Monday, February 10, 2014

सरस्वती वंदना

हे वीणावादिनि....
तुम तो देवी हो ..न ...हम एक इंसान हैं ..
तुम पूर्ण हो ...हम अपूर्ण हैं ...
तुम तृप्त हो ...हम अतृप्त हैं ...
तुम ज्ञान की सागर हो ...हम जन्मो के प्यासे हैं ...
तुम तो देवी हो ..न ..
याचना नहीं आती हमें ...आराधना आती है ...
स्तुती नहीं आती हमें ...पूजा आती है ...
कुछ भी नहीं ..फिर भी चाहत बेशुमार है ..
जुबान नहीं ...पर एक निर्मल मन है ...
शब्द नहीं ...पर भावविभोर एक प्रेम हैं ..
तुम तो देवी हो ..न ...
हे वीणावादिनि ...अब तो वर दे ...
अब नज़र उठाओ ...
अपने ज्ञान से मेरे मन को भर दे ...
हे वीणावादिनि ...अब वर दे ...
अपने संगीत और सरिता से ...
इस जीवन में एक वसंत दे ...
तुम तो देवी हो ..न ..
हे वीणावादिनि ...अब वर दे ... 



रंजन ऋतुराज 

हे ..ऋतुराज ...


हे ऋतुराज वसंत ...
कौन दिशा आते हो ...
शिशिर के घमंड को तोड़...
किस रंग में हमें रंग जाते हो ...
हे ऋतुराज वसंत ...
तेरे आने की खबर हमें कौन दे जाता है ...
खेतों में लहलहाते सरसों के फूल ...
या कोयल की मधुर बोल ...
"हे ऋतुराज वसंत ...
तुम्हारे इंतज़ार में ...ठिठुरती धरती भी ...
तेरे आगमन से...थोडा इठलाती है ...
परागों के यौवन को देख ...'प्रकृती' भौरों में समा जाती है ..."
~  
रंजन ऋतुराज