलके इशारा में इसी शिव रात्री के दिन लिखा था - यह कह कर की यह 'शिव शक्ति रात्रि' है ! आज का संयोग देखिये - मैंने इसी नाम से एक ज्वेलरी  का दूकान भी देखा !
जब हम शिव के नाम के साथ शक्ति का भी प्रयोग करते हैं  संभवतः हम शक्ति को भी उचित स्थान देते हैं , हालांकि धर्म के जानकार यह कह सकते हैं की शिव में शक्ति का मिलन है तो शिव नाम से ही शक्ति का भी ध्यान होता है ! यह तर्क भी उचित है लेकिन मै विशुद्ध शक्ति का उपासक हूँ तो मेरे व्यक्तिगत मत से शिव के साथ साथ शक्ति शब्द का भी प्रयोग होना चाहिए ! या फिर लोग करते आये हैं ! लेकिन हमारी कल्पना में शिव पूर्ण है - जहाँ शक्ति समाहित है !
स्त्री और पुरुष के बीच तीन तरह के सम्बन्ध बनते है - कारण जो भी हो ! शारीरिक , भावनात्मक और अध्यात्मिक ! उम्र के अलग अलग पड़ाव पर अलग अलग ढंग से बन सकते हैं ! माँ और पुत्र में यह अध्यात्मिक होता है - जन्म के साथ ही शायद हम पुरुष अपनी माँ के साथ एक अध्यात्मिक भाव बनाते हैं ! फिर उम्र के हिसाब से अन्य स्त्रीओं के साथ शारीरिक आकर्षण और साथ में भावनात्मक भी ! कभी भावनात्मक तो कभी शारीरिक आकर्षण - उस दौर के हिसाब के ! लेकिन माँ के साथ बचपन में अध्यात्मिक सम्बन्ध के बाद - यौवन की नज़र की पहली फुहार भावनात्मक होती है - वो कहीं से शारीरिक नहीं होती है ! मै बात यौवन की पहली फुहार की कर रहा हूँ ! फिर उम्र के साथ शारीरिक आकर्षण ! प्रकृति है ! आप प्रकृति से नहीं बच सकते ! जैसे आपके घर का कुत्ता विशुद्ध शाकाहारी ढंग से दूध रोटी खिला कर पाला पोशा गया हो लेकिन हड्डी देखते ही वो उसकी सुगंध के तरफ आकर्षित होगा ही होगा ! यह प्रकृति है ! बकरी को हड्डी नहीं लुभाएगा क्योंकि बकरी को प्रकृति ने शाकाहारी बना के भेजा है !
लेकिन एक लोचा है - उम्र के एक ख़ास पडाव या दौर में क्षणिक ही सही लेकिन शारीरिक और भावनात्मक सम्बन्ध - दोनों साथ साथ होते है ! यह जोड़े जोड़े पर निर्भर कर सकता है - किसमे किस आकर्षण का अनुपात ज्यादा है ! कहीं शारीरिक ज्यादा तो कहीं भावनात्मक ज्यादा ! 
लेकिन 'शिव शक्ति' का मिलन इन तीनो भावों को दर्शाता है ! तीसरा भाव 'अध्यात्मिक' बहुत कठिन है ! इसे बहुत वक़्त चाहिए ! बहुत ! कई संबंधों में यह भाव तब आता है - जब बाकी के दोनों भाव ख़त्म हो चुके हों ! आप आस पास के संबंधों को गौर से देखिये - कई पति पत्नी में यह अध्यात्मिक भाव आपको नज़र आएगा - जब पत्नी माँ के रूप में बन जाती है ! काफी उमरदराज जोड़ों में यह नज़र आएगा - जब उन्हें जीवन का अनुभव सच के करीब लाएगा ! लेकिन कम उम्र में - इन तीनो भावों के साथ कोई रिश्ता बनाना अत्यंत कठिन है ! सारे योग फेल हो जायेंगे क्योंकि मनुष्य की प्रकृति इसकी इजाजत नहीं देती ! दो भाव एक साथ आयेंगे तो तीसरा नदारत ! और सिर्फ एक भाव के साथ सम्बन्ध को टूटने का ख़तरा क्योंकि इन सारे रहस्यों को एक वातावरण भी कंट्रोल करता है - जिसे हम संसार कहते हैं और संसार आपके हिसाब से नहीं चलता !
शायद यही वजह है हम तीसरे भाव के लिए ईश्वर की तरफ धकेल दिए जाते हैं ! क्योंकि एक साथ इन तीनो भाव के होने की इजाजत यह संसार नहीं देता ! शायद इसलिए मैंने अपने एक पुराने पोस्ट में ईश्वर , प्रकृति के साथ साथ संसार को भी एक बराबर की जगह दी है ! हालांकि मेरा झुकाव प्रकृति के तरफ होता है क्योंकि मै मानव स्वभाव को समझने की कोशिश करता हूँ !
एक बात और क्लियर है की जो एक ख़ास उम्र के दौर में है और अद्यात्मिक है - वह अपनी आत्मा या अपने से ऊँची आत्मा के साथ संपर्क बनाना चाहता है या बन चुका है - उसके अंदर भी बाकी के भाव होंगे ! यहाँ समाज या तीसरा व्यक्ति गलत कैलकुलेट करता है और कई बार अध्यात्मिक लोग कई लांक्षण के शिकार होते हैं क्योंकि वो बाकी के दोनों भाव को रोक नहीं पाते ! यहाँ उम्र भी कारक है ! लेकिन समाज कहता है की जब आप अध्यात्मिक हो गए यानी अपने से ऊपर किसी आत्मा के संपर्क में आ गए फिर आपके दोनों बाकी भाव ख़त्म हो जाने चाहिए ! शायद यह योग से संभव है ! लेकिन योग की भी काल / समय के साथ एक सीमा है ! लेकिन यह योग बहुत हद तक मदद करता है लेकिन किसी भाव को रोकना - प्रकृति के नियम के खिलाफ है ! जैसे किसी नदी की दिशा को मोड़ना ! फिर वो बाढ़ लाएगी ! शायद यही वजह है की इंसान अध्यात्म में ईश्वर के किसी रूप से खुद को कनेक्ट करना चाहता है - इंसान का कोई भरोसा नहीं और इंसान के बीच सिर्फ और सिर्फ भावनात्मक या शारीरिक आकर्षण ही बन के रह पाता है ! भावनात्मक भाव के चरम बिंदु से अध्यात्म की शुरूआत होती है और शारीरिक भाव के चरम बिंदु से भावनात्मक ! शायद यही वजह है की कई बार सेक्स वर्कर अपने चरम बिंदु से बचते / बचती है क्योंकि यहाँ से उनको भावनात्मक भाव के आ जाने का भय होता है ! यह कतई जरुरी नहीं की भावनात्मक भाव के लिए स्पर्श जरुरी है लेकिन स्पर्श के माध्यम से आया भावनात्मक लगाव थोड़ा टिकाऊ होता है !
स्त्रीयां यहाँ अलग ढंग से सोचती है - कहीं एक मशहूर लेखिका ने लिखा था - 'मन से देह का रास्ता जाता है या देह से मन का - कहना कठिन है' ! स्त्री के लिए उसके देह का रास्ता मन से होकर जाता है और पुरुष के लिए उसके मन का रास्ता देह से होकर जाता है !
शायद यही वजह है की - कई दफा कोई स्त्री अपने पुरुष के अन्य दैहिक सम्बन्ध को तो स्वीकार कर लेती है लेकिन अपने पुरुष के भावनात्मक समबन्ध पर चिढ जाती है , वहीँ दूसरी और पुरुष अपने स्त्री के अन्य भावनात्मक सम्बन्ध को स्वीकार तो कर लेते हैं लेकिन शारीरिक कतई नहीं ! हालांकि भय दोनों तरफ होता है - कहीं यह सम्बन्ध भावनात्मक से शारीरिक न हो जाए या फिर शारीरिक से भावनात्मक न हो जाए ! लेकिन तीनो भावों की जरुरत स्त्री और पुरुष दोनों को होती है ! देर सबेर या कम ज्यादा ! 
खैर , बात अर्धनारीश्वर से शुरू हुई थी ! जब शक्ति शिव में समाहित होती है - मूलतः वो प्रेरणा होती है ! कई साधारण से साधारण पुरुष भी किसी स्त्री के संपर्क मात्रा से अपने सांसारिक जीवन में कई सीढ़ी ऊपर चढ़ जाते हैं - पताका लहराते हैं ! अब यह उस पुरुष पर निर्भर करता है की वह कैसी प्रेरणा स्वीकार करता है ! यह उसकी अपनी वर्तमान परिस्थिति या ग्रहों की दिशा तय करेगी ! हर पुरुष एक शिव है और हर स्त्री एक शक्ति है ! कब किस शक्ति को किस शिव में समाहित होना है - यह ग्रहों के भाव तय करेंगे ! लेकिन शक्ति के समाहित होने के साथ कोई इंसान शिव न बने - यह असंभव है ! 
अर्धनारीश्वर का कांसेप्ट मूलतः 'शिव शक्ति' के मिलन के उस रूप को है ! अब आप इसे भावनात्मक भाव से देखिये या शारीरिक या अध्यात्मिक - यह सोच आपकी वर्तमान मनोवस्था की परिचायक होगी ! लेकिन इस सारे कथा कहानी या शास्त्र का स्रोत समाज या संसार रहा है जो प्रकृति के इन रहस्यों को स्वीकार तो करता है लेकिन अपने शर्तों या नियम के साथ और इन रहस्यों के साथ बंधे सामाजिक शर्त को हम भी रहस्य मान बैठते हैं या फिर इंसान इतना कमज़ोर होता है की समाज के शर्तों में बंधी इन रहस्यों को स्वीकारने का हिम्मत उसके अंदर नहीं ! कारण जो भी हो लेकिन किसी भी स्त्री पुरुष का मिलन किसी भी भाव के साथ ही 'अर्धनारीश्वर' का कांसेप्ट है ! अब वह भाव वह जोड़ा तय करेगा !
याद रहे - सभी भावों की आयु कम है ! और इंसान की अपेक्षा अनंत है ! तभी प्रकृति और सामाज के साथ साथ ईश्वर भी है या यूँ कहिये ईश्वर ही हैं :)) 
@रंजन ऋतुराज / 4 मार्च 2019 / महाशिवशक्ति रात्री :)